ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IX December  - 2022
Anthology The Research
किशामा : नागालैंड का हेरिटेज विलेज
Kishma: The Heritage Village of Nagaland
Paper Id :  16845   Submission Date :  19/12/2022   Acceptance Date :  23/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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देवी शंकर सुमन
शोधार्थी
कॉलेज शिक्षा
राजकीय कला महाविद्यालय
कोटा,राजस्थान, भारत
सविता वर्मा
सह-आचार्य
कॉलेज शिक्षा
राजकीय कला महाविद्यालय
कोटा, राजस्थान, भारत
सारांश 21 वी सदीं में कई जनजातियाँ है जो आज भी जंगलों में निवास करती है जिनमें भारत में उत्तर पूर्व में स्थित नागा जनजाति प्रमुख है। नागा जनजातिय कला एक व्यावहारिक या उद्देश्यात्मक कला से सम्बन्धित है क्योंकि नागा जनजाति की कला जीवन यापन के उद्देश्यों को लेकर की गई कला है जिसमें महिलाओं की भूमिका अग्रणी है नागा जनजाति की कई उप-जनजातियाँ है जैसे अंगामी, आओं, चकेसांग, चांग, कछारी, खिमनुनग्नन, कोन्याक, कूकी, लोथा, पोम, पोचुरी, रेेगमा, संथम, सुमी, यंगचंगूर, जीलियांग इत्यादि। नागा जनजातियों में रीतिरिवाज, मोरग (धर), शिकार तकनीक, अस्त्र-शस्त्र, वाद्ययंत्र, संगीत, शारीरिक चिन्हों, मुकुट, आभूषण, वेशभूषा, बोली आदि में विभिन्नताऐं देखने को मिलती है नागा जनजाति अपनी जीवन शैली में हर प्रकार से कला को धारण कर रही है हर उप-जनजाति की अपनी अपनी कला है और यह जनजातियाँ कला के माध्यम से एक दूसरे को विभाजित करती है अर्थात् कला इनकी जीवन शैली का अभिन्न अंग है। मनुष्य सदैव ज्ञात से अज्ञात की ओर गति करता है। ब्रह्मांड में कई ऐसे रहस्य हैं जो अज्ञात हैं। अज्ञात को जानना मनुष्य का मुख्य लक्ष्य है। मनुष्य उत्पत्ति से लेकर वर्तमान तक अज्ञात को जानने का प्रयास कर रहा है। यह शोध पत्र का मुख्य लक्ष्य है, कला हमेशा नवीनता को गले लगाती है, ठोस से अमूर्त की ओर बढ़ती है, पारंपरिक तकनीकों से आधुनिकता की ओर बढ़ती है, बस उन्हें जानने और जागरूक करने की आवश्यकता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the 21st century, there are many tribes that still live in the forests, in which the Naga tribe located in the North East in India is the main one. Naga tribal art is related to a practical or objective art because the art of Naga tribe is an art done for the purposes of living, in which the role of women is leading. There are many sub-tribes of Naga tribe like Angami, Aoan, Chakesang, Chang, Kachari , Khimnungnan, Konyak, Kuki, Lotha, Pom, Pochuri, Reegma, Santham, Sumi, Yangchangur, Jiliang etc. Variations are seen in Naga tribes in customs, morag (dhar), hunting techniques, weapons, musical instruments, music, body symbols, crowns, ornaments, costumes, dialect etc. Naga tribes adopt art in every way in their lifestyle. Every sub-tribe has its own art and these tribes divide each other through art, that is, art is an integral part of their lifestyle.
Man always moves from the known to the unknown. There are many mysteries in the universe that are unknown. To know the unknown is the main goal of man. Man has been trying to know the unknown from the origin till the present. This is my main goal, art always embraces innovation, moves from concrete to abstract, moves from traditional techniques to modernity, just needs to know and be aware of them.
मुख्य शब्द प्रागैतिहासिक, उद्देश्यात्मक, अधोवस्त्र ,वाद्ययंत्र, हानर्बिल, उत्किर्ण, ब्रह्मांड, कुश्ती, तींरदाजी, अलंकरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Prehistoric, Motifs, Lingerie, Musical Instruments, Hornbills, Engravings, Cosmos, Wrestling, Archery, Ornamentation.
प्रस्तावना
मानव का सम्बन्ध प्रागैतिहासिक कालीन आदिमानव से ही माना जाता है जो जनजातियाँ जंगलों में निवास करती थी हम भी उन्ही के वंशज है। समयानुसार विकास के साथ आदिमानव कबीलों में कबीलों से बस्ती में, बस्ती से गांव में, गांव से कस्बों में, कस्बों से शहरों में, शहरों से नगरों में, नगरों से महानगरों में रहने लगा। परन्तु 21 वी सदीं में भी कई जनजातियाँ है जो आज भी जंगलों में निवास करती है जिनमें भारत में उत्तर पूर्व में स्थित नागा जनजाति प्रमुख है। नागा जनजाति का जीवन भी कला पर ही आधारित है इस जनजाति में कला का स्वरूप हर जगह देखा जा सकता है। नागा जनजातियाँ कला एक व्यावहारिक या उद्देश्यात्मक कला से सम्बन्धित है क्योंकि नागा जनजाति की कला जीवन यापन के उद्देश्यों को लेकर की गई कला है जिसमें महिलाओं की भूमिका अग्रणी है।
अध्ययन का उद्देश्य नागा जनजातीय कला प्रकृति और मानवीय सम्बन्धों का गहराई से अवलोकन करने का माध्यम है इनकी काष्ठ कला अनोखी, ऊर्जा प्रदान करने वाली आश्चर्यचकित करने वाली है दुर्भाग्य से इन लोगों की कला के बारे मे बहुत कम लोगों को जानकारी है। भारत देश में ऐसी कई कलाएँ हैं जिनकी ओर कला मर्मज्ञों का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ है जो क्षेत्रिय आधार पर पनपी और लुप्त हो गयी। भारत देश की इन अनछुई जनजातीय क्षेत्रिय कलाओं की जानकारी प्रदान करना, नवीन ज्ञान की प्राप्ति, ज्ञान भण्डार में वृद्धि करने के साथ साथ नागा क्षेत्रिय कला को विश्व के सामने रखना उद्देश्य है।
साहित्यावलोकन

