ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- X January  - 2023
Anthology The Research
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थाई सदस्यता की दावेदारी
Claim by India for Permanent Membership in the United Nations Security Council
Paper Id :  17117   Submission Date :  06/01/2023   Acceptance Date :  22/01/2023   Publication Date :  25/01/2023
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रामकल्याण मीना
सह आचार्य
राजनीति विज्ञान
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
झालावाड़,राजस्थान, भारत
सारांश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मानवता की रक्षा एवं शांति स्थापना हेतु 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र के 6 अंगों में सुरक्षा परिषद् का स्थान सबसे सर्वोपरि है इसकी कुल सदस्य संख्या 15 है जिसमें 5 स्थाई सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन है बदलते अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम को देखते हुए सुरक्षा परिषद् का विस्तार किया जाना आवश्यक है ताकि यह अधिक लोकतांत्रिक हो सके। इसका स्थाई सदस्य बनने में भारत भी अपनी दावेदारी कर रहा है लेकिन पाँच स्थाई सदस्य इसके विस्तार को लेकर सहमत नहीं हो रहे है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद After World War II, the United Nations Organization was established on October 24, 1945 for the protection and peace establishment of Human Being. Among the 6 organs of the United Nations, the place of the Security Council is paramount, its total number of members is 15, in which 5 permanent members are America, Russia, China, France, Britain. In view of the changing international developments, it is necessary to expand the Security Council so that it may be more democratic. India is also staking its claim to become its permanent member, but the five permanent members are not agreeing about its expansion.
मुख्य शब्द दावेदारी, प्रहरी, प्रक्रिया, प्रतिनिधित्व, लोकतंत्र वसुधैव कुटुम्बकम्, पंचशील, अहिंसा, काॅफी क्लब।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Assertion, Watchdog, Process, Representation, Democracy, Vasudhaiva Kutumbakam, Panchsheel, Non-violence, Coffee Club.
प्रस्तावना
विश्वयुद्ध की विभिषिका से भयाक्रान्त विश्व ने मानवता की रक्षा एवं शांति स्थापना के पुनीत लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बहुपक्षीय संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् स्थापित राष्ट्रों के संघ की असफलता से सशंकित राष्ट्रों ने उम्मीद का दामन न छोड़ते हुए औपचारिक रूप से 24 अक्टूबर 1945 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण विश्वास व्यक्त किया। अपने सात दशकों से भी अधिक के काल में इस विश्व संगठन की जहां एक तरफ सफलताओं की लम्बी सूची है वहीं दूसरी तरफ नाकामयाबियों की फेहरिस्त भी कम नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों में महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्यास परिषद् एवं सचिवालय शामिल है। इन सभी अंगों का अपना अलग महत्त्व एवं कार्य है परन्तु यह सर्वस्वीकार्य है इनमें से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली एवं प्रभावशाली है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. सुरक्षा परिषद् में सुधारों की आवश्यकता पर बल देना 2. सुरक्षा परिषद् की असफलताओं को स्पष्ट करना 3. सुरक्षा परिषद् को अधिक लोकतांत्रिक बनाना 4. सुरक्षा परिषद् की कार्यप्रणाली का अध्ययन करना 5. सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का अध्ययन करना
साहित्यावलोकन

1. फडिया डाॅ. बी.एल. डाॅ. कुलदीप ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ साहित्य भवन आगरा 2018

       प्रस्तुत पुस्तक में यह स्पष्ट किया है कि विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन का महत्त्व निरंतर बढ़ता जा रहा है। विश्व में विविध प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाऐं है। विविध एवं परस्पर विरोधी राष्ट्रहित है जो नागरिकों और राजनायिकों के विचारों एवं कार्यों को प्रभावित करते रहते है पुस्तक में भारत एवं संयुक्त राष्ट्र संघ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी आदि के बारे में बताया गया है।

2. खन्ना वी.एन. ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ विकास पब्लिशिंग हाउस प्रा.लि. नोएडा, (UP) नई दिल्ली भारत 2014

