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वैश्वीकरण का प्रभाव और हिंदी | |||||||
Impact of Globalization and Hindi | |||||||
Paper Id :
16917 Submission Date :
02/01/2023 Acceptance Date :
05/03/2023 Publication Date :
15/03/2023
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सारांश | हिंदी भाषा आज पूरे विश्व में तेजी से बढ़ती जा रही है। विश्व में दूसरे- तीसरे नंबर पर बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का स्थान है। वैश्वीकरण के कारण पूरा विश्व एक ग्लोबल गांव के रूप में बदलता जा रहा है। संचार के साधनों मोबाइल, इंटरनेट, दूरदर्शन आदि ने विश्व के देशों की दूरियों को पाट दिया है। आज विज्ञापन का युग है। प्रत्येक देश अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए अधिक जनसंख्या वाले देश की भाषा को सीखने पर बल देता है यही कारण है कि हिंदी विश्व के अधिकांश विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। नेपाल, मारीशस, सूरीनाम, फिजी, अरब, पाकिस्तान आदि देशों में हिंदी को अधिकांश लोग जानते हैं। वैश्वीकरण के कारण आज विज्ञापनों में हिंदी का विकृत रूप या अंग्रेजी मिश्रित हिंदी रूप (हिंग्लिश) सामने आ रहा है। जैसे-’ वाशिंग पाउडर निरमा' 'हीरो हौंडा धक धक गो' 'ठंडा मतलब कोका कोला' 'मेरा मन मांगे वंस मोर'आदि का प्रयोग भाषा में बढ़ता जा रहा है जिससे भविष्य में हिंदी के सामने संकट के बादल मंडराते नजर आने लगे हैं। | ||||||
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Hindi language is increasing rapidly all over the world today. Hindi has a place in the second-third number of spoken languages in the world. Due to globalization, the whole world is turning into a global village. The means of communication, mobile, internet, Doordarshan etc. have bridged the distance between the countries of the world. Today is the era of advertising. Every country emphasizes on learning the language of the country with more population to increase its business, that is why Hindi is being taught in most of the universities of the world. Hindi in countries like Nepal, Mauritius, Suriname, Fiji, Arabia, Pakistan etc. is known to most of the people. Due to globalization today, distorted form of Hindi or English mixed form of Hindi (Hinglish) is coming in advertisements. Like- 'Washing Powder Nirma' 'Hero Honda Dhak Dhak Go' 'Thanda Matlab Coca Cola' 'Mera Man Maange Vans More' The use of etc. is increasing in the language due to which clouds of trouble are seen hovering in front of Hindi in future. | ||||||
मुख्य शब्द | भूमंडलीकरण, इंटरनेट, कंप्यूटर, हिंग्लिश, बाजारवाद, हिब्रू। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Globalization, Internet, Computer, Hinglish, Marketism, Hebrew. | ||||||
प्रस्तावना |
