P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- IV November  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
शेखावाटी ओपन आर्ट गैलरी की कलात्मक हवेलियों की वर्तमान दशा व संरक्षण
Present Condition and Conservation of Artistic Mansions of Shekhawati Open Art Gallery
Paper Id :  16934   Submission Date :  06/11/2022   Acceptance Date :  22/11/2022   Publication Date :  25/11/2022
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पवन कुमार जाँगिड.
सह आचार्य
शिक्षा विभाग
श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
किशनगढ,राजस्थान, भारत
सारांश कलात्मक दृष्टिकोण से राजस्थान की हवेलियाँ एक दूसरे से भिन्न है। शेखावाटी की हवेलियों को दुनिया की सबसे बड़ी “ओपन आर्ट गैलरी” कहा जाता है। यहाँ की हवेलियाँ बहुत भव्य एवं आकर्षक है। शेखावाटी भित्ति चित्रकला परम्परा का भी सबसे समृद्ध क्षेत्र है। शेखावाटी के विस्तृत क्षेत्र में स्थित फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, चूरू, अजीतगढ़, नवलगढ़, झुंझुनूं, सीकर, चिड़ावा, डूंडलोद, मुकुंदगढ़, मंडावा, पिलानी, रामगढ़, सूरजगढ़, विसाऊ, काजरा, अलसीसर, मलसीसर, सुजानगढ़, रतनगढ़, बगड़, दाँता, आदि स्थानों के घरों, मन्दिरों, छतरियों, कुंओं, बावड़ियों, हवेलियों, महलों, अटारियों, झरोखां और गलियों में भित्ति चित्रांकन के अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं। परन्तु अब शनै-शनै हवेलियाँ वीरानी का इतिहास रच रही हैं। उद्योगपति प्रायः हवेलियाँ छोड़कर परिवार सहित दूसरे स्थानों पर जा बसे। वर्तमान में कई हवेलियों को तोड़कर उन पर बहुमंजिला व्यवसायिक इमारतें बन रही है। ऐसे में इन हवेलियों के विक्रय एवं तोड़ फोड़ पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाकर इस विरासत को बचाना आवश्यक है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद From the artistic point of view, the havelis of Rajasthan are different from each other. The havelis of Shekhawati are called the world's largest "open art gallery". The havelis here are very grand and attractive. Shekhawati is also the richest region of mural painting tradition. Fatehpur, Laxmangarh, Churu, Ajitgarh, Nawalgarh, Jhunjhunu, Sikar, Chirawa, Dundlod, Mukundgarh, Mandawa, Pilani, Ramgarh, Surajgarh, Visau, Kajra, Alsisar, Malsisar, Sujangarh, Ratangarh, Bagad, Danta, are located in the wide area of Shekhawati. Unique examples of mural painting are found in houses, temples, umbrellas, wells, stepwells, mansions, palaces, attics, windows and streets. But now slowly havelis are creating the history of desolation. Industrialists often left the havelis and settled in other places along with their families. At present, many havelis are being demolished and multi-storeyed commercial buildings are being built on them. In such a situation, it is necessary to save this heritage by banning the sale and demolition of these havelis with immediate effect.
मुख्य शब्द हवेली, भित्ति, चित्र, वीरानी, गवाक्ष, खुर्दबुर्द, ब्रितानी, माफिया, शूटिंग, नेस्तनाबूद।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Haveli, Mural, Painting, Desolation, Witness, Khurdburd, British, Mafia, Shooting, Nestanabood.
प्रस्तावना
भारतीय उपमहाद्वीप में पारंपरिक मकानों, महलों, जागीर घर या किले को हवेली कहा जाता है। हवेली शब्द अरबी ‘हवाली’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है “विभाजन“ या “निजी स्थान“। दरसल हवेली वास्तुकला का एक अद्वितीय स्थानीय वास्तुकला का रूप है जो 18 वीं और 19 वीं शताब्दी में पूर्व-विभाजन पश्चिमी भारत में, विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में विकसित हुई थी। अधिकांश हवेलियों में बड़ी बालकनी, कई मंजिलें और भव्य कमरे मौजूद होते हैं। गर्मी से बचने के लिए इन्हें एक केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर बनाया जाता है। आंगन की बनावट, परिवार की सामाजिक स्थिति, जीवन शैली, धन, कला और सांस्कृतिक झुकाव का प्रतीक हुआ करती थी। भारत में भित्ति चित्रण परम्परा की दृष्टि से राजस्थान का विशेष स्थान रहा है। राजस्थान की भूमि कला, साहित्य एवं संस्कृति के गौरवमयी इतिहास, कलात्मक हवेलियों, भित्ति चित्रण और पर्यटन की दृष्टि से एक ऐसा सौंदर्यशाली स्थल है, जो देश-विदेश के पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र रहा है। इस प्रदेश के शेखावाटी क्षेत्र की विभिन्न भव्य कलात्मक हवेलियों एवं उनके भित्ति चित्रों का सांस्कृतिक एवं कलात्मक वैभव अनुपम रहा है। इस क्षेत्र में छोटे से छोटे गाँव की हवेलियाँ भी चित्रित मिलती हैं। इसलिए शेखावाटी की हवेलियों को दुनिया की सबसे बड़ी “ओपन आर्ट गैलरी”1 कहा जाता है। कलात्मक दृष्टिकोण से ये हवेलियाँ एक दूसरे से भिन्न है। इनकी नक्काशी, कलम का सुनहरी कार्य और अपने स्थापत्य के कारण एक सुन्दर कलाकृति सी नजर आती है। इनके निर्माता सेठों, उनकी आस्थाओं, उनकी रूचियों, उनकी बारीक नजर की छाप इन हवेलियों पर देखी जा सकती है, जो उन्हें एकरूपता में विविधता प्रदान करती है। इन हवेलियों में सभी तरह की सुविधाएँ है। हवा के आवागमन, जल भंडारण, छोटा सा मंदिर, बड़ा चोक, अनेक कमरे, शानदार चित्राकंन इनकी विशेषता है। ये हवेलियाँ परिवार के एक साथ रहने के लिए बनाई गई थीं। आज इस कला संसार को निहारने के लिए बड़ी संख्या में लोग इसकी ओर आकर्षित होकर आ रहे हैं तथा इनकी प्रशंसा भी करते हैं। शेखावाटी क्षेत्र के सेठ लोग अक्सर प्रतिष्ठित कलाकारों को आंगन की दीवारों पर धार्मिक ग्रंथों, रोजमर्रा की जिंदगी या उनके सामाजिक विश्वासों के दृश्यों को चित्रित करने के लिए आमंत्रित करते थे। इन हवेलियों को उनके भित्ति चित्रों के लिए जाना जाता है, जिसमें देवी-देवताओं, जानवरों, ब्रिटिश उपनिवेश के दृश्यों और भगवान राम और कृष्ण की जीवन कहानियों को दर्शाया गया है।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोध अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य रहें- 1. राजस्थान की विभिन्न कलात्मक हवेलियों के ऐतिहासिक व कलात्मक वैभव को जानना। 2. विशेषकर शेखावाटी के सम्पूर्ण क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत व कलात्मक हवेलियों के बारे में लिखना। 3. शेखावाटी की हवेलियां और उनमें बने भित्ति चित्रों के कलात्मक वैभव को बताना। 4. इस धरोहर की वर्तमान दशा और बचाव के लिए ध्यानाकर्षण करना। 5. स्थानीय निवासियों में इस वैभव की सुरक्षा व महत्व के प्रति जागृति लाना।
साहित्यावलोकन

