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कृषि के लिए जल संसाधनों का अभाव, बुन्देलखण्ड के परिप्रेक्ष्य में | |||||||
Lack of Water Resources for Agriculture, in the Context of Bundelkhand | |||||||
Paper Id :
16741 Submission Date :
2022-10-04 Acceptance Date :
2022-10-22 Publication Date :
2022-10-25
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सारांश |
किसान के लिए धरती मां है, और अपनी मां से किसान अटूट रिश्ता रखता है, वह अपनी धरती मां से सर्वाधिक लगाव रखता है वही उसका सब कुछ है, इसीलिए किसान को धरती पुत्र भी कहा जाता है। किसान के लिए पानी भी उतना ही आवश्यक है जितना जीवन जीने के लिए आक्सीजन। जल कृषि के लिए एक बहुमूल्य संसाधन है, जल प्रकृति का सबसे अमूल्य उपहार है। समूचे सौर मण्डल में सिर्फ पृथ्वी पर ही जल है और सम्भवतः इसीलिए जीवन भी। जल एक सीमित संवेदनशील संसाधन है, क्योंकि स्वच्छ जल की मात्रा अपेक्षाकृत कम हैं। विश्व में देशवार भौगोलिक क्षेत्र, कृषि योग्य भूमि और सिंचित क्षेत्र का विश्लेषण करने पर ऐसा पता चलता है कि महाद्वीपों के बीच सर्वाधिक विशाल भौगोलिक क्षेत्र अफ्रीका में स्थित है। जो कि विश्व के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत है। बुन्देलखण्ड मध्यभारत का एक प्राचीन क्षेत्र है जिसका प्राचीन नाम ‘‘जेजाक मुक्ति’’ है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में जोत का आकार राज्य में सामान्य औसत से अधिक है, फिर भी संकट बना रहता है। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए उपयुक्त संसाधनो की उपलब्धता आवश्यक है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Earth is the mother for the farmer, and the farmer has an unbreakable relationship with his mother, he has the most attachment to his mother earth, she is his everything, that is why the farmer is also called the son of the earth. Water is as important for the farmer as oxygen is for life. Water is a valuable resource for agriculture, water is the most priceless gift of nature. In the entire solar system, only Earth has water and possibly therefore life. Water is a limited sensitive resource, as the amount of fresh water is relatively small. On analyzing country-wise geographical area, cultivable land and irrigated area in the world, it is found that Africa has the largest geographical area among the continents. Which is about 23 percent of the geographical area of the world. Bundelkhand is an ancient region of Central India whose ancient name is "Jejak Mukti". In the Bundelkhand region, the size of land holdings is higher than the general average in the state, yet the crisis persists. Availability of appropriate resources is necessary for the development of any area. | ||||||
मुख्य शब्द | कृषि, किसान, जल, संसाधन, बुन्देलखण्ड। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agriculture, Farmers, Water, resources, Bundelkhand. | ||||||
प्रस्तावना |
