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वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के स्त्री पात्रों के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण | |||||||
Psychological Analysis of the Behavior of Female Characters in Valmiki Ramayana and Ramcharit Manas | |||||||
Paper Id :
17016 Submission Date :
2023-01-04 Acceptance Date :
2023-01-21 Publication Date :
2023-01-25
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सारांश |
राम चरित मानस और बाल्मीकि रामायण दोनों महाकाव्यों के स्त्रीपात्रों में काल एवं परिस्थिति के अनुसार उनके व्यवहार में परिवर्तन होता रहता है। जहाँ तक रामायण के पात्र स्वतंत्र है, वही रामचरित मानस के स्त्रीपात्रों को इतनी स्वतंत्रता नहीं है। रामायण की अहिल्या के साथ सहमति से समागम करती है, वही रामचरित मानसकार इस विषय में मौन है। रामायण की कौशल्या दशरथ को कठोर वचन कहती है, वहीं मानस की कौशल्या धीर और विनम्र है। वह दशरथ को धीरज बंधाती है। रामायण की सीता राम से तर्क वितर्क करती है, कटु वचन करती है, वहीं मानस की सीता विनम्र व्यवहार के साथ ही राम का अनुसरण करती है । रामायण में सीता लक्ष्मण को कटु वचन बोलती हैं और ग्लानी भाव या पश्चाताप व्यक्त नहीं करती है, वही रामचरित मानस की सीता लक्ष्मण के कठोर और मार्मिक वचन कहने पर पश्चाताप और ग्लानी की भावना से भरी हुई है। दोनों महाकाव्यों की स्त्रीपात्रों के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक चित्रण करने पर हम पाते हैं कि दोनों महाकाव्य मनोवैज्ञानिक समानता लिए हुए है, साथ ही समय काल परिस्थिति के अंतर के कारण कुछ अंतर भी पाया जाता है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The female characters of both the epics Balmiki Ramayan and Ram Charit Manas keep on changing their behavior according to time and situation. As far as the characters of Ramayana are independent, the female characters of Ramcharit Manas do not have that much freedom. Ahilya of Ramayana consorts with consent, the same Ramcharit Manas is silent in this matter. Kaushalya of Ramayana calls Dasharatha harsh words, while Kaushalya of Manas is patient and polite. She gives Dasaratha patience. Sita of Ramayana argues with Ram, utters bitter words, while Sita of Manas follows Ram with polite behavior. In the Ramayana, Sita speaks bitter words to Lakshmana and does not express remorse, while Sita of the Ramcharitmanas is filled with remorse for the harsh and poignant words spoken by Lakshmana. On psychological depiction of the behavior of the female characters of both the epics, we find that both the epics have psychological similarity, along with some difference is also found due to the difference of time and situation. | ||||||