डॉ. रीता प्रताप की पुस्तक भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, (2021) व डॉ. ममता सिंह की पुस्तक भारतीय चित्रकला का इतिहास, 2017 में शेखावाटी शैली के विषय में सामग्री सहायक रही है। डॉ. ममता सिंह की पुस्तक के पृष्ट सं. 521 पर प्रतिकात्मक चित्र का अच्छा उल्लेख देखा जा सकता है जिसमें है कि गोइनका हवेली में सन् 1850 ई. का चित्र कृष्ण की आठ गोपियां एक हाथी के रूप में सुन्दर चित्रित मिलता है। गगनांचल पत्रिका (2005) में शेखावाटी भित्ति चित्रांकन का लेख इस विरासत के बारे में बताने का अच्छा प्रयास है। श्री उपध्यान चन्द्र एवं श्री ज़िया उल हसन क़ादरी की पुस्तक (2012) हवेलियों का शहर बीकानेर में बीकानेर क्षेत्र की सभी हवेलियों के विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। टी. सी. प्रकाश की पुस्तक (1993) शेखावाटी वैभव इस सम्पूर्ण क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को जानने में महत्वपूर्ण रहीं। आकृति पत्रिका का भित्ति चित्रकला विशेषाँक और राजस्थान पत्रिका व अन्य समाचार पत्रों में समय-समय पर छपे लेख भी महत्वपूर्ण सामग्री रहीं।

मुख्य पाठ

स्थापत्य कला को वास्तुकला भी कहते हैं। वास्तु शब्द वस धातु से बना है। जिसका अर्थ है एक स्थान पर निवास करना। हवेली निर्माण में मुख्य योगदान राजस्थान के सेठ साहूकारो का रहा है। हवेली निर्माण कला का विकास राजस्थान में 17वीं/ 18वीं सदी में हुआ। हवेली निर्माण शैली विशुद्ध रूप से हिन्दू शैली है। पुराने समय में राजस्थान में राजा, बड़े सेठ साहूकार तथा धनी व्यक्ति अपने आवास या निवास के हवेलियों का निर्माण करवाते थे। ये हवेलियाँ बहुत ही भव्य एवं आरामदायक होती थी तथा इन हवेलियों की स्थापत्य कला आज भी देखते ही बनती है। राजस्थान में सर्वाधिक हवेलियों का निर्माण शेखावाटी क्षेत्र में हुआ है। यहाँ की सभी प्रमुख हवेलियां एक परम्परा में निर्मित है। हवेलियाँ कई मजिलों में निर्मित होती थी। हवेली के मुख्य द्वार के दोनों ओर ऊँचे चबूतरों के समान स्थान बना हुआ था, जहाँ बैठा जाता था उसे गवाक्ष कहते है। गवाक्ष के आगे का हिस्सा जहाँ परिवार रहता था पोल कहलाता था। चौक के चारों और कमरें तथा कईं हवेलियों में तीन-तीन चौक पाये जोते थे। तिबारा चौक के पास स्थित होता था। शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियाँ बहुत भव्य एवं आकर्षक है। जयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, तथा शेखावाटी के रामगढ़, मण्डावा, पिलानी, सरदारशहर, रतनगढ़, नवलगढ़ आदि कस्बों में खड़ी विशाल हवेलियाँ आज भी अपने स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती  हैं। राजस्थान की हवेलियाँ अपने छज्जों, बरामदों और झरोखों पर बारीक व उम्दा नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं।

