P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VII , ISSUE- IX December  - 2022
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका सम्बन्धों में उभरती साझेदारियाँ
Emerging Partnerships in India-United States Relations
Paper Id :  17116   Submission Date :  19/12/2022   Acceptance Date :  22/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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रामकल्याण मीना
सह आचार्य
राजनीति विज्ञान
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
झालावाड़,राजस्थान, भारत
सारांश भारत और अमेरिका प्रजातांत्रिक प्रणालियों में विश्वास करते है। दोनों विश्व शांति और स्वतंत्रता के इच्छुक है लेकिन दोनों में मैत्रीभाव के स्थान पर मतभेदों का क्षेत्र अधिक चैड़ा है क्योंक अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दोनों के दृष्टिकोण में गम्भीर भिन्नताएँ रही है। लेकिन 26 दिसम्बर 1991 को सोवियत संघ का विघटन और शीतयुद्ध के समाप्त होने के बाद दोनों देशों के बीच वास्तविक संबंधों की संभावना पनप गई, राष्ट्रपति क्लिंटन, जार्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा, डोनाल्ट ट्रम्प ने भारत यात्रा की तथा भारत व अमेरिका के मध्य विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत व अमेरिका दोनों हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में एक खुली नियम आधारित व स्वतंत्र व्यवस्था के पक्षधर है। चीन की आक्रामकता व शक्ति प्रदर्शन की चुनौती का सामना करने व क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा व स्थिरता को मजबूत करने के लिए अमेरिका की पहल पर 2017 में क्वाड़ (QUAD) नामक मंच की स्थापना की गई।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India and America believe in democratic systems. Both worlds are desirous of peace and freedom, but instead of friendship, the field of differences is more wide because there have been serious differences in the approach of both of them towards international problems. But after the disintegration of the Soviet Union on 26 December 1991 and the end of the Cold War, the possibility of real relations between the two countries flourished, President Clinton, George W. Bush, Barack Obama, Donald Trump visited India and various talks between India and America took place. Agreements were signed. Both India and America are in favor of an open rule-based and independent system in the Indo-Pacific region. In 2017, at the initiative of the US, a forum called Quad (FUNK) was established to counter the challenge of China's aggression and show of power and to strengthen maritime security and stability in the region.
मुख्य शब्द प्रजातंत्र, शीतयुद्ध, तानाशाही, गुटनिरपेक्षता, क्वाड़, पर्यावरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Democracy, Cold War, Dictatorship, Non-alignment, Quad, Environment
प्रस्तावना
भारत और अमेरिका दोनों प्रजातांत्रिक देश है दोनों प्रजातांत्रिक प्रणालियों में विश्वास करते है दोनों प्रजातंत्र के पोषक हैः दोनों मानवीय स्वतंत्रता, मनुष्य की गरिमा और मर्यादा में और संसदीय कार्यकलाप में गहरा विश्वास करते है। दोनों विश्व शान्ति और स्वतंत्रता के इच्छुक है। भारत और अमेरिका दोनों के सम्बन्धों को सुधारने की इच्छा होते हुए भी मैत्रीभाव के स्थान पर मतभेदों का क्षेत्र अधिक चैड़ा रहा है। इसका पहला कारण यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दोनों के दृष्टिकोणों में गम्भीर भिन्नताएँ रही है। दूसरा, लोकतंत्र का समर्थ होते हुए भी अमेरिका ने विदेशों में तानाशाह शासनों एवं शासको का समर्थन किया है और हथियारों की सप्लाई को निरन्तर जारी रखना विश्व के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में तनवा की स्थिति को बनाये रखा है तीसरे, भारत के प्रति अमेरिकी नजरिया भेदभावपूर्ण रहा है। अमेरिका ने अपने ढंग से विभिन्न प्रकार से भारत को हानि पहुँचाने की कोशिश की है। दिनमान ने लिखा है कि ’’घर में लोकतंत्र और बाहर तानाशाही, अमेरिका की विदेश नीति का आधार स्तम्भ रहे हैं। वियतनाम हो या चिली, ग्रीस हो या पुर्तगाल, अमेरिका ने आरम्भ से ही फौजी तानाशाही का समर्थन किया और लोकतंत्र के दमन में महत्त्वपूर्ण और सक्रिय योगदान दिया। सी.आई.ए. अमेरिकी विदेश नीति का केवल एक कारगर अस्त्र है अमेरिकी विदेश नीति का दूसरा कारगर अस्त्र है। उन देशों को हथियारों की सप्लाई जो कि अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में बने रहकर प्रतिद्वन्द्वी देशों के लिए चुनौती बन सकते है।’’ संक्षेप में ’’शान्ति का कपोत और तलवार’’ अमेरिकी विदेश नीति को अभिव्यक्त करते है।[1]
अध्ययन का उद्देश्य 1. सोवियत संघ के विघटन और शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद दोनों देशों के बीच वास्तविक संबंधों की संभावना का अध्ययन करना। 2. बदलते अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम में दोनों देशों का निकट आना अतयन्त महत्त्वपूर्ण है। अमेरिका को यह महसूस हो गया है कि बढ़ते हुए चीन का मुकाबला करने के लिए भारत के साथ सहयोग में बढ़ोतरी आवश्यक है क्योंक चीन पहले से ही क्षेत्रीय स्तर पर और उसके आगे अपने महत्त्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है। 3. शोध से यह पता चलेगा की दोनों देशों के हित एक दूसरे से मिलते-जुलते है। 4. दोनों देशों के मध्य राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य साझेदारियों का पता लगाना। 5. दीर्घकालीन ऊर्जा विकास के माध्यम से समावेशी और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
साहित्यावलोकन