मुख्य शब्द | मनोवैज्ञानिक, स्त्री पात्र, वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस, व्यवहार, मन। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Psychologist, Female Characters, Valmiki Ramayana, Ramcharit Manas, Behaviour, Mind. | ||||||
प्रस्तावना |
वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के स्त्रीपात्रों का व्यवहार समय काल परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। एक ही पात्र की मन:स्थिति समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। स्त्रीपात्रों की साइकोलॉजी ऐसा संदर्भ है जिसके अंतर्गत मानवीय व्यवहार और उसकी प्रतिक्रियाओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है।
मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार का विज्ञान है। ये मानवीय संबंधों को प्रभावित करता है।
मनोविज्ञान का अर्थ है मन का विज्ञान जिसे अंग्रेजी में साइकोलॉजी कहा जाता है साइकोलॉजी शब्द साइको तथा लॉजी ग्रीक शब्दों के मेल से बना है जिसका अर्थ है मन या आत्मा का विज्ञान मनोविज्ञान व्यक्ति के मानसिक क्रिया कलापों पर विचार करता है। मनुष्य के जीवन में मनोविज्ञान गर्भाधान से लेकर शैशव,बाल्यावस्था किशोरावस्था, व्यस्कता बुढ़ापे का संपूर्ण जीवन काल की क्रियाओं का अध्ययन करता है।[1]
वुड्सवर्थ ने मनोविज्ञान को व्यक्ति की क्रि याओं का विज्ञान कहा हैं।[2]
मनोविज्ञान के अंतर्गत अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है उनमें मानव व्यवहार का अध्ययन प्रमुख हैं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाज के विभिन्न स्तरों पर व्यक्ति का जो व्यवहार दिखाई पड़ता है वह उसके मन से प्रेरित होता है व्यक्ति के व्यवहार के मूल में इन्हीं मानसिक क्रिया ओं का वैज्ञानिक अध्यन करना ही मनोविज्ञान का कार्य है।[3]
आधुनिक मनोविज्ञान में ज्ञान और विज्ञान के विविध क्षेत्रों को लेकर इसकी अनेक शाखाएँ हैं- बाल मनोविज्ञान, शिक्षा मनोविज्ञान उद्योग मनोविज्ञान, समाज मनोविज्ञान स्नायु मनोविज्ञान आदि।
वेदो में, ब्राह्मण ग्रंथों में और उपनिषदों में मन का शास्त्रीय विवेचन किया गया है। इनमें मन के गुण धर्म स्वरूप की समीक्षा की गई है। ब्राह्मण ग्रंथों मेंमन को ब्रह्म कहा गया है।
“मनो ब्रह्म”[4]
उपनिषदों में मन को शरीर में आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है- “मन एवश्य आत्मा“[5]
महान ग्रंथ गीता में मन के निग्रह का उपाय अभ्यास और वैराग्य को बताया गया है।[6]
आधुनिक मनोविज्ञान में फ्रायड ने मन की तीन अवस्था मानी हैं –चेतनमन, अचेतन मन, अर्धचेतन मन।[7]
डॉ युंग मन के दो भाग मानते हैं- एक ज्ञानतम और दूसरा अज्ञानतम है। ज्ञानतम की अपेक्षा अज्ञानता के संबंध में उनकी कल्पना विस्तृत है। दोनों मनों की तुलना करते हुए डॉ युंग कहते हैं की मन एक सागर के समक्ष है जिसका एक द्वीप ज्ञात मन है व शेष अज्ञात ।अज्ञात मन को भी दो भागों में विभाजित किया गया है व्यक्तिगत अज्ञात मन एवं सामूहिक अज्ञात मन।[8]
विचारक निष्कर्ष के लिए अनुभूति का उपयोग करते है कवि औरउसकेसामाजिक अनुभूति के लिए अनुभूति का उपयोग करते हैं फिर भी उससे निष्कर्ष स्वतः निकलता है।[9]
वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के स्त्रीपात्रों की प्रकृति, चरित्र, नैतिकता एवं कार्य आदि की विविधता दिखाई देती है। इन्हीं विविधताओँ के आधार पर दोनों महाकाव्यों के स्त्रीपात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन की उपयोगिता प्रासंगिक है।
वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करने पर स्त्रीपात्रों के अनेक रूप उभर कर आते हैं। जिसप्रकार कैकेयी प्रेम, संदेह व आक्रोश आदि संवेगो से क्रमश: उद्वेलित होती हुई ध्वंस एवं विनाश के कार्य में प्रवृत्त होती है और परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाकर तथा दशरथ से वरदान मांगकर राम को वन भेजने के लिए कठोर क्रूर एवं पाषाण हृदय बन जाती है उसमें पर्याप्त स्वाभाविकता है। मनोवैज्ञानिकता है उनके व्यक्तित्व के संगठन में सर्वाधिक प्रबल मनोवैज्ञानिक तत्व मूल प्रवृत्ति संतान की रक्षा तथा उसका सम्बेग वात्सल्य है।[10]
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अध्ययन का उद्देश्य | वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के स्त्रीपात्रों का व्यवहार समय काल परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। एक ही पात्र की मनस्थिति समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। स्त्रीपात्रों की साइकोलॉजी ऐसा संदर्भ है जिसके अंतर्गत मानवीय व्यवहार और उसकी प्रतिक्रियाओं काविस्तार से अध्ययन किया जाता है। |
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साहित्यावलोकन | 1- वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के इस
स्त्रीपात्रों का जब हम व्यवहार का मनोवैज्ञानिक विचार विमर्श करते हैं- तो पाते हैं कि उनका व्यवहार बंधन मुक्त या
स्वेच्छाचारी व्यवहार, पुरुष पात्रो के प्रति प्रभुत्व
पूर्ण व्यवहार, स्वार्थपरता पूर्ण व्यवहार, पश्चाताप पूर्ण व्यवहार या मनोवृत्ति, वैचारिक
संघर्ष एवं दंड पूर्ण व्यवहर के मनोवैज्ञानिक विविध रूप दृष्टिगोचर होते हैं। वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के इस स्त्रीपात्रों
का बंधन मुक्त या स्वेच्छाचारी व्यवहार का मनोवैज्ञानिक चित्रण करते हैं तो पाते
हैं कि उस काल की स्त्री बेकाबू, निरंकुश, बंधनरहित,
स्वच्छंद,निर्भय आजाद, निडर,
लापरवाह, स्पष्टवक्ता, स्वामीहीन,
अप्रतिबंध सी नज़र आती है। क्योंकि जब इंद्रा कपट रूप धारण कर महर्षि
गौतम के भेष में आता है और अहिल्या इंद्र को पहचान लेती है फिर भी समागम के लिए तैयार हो जाती है और उसके
प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है ऐसा दृष्टांत वाल्मीकि रामायण में है- मुनिवेषं सहस्त्राक्षं विज्ञाय रघुनंदन। मति चकार दूर् मेधा देवराज कुतूहालात।।[11] यही नहीं समागम या रतिक्रिया करने के पश्चात्
इंद्रदेव से कहती है- सुरश्रेष्ठ मैं
आपके समागम से कृतार्थ गई-“अथाब्रीवीत सुरश्रैष्ठं
कृतार्थेनान्तरात्मना।।“[12] राजा दशरथ कैकेयी से अत्यधिक प्रेम करते थे। किंतु जब
कैकेयीउनकी बात नहीं मानती है तो दशरथ कहते हैं- मैं तुझे अत्यंत सत साध्वी समझता था परंतु तू तो बड़ी दुष्टा निकली।[13] रामवन में सीता को ले जाना नहीं चाहते हैं किंतु सीता
प्रतिउत्तर में राम से कहती है- पिता, माता, भाई, पुत्र