नागा जनजाति के संस्कृति, कला इतिहास को जानने का प्रमुख स्रोतों किशामा हेरिटेज विलेज है। सभी नागा जनजातीय प्राचीन कला-कौशल स्वयं में समेटे हुए है। यहां एक स्थान पर ही सम्पूर्ण नागा जनजाति के बारे में जाना जा सकता है इसलिए विलेज का बारीकी से निरीक्षण कर, विभिन्न पुस्तकों, विभिन्न विभागों, समाचार पत्रों, बातचीत के माध्यम से नागा संस्कृति कला इतिहास का अध्ययन किया।

मुख्य पाठ

भारत की अमूल्य धरोवर के रूप में स्थित किशामा गांव भारत के पूर्वोत्तर हिमालय की घाटियों में नागालैण्ड राज्य के सबसे बड़े शहर डिमापुर से 85 किमी. दूरकोहिमा शहर से 15 किमी. दूर सुन्दर घाटियों के बीच पहाड़ी पर स्थित है। वर्तमान में किशामा गाव को हेरिटेज विलेज धोषित किया जा चुका है।

किशामा गांव ही नागा जनजाति के सभी पहलुओं से रूबरू करवाने के उद्देश्य से स्थानीय सरकार के प्रयासों से और भारत सरकार के सहयोग से किशामा हेरिटेज विलेज का निर्माण किया गया है। किशामा हेरिटेज विलेज नागालैण्ड में स्थित नागा जनजाति की सभी उप-जनजातियों को प्रदर्शित करने के लिए नागा जीवन से सम्बन्धित सभी पहलुओं को वास्तविक रूप से निर्मित किया गया है जहाँ सभी नागा जनजातियाँ अपने जीवन के सभी पहलुओं को जीती है, और जीवन के सभी भागों को लोगों के सामने प्रदर्शित करती है।

