ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IX December  - 2022
Anthology The Research
रूहेलखंड क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति एवं संगीत
Civilization, Culture and Music of Rohilkhand Region
Paper Id :  16984   Submission Date :  08/12/2022   Acceptance Date :  22/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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अंकिता
असिस्टेन्ट प्रोफेसर
संगीत विभाग
राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
रामपुर,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश उत्तर प्रदेश राज्य के रुहेलखण्ड क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति एवं संगीत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। पूर्व में यह क्षेत्र पांचाल कहलाता था। रुहेले पठानों की सत्ता स्थापित करने के पश्चात यह क्षेत्र ‘ रुहेलखण्ड’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह क्षेत्र विद्या एवं कला कौशल का केंद्र रहा है। इस क्षेत्र की सभ्यता एवं संस्कृति को देखने पर यहाँ की सम्पन्नता का अनुमान होता है। रुहेलखण्ड के अंतर्गत बदायूं, बरेली, ज्योतिबा फुले नगर, रामपुर, पीलीभीत, मुरादाबाद, बिजनौर, और शाहजहांपुर जनपद सम्मिलित हैं। यहाँ के अनेक ऐतिहासिक स्मारक, मंदिर, मस्जिद पूर्ण रूप से या उनके अवशेष आज भी प्रसिद्ध हैं, जहाँ लोग दर्शन करने के लिए दूर दूर से आते हैं । रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी उर्दू ,फ़ारसी की एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में से एक है । रज़ा लाइब्रेरी में अरबी, फारसी, संस्कृत, तुर्की, पश्तो, हिंदी व उर्दू भाषाओं की प्राचीन कालीन तथा मुगलकालीन पांडुलिपियों का संग्रह है। यहाँ के नवाबों का साहित्य व संगीत के प्रति विशेष प्रेम रहा है। नवाबों द्वारा विभिन्न साहित्यकारों, कलाकारों,संगीतज्ञों को संरक्षण प्रदान किया गया तथा उनके द्वारा इन्हें पुरस्कृत भी किया गया। शास्त्रीय संगीत के घरानों के घराने रामपुर सहसवान घराना व भिन्डी बाज़ार घराना रुहेलखण्ड क्षेत्र के विख्यात घरानों में से एक हैं। उपशास्त्रीय संगीत के अन्तर्गत हिन्दुस्तानी गायन शैली का ध्रुपद रुहेलखण्ड क्षेत्र की प्रचलित गायन विधा है तथा रुहेलखण्ड क्षेत्र का लोकसंगीत तीन भागों में विभाजित है- लोकगीत,लोकगाथा व चहारबैत। रुहेलखण्ड का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है जो आज भी अपनी,सभ्यता, संस्कृति एवं संगीत को स्थापित किये हुआ है। अत: इस क्षेत्र पर शोध कार्य करने पर अनेक जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Ruhilkhand region of Uttar Pradesh state has a glorious history of civilization, culture and music. Earlier this region was called Panchal. After establishing the power of Ruhel Pathans, this area became famous as 'Ruhelkhand'. This area has been the center of learning and art skills. Seeing the civilization and culture of this region, the prosperity of this region can be estimated. The districts of Badaun, Bareilly, Jyotiba Phule Nagar, Rampur, Pilibhit, Moradabad, Bijnor, and Shahjahanpur are included under Rohilkhand. Many historical monuments, temples, mosques or their remains are famous even today, where people come from far and wide to visit. Rampur's Raza Library is one of Asia's largest library of Urdu, Persian. Raza Library has a collection of ancient and Mughal period manuscripts in Arabic, Persian, Sanskrit, Turkish, Pashto, Hindi and Urdu languages. The Nawabs of this place had special love for literature and music. Various litterateurs, artists, musicians were patronized by the Nawabs and they were also rewarded by them. Gharanas of classical music, Rampur Sahaswan Gharana and Bhindi Bazar Gharana are one of the famous gharanas of Ruhelkhand region. Under classical music, Dhrupad of Hindustani singing style is the popular singing form of Ruhelkhand region and the folk music of Ruhelkhand region is divided into three parts- Folk songs Folklore and Chaharbait. Therefore, Ruhilkhand has a golden history, which has maintained its civilization, culture and music even today, many information can be obtained by doing research on this area.