बीकानेर की हवेलियाँ- बीकानेर की हवेलियाँ अपनी विशालता, अपनी उँचाई, अपने स्थापत्य, अपनी जालियों, अपने झरोखों, अपनी नक्काशी, अपने गोल्डन वर्क, अपनी पेंटिंग्स और अपने साथ जुड़ी घटनाओं के कारण हमेशा चर्चा में रही हैं। चाहे बच्छावतों की हवेली, मोहता हवेली, डागा परिवार की हवेलियाँ हों, चाहे रामपुरिया परिवार की हवेलियाँ हों, चाहे चाँदमल ढड्ढ़ा की हवेली हो, चाहे रिखजी बागड़ी की हवेली हो, चाहे भैरोदान कोठारी की हवेली हो अथवा भीनासर के बाँठिया व बैद परिवार की हवेलियाँ हों, सभी हवेलियों ने कलाकारों को अपनी कला के जौहर दिखलाने का अवसर दिया, मजदूरों को अपने परिवार के जीविकोपार्जन हेतु धन मुहैया करवाया।[2]

जैसलमेर की हवेलियाँ- पटवों की हवेली, नथमल की हवेली, सालिम सिंह की हवेली, राव राजा बर्सलपुर की हवेली, सोढ़ो की हवेलीदीवान आचार्य ईसर लाल जी की हवेली। जैसलमेर की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी हवेलियों में से एक, 1805 में गुमान चंद पटवा द्वारा निर्मित पटवों की हवेली पांच हवेलियों का एक समूह है। पांच हवेलियों के इस समूह में सबसे पहली हवेली सबसे लोकप्रिय है, इसे कोठारी की पटवा हवेली के रूप में भी जाना जाता है। इनमें से सबसे पहली हवेली के निर्माण के लिए वर्ष 1805 में गुमान चंद पटवा को साधिकार किया गया था। पटवा एक धनी व्यक्ति थे और अपने समय के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे, इसलिए उन्होंने अपने 5 बेटों के लिए पाँच मंजिल की हवेली के निर्माण का आदेश दिया था। हालांकि यह लगभग 50 साल की अवधि में पूरा हुआ था। सभी पांच हवेलियों का निर्माण 19वीं सदी के पहले 60 वर्षों में किया गया था। पटवों जी की हवेली अपनी अलंकृत दीवार चित्रोंपीले बलुआ पत्थर - नक्काशीदार झरोखा, प्रवेश द्वार और मेहराब के लिए प्रसिद्ध है।

उदयपुर की हवेलियाँ- बागौर हवेली, मोहन सिंह जी की हवेली, बाफना की हवेली, पीपलियॉ की हवेली तथा एक और उल्लेखनीय हवेली सेठ जी री हवेली है, जिसे अब श्री जगदीश महल के नाम से जाना जाता है, यह 250 साल पुरानी हवेली है और आज उदयपुर शहर में उल्लेखनीय विरासत स्थलों में से एक है।

चित्तौड़गढ की हवेलियाँ- भामाशाह की हवेली, सलूम्बर ठिकाने की हवेली, रामपुरा ठिकाने को हवेलीजयमल व पत्ता की हवेलियाँ।

कोटा की हवेलियाँ- बडे देवता की हवेली, कोटा की हवेलियाँझालाजालिम सिंह जी की हवेली।

जयपुर की हवेलियाँ- पुरोहित जी की हवेली, चूरसिंह की हवेली, रत्ऩाकार भट्ट पुण्डरीक की हवेली।

जोधपुर की हवेलियाँ- पाल हवेली, पोकरण की हवेली, पुष्य हवेली, बड़े मियां की हवेली, राखी हवेली, पच्चिसां हवेली, आसोप हवेली जोधपुर, लालचंद ढड्डा की हवेली फलौदी, सांगीदास थानवी की हवेली फलौदीमोतीलाल अमरचंद कोचर हवेली फलौदी, फूलचंद गोलछा की हवेली फलौदी।

 

