P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VII , ISSUE- VIII November  - 2022
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
अकबरकालीन ग्रन्थ हम्जानामा एवमं रज्मनामा के चित्र
Pictures of Hamjanama and Rajmnama of Reign of Akbar
Paper Id :  16935   Submission Date :  06/11/2022   Acceptance Date :  20/11/2022   Publication Date :  25/11/2022
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पवन कुमार जाँगिड.
सह आचार्य
चित्रकला
श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
किशनगढ़,राजस्थान, भारत
सारांश भारतीय संस्कृति में अकबर कालीन ग्रन्थों का अहम् योगदान रहा है। अकबर ने 1556 ई० में सिंहासन धारण किया। उसने सभी धर्मों का समन्वय करके दीन--इलाही का आरम्भ किया तथा उसके समाश्रित चित्रकारों ने भी कई शैलियों के समन्वय से एक नई शैली चलाई। अकबर का चित्रकला के प्रति आकर्षण आरम्भ से ही रहा था। अकबर कालीन अबुलफजल की आईने अकबरी के अनुसार इसके दरबार में सौ से ज्यादा ऐसे चित्रकार थे जो संसार के श्रेष्ठ चित्रकारों से टक्कर ले सकते थे। इस समय साधारण चित्रकारों की तो कुछ गिनती ही न थी। यदि हम मुगल काल और ग्रन्थचित्रकला के बारे में बात करें तो तैमूरलंग के अभियानों के फलस्वरूप ईरान और चीन के मध्य सांस्कृतिक विनिमय की पुनरावृत्ति हुई। उसने राज्य विस्तार ही नहीं किया बल्कि ललित कलाओं को भी प्रोत्साहन दिया। उसके और उसके वंशजों के संरक्षण में समरकन्द और हिरात में ग्रन्थचित्रकला का विकास हुआ। भारत के संदर्भ में देखे तो मुगल शासक बाबर यद्यपि स्वयं चित्रकार नहीं था तथापि चित्रकला से उसे बड़ा प्रेम था। उसने अपनी आत्मकथा में ईरान के विख्यात कलाविद् बिहज़ाद के चित्रों की अत्यन्त मार्मिक समीक्षा की है। उसके पुत्र हुमायूँ का जीवन भी उसी की तरह ही संघर्षों में बीता, फिर भी वह कुछ समय कला और संस्कृति के लिए अवश्य निकाल लेता था। इस कार्य का श्रेय उसके पुत्र अकबर को मिला। 1556 ई. में अकबर का गद्दी पर बैठना सर्वथा नवीन युग के समारम्भ का सूचक है। अकबर कालीन चित्रकला को चार भागों में बाँटा जा सकता है- 1. चित्रपट 2. ग्रन्थचित्र 3. व्यक्तिचित्र और4. भित्तिचित्र । अकबरकालीन चित्रों के विषय अभारतीय कथाओं जैसेहम्जानामा, खमसा निजामी आदि भारतीय कथाओं तथा रामायण, रज्मनामा, नलदमन, अनवार-ए-सुहैली आदिऐतिहासिक घटनाओं तथा दरबारी जीवन,राजपरिवारों की जीवनी, शाहनामा, अकबरनामा, तैमूरनामा, बाबरनामा, जामीउत-तवारीख, तारीखे-अल्फी आदि सामाजिक तथा व्यक्तिचित्रोंशबीहों पर आधारित रहे हैं। अकबर स्वभाव से अत्यन्त उदार और कलाप्रेमी था। वह धार्मिक कट्टरता से मुक्त था। देश की संस्कृति और कलाओं से अब तक अधिकांश सुल्तान विमुख रहते थे, अकबर ने इन कलाओं को अपनाकर एक नवीन युग का सूत्रपात किया। उसकी इस उदार नीति ने दोनों संस्कृतियों के समन्वय का मार्ग उन्मुक्त कर दिया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद There has been an important contribution of Akbar period texts in Indian culture. Akbar assumed the throne in 1556 AD. He started Deen-Elahi by coordinating all religions and his affiliated painters also started a new style by coordinating many styles. Akbar's attraction towards painting was there since the beginning. Akbar's mirror of Abul Fazl According to Akbari, there were more than a hundred such painters in his court who could compete with the best painters of the world. At this time there was no count of ordinary painters. If we talk about the Mughal period and icon painting, the campaigns of Timurlang resulted in a repetition of the cultural exchange between Iran and China. He not only expanded the state but also encouraged fine arts. Under the patronage of him and his descendants, scriptural painting flourished in Samarkand and Herat. If seen in the context of India, the Mughal ruler Babur, although he was not a painter himself, had great love for painting. In his autobiography, he has made a very poignant review of the paintings of Iran's famous artist Bihzad. His son Humayun's life was also spent in struggles like him, yet he used to take out some time for art and culture. The credit for this work went to his son Akbar. Akbar's sitting on the throne in 1556 AD is an indicator of the beginning of a completely new era. Akbar's painting can be divided into four parts- 1. Paintings 2. Texts 3. Portraits and 4. graffiti. The subjects of Akbar's paintings are non-Indian stories such as Hamzanama, Khamsa Nizami etc. Indian stories such as Ramayana, Razmnama, Naldaman, Anwar-e-Suhaili etc. Historical events and court life, biography of royal families, Shahnama, Akbarnama, Timurnama, Baburnama, Jamiut-Tawarikh, Tarikhe-Alfi etc. social events. And the portraits have been based on Shabihs. Akbar was very generous and art lover by nature. He was free from religious fanaticism. Till now most of the sultans were alienated from the culture and arts of the country, Akbar started a new era by adopting these arts. This liberal policy of his opened the way for the coordination
मुख्य शब्द ग्रन्थ, आत्मकथा, चित्रावली, शबीह, हस्तलिखित पोथियां, चित्रशालाएँ, मकतबखाना, अजायबघर, पुस्तकालय, सांस्कृतिक विनिमय।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Epics, Texts, Autobiographies, Paintings, Shabihs, Manuscripts, Galleries, Maktabkhanas, Museums, Libraries, Cultural Exchange.
प्रस्तावना
अकबर कालीन ग्रन्थों में हम्जानामा और रज्मनामा चित्रावलियों का अहम् योगदान रहा है। 1556 ई० में तेरह वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठने के पश्चात् उसने सभी धर्मों का समन्वय करके दीन-इलाहीका आरम्भ किया इसके आश्रित चित्रकारों ने कई शैलियों के समन्वय से एक नई शैली चलाई। आईने अकबरी के अनुसार अकबर के दरबार में सेकड़ों ऐसे चित्रकार थे जो विश्व के श्रेष्ठ चित्रकारों में गिने जाते थे। साधारण चित्रकारों की तो कुछ गिनती ही न थी। अकबर स्वभाव से अत्यन्त उदार और कलाप्रेमी था। वह धार्मिक कट्टरता से मुक्त था। देश की संस्कृति और कलाओं से अब तक अधिकांश सुल्तान विमुख रहते थे, अकबर ने इन कलाओं को अपनाकर एक नवीन युग का सूत्रपात किया। उसकी इस उदार नीति ने दोनों संस्कृतियों के समन्वय का मार्ग उन्मुक्त कर दिया। अकबर की चित्रकला, स्थापत्य और संगीत में भी बड़ी रुचि थी। उनके समय में चित्रकला ने बड़ी प्रगति की है। अकबर महाकाव्यों, कथाओं में रूचि रखता था इसलिए उसके काल के चित्र रामायण, महाभारत और फारसी महाकाव्य पर आधारित है। अकबर द्वारा शुरू की गई सबसे प्रारम्भिक पेंटिंग परियोजनाओं में से तूतीनामा महत्वपूर्ण थी, जो कि 52 भागों में विभाजित फारसी के गद्य और पद्य दोनों प्रकार के ग्रन्थों को चित्रित किया गया और इस प्रकार बहुत से चित्र बने। अकबर कालीन चित्रकला को चार भागों - (1) चित्रपट, (2) ग्रन्थचित्र, (3) व्यक्तिचित्रऔर (4) भित्तिचित्र में बाँटा जा सकता है। अकबरकालीन चित्रों के विषय अभारतीय कथाओं, भारतीय कथाओं, ऐतिहासिक घटनाओं तथा दरबारी जीवन, राजपरिवारों की जीवनी, सामाजिक तथा व्यक्तिचित्रों (शबीहों) पर आधारित रहे हैं। चित्रित ग्रन्थों में हम्जानामा और रज्मनामा चित्रावली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अकबरकालीन चित्रशैली की अपनी कुछ विशेषताए हैं जो इसे अन्य चित्र शैलियों से पृथक् करती हैं। इन चित्रों की मूल प्रेरणा ईरानी होते हुए भी इनकी आत्मा भारतीय है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य अकबरकालीन ग्रन्थ हम्जानामा एवमं रज्मनामा के चित्रों का अध्ययन का करना है।
साहित्यावलोकन

