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झालावाड़ लघु चित्रों में बारहमासा चित्रण | |||||||
Perennials Depicted in Jhalawar Miniature Paintings | |||||||
Paper Id :
17119 Submission Date :
2023-01-09 Acceptance Date :
2023-01-19 Publication Date :
2023-01-23
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सारांश |
बारहमासा चित्रों में बारह मास में नायक नायिका के श्रंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं को चित्रण लघु चित्र शैली मे दर्शाया गया है। बारहमासा चित्रों में नायिकाओं को छः ऋतु के साथ भावोद्दीपन अधिक सरल,सुलभ व सजीव है। कलाकार की दृष्टि उल्लास पूर्ण फागुन तथा चैत्र मास की पुष्पित तथा पल्लवित प्रकृति वसंत शोभा में केंद्रित हो गई है। कचनार, सेमल, टेशू, पलाश आदि के पुष्पित वृक्षों, सरसों की खेत मंजरी से लदे वृक्षो को बड़ी सुंदरता से चित्रों के अंदर चित्रित किया गया है। बारहमासा चित्रों में श्रंगार वियोग और सहयोग में वर्गीकृत किया गया है । वियोग को विरह या विप्रलम्भभी कहा जाता है । चित्रों में सहयोग श्रंगार अनेक प्रकार का बताया गया है। सामान्य संभोग तथा पशु पक्षियों का संभोग, आदर्श नायक नायिकाओं में देखा जाता है। प्रारंभ में कृष्ण एवं गोपियों की चुनाव क्रीडाओ को चित्रकार ने रतिक्रिया का आधार बनाकर श्रृंगारिकता व आध्यात्मिकता के साथ चित्रित किया है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the Barhamasa paintings, the actions of the hero-heroine's decorative separation and union in the twelve months have been depicted in miniature style. In perennial paintings, the emotion of the heroines with six seasons is more simple, accessible and alive. The vision of the artist is focused on the ecstatic Phagun and the blossoming nature of the month of Chaitra. The flowering trees of Kachnar, Semal, Teshu, Palash etc., and the trees laden with mustard, fields have been beautifully depicted inside the paintings. The decorations in the Barhamasa paintings are classified into separation and cooperation. Many types of co-operative adornment have been described in the paintings. Normal sexual intercourse and sexual intercourse of animals and birds is seen in the ideal heroes and heroines. In the beginning, the painter has depicted the selection games of Krishna and Gopis with the spirituality of Shringarikta by making the basis of the ritual. | ||||||
मुख्य शब्द | बारहमासा, ऋतु, श्रृंगार, प्राकृतिक। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Perennial, Seasonal, Makeup, Natural. | ||||||
प्रस्तावना |
वर्ष भर के बारह माह में नायक- नायिकाओं के श्रंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा नाम से संबोधित किया जाता है। श्रवण मास में हरे भरे वातावरण में नायक नायिका के काम भावों को बारिष में भीगते हुए रूपों में, ग्रीष्म में पंखा झलते हुए, बसंत में मनमोहकता लिए हुए, झूलते हुए रंगों को बिखेरते हुए, मन की व्याकुलता को व्यक्त करते आदि विभिन्न भावों को चित्रकार ने नायक नायिका व उनके क्रियाकलाप द्वारा प्रकृति व रंगो द्वारा प्रदर्शित करने का अथक प्रयास किया है ।