अन्य महत्वपूर्ण हवेलियाँ- सुनहरी कोठी हवेली टोंक, केसरी सिंह बारहठ की हवेली शाहपुरा (भीलवाडा), झालाओं की हवेली शेरगढ दुर्ग (बारां), भरतपुर की हवेलियाँ भरतपुर, वंशी पत्थर की करौली हवेली करौली। राजस्थान में बहुत सी कलात्मक, ऐतिहासिक प्रसिद्ध हवेलियाँ है परन्तु हम केवल इस शोध पत्र में विशेष रूप से शेखावाटी की हवेलियों के संदर्भ में अध्ययन कर रहे हैं।

शेखावाटी का भू-भाग प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण रहा है। राजस्थान की भित्ति चित्रण परम्परा में शेखावाटी का स्थान अद्वितीय है। यहाँ किले, देव मन्दिर, हवेलियाँ आदि बड़ी संख्या में चित्रित की गई थी। शेखावाटी भित्ति चित्रकला परम्परा का सबसे समृद्ध क्षेत्र है। शेखावाटी के धनी व्यापारियों द्वारा निर्मित भव्य हवेलियाँ एक अनोखी वास्तुकला की शैली को प्रदर्शित करती है जो उनके प्रांगणों में व्यक्त होता है, जो स्त्रियों की सुरक्षा, एकान्त, लम्बी व कड़ी ग्रीष्म की तपन से उन्हें बचाने के लिए बने थे। शेखावाटी इलाके में सीकर, झुंझंनूं, फतेहपुर, चिड़ावा, मंडावा, नवलगढ़़, पिलानी, महणसर, रामगढ़़, डूण्डलौद आदि स्थानों पर चित्ताकर्षक हवेलियाँ हैं।[3] ये हवेलियाँ स्थापत्य कला एवं चित्रकला का अपूर्व संगम बन गयी। शेखावाटी में जहाँ राजाओं ने बडे़-बड़े दुर्ग बनवाए वहीं सेठों ने कलात्मक हवेलियों का निर्माण करवाया। शेखावाटी क्षेत्र के लगभग प्रत्येक सेठ ने अपनी समृद्धि के अनुसार हवेलियां, धर्मशालाएँ, विधालय, मन्दिर, छतरियाँ, कुंएँ, बावडी आदि सभी वस्तुओं का निर्माण करवाकर भित्ति को अधिकाधिक सुन्दर चित्रों से अलंकृत करवाते हुए अपनी श्रेष्ठता और लोकप्रियता का प्रदर्शन किया है।[4] शेखावाटी क्षेत्र राजस्थान का ही नहीं बल्कि भारत भर में भित्ति चित्रों का खजाना है। यहाँ के छोटे से छोटे सरदारों नेमहाजनों ने, ठाकुरों ने भी अपनी हवेलियों तथा देवालयों को चित्रित करवाया। 

इस क्षेत्र की वर्षों पुरानी राजसी, सामंती साज सज्जायुक्त हवेलियाँ अपनी उत्कृष्ट भित्ति चित्रकला के द्वारा दर्शकों को आकर्षित करती है। शेखावाटी के विस्तृत क्षेत्र में स्थित फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, चूरू, अजीतगढ़, नवलगढ़, झुंझुनूं, सीकर, चिड़ावा, डूंडलोद, मुकुंदगढ़, मंडावा, पिलानी, रामगढ़, सूरजगढ़, विसाऊ, काजरा, अलसीसर, मलसीसर, सुजानगढ़, रतनगढ़, बगड़, दाँता, आदि स्थानों के घरों, मन्दिरों, छतरियों, कुंओं, बावड़ियों, हवेलियों, महलों, अटारियों, झरोखां और गलियों में भित्ति चित्रांकन के अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं। इनके अलावा इस क्षेत्र के छोटे बड़े लगभग सभी कस्बों और शहरों की भित्ति चित्रण कला का आश्चर्य चकित कर देने वाला वैभव सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। सन् 1830 से लेकर 1900 तक का समय शेखावाटी की भित्ति चित्रकला का स्वर्णयुग कहा जाता है, क्योंकि जब यहाँ निजी व सार्वजनिक भवनों में त्वरित गति से भित्ति चित्रांकन का कार्य चला। अतः शेखावाटी के भित्ति चित्रों को विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानते हुए ’’ओपन एअर आर्ट गैलेरी ऑफ राजस्थान’’ के नाम से जाना जाता है। इसी वजह से यहाँ की हवेलियों की खूबसूरती को निहारने सात समंदर पार से भी पर्यटक आते हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे यहाँ की हवेलियां रख रखाव के अभाव में दम तोड़ती नज़र आ रही हैं।

