ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- X January  - 2023
Anthology The Research
पण्डित सत्यनारायण शास्त्री विरचित साहित्य का विवेचन
Interpretation of Literature Written by Pandit Satyanarayan Shastri
Paper Id :  16973   Submission Date :  2023-01-13   Acceptance Date :  2023-01-15   Publication Date :  2023-01-25
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परमेश्वर प्रसाद कुमावत
शोधछात्र
संस्कृत
संगम विश्वविद्यालय
भीलवाड़ा,राजस्थान, भारत
रजनीश शर्मा
शोध निर्देशक
संस्कृत
संगम विश्वविद्यालय
भीलवाड़ा, राजस्थान, भारत
सारांश
इस शोध पत्र में अजयमेरु वास्तव्य कविकुल शिरोमणि पंडित सत्यनारायण शास्त्री द्वारा लिखित विपुल साहित्य का विवेचन किया गया है। पण्डित सत्यनारायण शास्त्री जी ने मानव कल्याण को ही अपने काव्य का मुख्य आधार माना है परिणाम स्वरूप उनके द्वारा लिखित साहित्य वर्तमान परिपेक्ष्य में बहु उपयोगी सिद्ध हुआ है । इस शोध पत्र में शास्त्री जी द्वारा लिखित श्रीचन्द्रशेखर-आजादमहाकाव्यम्, नागकन्या सुलोचना, गीतिगौरवम्, संस्कृतदोहासप्तशती, भारतकुवलयम्, मेवाड़मार्तण्डः, प्रकीर्णसूक्तमौलिकम् जैसे उनके प्रसिद्ध साहित्य का विवेचन हैं जो साहित्य जगत की अनमोल धरोहर है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In this research paper, the extensive literature written by Kavikul Shiromani Pandit Satyanarayan Shastri has been discussed. Pandit Satyanarayan Shastri ji has considered human welfare as the main basis of his poetry, as a result the literature written by him has proved to be very useful in the present context. In this research paper, Shastri ji's famous literature like Srichandrashekhar-Azadamahakavyam, Nagkanya Sulochana, Geetigauravam, Sanskritdohasaptshati, Bharatkuvalayam, Mewadmartandah, Prakirnasuktamoulikam is discussed, which is a priceless heritage of the literary world.
मुख्य शब्द स्वतन्त्रता, शूराः, विकलां, भृशं, दुरन्ता, समीहते, भालकं, उदियाय, भूतले, राष्ट्रस्य, सद्यः, पुरुधर्मः, परितः, परीतः, कुल्या, जज्वाल, पत्या, रम्भादिभिः, कुले, कार्पण्यासक्तजना, काशाय, कटु, विदुषाम्, अरे प्रतापिन्, कुटिलः, क्षुधि, सार्धद्वयं।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Literature analysis of Pandit Satyanarayan Shastri.
प्रस्तावना
आदि काल से ही भारतीय ग्रन्थों एवं काव्यों का उद्देश्य “सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय” की भावना से ओत प्रोत रहा है। चाहे वे वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, पुराण, रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थ तथा कालिदासादि महाकवियों द्वारा विरचित रघुवंश, कुमारसम्भवम् आदि अर्वाचीन साहित्य ग्रन्थ ही क्यों न हों। उन्ही सिद्धान्तों को अपना आदर्श मानते हुये भारत भूमि के सुरम्य प्रदेश राजस्थान के हृदय अजमेर (अजयमेरु) नगर में संस्कृत साहित्य जगत के एक कलम मनीषि पण्डित सत्यनारायण शास्त्री ने संस्कृत साहित्य को प्राचीन एवं अर्वाचीन दोनों काव्यविधाओं के द्वारा अलंकृत किया है। शास्त्री जी की कृतियों के मूल विषय भारत की अखण्डता, मनोवृत्ति पर नियन्त्रण, सनातन धर्म की अखण्डता एवं पवित्रता, राजस्थान का गौरव, दहेज प्रथा, भगवद्भक्ति आदि रहे हैं। शास्त्री जी की कृतियों का नाम एवं उनका सामान्य परिचय नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य
पंडित सत्यनारायण शास्त्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रकाश में लाना तथा उनके द्वारा लिखे गये साहित्य के द्वारा विचारों का संप्रेषण समाज तक पहुंचाना जिससे राष्ट्रहित में समाज में संस्कारवान, देशभक्त नौजवान पीढ़ी का निर्माण हो सके।
साहित्यावलोकन