अतः नागा जनजातियों के सभी पहलुओं से एक साथ अवगत होने के लिए किशामा हैरिटेज विलेज प्रमुख जगह है, जहाँ नागा जनजातियों के सम्पूर्ण परिधानों रीतिरिवाजों, संस्कृति, जीवन शैली व सभी कला शैली को निकट से देख उनके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान समय में किसामा गांव सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र है जिसका प्रमुख कारण यहाँ आयोजित होने वाला विश्व प्रसिद्ध हानर्बिल उत्सव है। जिसमें देश विदेश के सभी कला प्रेमी आते है। जिसे नागालैण्ड की विरासत को संरक्षित करने के लिए आयोजित किया जाता है यह त्योहार दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है। पूर्व में यह दिसम्बर के पहले सात दिनों के लिए मनाया जाता थालेकिन उसकी लोकप्रियता के कारण अब इसे 10 दिनों तक मनाया जाता है। नागा कुश्ती, तींरदाजी, सौन्दर्य प्रतियोगिता, नागा राजा मिर्च खाने की प्रतियोगिता, संगीत समारोह जैसे विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जाती है जिसमें स्थानीय लोग अपने शिल्प को प्रदर्शित करते है और लकड़ी की नक्काशी, भोजन, हर्बल दवाएं बेचते है।

नागालैण्ड राज्य में नागा जनजातियाँ- अंगामी, आओं, चकेसांग, चांग, कछारी, खिमनुनग्नन, कोन्याक, कूकी, लोथा, पोम, पोचुरी, रेेगमा, संथम, सुमी, यंगचंगूर, जीलियांग। जनजातीयों में रीतिरिवाज, मोरग (धर), शिकार तकनीक, अस्त्र-शस्त्र, वाद्ययंत्र, संगीत, शारीरिक चिन्हों, मुकुट, आभूषण, वेशभूषा, बोली आदि में विभिन्नताऐं देखने को मिलती है अर्थात कहा जायें की नागा जनजाति की सभी उप जनजातियाँ अपनी विशेषताऐं लिए हुए है। जिन्हे देखकर पता किया जा सकता है कि कौन किस जनजाति से सम्बन्ध रखता है।

सभी उप-जनजातियों के मोरंग काष्ठ निर्मित स्वंय की जनजातीय विशेषताएँ लिए हुए अलग-अलग आकार व डिजाईन में बने है मौरंग का आकार गिरजाघर जैसा दिखाई देता है। बाहरी व आन्तरिक काष्ठ कला प्रतीक रूपों में अपनी जनजातीय विशेषताओं को प्रदर्शित करने के उद्देश्य को लेकर तैयार किये जाते है जिनमें विभिन्न पशु, पक्षियों, जानवरों, चाँद सितारों, उच्च नागा परिवार को काष्ठ कला द्वारा स्तम्भों पर उत्कीर्ण किया गया है। बरामदों को सजाने के लिए विभिन्न प्रकार के पशुओं और जानवरों के कंकालों का प्रयोग गया है। आन्तरिक रूप से घर सभी सुख-सुविधाओं के साथ बनायें जाते थे इसका प्रमाण घरों में धुआ निकालने के लिए बनाई गई चिमनी से लगाया जा सकता है।

किशामा हेरिटेज विलेज की नागा मोरंग साधारणतः घास व बाँस की लकडी से बनाएँ गए है, घास व लकड़ी के बनें इन भवनों को जिस तकनीक या कला से बनाया गया है वह आकर्षित करने वाली है। इनकी झोपडियाँ देखने में भले ही प्राचीनकालीन प्रतीत हो परन्तु वर्तमान युग की प्रत्येक कला को समेटे हुए है। जैसे-झोपड़ी के अंदर अलग से ही खाना बनाने की जगह, धुआँ निकालने के लिए रोशनदान, घर को गर्म रखने के लिए सिंगडी, दैनिक सामानों को रखने के लिए तिपाई स्टैण्ड, सोने के लिए ऊँची चारपाई।

यह लोग भवनों को सजाने के लिए जानवरों के मुहँ, खोंपडियाँ, जानवर के आकार का पेड़ के तने को खोखला करके बनाया गया वाद्य यंत्र जिसका प्रयोग यह लोग भवनों को सजाने के साथ-साथ आवाज करने के लिए भी करते थे। छत का भार रोकने के लिए बनाये गए काष्ठ स्तम्भों पर रिलीफ आकृति में जानवरों, महिला रूप में देवी, और ड्रेगन आकार के शिल्प बने है। स्तम्भों व दरवाजों पर फूल-पत्तियों की रिलिफ आकृतियाँ बनाई गई है। पेडों की छालों को भी भवनों की सजावट के रूप में प्रयोग किया गया है। भवनों के बाहर जानवरों के सींग वाले मुखों के द्वारा व काष्ठ के मुखोटे बनाकर मोरंग अलंकरण हेतु प्रयोग में लिया गया है।

