ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- XII March  - 2022
Anthology The Research
मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य में नारी शोषण के प्रति विद्रोह
Paper Id :  015966   Submission Date :  13/03/2022   Acceptance Date :  16/03/2022   Publication Date :  25/03/2022
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वंदना
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजकीय महिला महाविद्यालय
बदायूं ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश मैत्रेयी पुष्पा ने समाज में नारी की वर्तमान स्थिति को बहुत ही सहज और सरल ढंग से अपनी कहानियों एवं उपन्यासों के माध्यम से दर्शाया है उनकी कहानियों की महिला पात्र अपने शोषण के प्रति विद्रोह का स्वर मुखरित करती हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Maitreyi Pushpa has depicted the current status of women in society in a very simple way through her stories and novels. The female characters of her stories express the voice of rebellion against their exploitation.
मुख्य शब्द नारी शोषण के प्रति विद्रोह ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rebellion Against Women's Exploitation.
प्रस्तावना
मैत्रेई पुष्पा ने अपनी कहानी एवं उपन्यासों के माध्यम से समाज के हर वर्ग में शोषण का शिकार होने वाली महिलाओं के लिए अपनी लेखनी चलाई है।
अध्ययन का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण की ओर अग्रसर होना।
साहित्यावलोकन
हिंदी साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली ,स्त्रियों के दुःख पीड़ा एवं सामाजिक स्थिति को अपनी लेखनी से उकेरने में महारथ हासिल मैत्रेयी का जन्म 30 नवंबर सन् 1944 को अलीगढ़ के सीकरी गांव में हुआ था। उन्होंने कॉलेज के दिनों से ही लिखना प्रारंभ किया इनकी पहली कविता बाड़े में काम करने वाली महिलाओं पर थी जिसके कारण इन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा वह जिस बाड़ें में रहकर पढ़ती थी अखबार में कविता के छपने के बाद उस बाड़े में रहने वाले लोग उस कविता को पढ़कर उत्तेजित हो गये और इन्हें अपना कमरा खाली करना पड़ा। इनका कविता संग्रह 'खुली खिड़कियां' तथा 'लकीरें' साहित्य के क्षेत्र में एक नया आयाम लाने की कोशिश है ।अपने काव्य संग्रह 'खुली खिड़कियों' के माध्यम से उन्होंने नारी की वास्तविक स्थिति को उजागर करने का प्रयास किया है।
मुख्य पाठ

हिंदी साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली ,स्त्रियों के दुःख पीड़ा एवं सामाजिक स्थिति को अपनी लेखनी से उकेरने में महारथ हासिल मैत्रेयी का जन्म 30 नवंबर सन् 1944 को अलीगढ़ के सीकरी गांव में हुआ था। उन्होंने कॉलेज के दिनों से ही लिखना प्रारंभ किया इनकी पहली कविता बाड़े में काम करने वाली महिलाओं पर थी जिसके कारण इन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा वह जिस बाड़ें में रहकर पढ़ती थी अखबार में कविता के छपने के बाद उस बाड़े में रहने वाले लोग उस कविता को पढ़कर  उत्तेजित हो गये और इन्हें अपना कमरा खाली करना पड़ा। इनका कविता संग्रह 'खुली खिड़कियांतथा 'लकीरेंसाहित्य के क्षेत्र में एक नया आयाम लाने की कोशिश है ।अपने काव्य संग्रह 'खुली खिड़कियोंके माध्यम से उन्होंने नारी की वास्तविक स्थिति को उजागर करने का प्रयास किया है।