       प्रस्तुत पुस्तक में मुख्य रूप से बीसवीं शताब्दी के अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों की समीक्षा एवं विवेचना की गई है। पुस्तक में मुख्य रूप से दोनों विश्व युद्धों, शांति संस्थापकों के समक्ष उपस्थित समस्याओं, सुरक्षा की खोज, संधि व्यवस्थाओं, शस्त्रों की होड़, निरस्त्रीकरण एवं परमाणु अप्रसार की समस्याओं, आर्थिक संकट, शीतयुद्ध पूंजीवाद व साम्यवाद के मध्य संघर्ष, गुटनिरपेक्षता इत्यादि विषयों का अध्ययन किया गया है।

3. चडढ़ा पी.के. आदर्श प्रकाशन चौड़ा रास्ता जयपुर, 1987

       प्रस्तुत पुस्तक में संयुक्त राष्ट्र संघ, शीतयुद्ध, गुटनिरपेक्षता व अमेरिका, चीन, रूस भारत की विदेश नीतियाँ, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक की समकालीन प्रवृत्तियाँ एवं मुद्दे अफ्रीका का उदय, सहित जैसे अध्यायों का विस्तृत वर्णन किया है।

4. जौहरी डाॅ. जे.सी. ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ एस.बी.पी.डी. पब्लिकेशन आगरा

       प्रस्तुत पुस्तक में सोवियत संघ के विघटन के साथ यूरोप की सभी समाजवादी व्यवस्थाओं के अतीत की गाथा बन जाना, एक ध्रुवीय विश्व, वैश्वीकरण, उदारीकरण संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों का वर्णन किया है तथा प्रमुख देशों जैसे अमेरिका, रूस, चीन, भारत की विदेश नीतियों इनके आपसी संबंधों को स्पष्ट किया है।

5. राजेश मिश्राः ’’भूमण्डलीकरण के दौर में भारतीय विदेश नीति सरस्वती IAS 2015

       प्रस्तुत पुस्तक को 13 भागों में विभक्त किया है जिनमें भारतीय विदेश नीति का ऐतिहासिक विकास, भारत दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया भारत और महाशक्तियाँ, संयुक्त राष्ट्र संघ आदि अध्यायों का उल्लेख है लेखक ने पुस्तक में विदेश नीति व संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यप्रणाली को बताते हुए अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम को समझाने का प्रयास किया है।

मुख्य पाठ

राष्ट्र संघ के अनुभवों ने संयुक्त राष्ट्र के निर्माताओं के मस्तिष्क में यह धारणा उत्पन्न करा दी थी कि समूचे विश्व समुदाय के अन्दर एक ’’पाँच महाशक्तियों का भी समुदाय विद्यमान है, जिनकी मित्रता एवं मतैक्य पर ही विश्व की शांति एवं सुरक्षा कायम रह सकती है। अतः डम्बार्टन ऑक्स सम्मेलन में इस तथ्य पर अत्यधिक बल दिया गया था कि एक ऐसे कार्यपालन अंग की स्थापना की जाये, जिसकी सदस्यता सीमित हो, जिसमें 5 बड़े राष्ट्रों को प्राथमिकता हो, जो विश्व में शांति एवं सुरक्षा की रक्षा हेतु पुलिस दायित्व से सम्पन्न हो, जो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक सजग प्रहरी का कार्यभार ग्रहण कर सके, जिसका सत्र कभी समाप्त न हो और जो शांति के लिए संकट सिद्ध होने वाले, शांति भंग अथवा आक्रामक कृत्यों की विद्यमानता पर शीघ्र निर्णय लेकर उनके निराकरण के लिए तुरंत एवं प्रभावी कार्यवाही करने में पूर्णतः सक्षम हो। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माताओं ने विश्व संस्था की सम्पूर्ण शक्ति ’’सुरक्षा परिषद्’’ में निहित कर दी। सुरक्षा परिषद् को अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा का पहरेदार माना जाता है। महासभा की अपेक्षा सुरक्षा परिषद् बहुत ही छोटा सदन है, परन्तु उसकी शक्ति महासभा की अपेक्षा बहुत व्यापक है। यदि महासभा मानवता की सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है तो सुरक्षा परिषद् विश्व की सर्वोच्च शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। राजनीतिक विषयों में सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र का कार्यपालिकीय अंग है। पाकर और पर्किन्स ने इसे संयुक्त राष्ट्र की कुंजी कहा है। ए.एच. डाॅक्टर ने इसे संघ की प्रवर्तन भुजा तथा डेविड़ कुशमेन ने इसे दुनिया का पुलिस मैन कहा है। सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ का हृदय है।[1]