अकबर कालीन ग्रन्थ हम्जानामा और रज्मनामा के चित्र के सन्दर्भ में किये गये इस शोध के महत्वउद्देश्यों तथा शोध पद्धति का विवरण प्रस्तुत करते हुए इस विषय पर लिखे गये साहित्य एवं चित्रों का अवलोकनविश्लेषण व मूल्याकंन किया गया है। डॉगिर्राज किशोर अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तक कला और कलम (1978)में अकबर कालीन ग्रन्थ हम्जानामा और रज्मनामा के चित्रों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत किया है। वाचस्पति गैरोला की पुस्तक भारतीय चित्रकलाडॉरीता प्रताप की पुस्तक भारतीय चित्रकला व मूर्तिकला का इतिहास (2021)  डॉरामनाथ की पुस्तक मध्यकालीन भारतीय कलाएं एवं उनका विकास (1973) आरअग्रवाल की पुस्तक कला विलास (1995) भारतीय चित्रकला का विवेचनडॉममता सिंह की पुस्तक भारतीय चित्रकला का इतिहास (2017) लोकेश चन्द शर्मा की पुस्तक भारत की चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास (1999) आदि से प्राप्त महत्वपूर्ण जानकारी इस शोध पत्र में उपयोगी रही है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तावित शोधपत्र की अध्ययन विधि मुख्य रूप से व्याख्यात्मक व विवेचनात्मक है। जो पुस्तकों, संग्राहलयों के चित्रों, साहित्यिक चित्रों, शैलियों के पैन्टिग सैट, कैटलाग, आर्ट वेबसाईट आदि का आश्रय लिया गया है।
विश्लेषण

