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किन्नर जीवन की समस्याओं के संदर्भ में थर्ड जेंडर चर्चित कहानियाँ (सं. डॉ. विमल ज्ञानोबराव) | |||||||
Third Gender Popular Stories in The Context of Transgender Life Problems (Ed. Dr. Vimal Gyanobrao) | |||||||
Paper Id :
16980 Submission Date :
2023-01-14 Acceptance Date :
2023-01-15 Publication Date :
2023-01-21
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सारांश |
समाज हो या फिर परिवार, किन्नर समुदाय को हर स्थान पर प्रताड़ना ही मिलती है। उन्हें पहले परिवार से फिर बाद में समाज से उपेक्षित कर अभावग्रस्त एवं निरुद्देश्य जीवन जीने के लिए विवश कर दिया जाता है। उनका जीवन कितना कठिन और कितना पीड़ादायक है हम यह अनुभव भी नहीं कर सकते। हम केवल उनके प्रति सहानुभूति एवं संवेदना ही व्यक्त कर सकते हैं। पर साहित्य के माध्यम से अनेक लेखकों द्वारा उनके जीवन की पीड़ाओं एवं समस्याओं को अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है। गौरतलब है कि समाज की हर छोटी-बड़ी खुशियों में उनकी दुआ शामिल होती है पर कोई उनकी खुशी और बेहतरी के लिए कोई कुछ नहीं कर पाता यह सबसे दुःख की बात है। व्यक्तित्व के स्थान पर एक विशेष शारीरिक अंग को महत्व देना उनके साथ नाइंसाफी करना है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Be it society or family, the eunuch community gets harassed everywhere. They are first neglected by the family and later by the society and forced to live a life of poverty and aimlessness. We cannot even feel how difficult and painful their life is. We can only express sympathy towards them. But through literature, successful efforts have been made by many writers to express the pains and problems of their lives. It is worth mentioning that their blessings are included in every small and big happiness of the society, but no one is able to do anything for their happiness and betterment, this is the saddest thing. To give importance to a particular body part in place of personality is to do injustice to them. | ||||||
मुख्य शब्द | मानसिकता का प्रश्न, शारीरिक संरचना के प्रति जिज्ञासा, लैंगिक संकीर्णता, पारिवारिक प्रेम का अभाव, परिवार बसाने की चाहत। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Question of Mindset, Curiosity About Physical Structure, Sexual Promiscuity, Lack of Family Love, Desire to Have a Family. | ||||||
प्रस्तावना |
साहित्य और समाज का अन्योन्याश्रित संबंध है। कोडवेल का कथन है कि, "साहित्य का मोती समाज की सीपी में ही जन्म लेता है।" अतः समाज में जो कुछ घटित होता है साहित्य में उसकी अभिव्यक्ति होती है। साहित्यिक दृष्टिकोण से आज समाज के अनेक वर्गों की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इसी क्रम में समाज का एक और बहिष्कृत वर्ग 'किन्नर समाज' की समस्यायें भी अब साहित्य के केंद्र में आती दिखाई पड़ रही है। किन्नर समाज की समस्याएं तो आधुनिक है किंतु उनका इतिहास काफी प्राचीन है। रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों में हम किन्नर पात्रों का जिक्र पाते हैं। किंतु आज के समय में किन्नर समाज की स्थिति काफी भयावह एवं दयनीय है।