चार्टर के अध्याय 5 के 10 अनुच्छेद (अनुच्छेद 23 से 32) सुरक्षा परिषद् के संगठन कार्य एवं शक्तियों, मतदान एवं प्रक्रिया से संबंधित है। मूलरूप में सुरक्षा परिषद् के 11 सदस्य थे पाँच स्थायी और छः अस्थायी सदस्य थे। परन्तु 1965 के संशोधन के अनुसार इसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 15 कर दी गयी है। वर्तमान समय में इसके 5 स्थायी सदस्य और 10 अस्थायी सदस्य है। साम्यवादी चीन, रूस, फ्रांस, अमेरिका तथा ग्रेट ब्रिटेन सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्य है। दस अस्थाई सदस्यों का निर्वाचन महासभा द्वारा दो तिहाई बहुमत से दो वर्ष के लिए होता है। कोई भी अस्थाई सदस्य तत्काल पुनः निर्वाचित नही हो सकता। परिषद् के अस्थाई सदस्यों का निर्वाचन करते समय महासभा दो विचारों से प्रभावित होती है। (1) अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखने और संघ के उद्देश्यों की प्राप्ति में राष्ट्रों का योगदान (2) सामयिक भौगोलिक वितरण। वर्तमान समय में अस्थाई सदस्यों का भौगोलिक वितरण  इस प्रकार है- अफ्रीका और एशिया के पाँच, पूर्वी यूरोप का एक सदस्य, लातीन अमेरिका के दो सदस्य और पश्चिमी यूरोप व अन्य राज्यों के दो सदस्य। अस्थाई सदस्यों की व्यवस्था इसलए की गई है कि परिषद् में मध्यम और लघु शक्तियों को भी निर्वाचित होने का अवसर मिल जाये। परिषद् में प्रत्येक सदस्य का एक प्रतिनिधि होता है।[2]

संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों का यह दायित्व है कि वे सुरक्षा परिषद् के निर्णयों को स्वीकार करे व उनका पालन करे परिषद् अपना अध्यक्ष चुनती है जो हर महीने बदल जाता है तथा अपनी प्रक्रिया संबंधी नियमों की रचना करती है। चार्टर के अनु. 24 के अनुसार सुरक्षा परिषद् के निम्न कार्य व शक्तियाँ है-[3]

1. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा तुरंत व प्रभावी कदम उठाने के लिए संघ के सदस्यों ने उस पर अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाए रखने का प्राथमिक दायित्व रखा है।

2. इन दायित्वों का निष्पादन करने में सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र के ध्येयों व सिद्धांतों के अनुसार कार्य करेगी। इस बारे में सुरक्षा परिषद् की शक्तियाँ अन्यत्र दी गई है जैसे अध्याय VI के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण निपटान अध्याय VII के अन्तर्गत शांत के भंग होने या आक्रमण को बाध्यकारी तरीकों से रोकना, अध्याय VIII के अन्तर्गत क्षेत्रीय व्यवस्थाएँ तथा अध्याय XII के अन्तर्गत न्यासी व्यवस्था पर अपने नियंत्रण का प्रयोग   करना।