ये सारे स्थल आज भी इतिहास के साथ-साथ पर्यटन एवं कला की भी सुंदर निधियां हैं, जिसमें जीवंत गाथा को देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ आकर महसूस कर सकते हैं। शेखावाटी के प्रत्येक पर्यटन स्थल से इतिहास की रोचक गाथाएं जुड़ी है। यहाँ प्रवेश करते ही पर्यटकों के ध्यान को जो स्थल सबसे अधिक आकर्षित करते हैं, वे है ‘‘शेखावाटी के भित्ति चित्र एवं कलात्मक हवेलियां। इस अंचल की पहचान पुरानी कलात्मक हवेलियों के वैभव से है। इनका निर्माण काल 18वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 19वीं शताब्दी के उतरार्द्ध का माना जाता है। यहाँ के प्रवासी व्यवसायियों ने इन हवेलियों का निर्माण इसलिए करवाया था कि इनका क्षेत्र से जुड़ाव के साथ आवागमन बना रहें।

सीकर जिले के लक्ष्मणगढ में- केडियां की हवेली, राठी की हवेली रोनेडी वालो की हवेली। विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहरों के धनी लक्ष्मणगढ़ कस्बे की सांस्कृतिक विरासतें बेजोड़ स्थापत्य व चित्रकला का नायाब उदाहरण है। यहाँ स्थित प्राचीन धरोहरें इसे हैरिटेज-सिटि बनाने की योग्यता प्रदान करती हैं। यहाँ की प्रमुख विरासतों में ऐतिहासिक दुर्ग, विश्वप्रसिद्ध चार-चौक की हवेली, प्राचीन मन्दिर तथा महाजनों द्वारा निर्मित जोहड़ तथा उत्तम दृश्य व बेजोड़ स्थापत्य कला की पुरानी हवेलियां हैं। लक्ष्मणगढ़ की ऐतिहासिक इमारतों व धरोहरों के रूप में यहाँ की भव्य हवेलियां सबसे प्रमुख है। उत्तर-मुगल तथा ब्रितानी दौर की स्थापत्य कला तथा हिन्दू-मुस्लिम शैली की चित्रकारी से युक्त लक्ष्मणगढ़ की ऐतिहासिक हवेलियां बरबस ही देखने वालों को आकर्षित कर लेती हैं। इन हवेलियों की दीवारों पर अराईस बेहद चिकनी, आकर्षक तथा उच्चस्तरीय हैं। इनमें बनाए गए भित्ति चित्रों में ब्रितानी दौर का आधुनिक दृष्टिकोण स्पष्ट दिखाई देता है, वहीं पुरानी हवेलियों में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य शैली का सुन्दर मिश्रण हैं। बाद की हवेलियों में ब्रिटिश शैली का प्रयोग अधिक किया गया है। वर्तमान में चारचौक की हवेली, क्यालों की हवेली, काबरों की हवेली, क्यालों के कमरे, परसरामपुरियों की हवेली, चूड़ीवालों की हवेली. पंसारियों की हवेली, गनेड़ी वालों की (चार-चौक की) हवेली सहित अनेक हवेलियां आज भी इतिहास का गौरवगान करती हैं। कस्बे में चूड़ीवाला, गनेडीवाला परिवार सहित अन्य सेठों साहुकारों की ओर से निर्मित्त भव्य कलात्मक छतरियां व जोहड़े अनायास ही लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। कस्बे का दुर्ग राजस्थान राज्य की भव्यतम स्थापत्य कलाओं का एक अद्भुत व अनुपम उदाहरण हैं। राजस्थानी गानों की शूटिंग भी यहां हो चुकी हैं।[5] यह बात और हैं कि प्रवासियों के लगातार मोहभंग होने तथा प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के भी रुचि न लेने से ये धरोहरें (हवेलियां) खुर्दबुर्द हो रही हैं। लक्ष्मणगढ़ में भव्य तथा आकर्षक हवेलियों की संख्या दर्जनों हैं किन्तु धीरे-धीरे व्यावसायिकता की चपेट में खुर्द-बुर्द होने से इनकी संख्या घटती जा रही हैं। लगातार हो रही सरकारी उपेक्षा व स्थानीय जनप्रतिनिधियों की इच्छा शक्ति में कमी ने कस्बे को विदेशी पर्यटकों और हैरिटेज की संभावनाओं से वीरान बना के छोड़ दिया हैं।