पानी प्रकृति का सबसे अमूल्य उपहार है। पानी की मांग निरन्तर बढ़ रही है और जलापूर्ति लगातार घट रही है। सांसारिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो हमारे देश मे 4 प्रतिशत जल है जबकि आबादी 16 प्रतिशत है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि संसार के औसत की तुलना में हमारे यहां प्रति व्यक्ति के हिस्से में केवल चौथाई जल ही आता है। सिंचित क्षेत्रफल के सन्दर्भ से भारत का दुनियाँ मे प्रथम स्थान है। देश का आठवां हिस्सा बाढ़ ग्रस्त है तथा छठा हिस्सा सूखा से त्रस्त है। इसके लिए मानसून का कारक उत्तरदायी है। सुरसा के मुख के समान बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्यानों और दूसरी कृषि उपजों की ज्यादा जरुरत हैं। अतः फसलों की सिचाई के रुप में जल का उपयोग अनवरत बढ़ता जा रहा है।
समूचे सौर मण्डल में सिर्फ पृथ्वी पर ही जल है और सम्भवतः इसीलिए जीवन भी। अतः इस अनमोल संसाधन के अभाव में कुछ भी सम्भव नहीं हैं, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि मरुस्थल को छोड़कर प्रत्येक स्थान पर जल की बहुलता हैं, जबकि ऐसा नहीं है। जल एक सीमित संवेदनशील संसाधन है, क्योंकि स्वच्छ जल की मात्रा अपेक्षाकृत कम हैं। जबकि पृथ्वी पर पानी की वास्तविक स्थिति महासागर-97 प्रतिशत जो पीने योग्य नही हैं, क्योंकि इसका जल खारा, लवणीय हैं और स्वच्छ जल की मात्रा मात्र 3 प्रतिशत ही है। स्वच्छ जल की स्थिति को देखा जाये तो बर्फ और ग्लैशियर मिलकर 69 प्रतिशत भूमिगत जल की मात्रा 30 प्रतिशत, झील, नदी, दलदल 0.3 प्रतिशत और अन्य जल की मात्रा 0.7 प्रतिशत हैं। जल की जो मात्रा उपयोग और अन्य प्रयोगों के लिए वस्तुतः उपलब्ध है, वह नदियों, झीलों, और भूजल में उपलब्ध मात्रा का छोटा-सा हिस्सा है। इसलिए जल संसाधन विकास और प्रबन्ध की बावत संकट इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि अधिकांश जल उपभोग के लिए उपलब्ध नहीं हो पाता और दूसरे इसका विषमतापूर्ण स्थानिक वितरण इसकी एक अन्य विशिष्टता है। फलतः जल का महत्व स्वीकार किया गया है और इसके किफायती प्रयोग तथा प्रबन्ध पर अधिक बल दिया गया है।
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अध्ययन का उद्देश्य | बुंदेलखंड क्षेत्र में कृषि के लिए जल संसाधनों के अभाव का अध्ययन। |
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साहित्यावलोकन | विश्व में देशवार भौगोलिक क्षेत्र, कृषि योग्य भूमि और सिंचित क्षेत्र का विश्लेषण करने पर ऐसा
पता चलता है कि महाद्वीपों के बीच सर्वाधिक विशाल भौगोलिक क्षेत्र अफ्रीका में
स्थित है। जो कि विश्व के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत
है। जबकि मात्र 21 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वाले एशिया में
विश्व की लगभग 32 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि है। जिसके बाद
उत्तर केन्द्रीय अमेरिका का स्थान आता है जिसमे लगभग 21 प्रतिशत
कृषि योग्य भूमि है। अफ्रीका में विश्व की केवल 12 प्रतिशत
कृषि योग्य भूमि है।
जल ही खेती-बाडी़ और हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का
मूल आधार है। हमारे देश का एक बडा़ भू-भाग कृषि के लिए जल संसाधनो पर निर्भर है।
जिसमे बारिश और भू-जल वर्षा की स्थिति में मामूली बदलाव से भी इन क्षेत्रों में
कृषि पैदावार पर बुरा असर पड़ता हैं पूरा देश भू-जल सहित जल संसाधन, उसका अतिदोहन, और अपर्याप्त प्रबंधन के
