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आधुनिकीरण के दौर में बदलता नारी का स्वरूप | |||||||
Changing Nature of Women in The Era of Modernization | |||||||
Paper Id :
16970 Submission Date :
2022-12-12 Acceptance Date :
2022-12-22 Publication Date :
2022-12-25
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सारांश |
आधुनिकीकरण के दायरे में स्त्री स्वतंत्रता की कोई सीमा आस-पास नहीं दिखाई पड़ती। वे रूढ़ियों और अंधविश्वासों के घेरों को तोड़ रही है। प्रगतिवादी विचार उन्हें आन्तरिक रूप में जहाँ विस्फोटक बना रहे हैं, वहीं बाह्य रूप में मुखर। वे अपने को गढ़ने में पारिवारिक और सामाजिक परम्पराओं व संस्कारों को तोड़ने में किंचित् मात्र भी हिचकती नहीं है। आत्मकेन्द्रित होना आज आधुनिक होना है और वैज्ञानिक सोच ने उन्हें जहाँ आधुनिक और प्रगतिशील बनाया है वहीं औद्योगीकरण ने आधुनिक बनाते हैं। इस आधुनिक सोच में अच्छे व खराब का प्रश्न नहीं उठता है जो व्यक्ति को भाए, अच्छा लगे, वैयक्तिक सुख में सहायक बने, उसे स्वीकार करते है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि स्त्री स्वातंत्र्य और महिला सशक्तिकरण की अवधारणा आधुनिकता के नाम पर एक सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन है। भविष्य में इस परिवर्तन के अनेक पड़ाव देखने को मिलेंगे, अभी तो स्त्री विकास और प्रगति के प्रथम चरण से बाहर नहीं निकली है। इसीलिए अभी उनके कार्यों, सोच व दृष्टि और जीवन-शैली का मूल्याकंन करना अभी जल्दबाजी है। अभी तो संघर्ष की कई मंजिलें है जिन्हें उन्हें जीतना है अपने व्यक्तित्व और सम्मान के लिए।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the realm of modernization, there is no visible limit of women's freedom nearby. She is breaking the shackles of stereotypes and superstitions. While progressive thoughts are making them explosive internally, they are vocal externally. They don't hesitate even a bit to break family and social traditions and rituals to build themselves up. To be self-centred is to be modern today and where scientific thinking has made them modern and progressive, industrialization makes them modern. In this modern thinking, the question of good and bad does not arise, whatever pleases the person, feels good, becomes helpful in personal happiness, it is accepted. From this point of view, it can be said that the concept of women's freedom and women's empowerment is a socio-economic and cultural change in the name of modernity. Many stages of this change will be seen in the future, yet women have not come out of the first phase of development and progress. That is why it is too early to evaluate his works, thinking and vision and lifestyle. Right now there are many stages of struggle which they have to win for their personality and respect. | ||||||
