P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VII , ISSUE- IX December  - 2022
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत-फ्रांस समुद्री सहयोग एवं रणनीतिक साझेदारी
India-France Maritime Cooperation and Strategic Partnership in the Indian Ocean Region
Paper Id :  16852   Submission Date :  16/12/2022   Acceptance Date :  21/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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विकास कुमार
शोध-छात्र
राजनीति विज्ञान
(स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर) वी0बी0एस0 पूर्वांचल विश्वविद्यालय
जौनपुर,उ0प्र0, भारत
सारांश भारत की सुरक्षा की दृष्टि से हिन्द महासागर का भू-सामारिक एवं भू-स्त्रातजिक महत्व है। सागरीय सुरक्षा सहयोग धीरे-धीरे भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक साझेदारी का एक प्रमुख पहलू बन रहा है। दोनो देशों ने हिन्द महासागर क्षेत्र (आई0ओ0आर0) की सुरक्षा बढ़ाने के लिए भारत-फ्रांस सहयोग को मजबूत करने में विशेष रूचि दिखाई है। आई0ओ0आर0 में हितों के बढ़ते अभिसरण से द्विपक्षीय समुद्री सहयोग को बढ़ाने की बहुत सम्भावना है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद From the point of view of India's security, the Indian Ocean has geo-strategic and geo-resource importance. Maritime security cooperation is gradually becoming a key aspect of the strategic partnership between India and France. Both countries have shown special interest in strengthening Indo-French cooperation to enhance the security of the Indian Ocean Region (IOR). With the growing convergence of interests in the IOR, there is great potential for enhancing bilateral maritime cooperation.
मुख्य शब्द भू-स्त्रोतजिक, प्रमुख, क्षेत्र, द्विपक्षीय।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Geological, Major, Area, Bilateral.
प्रस्तावना
हिन्द महासागर क्षेत्र में अपने हितों को साधने के लिए फ्रांस इस क्षेत्र में 17वीं शताब्दी से मौजूद है। परन्तु ब्रिटेन के एकाधिकार की वजह से फ्रांस, आई0ओ0आर0 में अपनी योजना को मूर्त रूप देने में असफल रहा है। फिर भी फ्रांस ने आई0ओ0आर0 में अपने कुछ उपनिवेश बनाये। क्योंकि फ्रांस का 70% से भी अधिक तेल टैंकरों द्वारा हिन्द महासागर क्षेत्र से लाया जाता था। फ्रांस इस क्षेत्र के तटीय राष्ट्रो-भारत- पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, इजरायल एवं अरब देशों को अपने हथियार, लड़ाकू विमान और पनडुब्बियाँ बेचने का इच्छुक था। वह आस्ट्रेलिया को ‘‘मिराज’’ लड़ाकू विमान की आपूर्ति करता है। इसके अलावा फ्रांस द्वारा मलेशिया को पेट्रोल से चलने वाली बोटस भी सप्लाई करता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में हिन्द महासागर पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भारत-फ्रांस के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। भारत की बढ़ती आर्थिक, समुद्री, सैन्य क्षमताओं और आई0ओ0आर0 में बढ़ती रणनीतिक आकांक्षाओं के साथ इस क्षेत्र के देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करने का इच्छुक है। वहीं दूसरी तरफ फ्रांस ने भू-राजनीतिक बदलाव को पहचानते हुए आईओआर के राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाने और क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ी के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने पर जोर देना शुरू कर दिया है। हिन्द महासागर हाल के वर्षों में भारत-फ्रांस द्विपक्षीय सम्बन्धों में चर्चा का एक प्राथमिक क्षेत्र बन गया है क्योंकि दोनों देश समुद्री क्षेत्र में अपनी दीर्घकालीन रणनीतिक साझेदारी का विस्तार करने के लिए उत्सुक है। अगस्त 2019 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रान और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच पेरिस (फ्रांस) में द्विपक्षीय वार्ता हुई। प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर 45वीं जी-7 शिखर बैठक में भाग लेने के लिए फ्रांस की राजकीय यात्रा पर थे। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद हिन्दमहासागर में संयुक्त समुद्री जागरूकता के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और राष्ट्रीय अंतरिक्ष अध्ययन केन्द्र (CNES), फ्रांस के बीच समझौते को लागू करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। इसके पूर्व हिन्द महासागर पर केन्द्रित समुद्री निगरानी उपग्रह प्रणाली को संयुक्त रूप से विकसित करने के उद्देश्य से इसरो और सीएनईएस के बीच मार्च 2018 में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गये थे। यह समझौते ओआईआर में सागरीय सुरक्षा के लिए भारत-फ्रांस सहयोग में एक महत्वपूर्ण कदम है। हिन्द महासागर में कुछ प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र लेन (ISL) है, जिसके माध्यम से एशियाई देशों, यूरोप और मध्य पूर्व के बीच अधिकांश व्यापार होते है। हार्मुज और मलक्का जलडमरूमध्य तेल आवागमन की मात्रा की दृष्टिकोण से विश्व के प्रमुख कार्यनीतिक चेक प्वाइंट है। समुद्र के जरिए किये जाने वाले कुल व्यापार में से लगभग 80% अतिरिक्त क्षेत्रीय देशों द्वारा किया जाता है। इसलिए महासागर की सुरक्षा, जिसे पारम्परिक और गैर-पारम्परिक दोनों खतरों से चुनौती मिलती है, न केवल क्षेत्रीय देशों के लिए बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर क्षेत्र (आई0ओ0आर0) दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। भारत जो हिन्द महासागर के केन्द्र में अवस्थित है और जिसकी 7500 कि0मी0 से अधिक की तटरेखा है, कुल 1200 से अधिक द्वीप समूह है। इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी की भूमिका में है। इस देश की भौगोलिक अवस्थिति के कारण इसकी सुरक्षा, वाणिज्य और व्यापारिक दृष्टि से उल्लेखनीय रूप से समुद्री क्षेत्र के साथ जुड़ा है। भारत के इतिहास को आकार देने में इस महासागर का बहुत बड़ा योगदान है और भारत का भविष्य भी काफी हद तक इस पर निर्भर है। आसियान देशो सहित भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों-जापान, चीन, कोरियाई गणराज्य और यू0एस0ए0 के साथ भारत के अधिकांश व्यापार इस क्षेत्र के जरिए होते है। देश के कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 80% जिसके भविष्य में बढ़ने की आशा है, हिन्द महासागर में I.S.L. के माध्यम से आयात किया जाता है। हालांकित दूसरी तरफ फ्रांस अपने समुद्रपरीय क्षेत्र मैयट और ला-रीयूनियन द्वीपों एवं बड़े अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के कारण हिन्द महासागर क्षेत्र का एक राष्ट्र है। 4100 फ्रांसीसी कर्मचारी दोनों समुद्रपारीय क्षेत्रों जिबूती और अबूधावी सहित अलग-अलग स्थानों पर हिन्दमहासागर में तैनात है। इसलिए महत्वपूर्ण हितों को देखे हुए भारत और फ्रांस दोनों का हिन्द महासागर क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने में साझा हित है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. भारत की सुरक्षा की दृष्टि से हिन्द महासागर का भू-सामरिक एवं भू-स्त्रातजिक रणनीतिक आयामों के महत्व का विश्लेषण करना। 2. हिन्द महासागर में भारत-फ्रांस के समुद्री सहयोग का विश्लेषण करना। 3. हिन्द महासागर में भारत-फ्रांस के बीच द्विपक्षीय समझौते एवं रणनीतिक साझेदारी का विश्लेषण किया गया है।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध-पत्र में उपलब्ध साहित्य का अवलोकन एवं समीक्षा भी की गई है। इसमें विशेष रूप से फ्रेडेरिक ग्रारे एण्ड जीन-लूप समान की पुस्तक ‘‘द इण्डियन ओशन एज ए न्यू पॉलिटिकल एण्ड सिक्योरिटी रीजन’’ स्प्रिंगर नेचर पब्लिकेशन्स स्विटजरलैण्ड-2022 से हिन्द महासागर क्षेत्र में समुद्री सहयोग एवं रणनीतिक सम्बन्धों का विश्लेषण किया गया है। हरीशरण एवं हर्ष कुमार सिन्हा द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘हिन्द महासागर चुनौतियाँ एवं विकल्प’’ प्रत्यूष पब्लिकेशन्स दिल्ली-2018 तथा हरी शरण एवं हर्ष कुमार सिन्ह द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में भारतीय सामुद्रिक रणनीति’’ राज पब्लिकेशन नई दिल्ली-2019 में हिन्द महासागर में समुद्री चुनौतियों और हित पर विचार-विमर्श किया गया है। उपर्युक्त सर्वेक्षण एवं साहित्य के अध्ययन की निरन्तरता की दिशा में प्रस्तुत शोध पत्र एक गम्भीर एवं सारगर्भित प्रयास है।

