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बून्दी-कोटा भित्ति चित्रों में नारी चित्रण | |||||||
Female Representation in Bundi-Kota Mural Paintings | |||||||
Paper Id :
16963 Submission Date :
2022-12-12 Acceptance Date :
2022-12-22 Publication Date :
2022-12-25
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सारांश |
बून्दी-कोटा भित्ति चित्रों में नारी चित्रण विशेष रूप से दिखाई देता है। उसका कारण ‘‘सृष्टि का उद्गम कामिनी है और कामिनी ही कला को जन्म देती है।‘‘ विषय के कई पहलु हैं, जिनमें नारी अपना स्थान संजोये है। भारतीय पुरा मनीषियों ने प्राचीन काल से ही नारी को सम्मान दिया है और देवी की भांति स्तुति की है। धर्मग्रन्थों में मनु ने जहाँ नारी को ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता‘‘ कहकर उसको गरिमा दी है। वहीं दूसरी ओर कलाकार की अमर तुलिका से नारी पक्ष अछूता नहीं रहा। ‘‘नारी‘‘ को संसार का बहुमूल्य रत्न कहा गया है और कला की रसानुभूति को ‘‘ब्रह्मानन्द सहोदर‘‘ की उपमा दी गयी है।
भारतीय संस्कृति में नारी को विविध रूपों में अभिव्यंजित किया है। हाड़ौती कलाकारों ने अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिये नारी को अनन्त रूपों में रूपायित किया है। हाड़ौती के महल, हवेलियाँ, मन्दिर इन भित्ति चित्रों से भरे पड़े हैं, जो भारतीय चित्रकला के अंतर्गत भित्ति चित्रों में नारी अंकन के लिए अपना विशेष महत्व रखते हैं।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Female depiction is especially visible in Bundi-Kota mural paintings. The reason for this is "The origin of creation is female and only female gives birth to art." There are many aspects of the subject, in which women have cherished their place. Indian ancient sages have given respect to woman since ancient times and praised her like a goddess. In the scriptures, where Manu has given dignity to the woman by saying "Yatra Naryastu Pujyante Ramante Tatra Devta". On the other hand, the female side did not remain untouched by the artist's immortal brush. "Woman" has been called the precious gem of the world and the feeling of art has been given the likeness of "Brahmanand Sahodar". In Indian culture, women have been expressed in various forms. To present the proof of their superiority, the Hadoti artists have transformed women in infinite forms. Hadoti's palaces, mansions, temples are full of these wall paintings, which have their own special significance for depicting women in wall paintings under Indian painting. |
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मुख्य शब्द | ब्रह्मानन्द सहोदर, रमणीयता, विलासप्रियता, प्रेमालाप, प्रणयोत्सव, ब्रजबालाओं, बारहमासा, संयोग-वियोग। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Brahmanand Brother, Beauty, Luxury, Courtship, Love Festival, Brajbalaon, Perennial, Coincidence-Separation. | ||||||
प्रस्तावना |
बून्दी-कोटा भित्ति चित्रों में नारी चित्रण विशेष रूप से दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति में नारी को विविध रूपों में अभिव्यंजित किया है। हाड़ौती कलाकारों ने अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिये नारी को अनन्त रूपों में रूपायित किया है।