मैत्रेयी पुष्पा ने स्त्री जीवन के सत्य को उजागर करने का माध्यम गद्य को बनाया क्योंकि मानव जीवन के यथार्थ चित्रण में कहानी एवं उपन्यासों जैसी क्षमता अन्य किसी साहित्यिक विधा को नही है। इन्होंने अपने जिये हुये परिवेश को सहजतासरलता स्वाभाविकता से अत्यंत संतुलित शब्दों में अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है जिसे पढ़कर लगता है कि यह केवल रचनायें नहीं है समाज का दस्तावेज है। मैत्रेयी पुष्पा जी के लगभग दस उपन्यास एवं तीन कहानी संग्रह प्रकाशित है। उनके उपन्यासों में स्त्री अस्मिता की एक झलक स्पष्ट दिखाई देती है नारी शोषण के प्रति विद्रोह  वृद्धों, अशिक्षित विधवा नारियों का चित्रण अपनी कहानियों एवं उपन्यासों में लेखिका ने अपने विचारविद्रोह एवं अनुभव के साथ चित्रित किये हैं।

विद्रोह से मनुष्य की आजादी संभव होगी ।नारी विद्रोह एक दिन की सृष्टि नहीं है कई वर्षों से शोषित नारी मानसिकता की कालानुसृत परिणति है। मैत्रेयी के कथा संसार की नारी शोषण के प्रति विद्रोह करने के साथ-साथ अपने ऊपर के बंधनों को तोड़ने का प्रयास करने लगी। मैत्रेयी के उपन्यास और कहानियां इसका सच्चा मिसाल है। लेखिका  समकालीन परिवेश और समाज में नारी को जो अत्याचार झेलने पड़े उसके विरोध में अपनी आवाज उठाती हैं नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं की भीषणता को अनावृत करने में मैत्रेयी अपने कथा साहित्य द्वारा समर्थ हुयीं हैं।

अपनी पहली कथा 'अपना अपना आकाशद्वारा लेखिका ने एक वृद्ध ग्रामीण निरक्षर विधवा की निरालंबन की कथा को मार्मिक ढंग से चित्रित किया हैबेटी' 'सहचर' 'बहेलियानामक तीन कहानियों में शिक्षा से वंचित होने के कारण शोषण के शिकार बनने वाली नारियों की है। 'मन नहीं दस बीसमें ग्रामीण किसाननारी शोषण के प्रति विद्रोह आदि का अनुभूतिजन्य चित्रण चंदनास्वराज वर्मा आदि  पात्रों द्वारा लेखिका ने किया है ।आक्षेप में लेखिका ने एक सशक्त नारी पात्र का चित्रण किया हैजो बदनामी की परवाह किये बिना समाज के दुखियों  पीड़ितों की मदद के लिये हर समय हाजिर रहती है। 'कृतज्ञभी नारी शोषण की कहानी है 'चिहृनारसरजू की दुःख भरी कहानी है। दिशाहीन पति को स्नेह करने वाली तथा बच्ची अपनी होने पर भी उसकी नौकरानी बनकर जीने वाली सरजू एक शोषित नारी का प्रतीक है। 'सिस्टरनामक कहानी में डोरोथी डिसूजा नामक नर्स के द्वारा स्त्रियों की कुंठानिराशाआत्मनिर्भरताअकेलापन और वात्सल्य का चित्रण लेखिका ने किया है। 'आज फूल नहीं खिलते' में झरना नामक बच्ची की  कहानी है जो गांव से शहर पढ़ने के लिए आती है पर प्रिंसिपल से यौन शोषण भोगना पड़ता है शोषण के विरुद्ध झरना अपनी सारी ताकत लेकर प्रतिक्रिया भी करती है। लेखिका ने अपने हर उपन्यास एवं कहानी में नारी का विद्रोही स्वर मुखरित किया है।