पंडित सत्यनारायण शास्त्री जी द्वारा लिखी गई श्रीसंस्कृतदोहासप्तशती एवं साहित्यसुधासौहित्यम् दोहा छंद में निबध है। दोहा छंद संस्कृत का मूलछंद है। संस्कृत साहित्य में दोहा छंद पर प्रेमनारायण विरचित दोहावलीकवितावलीरामचरितमानसडॉक्टर शिव सागर त्रिपाठी रचित श्री रामचंद्रायणं सुंदरकांडम् एवं स्वर्गीय भट्ट मथुरानाथ शास्त्री प्रणीत बिहारी के दोहों पर संस्कृत साहित्य में प्रगति हुई है।

मुख्य पाठ

पण्डित सत्यनारायण शास्त्री कृत साहित्य -

1. गीतिगौरवम् (गीतिकाव्यम्)

2. मनोवृत्तिसुधारम् (रूपकम्)

3. निम्बार्कोदय (खण्डकाव्यम्)

4. श्रीचन्द्रशेखरम् (महाकाव्यम्)

5. मेवाडमार्तण्डः

6. सत्यनारायणव्रतकथा (राधेश्यामीयरागनिबद्धा)

7. यौतुककौतुकम् (एकाङ्किकाव्यम्)

8. राष्ट्रकेसरीवीरशिवाजिः (एकाङ्किकाव्यम्)

9. नागकन्यासुलोचना (हरिगीतिकाछन्दोनिबद्धा)

10. संस्कृतदोहाशतकम्

11. कटुसत्यम् (खण्डकाव्यम्)

12. भारतकुवलयम् (गद्यकाव्यम्)

13. रहीमदोहावलिः (संस्कृतदोहा छन्द में)

14. परशुरामदोहावलिः (संस्कृतदोहा छन्द में)

15. संस्कृतदोहासप्तशती (संस्कृतदोहा छन्द में)

16. साहित्यसुधासौहित्यम् (संस्कृतदोहा छन्द में)

पंडित सत्यनारायण शास्त्री के साहित्य का सामान्य परिचय-

1. श्रीचन्द्रशेखर-आजादमहाकाव्यम्-

इस महाकाव्य में 18 सर्ग हैं, तथा 1135 पद्यों में यह महाकाव्य पंडित प्रवर सत्यनारायण शास्त्री के द्वारा विरचित है। इस काव्य का प्रारंभ भारत के गुण गौरव वर्णन से प्रारंभ हुआ है तथा इस महाकाव्य में चंद्रशेखर आजाद के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु पर्यंत तक के समस्त घटनाक्रम का कथा रूप से वर्णन किया गया है। इस महाकाव्य में भारत राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए चंद्रशेखर आजाद के द्वारा किए गए संपूर्ण प्रयासों का वर्णन भी कवि के द्वारा किया गया है। जैसे- क्रांतिपत्र, गाडोदिया का दस्युत्व, काकोरीकांड, निग्रहप्रयास, साधुप्रवेश, दलसंघटन, साण्डर्सवध, उपराजयान की विस्फोट योजना, प्रायोपवेश यतींद्रनाथ की मृत्यु, न्यायाधिकरणाधीन अभियोग, न्यायिक निर्णय, भगवती चरण का निधन, चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु आदि घटना को क्रम रूप से कवि ने वर्णन किया है तथा इस काव्य में चंद्रशेखर आजाद का स्वतंत्रता के लिए जो प्रयास किए गए हैं उनका वर्णन किया गया है। यहां पर कवि ने काव्य में वीर रस का प्रयोग किया है, तथा करुण, श्रृंगार आदि रस भी अप्रधान रूप से यहां पर निरूपित किए गए हैं। कवि के द्वारा नायक चंद्रशेखर सर्वतो भावेन दिखाई देते हैं। कवि ने नायक का परिचय इस प्रकार दिया है। जैसे-

स्वतन्त्रता-वाप्तिसदैकलक्ष्यो,
मुदा धृतात्मासुविसर्गसर्गः ।
आसीत्सदैकोऽपि स वीतचिन्तो,
भवन्ति शूराः स्वबलावलम्बा ।।”[1]