भूमंडलीकरण, वैश्वीकरण, ग्लोबलाइजेशन, शब्द का प्रयोग आज आम बात है। विद्वानों का मानना है कि भूमंडलीकरण, ग्लोबलाइजेशन शब्द 1968 में मैल्यूहान और 1983 में लैविट ने इस्तेमाल किया था। 'वैश्वीकरण' का सामान्य अर्थ यह ग्रहण किया जाता है कि लोग अपने संकीर्ण स्वार्थों से ऊपर उठकर संसार के कल्याण के लिए एकजुट हो जाए। लेकिन व्यवहार में वैश्वीकरण का निहितार्थ 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की धारणा के विपरीत पूंजीवादी राष्ट्रों के हितों का पोषण हैं।[1] वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विश्व के बाजारों के मध्य अर्थव्यवस्था में खुलापन, परस्पर जुड़ाव और निर्भरता का विस्तार हो। अपना व्यापार बढ़ाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां सारी दुनिया को एक करना चाहती है। प्रमुख अर्थशास्त्री नयन काबरा अपनी पुस्तक- 'भूमंडलीकरण का अभिशाप' में लिखते हैं कि-"भूमंडलीकरण की स्थिति और प्रक्रिया दोनों ही असमानता पूर्ण है।"[2] भूमंडलीकरण इतना आम प्रचलित शब्द हो गया है कि उसके अर्थ, फल, प्रक्रिया के बारे में सवाल उठाना निरर्थक लगने लगा है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | इस अध्ययन के माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि वैश्वीकरण ने भाषा को कितना प्रभावित किया है। अब इंग्लिश माध्यम वाले स्कूल तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, इसकी कितनी सार्थकता है ? दूसरा -विज्ञापनों ने भाषा का स्वरूप कितना विकृत कर दिया है? इसका पता लगाया जाएगा। तीसरा- कंप्यूटर में इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन पत्र, परीक्षा, काउंसलिंग आदि ने भाषा के स्वरूप को कितना कुंठित कर दिया है ?इससे अभिव्यक्ति की क्षमता कितनी क्षीण हो रही है ? इसका अध्ययन करना। चतुर्थ- बाजार में आम बोलचाल में अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। भविष्य में हिंदी के ऊपर मंडराते संकट के बादलों के बारे में चिंतन मनन करना। | ||||||
मुख्य पाठ | वैश्वीकरण के कारण आज प्रत्येक देश अपना व्यापार
बढ़ाने के लिए नाना प्रकार के उपाय करता है। ब्रिटेन ने उन्मुक्त व्यापार के लिए
उदारीकरण को महत्व दिया। भारत के कपड़ा उद्योग को
नष्ट करने के लिए अंग्रेजों ने यहाँ के जुलाहो के अँगूठे तक कटवा दिए थे।
पूंजीवादी धारणा के अनुसार प्रत्येक देश विश्व में अपना वर्चस्व बढा़ने के लिए
प्रयत्नशील हैं। ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, चीन इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
अमेरिका विश्व शक्ति के रूप में अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है। यूरोप एवं जापान को
सहायता देने के लिए विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई।
संयुक्त राष्ट्र संघ में भी अमेरिका का प्रभुत्व है।बहुराष्ट्रीय कंपनियों का
विस्तार हो रहा है। इंटरनेट के प्रयोग के कारण संसार के लोग आपस में जुड़ रहे हैं। संसार एक वैश्विक गांव (ग्लोबल विलेज) बनता जा रहा है। वैश्वीकरण का प्रभाव उच्च
शिक्षा पर भी पड़ा है। विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में आना अपरिहार्य है। अब
वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए प्रयत्नशील रहना अनिवार्य है। भारतीय
फिल्में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हो गई है। अब हमें अच्छे साहित्य का अध्ययन करने के
लिए विदेशी भाषा भी सीखना आवश्यक हो गया है। टी.वी., सिनेमा