कारण तेजी से सूख रहे है। आज जल की कमी देशों और महाद्वीपों के दायरे को तोड़कर
विश्व व्यापी समस्या बन गई है। इस जल को लेकर विभिन्न राज्यों एंव देशो के बीच आये
दिन विवाद होते रहते है। अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान कोलम्बो सहित अनेक
राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों का ऐसा अनुमान है, कि
भविष्य मे जल की कमी एक बड़ी समस्या होगी। किसी भी देश, राज्य
और क्षेत्र में समानता और सभ्यता के विकास में जल का योगदान महत्वपूर्ण रहा है
प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। जल
के महत्व का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2013
को विश्व जल वर्ष के रूप माना जा चुका है। |
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मुख्य पाठ |
बुन्देलखण्ड यह मध्यभारत का एक प्राचीन क्षेत्र है जिसका प्रचीन
नाम ‘‘जेजाक मुक्ति’’ है इसका विस्तार क्षेत्र उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक है यहाँ की
बोली ‘‘बुन्देली’’ है यहाँ के महान
चन्देल शासक विद्याघर चन्देल, आल्हा उदल, महाराजा छत्रसाल, राजा भोज, ईसुरी, कवि पद्यमाकर, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, मेथिलीशरण गुप्त, मेजर ध्यानचन्द्र तथा गोस्वामी तुलसीदास आदि अनेक महान विभूतियां इस
क्षेत्र से संबंध रखतें हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति पर ध्यान दिया जाये तो यह
क्षेत्र उत्तर में यमुना, दक्षिण मे विंध्य प्लेटो की
श्रेणियों, उत्तर में चम्बल और दक्षिण-पूर्व में
पन्ना-अजयगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है। इसे ही बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता
है। यह क्षेत्र भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के दक्षिण में 7 जनपद (2 संम्भाग) और मध्यप्रदेश के उत्तर में 13 जनपद (3 संभाग) सामिल है। इसका क्षेत्रफल लगभग
डेढ़ लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। वर्तमान समय में जनसंख्या लगभग तीन करोड़
से भी ज्यादा है। यहाँ की भूमि पठारी है और औसत वर्षा 60-100 सेमी के लगभग होती है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र को भारत में दलहन (अरहर, चना) व तिलहन (अलसी) उपज का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र
होने का गौरव प्राप्त है। इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां यमुना, वेतवा, केन, पहूँज, धसान, चम्बल, काली
सिन्ध, टौंस व सोन है जो कृषि के दृष्टिकोण से यहाँ के
क्षेत्रवासियों के लिए वरदान के रूप में मानी जाती हैं। यहाँ की प्रमुख वन
सम्पदाओं में सागौंन शीशम, चन्दल आम महुआ आदि है। सौर्य
और श्रृन्गार की धरती बुन्देलखण्ड की कला संस्कृति सबसे अनूठी है। यहाँ बोली जाने
वाली मधुर बोली बुन्देली है। भौगोलिक क्षेंत्रफल के अनुसार उत्तर के निचला स्तर
एवं उपजाऊ भूमि वाले भू-भाग की अधिकांश भूमि समतल मैदानी है जिसमें कहीं-कहीं, छोटी-छोटी पहाड़ियाँ फैली है। ललितपुर में मुख्य रूप से
राकड़ एवं पड़वा किस्म की मिट्टी पायी जाती है। झाँसी जनपद की मिट्टी मुख्यतः लाल व
काली का मिश्रण है। राकड़ मिट्टी कड़ी होने के कारण कम उपजाऊ है। पडु़वा मिट्टी
उपजाऊ तो है, परन्तु बिना खाद एवं सिचाईं के अधिक