मुख्य शब्द रुहेलखण्ड, संस्कृति, सभ्यता, रज़ा लाइब्रेरी, रामपुर के नवाब।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rohilkhand, Culture, Civilization, Raza Library, Nawab of Rampur.
प्रस्तावना
किसी भी क्षेत्र के मूल स्तंभ वहां की सभ्यता संस्कृति और संगीत होते हैं । रुहेलखण्ड क्षेत्र अपनी लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है । प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण रहा है । सभ्यता की ओर दृष्टि डालने पर ज्ञात होता है कि पांचाल अर्थात रुहेलखण्ड में शुद्ध वैदिक धर्म का विशेष प्रभाव था । यह क्षेत्र संगीत, साहित्य, ज्ञान, दर्शन व कला कौशल का प्रमुख केंद्र होने के साथ साथ साम्प्रदायिक सौहाद्र की मिसाल भी रहा है । यहाँ के पर्व ,धार्मिक स्थलों, मेलों, हस्तकला, चित्रकला व संगीत का अपना एक अलग रंग है । पुरातात्विक दृष्टि से भी यह क्षेत्र समृद्ध रहा है । यहाँ के शासकों ने संगीत को संरक्षण प्रदान करने में विशेष योगदान दिया । उनके द्वारा संगीत सम्बन्धी विभिन्न ग्रंथों की रचना भी की गई । साथ ही कलावन्तों, कवियों, शायरों को भी संरक्षण प्रदान किया । यहाँ के नवाब स्वयं संगीत और साहित्य प्रेमी रहे । इन्होने इस क्षेत्र के सांस्कृतिक महत्त्व को समझा तथा प्राश्रय प्रदान किया । रुहेलखण्ड क्षेत्र की संस्कृति में लोक संगीत, लोक गाथा का तथा शास्त्रीय संगीत के प्रमुख संगीत घरानों - रामपुर सहसवान घराना व भिंडी बाज़ार घराना एवं उनके कलाकारों का संगीत जगत में एक विशेष स्थान रहा है । रामपुर सहसवान घराने के उo मुश्ताक़ हुसैन खां को 1951 में राष्ट्रपति पुरस्कार तथा 1957 में गायकी के क्षेत्र में पहला पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया । साहित्य के क्षेत्र में भी रुहेलखण्ड की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । वसीम बरेलवी, जिगर मुरादाबादी, दुष्यंत कुमार, अब्दुल क़ादिर बदायूनी, चंडी प्रसाद “हृदयेश” इत्यादि साहित्यकार एवं शायर यहाँ की मिटटी की खुशबु संजोय हुए हैं । रुहेलखण्ड क्षेत्र के कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतज्ञों ने संपूर्ण भारतवर्ष ही नहीं अपितु विश्व में भी अपनी प्रतिभा का परचम लहरा कर रुहेलखण्ड का नाम गौरवान्वित किया है । रामपुर जनपद की रज़ा लाइब्रेरी में इस क्षेत्र से सम्बंधित विभिन्न जानकारी उपलब्ध है ।
अध्ययन का उद्देश्य 1. रुहेलखण्ड की संस्कृति का परिचय कराना । 2. संगीत जिज्ञासुओं का इस क्षेत्र की ओर ध्यान केन्द्रित करना । 3. संगीत व साहित्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों को उजागर करना ।
सामग्री और क्रियाविधि
पुस्तकों, पत्रिकाओं, समाचार पत्रों आदि द्वारा इतिहास की जानकारी प्राप्त करना। क्षेत्र के प्रमुख पुस्तकालयों का भ्रमण कर जानकारी प्राप्त करना।
परिणाम