आदि ने विज्ञापन के माध्यम से भाषा को प्रभावित किया है। बरसात के लिए 'झमाझम' शब्द का प्रयोग मीडिया की ही देन है।
भाषा ही बाजार को संपूर्ण अभिव्यक्ति देती है। मुगलों के समय मीना बाजार में उर्दू
को बढ़ावा मिला था। आज बाजार में हिंदी अंग्रेजी मिश्रित भाषा हिंग्लिश बढ़ती जा रही है। जैसे -'ठंडा यानी कोका कोला' 'मेरा मन मांगे वंस मोर' जैसी अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी का प्रयोग बढ़ रहा है। लार्ड मैकाले ने सस्ते बाबू तैयार करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को भारत में लागू किया था। आज भारत में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आ रही है। इन स्कूलों में पढ़ाना प्रतिष्ठा का प्रश्न माना जाता है। उच्च वर्ग के लोग भी अंग्रेजी को महत्व देने लगे हैं। विश्वविद्यालयों/ प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न पत्रों में कोई अस्पष्टता आती है तो अंग्रेजी अंश को उपयुक्त माना जाता है। पढ़ा-लिखा समाज अंग्रेजी की गिरफ्त में इस कदर आ गया है कि अपने ही नाम को अशुद्ध लिखने बोलने की उसे सुध नहीं रही। वह योगा करता है, रामा के घर जाता है, अशोका होटल में ठहरता है। इस पक्के बोध के साथ कि वे ही नामरूप सही है।[3] मां-बेटे के संवादों में होमवर्क, लर्न करना आदि शब्द आसानी से देख सकते हैं। अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग से हिंदी भाषा पर कुठाराघात हो रहा है। चिंता और चिंतन का विषय यह भी है कि शनै:-शनै: हिंदी भाषा का रोमनीकरण होता जा रहा है। मोबाइल संदेश एवं विज्ञापनों में रोमन लिपि लिखने का घातक प्रचलन बढ़ रहा है। हिंग्लिश का बोलबाला हो गया है जो भविष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है। यह हिंदी को अंग्रेजी के रंग में रंगने का एवं उसके स्वरूप बिगाड़ने का सोचा समझा षड्यंत्र है।[4] भूमंडलीकरण ने हिंदी साहित्य को भी एक व्यवसाय का रूप दे दिया है। आज सरस्वती, विशाल भारत, मासिक विश्वामित्र, अग्रदूत, दिनमान, धर्म युग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सारिका जैसी पत्रिकाएं अचानक यों ही बंद नहीं हो गई। यह संस्कृति को सभ्यता में समेटने का पहला चरण था।[5] आज कंप्यूटर व इंटरनेट के युग में समय व रुचि के अभाव में अच्छे पाठकों की संख्या घट रही है। राष्ट्रभाषा या राजभाषा की दुर्गति देश के लिए घातक है। वैश्वीकरण के कारण बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हर जगह
अपना कारोबार स्थापित कर रही है । राजनेता व सरकार इन्हें कारखाने लगाने के लिए
अच्छी से अच्छी सुविधाएं उपलब्ध करवा रहे हैं। क्रेडिट कार्ड कल्चर बहुराष्ट्रीय
कंपनियां से उधार सामान खरीदने को प्रोत्साहित कर रही है। दलाल एन.जी.ओ. के माध्यम
से काम कर रहे हैं। विष्णु नागर ने अपने संकलन में लिखा है- यह दलालों का स्वर्णयुग है, दलालों को दलाल न कहा जाए दलालों को दलाल न समझा जाए इसीलिए एन.जी.ओ.
गठित किए जा रहे हैं।[6] आज वैश्वीकरण के युग में महिला, लड़की चन्द पैसों के लिए विज्ञापन देने को मजबूर हैं।
हिंदी संस्कारों की भाषा है किन्तु पाश्चात्य चकाचौंध के कारण आज हम अपनी मातृभाषा
से अपने बच्चों को दूर कर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाने को मजबूर हैं।