समाज में केवल दो लिंग- 'स्त्री और पुरुष' को ही महत्व दिया गया है और इन्हीं दोनों लिंगों से ही सृष्टि का आधार माना गया है। किंतु समाज में इन दो लिंगों के अलावे भी एक और लिंग उपस्थित है, जिन्हें हम उभयलिंगी, किन्नर, लैंगिक विकलांग, हिजड़ा, खुसरा, तृतीय लिंगी आदि के नामों से जाना जाता है। हमेशा से समाज किन्नर समाज को भेदभाव की दृष्टि से देखता आया है।
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अध्ययन का उद्देश्य | सम्पादक डॉ. बिमल ज्ञानोबराव की पुस्तक 'थर्ड जेंडर : चर्चित कहानियाँ' के अध्ययन के माध्यम से समाज किन्नर समुदाय की समस्याओं एवं पीडाओं से रूबरू हो पायेगा। इसके साथ ही समाज मे किन्नर के प्रति उठने वाली जिज्ञासाओं को शांत करने में सक्षम होगी। जिससे समाज मे किन्नर के प्रति भेद-भाव समाप्त होकर सामाजिक वैमनस्य एवं सौहार्द स्थापित होगा। |
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साहित्यावलोकन | भारतीय समाज का एक विशेष वर्ग, किन्नर समुदाय का जीवन वर्तमान परिदृश्य में हिंदी कथा साहित्य का
प्रमुख विषय बनता जा रहा है।इस समुदाय के जीवन की समस्याओं
की ओर समाज का ध्यान बहुत समय तक नहीं गया। यह
समुदाय साहित्य में अपना स्थान दर्ज कराने में असफल रहा। किन्नरों के बारे में
पौराणिक साहित्य में प्राचीन काल से होता रहा है।वर्तमान समय में किन्नर एयर
उनके जीवन की चुनौतियाँ साहित्य के केंद्र में स्थान प्राप्त कर रहीं हैं। किन्नर जीवन से संबंधित कहानियों का संग्रह ‘थर्ड
जेंडर: हिंदी कहानियाँ‘ (संपादक – डॉ. एम फिरोज खान) तथा थर्ड जेंडर: चर्चित कहानियाँ आदि उल्लेखनीय है। |
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मुख्य पाठ |
हमेशा से समाज किन्नर समाज को भेदभाव की दृष्टि से
देखता आया है। समाज का एक अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद भी इस वर्ग को अपने ही
परिवार एवं समाज में कोई महत्व नहीं मिलता। इन्हें घृणित दृष्टि से देखा जाता है।
यह वर्ग आज समाज मे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। नीरजा माधव, महेंद्र भीष्म,प्रदीप सौरभ चित्रा
मुद्गल,राही मासूम रज़ा, इकरार अहमद,अंजना वर्मा,शिवप्रसाद सिंह एवं किरण सिंह आदि जैसे
कई साहित्यकारों ने किन्नर समाज की जीवन-शैली एवं उनकी
समस्याओं को साहित्य में प्रस्तुत किया है। शिवप्रसाद सिंह की 'बिंद महाराज'
इस पुस्तक की पहली कहानी है। इस पुस्तक की सारी कहानियां चरित्र
प्रधान हैं। यह कहानी भी चरित्र प्रधान है। 'बिंद महाराज'
इस कहानी का मुख्य पात्र जो एक किन्नर समदुाय का प्रतिनिधित्व करता
है। लखेक ने इस कहानी एवं इसके मुख्य पात्र 'बिंद महाराज'
के माध्यम से समाज पर एक बहुत बड़ा एवं गम्भीर प्रश्न खड़ा किया है।
यह प्रश्न रिश्तों, प्रेम एवं सम्वेदनाओं का है।जिससे यह
किन्नर समदुाय हमेशा से अछूत रहे हैं। एक इंसान जब पैदा होता है तो उसके साथ उसका