मध्यकाल में भारतीय चित्रकला में लघु चित्रों के सृजन के साथ में ग्रंथ चित्रण परम्परा अत्यधिक विकसित रही। लघु चित्रों एवं ग्रंथ चित्रों का निर्माण भारत के विभिन्न क्षैत्रों में पहले से ही होता आया है। भारतीय चित्रकला में मुगल बादशाह अकबर कालीन ग्रन्थों का अहम् योगदान रहा है। अकबर 1556 ई. में सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने सभी धर्मों का समन्वय करके दीन-ए-इलाहीका आरम्भ किया तथा उसके समाश्रित चित्रकारों ने भी कई शैलियों के समन्वय से एक नई शैली चलाई। अकबर का चित्रकला के प्रति आकर्षण आरम्भ से ही रहा था। अकबर कालीन अबुलफजल की आईने अकबरी के अनुसार इसके दरबार में सौ से ज्यादा ऐसे चित्रकार थे जो संसार के श्रेष्ठ चित्रकारों से टक्कर ले सकते थे। इस समय साधारण चित्रकारों की तो कुछ गिनती ही न थी। यदि हम मुगल काल और ग्रन्थचित्रकला के बारे में बात करें तो तैमूरलंग के अभियानों के फलस्वरूप ईरान और चीन के मध्य सांस्कृतिक विनिमय की पुनरावृत्ति हुई। उसने राज्य विस्तार ही नहीं किया बल्कि ललित कलाओं को भी प्रोत्साहन दिया। उसके और उसके वंशजों के संरक्षण में समरकन्द और हिरात में ग्रन्थचित्रकला का विकास हुआ।[1] भारत के संदर्भ में देखे तो प्रथम मुगल शासक बाबर यद्यपि स्वयं चित्रकार नहीं था तथापि चित्रकला से उसे बड़ा प्रेम था। उसने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में ईरान के विख्यात कलाविद् बिहज़ाद के चित्रों की अत्यन्त मार्मिक समीक्षा की है। बाबर के पुत्र हुमायू का जीवन भी उसी की तरह ही संघर्षों में बीता, फिर भी वह कुछ समय कला और संस्कृति के लिए अवश्य निकाल लेता था। इस कार्य का श्रेय उसके पुत्र अकबर को मिला। 1556 ई. में अकबर का गद्दी पर बैठना सर्वथा नवीन युग के समारम्भ का सूचक है। अकबर स्वभाव से अत्यन्त उदार और कलाप्रेमी था। वह धार्मिक कट्टरता से मुक्त था। देश की संस्कृति और कलाओं से अब तक अधिकांश सुल्तान विमुख रहते थे, अकबर ने इन कलाओं को अपनाकर एक नवीन युग का सूत्रपात किया। उसकी इस उदार नीति ने दोनों संस्कृतियों के समन्वय का मार्ग उन्मुक्त कर दिया। अकबर कलाओं का प्रेमी था। उसको प्रारंभ से ही चित्रकला, स्थापत्य और संगीत से काफी प्रेम था। उनकी संरक्षण में चित्रकला ने बड़ी उन्नति की है। अकबर महाकाव्यों, कथाओं में रूचि रखता था इसलिए उसके काल के चित्र रामायण, महाभारत और फारसी महाकाव्य पर आधारित है। अकबर द्वारा शुरू की गई सबसे प्रारम्भिक पेंटिंग परियोजनाओं में से तूतीनामा महत्वपूर्ण थी, जो कि 52 भागों में विभाजित फारसी के गद्य और पद्य दोनों प्रकार के ग्रन्थों को चित्रित किया गया और इस प्रकार बहुत से चित्र बने। अकबर कालीन चित्रकला को प्रमुख रूप से चार भागों में बाँटा जा सकता है जा निम्न है-