भारतेन्दु ने कहा था निज भाषा से ही उन्नति हो सकती है।आज पाठकों को प्रभावित करने
के लिए तुकांत पदावली का भी विज्ञापनों में प्रयोग किया जा रहा है। जैसे गेहूं के
ज्वारे, सारे लोग हारे।[7] संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि को मनचाहे स्थान पर रखने
का प्रचलन हो गया है। सर्वप्रथम संज्ञा व सर्वनाम को लिखा जाना चाहिए तत्पश्चात क्रिया को किंतु पत्र-पत्रिकाओं ने इसके विपरीत
लिखना प्रारंभ कर दिया है। जैसे- "स्वर्ण से चूके भारतीय निशानेबाज"[8] रिश्वत लेकर भागा ए.एस.आई."[9] कब तक खैर
मनायेंगे येदियुरप्पा"[10] हिंदी में छपने वाली
पत्रिकाएं अंग्रेजी नामों से बिक रही है। जैसे-
आउटलुक, हेल्थ, कैपिटल
मार्केट, इंडिया टुडे आदि। ऐसा लगता है हिंदी भाषा
अंग्रेजी भाषा के बोझ तले
दबती जा रही है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने सच ही कहा है कि अपनी भाषा और अपनी
श्रेष्ठता का ज्ञान यथार्थ मनुष्यत्व है।[11] जब हमारी भाषा बचेगी तभी हमारी गौरवशाली संस्कृति जीवित रह पाएगी। बाजारवाद और हिंदी- बाजार को लाभ की स्थिति में पहुँचाने के लिए भाषा का
बड़ा योगदान है। बाजार और भाषा एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। उर्दू भाषा के
पनपने का मुख्य कारण बाजार है। कंपनियों द्वारा विज्ञापन के जरिए अपने उत्पाद को
परोसा जाता है। वैश्विक बाजार में हिंदी भाषी देशों में उत्पादन वहां की भाषा के माध्यम से ही बेचा जा सकता है। आक्सफोर्ड शब्दकोश में हिंदी के शब्दों को शामिल
किया जा रहा है। बाजारवाद के कारण अनुवाद, संपादन, डबिंग, कॉपी, एडिटिंग
को बढ़ावा मिला है। जन संचार के साधनों में हिंदी का स्वरूप बदलता जा रहा है
टी.वी., एफ.एम., एस.एम.एस., समाचार पत्र, रेडियो, इंटरनेट, पत्रिकाओं में अंग्रेजी के शब्दों का
प्रयोग हो रहा है। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है। हिंदी को प्रभावी बनाने में दूरदर्शन, आकाशवाणी, समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं का योगदान महत्वपूर्ण है। तकनीकी शब्दावली में अंग्रेजी
भाषा का वर्चस्व है इस कारण इंजीनियरिंग, चिकित्सा
विज्ञान, लॉं (कानून) की पढ़ाई
में अंग्रेजी का बोलबाला है। दूरदर्शन विज्ञापनों में हिंदी भाषा का प्रयोग
अधिकाधिक कर रहा है। ब्रिटेन फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, पाकिस्तान, थाईलैंड, नेपाल, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रिया, नार्वे, स्विट्जरलैंड आदि देशों के
विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्यापन कराया जा रहा है। मॉरीशस, सुरीनाम, फिजी, त्रिनिडाड
में प्रवासी भारतीय आज भी मातृभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग करते हैं। हिंदी के सामने चुनौतियां- किसी भाषा की जीवंतता और
सार्थकता इस बात से होती है कि उसमें आधुनिक ज्ञान को समेटने तथा अपने आप को
विभिन्न आवश्यकताओं के अनुरूप विकासमान ढंग से अनुकूल बनाने की कितनी क्षमता है।[12] आज हिंदी को बोलचाल के सीमित दायरे में नहीं रखना है बल्कि उसे विज्ञान की
भाषा के रूप में, कंप्यूटर की भाषा के रूप में, व्यवसाय, बैंक, बीमा
के साथ-साथ विज्ञापन की भाषा के रूप में भी अपने आप को प्रतिष्ठित करने की बड़ी