मुख्य शब्द | महिला, अधुनिकीकरण, परिवर्तन, स्वतंत्रता, स्वरुप, प्रस्थिति। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Women, Modernization, Change, Independence, Nature, Status. | ||||||
प्रस्तावना |
आधुनिकता वास्तव में विचारों की परिपक्वता, लिंगभेद की अस्वीकार्यता, चिन्तन की सकारात्मक निरन्तरता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, कर्म की वस्तुनिष्ठता, विचारों की सृजनात्मकता, पहनावे की शालीनता, समझ में समन्वयकारिता, भाषा की समृद्धता और व्यवहार की संवेदनशीलता है। जबकि आज हमारे समाज ने इसे भारतीय परम्पराओं और मर्यादाओं की उपेक्षा, बिना कारण व बेमतलब की तड़क-भड़क, हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं की उपेक्षा, नर-नारी की स्वच्छन्दता व अतर्कपूर्ण समानता, शारीरिक सम्बन्धों में उन्मुक्तता, अच्छा बनने के स्थान पर केवल अच्छा दिखने को महत्ता, जो कुछ हमारा है उससे पलायन तथा जो कुछ पश्चिम का है उसे स्वीकार करना ही मान लिया है। तभी तो हमारे ‘‘आधुनिक‘‘ बन जाने के बाद भी भ्रूण हत्याओं, बलात्कार, दहेज उत्पीड़न, तलाक, महिलाओं से छेड़छाड़, बिना शादी के सहवास, शादी पूर्व संभोग जैसी घटनाएँ तेजी से बढ़ रही है।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य आधुनिकीरण के दौर में नारी के बदलते स्वरूप का अध्ययन करना है। |
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साहित्यावलोकन | हम संयुक्त परिवार, स्नेह से प्रभावित त्याग, परोपकार, मकान में घर, आकांक्षा सेपूर्व लायकी एवं सामाजिक बंधन की परम्पराओं को त्यागते जा रहे है। प्रश्न उठता है आधुनिकता की इस अधकचरी अवधारणा के सहारे क्या हम वास्तव में ही 21वीं शताब्दी में दौड़ लगा पाए? क्या वर्ष 2022 तक विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा होने का हमारा सपना इससे पूरा हो पाया? क्या पश्चिम से प्रतियोगिता का यही सही तरीका है?[1] आधुनिकता की वास्तविक अवधारणा, विकास से सृजित अपराधों, सामाजिक पिछड़ेपन में विकास के योगदान, युवाओं की बदलती व बिगड़ती सेाच, नशीली आदतों, सामाजिक व पारिवारिक विखण्डन तथा नये जमाने की समस्याओं का विशेष रूप से विश्लेषण किया जाना चाहिए जिससे सिद्ध हो सके कि आधुनिकता के सहारे हम पर्दा-प्रथा, दहेज, बेमेल विवाह, ईगो-प्रेरित तलाक, शोषण एवं उत्पीड़न आधारित लिंग-भोद, परिवारों का विखण्डन करती समानता, उत्तेजित व आत्मग्लानि पैदा करती आजादी को कम करने का प्रयास कर रहे है। समय के साथ चलना, भूतकाल के आदर्शों, मर्यादाओं, परम्पराओं व मान्यताओं को बिना सोचे-समझे छोड़ देना नहीं है। वास्तविक अर्थो में देखा जाए तो श्रेष्ठ को स्वीकार करना व अपनाना तथा निकृष्ट को फटकारना वत्यागना ही आधुनिकता है।
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मुख्य पाठ |
आधुनिकता की अवधारणा आधुनिकीकरण एक परिवर्तनशील प्रक्रिया है। ‘आधुनिक‘ काल सापेक्ष शब्द है जिसका अर्थ देश और काल के अनुसार बदलता
रहता है। हमने इसे आदिमयुगीन समाज से लेकर आज तक बदलते देखा है। जो अतीत में था वह
वर्तमान में नही है, जो वर्तमान में है वह भविष्य में नहीं होगा। इस प्रकार से युगों-युगों की प्रगति
और विकास की प्रक्रिया ने आधुनिकीकरण को एक गतिमान अर्थ दिया है जिसके विभिन्न आयाम