(1) चित्रपट

(2) ग्रन्थचित्र

(3) व्यक्तिचित्र

(4) भित्तिचित्र

अकबर ने अनेक भारतीय तथा इस्लामी पुस्तकों को उस समय चित्रित करवाया था। इनमें अनेक चित्र कपड़े पर बने हैं और आकार में काफी बड़े हैं। अन्य पुस्तकों में कागज पर बने चित्र लगाये गये हैं। अकबरकालीन चित्रों के विषय अभारतीय कथाओं (हम्जानामा, खमसा निजामी आदि), भारतीय कथाओं (रामायण, रज्मनामा, नलदमन, अनवार-ए-सुहैली आदि), ऐतिहासिक घटनाओं तथा दरबारी जीवन, राजपरिवारों की जीवनी (शाहनामा, अकबरनामा, तैमूरनामा, बाबरनामा, जामीउत-तवारीख, तारीखेअल्फी आदि) सामाजिक तथा व्यक्तिचित्रों (शबीहों) पर आधारित रहे हैं।[2] अकबर कालीन चित्रित ग्रन्थों में हम्जानामाऔर रज्मनामा चित्रावली निम्नानुसार है।

(1) हम्जानामा (किस्सा अमीर हम्जा1558-1573 ई.) अकबरकालीन समस्त ग्रन्थों में हम्जानामा चित्रावली बहुत महत्त्वपूर्ण है। अकबर की सरपरस्ती में जो बहुत बड़ा काम हुआ वह हम्जानामा की कथा को 14 जिल्दों में चित्रित किया गया और कुशल कलाकारों ने इस कहानी के 1400 सुन्दर चित्र बनाए। यह हज़रत मुहम्मद के चाचा अमीरहम्ज़ा के जंगी कारनामों की दास्तान है। यह सूती कपड़े के टुकड़ों पर चित्रित की गई थी। हम्जानामा के चित्र चित्रपट की श्रेणी में आते हैं। ये सवा दो फुट लम्बे और लगभग 2 फुट चौड़े हैं और सूती कपड़े पर भारतीय चित्रपटों की परंपरा में ही बनाए गए हैं। हम्ज़ानामा अकबर के युग की सबसे पहली कृति है। इसके चित्रों में ईरान की हिरातशैली का प्रभाव मिलता है फिर भी इनमें अपना एक निजत्व है जो निश्चय ही भारतीय कलाकारों के हाथों पाया है। वेषभूषा और पहनावा भारतीय है। आकृतियां गतिमान् और भावपूर्ण हैं। (चित्र-1) प्रकृति चित्रण में भारतीय फलफूल जैसे-केले, वट, पीपल, आम, और पशु-पक्षी जैसे हाथी, मोर आदि का चित्रण किया गया है। इसमें भारतीय देवी-देवताओं की छवियां भी मिलती है। श्री रायकृष्ण दास जीका मानना है कि इसे पूर्णतया अकबर ने ही चित्रित कराया था। इसमें बनाये कुछ चित्र भारतीय शैली के हैं। इस दास्तान की आश्चर्यजनक घटनाओं को आरम्भ से अन्त तक चित्रित कराया गया। प्रत्येक चित्र में सम्मुखभाग पर काजबीन (मुंशी)या ख्वाजा अताउल्लाह लिपिकने चित्रों पर विवरण लिखे हैं।[3] बिहजात के समान तूलिका वाले चित्रकार इस पुस्तक को तैयार करने के लिये नियुक्त किये गये और बाद में ख्वाजा अब्दुलस्समद शीराजीकी देखरेख में यह कार्य चलता रहा। अमीरहम्जा के चित्रों में फारसी प्रभाव अधिक है। आज इसके 150 चित्र उपलब्ध हैं, जिसे गुलूकने संगृहीत कर सन् 1925 ई. में वियना से छपवाया था। आज 61 चित्र वियना में 25 साउथ केनिंसगटन संग्रहालय, लंदन तथा 15 अमेरिका के विभिन्न संग्रहालयों में हैं। भारत में 6 चित्र हैं जिनमें 2 चित्र भारत कला भवन, वाराणसी, 2 मुम्बई, 1 हैदराबाद 1 व 1 बड़ौदा संग्रहालय में हैं।[4]  इस चित्रावली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