3. सुरक्षा परिषद् महासभा को अपनी वार्षिक रिपोर्ट पे्रषित करेगी, वह विशेष रिपोर्ट भी पेश करेगी, यदि आवश्यक हो, जिस पर महासभा विचार करेगी।

सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही संयुक्त राष्ट्र में महासभा द्वारा किसी देश को प्रवेश दिया जाता है। सुरक्षा परिषद् तथा महासभा अलग-अलग मतदान करके अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करती है तथा सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही महासभा महासचिव की नियुक्ति करती है। 1971 में राष्ट्रवादी चीन को निष्कासित करके चीन की सीट पर साम्यवादी चीन को अधिकार दे दिया गया। सोवियत संघ के दिसम्बर 1991 में विघटन के बाद 1992 में रूस को उत्तराधिकारी राज्य मानकर सोवियत संघ का स्थायी स्थान उसको दे दिया गया।[4]

चार्टर की धारा 27 में सुरक्षा परिषद् में मतदान की प्रक्रिया का वर्णन है। इसके अनुसार प्रक्रिया संबंधी विषय में परिषद् के निर्णय 9 सदस्यों के स्वीकारात्मक मत से किये जायेंगे। प्रक्रिया संबंधी विषयों का आशय ऐसे मामलों से है जिनमें सुरक्षा परिषद् की बैठक के समय या स्थान का निर्णय करना, इसके सहायक अंगों की स्थापना, कार्यवाही चलाने के नियम और सदस्यों की बैठक में सम्मिलित होने के लिए नियंत्रित करना आदि हो। इसके अतिरिक्त सब विषय महत्त्वपूर्ण या सारवान समझे जाते है। ऐसे विषयों के निर्णयों के लिए 9 सदस्यों के स्वीकारात्मक वोट के साथ 5 स्थायी सदस्यों के स्वीकारात्मक वोट भी होने चाहिए। इस व्यवस्था के अनुसर यदि 5 स्थायी सदस्यों में से कोई एक भी किसी महत्त्वपूर्ण निर्णय के विपक्ष में वोट दे देता है तो वह विषय अस्वीकृत समझा जायेगा। इस प्रकार प्रत्येक स्थायी सदस्य को निषेधाधिकार (Veto) प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र की 1945 में स्थापना के बाद से सोवियत संघ (रूस) ने सुरक्षा परिषद् में 114 बार वीटो का इस्तेमाल किया है। इस विशेषाधिकार का इस्तेमाल करने वाले सदस्यों में अमेरिका का दूसरा स्थान है जिसने 80 बार वीटो का इस्तेमाल किया। ब्रिटेन ने 29 बार, फ्रांस ने 8 बार, चीन ने 16 बार वीटो का इस्तेमाल किया। निषेधाधिकार के कारण अनेक महत्त्वपूर्ण समस्याओं का निर्णय दुर्लभ हो गया। सोवियत संघ के समर्थक राष्ट्रों ने अमेरिका के विरोध के कारण एवं अमेरिकी समर्थक राष्ट्रों को सोवियत संघ के विरोध के कारण बहुत दिनों तक संघ की सदस्यता नहीं मिली। ब्रिटेन एवं फ्रांस ने वीटों का सहारा लेकर सन् 1956 में मध्य पूर्व की शांति एवं सुरक्षा को भंग किया। निषेधाधिकार के अधिक प्रयोग से सुरक्षा परिषद् का प्रभाव घटने लगा।[5]

सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या बढ़ाने हेतु प्रस्ताव को सबसे पहले भारत सहित 19 गुट निरपेक्ष देशों ने 14 नवम्बर 1979 को महासभा में पेश किया था। बाद में 1980 में आयोजित महासभा के विशेष अधिवेशन में भी इसे पेश किया गया था लेकिन इस पर मतदान आज तक नहीं हो सका है। प्रस्ताव में मांग की गई है कि सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या 15 से बढ़ाकर 21 कर दी जाये। गुटनिरपेक्ष देशों का पहला तर्क यह है कि महासभा का आकार बढ़ने के बावजूद सुरक्षा परिषद् के ढाचे में कोई परिवर्तन नहीं आया। दूसरा तर्क सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या बढ़ाने से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को समान प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। तीसरा तर्क दुनिया के देशों को समुचित स्थान मिल सकेगा।[6]