सीकर शहर में- बनाणियों की हवेलीनई हवेली। नवलगढ़ को हवेलियों का शहर भी कहा जाता है। यहां पर अनेक हवेलियां बनी हुई है। पौद्दार, भगत, पटोदिया, चौखानी, सेकसरिया व अन्य परिवारों की हवेलियां आदि नवलगढ की दर्शनीय हवेलिया हैं। नवलगढ़ की हवेलियों में भित्ति चित्रों का तो आकर्षण है ही, साथ ही लकड़ी के दरवाजों की बारीक जालियां भी जादुई काष्ठ कला का दिग्दर्शन कराती हैं। नवलगढ़ में कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। रामगढ़ में खैमका सेटों की हवेली, गोयनका सेटों की हवेली रामगढ़, पोद्दारों की हवेली, बैजनाथ रूइया हवेली प्रसिद्ध है। सीकर, चूरू, झुंझनूं की सीमा पर स्थित सेठों का रामगढ़ कस्बे की स्थापना करीब सवा दौ सौ साल पहले सीकर के राव राजा देवीसिंह ने की थी। रावराजा रामसिंह के नाम पर इस कस्बे का नाम रामगढ़ पड़ा। शुरू से ही इस कस्बे में सेठों के बसने से इसका नाम सेठों का रामगढ़ पड़ा था। इस कस्बे का जन्मदाता पौद्दार सेठों को व भाग्य विधाता रूईया सेठों को कहा जाता है। यहाँ की श्री समृद्धि के विकास में पोद्दार सेठों का विशेष योगदान रहा है।[6] यहाँ पोद्दार सेठों की नयनाभिराम छतरियां पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। पोद्दार की छतरी के ढोले पर रंग बिरंगे भित्ति चित्रों की अनुपम छटा है। इसमें संपूर्ण रामायण के साथ, शेखावाटी में एकमात्र पूरे राग रागिनियों के साथ ही बारामासा के चित्र अंकित हैं। इसी प्रकार जगदीश मंदिर की छतरी, चार शिवालयों वाली छतरी, पोद्दार सेठों की हवेलियां, रूईया सेठों की हवेलियों सहित कई मंदिर पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं। शेखावाटी की विशाल हवेलियों, छतरियों एवं कलात्मक भित्ति चित्रकला से प्रभावित होकर जे.पी.दत्ता ने गुलामी फिल्म की शूटिंग यहीं की थी।[7] श्रीमाधोपुर में - पंसारी की हवेली।

झुंझुनूं जिले में- भगोरिया की हवेली नवलगढ, ईसरदास मोदी की हवेली (झुंझुनूं), भगतों की हवेली नवलगढ, टीबड़े वाला की हवेली झुंझुनूं, पोद्दार की हवेली नवलगढ, रामदेव चौरवाणी की हवेली माण्डावा, सागरमल लाहिया की हवेली मण्डावा, सेठ जयदयाल केडिया की हवेली बिसाऊ, नाथूराम पोद्दार की हवेली बिसाऊ, सीताराम सिगतिया की हवेली बिसाऊ, सोने चादी की हवेली महनसर, बिरला हवेली पिलानी, लालधर जी धरकाजी की हवेली नवलगढ, सेठ हीराराम बनारसी की हवेली बिसाऊ, खीचन की हवेली झुंझुनूं, मण्डावा की हवेली माण्डावा।

चूरू की हवेलियाँ- रामनिवास गोयनका की हवेली, सुराणों की हवेली, मंत्रियों की हवेली प्रसिद्ध   है।

ओपन आर्ट गैलेरी का नाम आते ही ज़हन में शेखावाटी की हवेलियों की नक्काशी आंखों के पर्दों पर घूमने लगती है. निर्माण से लेकर यहाँ पर की गई पेंटिंग और जिस वास्तुकला का अनूठा संगम इन हवेलियों में मिलता है, उससे हर कोई इनकी तरफ आकर्षित होता है लेकिन रख-रखाव में उपेक्षा से इसकी तस्वीर धुंधली पड़ने लगी है। अब शेखावाटी की संस्कृति के साथ सेठ साहूकारों की पहचान हवेलियांभू-माफियाओं  के निशाने पर है। सरकारी नियमों को रोंधकर इनके छज्जों, गोखों और बरामदों के साथ भित्ति चित्रों पर हथौडे़ चल रहे हैं। अंचल के महज सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़, फतेहपुर और रामगढ़ शेखावाटी में पिछले पांच वर्ष में सौ से अधिक हवेलियों को नेस्तनाबूद कर दिया गया है। धरोहर संरक्षण को लेकर कोई विशेष ध्यान नहीं देने के कारण माफिया गिरोह के लोग नियमों की ढील का फायदा उठाकर आवासीय के नाम पर व्यवसायिक बहुमंजिला इमारतें बनाकर चांदी कूट रहे हैं। विरासत को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों ने अब एक नया तरीका निकाल लिया है। रजिस्ट्री की बजाय आपसी समझौते की लिखा पढीपर सौदा किया जाता है। इसके लिए हवेली के मालिकों के परिवार से जुड़े सदस्यों को शामिल कर समझौता पत्र तैयार किया जाता है। इसके बाद मालिकाना हक रखने वाले व्यक्ति के नाम से निकाय से आवासीय निर्माण की स्वीकृति लेकर व्यवसायिक निर्माण किया जा रहा है।

आजादी के बाद, शाही दरबार की संस्कृति और जमींदारी व्यवस्था के अंत के साथ, हवेलियों को या तो दूसरों को बेच दिया गया या उन्हें छोड़ दिया गया क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हवेली के गृहस्वामी और उनके परिवार नौकरी, व्यापार की तलाश में बाहर चले गए या उनके स्वामित्व वाले संयुक्त परिवार बिखर गए। अफसोस तो इस बात का है कि अब शनै-शनै हवेलियाँ वीरानी का इतिहास रच रही हैं। उद्योगपति प्रायः हवेलियाँ छोड़कर परिवार सहित परदेश जा बसे। सूनी और उदास पड़ी इन हवेलियों को उनके चले जाने का गम सालता है। चूँकि ये हवेलियाँ ज्यादातर बाज़ारों में थीं या तंग गलियों में खुलती थीं, कुछ को गोदामों और दुकानों में बदल दिया गया, और अंततः वे सभी जीर्ण- शीर्ण हो गई। जबकि बेहतर क्षेत्रों में मौजूद कुछ हवेलियों का नवीकरण कराया गया। लेकिन संरक्षण के ये अलग-अलग उदाहरण हवेली वास्तुकला की उत्पत्ति और विकास को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। समुचित देख-रेख के अभाव में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुचँ रहीं, ये हवेलियाँ जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं।