है। वह मात्र तर्क, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास तक ही सीमित नहीं है। डॉ. गोपीकृष्ण प्रसाद आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के सम्बन्ध
में विचार प्रकट करते हैं कि, ‘‘आधुनिकीकरण वह प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप पारम्परिक समाज रूपान्तरित होता
है और उसमें आधुनिक की विशेषताएँ विकसित होती है, अर्थात् आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था
में मौलिक परिवर्तन की सूचक हैं। यह परिवर्तन समाज की सभी संरचनाओं-आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक में परिलक्षित होता है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
तब आरम्भ होती है जब समाज में नई खोज की तथा पूर्व स्वीकृत विचारों, अवस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाने की प्रवृत्ति विकसित होती
है, जब प्रबुद्ध और आम लोग नैतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत आचरण के मूल्य और प्रतिमान के बारे
में नये आधारों पर चुनाव करने की ओर प्रवृत्त होते हैं। सारांश यह है कि आधुनिकीकरण
की प्रक्रिया समाज की नई छवि, नई संरचना, नये विकास, नये विकल्प जाने की प्रवृत्ति की द्योतक होती है।‘‘[2] डॉ. रमेश कुन्तल लिखते हैं, ‘‘आधुनिक हमारे विश्व-ऐतिहासिक विकास का एक चरण भी, जहाँ वर्तमान में एक विशेष समाज की ‘‘यूरोपियन‘‘ अथवा ‘‘आइडियोलॉजिकल‘‘ ने संरचना के मॉडल पर हम विभिन्न संस्कृतियों की कसौटी
पर कसकर ऑस्वाल्ड स्पेग्लर की तरह, उनकी जीवन लीला का चरित्रांकन तक कर डालते हैं। अन्ततोगत्वा
आधुनिक एक अन्वेषण भी है जो हमें मिथक से यथार्थंता की मात्रा का बर्हिबोधि भी समझाता
है ।‘‘[3] वास्तव में जब-जब कभी मनुष्य की आस्थाओं को तार्किक चेतना
ने झकझोरा और अपदस्थ किया है, तब-तब आधुनिकता का जन्म हुआ है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि आधुनिक और वर्तमान
युग ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया है जो निरन्तर विकास की ओर अग्रसर होती है। इस प्रक्रिया
में विभिन्न काल-खण्डों के अनुभव, तर्क, वैज्ञानिक आविष्कार, चेतना और यांत्रिक विकास साथ-साथ चलते है। नीलिमा सिन्हा का मानना है कि, ‘‘आधुनिकतावाद की इस चिन्तन धारा का उदय यूरोपीय पुनर्जागरण
काल में यूरोप की ही भूमि पर ही हुआ। आने मौखिक रूप में आधुनिकताबाद का यह चिन्तन व्यक्तिवाद, यंत्रवाद, परिवर्तनवाद, तर्कनावाद जैसी प्रवृत्तियों का व्यक्त-अव्यक्त रूप है, जो परम्परा इतिहास, अध्यात्म, स्थिरता, रूढ़ि तथा बाह्य यथार्थ के समस्त निश्चित आकारों का विरोध
करता है।‘‘[4] आधुनिकीकरण विकास की प्रक्रिया है जिसमें तर्क और विज्ञान
की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह दोनों ही ऐसे समाज की रचना करते हैं जो पूर्व समाज की
विचारधारा, कार्यशैली, जीवनशैली आदि को उलट-पलट देते हैं और नई संरचना को गढ़ने
की तैयारी करते हैं। इस संरचना में नये मूल्य, आदर्श, चिन्तन सोच और मानसिकता का जन्म होता है जो सामूहिक व
परिवार के विचारों से हटकर वैयक्तिक बन जाता है। आधुनिकता ऐसा शब्द है जो हर किसी को आकर्षित करता है।