भारी चुनौती है। इसके अलावा हिंदी को राजभाषा के रूप में, खेलों, फिल्मों की भाषा के रूप में, मीडिया की भाषा के रूप में स्थापित करने में अनेक चुनौतियों का सामना करना
पड़ा है।[13] पारिभाषिक शब्दावली के बिना विज्ञान के क्षेत्र
में अंग्रेजी के प्रयोग को हटाकर हिंदी को स्थापित किया जाना असंभव है। ज्यादातर
वैज्ञानिक इस बात का विरोध करते हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में सार्थक भाषा के रूप
में हिंदी का प्रयोग हो सकता है। इस कारण राजभाषा हिंदी में कार्य करना एक प्रकार
से उनके लिए निषिद्ध था।[14] प्रसिद्ध इतिहासकार
अलबरूनी ने अपने ग्रंथ 'किताब-उल-हिंद' में लिखा है कि "हिंदुस्तान से हमारी(अर्थात अरबों की) भिन्नता का
पहला क्षेत्र है- भाषा। लेकिन उनकी (अर्थात हिंदुस्तानियों की) भाषा भी दो भागों
में पहचानी जा सकती है- पहली क्षेत्रीय भाषा है जो कि आम लोगों द्वारा बोली जाती
है और दूसरी उच्च शिक्षित वर्ग द्वारा प्रयुक्त शास्त्रीय भाषा।[15] भाषा उपयोग का एक बडा़ दायरा है ।एक
सूक्ष्म किंतु मजबूत ताकत की तरह भाषा व्यक्ति के दृष्टिकोण, उसकी रुचियों, क्षमताओं यहां तक की मूल्यों और
मनोवृत्तियों को भी आकर देती है।[16] भाषा एक बेहद लचीला माध्यम है। हम परिस्थिति के अनुसार शब्दावली का प्रयोग
करते हैं। क्रोध की भाषा कठोर और प्रेम की भाषा मधुर होती है। भाषा को लचीलेपन से इस्तेमाल करने की क्षमता काफी हद
तक यह तय करती है कि इस जीवन
की परिस्थितियों का सामना हम किस तरह करेंगे।[17] वैश्वीकरण व तकनीकी शब्दावली के कारण आज कंप्यूटर, इंटरनेट,
मिस्ड कॉल, मैसेज आदि शब्दों का प्रचलन
बढ़ा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान के निदेशक तरुण विजय कहते हैं- "अंग्रेजी
आधुनिक संप्रेषण, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वैश्विक राजनय के साधन के रूप में ठीक है किंतु भूरे साहब यानी अंग्रेजियत
से सराबोर भारतीय देश की मिट्टी और खुशबू के विरोध में हैं।[18] हॉलीवुड में कई फिल्में डबी कर हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है। हिंदी
फिल्में भी विदेशों में डबी करके वहां की भाषा में प्रस्तुत की जा रही है। भाषा का
विकास व्यक्तित्व और क्षमताओं से जुड़ा है। बदलते विश्व परिदृश्य और बदलती
आवश्यकताओं के मद्देनजर हिंदी का बदलता स्वरूप प्रासंगिक
और सामयिक है। हिंदी की बढ़ती समृद्धि संभावनाओं
से भरपूर है। विश्व परिदृश्य में हिंदी का एक
महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिंदी का विश्वव्यापी रूप- विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठापित करने के क्रम में विश्व हिंदी सम्मेलनों
की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। माँरीशस में 'विश्व हिंदी सचिवालय' जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था कार्य कर रही है। हिंदी को विश्व संवाद की अति
महत्वपूर्ण भाषा बनाने की दिशा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय
वर्धा द्वारा भी महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। जिस राष्ट्र की अपनी सर्वमान्य
भाषा नहीं होती, विश्व समुदाय में उस राष्ट्र की कोई
पहचान नहीं, कोई स्वाभिमान नहीं। स्वतंत्रता के पश्चात
हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता देने के प्रश्न पत्र राजनीति हो गई और आज 22
राष्ट्रभाषाएं हो गई हैं। विश्व हिंदी सम्मेलनों का सबसे बड़ा लाभ
यह हुआ कि विश्व के अनेक देशों के लेखक और हिंदी प्रेमी एक दूसरे के संपर्क में
आए। दूसरा लाभ हिंदी लेखन में गुणात्मक विकास हुआ है। विश्व हिंदी सम्मेलनों और
प्रवासी भारतीयों के प्रयासों
से विदेशों में हिंदी भाषा को व्यापक रूप मिल रहा है। विदेशी विश्वविद्यालयों में
हिंदी का शिक्षण हो रहा है। हिंदी साहित्य अनुवाद के माध्यम से भी पढ़ा जा रहा है।
जैसे- अंग्रेजी में अनूदित रविन्द्रनाथ ठाकुर के 'कबीर के सौ पद'
(1915) फ्रेड़रिक गाउज की 'तुलसीकृत
रामायण'(1877-1880) इत्यादि है।[19] आज के युग में प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। अत: हिंदी में
सूचना प्रौद्योगिकी और संचार क्रांति की शब्दावली को शामिल करना होगा। अनुवाद के
माध्यम से एक भाषा का उत्कृष्ट साहित्य दूसरी भाषा के माध्यम से पढ़ा समझा जा सकता
है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में विभिन्न तत्त्वों की भूमिका होती
है। आनंद कुमार अपने लेख 'समाज विज्ञान और हिंदी' में लिखते हैं- "एक तो आधुनिकीकरण की प्रक्रिया, दूसरा मध्यमवर्ग, तीसरा बाजार, चौथा संचार माध्यम, पांचवा बहुदेशीय कंपनियां, छठा अप्रवासन, लोग एक जगह से दूसरी जगह
जा रहे हैं, भूगोल सिमट रहा हैं, और सातवां संपन्नता। ये सात चीजें मिलाकर वैश्वीकरण को आधार देती है और इसमे से दो चीजें हैं जोकि देशी भाषाओं के
अनुकूल है।"[20] महात्मा गांधी हिंदी को जन-जन की
भाषा मानते हैं- "हिंदी एक जीवंत भाषा है। इसमें बड़ी सुरम्यता और उदारता है। हिंदी के यही तो वे गुण हैं जो इसे दूसरी भाषाओं के शब्दों और रूपों को आत्मसात
करने की असीम क्षमता प्रदान करते हैं। हिंदी हमें दक्षिण एशिया के देशों की नहीं
बल्कि पूरे एशिया और माॅरीशस, फिजी, सुरीनाम, ट्रिनीडाड व टोबेगो जैसे अन्य देशों के साथ जोड़ती है।[21] हिंदी की पाचन क्षमता इतनी अधिक है कि इसमें भारतीय भाषाओं के शब्दों के अलावा विदेशी भाषाओं के शब्द भी बहुतायत से मिलते हैं। प्रोफेसर सूरजभान सिंह के अनुसार- "विदेशों में हिंदी और विदेशी भाषा के रूप में हिंदी ये दो अलग-अलग संकल्पनाएं हैं। विदेशों में हिंदी का संबंध समाज भाषा विज्ञान से है और विदेशी भाषा के रूप में हिंदी का संबंध भाषा शिक्षण से हैं। एक हिंदी को राष्ट्रीय आयाम से अलग एक अंतर्राष्ट्रीय आयाम देता है और दूसरा उसे भाषा शिक्षण तकनीक से जोड़ता है।"[22] डॉ. पूनम चंद टंडन के शब्दों में-"सूचना प्रौद्योगिकी का एक बहुत बड़ा जो लाभ हिंदी को मिला है अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी का व्यापक स्तर पर अवतरण। इससे पहले यह कार्य हिंदी सिनेमा कर रहा था, किंतु दूरदर्शन, रेडियो, केवल, इंटरनेट, ईमेल, सेल्यूलर आदि ने इस दिशा में गंभीर एवं सकारात्मक भूमिका निभाई है।"[23] इंग्लैंड में 'पुरवाई' एवं प्रवासी टुडे प्रकाशित होता है। विश्व के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्यापन हो रहा है। फिजी, अरब, ग्वाटेमाला, गुयाना, नेपाल, मारीशस, पाकिस्तान
में 50% से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं। प्रियंका
