ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IX December  - 2022
Anthology The Research
गढ़वाल मंडल के उच्च माध्यमिक स्तर में अध्ययनरत् विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन
Study of Educational Achievement of Students Studying in Higher Secondary Level of Garhwal Division
Paper Id :  16910   Submission Date :  07/12/2022   Acceptance Date :  22/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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सुषमा
शोधार्थी
शिक्षा संकाय
कुमाऊँ विश्वविद्यालय
नैनीताल,उत्तराखंड, भारत
ममता असवाल
सहायक प्राध्यापक
शिक्षा संकाय
कुमाऊँ विश्वविद्यालय
नैनीताल, उत्तराखंड, भारत
सारांश शिक्षा के क्षेत्र में जिस हद तक छात्र, शिक्षक और एक संस्थान ने अपने शैक्षिणक लक्ष्यों को उपलब्धि या अकादमिक प्रदर्शन में हासिल किया है, वह वर्तमान युग के दौरान बहुत तेजी से बदल रही है, और प्रत्येक व्यक्ति श्रेष्ठता के लिए प्रयास कर रहा है। इसलिए उच्च शैक्षणिक सफलता प्राप्त करना छात्रों के लिए एक आवश्यक लक्ष्य बन गया है, ताकि अच्छे पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार हमारे शैक्षणिक परिदृश्य में उत्कृष्टता प्राप्त करने और बेहतर परिणाम प्राप्त करने लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि शिक्षक के नेतृत्व के द्वारा प्रभावित होती है। विद्यालयों में शैक्षिक उपलब्धि के ईद-गिर्द ही सारी गतिविधियां घूमती है क्योंकि अन्त में बालक की उपलब्धि ही उसके सफल होने का निर्धारण करती है। प्रस्तुत शोध लेख का उद्देश्य विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन करना है। शोधकर्ती द्वारा सम्बन्धित साहित्यों का गहन अवलोकन किया गया। शैक्षिक उपलब्धि से सम्बन्धित साहित्य के अवलोकन से पता चलता है कि विद्यार्थियों को उपलब्धि प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम से सम्बन्धित लक्ष्यों, उद्देश्यों के निर्माण से सहायता मिलती है। जिससे कि विद्यार्थियों में सकारात्मक परिवर्तन होता है और उनका प्रदर्शन उत्तम होता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The extent to which students, teachers and an institution have achieved their academic goals in terms of achievement or academic performance in the field of education is changing very rapidly during the present era, and every individual is striving for excellence. Hence achieving high academic success has become an essential goal for students to get admission in good courses. Thus it takes a lot of hard work to excel in our educational scenario and get better results. Student's academic achievement is affected by teacher's leadership. All the activities in schools revolve around the academic achievement because in the end it is the achievement of the child that determines his success.
The purpose of the presented research article is to study the academic achievement of the students. A thorough review of related literature was done by the researcher. An overview of the literature related to academic achievement reveals that the formulation of course-related goals and objectives helps students to achieve achievement. So that there is a positive change in the students and their performance is better.
मुख्य शब्द शैक्षिक उपलब्धि, विद्यार्थी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Academic Achievement, Student.
प्रस्तावना
शिक्षा वह प्रकाश है जिसके द्वारा बालक की समस्त शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। इससे वह समाज का एक उत्तरदायी घटक एवं राष्ट्र का प्रखर चरित्र-सम्पन्न नागरिक बनकर समाज की सर्वागीण उन्नति में अपनी शक्ति का उत्तरोत्तर प्रयोग करने की भावना से ओत-प्रोत होकर संस्कृति तथा सभ्यता को पुनर्जीवित एवं पुनस्र्थापित करने के लिए प्रेरित हो जाता है। जिस प्रकार एक ओर शिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करके उसे तेजस्वी, बुद्धिमान, चरित्रवान, विद्वान तथा वीर बनाती है। उसी प्रकार दूसरी ओर शिक्षा समाज की उन्नति के लिए भी एक आवश्यक तथा शक्तिशाली साधन है दूसरे शब्दों में, व्यक्ति की भाँति समाज भी शिक्षा से लाभान्वित होता है। शिक्षा के द्वारा समाज भावी पीढ़ी के बालकों को उच्च आदर्शों, आशाओं, आकांक्षाओं, विश्वासों तथा परम्पराओं आदि सांस्कृतिक सम्पत्ति को इस प्रकार से हस्तान्तरित करता है कि उनके हृदय में देश-प्रेम तथा त्याग की भावना प्रज्वलित हो जाती है। जब ऐसी भावनाओं तथा आदर्शों से भरे हुए बालक तैयार होकर समाज अथवा देश की सेवा का व्रत धारण करके मैदान में निकलेंगे तथा अपने जीवन में त्याग से अनुकरणीय कार्य करेंगे तो समाज भी निरन्तर उन्नति के शिखर पर चढ़ता ही रहेगा। इस प्रकार व्यक्ति तथा समाज दोनों ही शिक्षा के विकास में परम आवश्यक है। शिक्षा के सर्वोत्तम तथा सबसे महत्वपूर्ण घटक बालक है। प्रत्येक बालक की कुछ जन्मजात शक्तियाँ होती है। उसका शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास इन जन्मजात शक्तियों को ही ध्यान में रखते हुए किया जा सकता है। अतः बालक को पूर्णरूप से विकसित करने के लिए उसकी प्रकृति का ज्ञान होना परम आवश्यक है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध लेख का उद्देश्य “गढ़वाल मंडल के उच्च माध्यमिक स्तर में अध्ययनरत् विद्यार्थियोें की शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन करना है।”
साहित्यावलोकन

शोधार्थी द्वारा निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु शैक्षिक उपलब्धि से सम्बन्धित साहित्यों का गहन अवलोकन किया गया।