चडढा पी.के., अन्तर्राष्ट्रीय संबंध आदर्श प्रकाशन चैड़ा रास्ता जयपुर 1987 प्रस्तुत पुस्तक में मुख्य रूप से भारत, अमेरिका, रूस, चीन की विदेश नीतियों का उल्लेख है साथ ही भारत के महाशक्तियों के साथ संबंधों का उल्लेख है। लेखक ने पुस्तक में यह स्पष्ट किया कि अमेरिका और भारत लोकतांत्रिक देश होते हुए भी विश्व समस्याओं के प्रति भिन्न दृष्टिकोण रखते है।

दीक्षित जे.एन. ’’भारतीय विदेशनीति’’ प्रभात पेपर बैक्स नई दिल्ली 2018

प्रस्तुत पुस्तक में विषयवस्तु को तीन व्यापक खण्डों में बाँटा है। पुस्तक में भारत की विदेश नीति तथा इसके प्रमुख आधारों के विकास का वर्णनात्मक, कालक्रमानुसार विश्लेषण प्रस्तुत किया है पिछले 50 वर्षो के दौरान महत्त्वपूर्ण घटनाओं या मुद्दों के प्रति अपनाया गया रवैया इस चर्चा का केन्द्र बिन्दु रहा है। आधी सदी के दौरान भारतीय विदेश नीति के गुण दोषों का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया गया है। विदेशों के साथ संबंध स्थापित करने से संबंधित ऐसी चुनौतियों का सामान्य विश्लेषण किया गया है जिनका इक्कीसवी सदी में भारत को सामना करना पड़ सकता है।

जौहरी डॉ.जे.सी. ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ एस बी.पी.डी पब्लिकेशन आगरा

प्रस्तुत पुस्तक में 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ यूरोप की सभी समाजवादी व्यवस्थाओं के अतीत की गाथा बन जाना, चीन में समाजवाद का बदलता स्वरूप, एकध्रुवीय विश्व, वैश्वीकरण, उदारीकरण तथा भारत, चीन, रूस, अमेरिकी विदेश नीतियों का उल्लेख किया गया है।

मिश्रा राजेश ’’भूमण्डलीकरण के दौर में भारतीय विदेश नीति’’ सरस्वती आई.ए.एस. 2015

प्रस्तुत पुस्तक में विश्लेषणात्मक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण पर अत्यधिक बल दिया गया है। पुस्तक में अधिकांश भारतीय विदेश नीति के मुद्दों का उल्लेख सहज एवं सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है।

बिस्वाल तपन ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ ओरियन्ट ब्लैकस्वान हैदराबाद 2022

प्रस्तुत पुस्तक दो भाग मे विभक्त है प्रथम भाग में अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के उपागम, शीतयुद्ध, भारत की विदेशनीति बहुपक्षीय आर्थिक संगठन वैश्वीकरण आदि के बारे में स्पष्ट किया गया है। द्वितीय भाग में समकालीन विश्व मुद्दों एवं कर्ता से संबंधित है।

फडिया डॉ.बी.एल, फडिया, डॉ.कुलदीप ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ साहित्य भवन पब्लिकेशन आगरा 2018