और पुत्रवधू यह सब पुण्य आदि कर्मों का फल भोगते हुए अपने अपने भाग्य के अनुसार
जीवन निर्वाह करते हैं।[14] सीता अपनी बात को मनवाने के लिए राम को धमकी देती है
की मैं आत्महत्या कर लूंगी- यदि मांदु:खितामेंव वनं नेतुं नचेच्छासि। विषमग्निं जलंबाहमास्थास्यं मृत्युकारवात।।[15] बंधन मुक्त होने के कारण ही कैकेयी अपने पति से राम
को वनवास दिला देती है और सीता अपने तर्कों के माध्यम से राम के साथ जाने के लिए
राम को राजी कर लेती है। स्त्री का स्वतंत्र या स्वच्छंद आचरण के कारण ही
मंथरा अपनी महारानी कैकेयी से रोष में आकर कह देती है- मूर्खे उठ क्या सो रही है तुझ पर बड़ा भारी भय आ रहा
है।[16] रावण की बहन सूर्पणखा स्वतंत्र या बंधनमुक्त होकर राम
और लक्ष्मण के ऊपर मोहित होकर काम भावना से प्रेरित होकर विवाह का प्रस्ताव
रख देती है।[17] रावण की पत्नी मंदोदरी रावण को दूर्मते तब कह देती है।[18] इसी प्रकार रामचरित मानस में अहल्या का रूप एक पतिव्रता नारी का है। मानस
में कैकेयी का चरित्र त्रियाहठ से युक्त अथाह समुद्र है।उसका प्रेम दशरथ के प्रति
कपटपूर्ण है- कपट मनेहुँ बढहि बहोरी।[19] रामचरित मानस में भी कैकेयी मरने की धमकी देती है- होत प्रातःमुनिवेश धरिजैं न रामु वन जाहिं। मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं।।[20] वही सीता भी अपनी बात को मनवाने के लिए मरने की धमकी
देती है- राखिअ अवध जो अवधि लागि , रहत न जिनअहिं।
प्रान।।[21] सीता भी अपनी बात को मनवालेती है ,सूर्पणखा भी विवाह का प्रस्ताव स्वतंत्र और वंधनमुक्त हो कर
देती है। मंदोदरी भी रावण को फटकार लगाती है। कहने का तात्पर्य है कि रामायण और
मानस दोनों की स्त्री पात्र वंधनमुक्त या स्वेच्छाचारी व्यवहार करती हुई दिखाई
देती है। 2- वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के स्त्रीपात्रों
का पुरुषों के प्रति प्रभुत्व पूर्ण व्यवहार का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर हम पाते
हैं कि - दोनों महाकाव्यों में स्त्रीपात्रों के कारण ही रामकाव्य की कथा में नवीन
मोड़ आता है राम को राज्य के स्थान परकैकेयी वनवास दिलवा देती है।वही सीता वनवास
जाने की बात को राम से स्वीकार करवा लेती है।वैचारिक चातुर्य के बल पर ही सूर्पणखा
रावण द्वारा सीता का अपहरण करवाती हैं। ऐसे उदाहरण दोनों महाकाव्यों में मिलते है
।रामायण में कैकेयी – अध हि विषमधैव पीत्वा बहुतवाग्रतः। पश्यतस्ये मरिष्यामि शमोयद्यभिषिच्यते।।[22] रामचरित मानस में भी
कैकेयी का यही रूप है- सुनहु प्राणप्रिय भावत जी का देहु एक वर मेंहिं टीका।[23] जब राम सीता को बनवास पर ले जाने से मना करते हैं तब
सीता किस प्रकार व्यवहार करती है-- मेरे पिता ने क्या कभी आपको जमाता के रूप में पाकर यह
भी समझा था की आप शरीर से ही पुरुष हैं कार्यकलाप से तो नारी है।[24] सीता लक्ष्मण से मर्म वचन कहती है और उसे जाने के लिए
मजबूर करती है ऐसा रामायण में उल्लेख मिलता है- सुदुष्टस्त्वं वने राममेकमेकोअनुगच्छासि मम हितों प्रचिच्छन्नप्रयुक्तो भरतेनवा।।[25] तारा का अपने पति बाली पर वैचारिक प्रभुत्व दिखाई
पड़ता है साथ ही रावण की पत्नी मंदोदरी का भी वैचारिक प्रभुत्व दिखाई पड़ता है— अद्य तनयां कहि नीति बुझाने।[26] कहने का तात्पर्य है कि दोनों महाकाव्यों में ही वैचारिक