मुख्य पाठ

भारत और फ्रांस वर्ष 1998 से ही रणनीतिक साझेदार है। पारम्परिक रूप से इनके बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों का केन्द्रबिन्दु रक्षा, अंतरिक्ष एवं असैन्य परमाणु सहयोग रहा है। लेकिन समुद्री सहयोग धीरे-धीरे भारत-फ्रांस सम्बन्धों के बीच एक प्रमुख पहलू बनता जा रहा है क्योंकि दोनों देश समुद्री सुरक्षा सहयोग को प्रगाढ़ करने के तरीके तलाश रहे है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भारत और फ्रांस के बीच 2015 में द्विपक्षीय समुद्री संवाद प्रारम्भ करना था। पिछली वार्ता 2017 में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी, इस अवसर पर दोनों देशों के बीच एक व्हाइट नौवाहन समझौते पर हस्ताक्षर से पूरे क्षेत्र में पोतों की निगरानी, समुद्री यातायात के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान, समुद्री क्षेत्र के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।   

हिन्द महासागर हाल ही उच्च स्तरीय यात्राओं के दौरान चर्चा का एक प्रमुख क्षेत्र रहा है, जिसमें भारत-फ्रांस के प्रधानमंत्री की यात्राएं, भारतीय नौसेना अध्यक्ष की वर्ष-2017 में पेरिस (फ्रांस) की यात्रा और फ्रांस के रक्षामंत्री की दिल्ली यात्रा तथा वर्ष 2018 में दोनों देश के विदेशमंत्रियों की यात्राएं शामिल है। मार्च 2018 में फ्रांस के राष्ट्रपति की नई दिल्ली की राजकीय यात्रा के दौरान दोनों देशों ने हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत-फ्रांस सहयोग के संयुक्त सामरिक विजन पर सहमति व्यक्त की। विजन दस्तावेज में दोनों लोकतंत्र द्वारा हिन्दमहासागर क्षेत्र (आई00आर0) में उभरती चुनौतियों पर चिन्ता व्यक्त की गई जिसमें शामिल है: हार्न ऑफ अफ्रीका में आतंकवाद और समुद्री डकैती के खतरों के परिप्रेक्ष्य में समुद्री यातायात की सुरक्षा, सभी राष्ट्रों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय विधि का सम्मान, तस्करी और अवैध रूप से मछली पकड़ने जैसे संगठित अपराध, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा।  भारत और फ्रांस ने आई0ओे0आर0 में सहयोग बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया गया और त्रिपक्षीय वार्ता के प्रारूप में अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी करने की इच्छा व्यक्त की।

भारत-फ्रांस ने प्रोविजन ऑफ रेसिप्रोकल लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट पर भी सहमति व्यक्त की, इसमें ‘‘भारतीय और फ्रांसीसी सशस्त्र बलों के लिए सम्बन्धित सुविधाओं तक पारस्परिक पहुँच को दी जाने वाली लॉजिस्ट्रिक सहायता के विस्तार’’ की इच्छा व्यक्त की गई है।  जिससे हिन्द महासागर में आम चुनौतियों से निपटने में घनिष्ठ रक्षा सहयोग प्रदान किया जाएगा। इस समझौते को हाल में लागू किया गया, जिसके एक भाग के रूप में फ्रांसीसी नौसेना के विमान रोधी विध्वंसक एफ0एन0एस0 कैसार्ड ने इस वर्ष जनवरी में मुम्बई में लंगर डाला था।

रक्षा सहयोग में मजबूती: 