औरों के साथ रिश्तों का भी जन्म होता है। परन्तु एक किन्नर के पैदा होने से उनका
दूसरों के साथ रिश्तों की मौत हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पूर्वाग्रहों से
ग्रसित समाज तो केवल पुरुष और स्त्री से मिलकर बनता है। वहां ऐसे समदुाय के लिए
कोई जगह नहीं जिनका कोई लिंग नहीं है। "दुनिया के सारे नाते-रिश्ते केवल
पुरुष और स्त्री से है। वीओरित लिंगों का आकर्षण एक के दायरे की तमाम वस्तुएं
दूसरे से उसी प्रकार सम्बन्ध हैं । बिंद महाराज का दुनिया में कोई रिश्ता नही हो,
भी कैसे, ना तो वह मर्द है ना औरत।" लेखक
के द्वारा कहा गया यह कथन किन्नर समदुाय के तरफ से समाज के ऊपर एक बड़ा प्रश्न खड़ा
करती है कि क्या सामाजिक रिश्तों के लिए लिंग का होना जरूरी है, एक इंसान होना काफी नहीं है ? प्रेम इस समदुाय के लिए एक मरीचिका के समान है वह
जितना उसके पास जाते है वह उतना ही उनसे दूर और ओझल होते
जाते हैं। "प्रेम शब्द उसके लिए केवल शब्द था, निर्जीव
शब्द, रूढ़ अर्थ।" लेखक ने इंसानों के 'प्रेम' शब्द पर भी गम्भीर बात कही। लोगों के प्रेम
का आधार अगर लिंग है तो वह प्रेम, प्रेम नहीं एक निर्जीव और
रूढ़ अर्थ देने वाला मात्र एक शब्द है। लोग। लेखक का संकेत यह है कि अब प्रेम शब्द
के अर्थ में बदलाव की जरूरत है। क्योंकि उसका दृष्टिकोण अब रूढ़ हो चुका है। इस पुस्तक की दूसरी कहानी 'राही मासूम रजा' की 'खालिक अहमद बुआ'' है। इस कहानी का आधार एक किन्नर का
सैकग एवं एकनिष्ठ प्रेम है। खालिक अहमद बुआ जो एक किन्नर है, वह रुस्तम खाँ से अगाध एवं निश्छल प्रेम करती है और उस पर बहुत विश्वास भी
करती है। परंतु कहीं न कहीं अपने इस रिश्ते को असुरक्षित भी महससू करती है। एक
साधारण इंसान की तरह ही खलीक अहमद बुआ भी प्रेम के बदले प्रेम और भरोसे के बदले
भरोसा चाहती है परंत उस अभागन को सच्चा प्रेम भी नसीब नहीं होता। रुस्तम ख़ाँ उसका
भरोसा तोड़ देता है और एक वैश्या के पास चला जाता है। यह कहानी दर्शाती है कि कहीं
न कहीं एक किन्नर का जीवन एक वैश्या की तुलना में भी ज्यादा कष्टकर होता है। डॉ. विमल ग्यानोबाराव सूर्यवंशी द्वारा संपादित कहानी
संग्रह 'थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां' में संकलित 'किरण सिंह' की
कहानी 'संझा' एक ऐसी कहानी है जिसके
माध्यम से लेखिका ने 'किन्नर जीवन' के
विभिन्न पहलुओं एवं समस्याओं को परत दर परत खोलने का प्रयास किया है। इस कहानी
संग्रह के संपादक डॉ. विमल ग्यानोबाराव सूर्यवंशी 'किन्नर व
हिजड़ा' के संदर्भ में कहते हैं, " हिजड़ा उर्दू शब्द है जो अरबी के हिज्र शब्द से लिया गया है। जिसका आशय
अपने कबीले को छोड़ना है। अर्थात घर-परिवार एवं समाज से अलग होना। उर्दू अथवा
हिंदी में प्रयुक्त हिजड़ा शब्द को अन्य शब्दों जैसे- हिजिरा, हिजदा, हिजरा, हिजादा, हिजारा और हिजराह शब्द से संबोधित किया जाता है। उर्दू के ख्वाजा सरा शब्द
हिजड़ा का समानार्थी है। दूसरे अन्य शब्द खसुआ और खुसरा है। अंग्रेजी में इसे यनक अथवा हर्मा फ्रोडाइट से जोड़ा जाता है। बंगाली
में इन्हें हिजरा, हिजला, हिजरी से