आज हर व्यक्ति आधुनिक दिखना चाहता है। आम भारतीय आधुनिकता का अर्थ केवल पश्चिमी पहनावे, स्वच्छन्द आचरण, पुरानी परम्पराओं और मान्यताओं का विरोध, अंग्रेजी भाषा और भारतीयता के विरोध से ही लेता है। इसी
से प्रभावित होकर हमारे समााज में शराब, सिगरेट, प्रेम विवाह, तलाक, एकल परिवार, विवाहेत्तार यौन सम्बन्ध, सहनृत्य, स्वच्छन्द यौनाचार आदि प्रवृत्तियाँ तेजी से बढ़ती जा रही
है। पश्चिमी नृत्यों, गानों और फिल्मों की युवा पीढ़ी दीवानी होती जा रही है। अंग्रेजी माध्यम से स्कूलों, ब्यूटी पार्लरों, फैशन परेडो, सौन्दर्य प्रतियोगिताओं, शराब पार्टियों, सेक्स पत्रिकाओं, विषम लिंग वालों से मित्रता का प्रचलन रफ्तार पकड़ रहा
है। स्त्रियों में शराब, सिगरेट और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन, विवाहित जोड़ों में विनिमय यौन सम्बन्ध, संभ्रान्त वेश्यावृत्ति, अश्लील साहित्य और दृश्य-श्रव्य साधनों के प्रति घृणा
कम होती जा रही है। प्रश्न उठता है कि क्या इन सबको ही आधुनिकता कहते है? और यदि यही आधुनिकता है तो क्या ‘‘परिवर्तन ही जीवन है‘‘ व ‘‘दौड़ने का दूसरा नाम जीवन है‘‘ के आदर्श को मानकर इसे अपनाना चाहिए। आधुनिकता वास्तविक रूप से विचारों में होनी चाहिए, इसका मतलब छुआछूत, दहेज-प्रथा, नारी उत्पीड़न, लिंग-भेद, पर्दा प्रथा, अनावश्यक दिखावा, बेमेल विवाह जैसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रयण करना है।
आधुनिक व्यक्ति से जाति प्रथा, साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, क्षेत्रीयता, भाषायी संकीर्णता के विरोध किये जाने की अपेक्षा की जाती
है, लेकिन हमारी वास्तविकता क्या है? हर मामलों में हमारा आचरण दोहरा है। हम आधुनिक बनना नहीं
चाहते हैं बल्कि दिखना चाहते है। हमारे समाज का दुर्भाग्य ही है कि दहेज की बुराई संभ्रान्त, पढ़े-लिखे और सुसंस्कृत कहे जाने वाले लोगों में ही अधिक
बढ़ती जा रही है। दहेज के खुले बाजार में भारतीय प्रशासनिक सेवा, सी.ए., डॉक्टर्स, लेक्चरर, इंजीनियर जैसे अधिकारियों अमरीकी ग्रीन कार्डधारकों राजनीतिज्ञों
के रिश्तेदारों आदि की खरीद की बोली ऐसे ही तथा कथित आधुनिक लोग लगाते हैं। दहेज उत्पीड़न, मनमुटाव और तलाक के मामले ऐसे ही परिवारों में ज्यादा
बढ़ रहे हैं। दिखावे की आधुनिकता के लिए ऐसे परिवारों में ही नारी को शराब पीने, मांसाहार को अपनाने, पराये मर्द के साथ नाचने, स्वच्छन्द विचारों वालो की पार्टियों में हिस्सा लेने
और पर्दे की ओट में पता नहीं क्या-क्या करने को करने को मजबूर किया जाता है? ऐसे ही घरों में देवर-भाभी, जीजा-साली बल्कि रिश्ते के भाई-बहिन के सम्बन्ध तक विकृत
होते जा रहे हैं। भावना और संवेदना की शून्यता यहाँ ही ज्यादा महसूस की जाती है। भारत में आधुनिकता बगैर सोचे-समझे एक सामयित फैशन के रूप
में समाज में प्रवेश कर गई है। इससे सामाजिक सरंचना में जहाँ परिवर्तन आया है, वहीं स्त्री और पुरूष की सोच और मानसिकता में बदलाव आने
प्रारम्भ हो गये हैं। इनकी भूमिका व प्रस्थिति में संघर्ष प्रारम्भ हुए हैं। परिवार
के सदस्यों की भूमिकाएँ बदलने लगी और समाज आधुनिकता के भ्रम पर कहीं गहरे रूप में विघटित