वर्तमान में इन चित्रों की वास्तव में बहुत ही दयनीय दशा को देखकर कलाकार का मन दुःख तथा करूणा से भर जाता हैं। इन चित्रों के रखरखाव के लिए किसी ने भी कोई विशेष ठोस कदम नहीं उठाया है। समय एवं मौसम के साथ-साथ स्थानीय जनता भी इन चित्रों की महत्ता समझ नहीं पा रही है। स्थानीय लोग इन पर सफेदी पुतवा रहे हैं तथा हवेलियों को तुड़वाकर बाजार का रूप दे रहे हैं। जिन कलाकृतियों का सृजन अतुल धन, द्रव्य, परिश्रम, लगन और श्रद्धा के साथ हुआ था, उनकी यह अधोगति देखकर भला किस कलाप्रेमी को दुःख नहीं होगा ? आधुनिकीकरण के इस काल में इनकी उपयोगिता लगभग नगण्य समझ कर उपेक्षित कर रहे हैं। आधुनिक विज्ञापनों के पोस्टरों की मोटी-मोटी परतें चित्रों पर चढ़ चुकी है।

अंचल के केवल सीकर जिले के लक्ष्मणगढ, फतेहपुर और रामगढ़ शेखावाटी की स्थिति पर ही नजर डालें तो पिछले पांच वर्ष में 100 से अधिक हवेलियों को तोड़कर उन पर बहुमंजिला व्यवसायिक इमारतें बना दी गई। ऐसे में इन हवेलियों के विक्रय एवं तोड़ फोड़ पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए। सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में एतिहासिक एवं पुरातन हवेलियों का विक्रय नहीं हो। प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर सरकार की तरफ से समय समय पर दिशा निर्देश जारी किए गये। निजि संपति भी पुरा महत्व के तहत आती है तो सरकार उसका संरक्षण करती है। इन नियमों की कड़ाई से पालना के साथ ही इनके मालिकों को इनके महत्व को समझना होगा।

हवेलियों की दशकों से सार संभाल करने वाले मंडावा के अशोक दूगड़ का कहाना है कि हवेलियों के मालिकों का जब कुनबा बढ़ा तो एक-एक हवेली के 40-40 मालिक बन गए, जिन्होंने हवेलियों की तरफ देखना तक मुनासिब नहीं समझा।. साफ सफाई के अभाव और अतिक्रमण की चपेट में आने से हवेलियों की हालत खराब हो गई हैं। सरकार ने शेखावाटी क्षेत्र की पुरा महत्व की इन हवेलियों के संरक्षण को लेकर समय-समय पर आदेश जारी किए। तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने वर्ष 2015 में सीकर व झुझुंनू जिला कलक्टर को इन हवेलियों के विक्रय के संबंधं में आदेश जारी किया था। भारतीय राष्ट्रीय कला एवं संस्कृति ट्रस्ट की शिकायत पर संभागीय आयुक्त ने सीकर व झुझुंनू जिले के कलक्टर को आदेश जारी कर कहा था कि सीकर व झुझुंन जिले में एतिहासिक व पुरातन हवेलियों की अवैध खरीद-फरोख्त की जा रही है। इन हवेलियों में तोड़फोड़ कर इनके मूल स्वरूप को नष्ट किया जा रहा है। आदेश में यह भी बताया गया था कि शेखावाटी क्षेत्र के पर्यटन विकास को लेकर हुई बैठक में इन हवेलियों के संरक्षण का निर्णय किया गया था। इसके बाद भी यह सिलसिला रूक नहीं पा रहा है।