इसी के  साथ इसमें और भी पात्र हैं। जैसे सुखदेव, यशपाल इत्यादि पात्रों का भी कवि ने इस महाकाव्य में वर्णन किया है।

इस काव्य की भाषा प्रसाद गुण से गुम्फित है तथा  लालित्यलावण्यमयी,मधुरमधुरा, कमनीयकोमलकांतपदावली से समन्वित है। विषयानुगामिनी व्याकरण नियमानुसार शुद्ध, सुपरिमार्जित और परिष्कृत है। इस महाकाव्य में अनुष्टुपछंद, आर्या, उपजाति, प्रहर्षिणी, रथोद्धता, भुजंगप्रयात, वसंततिलका, स्रग्विणी, स्वागता, शार्दुलविक्रीडित आदि छंदों का प्रयोग किया है। दशवें और 18 वें सर्ग में विविध छंदों का प्रयोग कवि के द्वारा किया गया है। कवि का सबसे प्रिय छंद उपजाति है। जिसका प्रयोग प्रथम सर्ग, द्वितीय सर्ग, त्रयोदश और चतुर्दश सर्ग में प्राप्त होता है। अलंकारों का प्रयोग स्वभाविक रीति से हुआ हैं कहीं पर भी विशेष प्रयोग इस महाकाव्य में नहीं हुआ है। जैसे-

हिंसास्त्री रूधिरपयः प्रपाणपुष्टा।
नृत्यन्ती व्यलसदलं निशाचरीव।
श्रीविष्णोः प्रलयविधायिकाऽपि वेला।
दृष्ट्वा तद्ह्यदि विकलां भृशं ललज्जे।।”[2]

इस पद्य में रूपक और उपमा चित्रण सहृदयों को बहु आनन्दित करता है। इसके अनन्तर कवि ने सूक्तियों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। जैसे-

मनस्विनो ह्यात्मबला भवन्ति[3]
अहो ! दुरन्ता खलु देवलीला[4]
भवन्ति शूराः स्वबलावलम्बा[5]
मर्तुः कः सरलतया समीहतेऽत्र[6]

इस महाकाव्य में प्रथम सर्ग में भारत का वैशिष्ट्य, तथा गुण महिमा, विशालता, विस्तीर्णता को सुंदर रूप से वर्णित किया गया है। इस काव्य में कवि ने अन्य महाकाव्यों की तरह प्राकृतिक वर्णन, युद्ध वर्णन इत्यादि नहीं किया है। किन्तु आजादइस विश्व विश्रुत चंद्रशेखर के जीवन का पंडित सत्यनारायण शास्त्री जी ने विशद रूप से वर्णन किया है। जैसे-

स्वतन्त्रइति चन्द्रशखरो,
नामधेयमविगेयमाप्तवान्।
उन्नयज्जननभूमिभालकं,
शूरसूरम् उदियाय भूतले।।[7]

राष्ट्र की स्वतंत्रता स्वातंत्र्य करण प्रधान साध्यीभूत तथा साधनस्वरूप क्रांति और उस क्रांति से सहायभूत साध्य का अधिगम किया है।

साध्यीभूतस्य राष्ट्रस्य क्रान्त्या साधनभूतया।
सद्यः स्वातन्त्र्यकरणं, पुरुधर्मः प्रकीर्तितः।।[8]

अनंतर कृषि बल से यह राष्ट्र सदा प्रकाशमान रहा है ऐसा कवि ने वर्णन किया है। जैसे-

कृषीवलानां हितकृद्भिरेभिः प्रशासनाथासवसुप्रणीतैः।
कुल्याव्रजैश्चापरबद्धबन्धैश्चकास्त्यपूर्वं परितः परीतः।।”[9]

इस महाकाव्य में सन्निहित जीवन चरित्र तथ्यों का तथा तत्सामायिक भारतीय दुर्दशा का तथा स्वातंत्रयाभिलाषी क्रांति दूतों की आत्माहुती मुख्य रूप से वर्णित है। इस महाकाव्य का मुख्य कथावस्तु चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी युद्धवीर का चारित्र्य प्रकरण ही प्रमुख उद्देश्य है।