सभी उप-जनजातियों के अलग-अलग प्रतीक चिह्न होते है जिन्हे यह लोग अपने शरीर पर रंगकर या गोदकर बनाते है। जिन्हें हम साधारण भाषा में टैटू भी कहते है। सभी उप-जनजातियों के अलग-अलग मुकुट होते है जो विशेष प्रकार से जानवरों की हड्डियों, बालों, व नाखूनों से सजे हुए बने होते है 

वेशभूषा में यह ऊनी बालों वाले कपडों का प्रयोग करते है जो विशेषतः जानवरों के बालों के बने होते है यह अधोवस्त्र के रूप में लंगोट व ऊपर ऊनी कपड़े पहनते है। इनके वस्त्र अपनी जाति अनुसार विशेष प्रकार से अलंकृत किए हुए रहते है। कमर पर दोनों तरफ पट्टियाँ लगाएँ हुए रखते है। इनकी कलाईयों पर जानवरों की हड्डियों व काष्ठ से बने बाजूबंद हाते है।

हर उप-जनजाति का अपना पहनावा होता है, सभी के आभूषण भिन्न-भिन्न प्रकार के होते है। यह लोग उप-जनजातियों के आधार पर अलग अलग प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करते है। यह सब उप-जनजातियाँ नागा ही है, परन्तु यह सभी एक दूसरे से भिन्न-भिन्न दिखने के लिये व्यापक स्तर पर कला का सहारा लेते है, फिर वो भले ही भवनों की भिन्नता दिखानें के लिए हो या स्वंय की । इन उप-जनजातियों के पास कला ही है जो इन्हें एक दूसरे से भिन्न दिखने में सहायता प्रदान कर रही है।     

यह जनजातियाँ अपनी उप-जनजाति के अनुसार मुकुट भी धारण करती है जिसमें अपनी-अपनी पहचान को दर्शाने के लिए उपजाति के अनुसार पक्षियों के पंखों व जानवरों के बालों, सींगों और नाखूनों को मुकुट पर धारण करती है। श्रृंगार के रूप में पुरूष व स्त्रियाँ दोनों मालाओं का प्रयोग करते है, जो जानवरों की हड्डियों, नाखूनों, सीप, शंखों या मोतियों की बनी होती है। इनके भाले लोहे के बने हुए और जानवरों के बालों से डिजाईन किए हुए होते है।

नागालैंड का बाँस का काम दुनिया भर में लोकप्रिय हैं। नागालैंड बाँस कार्य क्षेत्र की परंपरा और संस्कृति का एक अविभाज्य हिस्सा है। नागालैंड के कला और शिल्प आदिवासी कारीगरों के कौशल, विशेषज्ञता, प्रतिभा और रचनात्मकता की पहचान है।




निष्कर्ष नागा जनजाति के भारत में आगमन के साथ-साथ विभिन्न कलाऐं भारत में आयी प्राप्त प्राचीन प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि नागा जनजाति सभी प्रकार की कलाओं की ज्ञाता थी इनकी कला इतिहास इनके विकसित अवस्था का परिचायक है नागा मानव के भारत में अविभाव प्रकृति के मध्य देखा जाता है अतः नागाओं ने अपने कला कौशल से प्रकृति प्रद्वत वस्तुओं को उपयोगी बना अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं के साथ भोग की आवश्यकताओं की पूर्ति की। सामान्यतः भारत के आदिमानव द्वारा पत्थर से आग का आविष्कार किया पढा ओर सुना जाता है जबकि नागा जनजाति द्वारा लकड़ी के घर्षण से आग के अविष्कार के प्रमाण मिलते हैं। नागा जीवन व कला प्रकृति पदत्त है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1.The art and craft of Nagaland, Naga institute of culture 2 www.tourismnagaland.com 3. A Naga Story, Heritage Publishing house Dimapur Nagaland – Edward Lotha 4.The Nagas, Hill peoples of Northeast India, Society, Culture nad the Colonial Encounter – 5. Naga Art, OX ford And IBH Publishing Co.pvt Ltd. New Delhi .Bombay . Calcutta -> Milada Ganguli 6. The hidden world of NAGA Living Traditions in Northeast India and Burma, Prestel/Timeless Book New Delhi - Aglaja strin & Peter Van Ham