बिन्दु और वजिला (2014) इन्होंने माध्यमिक स्कूल के विद्यार्थियों की संवेगात्मक परिपक्वता तथा शैक्षणिक उपलब्धि का अध्ययन किया। शोध के उद्देश्य माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों के संवेगात्मक परिपक्वता के स्तर को ढूंढना तथा विद्यार्थियों की संवेगात्मक परिपक्वता तथा शैक्षणिक उपलब्धि के सम्बन्धों का अध्ययन करना था। वर्ग-बद्वीय न्यादर्श तकनीकी के द्वारा माध्यमिक विद्यालय के 400 विद्यार्थियों को चुना गया। शोध के निष्कर्ष में पाया गया कि- माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की संवेगात्मक परिपक्वता मध्य स्तर पर पाई गई, माध्यमिक विद्यालय के छात्र और छात्राओं की संवेगात्मक परिपक्वता में कोई सार्थक अन्तर नहीं पाया गया तथा विद्यार्थियों की संवेगात्मक परिपक्वता तथा शैक्षणिक उपलब्धि के बीच सार्थक सह-सम्बन्ध पाया गया। इसी सन्दर्भ मेंयादव (2014) ने अपने शोध में वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के विद्यार्थियों के आत्म-सम्प्रत्य, चिन्ता और शैक्षणिक उपलब्धि का तुलनात्मक अध्ययन किया। इनके शोध के प्रमुख उद्देश्य थे-सरकारी और गैर-सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों के आत्म-सम्प्रत्य में तुलना करना, सरकारी और गैर-सरकारी स्कूल के विद्यार्थियोें की चिन्ता के स्तर की तुलना करना तथा सरकारी व गैर-सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियोें की शैक्षणिक उपलब्धि की तुलना करना। न्यादर्श के लिए रेवाड़ी जिले के 200 छात्र सरकारी और गैर-सरकारी विद्यालयों से चयनित किये गये। निष्कर्ष में प्राप्त हुआ कि सरकारी और गैर-सरकारी विद्यालयों के छात्रों के आत्म-सम्प्रत्य में कोई अन्तर नहीं है। सरकारी विद्यालय के विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि गैर-सरकारी विद्यालय के विद्यार्थियों से अधिक पाई गई। एक अन्य शोध मेंबरवाल एवं शर्मा (2013) शोधकत्रियों ने हाई स्कूल के विद्यार्थियों की गणित चिन्ता के सम्बन्ध में शैक्षणिक उपलब्धि का अध्ययन किया उनकी शोध के उद्देश्य थे- शहरी व ग्रामीण हाई स्कूल के लड़के और लड़कियों की शैक्षणिक उपलब्धि के अन्तर को जानना, ग्रामीण और शहरी हाई स्कूल के लड़के और लड़कियों की गणित चिन्ता के अन्तर को जानना तथा हाई स्कूल के विद्यार्थियोे के शैक्षणिक उपलब्धि तथा गणित चिन्ता के बीच सम्बन्धों को जानना। न्यादर्श के रूप में हिमालय प्रदेश के जिले मण्डी से दसवीं कक्षा के 200 विद्यार्थियों को यादृच्छिक तरीके से चुना गया। आकड़ों को इकट्ठा करने के लिए गणित चिन्ता से सम्बन्धित स्वनिर्मित 200 पदों की प्रश्नावली का प्रयोग किया तथा शैक्षणिक उपलब्धि के लिए दसवीं कक्षा के प्राप्तांकों को लिया गया। आंकड़ों के विश्लेषण के लिए सांख्यिकी तकनीकी टीअनुपात तथा कार्ल पियर्सन का सहसम्बन्ध गुणांक का प्रयोग किया गया। शोध के परिणाम थे- हाई स्कूल के लड़के और लड़कियों की गणित चिन्ता में सार्थक अन्तर पाया गया। जिससे पता चला कि लड़कियाँ, लड़कों के मुकाबले अधिक गणित चिन्ता रखती हैं। हाई स्कूल के ग्रामीण और शहरी विद्यार्थी तथा लड़के और लड़कियों की शैक्षणिक उपलब्धि में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया। हाई स्कूल के विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि तथा गणित चिन्ता में सहसम्बन्ध पाया गया। इससे पता चलता है कि गणित चिन्ता हाई स्कूल के विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि पर प्रभाव डालती है।
लुफतान और अब्दुल (2013) शोधकर्ताओं ने बालकों के समायोजन तथा शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन किया। इस शोध के मुख्य उद्देश्य थे छात्रों के समायोजन तथा शैक्षणिक उपलब्धि के बीच सम्बन्धों का अध्ययन करना, ग्रामीण तथा शहरी छात्रों के बीच समायोजन समस्याओं की तुलना करना तथा लड़के और लड़कियों के बीच समायोजन सम्बन्धी समस्याओं की तुलना करना। न्यादर्श के लिए आसाम के दांरग जिले से 9वीं कक्षा के 100 विद्यार्थियों को यादृच्छिक तकनीकी के द्वारा चुनाव किया गया, जिनमें से 60 बच्चे शहरी तथा 40 बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से लिए गए थे तथा लिंग के आधार पर 50 लड़के तथा 50 लड़कियाँ ली गई। ए.के.पी. और सिंह आर.पी. द्वारा निर्मित विद्यालयी विद्यार्थियों के लिए समायोजन परिसूची का प्रयोग किया गया। शोध के परिणाम निकले कि छा़त्रों के समायोजन तथा शैक्षणिक उपलब्धियों में नकारात्मक सहसम्बन्ध पाया गया, शहरी विद्यालय के छात्रों में ग्रामीण विद्यालय के छात्रों से अधिक समायोजन सम्बन्धित समस्याएँ पाई गई। दूसरे, शब्दों में ग्रामीण विद्यालय के छात्र शहरी स्कूलों के छात्रों के मुकाबले अधिक समायोजन करते है। लूनियाँ (2013) ने किशोर विद्यार्थियों के विद्यालयी वातावरण का उनके शैक्षिक उपलब्धि स्तर एवं मूल्यों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया। जिसके मुख्य उद्देश्य  किशोर विद्यार्थियों के विद्यालयी वातावरण में भावनात्मक संबल, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक और उनके विभिन्न स्तर के व्यवहारगत आयामों (सृजनात्मक उद्दीपन, स्वीकृति, अस्वीकृति एवं नियन्त्रण) के स्तर का उनके शैक्षणिक उपलब्धि स्तर  पर पड़ने वाले प्रभावों को अध्ययन करना तथा किशोर विद्यार्थियों के विद्यालयी वातावरण स्तर का उनके मूल्यों पर पढ़ने वाल प्रभाव को अध्ययन करना था। शोध कार्य के लिए वर्णनात्मक सर्वेक्षण विधि में विपर्यास (विरोधी) निर्देशन अभिकल्प का प्रयोग किया गया। शोध के लिए राजस्थान के जयपुर, कोटा, अलवर, उदयपुर तथा बीकानेर जिलों के 2-2 स्कूलों से 11वीं कक्षा के 1200 छात्रों को न्यादर्श में सम्मिलित किया गया जिनमें 600 लड़के तथा 600 लड़कियाँ ली गई। इस तरह प्रत्येक जिले से 100 छात्र तथा 100 छात्राएं चुनी गई। प्रदत्तों पर सांख्यिकी के रूप में मध्यमान, मानक विचलन, ‘टीपरीक्षण तथा प्रसरण विश्लेषण विधियों का प्रयोग किया गया। मापनी के लिए डाॅ0 करूणा शंकर मिश्र द्वारा बनी विद्यालयी वातावरण परिसूची, शैक्षिक उपलब्धि कि लिए विद्यार्थियों के 10वीं कक्षा के प्राप्तांक तथा डाॅ0 श्रीमती रेखा रानी अग्रवाल एवं डाॅ0 आर.