(1) कवचधारी व्यक्तियों को छोड़कर शेष पुरुषों का पहनावा भारतीय है। स्त्रियों का परिधान त्रिकोण दामन वाली लम्बी कुरती, ओढ़नी तथा पाजामा। यह पहनावा काश्मीरी है जो काश्मीर शैली के प्रभाव से मुगल शैली में आया।

(2) ये चित्र आलंकारिक न होकर घटना चित्र हैं जो हिरात शैली से भिन्न हैं।

(3) इनमें भीड़-भाड़ है तथा नाजुकपन भी नहीं है।

(4) इन चित्रों की रेखाओं में भारतीय ढंग की गोलाई देखी जा सकती है।

(5) एकचश्म चेहरों की अधिकता है, बड़ी-बड़ी मछली जैसी आंखें हैं।

(6) स्त्रियों की आकृतियाँ पूर्ण भारतीय हैं।

(7) प्रकृति का अंकन भारतीय तथा फारसी मिश्रित ढंग का है तथा उसमें मोर, पीपल, आम, केला, वट-वृक्ष, आदि का भी अंकन हुआ है ।

(8) आकृतियों को भाव-भंगिमाओं तथा वस्त्रों की फहरान आदि पर भारतीय गतिपूर्ण मुद्राओं का प्रभाव है।

(9) भारतीय ढंग के हाथियों का चित्रण हुआ है। कहीं-कहीं भारतीय वास्तु का भी दिग्दर्शन हुआ।

(10) कुछ देवताओं की छवियाँ भी अंकित की गई हैं जिन पर पाल शैली की परम्परा वाली काश्मीर शैली का प्रभाव है।

(11) इस चित्रावली में प्रधान अंश काश्मीर शैली का है, शेष अंश राजस्थानी तथा ईरानी शैली के हैं।[5]

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इन चित्रों में ईरानी विषयवस्तु होते हुये भी अकबर की अन्तरात्मा सुलहकुलभारतीयनुगत विचारधारा से प्रभावित चित्रकारों ने भारतीय व ईरानी शैली को सम्मिश्रण के रूप में प्रस्तुत किया है। (चित्र सं.2)