वर्तमान में सुरक्षा परिषद् में सुधार की आवश्यकता क्यों है इसके कुछ कारण निम्न है-[7]

1. मानव पीड़ा और वैश्विक सुरक्षा खतरों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करने में सक्षम होने के लिए सुरक्षा में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।

2. वैश्विक शासन की संरचना को अद्यतन और समायोजित करने की जरूरत है ताकि वह नई सुरक्षा चुनौतियों से निपट सके।

3. परिषद् की सदस्यता में व्यापक प्रतिनिधित्व की कमी ने इसकी वैधता और विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

4. सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता की वर्तमान शक्ति संरचना द्वितीय विश्व युद्ध की विजयी शक्तियों को दर्शाती है जिसमें ब्रिटेन और फ्रांस स्थायी सदस्य है और जर्मनी एवं जापान परिषद् के बाहर। इस संगठन में भारत और अन्य उभरते देश जैसे ब्राजील अनुपस्थित है।

5. इसी तरह अफ्रीका या अरब या लैटिन अमेरिका में स्थायी सदस्य के रूप में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

6. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में बदलती राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं के अनुसार सुधार नहीं हुआ है।

7. एशियाई क्षेत्र का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व तथा किसी अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी प्रतिनिधित्व का न होना सुरक्षा परिषद् को अप्रासंगिक बना देगा, जब तक कि भीतर से सुधार शुरू नहीं किया जाता है।

8. सुरक्षा परिषद् एक ऐसा संगठन बन गया है जो कमजोर देशों के खिलाफ मजबूत संकल्प तो पारित कर सकता है परन्तु मजबूत देशों एवं पी 5 देशों के खिलाफ कोई संकल्प नहीं ला सकता। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या स्थापना के समय से 51 से बढ़कर 193 हो गई है परन्तु सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य अपरिवर्तित रहे है।

शीतयुद्धोत्तर विश्व में विश्व राजनीति में आमूलकारी परिवर्तन हुए है परन्तु  सुरक्षा परिषद् की संरचना अभी भी द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् शक्ति संतुलन को ही प्रकट करती है इसलिए समकालीन विश्व में सुरक्षा परिषद् की संरचना में परिवर्तन की आवश्यकता है। अतः सुरक्षा परिषद् की विसंगतियों या खामियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है (1) पारदर्शिता का अभाव (2) वैधानिकता का अभाव। सुरक्षा परिषद् अत्यधिक शक्तिशाली संस्था है लेकिन इसमें पारदर्शिता का अभाव है क्योंकि सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य गुप्त विचार विमर्श के द्वारा किसी भी मुद्दे पर निर्णय ले लेते है तथा मतदान औपचारिकता मात्र होता     है।[8]

सुरक्षा परिषद् के विस्तार की मांग लम्बे समय से चलती आ रही है सुरक्षा परिषद् का विस्तार न होने का सबसे बड़ा कारण उसके स्थायी सदस्यों की मानसिकता है नए सदस्यों के आने पर पाँचों स्थायी सदस्यों को अपनी मनमानी न कर पाने एवं उसमें अन्य नए सदस्यों के हस्तक्षेप का डर है अतः वह उसे टालते आ रहे है उचित तो यह है कि अब अहंकारी प्रवृत्ति का त्याग करके सुरक्षा परिषद् के पाँचों स्थायी सदस्य इस दिशा में निर्णायक कदम उठाए।