के. ओझा द्वारा रचित रूपान्तरित विभेदक मूल्य प्रश्नावली का प्रयोग किया गया। शोध के मुख्य परिणाम  अध्यापक-शिष्य सम्बन्ध, विद्यालय में कक्षा कक्ष की व्यवस्था, अभिप्रेरित करना, वाद-विवाद, नाटक में छात्रों की भागीदारी, विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करती है। अतः स्कूल वातावरण के भावात्मक सम्बल, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक शैक्षिक उपलब्धि को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते है, लेकिन विद्यालयी वातावरण किशोरों के धार्मिक मूल्यों को प्रभावित नहीं करता, क्योंकि धार्मिक मूल्यों पर स्कूल के बजाय परिवार, संस्कृति तथा समाज का अधिक प्रभाव पड़ता है, परन्तु विद्यालयी वातावरण किशोरों के राजनैतिक मूल्यों को भी प्रभावित करता है, क्योंकि विद्यालय में समाज की राजनीति से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन होता है, जिससे बच्चों में राजनैतिक मूल्यों को प्रभावित करता है। इस तरह विद्यालयी वातावरण छात्रों को नए सम्बन्ध बनाने, व्यवसाय का चयन करने, भविष्य के बारे में सोचने तथा आकांक्षा स्तर को बनाए रखने में मदद करता है। इसी सन्दर्भ में वधवा और यादव (2013) ने अपने शोध में हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के किशोर छात्र और किशोर छात्राओं के सृजनात्मकता और शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन  अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के छात्र और छात्राओं की सृजनात्मकता तथा शैक्षिणिक उपलब्धि में तुलना  तथा हिन्दी माध्यम के विद्यालयों के छात्र और छात्राओं की सृजनात्मकता तथा शैक्षणिक उपलब्धि में अन्तर ज्ञात किया। इन्होंने न्यादर्श के लिए रेवाड़ी जिले के अंग्रेजी माध्यम और हिन्दी माध्यम विद्यालयों से 200 विद्यार्थियों को चुना एवं निष्कर्ष में पाया कि अंग्रेजी माध्यम और हिन्दी माध्यम की लड़कियों की सृजनात्मकता प्रप्तांक में सार्थक अंतर पाया जाता है क्योंकि अंग्रेजी माध्यम की लड़कियां हिन्दी माध्यम की लड़कियांे से ज्यादा सृजनात्मक होती हैं।
वर्मा (2013) ने शोध अध्ययन के मुख्य उद्देश्य वरिष्ठ माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य का उनकी शैक्षणिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव को जानना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले के वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों से ग्यारहवीं के 120 छात्रों को लिया गया। उन छात्रों पर सिंह और सेनगुप्ता द्वारा बनी 120 पदों की मानसिक स्वास्थ्य बैटरी का प्रयोग किया गया तथा शैक्षणिक उपलब्धि के लिए उनके 12वीं कक्षा के प्राप्तांकों का प्रयोग किया गया। निष्कर्ष में जिन छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य कम है उनकी शैक्षिक उपलब्धि भी कम पाई गई। अर्थात् जो छात्र मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है, उनकी रूचि पढ़ाई में कम है, इसलिए एक अध्यापक के लिए जरूरी है कि वह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जाने तथा अध्यापक के साथ-साथ माता-पिता तथा समुदाय परामर्शदाताओं को भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का ज्ञान होना चाहिए। यह ज्ञान ही बच्चों को एक अच्छा स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण प्रदान कर सकता है। इसी सन्दर्भ में वर्मा एवं शालिनी (2013) ने अपने शोध अध्ययन बदलते परिवेश में छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर आत्मविश्वास के प्रभाव में बताया कि आत्मविश्वास एक मानसिक प्रक्रिया है जिसका प्रभाव छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है, क्योंकि आत्मविश्वास बालक में सकारात्मक सोच पैदा करता है और उसी सकारात्मक सोच के द्वारा बालक अपनी उपलब्धि की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है तथा अपने लक्ष्य तक पहुँचता है। शोध का उद्देश्य उच्चतर माध्यमिक स्तर के विद्यालय की छात्राओं के आत्मविश्वास तथा शैक्षिक उपलब्धि के बीच सहसम्बन्ध का अध्ययन करना। शोध के लिए भिलाई क्षेत्र से ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से कक्षा 11वीं की 300 छात्राओं को लिया गया। शोध अध्ययन में शैक्षिक उपलब्धि के लिए स्वनिर्मित मापनी का प्रयोग किया गया। शोध के निष्कर्षों में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली छात्राओं के आत्मविश्वास एवं उनकी शैक्षिक उपलब्धि के बीच सार्थक धनात्मक सहसम्बन्ध पाया गया, शहरी क्षेत्रों में रहने वाली छात्राओं के आत्मविश्वास एवं उनकी शैक्षिक उपलब्धि के बीच भी सार्थक धनात्मक सहसम्बन्ध पाया गया तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर के पढ़ने वाली छात्राओं के आत्मविश्वास तथा शैक्षिक उपलब्धि के मध्य सार्थक सहसम्बन्ध पाया गया। इस प्रकार परिकल्पना अस्वीकृत हुई। यशपाल (2013) ने कामकाजी महिला तथा गैर-कामाकाजी महिला के बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि, आत्म-सम्प्रत्य तथा व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन    किया। शोध के मुख्य उद्देश्य कामकाजी महिला तथा गैर-कामकाजी महिलाओं के बच्चों  की शैक्षणिक उपलब्धि तथा आत्म-सम्प्रत्यों की तुलना करना, कामकाजी महिला तथा गैर-कामकाजी महिलाओं के बच्चों के व्यक्तित्व विशेषताओं को जानना तथा कामकाजी तथा गैर-कामकाजी महिलाओं के बच्चों के व्यक्तित्व विशेषताओं की तुलना करना था। न्यादर्श के लिए गुड़गांँव जिले के 11वीं तथा 12वीं कक्षा के 200 विद्यार्थियों को लिया गया इनमें से 100 बच्चे कामकाजी महिलाओं के तथा 100 बच्चे गैर-कामकाजी महिलाओं के थे एवं पी.