हम्जानामा चित्रावली के चित्रकारों में तब्रेज निवासी मीर सैयद अली सफवी शैली का फारसी चित्रकार था। काबुल में मीर सैयद् अली तथा अब्दुस्समद शीराजी के निर्देशन में अनेक हिन्दू-मुसलमान चित्रकारों ने दास्तान-ए-अमीर हम्जा के चित्रों का निर्माण प्रारम्भ किया। इस पुस्तक के दृष्टान्त चित्रों की रचना कर (मीरसैयद् अली और अब्दुस्समद) अपने अथाह ज्ञान और अपरिमित साधना का परिचय दिया। किन्तु इसके कोई प्रमाण नहीं हैं कि इन दोनों ने भी इसके कुछ चित्र बनाये थे। ख्वाजा अब्दुस्समद शीराजी भारत में मुगल शैली के जन्मदाताओं में से एक था। वह फारसी सुलिपिकार एवं चित्रकार था। तैमूरनामा के एक उल्लेख के अनुसार हुमायू तथा अकबर ने उससे कला की शिक्षा ली। मआतिर-उल-उमराके लेखक शाह नवाजखानने लिखा है कि हम्जा चित्रावली के निर्माण में अकबर ने 50 से ज्यादा चित्रकार नियुक्त किये थे। पूर्व में मीर सैयद अली ने इसका निर्देशन किया, किन्तु बाद में ख्वाजा अब्दुस्समद के निर्देशन में यह कार्य पूर्ण हुआ। हम्जानामा के अधिकांश चित्र इसी के निर्देशन में बने थे। इसका एक प्रमुख शिष्य दसवन्त था।[6] अबुलफज्ल के विवरणानुसार दसवन्त कहार का लड़का था। सम्भवतः दसवन्त ने अमीर हम्जा के भी कुछ चित्र बनाये थे किन्तु वे अब उपलब्ध नहीं हैं। जो चित्र उपलब्ध हैं उनमें से कुछ चित्रों को दसवन्त के बनाये हुए सिद्ध करना बड़ा दुष्कर है।

(2) रज्मनामा (महाभारत का अनुवाद)अकबर ने 1574 ई. में फतेहपुर सीकरी में मकतबखाना (अनुवादघर)शुरू किया। अकबर ने महाभारत का रज्मनामा के नाम से फ़ारसी में अनुवाद कराया। अब्दुल कादिर बदायूँनीअकबर दरबार का संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान था। महाभारत का फारसी अनुवाद रज्मनामा के नाम से इसी के द्वारा हुआ था, जिसको पूरा करने में एक वर्ष का समय लगा और यह सन् 1582 ई. में पूरा हुआ। रज्मनामा की तीन प्रतियां है। प्रथम जयपुर अजायबघर में, दूसरी 1599 में तैयार जो वर्तमान में विविध संग्रहालय में रखी गई है और अंतिम रज्मनामा रहीम का है जो 1616 में पुरा हुआ था। रज्मनामा अपने चित्रों के कारण महत्वपूर्ण है। पहले अनुवाद (1584-1586) के दौरान मुश़फिक ने तस्वीरें बनाने का कार्य किया जिसके साथ महाभारत की कथा को समझने में सुविधा होती है। इस समय इस अनुवाद की एक नकल जयपुर शहर के महल अजायबघर में मौजूद है। इस किताब का दूसरा अनुवाद 1598 से 1599 के दौरान किया गया। इसमें 161 चित्र शामिल है। इस अनुवाद की कई नकल शाही खानदान के सदस्यों को तोहफे के तौर पर दी गई।[7] इसकी एक प्रति को 1588 में तीन जिल्दों में चित्रित किया गया (चित्र-3) अकबर का भारतीय आत्मा से लगाव का यह प्रबल उदाहरण है। लगभग 169 चित्र इसमें बनाये गये। इसके लिये करीब पचास चित्रकारों ने दिन-रात परिश्रम किया। चित्रों में भारतीय प्रभाव जम चुका था और ईरानी प्रभाव का लगाव छूटता जा रहा था। कर्नल हैन्डले ने अपनी एक पुस्तक में इसके 148 चित्र छापे थे इस ग्रन्थ के चित्रण कार्य के बीच में ही दसवन्त चितेरा पागल हो गया था और 1584 में उसने आत्महत्या कर ली थी। बसावन, लाल, तुलसी व मिस्कीन आदि चितेरों ने इस ग्रन्थ को चित्रित किया। मुहम्मदशाह ने इसे जयपुर के सवाई जयसिंह को भेंट कर दी थी। अब यह जयपुर के सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय के संग्रह में हैं।[8] अकबरकालीन रज्मनामा के अनुकरण पर कुछ अन्य शासकों ने भी रज्मनामा की सचित्र प्रतियाँ तैयार करायीं। इसकेचित्रों में से 24 चित्रों में दसवन्तचित्रकार ने कार्य किया। थी। उसका नाम तैमूरनामा के एक चित्र की अनुकृति पर तथा रज्मनामा के अनेक चित्रों पर है। दसवन्त द्वारा बनाया हुआ एक चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में भी सुरक्षित है। जयपुर रज्मनामा वाली प्रति के 21 चित्रों पर दसवन्त का नाम अंकित है, इन्हीं चित्रों से उसकी श्रेष्ठ कला शैली का अनुमान लगाया जा सकता है। दसवन्त ने भारतीय देवी. देवताओं तथा पूर्वजों का अंकन बहुत उच्च कोटि का किया है।