लक्ष्मणगढ़. में करोड़ों की लागत से बनने वाला नेचर पार्क पर्यटन को बढ़ावा देने की ओर से सरकार का पहला कदम है। प्रशासन के साथ साथ जनप्रतिनिधियों की सक्रियता बरकरार रहें और हवेलियों को संरक्षित करने में सफलता मिल जाए तो कस्बे में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा व स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे। पर्यटकों के ठहरने, खाने, गाइड सहित अन्य व्यवस्थाओं के रुप में न केवल यहां के लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे, बल्कि नगरपालिका प्रशासन की आय बढ़ेगी जिसे कस्बे के विकास में सहायता मिलेगी। इससे कस्बे को विश्वस्तर पर पहचान भी मिल सकेगी। विरासत संरक्षण में अहम भूमिका निभाने के लिए कुछ महाजन व प्रवासी बंधु आगे भी आए हैं और उन्होंने पैतृक हवेलियों के मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए दुबारा से भित्ति चित्रों का अंकन व मरम्मत कार्य करवाया है। इनमें प्रमुख रूप से पक्की प्याऊ के पास स्थित बजाजों की हवेली, खाटू की कुंई के पास स्थित लखोटिया की हवेली, जैन मंदिर के पास स्थित काबरों की हवेली है। इनका इनके मालिकों ने नवीनीकरण करवाया है। वहीं मुरली मनोहर मंदिर में गनेड़ीवाला ट्रस्ट व श्रीरघुनाथ जी के बड़े मंदिर का प्रवासी उद्योगपति श्री कुमार लखोटिया ने जीर्णोद्धार करवा कर विरासत संरक्षण का नायाब उदाहरण पेश किया है। ये लोग अंचल के लोगों के लिए प्रेरणा पुंज का कार्य कर रहे हैं। ऐसे ही प्रयास अन्य कस्बों को करने होगें।

हवेलियों की पेंटिंग्स को यदि साल में दो बार साफ करवाया जाए तो पेंटिंग सदियों तक जिंदा रह सकती है, लेकिन ना तो मालिक और ना ही सरकार इस कोई ध्यान दे रही है। विशेषज्ञ अशोक दूगड़ ने बताया कि उन्होंने मंडावा में एक 40 साल से बंद पड़ी हवेली को संभाला और देखा तो उसमें भी पेंटिंग्स इतनी शानदार थी कि आज वह पर्यटन के लिहाज से मंडावा की सबसे शानदार हवेली के रूप में सामने आई है। उन्होंने कहा यहां ना केवल भारत से, बल्कि जर्मनी, फ्रांस, इटली, चाइना, इंग्लैंड और ताइवान जैसे देशों से पर्यटक आते हैं, वहीं इन हवेलियों की वजह से ही मंडावा में अब तक दर्जनों फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है, लेकिन अगर हवेलियां नहीं रहेगी तो सरकार को पर्यटकों का खामियाजा और शेखावाटी के लोगों को रोजगार का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ये हवेलियां अगर खत्म हो गईं तो यहां के पर्यटन से मिलने वाली विदेशी मुद्रा भी आनी बंद हो जाएगी।[8] हालाकिं शेखावाटी में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए राज्य सरकार ने हैरीटेज सिटी योजना बनाई थी। कई कस्बों में हैरीटेज होटलों का निर्माण भी हुआ।

सामग्री और क्रियाविधि
साहित्य का अध्ययन, समाचार पत्रों में छपे महत्वपूर्ण लेख, कई हवेलियों का प्रत्यक्ष निरीक्षण, पत्रिका का भित्ति चित्रकला विशेषाँक, भित्ति चित्रों व हवेलियों की वर्तमान दशा का अवलोकन इत्यादि।
निष्कर्ष शेखावाटी की कलात्मक हवेलियाँ और उनमें बने भित्ति चित्र बहुत ही महत्वपूर्ण धरोहर है। इनकी सुरक्षा का भार भारतीय पुरातत्व विभाग को वहन करना चाहिये तथा भित्ति चित्रों से अलंकृत स्थापत्यों तथा चित्रों को पुरातात्विक सामग्री घोषित करके उनका विनष्टीकरण अवैध घोषित किया जाना चाहिये। महत्वपूर्ण चित्रों को रंगीन पारदर्शी बनाकर उनका संचयन किया जाना चाहिये तथा जैसे भी सम्भव हो राष्ट्रीय स्त्तर पर इन भित्ति चित्रों व हवेलियों की सुरक्षा की जानी चाहिए। आम जनता को इनकी सुरक्षा, संरक्षण, महत्व के प्रति जागृतकर इस अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखना है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. गगनांचल : भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नयी दिल्ली, वर्ष 28, अंक 2, अप्रेल-जून, 2005, पृ.सं. 10 2. केचर, श्री उपध्यान चन्द्र एवं क़ादरी, श्री ज़िया उल हसन, हवेलियों का शहर बीकानेर, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2012, पृ.सं. 9 3. प्रकाश, टी. सी. : शेखावाटी वैभव, झुंझुनूं, 1993, पृ.सं. 140-141 4. आकृति : भित्ति चित्रकला विशेषाँक, राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर , अप्रेल-जून 1995, पृ.सं. 18-19 5. राजस्थान पत्रिका, सीकर, रविवार, 18 अप्रेल, 2021, पृ. सं. 11. 6. आकृति : शेखावाटी की भित्ति चित्रकला विशेषाँक, राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर, अक्टूबर-दिसम्बर 1996, पृ. सं. 14-15 7. राजस्थान पत्रिका, सीकर, रविवार, 18 अप्रेल, 2021, पृ. सं. 11. 8. Written Hindi News - Jee Hindusthan Web Team, 12, Feb. 2020. https://zeenews.india.com/hindi/zee-hindustan/utility-news/historical-havelis-of-shekhawati-rajasthan-are-being-ruined-due-to-lack-of-care/639569