सभ्यता मानव के विकास  की कथाकार है, आवश्यकता और परिवर्तन इसकी जननी है। अत: सभ्यता को उत्पन्न नही किया जा सकता। मानव जीवन के उत्थान व पतन का प्रमाण है सभ्यता। किसी भी क्षेत्र की सभ्यता को समझने के लिए सर्वप्रथम उस क्षेत्र के भौगोलिक पक्ष को समझना आवश्यक होता है। भौगोलिक कारक उस क्षेत्र की संस्कृति को प्रभावित और विकास करने में सहयोग करते हैं। संस्कृतिअर्थात सम’=(उत्तम)=+ कृति’ =(चेष्टाएँ)। यदि संस्कृति का आशय उत्तम कृति(उपलब्धि) या अभिव्यक्ति है तो निश्चित ही उसका सम्बन्ध मनुष्य के शरीर, प्राण, मन, बुद्धि आदि से है। अत: वे उत्तम अभिव्यक्तियाँ ही संस्कृति हैं, जिनके द्वारा मानवता को सतत ही विशिष्टता प्राप्त होती है।[1] किसी भी समाज की विरासत जैसे  शिक्षा, रहन-सहन, खान-पान, परम्पराएं, साहित्य,संगीत आदि संस्कृति  होती हैं और उनका विकास संगृहीत होने पर ही संभव है। संस्कृति के मुख्य अंग दर्शन, धर्म, संस्कार, सभ्यता, कला व  संगीत हैं और  कला का संस्कृति में विशिष्ट स्थान रहा है, जिसमे संगीत कला  सभ्यता और संस्कृति के प्राण है। जन्म मरण, कथा, शिक्षा, ईश्वरोपासना, परम्पराओं, दैनिक कार्यों  सभी में संगीत का एक महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत मनुष्य में सदैव एक नई उर्जा का संचार करता रहा है।

उत्तर प्रदेश राज्य के रुहेलखण्ड क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति एवं संगीत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। रुहेलखण्ड क्षेत्र का सर्वप्रथम उल्लेख महाभारत में मिलता है। पूर्व में यह क्षेत्र पांचाल कहलाता था। कालांतर में वृहद आकार के कारण दो भागों में विभाजित यह क्षेत्र अहिच्छत्र, तत्पश्चात परिस्थिति अनुसार कटेहर हुआ। अफ़गानिस्तान से बढ़ी संख्या में रुहेलों का आगमन होने के कारण सम्पूर्ण कटेहर का यह क्षेत्र अठारहवीं सदी के मध्य में रुहेलखण्ड कहलाया। रोहिला सैनिक अफ़गानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र रोह के रहने वाले थे। रुहेले पठानों की सत्ता स्थापित करने के पश्चात यह क्षेत्र रुहेलखण्डके नाम से प्रसिद्ध हुआ।[2]

वैदिक काल में इस क्षेत्र में औषधि विज्ञान की शिक्षा प्रदान की जाती थी व विभिन्न प्रयोगशालाएँ भी थीं। वैदिक रचनाओं से ज्ञात होता है कि पांचाल में शुद्ध वैदिक धर्म का विशेष ज़ोर रहा। यहाँ अश्वमेघ यज्ञ एवं राजसूय यज्ञ भी बहुत हुए।[3] यहाँ की स्त्रियाँ उच्चकोटि की विदूषी होती थीं।  महाभारत काल में राजा द्रुपद ने पांचाल पर राज्य किया तथा अहिच्छत्र को अपनी राजधानी बनाया। पांडवों की पत्नी द्रौपदी इन्ही राजा द्रुपद की पुत्री थीं।[4] बौद्ध साहित्य में पांचाल सम्बंधी अनेक  विवरण मिलते हैं। प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथों में 16 महाजनपदों का वर्णन    है।