अकबरकालीन चित्रकार बसावन सोलहवीं शती के भारतीय चित्रकारों में पर्याप्त प्रतिभाशाली और महत्वपूर्ण कलाकार था। इसने भारतीय जीवन की बड़ी विविध झाँकी प्रस्तुत की है। तैमूरनामा तथा रज्मनामा में बसाबन और दसवन्त दोनों ही कलाकारों के बनाये चित्र हैं। बहारिस्ताने जामी के अतिरिक्त दाराबनामाको भी बसावन ने चित्रित किया था। बसावन ने लगभग चालीस वर्ष तक कार्य किया अतः अनुमान है कि उसने लगभग दो सौ चित्र बनाये होंगे। अकबरनामा में भी उसके चित्र हैं। सम्भवतः हम्जानामा में भी उसके चित्र रहे होंगे किन्तु किसी भी चित्र पर उसका नाम अंकित नहीं मिलता। इन चार प्रमुख चित्रकारों के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम भी बात है जो अकबर की चित्रशाला में कार्य करते थे। ये हैं -केसू (केसो), बाल, मुकुन्द, मिस्कीन, फर्रूखकलमाक, माधो, जगन, महेश, खेमकरन, तारा, साँवला, हरबन्स, राम, जगन्नाथ, धरमदास, नन्द ग्वालियरी, भीम गुजराती, शंकर, लछमन और अनन्त आदि।   

उपर्युक्त दोनो ग्रन्थों के अतिरिक्त अयार दानिस, अनवार ए सुहैली (पंचतंत्र के अनुवाद), रामायण, तारीखेखानदाने तैमूरिया, वाकआत बाबरी,अजायब-उल-मखलूकात, जफरनामा,नफहत-उल-उन्स, बहर-उल-हयात,तारीख-ए-अलफी,अकबरनामा, शाहनामा, नल-दमन (नल-दमयन्ती चरित्र), तारीख-रशीदी, दाराबनामा, खम्सा निजामी तथा बहारिस्ताने जामी आदि की चित्रित प्रतियाँ भी विभिन्न संग्रहालयों में हैं।[9] महाभारत, रामायण, हरिवंश, योगवाशिष्ठ और अथर्ववेद जैसे कई ग्रंथों का फ़ारसी से अनुवाद भी बादशाह अकबर ने कराया था। तारीख-ए-खानदान-ए-तिमूरिया’, ’जफरनामा’, ’अकबरनामा’, ’बाकयात बाबरीआदि ग्रन्थों में व्यक्ति चित्रों की भरमार है। अकबर के काल में बने चित्रों में अनेक ऐसे चित्र भी हैं जो उस समय के सामाजिक जीवन की झाँकी प्रस्तुत करते हैं, प्याऊ, पनघट, ऋषि-मुनियों का जीवन, किसान, गरीबों की झोंपड़ी, उत्सव आदि चित्रों में मुखरित हुये हैं जिसमें उस समय के खान-पान, सिंचाई व्यवस्था, कृषि कार्यों, जल-व्यवस्था तथा रहन-सहन के ढंग का पता चलता है।राय कृष्णदास जी के मतानुसार अकबर काल में लगभग बीस हजार चित्र बने। छिन्न चित्रों में राजा पृथु वाला चित्र जो भारत कला भवन बनारस संग्रहालय में है, बड़ा महत्त्वपूर्ण चित्र है। यह सभी ग्रन्थ दिल्ली-आगरा (फतेहपुर सीकरी) और लाहौर में अकबरी पोथीखाने की शोभा थे लेकिन विदेशी आक्रमणों तथा मुगल शहंशाहों की लापरवाही से अधिकांश ग्रन्थ काल कवलित हो गये।