प्रकार की फसलें नहीं उगाई जा सकती है। बेतवा नदी मौरंग का प्रचुर भण्डार है, जो भवन निर्माण सामाग्री का मुख्य अवयव है। चित्रकूट से उत्तरी एवं
पश्चिमी भाग में काकर, राकड़, पडुवा में दोमट मिट्टी पायी जाती है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था सर्वप्रथम वहाँ की कृषि
पर निर्भर होती है। कृषि को अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार बनाने के लिए सतत् जल
संसाधन का उपयोग करना अनिवार्य हो जाता है। यहाँ पर जल संसाधन का मुख्य आधार
बुन्देलखण्ड की नदियाँ है, जिसमें यमुना वेतवा, घसान, पहूँज जामनी, मन्दाकिनी, ओहन, गुन्ता, केन
वर्मा तथा चन्द्रावल है। उत्तर प्रदेश के राज्य के 12.21 प्रतिशत भूमि के बुन्देलखण्ड क्षेत्र 29417 वर्ग किमी में फैला हुआ है, जिसमें 17.29 लाख परिवार निवास करते है, जो उत्तर प्रदेश के
सापेक्ष मात्र 5.17 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश के
बुन्देलखण्ड की जनसंख्या घनत्व 2011 की जनगणना के
अनुसार 329 है जबकि
उत्तर प्रदेश का जनसंख्या घनत्व 829 है। यहाँ की
जनता का भरण - पोषण का साधन स्रोत खेत है। जिसमें पर्याप्त निवेश के अभाव मे खेती
पूरी तरह विविधतापूर्ण और वर्षा पर निर्भर है। जिसकी वजह से हमेशा नुकसान का खतरा
बना रहता है। इसके अतिरिक्त कभी सूखा तो कभी अल्पकालीन तेज बारिश की वजह से जलभराव
किसान की मुसीबत को बढ़ाते रहते हैं। बुन्देलखण्ड में जोतों का औसत आकार राज्य के सामान्य
औसत से अधिक है। सिचाई की दृष्टि से यहाँ खरीफ (मानसून) की फसल लेना आसान होता है
लेकिन क्षेत्र के ज्यादातर किसान, विशेषकर छोटे व सीमांत किसान
रबी मे अपनी फसल बोते हैं। ऐसा एक विपरीत मौसम की दृष्टि से किया जाता है। दूसरा
यह प्रवत्ति इस बात का भी संकेत है कि बड़े किसान भी अपने साधनों से खेतों की
सिचाईं करके जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं होते हैं। आजीविका का कोई विकल्प न
होने के कारण छोटे व सीमांत किसान विपरीत मौसम में फसल लगाने को बाध्य होते हैं।
जबकि असिंचित जोतों में उनका हिस्सा ज्यादा बड़ा है। इस प्रवृत्ति के कारण सीमांत
और छोटे किसान की स्थिति ज्यादा दयनीय होती जा रही है। इस भू-भाग की भूमि पर वर्षा का जल रुकता ही नही हैं।
जिस कारण बुंदेलखण्ड मे पानी का आभाव हमेशा बना रहता है। आठवी सदी के पूर्व
वेतवा-केन, नदियों‘ के
मध्य का दक्षिण-पूर्वी बुंदेलखण्ड मात्र चरवाही पशु पालन वाला ही क्षेत्र था, क्योकि इस क्षेत्र में पानी की कमी हमेशा बनी रही। न लोगों को पीने का
पानी था न जन निस्तार को । पानी केवल चार महीने वर्षाति चौमासे और चार माह के जड़कारे
(ठण्डी) के मौसमों मे नालो, नालियों एवं नदियों में, नदियों के भरकों, डवरो में प्राप्त होता था।
ग्रीष्म ऋतु मे पानी नदियों के डवरो, भरको मे जहाँ कही
ही मिलता था, क्योंकि इस क्षेत्र की नदियां पठारी, पहाडी़ व शुष्क हैं, जिनमे पानी पठारो से आता है और वेग से घरघराता, गर्जन करता, चट्टानो से टकराता हुआ क्षेत्र से
बाहर निकल जाता रहा है। पशुपालक चरवाहा समूह नालो-नदियों के तटवर्ती उन क्षेत्रो
में नदियों की पहाडो़, डवरो में पानी भरा मिलता था वही
टपरे, बाडे़ बनाकर स्थाई बस्तिया बसाकर ठहर जाते थे।
टौरियों, पहाड़ियों पर मवेसी चराते थे। जब डवरों का पानी समाप्त होने को होता तो
चरवाहे नीचे, ऊपर घुमंतू जीवन जीते हुए