संबोधित किया जाता है। तेलगू में उन्हें नपुंसकडू, खोजा अथवा
मादा, तमिलनाडु में अली, अरावनी।
पंजाबी में खुसरा,जंखा, सिंधी में खदरा,
गुजराती में पवैया, मराठी में हिजड़ा आदि नामों
से जाना जाता है।" डॉ. सूर्यवंशी ने न केवल 'किन्नर' को परिभाषित ही किया बल्कि इनके समाज की भी
व्याख्या की और इनके समाज के बारे में बहुत सारी जानकारियां भी दी। जैसे इन्होंने
कहा कि, " हर घर या घराने का एक मुखिया होता है। जिसे
नायक कहते हैं। नायक के नीचे गुरु होते हैं फिर चेले। गुरु का दर्जा मां-बाप से कम
नहीं होता। हर किन्नर को अपने गुरु को अपनी कमाई का एक हिस्सा देना होता है। उम्र
दराज उस्ताद का काम हिसाब-किताब रखना होता है। गुरु के नीचे काम करने वाले सभी
चेले घराने की बहुएँ कहलाती है। हालांकि घराने के अंदर भाई,बहन,
बुआ, चाची, दादा,दादी आदि का अपना स्थान है। जो किन्नर पुरुष की तरह रहता है, उसे भाई कहा जाता है। ऐसे ही महिला प्रवृत्ति के किन्नरों को बहन का ओहदा
दिया जाता है।" इस तरह हम देखते हैं कि किन्नरों
का समाज और उनका पारिवारिक जीवन आम समाज के परिवारों की तरह ही होता है। जैसा कि डॉ. सूर्यवंशी जी ने किन्नर को परिभाषित करते
हुए हिज्र शब्द का आशय 'अपने कबीले को छोड़ना' बताया। यही 'बिछड़ना' इस पूरे
किन्नर समाज की सबसे बड़ी त्रासदी है। किन्नर होने पर उन्हें अपने परिवार, समाज एवं अपनों को छोड़ कर उनसे दूर एक अलग वर्ग में जीने को विवश किया
जाता है। मेरे ख्याल से ये ही इस समाज की सबसे बड़ी एवं गंभीर समस्या है। किरण सिंह की कहानी का शीर्षक इस कहानी के मुख्य
पात्र 'संझा' के नाम पर
ही रखा गया है। 'संझा' चौगाँवा के सबसे
इज्जतदार आदमी वैद्य महाराज के घर आठ वर्ष बाद जन्मा संतान है। जब एक परिवार में
आठ वर्षों बाद एक संतान का जन्म हो और वह भी किन्नर हो, तो
उस परिवार पर क्या बितती है इसी का बड़ा ही मार्मिक चित्रण इस कहानी में किरण सिंह
जी के द्वारा किया गया है। वैद एवं बैदाइन द्वारा अपनी बेटी का नाम संझा रखने के
पीछे का तर्क बड़ा ही मार्मिक है, "संझा! हुँह! इनकी बेटी में दिन और रात दोनों का मिलन है। इसलिए वह सिर्फ दिन और
सिर्फ रात से अधिक पूर्ण-पहर है।" मां की मृत्यु के पश्चात संझा का
पालन-पोषण उसके पिता वैद्य जी ही करते हैं। वैद्य जी के माध्यम से यह भी बताया गया
है कि एक किन्नर के परिवार को समाज में कितनी सारी कठिनाइयों एवं परेशानियों का
सामना करना पड़ता है। यहां पर एक पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है
क्योंकि यह पिता हर हाल में अपनी बेटी संझा
को आने वाली कठिनाइयों से बचाना चाहते हैं एवं जीवन की सीख उसे देना
चाहते हैं ताकि संझा अपने जीवन में आने
वाली कठिनाइयों से निडरता पूर्वक संघर्ष कर सके। संझा की मां की मृत्यु के बाद
उसके पिता वैद्य जी बेचैन हो जाते हैं। उनका बेचैन होना सार्थक है। वे जानते हैं
कि अगर उन्होंने भी समझा का साथ छोड़ दिया तो समझा इस समाज में अकेली जी नहीं
पाएगी। या यूं कहें कि समाज उसे जीने नहीं देगा। अपनी कठिन परिस्थिति को वे
भली-भांति समझते हैं। इसलिए वे कहते हैं, " जो जिंदा है,
उसे देखना है। मैं भी मर गया तो! नहीं, नहीं!.....