अकबर ने अपने समय पुस्तकालय भी स्थापित कराया। अकबर के पुस्तकालय में लगभग तीस हजार पुस्तकें थीं जिनमें सैकड़ों ग्रन्थ चित्रित थे। इससे उस महान् सम्राट ने चित्रकला को कितना प्रोत्साहन दिया इसका अनुमान लगाया जा सकता है। अकबर ने सन् 1558 से 1572 ई. तक आगरा में, सन् 1572 से 85 ई. तक फतेहपुर सीकरी में, सन् 1585 से 1601 ई. तक लाहौर में और सन् 1603 से 1605 ई. तक पुनः आगरा में चित्रशालाएँ स्थापित की। अकबर का शाही पुस्तकालय भी तीन विभिन्न बड़े नगरों में स्थापित रहा- आगरा, दिल्ली और लाहौर। अकबर ने अलग से एक कला-निकेतनकी भी स्थापना कर रखी थी, ’जिसका अध्यक्ष अब्दुस्समद था। यहाँ वह प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी संग्रह को दिखाता था। संस्कृत और फारसी हस्तलिखित पोथियों के दृष्टांत चित्रों को अकबर ने बड़ी रुचि से तैयार करवाया। यह ग्रन्थ धार्मिक, शास्त्रीय, काव्य, काव्यनीति, इतिहास, नाटक, जीवनी आदि सभी विषयों के थे। पोथी चित्रण पूर्ण करने के लिये तीन व्यक्तियों की जरूरत होती थी। उसमें पहला कलाकार शेर लिखता था, दूसरा चित्रकारी करता तथा तीसरा उसमें रंग भरता था। ऐसे कलाकारों में कातिब मीर अली, मुलतान अली, मुहम्मद हुसैन, उस्ताद गफ्फारी, अब्दुलरहीम आदि चित्रकारों के नाम प्रमुख हैं।

अकबरकालीन चित्रशैली की अपनी कुछ विशेषताए हैं जो इसे अन्य चित्र शैलियों से पृथक् करती हैं। इन चित्रों की मूल प्रेरणा ईरानी होते हुए भी इनकी आत्मा भारतीय है। हम्जानामा के पश्चात् यह कला ईरानी और भारतीय विशेषताओं को आत्मसात् करके एक बड़े ही सुन्दर रूप में प्रकट होती है। इसके आलेखन में गति और अभिव्यंजना है। आकृतियां भावपूर्ण हैं। चित्रों में केवल रेखाओं की ही कला नहीं है अपितु उनमें सजीवता और उन्मुक्तता है। ईरानी आलंकारिकता को भारतीय विषयों, वेषभूषा, पशु-पक्षी, प्रकृति और वातावरण के चित्रण के साथ-साथ घोल मेल लिया गया है। अकबर के चित्रकार अधिकांशतः विशुद्ध भारतीय रंगों का प्रयोग करते हैं, जैसे सिन्दूर, पेवड़ी, लाजवर्दी, हिंगुल, जंगाल, गेरू, हिरोंजी, रामरज, हरा ढाबा एवं नील आदि। इन रंगों के मिश्रण से बड़े सुन्दर चमकदार और मीने की तरह दमदमाते चित्र बनाए जाते थे। उनके ऊपर प्रभा के लिए स्वर्णकारी की जाती थी। अबुल फज़ल का यह कथन सही प्रतीत होता है कि अकबर के राज्यकाल में रंगों के मिश्रण में विशेष प्रगति हुई है।


चित्र सं.1 हम्जानामा का चित्र


चित्र सं. 2 हम्जानामा के चित्र (हम्जानामा का एक चित्रित पृष्ठ, मिहिरदुख्त बाण छोड़ती हुई, अकबरी शैली (1564-1569) श्रीमती मारिया हर्मन स्वीट्जरलैण्ड के संग्रंह में)


चित्र सं.3 रज्मनामा


चित्र सं. 4 ब्रुक्लन अजायबघर में रज्मनामा का एक पन्ना

निष्कर्ष अकबर के शासन काल में शिक्षा, संस्कृति व कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ। अकबर के शासन काल तक उत्तरी भारत में एक विस्तृत एवं समृद्ध साम्राज्य स्थापित हो चुका था और साथ-साथ इसी सुखद एवं शान्त वातावरण में ललित कलाओं का भी दिनों-दिन विकास हुआ। अनेक कलाकारों साहित्यकारों, संगीतकारों का यहाँ जामावड़ा था। अकबर चित्रकला को आमोद और अध्ययन के ध्येय से प्रोत्साहन देता था। राष्ट्रीय सम्राट की अपनी कल्पना के अनुरूप भारतीय संस्कृति के सभी अंगों को संरक्षण देना वह अपना कर्तव्य भी समझता था।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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