जिंदगानी जिया करते थे। गाय, बैल, भैस, गधे, एंव बकरी
लिए हुए गडरिये घुमक्कडी जीवन बिताते हुए भी वे नदियों के किनारे की पहाड़ी समतल
पठारो में धान, उर्द, तिली, लठारा, कोदो, समाही, पसाई, तथा चना आदि की थोड़ी-थोड़ी खेती कर लेते
थे। जंगलो मे रहते हुए, वनोपज का संग्रहण भी कर लेते
थे। सातवीं-आठवीं सदी में चन्द्रव्रहम के वंशज चन्देल
राजाओं का उद्भव महोवा में हुआ, जिन्होने अपने दक्षिणी मध्य एंव
पूर्वी राज्य की पहाड़ी, पठारी जंगली पथरीली ढालू राकड
भूमि के विकास की योजना सुनिश्चित कर वरसाती धरातली जल नीची ढालू भूमि पर, पहाड़ो, टौरियो की पठारो में, खन्दको खन्दियों, दर्रों में पत्थर मिट्टी के
लम्बे, चौडे़ , ऊचें
सुदृढ बाँध बनाकर तालाबों में वरसाती धरातली चल जल ठहरा दिया जाता था। तालाबों में
धुमंतु धरातलीय चल जल ठहरा जों लोंगो का धुमंतु चरागाही चल जीवन भी पानी की आश्रय
से तालाबों के पास ठहर गया था। चन्देल राजाओं के पश्चातवर्ती
बुन्देला राजाओं ने भी जन हिताय जल प्रवधन का कार्य जारी रखा था। चन्देलों, वुन्देलों, गोड़ राजाओं, मराठों और अंग्रजों ने इस जल
अभावग्रस्त बुन्देलखण्ड क्षेत्र में हजारों की तदात में तालावों का निर्माण कराया
था। तालावों का जल जन-निस्तार के लिए एवं थोड़ी- थोड़ी कृषि सिचाई के लिए था।
स्वतंत्रोत्तर काल के पूर्व किसान और अन्य व्यवसायी एक
निश्चित मात्रा से अधिक पानी तालाबो से नही निकाल पाते थे। परंतु आजादी के बाद
पानी का खर्च बढ़ा है, और आमद घटी है। जिससे जल संकट बढ़
गया है। बुंदेलखंड मे जल संकट के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैः-
1.जंगलों का निरिंतर होता ह्रास - पेड़, बादल, पानी को खींच कर लाने वाले एंटीना होते है। जंगल है तो पानी बरसेगा कहावत
है- ‘‘भोजन,पानी और,बयार है, ये हैं जीवन के आधारा, ये हैं जंगलों और प्रकृति के उपहारा‘‘ जल और जंगल का चोली-दामन का साथ होता है।,पेडो जंगलो से जल भी बरसता है और ठंडी वायु भी मिलती है।
आखिरकार जल और वायु दोनो से मिलकर ही जलवायु या पर्यावरण बनता है। जब जंगल
नहीं होगें तो जल और वायु कैसे प्राप्त होगी ? 2.जल संसाधन का नष्ट होना- प्राचीन
चंदेली - बुंदेली परम्परागत जल प्रंबधन, संसाधन, तालाब, बावड़िया, कुये एवं चोपर, बेरे लगभग चार सौ से 1000 वर्ष तक पुराने हो चुके है। दीर्घ काल से चले आ रहे इन जल संसाधन मे गाद, कचरा, मिटटी, पत्तों
तथा पत्थरों का भराव हो गया है। जिन तालाबों के बांधो पर आज बस्तियाँ बसी है। प्राचीन काल में इन बस्तियो के लोग ही तालाबों को सुरक्षित किए रहते थे।
ये जल को शुद्ध बनाये रखते थे, तालाबो में गंदगी नही
फैलाते थे, घरों का कूड़ा कचरा तालाबों में नही डालते थे। आजादी के उपरांत जनता अपना नैतिक दायित्व भूल गई और
खुली छूट पाकर उनकी उपेक्षा करने लगी। जिससे तालाब छोटे होते जा रहै है। कुवें व
बावड़िया कचरों से भर दिये गये है। तालाब, कुएँ, बावड़ियों ग्राम वासियों के जीवन दाता ‘‘अमृत कुण्ड’’
हैं जिन्हें नागरिक ही नष्ट कर रहे हैं जब स्रोत नष्ट हो रहे हैं तो
जल संकट तो होगा ही। 3.सरोवरों की मरम्मत एवं दुरूश्ती
जरूरी- बुन्देलखण्ड में लगभग सभी तालाब
पुराने हैं। प्रचीन काल में तालाबों के बाँधों , जल
एवं भराव क्षेत्र की सुरक्षा दुरूश्ती एवं रख -रखाव का दायित्व जनता का ही होता
था। तालाबों के फीडिंग एरिया जल आवक क्षेत्र में कृषि