के. गोस्वामी द्वारा रचित आत्म-सम्प्रत्य मापनी का प्रयोग किया गया। व्यक्तित्व की विशेषताओं को जानने के लिए अजीज और अग्निहोत्री द्वारा रचित अन्तर्मुखी-बहिर्मुखी परिसूची का प्रयोग किया तथा शैक्षणिक उपलब्धि के लिए विद्यार्थियों के दसवीं कक्षा के प्राप्तांकों को लिया गया। आकड़ों का विश्लेषण माध्य, मानक विचलन तथा टीपरीक्षण द्वारा किया गयां शोध के निष्कर्ष में पाया गया कि कामकाजी महिलाओं के बच्चों को घर का अच्छा वातावरण, माता-पिता का अधिक ध्यान तथा शैक्षणिक उपलब्धि में अधिक अंक प्राप्त हुए तथा कामकाजी महिलाओं की लड़कियां लड़कों के मुकाबले शैक्षणिक उपलब्धि में भी अच्छी रही। दूसरी तरफ, गैर-कामकाजी महिलाओं के लड़कें, लड़कियों से शैक्षणिक उपलब्धि में अच्छे रहे, कामकाजी महिलाओं के लड़के सभी से आत्म-सम्प्रत्य में आगे रहे, कामकाजी महिलाओं के बच्चे व्यक्तित्व विशेषताओं में गैर-कामकाजी महिलाओं के बच्चों से बहिर्मुखी विचारधारा के हैं। कामकाजी महिलाओं की लड़कियां, लडकों के मुकाबले अधिक बहिर्मुखी है तथा गैर-कामकाजी महिलाओं के लड़के, लड़कियांे से अधिक बहिर्मुखी विचारों के पाए गए। चड्डा और कौर (2012) ने किशोरों की शैक्षणिक उपलब्धि पर मानसिक स्वास्थ्य तथा संवेगात्मक योग्यता के प्रभाव का अध्ययन किया। शोध के मुख्य उद्देश्य किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य, संवेगात्मक योग्यता तथा शैक्षणिक उपलब्धि के बीच सहसम्बन्ध को जानना। शोध में लुधियाना जिले के विभिन्न विद्यालयों से 200 विद्यार्थियों का चुनाव किया गया। जिनमें से 100 किशोर पुरूष तथा 100 किशोर महिलाएँ कला तथा विज्ञान संकायों से निर्धारित किए गए। चुने हुए न्यादर्श से मानसिक स्वास्थ्य को परखने के लिए प्रमोद कुमार (1992) द्वारा निर्मित मैंटल हैल्थ चैक लिस्ट, संवेगात्मक योग्यता को जानने के लिए आर. भारद्वाज तथा एच. शर्मा (1998) द्वारा निर्मित परिसूची का प्रयोग किया गया। शैक्षणिक उपलब्धि की जाँच के लिए किशोरों के दसवीं कक्षा के प्राप्तांकों को लिया गया। प्रदत्तों पर मध्यमान, मानक विचलन, ’टीपरीक्षण तथा सहसम्बन्ध सांख्यिकीं तकनीकों का प्रयोग किया गया। निष्कर्ष में पाया  गया कि मानसिक स्वास्थ्य तथा संवेगात्मक योग्यता में तथा मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षणिक उपलब्धि के बीच कोई सार्थक सहसम्बन्ध नहीं है। परन्तु संवेगात्मक योग्यता तथा शैक्षणिक उपलब्धि के बीच सार्थक सहसम्बन्ध है।
इसी सन्दर्भ में भारती एवं सिदाना (2012) ने छात्र अध्यापकों के शैक्षिक उपलब्धि, शैक्षिक तनाव एवं संवेगात्मक बुद्धि के संबंध एवं प्रभाव को जानने के उद्देश्यों से अध्ययन किया। अध्ययन के लिए जम्मू युनिवर्सिटी से संबद्ध विभिन्न कालेजों के 600 छात्र अध्यापकों (300 महिला, 300 पुरूष) को यादृच्छिक चयन किया गया तथा उच्च एवं निम्न संवेगात्मक बुद्धि वाले 80 छात्र अध्यापकों (40 महिला, 40 पुरूष) का यादृच्छिक चयन किया। उपकरण के रूप में अनुकूल हाइड, सन्जयेत पेठे एवं उपिंतदर धर द्वारा निर्मित संवेगात्मक बुद्धि स्केल (EIS) तथा शैक्षिक उपलब्धि के लिए अंतिम परीक्षा प्राप्तांकों को लिया गया। अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि उच्च एवं निम्न संवेगात्मक बुद्धि वाले विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अंतर पाया गया।जकारिया, जैन, अहमद एवं अलिना (2012) ने सेंकडरी स्कूल विद्यार्थियों के गणित के दुश्चिंता एवं गणित में उपलब्धि को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक कारकों का अध्ययन किया। अध्ययन सेलांगर मलेशिया के सेकंडरी स्कूलों में विद्यार्थियों की गणितीय दुश्चिंता और गणित उपलब्धि को देखने के लिए प्रारूप वाले 195 विद्यार्थियों में (86 पुरूष, 109 महिला) लिये गये। उपकरण के रूप में फेजेमा शर्मन गणित अभिवृतिस्केल का प्रयोग किया गया एवं पाया गया कि गणित दुश्चिंता के स्तरों के आधार पर शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अंतर नहीं है। सिंग (2012) ने हिमाचल प्रदेश के  सोलन जिले के 11वीं कक्षा के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का उनके आवास क्षेत्र एवं आत्म अवधारणा में संबंध का अध्ययन किया। प्रस्तुत अध्ययन के लिए हिमालय प्रदेश के सोलन जिले के 300 ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों की यादृच्छिक चयन किया गया अध्ययन के निष्कर्ष मे पाया गया कि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अंतर नहीं है। लारेंस (2011) ने हायर सेकेण्डरी स्कूल के विद्यार्थियों की सामाजिक परिपक्वता एवं शैक्षिक उपलब्धि के मध्य संबंध का अध्ययन किया। जिसमें तिरूनवेली जिले के 12 विभिन्न विद्यालयों से 320 विद्यार्थियों का चयन किया। निष्कर्ष में छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अंतर पाया गया। छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि छात्रों से अधिक पायी गई एवं शहरी व ग्रामीण विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अंतर नहीं पाया गया। लामा एवं अल्क्वासी (2011) ने विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों के समूह के मध्य निराशा एवं दुश्चिंता व शैक्षिक उपलब्धि में संबंध विषय पर अध्ययन किया गया के अध्ययन के उद्देश्य तफीला तकनीकी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों पर निराशा दुश्चिंता आदि का प्रभाव उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर देखना था। विश्वविद्यालय के 200 विद्यार्थियों के यादृच्छिक न्यादर्श में दो उपकरणों निराशा व दुश्चिंता मापन के लिए प्रशासित किया गया। निष्कर्ष में बताया गया कि विद्यार्थियों कि शैक्षिक उपलब्धि में अंतर पाया गया है। महिलाओं की शैक्षिक उपलब्धि पुरूषों से अधिक पायी गयी। सुब्रमण्यम (2011) ने हाईस्कूल के विद्यार्थियोें की संवेगात्मक बुद्धि एवं शैक्षिक उपलब्धि के अन्तर्गत अध्ययन कौशल के प्रभाव का अध्ययन के लिए न्यादर्श में आन्ध्र प्रदेश के तिरूपति के नगर निगम हाईस्कूल के 60 विद्यार्थियों को लिया एवं उपकरण के लिए नूतन कुमार एवं उषा राम (1999) द्वारा विकसित ई. आर. स्केल तिरूपति के श्री व्यकटेश्वरा युनिवर्सिटी के प्राध्यापक पी.