मुझे जीने की सारी शर्तें मंजूर है।" इन पंक्तियों में एक पिता की जिम्मेदारी
झलकती है और दिखता है कि वह किन विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। वैद्य जी ने
संझा को केवल पाला ही नहीं बल्कि बाल मनोस्थिति में उठने वाले सारे कठिन प्रश्नों
का जवाब देते हुए जीवन की सीख दी एवं उसे समझदार बनाया। बच्चों का मन बहुत चंचल
होता है क्योंकि उस समय उनके मन में कई सारे सवाल पैदा होते रहते हैं। उनमें एक
असंतोष की भावना रहती है। संझा कि मानसिक स्थिति भी कुछ इसी प्रकार की है। चूंकि
वह केवल शारीरिक रूप से दूसरे साधारण बच्चों से अलग है। इसलिए संझा का मन अशांत
रहता है। उसका मन कई सारे प्रश्नों में उलझा रहता है। और इन सारे प्रश्नों का जवाब
अपने पिता वैद्य जी से मांगती है।जिसका कोई सार्थक जवाब उनके पास नहीं होता। संझा
के ये प्रश्न इतने गंभीर एवं महत्वपूर्ण हैं कि वो केवल उनके पिता से ही नहीं ऐसा
लगता है मानो पूरे समाज पर प्रश्न खड़ा कर रही है। वैद्य जी संझा से कहते हैं,
" किस्मत ने एक जरूरी अंग हटाकर तुम को पैदा किया है
बेटी।" संझा इस पीड़ाजनक वाक्य का कितना सार्थक एवं तार्किक सवाल पूछती है कि,
" जीवन के लिए सबसे जरूरी तो आंख
है। जोगी चाचा अंधे पैदा हुए। जरूरी तो हाथ है। बिंदा बुआ का दाहिना हाथ कोहनी से
कटा है। रामाधा भैया तो शुरु से खटिया पर पड़े हैं, रीड की
हड्डी बेकार है। विसम्भर तो पागल है, जनम से बिना दिमाग का।
क्या... वो.. वो आंख, कान, हाथ,पांव, दिमाग से भी बढ़कर होता है?" संझा के ये सवाल कितने तार्किक हैं। इन सवालों का न तो उसके पिता वैद्य जी
के पास है और न ही हमारे पूरे समाज के पास। किरण सिंह की यह कहानी किन्नर जीवन के
सार्थक प्रश्नों का मूलभूत आधार है। कहानी में संझा और उसके पिता वैद्य जी के
तर्कपूर्ण संवाद इस कहानी की मूल में छिपी समस्याओं को उजागर करती है। साथ ही यह
कहानी यह बताती है कि केवल किन्नर ही नही बल्कि उसके साथ उनका परिवार भी समाज से
काट जाता है। उसी तार्किक संवाद के क्रम में एक और संवाद है जहाँ
पर पिता वैद्य जी संझा की मूल समस्या उसके लिंग पर उठाते हैं। उसके पिता कहते हैं
कि, "तुम बंस नहीं बढ़ा सकती।" इस बड़े प्रश्न का उत्तर
भी संझा बड़े तार्किकता के साथ देती है। वह कहती है, "गाँव
में ऊसर औरतें भी हैं, मान से रहती हैं। बाउदी आप चुप क्यों
हैं। क्या मैं किसी के काम की नहीं?" संझा का ये प्रश्न
पूरे समाज से है। कि क्या किसी मनुष्य के जीवन का उद्देश्य केवल वंश बढ़ाना होता है?
ये एक बड़ा प्रश्न संझा ने समाज के समक्ष उठाया है। किन्नर जीवन की समस्याओं की गंभीरता को समझते हुए डॉ.