2. नागकन्या सुलोचना-

नागकन्या सुलोचना यह खंडकाव्य महाकवि सत्यनारायण शास्त्री के द्वारा विरचित है। इस महाकाव्य की नायिका मेघनाद की पत्नी नागकन्या सुलोचना है। जो पति के साथ स्वर्गारोहण करती है। खंडकाव्य की कथावस्तु आनंद रामायण के सार कांड के 11 वें सर्ग से गोस्वामी तुलसीदास विरचित रामचरितमानस के लंका कांड से संबंधित है।

नागकन्या सुलोचना काव्य की कथा-

मेघनाद की मृत्यु के बाद नागकन्या सुलोचना श्री राम के पास जाती है वहां पर श्री राम से मेघनाद के साथ अपने लिए स्वर्गारोहण की याचना करती है। श्री रामचंद्र उसकी बात को स्वीकार करते हैं और अंत में वह नागकन्या सुलोचना पति मेघनाद के साथ मृत्यु स्वीकार करते हुए स्वर्ग लोक को प्राप्त होती है। इस काव्य में हरिगीतिका छन्द का प्रयोग हुआ है जिसका उल्लेख स्वयं कवि ने किया है। जैसे-

नत्वा गुरुं श्रीशारदामीश्वरसुतं लम्बोदरम् ।
हरिगीतिकाछन्दो निबद्धं, काव्यमारचये वरम्।।[10]

इस काव्य में भाषा सरल, सहज और परिष्कृत है। अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रीति से प्राप्त होता है। कवि की प्रमुख विशेषता काव्य का भाषा सौंदर्य ही है। इस काव्य के द्वारा कवि का व्याकरण दर्शन,न्याय दर्शन आदि शास्त्रों का ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से जाना जा सकता है। नागकन्या सुलोचना का पति के साथ जलन दृश्य भी दिखाया गया है। जैसे-

धूम्रस्फुलिङ्गजवेन सह, जज्वाल सज्वालोऽनलः।
तत्राऽपन्नभसस्तदा, सुमराशिरिन्दुरिवोज्ज्वलः।।
सा सङ्गता पत्या तदा, नाकङ्गतायशसाऽऽवृता।
धन्याऽऽलि ! चेत्थं सत्कृता, रम्भादिभिः पतिदेवता।।[11]

इस खंडकाव्य के द्वारा कवि ने नागकन्या सुलोचना के चरित्र को विस्तार रूप से प्रकाशित करने का प्रयास किया है।

3. गीतिगौरवम्-

महाकवि पंडित सत्यनारायण शास्त्री ने गीतिगौरवम् काव्य में अपने गीत काव्य संग्रह को प्रकाशित किया है। इस काव्य में भारती संस्कृत मासिक पत्रिका में पूर्व प्रकाशित जितने भी गीत हैं उन सब का संकलन करके कवि ने उनको एक साथ प्रकाशित किया है। यहां पर 53 गीतों का संग्रह किया गया है। जिसमें 26 गीत भक्ति परक हैं और अन्य गीत राष्ट्र तथा भारत भूमि, कालिदास आदि विषय पर है। प्रायः सभी गीत हिंदी भाषा के चलचित्र गीतों को आधार करके हैं। काव्यालीशीर्षक में श्री कृष्ण भगवान विषयक काव्याली जैसे-

रासरसरत्नाकरं, श्रीरम्यराधामाधवम् ।
यामुने कूले चरन्तं, नौमि शौरि यादवम्।।[12]
राष्ट्र रक्षण शीर्षक के गीत का सौंदर्य जैसे-
राष्ट्रान्तरीय पारवश्य-पाशपीडिता ।
सन्नेतृभिः स्वराष्ट्रगौर्विमुक्तिमापिता।।[13]
गजल गीतगत सौंदर्य यथा-
पयोदः प्रावृषेण्योऽयं, मनोमोदी मुदं राति ।
रसं वर्षन्, रसामाप्लाक्यन् रसिको भवन्भाति।।[14]

इस काव्य में जितने भी गीत हैं वह सब गीत मौलिक हैं तथा महाकवि पंडित सत्यनारायण शास्त्री की स्वाभाविक प्रस्तुति है।