दृष्टि से स्त्रीपात्रों का ही प्रमुख दिखाई पड़ता है जहाँ तक रामायण के
स्त्रीपात्रों की बात करें तो वे पुरुषों पात्रो पर जिद करके, धमकी देकर, फटकार लगाकर या क्रोध के
माध्यम से अपनी बात को मनवा लेती है ,वहीं मानस की स्त्री
अपनी बात को मनवाने के लिए विनय का सहारा लेती है। 3- रामायण और रामचरित मानस के स्त्रीपात्रों का
स्वार्थपूर्ण व्यवहार का मनोवैज्ञानिक चित्रण करने पर हम पाते हैं कि ये पात्र भी
काम, क्रोध, मद, मोह लोभ और स्वार्थ से भरे हुए हैं। काली दास के अनुसार- ज्ञानवान व्यक्तियों के नेत्र भी रजोगुण द्वारा बंद
हो जाते हैं और वे कुपथ में पग धरते हैं।[27] मनुष्य की असद्प्रवृत्तियोंमें एक वृत्ति स्वार्थ की
है।स्वका अर्थ है अपना। इस प्रकार स्वार्थ का अर्थ है- जिसमें स्वयं का हित छुपा
हुआ हो। फिर जब मनुष्य अपने हित या स्वार्थ के लिए कार्य करता है तो वे स्वार्थ
कहलाता है। रामायण और रामचरित मानस के स्त्री पात्रस्वार्थ भावना से भरे हुए
हैं।कैकेयी कीदासी मंथरा स्वार्थ भाव से प्रेरित होकर ही महारानी कैकेयीको अशिक्षा
देती है- तवदु:खेनकैकेयीममदु:खमहद्भवेत।[28] कोउनृपहोउहमहिकाहानि। चेरछाडिअबहोबकीरानि।।[29] कहने का तात्पर्य यह है कि दासी मंथरा अपने स्वार्थ
के विषय में सोचते हुए महारानी कैकेयीको सलाह देती है। महारानी कैकेयी भी स्वार्थ
भाव से परिपूर्ण होकर ही राम को वनवास और भरत के लिए राज्य मांगती हैं। कैकेयी
स्वार्थ में इतनी अंधी हो जाती है कि अपने पति दशरथ के अनुनय विनय की अवहेलना कर
देती है और अपनी बात पर अडिक रहती है।[30] रामचरित मानस में भी यही प्रसंग हैं— कहइ करहु किन
कोटि उपाया। इशांत न लानिहिं राउरि माया।।[31] शूर्पणखा भी
स्वार्थ भावना में भरकर राम और
लक्ष्मण का अहित करना चाहती है और सीता को भी इसके लिए दोषी मानती है इस प्रकार हम
कह सकते हैं कि दोनों महाकाव्यों की स्त्री पात्र स्वार्थ भावना से भरी हुई है। 4- रामायण और रामचरित मानस के स्त्री पात्र पुरुष पात्रों के प्रति दंडात्मक व्यवहार
करती है। वे प्रतिप्रतिशोध की भावना से भरी हुई है। ताड़का प्रतिशोध की भावना से भरी
हुई है साथ ही शूर्पणखा भी प्रतिशोध की भावना से भरी हुई है- वरदान कृतं वीर्य धारयत्वला बलम।[32] अगस्त ऋषि ने ताड़का के पति सुन्द को मार डाला था इसके
बदले में-- मुनि अगस्त को प्रतिशोध लेने की इच्छा से वह मौत के घाट उतार देने की
इच्छा करने लगी।।[33] हिमवान की पुत्री और
उमा का पति शिव के साथ क 100 वर्ष
से अधिक व्यतीत होने के बाद भी पुत्र नहीं हुआ तब देवता शिव और शक्ति को कीड़ा से
निवृत्त करते हैं, तब उमा का प्रतिशोध रूप देखने लायक है--- यस्माभि वारिता
चाहे संगता पुत्र काम्यया । अपत्यं स्वेषु
दारेषु नोत्पादयितु महर्थ आद्य प्रवृत्ति युष्माकं प्रजा: सन्तु पत्नय:।।[34] महारानी कैकेयी सपत्नी के प्रति दु: भाव होने के कारण
ही अपने पति दशरथ से सपत्नी पुत्र के लिए वनवास मांग लेती है।[35] इसी प्रकार शूर्पणखा
भी नाक कान काटने के बदले में राम लक्ष्मण को दंड दिलाना चाहती है और रावण
को झूठी कहानी सुनाती है- मैं सीता को तुम्हारी भारया बनाना चाहती थी तब क्रूर