रक्षा सहयोग भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत, फ्रांस को सबसे विश्वसनीय रक्षा भागीदारों में से एक मानता है। भारत तथा फ्रांस के बीच रक्षा प्रमुखों के स्तर पर नियमित यात्राओं का आदान-प्रदान भी होता रहा है। दोनों देशों के बीच थल सेना के क्षेत्र में शक्ति, नौसेना के वरूण तथा वायु सेना के गरूड़ जैसे नियमित रक्षा अभ्यास भी होते है। रक्षा प्रमुख स्तर की एक उच्च समिति है जिसकी रक्षा सचिव तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध और रणनीति निदेशाालय के फ्रांसीसी महानिदेशक के स्तर पर सलाना बैठक होती है। दोनों देशों के बीच कई तरह के रक्षा पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि नियमित रूप से चलते है। राष्ट्रपति मैक्रो की भारत यात्रा से पहले फ्रांस की रक्षामंत्री फ्लोरेंस पारली ने रक्षा तथा सुरक्षा सम्बन्धों को मजबूत करने के लिए दिल्ली का दौरा किया। इस दौरान दोनों के बीच महत्वपूर्ण वार्ता हुई। रक्षामंत्री पारली ने उस समय की भारतीय समकक्ष निर्मला सीतारमण के साथ सैन्य प्लेटफार्मों, समुद्री, सहयोग, क्षेत्रीय सुरक्षा की स्थिति तथा विभिन्न रक्षा परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण तकनीकि के हस्तांतरण जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की। राष्ट्रपति मैक्रो की यात्रा के दौरान भारत तथा फ्रांस ने सुरक्षा सम्बन्धों में विस्तार की महत्वपूर्ण पहल की।

हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत और फ्रांस ने सहयोग के लिए ज्वाइंट स्ट्रैटेजिक विजन जारी किया। इस विजन में हिन्दमहासागर के लिए भारत ओर फ्रांस के रणनीतिक महत्व का जिक्र है। इसमें दोनों देश अपनी नौसेना तथा थल सेना के बीच सैन्य तंत्र में सहायता और सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए। ज्वाइंट स्ट्रैटेजिक विजन के अनुसार फ्रांस और भारत हर अवसर पर अपने  नौसैनिक जहाजों का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिन्हें एक-दूसरे के बन्दरगाहों पर युद्धाभ्यास (PASESX) के लिए बुलाते है। नई दिल्ली तथा पेरिस अभ्यास में भाग लेने के लिए क्षेत्र के रणनीतिक साझेदार देशों को आमंत्रित करने के लिए स्वतंत्र होगे। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने पारस्परिक सैन्यतंत्र सहयोग समझौते का उल्लेख भारत-फ्रांस रक्षा सहयोग के इतिहास में सुनहरे अवसरके रूप में किया।

भारत और फ्रांस ने वर्ष 2016 में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के सौदे पर हस्ताक्षर किये। प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रो ने राफेल लड़ाकू विमानो के अधिग्रहण में प्रगति पर सन्तोष व्यक्त किया। ये राफेल लड़ाकू विमान वर्ष 2022 में भारत को मिल गये है तथा दोनो नेताओ ने भारत में निर्मित पहली स्कॉर्पियन पनडुब्बी प्छै कलवरीका कार्यरम्भ करने पर ध्यान दिया। इसका निर्माण भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट-75’ कार्यक्रम के अनतर्गत मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने फ्रांसीसी शिपविल्डर नौसेना ग्रुप के साथ मिलकर किया है। भारत रक्षा सहयोग तथा स्वदेशी रक्षा विनिर्माण आधार को मजबूत करने के लिए रक्षा क्षेत्र में ज्यादा फ्रांसीसी निवेश चाहता है। राजनीतिक सक्रियता और पहले के सफल सहयोग भारत तथा फ्रांस को रक्षा विनिर्माण संयुक्त अनुसंधान और विकास को विस्तार देने के लिए प्रोत्साहित कर रहे है। साझा बयान से स्पष्ट था कि प्रधानमंत्री मोदी तथा फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रो ‘‘वर्तमान रक्षा विनिर्माण साझेदारी को विस्तार देने तथा मजबूत बनाने के लिए तत्पर है।’’ दोनो ने माना कि भारत में मेक-इन-इंडियारक्षा उपकरणो के सह-विकास तथा सह-उत्पादन भारतीय एवं फ्रांसीसी रक्षा उद्यमो को अवसर प्रदान करते है। इनमें जानकारियों तथा टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण भी शामिल है।

भारत-फ्रांस नौसेना सहयोग:

भारत-फ्रांस की नौसेनाओं के बीच सार्थक रणनीति के बाद हिन्दमहाागर और भूमध्य सागर में बारी-बारी से द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। दोनो देशों के बीच पहला द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास 1983 में किया गया था, जिसे 2001 में वरूणनाम दिया गया। भारत-फ्रांस द्विपक्षीय अभ्यास वरूणका 20वाँ संस्करण का समापन 3 अप्रैल 2022 को हुआ। ‘वरूण-2022’ भारत और फ्रांस के बीच रणनीति साझेदारी को मजबूत करने में एक लम्बी यात्रा तय करेगा। इसके अलावा दोनों नौसेनाओं के पोत एक-दूसरे के बन्दरगाहों पर नियमित पोर्टकॉल करते रहते है।

हिन्द महासागर क्षेत्र के बहुपक्षीय संस्थानो में सहयोग

भारत-फ्रांस, आई00आर0 के बहुपक्षीय मंच में समन्वय बढ़ाने की इच्छा रखते है। भारत, हिन्द महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) में फ्रांस की भूमिका का समर्थन करता है, हालांकि फ्रांस रिमका एक संवाद भागीदार है। फ्रांस भी हिन्द महासागर आयोग (KJA) में प्रेक्षक के रूप में भारत के प्रवेश का समर्थन करता है। फ्रांस, हिन्दमहासागर की नौसैनिक संगोष्ठी (KJ5) का एक हिस्सा है जो कि भारतीय नौसेना की एक पहल है और जिसमें उसके 24 सदस्य भाग लेते है। वर्ष 2020-22 तक फ्रांस प्व्छै की अध्यक्षता करेगा। भारत और फ्रांस, हिन्द महासागर सहित महासागरो की बेहतर समझ के लिए समुद्री विज्ञान अनुसंधान में संभावित सहयोग के लिए रास्ते तलाश रहे है। अतः दोनो देश के द्वारा आई.ओ.आर. में आम चुनौतियो से निपटने के लिए सम्मिलित प्रयास क्षेत्रीय संगटन को मजबूत करने की आवश्यकता में प्रमुख भूमिका निभा सकते है।


हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र में भागीदारी

आईओआर के सन्दर्भ में इस क्षेत्र के लिए भारत और फ्रांस के विजन में पूरक तत्व है। इस क्षेत्र के लिए भारत के विजन को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने शांग्री-ला-डायलॉग-2018 में ही उजागर किया, जो आसियान की समकालीन केन्द्रीयता के साथ मुक्त खुले एवं समावेशी क्षेत्र पर आधारित है। भारत के विजन में इस बात पर जोर दिया गया है कि प्रतियोगिता को संघर्ष में नहीं बदलना चाहिए। इण्डो-पैसिफिक के नैरेटिव को लेकर साझेदारी का जो विस्तार हो रहा, उससे कथित तौर पर भारत को पश्चिम एशिया में भी सामरिक सहयोग बढ़ाने का मौका मिल सकता है। इण्डो-पैसिफिक पर फ्रांसीसी कार्यनीति में इस क्षेत्र में समावेशी, स्थिर, विधिक, बहुध्रुवीय व्यवस्था के लिए समग्र दृष्टिकोण निहित है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि ‘‘अधिपत्य विभाजन में प्रयास और प्रलोभन तथा टकराव को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। इस पर भी जोर दिया गया है कि- ‘‘हिन्द प्रशान्त की सुरक्षा एक रणनीतिक चुनौती है’’ और फ्रांस की प्रत्यक्ष एवं वास्तविक चिंता एवं देश की प्राथमिकता इस क्षेत्र में संतुलन बनाए रखना है। फ्रांस की कार्यनीति का उद्देश्य भारत, आस्ट्रेलिया, इण्डोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया जैसे भागीदारों के साथ रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को मजबूत करने और बढ़ाने पर आधारित है। फिर हाल फ्रांस इस क्षेत्र में चीन के दबंग रवैये से आशंकित है, लेकिन वह चीन को रोकना या उसे अलग नहीं करना चाहता है, बल्कि इस बात पर जोर देता है कि चीन के साथ संबंध ‘‘एक आवश्यक साझेदारी है। जिसके लिए बृहत्तर अन्योन्यता अपेक्षित है। वर्ष 2018 को गार्डनद्वीप, सिडनी (आस्ट्रेलिया) में बोलते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र में समाधान के रूप में संयुक्त उद्देश्यों के साथ एक नई पेरिस-दिल्ली-केनवेरा धुरी का सुझाव दिया।  उनके इस विजन और कार्यनीति में निहित पूरक तत्व इस पूरे क्षेत्र में समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करता है।