बारामासा के चित्रों में श्रावण मास को विशेष रूची के साथ चित्रित किया है। चित्रकारों ने नायक नायिका के रूप में श्री कृष्ण व प्रेयसी राधा को आधार मानकर चित्रण किया है । इन चित्रों में प्राकृतिक संपदा से भरपूर वातावरण दिखाई देता है। अकाश के घने बादलों में सर्पाकार बिजलियाॅ है । पशु- पक्षी उन्मुक्त रुप से विचरण कर रहे हैं। पानी से परिपूर्ण सरोवर में कमल पुष्प बतख सारस आदि चित्रित हैं। आम व केले के वृक्षों के झुरमुट से मयूर बादलों की और ताक रहे हैं । ऐसे सुरम्य वातावरण में सरोवर के किनारे घने जंगल आदि स्थानों पर नायक- नायिका प्रकृति के विभिन्न रूपों का रसास्वादन कर रहे हैं । झालावाड़ चित्र शैली के अंदर भी बारहमासा चित्रण हुआ है। इस क्षेत्र का प्राकृतिक स्वरूप ही हरी-भरी वनस्पतियों व जल से संबोधित है। झालावाड़ के राजकीय संग्रहालय में बारहमासा चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। जिनका विवरण इस लेख में दिया जा रहा है। झालावाड़ चित्र शैली कोटा शैली के बहुत बाद की है। यहां के चित्रों में नायक - नायिकाओं का कद सामान्य से छोटा बनाया गया है । संपूर्ण बारहमासा चित्रों में नायक नायिकाओ के सिर पर पगड़ी व मुकुट के साथ कलंगी या सरपेच बनाया गया है, जो विशेष रूप से सफेद रंग का चित्रित है। झालावाड़ चित्रों में बारहमासा की यह श्रंखला अपने में अनूठी है।
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अध्ययन का उद्देश्य | इस प्रकार वर्ष के बारह महीनों को चित्रकार ने झालावाड़ की लघु चित्र शैली में बनाया गया है। प्रत्येक चित्र के चारों तरफ काला व लाल बॉर्डर बनाया गया है। आभूषण ज्यादातर मोतियों के पहनाए गए हैं। नायिकाओं को घागरा व छोटी चोली और दुपट्टा पहनाया गया है। केश पीछे बंधे हुए जुड़े जैसे बनाए हैं। नायक मूछों के साथ जामा व पजामा पहने चित्रित है। मुख पर आंखें सुंदर बनाई गई हैं किंतु मानव आकृतियां आकार में छोटी बनाई गई हैं। अतः इन चित्रों में प्रकृति के प्रति भी प्रेम प्रदर्शित किया है ।संपूर्ण चित्रों को कलाकार ने अपनी अभिव्यक्ति प्रदान कर सुंदर बनाया है । |
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साहित्यावलोकन | जिनका वर्णन निम्न है- हिंदी वर्ष के अनुसार चित्रकारों ने चित्र चित्रित
किए हैं। 1. चैत्र (मार्च-अप्रैल)- नायक नायिका आपस में वार्तालाप करते चित्रित है। अग्र भूमि में एक घोड़ा
लेकर सेवक तैयार खड़ा है। नायिका नायक को रोकने का जैसे प्रयास कर रही हो।
पृष्ठभूमि में भवन व प्रकृति का चित्रण है। 2. वैशाख (अप्रैल-मई)- चित्र में नायक-नायिका भवन के अंदर बैठे हैं।
एक सेविका को पंखा झलते हुए बनाया गया है। अग्र भूमि में क्यारियाँ बनाई गई हैं ।
ग्रीष्म ऋतु के आगमन का दृश्य चित्रित है। 3. ज्येष्ठ (मई-जून)- इस चित्र में आसमान साफ है। नायक नायिका भवन के अंदर है। भवन भी झोपड़ी
जैसा ठंडा स्थान दिखाई दे रहा है। अग्र भूमि व पृष्ठभूमि में पेड़ पौधे बनाए हैं।
एक स्त्री अपने चेहरे को बाई ओर मुडकर किसी चीज को देखते हुए, व अन्य स्त्री अपने हाथ में पानी की मशक लिए खड़ी चित्रित है। 4. आषाढ़ (जून-जुलाई)-नायक नायिका भवन के अंदर बैठे वार्तालाप कर रहे हैं। साथ ही एक सेविका