इकरार अहमद ने इस समस्या पर विमर्श की मांग की
है और इस संदर्भ में उन्होंने कहा है कि, " उत्तर
आधुनिकता के इस दौर में जब विमर्श राजनैतिक रूप लेते जा रहे हैं ऐसे समय में हिंदी
साहित्य में तीसरे विमर्श के रूप में थर्ड जेंडर की उपस्थिति एक सुखद अनुभूति का
आभास कराती है। इसकी उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि हिंदी साहित्यकार समाज के
अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रहा है।" इस कहानी की सबसे विशेष बात यह है कि वैध जी के सामने
विषम परिस्थितियां होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी बेटी संझा को अच्छी परवरिश दी
एवं उसे विचार सम्पन्न एवं आत्मनिर्भर बनाया। इसी सीख के सहारे संझा, बाद में आई उन तमाम कठिनाइयों एवं समस्याओं का डटकर सामना
करती है।अपने समक्ष आयी विपरीत परिस्थितियों से निडरतापूर्वक संघर्ष करती है। यह
कहानी पूरे किन्नर वर्ग को अपने भाग्य से लड़ने के लिए प्रेरित एवं तैयार करता है।
इसलिए कहानी की अंतिम पंक्तियाँ उन सब पर प्रश्न खड़ा करती है जो अपने भाग्य को ही
नियति मानकर बैठ जाते हैं और हार मान लेते है। " मैं अब तक भाग्य था। लेकिन
किसी मजबूर पर ताकत आजमाने वाला और किसी मजबूत की ताल से दुबक हुआ, मैं सबसे बड़ा हिजड़ा हूँ।" इस तरह संझा अपनी चारित्रिक गुणों एवं
विचारों से इस कहानी और समाज मे अपनी उपस्थिति एवं उपयोगिता दोनों दर्ज कराती है। इस संकलन की चौथी कहानी डॉ पद्मा शर्मा की
"इज्जत के रहबर है'। इस कहानी का आरंभ श्रीलाल के भाई के विवाह के बाद
सोफिया के नेतृत्व में नेग लेने आयी हिजड़ों की एक टोली
से होता है। उसी से श्रीलाल की बेटी का स्थानीय गुंडों
द्वारा बलात्कार हो जाता है। इसका पता जब सोफिया को चलता है तो उसे बहुत बड़ा झटका
लगता है। क्योंकि उसे पता है कि अपनी इज्जत खराब होने के डर से श्रीलाल इस घटना के
बारे में पुलिस को नहीं बताएगा। पर सोफिया उस गुंडे को उसके कुकर्म की सजा देना
चाहती थी। और एक दिन सोफिया चोरी-छुपके उस गुंडे को पकड़कर उसका लिंग काट देती है।
अतः सोफिया एक किन्नर होते हुए भी अपनी दिलेरी और साहस का परिचय देती है। साथ ही
अपने कर्तव्य का पालन करते हुए समाज में अपनी उपयोगिता सिद्ध करती है। अगली कहानी अंजना वर्मा की 'कौन तार से बीनी चदरिया' है। यह कहानी भी
एक किन्नर और उसके परिवार की सम्वेदनाओं पर आधारित एक मार्मिक कहानी
है। सुंदरी का एक संपन्न परिवार में जन्म होते हुए भी एक किन्नर होने के कारण,
उसे अपने घर -परिवार, मां-बहन से दूर अलग रहना
पड़ता है। एक बच्चे को जन्म देने वाली माँ की ममता तो सदा
उस बच्चे पर बनी रहती है फिर चाहे वह बच्चा किसी भी लिंग का क्यों ना हो। परन्तु
रूढ़िवादी विचारधारा के कारण एक किन्नर को अपने परिवार से अलग होना पड़ता है जो सबसे
दुःखद घटना है। इस अलगाव में किन्नर और उसका परिवार दोनों को एक भयावह पीड़ा से
गुजरना पड़ता है। यह कहानी भी इन दोनों के सम्वेदनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति है। अगली कहानी महेंद्र भीष्म की 'त्रासदी' है। यह कहानी किन्नर जीवन की
त्रासदी को बड़े ही मार्मिक ढंग से व्यक्त करती है। साथ ही लेखक ने एक किन्नर की
त्रासदी को एक स्त्री की त्रासदी के साथ जोड़ने का प्रयास किया है एयर यह बताया कि
एक किन्नर का जीवन कितना असुरक्षित एवं भयावह होता है। साथ ही लेखक ने यह भी बताया
कि त्रासदी की परिभाषा एक किन्नर के लिए कुछ और, और एक
सामान्य इंसान के लिए कुछ और ही होती है। इस संकलन की अगली कहानी के रूप में संजय गरिमा दुबे
की कहानी 'पन्ना बा' है।