प्रस्तुत पुस्तक में भारत, अमेरिका, चीन आदि देशों की विदेशनीतियों का उल्लेख किया गया है। पुस्तक में भारत के पड़ौसी देशों व महाशक्तियों के संबंधों का उल्लेख किया गया है। पुस्तक में लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि भारत और अमेरिका निस्संदेह हर क्षेत्र में काफी करीब आ रहे है लेकिन कुछ क्षेत्र अब भी है जिन पर दोनों देशों के बीच कोई सहमति नहीं हो सकी है।

मुख्य पाठ

संयुक्त राज्य के साथ सम्बन्धों को देखे तो स्प्ष्ट हो जाएगा कि इस दिशा में भारत की ओर से निराशा होती है जबकि वाशिंगटन का रवैया संदिग्ध रहा है। सन् 1949 में नेहरूजी की वाशिंगटन यात्रा असफल रही। संयुक्त राज्य को भारत से उम्मीद थी कि भारत, रूस, चीन और शीतयुद्ध में उभरने वाले अन्य समाजवादी देशों के विरूद्ध पश्चिम का साथ देगा। नेहरूजी ने शीतयुद्ध से उत्पन्न किसी भी शक्तिशाली गुट में शामिल होने से इन्कार कर दिया। इससे अमेरिका नाराज हो गया। नेहरूजी द्वारा उच्च नैतिक आधारों में दर्शाएँ गए विश्वास से यह स्थिति और अधिक जटिल हो गई। टूªमेन उनके विचारों से सहमतनही थे। डीन एचसन तथा जाॅन फोस्टर ड्यूले नेहरूजी की विचार धारा को दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की संरचना के लिए संयुक्त राज्य की नीतियों के विरूद्ध बड़ी बाधा समझते थे। वे महसूस करते थे कि भारत पश्चिम से रक्षा प्रौद्योगिकी तथा आर्थिक सहायता लेता है इसलिए उसे संयुक्त राज्य अमेरिका की नीतियों पर आपत्ति नहीं उठानी चाहिए।[2]

अमेरिका ने गुट निरपेक्षता की नीति के भाव को समझे बिना उसे ’’अनैतिक नीति’’कहा। विदेश मंत्री जान मास्टर डलेस ने टिप्पणी की कि भारत में आन्तरिक संरकार के माध्यम से सोवियत संघ अपने साम्यवाद का प्रभाव फैला रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में नेहरू को ’’सोवियत एजेन्ट’’ निरूपित किया गया। निराश होकर अमेरिका ने पाकिस्तान को अपने गुट (सीटों) में शामिल किया और उसे विशाल सैनिक व वित्तीय सहायता दी। जब भारत ने इसका विरोध किया, तो अमेरिकी प्रशासन ने यह आश्वासन दिया कि ऐसी सहायता का भारत के खिलाफ प्रयोग नहीं किया जायेगा। दिसम्बर 1959 में राष्ट्रपति आईजन हावर ने भारत की यात्रा की। प्रधानमंत्री नेहरू से बातचीत के बाद एक विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें कहा गया कि दोनों नेताओं का यह दृढ़ विश्वास है कि उनके साझे आदर्श का लक्ष्य तथा उनकी शान्ति की खोज के बीच मित्रता के सुदृढ़ बन्धनों को बनाएँ रखने तथा उनके विकास को सुनिश्चित करेंगे। 4 मई 1960 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए जिसके अन्तर्गत अमेरिका ने भारत को पर्याप्त मात्रा में गेहूँ व चावल दिया। जब 1962 में चीन के आक्रमण के समय अमेरिका ने बिना शर्त विशाल सैनिक सामग्री दी तो भारत अमेरिका सम्बन्धों में बहुत सुधार हुआ। इसने हमारी गुट निरपेक्षता की नीति को क्षति नहीं पहुँचाई क्योंकि अमेरिका ने यह सहायता निशर्त दी थी।[3]

अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी ने नई दिल्ली से भारतीय वायुसेना को स्टार लड़ाकों से लैस करने की बात कही तब तक संघर्ष विराम का आदेश दिया गया था और इस मामले को इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया गया।[4] सितम्बर 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया किन्तु अमेरिका ने तटस्थता का रूख अपनाया तथा अयूब खाँ के आग्रह को स्वीकार नहीं किया कि अमेरिका इस मामले में अपना हस्तक्षेप करे। मार्च 1966 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने अमेरिका की यात्रा की और वहाँ राष्टँपति जाॅनसन से बातचीत के दौरान यह स्पष्ट किया कि चीन शान्ति व शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व में कोई विश्वास नहीं रखता है। अतः इस संकट से निपटा जाएँ। अमेरिका, चीन की सत्ता को नियंत्रित करना चाहता था  अतः उसने पाकिस्तान व भारत दोनो को सहायता देने का मार्ग चुना। 1970 तक की अवधि में भारत-अमेरिका सम्बन्धों में उतार-चढ़ाव का क्रम चलता रहा। अमेरिका का यही प्रयास रहा कि यदि गुटनिरपेक्ष भारत को अपने सैनिक संगठन में नहीं खींचा जा सके तो उसे सोवियत शिविर में जाने से अवश्य रोका जाएँ।[5]

3 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस दौरान पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाएँ बुरी तरह परास्त हो गई। भारत ने तिरानवे हजार पाकिस्तानी सैनिक युद्धबंदी बनाएँ। अमेरिका ने पाकिस्तानी सेनाओं की हार रोकने का भरसक प्रयास किया। राष्ट्रपति निक्सन ने संयुक्त राज्य का सातवाँ बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजने का आदेश दिया।[6]

इन सबके बावजू़द भारत ने अमेरिका से अपने सम्बन्ध सुधारने की कोशिश की। मार्च 1977 में जनता सरकार ने शुद्ध गुट निरपेक्षका का आह्वान किया। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई तथा उसके विदेश मंत्री वाजपेयी ने दोनों महाशक्तियों के प्रति भारत के झुकाव को सन्तुलित करना चाहा। एन-ए-पालखीवाला को राजदूत बनाकर अमेरिका भेजा गया जिसने हालात को सुधारने हेतु विशेष कार्य किया। अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर ने भारत की यात्रा की तथा उसके विकास को सराहा। अक्टूबर 1981 में कैनसन (मैक्सिको) में प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी व राष्ट्रपति रीगन के बीच प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित हुआ। इस अवसर पर रीगन ने भारत की सोच में नयी पकड़ का परिचय दिया। भारत को तारापुर परमाणु संयत्र के लिए परिशुद्ध यूरेनियन की सप्लाई की माँग अप्रत्यक्ष तरीके से पूरी की। स्वयं न देकर फ्रांस को ऐसी आपूर्ति करने को तैयार कर दिया। जून 1985 में प्राधनमंत्री राजीव गाँधी ने अमेरिका की यात्रा की और वहाँ की काँग्रेस में बोलते हुए यह महत्त्वपूर्ण शब्द कहे ’’यद्यपिअमेरिका व भारत सुरक्षा सम्बन्धी रणनीतियों में मित्र नहीं है लेकिन वे वृहत मानवीय कार्यो-स्वतंत्रता, न्याय व शान्ति के मित्र है।’’

विदेश सचिव शुल्ज ने इस घटना को अप्रत्याशित सफलता बताया। ’’जिस खिड़की को इन्दिरा गाँधी ने बहुत थोड़ा खोला, राजीव गाँधी ने उसे और अधिक खोल दिया।’’[7] 26 दिसम्बर 1991 को सोवियत संघ का विघटन और शीतयुद्ध के समाप्त होने के बाद दोनों देशों के बीच वास्तविक सम्बन्धों की संभावना पनप गई। अमेरिका ने भरात की आर्थिक उदारीकरण की नीति का समर्थन किया तथा भारत में अमेरिकी पूंजी निवेश में भी वृद्धि हुई। मई 1994 में भी राव ने अमेरिका की यात्रा की तथा इस यात्रा के दौरान अनेक क्षेत्रों में सहयोग विस्तृत करने पर सहमति हुई किन्तु अमेरिका ने भारत पर अनेक क्षेत्रों में दबाव निरन्तर बनाये रखा जैसे परमाणु अप्रसार संधि, सुपर कम्प्यूटरों का निर्यात, पेटेन्ट और बौद्धिक सम्पदा सम्बन्धी कानून, कश्मीर का प्रश्न, मानव अधिकारों का प्रश्न डंकल प्रस्ताव, सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थाई सदस्यता का प्रश्न, भारत का प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम, क्रायोजैनिक इंजनों की तकनीक से संबंधित भारत-रूस समझौते को निरस्त करवाना आदि भी तनाव के क्षेत्र रहे।[8]