भारत-फ्रांस, इण्डो-पैसिफिक साझेदारी में रक्षा और सुरक्षा, व्यापार, निवेश, कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और स्थिरता शामिल है। द्विपक्षीय सहयोग के अलावा भारत और फ्रांस इस क्षेत्र में और क्षेत्रीय संगठनों के भीतर समान विचारधारा वाले देशों के साथ विभिन्न स्वरूपों में नई साझेदारी विकसित करना जारी रखेगे। यूरोपीय संघ की परिषद की फ्रांसीसी अध्यक्षता के दौरान फरवरी 2022 में पेरिस में आयोजित पहले इण्डो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम ने इण्डो-पैसिफिक में सहयोग के लिए यूरोपीय संघ की रणनीति पर आधारित यूरोपीय संघ के स्तर पर एक महत्वाकांक्षी एजेण्डा शुरू किया।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध-पत्र में ऐतिहासिक विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। यह अध्ययन मूल रूप से द्वितीयक स्रोतों से संकलित सामग्री पर आधारित है। समाचार पत्रों एवं पाक्षिक, मासिक, अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिकाओं, जनरल्स आदि में उपलब्ध सूचनाओं एवं समीक्षाओं को संकलित किया गया है।
निष्कर्ष भारत तथा फ्रांस दोनो बहुआयामी एवं सक्रिय रणनीतिक भागीदारी साझा करते हैं, दोनों के राजनीतिक सम्बन्ध उत्साहपूर्ण है। हालांकि चीन के बीआरआई, अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष तथा अमेरिका-ईरान के बीच विद्यमान गतिरोध की स्थिति वर्तमान पृष्ठभूमि में हिन्दमहासागर क्षेत्र में सुरक्षा संतुलन अनिश्चित प्रतीत होता है। शक्ति प्रतिस्पर्धा, बढ़ते सैन्य व्यय और बढ़ती नौसैनिक क्षमताएं, बहुपक्षीय व्यवस्था की चुनौतियां और अन्तर्राष्ट्रीय विधि, विशेषकर समुद्री डकैती, आतंकवाद और मादक द्रव्यो की तस्करी आदि के मुद्दों से हिन्द महासागर क्षेत्र की स्थिरता एवं सुरक्षा को खतरा का सामना करना पड़ रहा है। शीत युद्ध के पश्चात् हिन्द महासागर में महाशक्तियों की उपस्थिति ने भारत की समुद्री रणनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है। भारत ने ओआईआर में समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी करने की स्पष्ट इच्छा व्यक्त की है। भारत द्वारा हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी नौसेना की क्षमताओं और सुरक्षा सम्बन्धो को मजबूत करने में लगा है। भारत-फ्रांस के रणनीतिक साझेदारी से स्पष्ट रूप से दोनो देश आश्वास्त है। रक्षा, अंतरिक्ष, आर्थिक एवं विकासात्मक सहयोग के क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में बहुपक्षीय संबंधो का रूख उर्ध्वागामी है। क्योंकि भारत ‘‘सुरक्षा और सहकारी तरीके से हिन्द महासागर क्षेत्र में आर्थिक सम्बन्धों और विकास को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है, अतः फ्रांस, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार हो सकता है इसके लिए प्रमुख क्षेत्रों में ध्यान केन्द्रित करना होगा वे है- समुद्री क्षेत्र के प्रति सशक्त जागरूकता, समुद्री डकैती एवं आतंकवाद का मुकाबला आदि। हिन्द महासागर के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है, जहाँ फ्रांस की सक्रिय उपस्थिति है। क्योंकि फ्रांस सक्रिय रूप से हिन्द महासागर और प्रशान्त महासागर क्षेत्र के व्यापक परिप्रेक्ष्य में न केवल हिन्द महासागर में बल्कि प्रशान्त महासागर में भी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार हो सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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