मोदी ने सच ही कहा है कि- एक डोर में सबको जो बांधती है वह हिंदी है, हर भाषा को सगी बहन जो मानती है वह हिंदी है भरी पूरी हो सभी बोलियां यही कामना हिंदी है, गहरी हो पहचान आपसी यही साधना हिंदी है।[24] सभी विकसित देशों ने अपना विकास अपनी भाषा के माध्यम
से किया है। इजराइल ने हिब्रू भाषा के माध्यम से विकास किया है। संयुक्त राष्ट्र
संघ में हिंदी को मान्यता दिलाने के लिए पाक, माँरीशस, नेपाल, फिजी जैसे देशों के साथ मिलकर प्रयास
करना होगा। |
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निष्कर्ष | आज हिंदी विश्व भाषा के रूप में सामने आ रही है किंतु वैश्वीकरण के दबाव के कारण विज्ञापन, बाजारवाद और अन्य प्रयोजनमूलक कार्यों में हिंदी का अलग-अलग रूप में प्रयोग हो रहा है। अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग के कारण हिंदी का विकृत रूप सामने आ रहा है। अंग्रेजी और हिंदी मिश्रित बोलचाल के कारण हिंग्लिश का रूप सामने आ रहा है। यह स्थिति आने वाले युग के लिए ठीक नहीं है ।विश्व के प्रत्येक देश में हिंदी भाषा को सीखने के प्रयास किए जा रहे हैं। वैश्वीकरण के कारण आज पूरा विश्व एक ग्लोबल गांव के रूप में विकसित हो रहा है। अतः एक दूसरे देश की भाषा सीखना अनिवार्य हो गया है। भाषा आपस में जोड़ने का काम करती है।आज हमें हिंदी को लेकर हीनता बोध करने की आवश्यकता नहीं है। बाजार में अंग्रेजी के मुकाबले तनकर खड़ी होने वाली भाषा हिंदी ही है। | ||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. भूमंडलीकरण की चुनौतियां - सच्चिदानंद सिन्हा
2. भूमंडलीकरण का अभिशाप - कमलनयन काबरा
3. गगनांचल जुलाई- सितंबर 1999 पृष्ठ 111
4. मधुमति सितंबर 2009 पृ.9
5. मधुमति जनवरी 2009 पृ.28
6. दलालों का स्वर्ण युग (हंसने की तरह रोना संकलन से) विष्णु नागर- 2006
7. निरोग सुख, मार्च-अप्रैल 2005 पृ.83
8. राजस्थान पत्रिका, 14 नवंबर 2010 पृ.14
9. वही 23 नवंबर 2010पृ. 1
10. दैनिक भास्कर 20 नवंबर 2010 पृ. 5
11. निराला संचयिता- पृष्ठ 367
12. भाषा साहित्य और देश -हजारी प्रसाद द्विवेदी पृ. 26
13. वही पृ. 27
14. राष्ट्रभाषा हिंदी -भोलानाथ तिवारी पृ. 16
15. अलबरूनी किताब उल- हिंद, सचाऊ(अनुवाद संपादन)खण्ड- एक दिल्ली, पुन र्मुद्रित 1964 पृ.17-18
16. कृष्ण कुमार :बच्चे की भाषा और अध्यापक, नेशनल बुक ट्रस्ट भारत 2008 पृ.1
17. वही पृ. 10
18. लाइव मिंट समाचार पत्र ,मुंबई 18 अप्रैल 2009
19. अनूदित कृतियां बनाती है विदेशों में हमारी छवि -निकोला पोत्जा (दैनिक भास्कर 14 सितंबर 2010)
20. "वैश्वीकरण के परिप्रेक्ष्य में हिंदी" में संग्रहित आनंद कुमार का लेख- 'समाज विज्ञान और हिंदी' पृ. 59
21. आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन: आलेख और प्रतिवेदन सं.प्रो.जी गोपीनाथन पृ.30 (मानवाधिकार और हिंदी पी.सी. शर्मा)
22. विदेशों में हिंदी शिक्षण: समस्याएं और समाधान -प्रो. सूरजभान सिंह पृ.37 (आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन सं. प्रो. जी .गोपीनाथन)
23. गगनांचल वर्ष 30 संयुक्तांक 3-4 जुलाई डॉ. हीरालाल बांधोतिया पृ. 41
24. राष्ट्रीय परिसंवाद स्मारिका- 2010 प्रियंका मोदी मीरा कन्या पी.जी. महाविद्यालय संगरिया(राजस्थान) |