जब भारत ने 11 एवं 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण कर आणविक शक्ति बनने के अपने अडिग निश्चय को प्रकट कर दिया तो अमेरिकी राष्ट्रपति बिल किलन्टन ने कठोर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए। बाद मेें अमेरिका भारत की सुरक्षा चिन्ताओं को समझने लगा और भारत के विरूद्ध लगाए गए प्रतिबन्धों को आर्थिक रूप से उठाने की घोषणा की। अमेरीका ने पाकिस्तान पर दबाव डालते हुए कारगिल से अपनी सेना हटाने को कहा।[9]

राष्ट्रपति क्लिंटन की मार्च 2000 में भारत-यात्रा के दौरान दृष्टि पेपर (Vision Paper) जारी किया गया जिसमें निम्न बाते मुख्य है। (1) स्वच्छ ऊर्जा एवं पर्यावरण पर एक संयुक्त परामर्शी समूह की स्थापना पर सहमति (2) अमेरिका-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंच की स्थापना पर सहमति (3) व्यापार से सम्बन्धित अमेरिका-भारत कार्यदल के अन्तर्गत व्यापार-नीति एवं सहयोग में अभिवृद्धि के लिए नियमित विचार विमर्श। (4) आतंकवाद से मुकाबले के लिए संयुक्त कार्यदल।[10] सितम्बर 2001 में अमेरिका में विश्व व्यापार केन्द्र पर बड़ा आतंकी हमला हुआ जिसमें 2000 से ज्यादा लोग मारे गये। परिणामस्वरूप अमेरिकीविदेश नीति में ’’आतंक के विरूद्ध युद्ध’’ का नारा दिया गया और भारत ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए अमेरिका का पूर्ण सहयोग किया।[11]

28 जून 2005 को पारस्परिक रक्षा सम्बन्धों को नये आयाम प्रदान करते हुए भारत व अमेरिका ने एक नये रक्षा सहयोग समझौते पर वाशिंगटन में हस्ताक्षर किये। न्यू, फ्रेमवर्क फॉर  दि यूएस इंडिया डिफेंस रिलेशनशिप शीर्षक वाले इस समझौते में दोनों देशों के मध्य अगले 10 वर्षों के लिए सुरक्षा सहयोग की रूपरेखा निर्धारित की गई। 18 जुलाई 2005 को भारत-अमेरिका के द्वारा जारी साझा बयान का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग नाभिकीय ऊर्जा समझौता रहा।[12] भारत अमेरिका असैनिक नाभिकीय करार पर 10 अक्टूबर 2008 को वाशिंगटन में हस्ताक्षर किया गया तथा 18 अक्टूबर 2008 को इसे कानून बना दिया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नवम्बर 2010 में भारत यात्रा की।

सितम्बर 2014 में वाशिंगटन वार्ता में सभी मुद्दों पर ध्यान दिया गया था। व्यापार के मुद्दे पर सुनिश्चित किया गया कि वस्तु और सेवाओं के द्विपक्षी व्यापार को 5 गुना बढ़ाकर 100 अरब डॉलर  किया जाएगा इसके लिए आधारभूत। सुविधाओं के विकास की भी संस्तुति की गई। सितम्बर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा और राष्ट्रपति बराक ओबामा की जनवरी 2015 में भारत यात्रा ने परस्पर सम्बन्धों में गति प्रदान की। ओबामा अपने कार्यकाल में दो बार भारत आने वाले और साथ ही भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि होने वाले पहले अमेरकी राष्ट्रपति है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) मामले को सुलझाने के लिए अमेरिका भारत के खाद्य भंडारों के मुद्दे पर ध्यान देने पर सहमत हो गया। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा और अमेरकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान दोनों नेताओं द्वारा जारी संयुक्त व्यक्तव्य से यह साफ दिख रहा है कि दोनों के बीच परस्पर विश्वास और सहयोग के विषय बढ़े है। आतंकवाद की चुनौती से निपटने के मुद्दे पर दोनों देशों ने अपने संकल्प को दोहराया और कहा कि ’’सम्मिलित और ठोस उपाय जिसमे आतंकियों के सुरक्षित ठिाकानों को नष्ट करना शामिल है, किये जाने अत्यन्त आवश्यक है। मुंबई पर हुए 26/11 के हमले के अपराधियों का पाकिस्तान द्वारा प्रत्यर्पण कराए जाने का भी उल्लेख किया गया। इसके अतिरिक्त भावी रणनीति बनाने के लिए एक उच्च स्तरीय बौद्धिक संपदा समूह की स्थापना की गई। एक और ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे है जिसमें स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा तथा नाभीकीय ऊर्जा को समाधान के रूप में रखा गया। पार्टनरशिप टू एडवांस क्लीन एनर्जी (च्ंबम) के रूप में इस क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदारी की गई। उच्च तकनीक अंतरिक्ष और स्वास्थ्य सहयोग के मुद्दों पर भी उन क्षेत्रोें पर ध्यान दिया गया है जो भारत को विनिर्माण में इक्कीसवी सदी के स्तर की विशेषता दिला सकती है।