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अध्ययन का उद्देश्य | भित्ति चित्रों में रंग संयोजन, विषय की विविधता व पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक रूपों का अध्ययन। |
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साहित्यावलोकन | वाचस्पति गैरोला- भारतीय चित्रकला,
डॉ. गिर्राज किशोर अग्रवाल- कला और कलम,
डॉ. बद्री नारायण वर्मा- कोटा भित्ति चित्रांकन
परम्परा, डॉ. अलका श्रीवास्तव- हाड़ौती
चित्रकला में नारी अंकन आदि पुस्तकों का अध्ययन कर विषय से सम्बन्धित जानकारी
प्राप्त की। |
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मुख्य पाठ |
कला की प्रेरणा सौन्दर्य है और यही प्रेरणा रचना का मूल स्रोत है। शैली ने
एक स्थान पर लिखा है। जगत के सौन्दर्य पर आवरण पड़ा है, कला उसे उठा देती है। विश्व के
प्रत्येक पदार्थ के भीतर गुप्त या सुप्त सौन्दर्य को कलाकार ही अभिव्यक्ति देता
है। कला के सदृश्य कलाकार की सौन्दर्य चेतना भी सर्वव्याप्त है, जो हाड़ौती के कलाकार के मन में
बसी है। हाड़ौती के राजप्रासादों में हवेलियों अथवा मन्दिरों में अपने सुन्दर रूप
से कलाकार ने साहित्य की मृदुतम भावनाओं को अपनी प्रेरणा बनाया है। ‘‘सृष्टि का उद्गम कामिनी है और कामिनी ही कला को जन्म देती है।‘‘ भारतीय कलागत विषय के कई पहलू
हैं, जिनमें नारी अपना उच्च स्थान संजोये है। भारतीय पुरा मनीषियों ने प्राचीन काल
से ही नारी को सम्मान दिया है और देवी की भांति स्तुति की है। धर्मग्रन्थों में
मनु ने जहाँ नारी को ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता‘‘ कहकर उसको गरिमा दी है। वहीं दूसरी ओर कलाकार की अमर तुलिका
से नारी पक्ष अछूता नहीं रहा। ‘‘नारी‘‘ को संसार का बहुमूल्य रत्न कहा गया है और कला की रसानुभूति को ‘‘ब्रह्मानन्द सहोदर‘‘ की उपमा दी गयी है। जब कला और
नारी का परस्पर मिलन हो तो मणिकांचन संयोग ही कहा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में नारी को विविध रूपों में अभिव्यंजित किया है। हाड़ौती कलाकारों ने अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिये नारी को अनन्त रूपों में रूपायित किया है। ‘‘संस्कृति की सुन्दरता नारी है, प्रकृति की गीतिका नारी है, ऋतुओं की रमणीयता नारी है, नारी के रूप की मधुरता को देव की सुन्दरता, चेतना को वरदान श्री प्रेम की प्रतिमूर्ति और प्राणों की छटपटाहट नारी ही कला की सृष्टि, सुन्दरता और सर्वांगीणता को ही अपनी तुलिका से नारी के विविध रूपों से संजोकर उसे सौन्दर्य की एक मात्र अधिष्ठात्री देवी बना दिया है। नारी का विविध रूपों में चित्रण हाड़ौती की कलाकृतियों में नारी चित्राभिव्यक्ति जिसे कलाकार ने अद्भुत रचना, कौशल के आधार पर प्रस्तुत किया
है, अतुलनीय सौन्दर्य की परिचायक
है। उन्होंने अपने भित्ति चित्रों में राजस्थानी नारी के अप्रतिम सौन्दर्य एवं
उदान्त भावों को समग्र रूप से चित्रांकित किया है। हाड़ौती का नारी निरूपण अथवा नारी चित्रण मानवीय तथा सैद्धांतिक दोनों ही रूपों
में हुआ है। बून्दी-कोटा क्षेत्र में कलाकार ने नारी, सौन्दर्य का परिचय राज महल की
रानी के रूप में तो कहीं भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में किया है, तो कहीं कृष्ण की गोपिकाओं के
रूप में, कहीं नायिका रूप में तो कहीं सखी रूप में चित्रित है। हाड़ौती की नारी वीरता और उत्कृष्टता धर्मनिष्ठता और सौन्दर्य शास्त्रीय
भावनाओं को घोषित करती है। यहाँ नारी को विलासप्रियता और शौर्य जीवन की द्योतक ही
नहीं माना अपितु सम्पूर्ण नारी जाति का प्रतीक माना है। जिसके समुचित आधार पर ही
समाज का विकास हो सकता है। कलाकार ने नारी अंकन करते समय संयमपूर्वक अंग-प्रत्यंग