संयुक्त राष्ट्र संघ का वर्तमान स्वरूप द्वितीय विश्वयुद्ध की विरासत के रूप में हमारे सामने हैं जिसके सबसे महत्वपूर्ण अंग सुरक्षा परिषद् पर मित्र राष्ट्रों का कब्जा है अनेक देश अपनी आर्थिक, भौगोलिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि के सशक्त होने पर भी सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता से वंचित है। ऐसे राष्ट्रों द्वारा सुरक्षा परिषद् को लोकतांत्रिक स्वरूप दिए जाने की मांग दिन-प्रतिदिन बुलंद होती जा रही है यदि इन राष्ट्रों की आवाज को दबाने की कोशिश की गई तो शायद संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव डेग हेमरशोल्ड का यह कथन सही साबित न हो जाये कि- ’’संयुक्त राष्ट्र को राष्ट्रों के संघ की गलतियों को नहीं दोहराना चाहिए, यदि संयुक्त राष्ट्र को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान नहीं किया गया तो दुनिया की इस सर्वोच्च विश्व संस्था का भी भविष्य वही होगा जो राष्ट्रों के संघ का हुआ था।’’ वास्तव में यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर विचारमन्थन कर ऐसे कदम उठाए जाने चाहिये जो इस संस्था को लोकतांत्रिक स्वरूप देकर इसकी भी वृद्धि कर सके।[9]

29 जनवरी 2023 रविवार को भारत को तीन दिवसीय यात्रा पर पहुंचे संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष साबा कोरोसी ने भारत यात्रा से पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में सुधार की जमकर वकालत की है। कोरोसी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् आज की वास्तविकताओं को प्रतिबिम्बित नहीं करती है और अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के अपने मूल दायित्व का निर्वहन करने में असमर्थ है। बता दे, कोवेसी ने वही कहा है जो भारत लंबे समय से कहता रहा है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 दिसम्बर को यूएनएससी ओपन डिबेट में बोलते हुए भी यही बाते विश्व समुदाय के समक्ष रखी थी। कोरोसी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के आमंत्रण पर भारत आए है। कोरोसी ने कहा यूएनएससी सुधार का मुद्दा ज्वलन्त और बाध्यकारी है। फिलहाल वह अपने मूल कार्य का निर्वहन नहीं कर रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध पर उन्होंने कहा, सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों में से एक ने अपने पड़ौसी देश पर हमला किया। लेकिन वीटों पाॅवर के कारण सुरक्षा परिषद् उस स्थायी सदस्य पर कार्रवाई नहीं कर पा रही है। मीडिया से बात करते हुए कोरोसी यही नही रूके। उन्होंने सुरक्षा परिषद् की जमकर आलोचना की है। उन्होंने कहा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् आज लकवाग्रस्त हो चुकी है। उन्होंने कहा विश्वयुद्ध के बाद 77 साल पहले बने इस अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की जो सुरक्षा परिषद् तब बनाई गई थी, उसे अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने और युद्धों को रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन अब वह पंगु हो चुकी   है। सुरक्षा परिषद् को आक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने वाला निकाय होना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र के 77 साल पुराने इतिहास में सुरक्षा परिषद् की संरचना के केवल एक बार 1963 में बदलाव किया गया है जब महासभा ने परिषद् की सदस्य संख्या को 11 से 15 करने का निर्णय लिया था। इस दौरान चार गैर-स्थायी सीटे बढ़ाई गई थी।

महासभा अध्यक्ष ने कहा यूएन के एक तिहाई देश अब सुरक्षा परिषद् में सुधार पर बल दे रहे है। साबा कोरोसी के अनुसार 2021 में सुधार की बात कहने वाले जितने देश थे अब इनकी संख्या उससे दोगुनी हो गई है।[10]

सितम्बर 2022 अमेरिका के दौरे पर पहुंचे भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र परिषद् में सुधार पर जोर दिया है उन्होंने कहा की सुरक्षा परिषद् में सुधार को हमेशा के लिए नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा ’’मेरा मानना है कि राष्ट्रपति बाइडेन ने जो रूख अख्तियार किया है वह सुरक्षा परिषद् सहित संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए अमेरिकी समर्थन को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है उन्होंने कहा ’’मुझे लगता है कि यह हम सभी पर और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों पर निर्भर करता है कि हम इसे कहा ले जाते है।[11]