रणनीति मोर्चे पर साझा बयान सरकार की ’’एक्ट ईस्ट नीति और ओबामा के एशिया में समन्वय नीति के बीच संतुलन साधता दिखा। मध्य, दक्षिण और पूर्वी एशिया में सम्पर्क की भारत-अमेरिका की नीति चीन के ’’वन बेल्ट, वन रोड़, हब एंड स्पोक का उत्तर है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांत और सुरक्षा बनाये रखने पर जोर दिया गया और समुद्री आवागमन विशेषकर दक्षिण चीन सागर की स्वतंत्रता पर विशेष जोर दिया गया।[13]

जनवरी 2015 में राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा में तीन दस्तावेज साझा रूप से जारी किये गये। उनमें 2014 में जारी दस्तावेजों के अनेक विषयों का विस्तार किया गया था और रणनीतिक धारणाओं के सरूपण का प्रयास भी था। एक ऐसा ही विशेष दस्तावेज है- मैत्री घोषणा पत्र। यह घोषणा पत्र अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, स्थिरता व समृद्धि के लिए साझा रणनीतिक दृष्टि की व्याख्या करता है। ये बड़े ही उदात्त लक्ष्य है। इसके बाद यह घोषणा पत्र साझा मूल्यों जैसे लोकतंत्र, मानवाधिकार आदि की चर्चा करता है, यह जलवायु परिवर्तन का सामना करने, स्थिर विकास करने जैसे कर्तव्यों की बात करता है और नियमबद्ध तथा पारदर्शी बाजार का भरोसा दिलाता है। यह वर्तमान रणनीतिक संवाद को रणनीतिक व वाणिज्यिक संवाद में बदलता है और दोनों देशों के प्रमुखो और सुरक्षा सलाहकारों के बीच हाॅटलाइन स्थापित किए जाने पर जोर देता है। एक दूसरा दस्तावेज एशिया पैसेफिक के लिए साझा रणनीतिक दृष्टि की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।[14]

जून 2017 में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका की यात्रा की और राष्ट्रपति ट्रम्प से आतंकवाद, रक्षा और व्यापार जैसे मुद्दों पर चर्चा की। अमेरिका ने भारतीय नौ सेना की खुफिया और टोली क्षमताओं के वृद्धि के लिए भारत को 22 सी गार्डियन ड्रोन बेचने की पेशकश की। चीन को लेकर ट्रम्प और मोदी के हितों में मिलन तब देखा गया जब संयुक्त बयान में उन्होंने दक्षिण चीन सागर में नौवहन, उड़ान और वाणिज्य की आजादी में अपने विश्वास को दोहराया।

जुलाई 2017 में ही भारत और अमेरिका के के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए अमेरिकी काँग्रेस में पेश हुआ ’’एडवांस रक्षा बिल’’ पास किया गया। 40 लाख करोड़ रूपये का यह बिल भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद अमी बेरा द्वारा संशोधन के रूप में लाया गया था यह संशोधन राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम 2018 के भाग के रूप में पारित किया गया जो 1 अक्टूबर 2017 से लागू हुआ।[15]