के प्रदर्शन में अपनी चिरसधी तुलिका का प्रयोग किया है। उसने देवी हो या देव कन्या, राजकुमारी हो मर्हिषी, गोपिकायें या परिचारिका, नायिका हो या दासियां कहीं भी
कला की दृष्टि से अधर्म अंकन नहीं है। सर्वत्र सुन्दरी ही है। तत्कालीन नारी के
शरीर पर आज की अपेक्षा लज्जा निवारणार्थ अल्प वस्त्र होने पर भी उसकी गरिमा विनय
आश्चर्यचकित कर देती है। इस नारी सौन्दर्य के अंकन को देखकर पाशविक कामनाओं का
जागरण नहीं होता है। प्रेमालाप, प्रणयोत्सव, संयोग-वियोग के दृश्य, ब्रजबालाओं एवं गोप-गोपियों जैसे चित्र भी सांसारिक होते
हुये भी अश्लीलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यहाँ चित्रकार ने जैसा देखा वैसा
चित्रण राजाओं की अनुमति पर किया है। वैसे तत्कालीन रानी स्वतंत्र थी, राज सभाओं में इनका आवागमन था।
नारी हावभाव, दृष्टि और हाथ की मुद्रा वाणी से भी अधिक वाचक हो उठी है। कला का वास्तविक
सौन्दर्य वहीं निखर उठता है, जहाँ पर सौन्दर्य को प्रकट करते मुख के सरलता भरे भाव मन मोहक होते हैं। पारिवारिक अंकन इस क्षेत्र में नारी का पत्नी रूप अत्यधिक साज-सज्जा युक्त चित्रित हुआ है।
अधिकतर श्रृंगार पक्ष को लेकर जो चित्र बने हैं एवं बारहमासा के जो चित्र बने हैं, वहाँ भवनों में अंदरूनी कक्षों
में पति-पत्नी का चित्रण हुआ है। श्रृंगार करती हुई विवाहिता, माता के रूप में नारी का चित्रण
माँ पर्व चित्रण में छोटी बालिकाओं के सिर पर भी हम गणगौर की मूर्तियाँ सजी हुई
पाते हैं। बहिनों एवं सहेलियों को दृश्य में हाथ डालकर घूमते व नाचते हुए चित्रित
किया गया है। नारी का सामाजिक स्वरूप नारी का सामाजिक स्वरूप हर क्षेत्र में भली-भाँति एवं विस्तृत रूप में चित्रित
किया गया है। रानियों, सेविकाओं, दासियों आदि के साथ-साथ आम नागरिकों में स्त्रियों का दैनिक जीवन चित्रित हुआ
है। राहगीर को पानी पिलाती स्त्रियाँ, कुंए पर पानी भरती स्त्रियाँ, चम्बल में नहाती हुई स्त्रियाँ, रानियों पर पंखा लिए हुए हवा
करती हुई, चँवर डुलाती हुई एवं मोरछल करती हुई सेविकाएँ चित्रित हैं। रानियों के अंकन
में दासियों के समूह के समूह चित्रित हुए हैं। कहीं उनके समक्ष मनोरंजन प्रस्तुत
करते हुए, कहीं उनका श्रृंगार करते हुए, कहीं उन्हें विभिन्न खेल खिलाते हुए, कहीं उनके दरबार में अतिथियों का स्वागत करते हुए सेविकाओं
का चित्रण हुआ है। बूँन्दी-कोटा शैली की रानियों में केवल उनके आकार का ही अन्तर है। अन्यथा
संयोजन व कलात्मक पक्ष के साथ-साथ भावात्मक पक्ष एक जैसा है। रानियों के जीवन पर
यह सामाजिक रूप अंकन अत्यधिक प्रकाश डालता है। राजकीय जीवन शैली को यह पक्ष उजागर
करता है। यहाँ तक की रानियों को मदिरा पान करते दिखाया गया है। नायिका भेद, अत्यन्त ही कोमलता से है। सूर
सागर कविप्रिय, रसिक प्रिय, गीत गोविन्द, महाभारत यहाँ तक कि युद्ध क्षेत्र में कृष्ण अर्जुन का मोह भंग करने हेतु दिया
गीता का उपदेश भी भित्ति पर चित्रित है। गीत गोविन्द का सार, राधा और कृष्ण के प्रतीक रूप
पुराण के विभिन्न अवतार विशेषकर चित्रित हुए हैं। हाथियों की होली, दीपोत्सव, विजयदशमी की सवारी, गणगौर विसर्जन, त्यौहार सभी कुछ बूँन्दी-कोटा
की भित्तियों पर संयोजित है। कलात्मक पक्ष का कोई बिन्दु यहाँ नारियों के अंकन में अछूता नहीं रहा। कोमल
रेखाएँ हैं या पारदर्शिता छाया का अंकन अधिक नहीं है। चित्रों को स्थान के अनुसार
संयोजित किया है। अतः बून्दी-कोटा के इन चित्रों में विषयगत समानता नहीं है। आलों
आदि में बने चित्र लघु चित्रों का बड़ा रूप लगते हैं। चित्र अधिकतर द्वि-आयामी ही
प्रतीत होते हैं। एक ही चित्र में सभी आकारों पर वास्तविक छाया प्रकाश नहीं है।
बून्दी व कोटा दोनों स्थानों पर रंग योजना में विशेष अन्तर नहीं है। बून्दी की