होने लगा। इसी संदर्भ में हम देखते हैं कि आधुनिकीकरण ने महिला समस्याओं को भी उत्पन्न
किया है। विगत कई दशकों से स्त्री स्वतंत्रता को लेकर घमासान सा मचा हुआ है और महिला
सशक्तिकरण ने एक आन्दोलन का रूप ले लिया है । लेकिन प्रश्न यह है कि क्या स्त्री स्वतंत्रता
और महिला सशक्तिकरण महिलाओं की सभी समस्याओं का हल है ? हमें उचित तरीके से नारी मुक्ति का अर्थ तलाश करना होगा।
नारी मुक्ति का अर्थ आधुनिक संदर्भ में कदापि यह नहीं है कि वह हर पारिवारिक, सामाजिक व पति, पिता, भाई आदि के बंधन से मुक्त होकर जीवन जिये। इस प्रकार की
प्रवृत्ति यदि विकसित होती है तो निश्चित रूप से आधुनिकीकरण वरदान नहीं अभिशाप के रूप
में जाना जायेगा। एशिया सोशल फोरम ‘‘आधुनिकता एक विमर्श‘‘ के संदर्भ में उचित ही कहते हैं कि ‘‘आधुनिकता का संदर्भ बिन्दु यूरोप है तथा सभी गैर यूरोपीय
आधुनिकताएँ यूरोपीय मॉडल से अभिप्रेरित हुई। यूरोप में आधुनिकता का आगमन गैर-यूरोपीय
देशों के लिए उपनिवेश काल की पदचाप बनी। इन आदर्शों की आड़ में यूरोप ने अफ्रीका और
एशिया को राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तरों पर गुलाम बनाया।‘‘ निःसन्देह यह कहा जा सकता है कि यह पाश्चात्य देशों की
गहरी साजिश है कि, एशिया के देशों के आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में आधुनिकता के नाम पर
ऐसी सेंध लगाई जाए कि परिवार, व्यक्ति, समाज, युवक और युवती स्वदेशी संस्कृति
और मर्यादा को त्याग कर आधुनिक जीवन-शैली को ओढ़ ले। डॉ. विजय अग्रवाल लिखते हैं, ‘‘आधुनिकता ने हमारी परम्पराओं पर चोट अवश्य पहुँचाई है, किन्तु वे विलुप्त नहीं हुई है। आज भी सामाजिक संगठन, पारिवारिक संबंध, धार्मिक आस्था, भाग्यवादी दृष्टिकोण आदि कुछ ऐसे ही तथ्य है, जिनमें परम्परा की छाप खोजी जा सकती है। सनातन परम्पराओं
एवं आधुनिकता के मध्य द्वन्द्व एक निरन्तर अभ्यास है।‘‘[5] मैं यहीं कहना चाहूँगी कि यह द्वंद अच्छे अथवा बदलाव
के मध्य घटित होता है जिसे हम समाज में खुले रूप में देख सकते हैं। पाश्चात्य-संस्कृति, आधुनिकता के नाम पर, हमारे समाज पर जिस तरह हावी है उसे देखकर हम सिहर उठते
हैं। निःसन्देह आधुनिकता की अंधी दौड़ में महिलाएँ समाज के शिखर पर पहुँची है पर उनका
पराभव भी कम नहीं हुआ है। एडवर्ड सईद आधुनिकीकरण का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं-‘‘आज की दुनिया में निर्मम पण्यीकरण (कमॉडीफिकेशन) और विशिष्टीकरण
(स्पेशलाइजेशन) के प्रश्न को उठाना समस्त सांस्कृतिक संवाद पर अमेरिकी वर्चस्व के कारण
विशेषज्ञता (एक्सपर्टीज) प्रोफेशनलिज्म पर प्रश्न चिन्ह लगाना है। हमारी दृष्टि खंडित
और हमारा मनोबल क्षीण होता गया है। मानव इतिहास में शक्ति और विचारों का साथ-साथ इतना
विशाल हस्तक्षेप एक संस्कृति द्वारा दूसरी संस्कृतियों पर शायद ही कभी इतने प्रभावशाली
ढंग से हुआ है, जितना अमेरिका द्वारा दूसरे देशों पर हो रहा है। विशिष्ट और पृथक्कारी ज्ञान का
अभूतपूर्व विस्फोट हमारी आज की स्थिति के लिए आंशिक रूप से दोषी है। ज्ञान की इस प्रकार
का विभाजन हैं सक्षम और प्रबुद्ध बनाने के बदले अशक्त और असमर्थ बनाता है।‘‘[6] स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय संस्कृति, सोच व मानसिकता में तीव्रता से परिवर्तन आए। मध्यम परिवार