'स्मृतिदंशमैत्रेयी जी का सबसे पहला उपन्यास है। इस उपन्यास के माध्यम से मैत्रेयी ने ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों के वैवाहिक जीवन की समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया है।अपने उपन्यास 'बेतवा बहती रहीमें बेतवा नदी के किनारे रहने वाली उर्वशी एक भारतीय ग्रामीण नारी का प्रतीक है जिसके पति की मृत्यु के बाद उसे ना चाहते हुए भी अपने से अधिक उम्र के पुरुष से विवाह करना पड़ता है। उपन्यास 'झूलानट'की नायिका शीलू विद्रोही स्वभाव की है वह गांव की संस्कृति और आचार विचार को चुनौती देती है। इदन्नमम मैत्रेयी जी के व्यक्तित्व की पहचान है इसमें उन्होंने शामली और सोनपुरा नामक दो गांवों में रहने वाली तीन पीढ़ियों की औरतों की संवेदनशीलता को दर्शाया है। 'आंगनपाखीउपन्यास आचार -विचार,व्यवहार द्वारा भारत की जनता के सभ्यता और संस्कार की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। 'अल्मा कबूतरीउपन्यास में कबूतरा नामक जनजाति के जीवन संघर्ष की कहानी है 'विजनउपन्यास में लेखिका ने बताया है कि संघर्ष शोषण केवल ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का नहीं होतापढ़ी-लिखी शहरी कामकाजी महिलाओं को भी झेलना पड़ता है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए अपनी उपस्थिति की पहचान के लिए लड़ना पड़ता है। 'कस्तूरी कुंडल बसैबेजोड़ उपन्यास है जिसे पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि यह संघर्ष कस्तूरी से ज्यादा स्वयं मैत्रेयी जी का है। 'कही ईसुरी फागरचना के पीछे लेखिका का वह लोकानुराग है जो बचपन से उनकी सामाजिक ,पारिवारिक संस्कृति से संबंधित है।

'कस्तूरी कुंडल बसैकी कस्तूरी मैत्रेयी की मां एक जुझारू नारी थी। वह मैत्रेयी की शादी नहीं करना चाहती थी ,क्योंकि उन्हें लगता था कि किसी तरह अपनी बेटी का बोझ किसी पुरुष के कंधे पर डालना परिवार वालों का लक्ष्य होता है। लड़की को परिवार का शाप समझा जाता है मां का मानना है कि 'संसार में औरतों के मुकाबले कोई सख्त जान नहीं बेटो को रोग-धोग व्यापे पर इसे कभी छींक तक नहीं आयी। अरे गाय मरे अभागे की बेटी मरे सुभागे कीमगर बेटी मरे तो सही।'

गांव में विधवा स्त्री का जीवन नर्क से भी ज्यादा खराब होता है परंतु मैत्रेयी की नारी पात्र इस जीवन का विरोध करते हुए अपना जीवन जीती हैं 'चाककी नायिका रेशम का पति कर्मवीर की मृत्यु के छःमहीने बाद वह गर्भवती हो गयी। सास के बार-बार पूछने पर भी वह किसी का नाम बताने को तैयार नहीं थी बिना बाप के बच्चे का पालन करने का साहस उसमें था ।गर्भवती रेशम के सामने ससुराल वालों ने एक सुझाव रखा देवर डोरिया को पति के रूप में स्वीकार कर लो लेकिन रेशम आत्मावंचना  के लिए तैयार नहीं थी उसने विद्रोही स्वर में नारी से संबंधित एक सच्चाई सास से पूछी 'तुम्हारे पूत की चिता ठंडी हो जाने से क्या मेरी देह की आग बुझ जातीबिना बाप के बालक को भगवान पाप मानता तो हमारी विधवा की कोख में डालता।'

मैत्रेयी के नारी पात्र का मानना है कि पतिव्रता होने पर भी नारी शोषण से मुक्त नहीं होती। 'चाकमें सारंग ने अपनी इच्छा से अपना शरीर श्रीधर को सौंप दिया उसके मन में इसके लिए लेश मात्र भी अपराध बोध नहीं था। सारंग ने नारियों के प्रति समाज की विद्रूप एवं घोर नीतियों  के प्रति विद्रोह का स्वर मुखरित किया है ग्रामीण समाज में रहने वाली जाट परिवार की कुलवधू सारंग ने पुरुषसत्तात्मक समाज का सशक्त रूप से विरोध करते हुये अपने पति के समक्ष बंदूक उठा लेने वाली सशक्त और हिम्मती पात्र है।