[5] जो भारतवर्ष के अति शक्तिशाली राज्य थे। उसमें पंचाल भी था और उसका महत्वपूर्ण स्थान था। इस महाजनपद का वर्णन हमें जैन ग्रंथों में भी मिलता है, उसमें यह राज्य संघ राज्य कहा गया।[6]  जैन ग्रंथों के  अनुसार महावीर स्वामी ने जनता को  यहाँ धर्मोपदेश दिया। यहाँ की खुदाई  में टूटे हुए मंदिर, मूर्तियां, नगर  सभ्यता, सिक्के आदि  प्राप्त हुए इससे उसकी संपन्नता, धार्मिक  स्थिति एवं नगरीय व्यवस्था का ज्ञान होता है। अहिच्छत्र से प्राप्त अवशेषों में जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की मूर्तियाँ प्राप्त हुई है। इससे ज्ञात होता है कि भगवान नेमिनाथ के मंदिर यहाँ थे, जिनमें उनकी मूर्तियां विराजमान थी।[7] गुप्तकाल में समुद्रगुप्त का समकालीन, अहिच्छत्र का पांचाल शासक बौद्ध सम्राट अच्युतथा। सन 638 में यहाँ आये सुप्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने विवरण में शिलादित्यनाम के बौद्ध  शासक का वर्णन किया है। सन 1004 ई. में सूर्यवंशी राजपूतों की एक प्रजाति कटेहरियाकन्नौज से उत्तर की ओर चलकर इस क्षेत्र में बस गई तभी से यह क्षेत्र पांचाल के स्थान पर कटेहर के नाम से जाना जाने लगा ।[8] यह क्षेत्र विद्या एवं कला कौशल का केंद्र रहा है । इस क्षेत्र की सभ्यता को देखने पर यहाँ की सम्पन्नता का अनुमान होता है।

रुहेलखण्ड के अंतर्गत बदायूं, बरेली, ज्योतिबा फुले नगर, रामपुर, पीलीभीत, मुरादाबाद, बिजनौर, और शाहजहांपुर जनपद सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र का बदायूं ज़िला हिंदुमुस्लिम व बौद्ध धार्मिक स्थानों के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए राजा समुद्रपाल (सालवाहन) ने सहसवान के निकट कोट गाँव में एक विशाल किले का निर्माण संवत् 123 में कराया तथा संतों व भिक्षुओं के लिए गुफा बनाई जिसके अवशेष आज भी शेष हैं। इन्ही राजा के द्वारा ऐतिहासिक तीर्थ सप्तस्रोत का पुनर्निर्माण कराया । कुछ लोगों के अनुसार राजा विक्रमादित्य द्वारा  सप्तस्रोत का जीर्णोद्धार बताया जाता है कहा जाता है कि रावण को युद्ध में पराजित करने वाले चक्रवर्ती सम्राट सहस्त्रबाहु ने भूमि में सात बाण मारकर जल स्रोत निकला था। वर्तमान में यह स्थल सरसौता के नाम से जाना जाता है। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर मुहम्मद साहिब के दामाद  हज़रत अली के परिवार के संत व सुल्तानुल आरफीन  ख्वाजा हसन शेख शाही की समाधि बड़ी-ज्यारत के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। निज़ामुद्दीन औलिया के वालिद की मज़ार भी यहीं है। मुस्लिम धार्मिक विद्वानों द्वारा बदायूं को मदीनातुल  औलियाका नाम दिया गया है। यहीं पर स्थित जामा मस्जिद एशिया के सबसे पुरातन धार्मिक स्थलों में सम्मिलित है। यह मस्जिद प्राचीन वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट नमूना है। दीपावली के बाद कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला ककोड़ा-मेला भारतवर्ष में ख्याति प्राप्त है। इस अवसर पर गंगास्नान के लोग बहुत दूर दूर से आते है। पीलीभीत से कुछ किलोमीटर दूर जहानाबाद के पास चक्र-सरोवर है जो चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण राजा बलि द्वारा किया गया था कहा जाता है कि यहाँ भगवान् कृष्ण के सुदर्शन चक्र ने जल समाधि ली थी। जनपद ज्योतिबा फुले नगर अमरोहा में स्थित संत शफीउद्दीन शाह विलायत की दरगाह में बिच्छु पाए जाते हैं। वह किसी को भी नहीं काटते मुरादाबाद में रामगंगा नदी के किनारे स्थित शरीफ हज़रत शाह बुलाकी साहिब रहमतुल्लाह का मज़ार लगभग 255 वर्ष पुराना है । प्रत्येक वर्ष इनके उर्स में सभी धर्मों के लोग अपनी हाज़री देने के लिए आते हैं। चौरासी घंटा के नाम से भी भगवान् शिव का एक प्राचीन मंदिर है। ज़िला रामपुर के पंजाब नगर स्थित नागेश्वर मंदिर, रठौडा व भमरौव्वा  स्थित प्राचीन शिव मंदिर प्रसिद्ध हैं। ऐतिहासिक स्मारकों में यहाँ की प्रसिद्ध रज़ा लाइब्रेरी, क़िला परिसर में स्थित मछ्ली भवन, रंग महल  सम्मिलित हैं। रज़ा लाइब्रेरी का नामकरण यहाँ के अंतिम नवाब रज़ा अली के नाम पर किया गया है जो कि उर्दू ,फ़ारसी की एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में से एक है। रजा लाइब्रेरी में अरबी, फारसी, संस्कृत, तुर्की, पश्तो, हिंदी व उर्दू भाषाओं की प्राचीन कालीन तथा मुगलकालीन पांडुलिपियों का संग्रह है। पांडुलिपियों के अन्तर्गत संस्कृत की  प्रबोध चंद्रिका, ज्योतिषमाला और महिमा सूत्र, हिंदी की मधुमालती, अंग दर्पण व  रस प्रबोध, हिंदी कविताओं का संग्रह नादिराते शाही, मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत फारसी अनुवाद के साथ ही लिखा गया है तथा हिंदुस्तानी संगीत से संबंधित- नगमातुल असरार, नग्मतुलहिन्द, फ़लसफ़ये मौसीकी, रहनुमाय हारमोनियम, संगीत सागर व रागमाला आदि सम्मिलित हैं। रामपुर रियासत रही है तो इसी  कारण नवाबी परंपरा की यहाँ छाप भी रही है ।

यहाँ के नवाबों  का साहित्य व संगीत के प्रति विशेष र्प्रेम रहा है रूचि रही है। नवाबों द्वारा विभिन्न साहित्यकारों, कलाकारों,संगीतज्ञों को संरक्षण प्रदान किया गया। यही नहीं उनके द्वारा इन्हें पुरस्कृत भी किया जाता था  इस क्षेत्र से ग़ालिब, मोमिन एवं असर लखनवी जैसे शायरों का सम्बन्ध नवाब युसूफ अली खां के समय में रहा है। मौलाना फ़ज़ल हक़ खैराबादी’, मीर हुसैन तस्कीनतथा जनाब अमीर मीनाई जैसे विद्वान् शायर उनके दरबार की शोभा थे। नवाब कल्ब्ने अली द्वारा दाग़, मुनीर, असर जैसे शायरों को सम्मानित किया। उस्ताद ख्याल रामपुरी, उ० डॉ. शोक असरी, होश नोमानी, अजहर इनायती, मोहम्मद शब्बीर अली शकेबव अन्य इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।