इस कहानी के माध्यम से समाज में किन्नरों को लेकर विभिन्न
प्रकार की मान्यताओं एवं जिज्ञासाओं को उद्घाटित किया गया है। साथ ही यह कहानी
किन्नरों के प्रति समाज की नकारात्मक एवं भेदभाव के मानसिकता को दिखाते हुए उनके
प्रति सम्मान एवं संवेदना की भावना रखने की गुहार लगता है। क्योंकि इस कहानी का
मुख्य किन्नर पात्र 'पन्ना बा' समाज
में संवेदनाओं के अभाव के कारण खुद से ही घृणा करने को मजबूर हो जाती है और उसका
जीवन निरुद्देश्य एवं बिना किसी लक्ष्य या सामाजिक योगदान के ही गुजर जाता है।
किन्नर समुदाय भी समाज में अपना योगदान देना चाहते हैं पर समाज उन्हें मौका नहीं
देती। लेखक ने 'पन्ना बा' चरित्र के
माध्यम से किन्नर जाति के सामाजिक उद्देश्य पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अगली कहानी विजेंद्र प्रताप सिंह की 'संकल्प' एक ऐसी कहानी है जिसमें एक
किन्नर को केंद्र में रखकर उसकी शारीरिक संरचना की समस्याओं को समझने एवं सुलझाने
का प्रयास किया गया है। क्योंकि एक किन्नर का सबसे बड़ा दुश्मन उसका खुद का शरीर
ही होता है। केवल एक अंग अविकसित होने के कारण उन्हें कितनी सारी पीड़ाओं से गुजरना
पड़ता है। किन्नर भी अपना एक परिवार बसाना चाहते हैं परंतु एक किन्नर होने के कारण
उन्हें यह हक भी नहीं दिया जाता। या यह कहें कि उनसे ये हक भी समाज के लोगों
द्वारा छीन लिया जाता है। उन्हें एक इंसान का दर्जा भी प्राप्त नहीं होता। इस कहानी का मुख्य पात्र 'माधुरी' जो की किन्नर की एक ऐसी जाती है
जिसे 'बुचरा हिजड़ा' कहा जाता है।इस
जाति के किन्नरों में योनि तो होती है पर अर्धविकसित तथा लिंग होता भी है और नहीं
भी। ऐसे किन्नरों को शल्यक्रिया के द्वारा औरत बनाया जा सकता है। अतः जब 'मधुर' (माधुरी) को पता चलता है कि उसके अंदर भी
भूर्ण उपस्थित है और वह भी औरत बन सकती है तो वह तमाम तरह
के विपरीत, कठिन एवं विषम परिस्थितियों के बाद भी
कठिन परिश्रम के बल पर ऑपरेशन के द्वारा अपने शारीरिक संरचना को एक
स्त्री की शारीरिक संरचना के रूप में परिवर्तित करवाकर अपना लक्ष्य हासिल करती है।
इस लक्ष्य को हासिल कर वह अपने दृढ़ संकल्प एवं साहस का परिचय देती है। लेखक ने
माधुरी के माध्यम से एक किन्नर के शारीर विज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने का सफल
एवं सार्थक प्रयास किया है। साथी ही किन्नर वर्ग के साथ-साथ पूरे समाज को भी एक
महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। अगली कहानी डॉ लवलेश दत्त की 'बद्दुआ' एक साधारण कहानी है। इस कहानी
में लेखक ने यह बताया है कि एक परिवार में जब एक बच्चे का जन्म होता है तो किन्नर
वर्ग उस परिवार के पास उसे बधाई एवं दुआ देने पहुंचते हैं और साथ ही नेग भी मांगते
हैं।यही उनका रोजगार है। यदि कोई उन्हें अगर नेग नहीं देता या उनसे तकरार हो जाती
है तो वह उन्हें बद्दुआ दे देते हैं और उन्हें कोसते हैं। कुछ ऐसा ही रामलली के
परिवार के साथ भी होता है। उनका भी एक किन्नर की टोली के साथ तकरार हो जाता है और
वह किन्नर की टोली उन्हें बद्दुआ दे देती है जिससे उनका पूरा परिवार नष्ट हो जाता
है और अंधता उनकी आखिरी बची उम्मीद उनका बेटा मुरली भी किन्नर निकलता है और किन्नर
समुदाय में जाकर शामिल हो जाता है। वैज्ञानिकता की दृष्टि से यह कहानी कमजोर
प्रतीत होती है। अगली कहानी डॉ. विमलेश शर्मा की 'मन मरीचिका' किन्नर होने या बनने का
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है। लेखक ने यह बताया है कि "कई केसेज मनोवैज्ञानिक
होते हैं जिन्हें अगर उचित प्यार और देखभाल मिले तो वे ठीक हो सकते हैं।"