4. श्रीसंस्कृतदोहासप्तशती-

राजस्थान के अजमेर मंडल में जन्म प्राप्त करके महाकवि सत्यनारायण शास्त्री ने श्री संस्कृत दोहा सप्तशती इस काव्य का प्रणयन किया है। इस काव्य में कवि ने राष्ट्रभाषा हिंदी के दोहा छंद के द्वारा 708 संस्कृत के दोहों का प्रयोग किया है। इसमें धर्म, धार्मिक, श्रम-श्रमिक, कृषि-कृषक, धन-धनिक, समाज-समाजसेवक, शासन-शासक, क्रीडा, अभिनय-अभिनायक, संसद-सांसद आदि विषयों को आधार कर हिंदी भाषा के प्रचलित दोहा छंद को लेकर उस का संस्कृत में प्रयोग किया है। दोहा छंद मूलतः संस्कृत भाषा का ही है जिसे पण्डित जी ने अपने साहित्य में प्रमुखता से महत्व दिया हैं। इस काव्य में अनुप्रास का संयोजन बहुत पाया जाता है, तथा कहीं-कहीं पर कवि को धातुओं को अनुदातत्व भी करना पड़ा है । जैसे युयुधइस पद युयोध’ ‘चिखेदे’ ‘चिखेदआदि प्रयोग कवि ने छंद निर्माण हेतु किया है। जैसे-

कार्पण्यासक्ताजना, नाऽऽदयन्ति, नाऽदन्ति ।
चिराद्विदोऽस्य पुरातनीममरकथां कथयन्ति।।[15]

दोहा सप्तशती काव्य महाकवि पंडित सत्यनारायण शास्त्री के जीवन अनुभव का प्रकटीकरण है। कवि ने इस काव्य में जो भी वर्णित किया है, वह सब लोगों के द्वारा अनुभूत किया गया है। जैसे- साले का अपनी बहन के घर में रहना विनाश का कारण है, इसको पंडित सत्यनारायण शास्त्री स्वयं काव्य में कहते हैं। जैसे-

शकुनिरिवाऽऽलयनिवसतिः, श्यालकोऽस्ति नाशाय।
महाभारतेऽभवदयं, हा ! कुरुकुलक्षयाय।।[16]

संस्कृतदोहासप्तशती काव्य की भाषा अत्यंत सरल और परिष्कृत हैं। इसमें धातुओं का प्रयोग प्राय सभी जगह दिखाई देता है। इसमें अलंकारों का प्रयोग स्वभाविक रीति से हुआ है। कवि ने कहीं पर भी कोई भी अलंकार प्रयास करके नहीं डाला है जो कि इस काव्य की विशेषता दर्शाता है।

5. भारतकुवलयम्-

भारतकुवलयम् गद्य काव्य की रचना महाकवि गीतकार पंडित सत्यनारायण शास्त्री ने की है। यह काव्य दंडी, सुबंध, बाणभट्ट आदि कवियों की शैली को आधार बनाकर रचा गया है। इस काव्य को रच कर कवि ने अभिनव बाणभट्टइस उपाधि को प्राप्त किया है। यह काव्य विद्वानों की परीक्षा के लिए कवि ने रचा है इस बात का स्वयं कवि ने इस काव्य में जिक्र किया है। जैसे-

विद्वद्विशयगदौषधमिव, कटु सदपिसदाऽऽयतौ सुखदम् ।
स्वल्पपरीक्षणनिकषीभवदपि काव्यमिदं स्यान्मुदे विदुषाम्।।[17]

इस काव्य में श्लेष अलंकार है। तथा  अर्थबोध के लिए किंचित ज्ञान और किंचित बुद्धि की अपेक्षा होनी चाहिए।

कश्चित्सौम्यदृशाऽन्यो, निजपाण्डित्वं निदर्शयितुकामः।
मेघाभङ्गिमनटनात्काव्यं रससुभगमपि प्रपञ्चयति।।[18]

भारतकुवलयम् काव्य में भारत राष्ट्र की विशेषता को सर्वत्र प्रकाशित किया गया है। इसमें प्राचीन गौरव तथा वर्तमान काल की स्थिति दर्शायी गई है। इस काव्य का श्लेष अलंकार सौंदर्य युक्त है तथा गद्य वर्णन जैसे-यश्चसदेज्यज्योऽपि देज्यज्यः, अनुत्पलभुवनान्वितोऽपि सोत्पलभुवनान्वितःपराजितगीर्वाणहितकृ न्मण्डलः,विदुरसविद्बोधितधृतराष्ट्रमानसः,अभिरुपभार्याराधितपरिकरः, पट्टेलकौशिकीलितभारताशेषभोगिनिवहरू राष्ट्रपति राजेन्द्रप्रसादावितः, कनकभूषितजन-सङ्कलोऽपि कनकभूषितजनसङ्कलः.......।[19]