[9] नवलराय वफ़ाव हज़रत शाह बुलाकी बोलामुरादाबाद में ग़ज़ल व दोहों के पहले शायर हैं। उन्नीसवीं शताब्दी में ज़की  मुरादाबादी ने पूरे भरत में मुरादाबाद का नाम रौशन किया और बीसवीं  शताब्दी में जिगर जैसे शायर विश्व में मुरादाबाद की साहित्यिक पहचान बना।[10] अरबी फ़ारसी के विद्वान मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी शहंशाह अकबर के नवरत्नों में एक थे। इनके द्वारा रामायण-गीता, महाभारत और सभी पुराण फ़ारसी एवं अरबी भाषा में लिखे गए थे। इनके अतिरिक्त अनेक प्रसिद्ध शायर ख्याति प्राप्त कर रुहेलखण्ड का मान बढ़ा रहे हैं। जिनमे दिवाकर रही, अज़हर इनायती, महशर इनायती, राज यजदानी, शहजादा गुलरेज़,शकील गौस,तालिब रामपुरी, सहर रामपुरी, मुनेश कमल,शाद आरिफी,बहू बेगम, अर्चना पीलीभीती,बेताब पीलीभीती, गिरजा शंकर दानिश, हरनंदन प्रसाद आमिल, दुर्गा सहाय, सुरूर जहानाबादी, गिरीश कुमार, राज बहादुर विकल,जगदीश सहाय सक्सेना,दिल शाहजहां पुरी, नसीम शाहजहां पुरी, ममनून शाहजहां पुरी, कमर रईस, मुबारक शमीम, शकील बदायुनी, जफर बदायुनी, वसीम बरेलवी ,जगदीश्वर नाथ बेताब बरेलवी,जिगर बरेलवी आदि प्रमुख हैं।

संगीत के क्षेत्र में भी रुहेलखण्ड क्षेत्र  का महत्वपूर्ण योगदान रहा है यहाँ के शासकों की संगीत में रूचि होने व कलाकारों को उनके द्वारा आश्रय प्रदान किये जाने के कारण यदि इस क्षेत्र को मौसिक़ी के गुलदस्ते की संज्ञा दी जाय तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मेहंदी सेन, करीम सेन,उस्ताद  बहादुर हुसैन खां, उस्ताद अमीर खां, उस्ताद रहीम खां, उस्ताद बाकर खां, उस्ताद हैदर बख्श सारंगीवादक, कुदउ सिंह पखावजी, छिद्दा खां तबला वादक, अमीर अली शेहनाई वादक, गायिकाएं बंदिजान, अमानीजान, जद्दी गायिका, अल्लाह रखी, प० अयोध्या प्रसाद मिश्र, उस्, बासम खां आदि जैसे दिग्गज उस्तादों/कलाकारों  को आश्रय प्रदान करने के साथ साथ इनसे संगीत की शिक्षा भी ग्रहण की तथा संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

शास्त्रीय संगीत के घरानों की चर्चा की जाय तो रामपुर सहसवान घराना व भिन्डी बाज़ार घराना रुहेलखण्ड क्षेत्र के विख्यात घरानों में से एक हैं। रामपुर सहसवान घराने के संस्थापक उस्ताद इनायत हुसैन खां भारतवर्ष के उच्चकोटि के सुप्रसिद्ध गायकों में से थे। इसी घराने के उस्ताद मुश्ताक़ हुसैन खां को रामपुर के नवाब रज़ा अली के दरबार में विशिष्ट स्थान प्राप्त था। सन 1951 ई. में इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार और 1957 में ये पद्मभूषणकी उपाधि द्वारा विभूषित किये गए।