लेखक ने साधारण मनुष्य की संकीर्ण होती मानसिकता पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए
इस कहानी की पात्र सुलोचना के माध्यम से कहा है, " मानव कितने ट्रांस में जी रहा होगा, दो लैंगिक
दुनियाओं के बीच अपनी भावनाओं को समेटे
हुए।"अर्थात हम इतने संकीर्ण एवं सीमित हो गए हैं
कि अपने आप को केवल दो लिंगों की दुनिया के बीच बांध दिया है। इसके इतर हमारे लिए
सब महत्वहीन है। इसके साथ-साथ लेखक ने किन्नर को अपनी शारिरिक बनावट की समस्या से
मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टर के माध्यम से कई उपाय एवं प्रक्रिया के बारे में
बताया है जो किन्नर वर्ग के साथ-साथ पूरे समाज के लिए उपयोगी है। इस संकलन के अंतिम कहानी डॉ. मेराज अहमद की 'मैमूना मोमिना और मैनू' है। इस कहानी की केंद्रीय समस्या किन्नर के प्रति पारिवारिक प्रेम का अभाव है। यह कहानी और भी अच्छी बन सकती थी किंतु इस कहानी की पठनीयता कमजोर है एवं इसका प्रभाव इस कहानी की गति और प्रवाह पर भी पड़ता है। इससे पाठक कहानी के साथ तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाते हैं। |
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निष्कर्ष |
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि आज के युग में साहित्य में समाज का हर वर्ग अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।साहित्यिक दृष्टि से यह साहित्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि साहित्य का संबंध समाज से होता है और समाज हर उस व्यक्ति से मिलकर बनता है जो उस समाज में उपस्थित है। इस कहानी के अध्ययन से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किन्नर समुदाय की मूल समस्या अपने परिवार से विलगाव एवं समाज का किन्नर के प्रति एकांगी दृष्टिकोण है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018
2. https://m.sahityakunj.net/entries/view/hindi-katha-sahitya-mein-kinnar-swar
3. http://saagarika.blogspot.com/2019/01/blog-post.html?m=1
4. राष्ट्रीय संगोष्ठी, इक्कीसवीं सदी के हिंदी कथा साहित्य में चित्रित विविध विमर्श, सं. डॉ. राजप्पा मूंडकर माधव, आयुषी इंटरनेशनल इंटरडीसीप्लीनरी रिसर्च जॉर्नल।
5. https://sahityasrijan.com/hindi-kahaniyan-third-gender-kinnar-vimarsh/?amp=1
6. http://shodh.inflibnet.ac.in:8080/jspui/bitstream/123456789/4577/1/synopsis.pdf |
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अंत टिप्पणी | 1. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-11 2. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-14 3. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-7 4. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-7 5. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-24 6. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-25 7. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-29 8. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-30 9. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-30 10. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-30 11. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, सिंह किरण, संझा (कहानी), रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018, पृ. - फ्लैप 12. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-95 13. डॉ. सूर्यवंशी ग्यानोबाराव विमल (सं), थर्ड जेंडर चर्चित कहानियां, रोशनी पब्लिकेशन, कानपुर, संस्करण-2018,पृ-94 |