व्ही. राममूर्ति एवं गीतानाथ (1977) व्दारा विकसित अध्ययन कौशल मापनी का प्रयोग किया और पाया कि लड़के एवं लड़कियों के अध्ययन कौशल के संदर्भ में भी कोई सार्थक अंतर नहीं है। पाण्डेय (2009) ने जवाहर नवोदय विद्यालय में किशोरों के समायोजन एवं शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययनकिया जिसका उद्देश्य कक्षा 10 के किशोरों के समायोजन एवं शैक्षिक उपलब्धि में संबंध का अध्ययन करना था। न्यादर्श के रूप में उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय ज्ञानपुर के कक्षा 10 में अध्ययनरत 44 किशोरों तथा 26 किशोरियों का चयन किया गया। किशोरों के समायोजन के अध्ययन के लिए मान की समायोजन मापनी का प्रयोग किया तथा शैक्षिक उपलब्धि के मापन के लिए जवाहर नवोदय विद्यालय, ज्ञानपुर के कक्षा 10 के छात्रों के वर्ष 2008 के परीक्षाफल को प्रयुक्त किया गया। निष्कर्ष में पाया कि कक्षा 10 के छात्रों एवं छात्राओं के समायोजन एवं शैक्षिक उपलब्धि के बीच परिमित धनात्मक सहसंबंध है अर्थात जो छात्र अच्छी तरह समायोजन होगा उसकी शैक्षिक उपलब्धि भी अच्छी होगी।
पाण्डेय और कुमार (2009) ने जवाहर नवोदय विद्यालय में किशोरावस्था के समायोजन एवं शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन किया। इस अध्ययन में किशोरों को परिवार में संघर्षों तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तब उनका समायोजन विद्यालय अधिकारियों, दोस्तों तथा आस-पास पड़ोस में भी तनावपूर्ण ही रहता है। तब ऐसी परिस्थिति में समायोजन ही बालक को सफलता तथा शैक्षिक उपलब्धि में आगे तक ले जाती है। शोध का उद्देश्य कक्षा 10वीं के विद्यार्थियों (किशोर तथा किशोरियों) के समायोजन एवं शैक्षिक उपलब्धि में सम्बन्ध का अध्ययन करना। प्रतिदर्श के रूप में उत्तर प्रदेश के जिले रविदास नगर भदोही में स्थित जवाहर विद्यालय से 10वी कक्षा में पढ़ने वाले 44 किशोरों तथा 26 किशोरियों का चयन यादृच्छिक न्यादर्श विधि से किया से किया गया समायोजन के मापन हेतु शोधकर्ताओं ने 10 पद गृह समायोजन, 10 विद्यालय तथा 10 व्यक्तित्व समायोजन सम्बन्धी 30 पदों का स्वयं निर्माण किया तथा शैक्षिक उपलब्धि के लिए बच्चों के पिछली कक्षा के प्राप्तांकों का चुनाव किया। प्रदत्तों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, मानक विचलन, ’टीपरीक्षण तथा सहसम्बन्ध सांख्यिकी तकनीकी का प्रयोग किया एवं पाया कि 10वीं के विद्यार्थियों के समायोजन तथा शैक्षिक उपलब्धि के बीच धनात्मक सहसम्बन्ध है। सारडा (2009) ने माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत् सामान्य एवं अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि, शैक्षिक दुश्चिंता एवं शैक्षिक उपलब्धि की तुलना व संबंध का अध्ययन किया। इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु शोधकर्ता द्वारा सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया। शैक्षिक उपलब्धि मापन के लिए विद्यार्थियोें के पिछले बोर्ड परीक्षा के प्राप्तांकों को आधार पाया कि न्यादर्श के लिए 80 विद्यार्थियों का चयन किया गया एवं सामान्य एवं अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में अंतर नहीं है। सुरेखा और संगीता (2008) ने माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों के बीच आत्म-सम्प्रत्य तथा शैक्षणिक उपलब्धि का अध्ययन किया। शोध के मुख्य उद्देश्य ग्रामीण और शहरी माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के बीच शैक्षणिक उपलब्धि तथा आत्म-सम्प्रत्य के अन्तर का अध्ययन करना, अधिक प्राप्तांक वाले शहरी छात्र तथा अधिक प्राप्तांक वाले ग्रामीण छात्रों के बीच के अन्तर को जानना तथा कम प्राप्तांक वाले शहरी छात्र तथा कम प्राप्तांक वाले ग्रामीण छात्रों के बीच सहसम्बन्ध का अध्ययन करना था। इन्होंने शून्य तथा घोषित दो प्रकार की परिकल्पनाओं को प्रयोग किया। न्यादर्श के रूप में गुलबर्गा से 100 छात्र ग्रामीण विद्यालयों के तथा 100 छात्र शहरी विद्यालयों का चुनाव किया गया एवं अधिक प्राप्तांक वाले छात्र तथा प्राप्तांक वाले छात्रों में बांट दिया गया था। शैक्षणिक उपलब्धि का निरीक्षण करने के लिए छात्रों की पिछली कक्षा के अंक तथा आत्म-सम्प्रत्य के लिए डा0 एस. पी. आऊलवालियाँ द्वारा आत्म-सम्प्रत्य परीक्षण का प्रयोग किया। निष्कर्ष में पाया गया कि शहरी और ग्रामीण विद्यालयों के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि स्तर पर अन्तर है। शहरी विद्यालय के छात्रों की उपलब्धि ग्रामीण विद्यालय के छात्रों की उपलब्धि के मुकाबले अधिक अच्छी रही तथा ग्रामीण विद्यालय के छात्रों का आत्म-सम्प्रत्य शहरी विद्यालय के छात्रों की तुलना में अधिक पाया गया। अकरे (2008) ने जनजातीय विद्यार्थियों की गणित मे कम उपलब्धि पर अध्ययन   किया। प्रस्तुत अध्ययन मध्यप्रदेश के सागर जिले के कक्षा नवमीं के जनजातीय एवं गैर जनजातीय विद्यार्थियों का समान अनुपात में लिंग एवं परिवेश के आधार पर 200 विद्यार्थियों पर किया गया। विद्यार्थियों द्वारा कक्षा 8वीं के वार्षिक परीक्षा में गणित विषय में प्राप्त अंकों को गणित विषय में उपलब्धि निम्न थी। जनजातीय लड़के जनजातीय लड़कियों की अपेक्षा गणितीय उपलब्धि में अच्छे पाये गये। इलाब (2006) ने पारिवारिक पर्यावरण, छात्र लक्षणों तथा अभिप्रेरणा का विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव से सम्बन्धित शोध किया। यू.ए.ई. के आबूधाबी स्थित उच्च माध्यमिक विद्यालयों के 388 विद्यार्थियों पर यह अध्ययन किया गया। न्यादर्श में 193 पुरूषों तथा 195 महिला विद्यार्थियों का चयन किया गया। निष्कर्ष में पाया गया कि विद्यार्थियों की अभिप्ररेणा के स्तर का माध्य, माता-पिता के प्रभाव तथा विद्यार्थियों के लक्षण के माध्य से कम था, महिला विद्यार्थी तथा पुरूष विद्यार्थी में लिंग भेद के आधार पर कोई प्रभाव नहीं पाया गया तथा अभिप्ररेणापारिवारिक, पर्यावरण, विद्यार्थी लक्षण तथा शैक्षिक उपलब्धि के माध्य पाया जाने वाला सह-सम्बन्ध बिल्कुल नगण्य था।