जहाँ पनपे वहीं एक नवीन धनाढ्य वर्ग भी बना जिसने यूरोपीय संस्कृति को आँखें मूंद कर
ओढ़ना आरम्भ कर दिया। यह प्रगतिवादी लिबास में आधुनिक बन रहे हैं। धनी वर्ग पहले से
ही प्रगतिशील था, इन्हें हर आधुनिक परिवर्तन जो पाश्चात्य देशों की खिड़की से आता है, स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है। इसमें स्त्री-पुरूष
दोनों शामिल है। निम्न वर्ग के लोग भी प्रतिस्पर्धा में है कि वे भी पिछड़े न समझे जाएँ, उनके परिवार में भी आधुनिक परिवर्तनों को सरलता से देखा
जा सकता है।[7] इसे एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की संज्ञा दी जा सकती है जिसमें आधुनिकीकरण
का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई पड़ता है। आधुनिकीकरण उसी फैशन की छाया है जिसे हममें से
अधिकांश उसे बिना सोचे-समझे अपना रहे है क्योंकि दूसरे अपना रहे हैं, इसीलिए अपना रहे हैं।[8] |
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निष्कर्ष |
आधुनिकीकरण के दायरे में स्त्री स्वतंत्रता की कोई सीमा आस-पास नहीं दिखाई पड़ती। वे रूढ़ियों और अंधविश्वासों के घेरों को तोड़ रही है। प्रगतिवादी विचार उन्हें आन्तरिक रूप में जहाँ विस्फोटक बना रहे हैं, वहीं बाह्य रूप में मुखर। वे अपने को गढ़ने में पारिवारिक और सामाजिक परम्पराओं व संस्कारों को तोड़ने में किंचित् मात्र भी हिचकती नहीं है। आत्मकेन्द्रित होना आज आधुनिक होना है और वैज्ञानिक सोच ने उन्हें जहाँ आधुनिक और प्रगतिशील बनाया है वहीं औद्योगीकरण ने आधुनिक बनाते हैं। इस आधुनिक सोच में अच्छे व खराब का प्रश्न नहीं उठता है जो व्यक्ति को भाए, अच्छा लगे, वैयक्तिक सुख में सहायक बने, उसे स्वीकार करते है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि स्त्री स्वातंत्र्य और महिला सशक्तिकरण की अवधारणा आधुनिकता के नाम पर एक सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन है। भविष्य में इस परिवर्तन के अनेक पड़ाव देखने को मिलेंगे, अभी तो स्त्री विकास और प्रगति के प्रथम चरण से बाहर नहीं निकली है। इसीलिए अभी उनके कार्यों, सोच व दृष्टि और जीवन-शैली का मूल्याकंन करना अभी जल्दबाजी है। अभी तो संघर्ष की कई मंजिलें है जिन्हें उन्हें जीतना है अपने व्यक्तित्व और सम्मान के लिए। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. खण्डेला मानचन्द: ‘‘आधुनिकता और भारतीय समाज‘‘, आविष्कार पब्लिशर्स, डिस्ट्रीब्यूर्स, जयपुर, 2006
2. प्रसाद, डॉ. गोपीकृष्ण: ‘‘विकास का समाजशास्त्र‘‘, रावत पब्लिकेशन, नई दिल्ली, पृ. 97
3. सिंह, डॉ. वी.एन.: ‘‘समकालीन भारतीय समाज‘‘, अनुसंधान प्रकाशन, कानपुर, पृ 333
4. नीलिमा सिन्हा, आजकल, फरवरी, 2001, पृ. 7
5. सृजन संवाद में उद्धृत, मई, 2008, पृ. 78
6. सृजन संवाद में उद्धृत, मई, 2008, पृ. 78
7. आरजू मोजाम्मिल, हसन: ‘‘भारतीय महिला एवं आधुनिकीकरण‘‘ ए कॉमनवेल्थ पब्लिशर्स, नई दिल्ली, 2009, पृ. 11
8. श्रीनिवास, एम.एन.: ‘‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन‘‘ राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 1989। |