नहीं होने दी जाती थी। फिडिंग ऐरिया में पेड़-पौधे रखे जाते थे। बाद में फिडिंग
एरिया में खेती होने से जुते हुए खेतों की मिट्टी जल प्रवाह के संघ सिमट-सिमट कर
तालाबों के भण्डारों में जमा होती रहकर उन्हें भरती हुई, उथला बना देती है। उनकी गहराई कम हो जाती है जिससे तालाबों में जल का
संग्रह कम हो जाता है। तालाबों की जल भराव की क्षमता कम हो जाने से पानी जल्दी सूख
जाता है और ग्रीष्म ऋतु आते-आते यहाँ जल संकट आने लगता है। बुन्देलखण्ड मे भूमि के अन्दर ग्रेनाइट चट्टाने चादर
की तरह अथवा आड़ी तिरछी, खड़ी-विछी पड़ी हुई है। जिनमें
भूगर्मी जल स्रोत होते ही नहीं है। जिस कारण यहाँ के व्यक्ति बरसाती संग्रहित
धरातलीय जल पर ही निर्भर रहते रहे है। फिर चाहे वह तालाबों में संग्रहित किया हुआ
जल हो अथवा कुओं, बावड़ियों में झिरने, रिसने वाला जल हो। इस प्रकार यदि प्राप्त संग्रहित जल बर्बाद न हो तो 1 वर्ष तक का काम चल जाता है। 4.लोग प्रजातंत्र की भावना का अर्थ
समझे ही नही - लोग प्रजातंत्रीय स्वतंत्रता का
एवं प्रजातन्त्र के प्रति नागरिकों के करतव्यों को मानो जानते ही नहीं है। वे नहीं
समझते कि अपने दायित्वों, कर्तव्य पालन, निर्वहन द्वारा ही स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त किया जाता है।
निष्ठापूर्वक दायित्वों, कर्तव्यों के सम्पादन के मार्ग
से ही अधिकार निकलते हैं। राजतन्त्र में अधिकार राजा को है प्रजा के खातें में तो
केवल कर्तव्य ही कर्तव्य हुआ करते थे। प्रजातंत्र में सभी अधिकार जन्ता को है। वो
दायित्यों एवं कर्तव्यों के निर्वहन का भार भी उसी पर है। प्रजा राजा भी है।
अधिकार उसे ही है तो दायित्वों, कर्तव्यों की देख-रेख सुरक्षा के कर्तव्य भी उसे ही निभाने है। वह स्वामी
है तो सेवकाई का कर्तव्य भी उसे करना है। सुरक्षा कार्य संम्पादन का दाम उसे
मिलेगा। लेकिन जैसे ही 1947 में
स्वतंत्रता का स्वाद मिला और 1950 में लोगो को
संवैधानिक अधिकार मिले राजा जैसे हक पाकर नागरिक कर्तव्य एवं दायित्व से विमुख हो
गये। वे राजा की तरह राज्य सरकार पर आश्रित हो गये कि उनके सुख-साधन के रोटी-रोजी, पानी की सभी व्यवस्थाएँ राज्य सरकार करे यह बदला हुआ नजरिया जनता को गरीबी
एवं भिखारी पन ही देगा। लोगों का अपना विकास के संसाधनों को नष्ट होने से बचाए
रखने के लिए सजगता दिखानी होगी। जल जन-जीवन का प्राण है प्राण नहीं तो व्यक्ति
नहीं इस लिए प्रत्येक हालत में तालाबों की सुरक्षा एवं जल प्रबंधन के लिए हर
नागरिक को पंचायत स्तर पर जागरूक होना अपरिहार्य है। वर्ष 2008 में
पेश की गयी जे0 एम0 सामरा
(योजना आयोग के तत्कालीन सचिव) समिति की रिपोर्ट के आधार पर कृषि सुधार हेतु पैकेज
लाया गया इसमे यह भी कहा गया था कि ‘‘क्षेत्र में अर्द्ध-शुष्क
जलवायु की स्थिति के कारण कम वर्षा सतही जल उपलब्धता को प्रभावित करती है। और कठोर
चट्टानी भू-भाग भू-जल उपलब्धता को सीमित करता है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र को 18वी और 19वी शताब्दी के दौरान प्रत्येक 16 वर्ष मे बार-बार सूखे का सामना करना पड़ता था जो 1968 से 1992 की अवधि के दौरान तीन गुना बढ़ गया
है। बुन्देलखण्ड पैकेज के अन्तर्गत 7266 करोड़ रू0 आवंटित किये गये। इस पैकेज का उद्देश्य सिचाई, पेय
जल, कृषि, पशुपालन समेत
विभिन्न क्षेत्रो में सुधार कर पूरे इलाकों का विकास करना था। परन्तु ऐसा हो न सका क्योंकि