विधवा बहू कुसुम के चरित्र में लेखिका ने विद्रोह लाने की कोशिश की है विधवा होने पर भी उसने दूसरी जिंदगी न स्वीकार करके अपने बेटे की देखभाल की जिम्मेदारी अकेली निभायी। बेटे की हत्या के बाद बहू अपनी बच्ची मंदा को छोड़कर चली गयी चलते समय मंदा को उसने ले लिया मंदा को सुरक्षा के लिए उसे लेकर शामलीसमथर ,ओरछाबिरगांव जाना पड़ा सोनपुर का सारा जायदाद छल से नष्ट होने पर भी उसने अपना साहस न छोड़ा । कुसुम एक विद्रोही नारी है अपने पति यशपाल द्वारा उपेक्षित होने पर भी वह ससुराल में रहती थी। वहां के तपेदिक के रोगी अमर सिंह के साथ उसका संबंध हुआ और एक बच्चा भी हुआ बच्चे के जन्म से पहले अमर सिंह मर गया। मंदा को मंदा बनाने में कुसुम की लगातार कोशिश की जीत हुयी। बिरगांव में जब कैलाश मास्टर ने मंदा का बलात्कार किया तब कुसुम ने मार मार कर कैलाश मास्टर की हड्डियां तोड़ डाली और मंदा को धीरज बंधाकर शामली ले गयी। ,सगुना पर मंदा का प्रभाव जरूर पड़ा जब वह समझ गयीं कि अभिलाख के बलात्कार से वह गर्भवती बन गयीं हैं तब अभिलाख की हत्या करने की बहादुरी दिखायी ।

'आंगनपाखीमें मैत्रेयी ने भुवन का परिचय विद्रोहिणी  के रूप में कराया है उसकी जिंदगी शोषण से भरपूर थी। वह पढ़ना चाहती थी लेकिन घर वाले उसे कक्षा पांच से आगे पढ़ने नहीं देते हैं और उसको घर से लेकर खेतों के काम में लगा देते हैं उसकी शादी एक बहुत ही पैसे वाले परिवार के पागल पुत्र विजय सिंह के साथ होती है वह उस  पागल से तलाक लेना चाहती है पर अम्मा उसे लोक लाज मर्यादा सिखाती हैं वह अपनी अम्मा से पूछती है 'अम्मा ब्याह करना पाप नहीं है तो ब्याह छोड़ना क्यों पाप है '? वह ससुराल के आचारमर्यादा ,पर्दा प्रथा आदि को दरकिनार कर मंदिर में पूजा करने जाती थी पति को बीमारी से मुक्ति दिलाने के लिए तंत्र विद्या सीखने लगती है विजय की मृत्यु पर सती अनुष्ठान से बचने के लिए वह मंदिर के पुजारी की मदद से वन में चली जाती है। लेखिका ने उसको जुझारू संघर्षशील एवं विद्रोही नारी के रूप में चित्रित किया है।

'कही ईसुरी फागकी मीरा एक सशक्त आधुनिक नारी पात्र का प्रतीक है उसकी मदद से ॠतु अपने शोध का मटेरियल इकट्ठा करती है। मीरा गांव वाली होते हुये भी एक साधारण सी लड़की की तरह घुंघट डालकर रसोई में नहीं बैठीउसकी शादी पंद्रह सोलह साल की उम्र में हुयी जब वह आठवीं पास थी बाद में उसने किसी तरह हायर सेकेंडरी पास कर लिया दो बच्चे भी हुएउसने दिन में घर का सारा काम किया एवं रात में अपनी पढ़ाई ,इस तरह उसने बी.ए पास कर लिया और गांव की अनपढ़ नारियों को पढ़ाना शुरू किया। पूरे समाज का विद्रोह कर आंगनबाड़ी में काम करने लगी मीरा से प्रेरणा पाकर ॠतु ने भी अपना थीसिस पूरा कर लिया था।