भारत व अमेरिका दोनो हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में एक खुली नियम आधारित व स्वतंत्र व्यवस्था के पक्षधर है चीन की आक्रामकता व शक्ति प्रदर्शन की चुनौती का सामना करने व क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा व स्थिरता को मजबूत करने के लिए अमेरिका की पहल पर 2017 में क्वाड़ (Quad) नामक मंच की स्थापना की गई। इसमें दोनों देशों के अलावा दो अन्य देश जापान तथा ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है। वर्तमान में इस मंच में विचार विमर्श का स्तर विदेश मंत्रियों के स्तर तक बढ़ा दिया गया है। चीन ने क्वाड़ की गतिविधियों पर आपत्ति भी जताई है। अमेरिका ने भारत चीन सीमा पर चल रहे वर्तमान तनाव के लिए चीन की आक्रामकता को दोषी ठहराया हैं। हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में चीन की बढ़ती हुई आक्रामकता के कारण क्वाड़ जैसे सामरिक सहयोग मंचों को मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता है सामरिक मामलों पर विचार करने के लिए दोनों देशों के मध्य नियमित आधार पर 2+2 वार्ताओं का आयोजन किया जाता है। जिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्री व प्रतिरक्षा मंत्री एकसाथ भाग लेते है इसके अलावा दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच भी नियमित आधार पर उच्च स्तरीय विचार विमर्श होता रहता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फरवरी 2020 में भारत की संक्षिप्त यात्रा पर आये थे इस उच्च स्तरीय विचार विमर्श से दोनों के बीच सामरिक साझेदारी को मजबूत बनाने में मदद मिली हैं यद्यपि आर्थिक क्षेत्र में दोनों देशों के बीच कई मतभेद है लेकिन दोनो देशों के मध्य गत दो दशकों में आर्थिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। लम्बे समय से अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बना हुआ है वर्ष 2020 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 124 बिलियन डॉलर है।[16]

भारत व अमेरिका के बीच महत्त्वपूर्ण समझौते निम्न है-[17]   

1. सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा वर्ष 2002

2. भारत अमेरिका परमाणु समझौता वर्ष 2008

3. लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट वर्ष 2016

4. भारत-अमेरिका सामरिक ऊर्जा भागीदारी वर्ष 2017

5. संचार संगतता और सुरक्षा समझौता वर्ष 2018

6. आतंकवाद विरोध पर द्विपक्षीय संयुक्त कार्यदल की बैठक मार्च 2019

7. साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता

भारत संयुक्त राज्य अमेरिका से खरीद 2008-2020[18] 

आदेश की तारीख/वर्ष

उपकरण

प्रकार

मात्रा

यू.एस. मूल्य

कंपनी

2008

C-130/-30 हरक्यूलिस

मध्यम परिवहन विमान

6

962. 45 मी.

लॉकहीड मार्टिन

2009

P8I नेफय्यून

पनडुब्बी रो धी मुद्रक विमान

8

2.1 बिलियन

बोइंग

2011

 

भारी परिवहन विमान

11

4.7 अरब

बोइंग

2013

C-130/-30 हरक्यूलिस

मध्यम परिवहन विमान

6

1.01 अरब

लॉकहीड मार्टिन

2015

CH-47 F चिनूक

भारी परिवहन हेलीहेलीकॉप्टर

15

3 इद

बोइंग

2016

P8I नेपच्यून

पनडुब्बी रोधी युद्धक विमान

04

1

बोइंग

2017

M 777 A2

तोपे

145

542.1 मी.

बीएई लैन्ड सिस्टम्स एण्ड आर्मामेट्स

2018

C 17 A  ग्लोबमास्टर

भारी परिवहन विमान

01

262 मी.

बोइंग

2020

एम एच-60 आर सीहॉक

पनडुब्बी रोधी युद्धक हेलीकॉप्टर

24

2.6 बिलियन

सिकोरस्की

2020

ए एच-64 ई अपाचे

हमला हेलीकॉप्टर

06

930 मी.

