ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- X January  - 2023
Anthology The Research
संयुक्त राष्ट्र संघ - भारत में शैक्षिक समानता के प्रभावी प्रयास
United Nations - Effective Efforts for Educational Equality in India
Paper Id :  16884   Submission Date :  2023-01-16   Acceptance Date :  2023-01-22   Publication Date :  2023-01-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/anthology.php#8
संगीता तिवारी
एसोसियेट प्रोफेसर
शिक्षा संकाय, बी०एड०विभाग
वी०एस०एस0डी0 (पी0जी0) कालेज
कानपुर,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश
प्रत्येक राष्ट्र की यह मूलभूत आवश्यकता है कि वह अपने सभी नागरिकों को भेदभाव रहित, पक्षपात विहीन समान, शिक्षा उपलब्ध कराये। लोकतान्त्रिक राष्ट्र के लिये तो यह और भी अनिवार्य है। विश्व के अन्य राष्ट्रों के समकक्ष स्थान प्राप्त करने मे शिक्षा की न्यायोचित एवं सुदृढ़ पृष्ठ भूमि अपेक्षित है। अतः सभी राष्ट्र शिक्षा के प्रति अत्यधिक जागरूक एवं सचेत है। इस महान कार्य को करने का श्रेय. अन्तर्राष्ट्रीय विश्व संगठन जैसे यू०एन०ओ० (यूनाईटेड नेशन्स आग्रेनाईजेशन) तथा इसकी प्रमुख सहयोगी शाखा युनेस्को (युनाईटेड नेशन्स एजूकेशनल सांइटिफिक एण्ड कल्चरल आर्ग्रनाईजेशन) को भी जाता है ।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद It is the basic requirement of every nation that it should provide equal, non-discriminatory, equal education to all its citizens. It is even more essential for a democratic nation. A just and strong background of education is required to get a place at par with other nations of the world. Therefore, all the nations are highly aware and conscious about education. Credit also goes to International world organization like UNO (United Nations Organization) and its main associate branch UNESCO (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization) for doing this great work.
मुख्य शब्द मूलभूत, पक्षपात, लोकतान्त्रिक, अनिवार्य, न्यायोचित ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Basic, Partisan, Democratic, Compulsory, Justified.
प्रस्तावना
सभी राष्ट्र शिक्षा के प्रति अत्यधिक जागरूक एवं सचेत है। इस महान कार्य को करने का श्रेय. अन्तर्राष्ट्रीय विश्व संगठन जैसे यू०एन०ओ० (यूनाईटेड नेशन्स आग्रेनाईजेशन) तथा इसकी प्रमुख सहयोगी शाखा युनेस्को (युनाईटेड नेशन्स एजूकेशनल सांइटिफिक एण्ड कल्चरल आर्ग्रनाईजेशन) को भी जाता है।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भारत में शैक्षिक समानता के प्रभावी प्रयासों का अध्ययन करना है ।
साहित्यावलोकन

यू०एन०ओ० ने मानव अधिकारो के द्वारा अवसरो की समानता को निम्न प्रकार से लिखा है-

1. नागरिक अधिकार (सिविल राईट)

विश्व के सम प्रार्थी जन्म से स्वतंत्र होने के साथ ही अधिकारों की दृष्टि से समान है विश्व का प्रत्येक व्यक्ति जीवन जीने का अधिकार एवं स्वतंत्रता तथा सुरक्षा का अधिकार रखता हैगुलामी से प्रत्येक व्यक्ति को मुक्त किया जाये।

यातनापूर्ण एवं बर्बर दण्ड पर प्रतिबन्ध किया जाये। कानून की दृष्टि से सभी व्यक्यिों को समान श्रेणी में रखा जाये। मनमाने ढ़ग से किसी को कैद व बंदी तथा निर्वासित नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने ऊपर लगे दोष के लिए न्यायालय की शरण प्राप्त करने की स्वतंत्रता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र की सीमा में कहीं भी स्थायी रूप से निवास करने को स्वतंत्र है। किसी भी राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को छोड़ने का तथा पुनः वापस आने का अधिकार प्राप्त है। प्रत्येक व्यक्ति को वैचारिकआत्मिक तथा धार्मिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्राप्त हैप्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति एवं मत प्रदान करने का अधिकार हैप्रत्येक व्यक्ति को शान्तिपूर्ण ढ़ग से एकत्रित होने का अधिकार है। किसी भी समूह/दल में व्यक्तियों को बल पूर्वक सम्मिलित नही किया जा सकता।