पंखा झलते हुए हैं। भवन की ऊपरी मंजिल में बनी खिड़कियों में लटकता पर्दा हवा के
कारण उड़ता हुआ बनाया गया है, क्योंकि आषाढ़ में हवाएं बहुत
चलती हैं। 5. श्रावण (जुलाई-अगस्त)- पृष्ठभूमि में स्लेटी धुंधला सा आकाश बनाया
है। अग्र भूमि में पानी है मध्य भूमि में आम के वृक्ष नायक नायिका व सेविका है।
चित्र मे नाचते मोर चित्रित हैं। नायक नायिका आग के
सामने झूला झूलते बनाए गए हैं। वातावरण बहुत ही सुंदर है। 6. भादो (अगस्त-सितंबर)-
नायक नायिका भवन के बाहर आकाश में छाई घटा एवं चमकती बिजली की ओर
संकेत करते हुए हैं। एक अन्य स्त्री भी आसमान की ओर
इशारा करते बनाई है। बादल स्लेटी रंग के धुंधले घुमड़ते हुए चित्रित है। 7. अश्विन (सितंबर-अक्टूबर)- नायक नायिका प्रवेश द्वार पर खड़े हुए हैं। दोनों अग्र भूमि में खड़े हाथी
व घोड़े को बुला रहे हैं। नयिका के हाथ में कुछ है जो यह दर्शा रहा है जैसे दोनों पशुओं के लिए भोजन हो। पृष्ठभूमि में एक ब्राह्मण
हवन करते हुए बनाया गया है। इस समय नवरात्र व दशहरा उत्सव को यहां दर्शाने का
प्रयास किया गया है। 8. कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) - प्रातः काल के पूर्व का समय है। आसमान काले रंग से बनाया है। नायक-नायिका किसी पौधे की ओर संकेत करते हुए हैं। पीछे सेविका हाथ में कुछ लेकर खड़ी है।
भवन के ऊपर छत पर एक स्त्री दीपक में तेल डालते हुए चित्रित है। 9. मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर)- चित्र में नायक नायिका हाथ तांपते हुए हैं। साथ में एक सेविका हाथ में
कुछ वस्तु लेकर खड़ी है। अग्र भूमि में क्यारियां चित्रित है। नायिका कोई शाल जैसा
वस्त्र ओढ़े हुए बनायी गयी है। 10. पौषमास (दिसंबर- जनवरी)- पृष्ठभूमि में नायक नायक का अग्नि में हाथ तांपते हुए हैं। मध्य में एक चौकी पर बैठी नायिका का धूप में सेविका तेल का मर्दन करते हुए चित्रित है। नायक नायिका दोनों शॉल जैसा वस्त्र डाले हुए चित्रित हैं। 11. माघ (जनवरी-फरवरी)- नायक नायिका को मोढे पर बैठे हुए संगीत का आनंद लेते हुए बनाया गया है। उनके पीछे सेविका को मोरल लिए बनाया गया है। साथ में नृत्य करती स्त्री व अन्य दो स्त्रियां मृदंग, मंजीरे बजाती हुई बनाई गई हैं। 12. फाल्गुन (फरवरी-मार्च)- इस चित्र में भवन के चौक में नायक-नायिका व अन्य स्त्रियाँ एक दूसरे पर रंग डालते हुए बनाई गई हैं। एक स्त्री मृदंग
बजाते हुए हैं, संपूर्ण मध्य भाग में रंग बिखरा हुआ है।
संपूर्ण वातावरण संगीत पूर्ण व रंगों से सजा हुआ चित्रित है। |
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निष्कर्ष |
संपूर्ण चित्रों को कलाकार ने अपनी अभिव्यक्ति प्रदान कर सुंदर बनाया है । |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. गोड्सकिंगसएडटाइगर्स,,स्टुअर्ट कैरी वेल्श
2. भारतीय चित्रकला का इतिहास, अविनाश बहादुर वर्मा
3. कोटा शैली,बद्रीनारायणप्रसाद वर्मा
4. फिलिप्स दोजन -इरॉटिक आर्ट ऑफ ईस्ट ।
5. डॉ प्रदीप कुमार दीक्षित- नायक नायिकाओं का केश और राग रागिनी वर्गीकरण।
6. निकहत तस्नीम -कोटा स्टेट बड़े देवता की हवेली के भित्ति चित्र एवं आलोचनात्मक अध्ययन। |