यह काव्य अत्यंत लघु किंतु भाव की दृष्टि से और अर्थ गांभीर्य की दृष्टि से तथा अर्थावबोधन की दृष्टि से अत्यंत गंभीर है, इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है।

6. मेवाड़मार्तण्डः-

मेवाड़मार्तण्ड नामक काव्य एकांकी महाकवि श्री सत्यनारायण शास्त्री द्वारा विरचित है। यह एकांकी मेवाड़ राज्य के यशस्वी शासक महाराणा प्रताप के शौर्य की यशस्वी गाथा को आधार करके लिखी गई है।

एकांकी की कथावस्तु- शौलापुर विजय के बाद जब मानसिंह मेवाड़ राज्य में महाराणा प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने हेतु प्रस्ताव लेकर आता हैं किंतु महाराणा प्रताप मानसिंह का अकबर के आधिपत्य मिलन को स्वीकार नहीं करते हैं । तब मानसिंह क्रुद्ध होकर के युद्ध का भय दिखाता है। महाराणा प्रताप उस चुनौति को सहर्ष स्वीकार करते हैं। क्रोधित मानसिंह अपने अपमान का बदला लेने के लिए अकबर के समीप जाकर महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर को उकसाता है। तत्पश्चात मानसिंह सलीम के साथ मेवाड़ राज्य पर आक्रमण कर देता है। महाराणा प्रताप सिंह के साथ सभी क्षत्रिय युद्ध करते हैं। अंत में  संघर्ष करके महाराणा प्रताप सब कुछ त्याग कर  वन में चले जाते हैं। इस एकांकी के द्वारा महाकवि ने मेवाड़ मार्तण्ड़ महाराणा प्रताप का यशोगान किया है, तथा मेवाड़ के वीरों का युद्ध कौशल दिखाया है। इस काव्य की भाषा अत्यंत सरल, परिष्कृत तथा शैली नितांत रमणीय है। जब महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह के साथ मानसिंह की वार्ता होती है, उस समय मानसिंह मदोन्मत्त हो कर मेवाड़ राज्य को भस्म करने का भय दिखलाता है। तब महाराणा प्रताप के द्वारा प्रवेश करके उसका मद नष्ट किया जाता है जैसे-

प्रतापः - (महासिं प्रसार्य) अरे प्रलापिन् ! तावकं पितृष्वसु भर्तारं सम्राजमकब्वरं घोणया चणकाँ चर्वयितुं बलं शिशूदयान्वयस्याऽस्मिन्कालकरवाले करवाले विद्यते। मानसिंह ! किमज्ञायि त्वया यतो मेवाडमहीकेतुर्युष्मदीये विशालवैभवे विमुह्य पादद्वन्द्वमवनंस्यति । कित्त्वयाऽबोधियतो निष्कंलकं शिशूदपयकुलमात्मगौरवं मौदग्लोच्छिष्टाशनाशितृणां देशहद्रुहामंध्रितले विस्तारयिष्यति । साकं प्रतापेन भोक्तुं यौष्माकः कुटिलः कामः । युष्माकं कियन्महती भ्रान्तिरस्ति, किञ्चिदबुद्धा मान !।।[20]

इस काव्य के द्वारा राणा प्रताप की युद्धवीरता का प्रकाशन होता है। यह काव्य महाकवि सत्यनारायण शास्त्री के कल्पना कौशल को प्रदर्शित करता है। तथा यह एकांकी भाग कला की दृष्टि से अत्यंत उत्तम है।

7. प्रकीर्णसूक्तमौलिकम् -

सुरभारतीसमुपासक महाकवि सत्यनारायण शास्त्री के द्वारा प्रणीत प्रकीर्णसूक्तिमौलिकम् नामक यह अनूदित काव्य है। कवि ने विविध महाकवियों के विलिखित हिंदी भाषा के दोहा छंदों में काव्य का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया है। 64 दोहों में कवि के द्वारा स्वकीय भावाभिव्यक्ति की गई है। वीर पुरुष एक बार मरते किन्तु कायर पुरुष बार-बार मरते हैं। जैसे-