2. राजनैतिक अधिकार (पोलिटिकल राईट)

संयुक्त राष्ट्र संगठन के मानव अधिकारों के अन्तर्गत धारा 14  15 एवं 21 मे निम्न प्रकार से राजनैतिक अधिकारों को वर्णित किया गया है।

प्रत्येक व्यक्ति द्धारा प्रदत्त जनसेवाओं पर सभी को एक समान अधिकार प्राप्त हैI

राष्ट्र की सरकार मे प्रत्येक व्यक्ति की सक्रियता एवं सहभागिता को स्वीकृति प्राप्त है जो चुने गए व्यक्यिों के रूप मे अप्रत्यक्ष रूप में भी है। सरकार की स्थापना में राष्ट्र के नागरिको की इच्छा शक्ति सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने राष्ट्र की नागरिकता (राईट आफ नेशनलिटी) प्राप्त है किसी भी व्यक्ति को इसे बलपूर्वक त्यागने या छीनने को बाध्य नहीं किया जा सकता है।

3. आर्थिक अधिकार (इकोनोमोमिकल राईट)

आर्थिक स्वतन्त्रता का उल्लेख मानव अधिकारो सम्बन्धी धाराओं 17,22,23,24 एवं 25 में मिलता है।

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति रखने का अधिकार प्राप्त है। वह स्वयं या किसी व्यक्ति की सम्पत्ति का नियोजन करें। किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढ़ंग से उसकी सम्पत्ति से वंचित करने का अधिकार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक राष्ट्र को अपने नागरिक के निर्वाहन हेतु आर्थिक भत्ता देना अनिवार्य है।

जब कि वह अशक्तरोगी व बेरोजगार है। प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने का अधिकार प्राप्त है। साथ ही राष्ट्र को उसकी बेरोजगारी से रक्षा करने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित रूप से समान कार्य पर समान वेतन प्राप्त करने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को उचित मानदण्डो के अनुरूप एवं स्वास्थ्य प्रद जीवन जीने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम एवं मनोरंजन के उपयोग का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों की मांग तथा सुरक्षा हेतु ट्रेड यूनियनों की सदस्यता ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त है।

3. सामाजिक अधिकार (सोशल राईट)

सामाजिक अधिकारों का उल्लेख मानव अधिकारों के घोषणा पत्र में निम्नवत हैं -

प्रत्येक राष्ट्र की सुरक्षा इस प्रकार नियोजित की जाए कि वह जाति एवं धर्म से भेदभाव न करें। इसके अतिरिक्त यू०एन०ओ० विभिन्न राष्ट्रों के मध्य शांति प्रस्ताव हेतु पहल करेगाप्रत्येक स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार हैं। अतः प्रारम्भिक शिक्षा अनिवार्य रूप से शुल्क मुक्त होनी चाहिये। मातृत्व एवं बाल्यावस्था की देखभाल हेतु विशेष प्रयास करना प्रत्येक राष्ट्र का दायित्व है। प्रत्येक राष्ट्र को परिवार की सुरक्षा एवं परिपोषण करना अनिवार्य हैप्राकृतिक रूप से राष्ट्रों द्धारा निर्धारित निश्चित आयु वर्ग के युवक एवं युवती को अपने पारस्परिक पसंद का विवाह करके परिवार स्थापित करने का अधिकार प्राप्त हैI

4. सांस्कृतिक अधिकार (कल्चरल राईट)

निम्नलिखित सांस्कृतिक अधिकारों को मानव घोषणा पत्र में उल्लिखित किया गया है। प्रत्येक राष्ट्र के व्यक्ति को अपनी संस्कृतिक धरोहर के संरक्षणसम्प्रेषण तथा सुरक्षा का अधिकार हैचाहे वह वैज्ञानिक या साहित्यिक वस्तु हो। अपने सामुदायिक क्रियाकलापों में सहभागिता हेतु प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता प्राप्त है। अन्य शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति अपने कला-कौशलोंसे आनन्द प्राप्त कर सकता हैं एवं वैज्ञानिक उन्नयन में सक्षम योगदान दे सकता हैइस यू०एन० डिक्लरेशन आफ हयूमन राईट्स ने विश्व के मानव में संचेतना जाग्रत कर   दीं। जिससे वह मानवीय अधिकारों तथा समानता के अवसरों के प्रति सचेत हो गया। इसकी धारा एवं धारा 2 का विवरण निम्नवत है 