[11] इन्हें गायकी के क्षेत्र का प्रथम पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ था। उस्ताद मुश्ताक़ हुसैन खां के पुत्र उस्ताद इश्तियाक़ हुसैन खां तथा उस्ताद इसहाक हुसैन खान भी गुणी संगीतज्ञ थे तथा पुत्र गुलाम हुसैन खां तथा गुलाम तकी खां भी श्रेष्ठ कलाकार रहे। उस्ताद इसहाक हुसैन के बड़े पुत्र उस्ताद शुजात हुसैन खां एक अच्छे शास्त्रीय गायक थे तथा छोटे पुत्र उस्ताद सखावत हुसैन खां भी वर्तमान में गायकी के क्षेत्र में अलग स्थान बनाय हुए हैं। उस्ताद सखावत हुसैन खां को अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चूका है। अभी हाल ही में इन्हें बेग़म अख्तर अवार्ड से सम्मानित किया गया। देश विदेशों में इनके द्वारा कार्यक्रम  प्रस्तुत किये जाते है। ये रामपुर में रहकर ही संगीत के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं। इनके अतिरिक्त इस घराने के अनेक उस्ताद व कलाकार हैं जो देश विदेश में ख्याति प्राप्त कलाकार रहे हैं। जिनमे पद्मविभूषण स्व. उस्ताद गुलाम मुस्तफ़ा खां, सुप्रसिद्ध कव्वाल जाफर खान, उस्ताद गुलाम सादिक खां, डॉ. शन्नो खुराना,श्रीमती सुलोचना बृहस्पति आदि अनेक संगीतज्ञों का भी संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में प्रसिद्ध पार्श्व गायक श्री सोनू निगम, शान, हरिहरन संगीत निदेशक ए.आर. रहमान इस घराने की शोभा बढ़ा रहे हैं। इसी श्रंखला में भिन्डी बाज़ार घराना जो कि मूलत: बिजनौर व मुरादाबाद से सम्बंधित है, के संस्थापक उस्ताद छज्जू खां थे। आप सहसवान घराने के उस्ताद इनायत हुसैन खां के शिष्य थे। 1857 की राजनैतिक उथल पुथल के कारण उस्ताद छज्जू खां अपने भाइयों के साथ मुरादाबाद छोड़कर मुंबई के भिन्डी बाज़ार मुहल्ले में जाकर बस गए थे जिस कारण इस घराने का नाम भिन्डी बाज़ार घरानापड़ा इस घराने के शिष्य उस्ताद झंडे खां, मियां जान खान, कादर बख्श, उस्ताद मुबारक अली खां, उस्ताद फ़िदा हुसैन खां, श्री द्वारिका नाथ भोंसले आदि प्रमुख कलाकार रहे । भारत  रत्न सुश्री स्व. लता मंगेशकर इसी घराने की शिष्या थीं।

उपशास्त्रीय संगीत के अन्तर्गत हिन्दुस्तानी गायन शैली का ध्रुपद रुहेलखण्ड क्षेत्र की प्रचलित गायन विधा है। यह शब्दप्रधान गीत शैली है, जिसमे शब्दों के उच्चारण का विशेष महत्व होता है। साहित्य इसका प्राणभूत तत्व है। इसकी प्रकृति गंभीर, धीर व स्थिर होती है ध्रुपद गायक ध्रुपदीय व कलावंत कहलाते हैं। उस्ताद अमीर खां बहुत अच्छे ध्रुपद गायक थे जो विशेषकर हिन्दुस्तान में बहुत प्रसिद्ध हुए। ये रामपुर के नवाब कल्बे अली खां के दरबार में विशेष संगीतज्ञ थे।[12]  रुहेले साहबज़ादा छम्मन साहब व जानी साहब ने ध्रुपद की शिक्षा ग्रहण की थी। जिनमें छम्मन साहब के ध्रुपद प० भातखंडे जी की क्रमिक पुस्तक मालिकामें सादतके प्रभु के नाम से मुद्रित हैं। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे जी ने साहबज़ादे सआदत अली खां उर्फ़ छम्मन साहब से भी संगीत  शिक्षा ग्रहण की थी।