जीवो म्रियतेऽनेकशो, जीवतिभीरूर्मित्र!।
सकृद्सुवय उड्डीयते, पुंसो वीरस्याऽत्र।।[21]

और भी-

तृप्तौ व्यञ्जनषड्सास्तुच्छतमा हि भवन्ति ।
क्षुधि हरिमन्था रूचिकरा, इत्थं जना ब्रुवन्ति।।[22]

इस प्रकार से अनेक भाव यहां पर कवि ने प्रकाशित किए हैं। इस काव्य में कवि के द्वारा बिहारी, कबीर, रहीम, कवि सूरदास, दादूदास, सुंदरदास, मलूकदास, सहजोबाइर्, केशव आदि कवियों के हिंदी भाषी काव्यों का महाकवि ने प्रसिद्ध काव्य में संस्कृत अनुवाद प्रस्तुत किया है। बिहारी कवि के दोहा छंद का अनुवाद जैसे-

नहि पराग नहि मधुर मधु..................।

मधुविकासपरिमलमिह क्वापि न दृक्पथमेति। ?
कलिकाबन्धरते कथं ? रे रोलाम्ब ! वदेति।।[23]

कबीर के दोहों का अनुवाद जैसे-

कृष्णं कबिरो याचते कुशलं विश्वजनस्य ।
नास्ति केनचिच्छात्रवं मैत्र्यञ्चापि न तस्य ।।
प्रेम्णोऽर्णं सार्धद्वयं भवति बुधस्तदधीत्य
मृतं दधज्जगदज्ञतां, ग्रन्थगणं समधीत्य।।[24]

इस सम्पूर्ण काव्य की भाषा सरल, सहज, और भावप्रवाहानुकुल हैं। कवि की भाषा शैली काव्य के अनुकूल हैं। यह काव्य कवि की हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करता है।

निष्कर्ष
इस प्रकार पण्डित सत्यनारायण शास्त्री ने अपनी विविध काव्य विधाओं के द्वारा संस्कृत साहित्य को परिपुष्ट कर, संस्कृत साहित्य जगत में अपनी एक अमिट छाप छोडी है। पण्डित जी के विपुल साहित्य ने दिग्भ्रांत विश्व को नई दशा और दिशा प्रदान की हैं । संस्कृत साहित्य जगत को महाकवि ने अपनी लेखनी से चमत्कृत किया हैं । पण्डित सत्यनारायण शास्त्री जी का साहित्य युवाओं का पथ प्रदर्शक है जो युवाओं में शिक्षा, संस्कार, सहयोग की भावना के साथ ही राष्ट्रवाद के प्रति नव शक्ति का जागरण करता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. श्रीसंस्कृतदोहासप्तशती- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री परिचय भाग 2. एकविंशशताब्द्याः राजस्थानस्यसंस्कृतसाहित्यम्,डॉ.कमलकान्तबालाण, आइडियलपब्लिकेशनम् जयपुर पृ. 44 3. वही पृ. 45 4. श्रीचन्द्रशेखरमहाकाव्यं- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री 5. श्रीचन्द्रशेखरमहाकाव्यं श्लोक संख्या 02/18, 03/08, 01/51, 01/61, 02/18, 03/01, 04/30, 06/40, 01/05 6. वही पृ. 79 7. नागकन्या सुलोचना- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री, परिचय भाग 8. वही पृ. 118 9. नागकन्या सुलोचना श्लोक संख्या 127, 128 10. गीतिगौरवम्- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री पृ. सं. 20, 27 11. वही पृ. 133 12. वही पृ. 134 13. श्रीसंस्कृतदोहासप्तशती- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री, परिचय भाग 14. श्रीसंस्कृतदोहासप्तशती दोहा संख्या 446, 545 15. वही पृ. 141 16. भारतकुवलयम्- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री, पृ.सं. 4, 5 17. वही पृ. 164 18. मेवाड़मार्तण्ड़- पृ.सं. 7, 22 19. वही पृ. 176 20. वही पृ. 177 21. प्रकीर्णसूक्तिमौलिकम्- पण्डित सत्यनारायण शास्त्री, पृ.सं. 3, 4, 9, 13, 33 22. वही पृ. 256 23. वही पृ. 256 24. वही पृ. 256