क्यूरी (2005)  ने उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत् विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तर वाले विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन किया। इनके अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य छात्रों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर शैक्षिक निष्पत्ति पर प्रभाव का अध्ययन करना था। कक्षा 11 के 360 छात्रों का न्यादर्श के रूप में चयन किया गया एवं प्रदत्तों का संकलन तथा बुद्धि परीक्षण हेतु मानसिक योग्यता परीक्षण का प्रयोग किया गया। निष्कर्षतः पाया कि जब छात्र औसत बुद्धि का होता है तब उनके पारिवारिक स्तर का प्रभाव उसे प्रभावित करता   है। जिन छात्रों की बुद्धि योग्यता क्रमशः घटती बढ़ती रहती है तो निश्चय वह घरेलू वातावरण से प्रभावित होती है। कृष्णा (2004) ने अभिभावकों के विद्यालयी आचरण और शैक्षिक उपलब्धि के मध्य संबंधों का अध्ययन किया, इनके अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य अभिभावकों के विद्यालय के प्रति आचरणों तथा शैक्षिक उपलब्धि के मध्य तुलनात्मक जांच करना था। न्यादर्श के रूप में कक्षा 11 में अध्ययनरत् 1542 विद्यार्थियों का चयन किया गया तथा विद्यार्थियों के सामान्य प्रदत्त का संकलन में सहयोग लिया गया अध्ययन के परिणामों में पाया गया कि परिवार तथा विद्यालय का सक्रिय रहना बालक की शैक्षिक उपलब्धि का महत्वपूर्ण कारक होता है। कालडा और प्यारी (2004) ने छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर पारिवारिक वातावरण तथा पारिवारिक आय का प्रभाव देखने हेतु यह अध्ययन किया। न्यादर्श में वर्ग-बद्धिय न्यादर्श तकनीकी द्वारा 120 विद्यार्थियों को चुना गया। उन पर बीना शाह द्वारा निर्मित पारिवारिक वातावरण मापन को लगाया तथा आंकड़ोें पर टीपरीक्षण और प्रसारण विश्लेषण को प्रयोग में लाया गया। उनके शोध के प्रमुख निष्कर्ष थे- जिन छात्रों का पारिवारिक वातावरण अनुकूल था उनकी शैक्षणिक उपलब्धि प्रतिकूल पारिवारिक वातावरण के छात्रों से अच्छी थी। यह भी पाया गया कि छा़त्रों की उपलब्धि को पारिवारिक आय प्रभावित करती है। सिबलो (2004)ने आस-पास के वातावरण का किशोरों के शैक्षणिक मूल्यों व विद्यालयी प्रयासों पर प्रभाव जानने के लिए अन्वेषण किया। इन्होंने इस हेतु 262 गरीब अफ्रीका एकल माताओं व उनकी 7वीं-8वीं कक्षाओं के किशोरों पर गहन अध्ययन किया। उनकी शोध के परिणाम थे- एकल माताओं पर आस-पास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है, 7वीं-8वीं कक्षा में पढ़ने वाले किशोरों पर आस-पास के वातावरण का प्रभाव अधिक पाया गया, किशोरों के शैक्षिक मूल्यों पर भी आस-पास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है तथा विद्यालयी प्रयासों को भी आस-पास का वातावरण प्रभावित करता है। असवाल (2001) ने गणित में उपलब्धि के संबंध के रूप में बुद्धि तथा विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तर का अध्ययन किया। न्यादर्श के रूप में कक्षा 11वीं के 200 छात्रों को टिहरी जिले गढ़वाल के माध्यमिक विद्यालयों से लिया गया। परिणाम दर्शाते है कि बुद्धि तथा गणित में उपलब्धि उच्च सहसंबंधित हैं। परन्तु विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तर का सार्थक संबंध नहीं है। जोशी (2000) ने शैक्षिक उपलब्धि का लिंग एवं संस्कृति के संदर्भ में अध्ययन किया। अध्ययन के लिए न्यादर्श के रूप में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र से कक्षा 8वीं के 400 विद्यार्थी लिये गये। आइजेंक का व्यक्तित्व मापनी का आंकड़े संग्रहण में प्रयोग किया गया। निष्कर्ष में पाया कि ग्रामीण क्षेत्र के छात्र एवं छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि में अंतर है। सुनीता एवं मयूरी (1999) ने शालेय स्तर पर विद्यार्थियों के पारिवारिक तत्वों का उनके शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया। अध्ययन के लिए न्यादर्श के रूप में 10 विद्यालयों से 9वीं तथा 10वीं कक्षा में अध्ययनरत् 200 छात्रों का चयन किया गया। इस अध्ययन में परिणाम दर्शाते है कि पिता तथा माता का व्यवसाय तथा उनकी शैक्षणिक योग्यता छात्रों की शेैक्षिक उपलब्धि से उच्च सार्थक संबंध रखता है। पाण्डा (1995) के अध्ययन के मुख्य उद्देश्य थे विभिन्न प्रकार के विद्यालयों के संगठनात्मक वातावरण का अध्ययन एवं तुलना करना तथा इनका विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़नें वाले प्रभाव को देखना। इन्होंने अध्ययन में पाया कि जिन विद्यालयों का वातावरण खराब था उनके विद्यार्थियों की कार्य सन्तुष्टि औसत थी, खुले वातावरण विद्यालय के विद्यार्थियों और अध्यापकों में सहयोगात्मक सम्बन्ध था तथा सरकारी विद्यालय की अपेक्षा केन्द्रीय और निजी विद्यालयों के विद्यार्थियों का शैक्षणिक उपलब्धि का स्तर उच्च था।