हवेलियों में कला से प्रभावित आभार मिलते हैं। जबकि झाला हवेली कोटा के चित्र मुगल
व यूरोप तक का प्रभाव लिए है। नारियों को दोनों ही स्थानों पर अत्यधिक साज-सज्जा
युक्त चित्रित किया गया है। सीमित रंगों के प्रयोग में ही चित्रकार ने नारी के
वस्त्र एवं आभूषणों को अत्यधिक कलात्मकता से व स्पष्टता से अंकित किया है।
नायक-नायिका को यहाँ राधा-कृष्ण के प्रतीक रूप में चित्रित किया गया है। यहाँ नारी
आकृतियों का कद यद्यपि कोटा शैली में छोटा व मोटा दिखाया गया है, परन्तु उनका चेहरा गोल आँखे
कटाक्ष युक्त, कटिक्षीण सुदीर्घ नासिका और उनके लाल होठों की शोभा देखते बनती है। हल्के हरे
पीले एवं नीले रंगों की इसमें बाहुल्यता देखने को मिलती है। वहीं बून्दी शैली के
चित्र विश्व प्रसिद्ध माने जाते हैं। भौगोलिक परिवेश के चित्रण में सुन्दरता की
दृष्टि से देखें तो बून्दी शैली के चित्र किशनगढ़ शैली के बराबर दृष्टिगत होते हैं।
जहाँ कोटा शैली विश्व भर में अपने शिकार चित्रों के लिए प्रसिद्ध है और इस
प्रसिद्धी का मूल कारण यहाँ का भौगोलिक परिवेश है। बून्दी-कोटा के नारी अंकनों में
दोनों क्षेत्रों के भौगोलिक वातावरणों का प्रभाव दिखता है। जहाँ बून्दी में
नारियाँ एक महल से दूसरे महल तक जुलूस के रूप में सवारी दृश्यों में दृष्टिगत होती
है और सांस्कृतिक पर्व मनाती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। वहीं कोटा के चित्रों में
नारी राजाओं के साथ पेड़ पर बंधे मचान पर भी दिखाई देती हैं। बून्दी-कोटा भित्ति चित्रों के स्थान
बून्दी-कोटा क्षेत्र भित्ति चित्रों के संग्रह में अत्यधिक धनी है। बून्दी के
छत्र महल, बादल महल, जनाना महल, रंग महल (चित्रशाला) आदि ये महल फर्श से समस्त भित्तियों को ढ़कते हुए छतों के
कंगूरे व छत सहित सम्पूर्ण रूप से चित्रों से आच्छादित हैं। इन महलों के अतिरिक्त
बून्दी में अनेक हवेलियों में चित्रण हैं। कई मन्दिरों में जिनमें जैन मंदिर भी
सम्मिलित हैं। इसी प्रकार कोटा में बड़ा महल, अर्जुन महल, लक्ष्मी भण्डार के भित्तियों पर चित्र बने हैं। हवेलियों की
श्रृंखला में बड़े देवता जी की हवेली में भी चित्र बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त नगर
द्वार मन्दिर आदि स्थानों पर भी चित्र बने हैं। यहाँ के नारी अंकन के विविध पक्ष न
केवल बून्दी-कोटा वरन् राजस्थानी एवं भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में अपनी अलग
पहचान रखते हैं। |
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निष्कर्ष |
भारतीय चित्रकला के अंतर्गत राजस्थानी चित्रकला में बूँदी-कोटा शैली की जो विशेषताएँ हैं, उनमें इन भित्ति चित्रों में नारी अंकन का विशेष महत्व है। क्योंकि कलाकार ने नारी विषय के विविध पक्षों को इन चित्रों में स्थान दिया है। कहीं रानी के रूप में तो कहीं दासी के रूप में और देवीय रूप में कहीं कृष्ण के साथ राधा, शिव के साथ पार्वती, राम के साथ सीता। लेकिन आगन्तुकों के इन चित्रों को छू कर देखने से इनकी वास्तविकता धुंधली होती जा रही है। इनकी सुरक्षा की दृष्टि से इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जिससे यह अमूल्य धरोहर सुरक्षित रहे। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. वाचस्पति गैरोला - भारतीय चित्रकला
2. डॉ. गिर्राज किशोर अग्रवाल - कला और कलम
3. डॉ. बद्री नारायण वर्मा - कोटा भित्ति चित्रांकन परम्परा
4. डॉ. अलका श्रीवास्तव - हाड़ौती चित्रकला में नारी अंकन
5. डॉ. रमेश सहाय सक्सेना - बून्दी के भित्ति चित्रों का अभिलेखात्मक अध्ययन
6. डॉ. एम.एल. शर्मा - कोटा का इतिहास |