रुहेलखण्ड क्षेत्र का लोकसंगीत  तीन भागों में विभाजित है- लोकगीत, लोकगाथा व चहारबैत। यहाँ लोकगीतों में जन्म सम्बन्धी,संस्कार सम्बन्धी, त्योहार सम्बन्धी, ऋतु सम्बन्धीभक्ति, श्रमनृत्यकथा व जस आदि लोकगीत प्रचलित हैं। विभिन्न अवसरों पर मनोहर गाथाएँ गाई जाती हैं। जो लोकगाथा की श्रेणी में आती हैं। लोकगाथा को अंग्रेजी में बैलेट कहा जाता है इन्हें कथागीत व गीतकथा भी कहते हैं। चहारबैत रुहेलखण्ड के रामपुर ज़िले का प्रचलित व लोकप्रिय लोकगीति है। यह पहले पश्तो भाषा में गाई जाती थी। बाद में उर्दू में गाई जाने लगी। अब उर्दू व हिंदी मिश्रित गाई जाती है जिसमे धार्मिकनैतिकजातीयप्रेम सम्बन्धी, रीती-रिवाज़, इश्वर स्तुति व मोहम्मद साहब की प्रशंसा की जाती है। चहारबैत के कलाकारों ने रामपुर के साथ साथ मुरादाबाद, अमरोहा,चांदपुर व भारत के भोपाल, जावरा आदि नगरों में भी इस शैली का प्रचार प्रसार किया। रामपुर के नवाब कल्बे अली खां ने चारबैत को विशेष प्रोत्साहन दिया। चारबैत या चहारबैत गायकों के समूह  को अखाड़ा कहा जाता है।

निष्कर्ष इस प्रकार इस शोधपत्र के अध्ययनस्वरुप यह ज्ञात हुआ कि रुहेलखण्ड क्षेत्र के सभ्यता, संस्कृति एवं संगीत का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है । यही नहीं वर्तमान में भी अनेक ऐतिहासिक स्मारक, मंदिर, मस्जिद पूर्ण रूप से या उनके अवशेष यहाँ की सभ्यता व संस्कृति का प्रमाण दे रहे हैं। साहित्य एवं संगीत की परंपरा का निर्वहन वर्तमान में भी अनेक साहित्यकारों, कलाकारों द्वारा किया जा रहा है । कम शब्दों में इस क्षेत्र की विशालता को प्रस्तुत करने में सभी विद्वजनो का नाम यहाँ लिखना संभव नहीं हो सका है। किन्तु जब भी कोई शोधार्थी रुहेलखण्ड क्षेत्र पर शोध कार्य करेगा तो यहाँ के पुस्कालयों में अध्ययन सामग्री निश्चित ही उसे लाभ देंगी। संगीत, साहित्य व इतिहास जिज्ञत्सुओं के लिए यह शोधपत्र अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकेगा ।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. भारतीय संस्कृति और कला – वाचस्पति गैरोला , उत्तर प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, लखनऊ, पृष्ठ-61 2. रुहेलखण्ड इतिहास एवं संस्कृति - गिरिराज नंदन,प्रकाश बुक डिपो,बरेली, पृष्ठ-63 3. मनुस्मृति 2 19 4. महाभारत आदि पर्व अ. 141 5. अंगुत्तर निकाय 6. भगवती सूत्र 7. डॉ. सुधीर प्रताप सिंह, शोध प्रबंध पंचाल का इतिहास-(वैदिक काल से आठवीं शताब्दी ई. तक) पृष्ठ – 190 8. चार्ल्स बाल, दि हिस्ट्री ऑफ़ म्युटिनी, खंड-2, न्यूयार्क, पृष्ठ:156 9. उत्तर प्रदेश के रुहेलखण्ड क्षेत्र की संगीत परंपरा- डॉक्टर संध्या रानी, रामपुर रजा लाइब्रेरी , पृष्ठ – 20 10. मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र- डॉ. मोहम्मद आसिफ हुसैन, पृष्ठ-21 11. उत्तर प्रदेश के रुहेलखण्ड क्षेत्र की संगीत परंपरा- डॉक्टर संध्या रानी, रामपुर रजा लाइब्रेरी , पृष्ठ-149 12. विलायत हुसैन खां, संगीतज्ञों का संस्मरण, पृष्ठ- 59 13. घराना अंक - संगीत कार्यालय हाथरस उत्तर प्रदेश 14. रुहेलखण्ड की लोक संस्कृति- प्रोफेसर उदय प्रकाश अरोड़ा