'फैसलाकहानी की ईसुरिया गड़ेरिया की पत्नी हैदलित हैं फिर भी वह प्रधानिन वसुमति से ज्यादा साहस दिखाती है जब वसुमति प्रधान पद पर चुनाव जीत गयी तभी ईसुरिया ने कहा 'बराबरी का जमाना आ गया अब ठठरी बांधे मरद मारा कुटी करेंगाली गलौज देमायके ना भेजेंपीहर से रुपैया पैसा मंगवाए ,क्या कहते हैं कि दायजे के पीछे सतावेतो बस बैन सूधी चली जाना बासुमति के डींगे।ईसूरिया का चित्रण लेखिका ने अलग ढंग से किया है उसके आगे कोई भी हो वह गलत बोलता तो वह ज़वाब जरूर देती ,उसके मन में किसी के प्रति भय नहीं है और वह किसी की गुलाम भी नहीं है। वह घूंघट नहीं डालती गांव के गरीबों की समस्यायें सुलझाती है।हरदेई और रामकिशुन की समस्या के समाधान के लिए वह प्रयत्न करती थी लेकिन असफल हो गयी। ईसुरिया से प्रेरणा पाकर बासुमति ने अपने पति रणवीर को वोट नहीं दिया और एक वोट की कमी के कारण प्रमुख के चुनाव में रणवीर हार गया।

'इदन्नममकी मंदा एक बहुत ही ईमानदार ,साहसी और विद्रोही पात्र है। क्रेशर ब्लास्टिंग के कारण गांव वालों की खेती बर्बाद होती हैं और लोग चैन से नहीं रह पाते इसलिए सभी मिलकर यह फैसला करते हैं कि मंदा के नेतृत्व में क्रेशर मालिकों के विरुद्ध आंदोलन चलाया जाएगा। मंदा और द्वारिका काका जब अभिलाख से मिलने जाते हैं तो क्रेशर मालिक अभिलाख और मंदा में वाक् युद्ध होता है तथा अभिलाष क्रुद्ध होकर मंदा पर हमला कर देता है। 'अभिलाष ने आव देखा न ताव लपक कर मंदाकिनी के बाल झझोड़ डाला‌। सालीहरामजादी कहकर गालियां दी ,बांह पकड़कर ऐठ डाली और जहां जहां हाथ गया वहां ठौर देखा न कुठौरटूट पड़ा भूखे भेड़िए की तरहइस घटना के पश्चात राउत वर्ग ने अभिलाख के घर पर हमला बोला और मामला पुलिस तक गया। समाज की विडंबना एवं पुरुष सत्तात्मक स्थिति के कारण मंदा को थाने की पुलिस दरोगा और थानेदारों से अपमान सहना पड़ामगर मंदा ने हिम्मत नही हारी न पीछे हटी क्रेशर मालिकों के खिलाफ गांव में जागरण फैलाती रही तथा आंदोलन करती रही।

'अल्मा कबूतरीमें भूरी कबूतरी सबसे विद्रोही नारी पात्र है इस उपन्यास की प्रतिनिधि पात्र कदमबाई है जिसके मनमोहक और सुंदर शरीर के लोभवश कज्जे लोग उसके पति जंगलिया को मार काट के मामले में फंसा कर उसकी हत्या करवा देते हैं। कबूतरियों के शारीरिक शोषण तथा शराब पीने के लिए कज्जे पुरुष उनकी बस्ती में आते जाते थे। अंधेरे में पति की प्रतीक्षा में खेत पर खड़ी कदमबाई के साथ मंसाराम शारीरिक संबंध स्थापित करता है और वह गर्भवती हो जाती है अपने बेटे को बड़ा करने एवं पढ़ाने लिखाने में उसे बहुत शोषण सहना पड़ता है।

'विजनउपन्यास में दो नेत्र चिकित्सक महिला डॉक्टर आभा और नेहा की कहानी है आभा विद्रोही पात्र है डॉ नेहा अजय की पत्नी होने के साथ साथ शरण आई सेंटर की डॉक्टर तथा डॉक्टर शरण की बहू का कर्तव्य निभाते निभाते थक गयी हैं उनकी अपनी कोई पहचान नहीं रह गई है परंतु उसके भीतर अपने शोषण के प्रति विद्रोह करने की ताकत नहीं थीइसलिए डॉक्टर नेहा ने डॉक्टर आभा से मदद मांगी।आभा नें अपनी डॉक्टरी के पेशे में बाधा बनने वाले  वैवाहिक जीवन को छोड़ने की हिम्मत दिखायी नेत्र चिकित्सा में कुशल डॉ आभा ने अपने पति और ससुराल वालों के व्यर्थ की जिद्द को  स्वीकार नहीं किया इसलिए उसने अपने पति को तलाक दे दिया। आभानेहा की जिंदगी की मार्गदर्शक है।