बोइंग

पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी सितम्बर 2019 में अमेरिका यात्रा पर गए थे उस दौरान उन्होंने और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप ने ह्यूसटन में हाउडी मेादी कार्यक्रम को सम्बन्धित किया था। कोविड 19 महामारी के प्रकोप के बाद वह दूसरी बार 22 सितम्बर 2021 को 5 दिवसीय अमेरिकी यात्रा पर गये। इस दौरान पी.एम. मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया और क्वाड़ शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा लिया। मोदी की सफल कूटनीति के कारण ही क्वाड़ शिखर सम्मेलन में पहली बार अफगानिस्तान और आतंकवाद के ऐजेंडे को शामिल किया गया। क्वाड़ बैठक में भारत यह सिद्ध करने में कामयाब रहा कि तालिबान शासन में पाकिस्तान की दिलचस्पी भारत विरोधी है। भारत ने अपनी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को लेकर क्वाड़ देशों के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में जब दुनिया के शीर्ष नेता अमेरिका में मौजूद हो उस वक्त राष्ट्रपति बाइडन ने क्वाड़ के नेताओं को विशेष तवोज्जह दिया। इस क्रम में राष्ट्रपति बाइडेन और पीएम मोदी की व्यक्तिगत मुलाकात खास मायने रखती है। यह मुलाकात जिस अंदाज और माहौल में हुई वह बेहद सकारात्मक थी। बाइडेन ने भारत से अपने तार जोड़ने की कोशिश की। यह इस बात के संकेत है कि अमेरिका की भारत क साथ सम्बन्धों में कितनी दिलचस्पी है। क्वाड़ शिखर वार्ता में भारत अपनी कोरोना वैक्सीन डिप्लोमेसी को लेकर भी कामयाब रहा। भारत ने वैक्सीन को लेकर चीन को पूरी तरह चित्त कर दिया। क्वाड़ शिखर वार्ता में भारतीय कम्पनियों को अमेरिकी कम्पनी जॉनसन एंड जॉनसन की कोरोना वैक्सीन की एक अरब डोज बनाने पर सहमति बनी है यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन और मोदी की प्रथम मुलाकात बेहद प्रभावशाली और दिलचस्प रही दोनों नेताओं की यह व्यक्तिगत मुलाकात बेहद सकारात्मक माहौल में हुई। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और मोदी की दोस्ती के बाद बाइडेन और मोदी की केमस्ट्री भी रंग लाएगी। बाइडेन ने इस वार्ता में यह सिद्ध कर दिया कि अमेरिका भारत का सच्चा दोस्त है। वार्ता के क्रम में बाइडेन ने अपनी पूर्व में हुई भारत की यात्रा का जिक्र भी किया। उन्होंने मोदी से कहा कि भारत में भी एक बाइडेन रहते है।[19]

खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने अलग-अलग क्षेत्र की पाँच प्रमुख कम्पनियों केसीईओ के साथ मुलाकात कर अपनी यात्रा की शुरूआत की। इस दौरान उन्होंने भारत में उपलब्ध आर्थिक अवसरों के बारे में बताया। मुलाकात करने वालों में क्वालकौम, एडोब, फस्र्ट सोलर, जनरल स्टाॅमक्स और ब्लैक स्टोन जेसी पाँच प्रमुख कम्पनियों के मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष के साथ एक-एक करके मुलाकात की। उनमें एडोब के सीइओ शांतनु नारायण और जनरल एटोमिक्स के सीईओ विवके लाल भारतीय मूल के अमेरिकी है।

शांतनु नारायण सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल प्राथमिकता से जुड़े हुए है जिस पर भारत सरकार खासा जोर दे रही है। वही मोदी की विवेकलाल के साथ बैठक महत्त्वपूर्ण है क्योंक जनरल एटाॅमिक्स न केवल सैन्य ड्राॅन प्रौद्योगिकी में आगे है बल्कि अत्याधुनिक सैन्य ड्रोन में दुनिया की टाॅप मैनुफैक्चरर्स में है।[20] वही जापान में सम्पन्न हुई 25 मई 2022 को प्रधानमंत्री मोदी क्वाड़ की बैठक में हिस्सा लेने के लिए दो दिवसीय जापान दौरे पर गये थे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा ’’कोरोना महामारी में पीएम मोदी ने शानदान काम किया है। विस्तारवाद पर लोकतंत्र भारी है और ये मोदी ने साबित किया है। उन्होंने दिखाया की लोकतंत्र में काम कैसे होता है।’’ अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि मैं अमेरिका-भारत साझेदारी को पृथ्वी पर हमारे सबसे करीब बनाने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। उन्होंने आगे कहा ’’हमारे देश मिलकर बहुत कुछ कर सकते है और करेंगे भी। हम इंडो-यूएस वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम का नवीनीकरण भी कर रहे है।’’[21]

निष्कर्ष संक्षेप में अमेरिका के साथ नजदीकी सम्बन्धों के वादों को पूरा करने के लिए ढेर सारे क्षेत्रों में काफी अनुवर्ती कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है विशेषकर तब जबकि चीनी सीमा पर तनाव लगातर बढ़ रहा है। चीन दक्षिण चीन सागर में लगातार अपना नियंत्रण बढ़ा रहा है। भारत और अमेरिका के लिए चुनौती होगी कि वे अतीत में गंवा दिए गए मौकों की भरपाई आने वाले दशक में कर ले। हालांकि सभी देश अपने हितों की रक्षा करते है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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