स्पूटा एवं अन्य (1995) ने जन्मक्रम एवं परिवार के आकार का, किशोरों एवं संबंधित अभिभावक के व्यवहार का शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव देखा। अध्ययन के लिए दक्षिण पूर्व व मध्य पश्चिम एशिया के शहरी, उप शहरी एवं ग्रामीण के 195 अभिभावक एवं 9वीं कक्षा के लड़के, लड़कियों को लिया गया। निष्कर्ष में पाया गया कि जन्मक्रम एवं परिवार का आकार किशोरों के शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करता है। विजय लक्ष्मी (1995) ने अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन किया। निष्कर्ष में पाया गया कि अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की उपलब्धि निम्न होती है। जबकि सामान्य जाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि उच्च पायी गयी। यह परिणाम भी प्राप्त हुआ कि पिछड़ी जाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि अनुसूचित जाति से अच्छी लेकिन सामान्य जाति समूह वाले विद्यार्थियों से कम होती है। सिंह (1987) ने आत्मसम्प्रत्य तथा शैक्षिक उपलब्धि में संबंध पर शोध कार्य किया। जिसमें उच्च कक्षाओं में पढ़ने वाले विज्ञान के 200 विद्यार्थियों को सम्मिलित किया। निष्कर्ष में पाया गया कि शहरी विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों का आत्मसम्प्रत्य ग्रामीण विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियोें से सार्थक रूप में अधिक था। शहरी विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों की उपलब्धि प्राप्ताकों का मध्यमान (63.2) ग्रामीण विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों की उपलब्धि प्राप्तांकों के मध्यमान (55.8) से बहुत अधिक है। शर्मा (1984) ने सृजनात्मकता समायोजन व शैक्षिक उपलब्धि के समायोजन व शैक्षिक उपलब्धि के सामाजिक सांस्कृतिक कारकों का अध्ययन किया। सृजनात्मक के विभिन्न घटकों पर सामाजिक आर्थिक स्तर का प्रभाव जाना। न्यादर्श के रूप में 300 छात्रों का चयन किया गया। सामाजिक, आर्थिक स्तर मापनी (श्री एस.डी. कुलश्रेष्ठ) सृजनात्मक परीक्षण (श्री चौहान व तिवारी) का प्रयोग प्रदत्त संकलन हेतु किया गया। निष्कर्षतः यह पाया गया कि उच्च सामाजिक आर्थिक स्तर के छात्रों में सृजनात्मक उत्पादक क्षमता अधिक होती है और मध्यम सामाजिक आर्थिक स्तर के छात्रों में मौलिकता अधिक पायी गयी। गुप्ता (1983) ने अनुसूचित जाति एवं उच्च जाति के छात्रों की आवश्यकता, उपलब्धि और सृजनात्मक का विभिन्न बौद्धिक स्तरों पर तुलनात्मक अध्ययन किया। जिसके मुख्य उद्देश्य हाईस्कूल के छात्रों की उपलब्धि उत्प्रेरणा तथा सृजनात्मकता को विभिन्न बौद्धिक स्तरों पर ज्ञात करना। हाईस्कूल के छात्रों की उपलब्धि, प्रेरणा तथा सृजनात्मकता का संबंध ज्ञात करना। अनुसूचित जाति और उच्च जाति के छात्रों की उपलब्धि, उत्प्रेरणा की तुलना करना एवं हाईस्कूल स्तर के अनुसूचित जाति और उच्च जाति वर्ग जाति के छात्रों की सृजनात्मकता की तुलना करना था। जिसमें आगरा शहर के हाईस्कूल विद्यालयों से केवल कक्षा-9 से 205 छात्रों का चयन किया गया। बुद्धि परीक्षण (जलोटा का सामूहिक मानसिक बुद्धि परीक्षण) उपलब्धि परीक्षण (डाॅ. गोपाल राव का उपलब्धि उत्प्रेरणा परीक्षण) का प्रयोग किया गया। निष्कर्षतः यह पाया गया कि उच्च एवं निम्न बौद्धिक स्तरों के दोनों वर्गों के छात्रों की उपलब्धि में कोई सार्थक अंतर नही है। तीनों वर्गों की सृजनात्मकता में भी कोई अंतर नहीं पाया गया। उपलब्धोन्मुख प्रेरणा एवं सृजनशीलता परस्पर समान रूप से संबंधित थे। श्रीवास्तव (1980) ने हाईस्कूल के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि के निर्धारक तत्व, बुद्धि रूचि, समायोजन और पारिवारिक स्तर विषय पर अध्ययन किया। अध्ययन में गोरखपुर के 14 इण्टरमीडिएट काॅलेज के कुल 500 विद्यार्थी जिनमें 415 लड़के तथा 85 लड़कियां थी। मध्यमान, मानक विचलन, सहसम्बन्ध, अधोगामी समीकरण तथा बहुसम्बन्ध गुणांक की गणना की गई। निष्कर्षतः  बुद्धि तथा उपलब्धि के मध्य स्थायी संबंध पाया गया और उपलब्धि व सामाजिक-आर्थिक स्तर के मध्य तक निरन्तर सहसंबंध तथा ऐसा ही निम्न स्तर का सहसंबंध बुद्धि व सामाजिक-आर्थिक स्तर में था। वैज्ञानिक एवं लिपकीय रूचि और शैक्षिक समायोजन स्थायी रूप से उपलब्धि से सह-सम्बन्धित था। यान्त्रिकी रूचि और सांवेगिक और सामाजिक समायोजन का भी उपलब्धि के साथ धनात्मक सार्थक सह-संबंध था। एक शोध में शर्मा (1979) ने शैक्षिक उपलब्धि में आत्मक प्रत्यय आकांक्षा स्तर और मानसिक स्वास्थ्य जैसे तत्व विषय पर अध्ययन किया। जिसका उद्देश्य उच्च आत्म प्रत्यय, लक्ष्य भेद और उत्तम मानसिक स्वास्थ्य तथा इन तीन चरों के कम अंकों वालों के मध्य विषयी उपलब्धि का अन्तर पता लगाना। लक्ष्य भेद, मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षिक उपलब्धि पर उच्च तथा निम्न प्राप्तांक समूहों के मध्य आत्म प्रत्यय के मापन का अन्तर निकालना। आत्मक प्रत्यय, मानसिक स्वास्थ्य व शैक्षिक उपलब्धि के मापन के उच्च तथा निम्न प्राप्तांक समूहों के मध्य आकांक्षा स्तर का अन्तर निकालना। मानसिक स्वास्थ्य का आत्म प्रत्यय, आकांक्षा स्तर और शैक्षिक उपलब्धि से संबंध ज्ञात करना। विभिन्न आयु स्तरों पर आकांक्षा स्तर, आत्म प्रत्यय और मानसिक स्वास्थ्य में लिंग भेद ज्ञात करना था। न्यादर्श में उत्तर प्रदेश के 84 पश्चिमी जिलों के इण्टरमीडिएट व हाईस्कूल के 1060 छात्रों का चयन यादृच्छिक विधि द्वारा किया गया। उपकरण के रूप में हैरिस चिल्ड्रन सेल्फ काॅन्सेप्ट स्केल अंसारी का एल.ए. कोडिंग टेस्टअस्थाना समायोजन सूची और व्यक्तिगत प्रदत्त अनुसूचीका प्रयोग किया गया एवं निष्कर्षतः यह पाया कि आत्म प्रत्यय का सार्थक धनात्मक प्रभाव शैक्षिक उपलब्धि पर होता है। आकांक्षा स्तर का प्रभाव शैक्षिक उपलब्धि पर नहीं पड़ता था। मानसिक स्वास्थ्य का विषयी उपलब्धियों पर प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन आत्म प्रत्यय की कुछ मापें प्रभावित हुई। अकांक्षा स्तर के बौद्धिक गुण तथा आत्म प्रत्यय के तत्वों का सार्थक संबंध था। आकांक्षा स्तर से प्रभावित शैक्षिक उपलब्धि में अन्तर था। शैक्षिक उपलब्धि के अन्तर पर मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता। मानसिक स्वास्थ्य सार्थक व धनात्मक रूप से आत्म प्रत्यय से संबंधित था। आत्म प्रत्यय स्तर पर आकांक्षा स्तर का प्रभाव नहीं पाया गया।