अपने उपन्यासों एवं कहानियों के माध्यम से लेखिका सिर्फ पढ़ी-लिखी नायिकाओं द्वारा ही नही अनपढ़ग्रामीणनारी पात्र द्वारा भी शोषण के प्रति विद्रोह प्रकट करती है। विद्रोह प्रकट करने मेंपगला गयी है भागवतीमें भागो ने एक अलग रास्ता चुन लिया। जिज्जी की बेटी अनसूया पहले ही मां से उपेक्षित लड़की थी उसका संरक्षण भागो ने किया थाअनसूया के भाई ने अपनी मर्जी के अनुसार रजिस्टर्ड विवाह किया और मां-बाप ने उन्हें बुलाकर धूमधाम से ब्याह कराया। उस समय आशीष देने के लिए माधव सिंह के मंच पर आते वक्त भागो ने पत्थर उठाकर मारा ,सब सोचने लगे भागो पागल हो गयी है पर उसने अपना विद्रोह प्रकट करने के लिये पत्थर फेंका था।

मैत्रेयी पुष्पा अपने कथा साहित्य में भारतीय समाज की नारी को अपने अस्तित्व की लड़ायी के लिए प्रेरित करते हुये उनकी सुसुप्त चेतना को जागृत करने में सक्षम दिखाई देती है। पुरुष सत्तात्मक समाज में गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिये नारी को समाज में व्याप्त रूढ़ियोंपरंपरागत अनाचारोंका उल्लंघन करने का साहस दिखाना पड़ेगासदियों से चली आ रही परंपरा और रीति-रिवाज को तोड़ती हुई समाज में अपने साथ होने वाले शोषण के प्रति विद्रोहात्मक स्वर को बुलंद करने वाली नारी को लेखिका ने अपनी कथा साहित्य में अलग व्यक्तित्व प्रदान किया ।

निष्कर्ष मैत्रेई पुष्पा ने नारी समाज को अपने साथ होने वाले हर शोषण के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया है अपनी आत्मकथा गुड़िया भीतर गुड़िया में उन्होंने अपने जीवन को भी दर्शाया है अपने साथ होने वाले शोषण के प्रति विद्रोह का स्वर मुखरित किया है तथा अपनी समस्त कहानी एवं उपन्यासों में नारी को सशक्त रूप में प्रदर्शित किया है चाहे वह पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़ हो ।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. स्मिता नायर -मैत्रेयी पुष्पा का कथा साहित्य का अनुशीलन पृष्ठ -123 2. स्मिता नायर मैत्रेयी- पुष्पा का कथा साहित्य एक अनुशीलन पृष्ठ -66 3. मैत्रेयी पुष्पा- कस्तूरी कुंडल बसै पृष्ठ -13 4. मैत्रेयी पुष्पा -चाक पृष्ठ- 19,20 5. स्मिता नायर -मैत्रेयी पुष्पा का कथा साहित्य एक अनुशीलन पृष्ठ- 120 6. मैत्रेयी पुष्पा -आंगन पाखी पृष्ठ -77 7. स्मिता नायर -मैत्रयी के कथा साहित्य में नारी शोषण और शोषण के विरुद्ध विद्रोह पृष्ठ- 123 8. मैत्रेयी पुष्पा- फैसला ललमनिया पृष्ठ -8 9. स्मिता नायर- मैत्रेयी पुष्पा का कथा साहित्य एक अनुशीलन पृष्ठ- 99 10. मैत्रेयी पुष्पा- इदन्नमम पृष्ठ- 199 11. स्मिता नायर -मैत्रेयी पुष्पा का कथा साहित्य एक अनुशीलन पृष्ठ -14