धारा 1 -"सभी व्यक्ति जन्म से स्वतंत्र हैं। अतः वे सम्मानजनक व समान अधिकारों के हकदार है। वे सभी तर्क एवं चेतनता से परिपूर्ण है तथा उन्हें परस्पर भाई चारे की भावना से कार्य करना चाहिये।'

धारा -2 “प्रत्येक व्यक्ति इस घोषणा पत्र में उद्घृत मूल अधिकारों तथा स्वतंत्रता का हकदार हैअतः उन्हें जातिभाषाधर्मरंगलिंगराजनीति मतों द्वारा पृथक-पृथक नही किया जा सकता हैं।

भारतीय संविधान उक्त विश्वव्यापी सृजनात्मक विचार से परिपूर्ण हुआअतः भारत मे सभी के लिए अनिवार्य शिक्षा की घोषणा वर्ष 1950 में ही कर दी थीइन्ही समानताओं को दृष्टिगत कर शिक्षा को राष्ट्र की आर्थिकसामाजिकनैतिकसांस्कृतिक तथा राजनैतिक प्रगति का सर्वोत्तम अभिकरण स्वीकृत किया गया है तथा इसकी गति तीव्र करने हेतु सुव्यवस्थितसुनिश्चतसमान अवसर एक जुट किये गये।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय संस्था विश्व की शांति स्थापना हेतु निर्मित होकर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अमूल्य स्वर्णिम लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थापित करने और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये अति उत्कृष्ट कार्य किया है।


शिक्षा के मौलिक अधिकार

स्वतन्त्रता के पश्चात भारत की संघीय सरकार ने शिक्षा के विकास पर सर्वाधिक ध्यान दिया। जिससे शिक्षा को संवैधानिक अधिकार प्राप्त हुआअनु-14 तथा 16 में इस पर विशेष व्यवस्था की गई हैं तथा 6 से 14 वर्ष के बालको की शिक्षा को निशुल्क एवं अनिवार्य बना दिया गया है। भारत सरकार ने अपने सभी संवैधानिक एवं राष्ट्रीय दायित्वों को पूर्ण करने के लिये 1957 ईमें अखिल भारतीय प्रारम्भिक शिक्षा परिषद की स्थापना की। प्रारम्भिक शिक्षण के क्षेत्र मे केन्द्रीय सरकार अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाहन इसी परिषद के माध्यम से करती आ रही है।

शिक्षा मे समान अवरसरों का महत्व समझ कर स्वंतत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने समानता के बारे में कहा हमे ऐसे समाज का निर्माण करना हैजिसमे प्रत्येक व्यक्ति को अपने गुंण एवं योग्यता के अनुसार उन्नति करने का अवसर मिले। मैं चाहता हूँ कि शिक्षा का इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये विकास किया जाए।"

अतः यह हम कह सकते है कि प्रत्येक लोकतान्त्रिक राष्ट्र सुविकसित एवं सामाजिकसुदृढ़ नागरिक प्रदान करने के लिये एवं सभी विद्यमान प्रतिभाओं के योग्य शिक्षा के समान अवसर की व्यवस्था संविधान के द्धारा करता है।

निष्कर्ष
इस सन्दर्भ में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि नयी शिक्षा नीति 2020 पहुँच, समानता, समावेशिता और गुणवत्ता के उद्देश्य के साथ शुरू की जा रही हैI साथ ही इसकी सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि स्कूल न जाने वाले बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने एवं उच्च शिक्षा में बहुप्रवेश और निकास की शुरुआत से कई परिवर्तनकारी सुधार शुरू किये गए हैं, शिक्षा शास्त्र के इन अभिनव प्रयोगों से बच्चों का विकास होने के साथ-साथ वे बेहतर तरीके से सीख भी सकेंगे अर्थात हाइब्रिड लर्निंग सिस्टम विकसित कराकर बच्चों को प्रौद्योगिकी के अत्यधिक संपर्क से बचने की प्रणाली के क्रियान्वयन की वकालत की हैI”
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. रूहेला, सत्यपाल एंव देवेन्द्र : सूर्य पब्लिकेशन्स, मेरठ 2. शर्माः आर०ए० (2009): “शिक्षा समाजशास्त्र के मूल तत्व” आर०लाल बुक डिपो, मेरठ 3. शर्मा, आर०ए० (2009) : "भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास" आर0लाल बुक डिपो, मेरठ. 4. नई शिक्षा नीति – 2020. 5. दैनिक जागरण – 05.2022 कानपुर 6. https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1642049