पैकेज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बुंदेलखण्ड मे कृषि दिन व दिन किसी न किसी कारण
से पीछे होती चली गयी। भारत सरकार एवं राज्य सरकार के प्रयास विफल होते जा रहे है।
इसका नकारात्मक प्रभाव बुंदेलखण्ड के लोगों पर पड़ रहा है। यह क्षेत्र हमेशा से जल
की कमी और सूखे की समस्या के कारण चर्चा में बना रहता है। कृषि के लिए सतत् जल संसाधन के अभाव में यहां की
भौगोलिक संरचना, भूमि का क्षरण, जलवायु का परिवर्तन और औसत वर्षा की कमी यहां की मुख्य कारणो में रही है।
इस समस्या के निवारण के लिए भारत सरकार एवं राज्य सरकार ने बुंदेलखण्ड सहित प्रदेश
के अन्य जिलो मे पेय जल समस्या के समाधान के लिए महाराष्ट्र की ’सुजलाम-सुफलाम’ योजना को लागू करने की घोषणा की।
वर्तमान मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने पायलेट प्रोजक्ट बनाकर सुजलाम-सुफलाम
योजना महोबा एवं हमीरपुर जिलो में शुरू करने का निर्देश जारी किया।
केन्द्र सरकार ने मानसून पर खेती की निर्भरता कम करने
और हर खेत तक पानी पहुँचाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को एक जुलाई 2015 लागू की। इस योजना के तहत अगले पांच वर्षो के
लिए 50 हजार करोड़ रूपये का बजट आवंटित किया गया।
साथ ही साथ सरकार सामुदायिक तालाब निर्माण के लिए 25 लाख रूपये की अनुदान राशि किसानो को उपलब्ध करा रही है। जिसमे फव्वारा, ड्रिप विधि का इस्तेमाल छोटे एवं लघु किसानो की आर्थिक मदद की दृष्टि से
प्रदान कर रही है। |
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निष्कर्ष |
बुन्देलखण्ड क्षेत्र कभी सम्पन्नता की दृष्टिकोण से बहुत आगे था, जहां पर महान चन्देल शासक विद्याघर चन्देल, आल्हा उदल, महाराजा छत्रसाल, राजा भोज, ईसुरी, कवि पद्यमाकर, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अपना शासन किया। आज किसान जल के संसाधनों की मार झेल रहा है। किसान के लिए धरती मां है, और अपनी मां से किसान अटूट रिश्ता रखता है, वह अपनी धरती मां से सर्वाधिक लगाव रखता वही उसका सब कुछ है। किसान के लिए पानी भी उतना ही आवश्यक है जितना जीवन जीने के लिए आक्सीजन। जल कृषि के लिए एक बहुमूल्य संसाधन है, जल प्रकृति का सबसे अमूल्य उपहार है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि भौगोलिक संरचना, भूमि का क्षरण, जलवायु का परिवर्तन, अवैध खनन, हरीतिमा का ह्रास और औसत से कम वर्षा बुंदेलखण्ड के लिए अभिशाप बन गया है। जिसके अभाव में कृषि को सुदृढ़ नही बनाया जा सकता है। कृषि के सतत जल संसाधनो का सही मात्रा में उपलब्ध होना, सही उसका उपयोग होना अति आवश्यक है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. http://planning.up.nic.in/Go/Seminar_Area_Planning/2%20Bundelkhand%20Booklet.pdf
2. https://www.actionaidindia.org/wp-content/uploads/2018/06/Bundelkhand-Booklet.pdf
3. https://hindi.indiawaterportal.org/content/jala-sansaadhana-paraicaya/content-type-page/234
4. https://www.scotbuzz.org/2019/05/jal-sansadhan-kya-hai.html
5.https://m-hindi.indiawaterportal.org/content/baunadaelakhanada-kae-ghaonghae-payaasae-kayaon/content-type-page/53647
6. Mishra.anupam, aaj bhi khare hain talab, prabht prakashan, hindi sanskarn 19 oct.2016 |