लक्ष्मण ने उसे इस तरह कुरूप कर दिया।[36] जब सती शिव का अपमान महसूस करती है तब बदला लेने के
लिए प्रतिशोध की भावना से भर कर स्वयं को समाप्त कर लेती है- अस काहि जोग
अगनि तनुजारा।[37] कैकेयी कहती हैं-- मैं भले ही नैहर जाकर जीवन बिता
दूंगी पर जीते जी सौत की चाकरी नहीं
करूँगी।[38] वे प्रतिशोध की भावना से भर कर कहती है –कौशल्या ने जैसा मेरा भला चाहा है मैं भी उन्हें वैसा ही फल
दूंगी।[39] शूर्पणखा राम लक्ष्मण द्वारा अपमानित होने पर सीता को
दंड देने या दिलाने के लिए सीता के सौंदर्य का बखान रावण के सम्मुख करती है- रूप रासि विधि नारी संवारी। रति सत कोटु तासु बलिहारी।।[40] कहने का तात्पर्य है की नारी पात्र किसी भी तरह से
पुरुष पात्र को दंड देना चाहती है इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े यहाँ तक की नैतिक
मूल्यों के विरोध में जाकर या झूठ बोलना पड़े तो भी इसके लिए भी तैयार हो जाती है। 5- दोनों महाकाव्यों मेंस्त्री पात्रो वैचारिक संघर्ष
का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने पर हम पाते हैं की बैचारिक द्वन्द्व वह प्रक्रिया
है जिसमे दो परस्पर विरोधी विचारों के संघर्ष से सत्य तक पहुँचते हैं ।रामायण की
स्त्री पात्र सीता के मन में अंतर्द्वंद चलता है की राम को वन मार्ग पर मुझे ले
जाने में किस से भय हो रहा है इसके कारण राम अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर रहे
हैं--- तनमन वचनमोर पनु सांचा। रघुपति पद सरोज चित्तुराचा।।[41] माता कौशल्या की वैचारिक संघर्ष या द्वंद का सटीक उदाहरण है कि एक ओर तो पुत्र के वनवास का दुख है वहीं दूसरी ओर राम के कर्तव्य मार्ग में बाधा नहीं डालना चाहती है-- राखि न सकइ न कहि
सक जाहूँ। दुहूं द भाँति उर दारून दाहूं।।[42] |
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निष्कर्ष |
दोनों महाकाव्य कि स्त्री पात्र पश्चाताप पूर्ण व्यवहार करते हैं।ग्लानी दुख या खेद से भरे हुए हैं। कौशल्या वनवासके लिए दशरथ को दोषी मानती है और उपालंभ देती है। कौशल्या की कठोर वाणी सुनकर दशरथ दुखी होते हैं और अचेत हो जाते हैं। बाद में कौशल्या पश्चाताप या ग्लानि से भर कर क्षमा याचना करती है। चित्रकूट में जनक जी का आगमन सुनकर कैकेयी मन ही मन पश्चाताप से गलने लगती है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. मनोविज्ञान, राबर्टएस बुड्वर्थ तथा डोनाल्डजियेस मार् विक्स, अनुवाद उमापति राय चंदेल,पृ 2
2. साइकोलॉजी दे फंडामेंटल ऑफ ह्यूमन एडजस्टमेंट बूट्स बर्थ पृ संख्या 18
3. मनोविज्ञान की ऐतिहासिक रूपरेखा ,डॉ सीताराम जायसवाल पृष्ट संख्या 31
4. गोपथ ब्राह्मण 1/2/11
5. बृहद उपनिषद 1/4/ 17
6. गीता 6/35
7. जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइकोलॉजी फ्रायड पृ संख्या 246
8. असामान्य मनोविज्ञान, हंसराज भाटिया पृ संख्या 261
9. लिटरेचर एंड साइकोलॉजी एफएल लुकस पृ सं 262
10. हिंदी महाकाव्यों में मनोवैज्ञानिक तत्व डॉ लालता प्रसाद सक्सेना, द्वितीय भाग,पृ संख्या 316
11. वाल्मीकिरामायण,वाल्मीकि
12. रामचरितमानस, तुलसीदास
13. रघुवंश, कालिदास, नवम् सर्ग, श्लोक 74 |