काॅन्ट्रक्टर (1977) ने शैक्षिक उपलब्धि निश्चित चरों का प्रतिफल विषय पर अध्ययन किया। अध्ययन का उद्देश्य शैक्षिक प्राप्ति तथा बुद्धि, उपलब्धि व सामाजिक, आर्थिक स्तर परिवार में जन्म के अनुसार बालक स्थान के मध्य संबंध का अध्ययन करना, शैक्षिक प्राप्ति और सामान्य समायोजन, चिन्ता और पारिवारिक संस्कृति में संबंध का अध्ययन, दोनों लिंगों के सापेक्ष चुने गए चरों के मध्य संबंध की प्रकृति का अध्ययन करना था। अहमदाबाद शहर के 300 उन छात्रों का जिन्होंने एम.एस.सी. परीक्षा पूर्ण कर ली थी, का यादृच्छिक विधि से चयन किया गया। प्रदत्त संकलन हेतु मानक प्रगति सूची परीक्षा बी.ए.टी. शोधकत्र्ता द्वारा तैयार आत्म विश्लेषण प्रश्नावली, मांडसले की- व्यक्तिगत विवरण सूची का प्रयोग किया गया। निष्कर्षतः पाया गया कि शैक्षिक उपलब्धि (प्राप्ति) का साकारात्मक संबंध बुद्धि और सामाजिक आर्थिक स्तर के साथ पाया गया। शैक्षिक प्राप्ति तथा परिवार के आकार के चिन्ता में ऋणात्मक दिशा में कार्यात्मक संबंध पाया गया। शैक्षिक प्राप्ति में व्यक्तित्व के सभी चरों (जिनमें उपलब्धि भी शामिल थी) के लिए मात्र 5 प्रतिशत विचलन पाया गया। प्रकाश (1975) ने निष्पत्ति आवश्यकता एवं बुद्धि व शैक्षिक उपलब्धि के मध्य सहसंबंध का अध्ययन किया। इन्होंने रैवाड़ी के कक्षा भवन के विज्ञान छात्रों को न्यादर्श  के रूप में चुना जिनमें सभी छात्रों का समायोजन आर्थिक स्तर एक सा था। डाॅ. के.एन. दत्ता व डाॅ. के.जी. रस्तोगी के निष्पत्ति आवश्यकता परीक्षण जलोटा का मानसिक योग्यता परीक्षण का उपयोग किया गया। निष्कर्षतः पाया गया कि सामान्य से निम्न बौद्धिक स्तर के छात्रों के निष्पत्ति प्रेरणा सामान्य व उत्कृष्ट छात्रों की तुलना में सार्थक रूप से अधिक थी। निम्न उपलब्धि वाले छात्रों की उपलब्धि प्रेरणा सामान्य उपलब्धि वाले, छात्रों से सार्थक रूप से अधिक थी किन्तु उच्च उपलब्धि वाले छात्रों के संबंध में यह सत्य नहीं पाया गया। निष्पत्ति प्रेरणा का बुद्धि एवं विद्यालयी उपलब्धि से सांख्यिकीय गणना से सार्थक रूप से संबंध पाया गया। गुप्ता (1975-76) ने विभिन्न सामाजिक-आर्थिक एवं बौद्धिक स्तर के प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की शैक्षिक निष्पति का अध्ययन किया। अध्ययन के उद्देश्य प्राथमिक विद्यालय के बालकों की शैक्षिक निष्पत्ति का अध्ययन करना, प्राथमिक विद्यालय के बालकों का आर्थिक-सामाजिक स्तर का अध्ययन करना, प्राथमिक विद्यालय के विभिन्न बौद्धिक स्तर का अध्ययन करना, प्राथमिक विद्यालयों के विभिन्न बौद्धिक स्तर के बालकों की शैक्षिक निष्पत्ति का तुलनात्मक अध्ययन करना था। इस अध्ययन में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक एवं बौद्धिक स्तर के आगरा शहर के प्राथमिक विद्यालयों के पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाले 195 विद्यार्थियों को लिया गया। उपकरण के रूप में एन.सी. जोशी तथा आर.बी. त्रिपाठी के बुद्धि परीक्षण का उपयोग किया गया। निष्कर्ष पाया कि प्रतिदर्श में लिए गए सामाजिक-आर्थिक स्तर के मूल प्राप्तांकों का विवरण सामान्य संभावना तक के समान था जिससे यह प्रतीत होता है कि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के विद्यार्थी सभी प्राथमिक विद्यालयों में पाए जाते हैं। मध्यम सामाजिक-आर्थिक स्तर के तीनों बुद्धि स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षिक निष्पत्ति के मध्यमानों में सार्थक सांख्यिकीय अन्तर था। उच्च सामाजिक-आर्थिक स्तर के विद्यार्थियों के उच्च मध्यमान तथा निम्न बुद्धि स्तर के मध्यमान में परस्पर अन्तर नहीं पाया गया। आनंद (1973) ने शोध में मैसूर स्टेट में सामाजिक आर्थिक वातावरण तथा शिक्षण माध्यम का मानसिक योग्यता तथा शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव देखा। शोध के मुख्य उद्देश्य- सामाजिक आर्थिक पर्यावरण तथा अशाब्दिक बु़िद्ध के मध्य संबंध ज्ञात करना, मातृभाषा तथा अंग्रेजी पर शिक्षण माध्यम के प्रभाव का अध्ययन करना, शाब्दिक तथा अशाब्दिक बुद्धि के प्रभाव का अध्ययन करना, सामाजिक आर्थिक वातावरण बुद्धि तथा उपलब्धि में अन्तक्रिया का अध्ययन करना था। शोध उपकरण के रूप में सामाजिक आर्थिक स्तर मापनी (श्री कुप्पू स्वामी), शैक्षिक उपलब्धि (उपलब्धि परीक्षण बैटरी) का प्रयोग किया गया। निष्कर्ष में पाया गया कि सामाजिक आर्थिक स्तर के तीनों वर्ग अपनी शाब्दिक तथा अशाब्दिक बुद्धि के संबंध में परस्पर सार्थक रूप से संबंधित है, उच्च सामाजिक आर्थिक स्तर के विद्यार्थियों की उपलब्धि के मध्यमानों के प्राप्तांक उच्च है, उन विद्यार्थियों की तुलना में जिनका सामाजिक- आर्थिक स्तर, मध्य स्तर का था, निम्न तथा मध्य स्तर के मध्यमानों में सार्थक अन्तर नहीं है, सामाजिक आर्थिक स्तर तथा उपलब्धि के मध्य संबंध नहीं पाया गया। जब अशाब्दिक बुद्धि के प्रभाव को शाब्दिक बुद्धि के प्रभाव से पृथक देखा गया तब सामाजिक आर्थिक स्तर का प्रभाव मानसिक योग्यता तथा शैक्षिक उपलब्धि पर पाया गया।

निष्कर्ष शैक्षिक उपलब्धि से सम्बन्धित साहित्यों के अवलोकन से पता चलता है कि विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को बढ़ाने के लिए विद्यार्थियों की रूचि, जागरूकता, समायोजन, बु़िद्ध लब्धि, वातावरण अन्य का होना आवश्यक है। विद्यालय, आस-पड़ोस, घरेलू वातावरण एवं समायोजन को होना आवश्यक है। अतः उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को उत्तम बनाने के लिए विद्यालय स्तर व घरेलू स्तर दोनों तरह से बच्चों की रूचियों अभिरूचियों, आदतों, उत्तम वातावरण, समायोजन जागरूकता, और जिज्ञासा का होना आवश्यक है। जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों की उपलब्धि में सुधार होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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