11 मार्च 2005 को तत्कालीन संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव कोफी अन्नान ने सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ाकर 24 करने का सुझाव दिया, परन्तु सदस्यों की यह वृद्धि बिना वीटों की होगी। इन्होंने दो माॅडल सुझाएँ जिसमें पहला माॅडल निम्न है-

1. बिना वीटों के 6 नए स्थायी सदस्य

2. 3 नए अस्थायी सदस्य, जिनका कार्यकाल 2 वर्ष होगा

3. सदस्यता में यह विस्तार क्षेत्र के अनुसार किया जाएगा। एशिया एवं अफ्रीका महाद्वीप से दो-दो सदस्य तथा अमेरिका और यूरोप से एक सदस्य लिए जाऐंगे।

दूसरा माॅडल- कोफी अन्नान के दूसरे माॅडल की विशेषताएँ निम्न है-

1. स्थायी सदस्यों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होगी।

2. 8 नए अर्द्ध स्थायी सदस्य सम्मिलित होंगे, जिनका कार्यकाल - 4 वर्ष का होगा, लेकिन इनका पुनर्निर्वाचन भी संभव है।

3. एक सदस्य अस्थायी होगा, जिसका कार्यकाल 2 वर्ष का होगा, लेकिन इनका पुनर्निर्वाचन संभव नहीं है।

4. माॅडल-2 में भी कुल सदस्यों की संख्या 24 होगी।[12]

समूह 4 का प्रस्ताव भारत, ब्राजील, जर्मनी एवं जापान द्वारा लाया गया इसके सह प्रस्तावकों में बेल्जियम, भूटान, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, फिजी, फ्रांस, जार्जिया, यूनान, हैती, होंडूरास, आइसलैण्ड, किरिबाती, लातविया, लिथुआनियाँ मालदीव, नोरू, पलाऊ, पौलेण्ड, पराग्वे, पुर्तगाल, सोलोगन द्वीप, तुवालू और यूक्रेन थे। इनके प्रस्ताव निम्न है-[13]

1. 6 नए स्थायी सदस्य बिना वीटों के।

2. जी-4 के अलावा 2 स्थायी सदस्य अफ्रीका से।

3. 4 नए अस्थायी सदस्य होंगे

4. कुल सदस्य संख्या 25 होगी

काॅफी क्लब देश ने भी अपना प्रस्ताव रखा है काॅफी क्लब उन देशों का समूह है जन्होंने जी-4 के प्रस्ताव का विरोध किया। इस प्रस्ताव को आम सहमति के लिए एकता के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रस्ताव अर्जेण्टीना, कनाडा, कोस्टारिका, कोलम्बिया, माल्टा, मैक्सिको, पाकिस्तान, इटली, स्पेन और तुर्की द्वारा प्रस्तुत किया गया इनकी मांग निम्न है-[14]

1. स्थायी सदस्य संख्या में कोई परिवर्तन न हो।

2. केवल 10 नए अस्थायी सदस्यों को बढ़ा दिया जाये जिनका निर्वाचन 2 वर्ष के लिए होना चाहिए।

3. इनके अनुसार सुरक्षा परिषद् की कुल सदस्य संख्या 25 होनी चाहिए, जिसमें 15 मतों से निर्णय लिया जाये।

संयुक्त राष्ट्र स्थाई सदस्य बनने की मौजूदा प्रक्रिया काफी जटिल है। इसके लिए सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन की आवश्कता होती है। चार्टर में संशोधन तभी हो सकता है जब (1) महासभा के सदस्यों के कम से कम 2/3 सदस्यो (129 देश) के मत द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाए (2) सभी स्थायी सदस्यों सहित कम से कम 2/3 सदस्यों द्वारा अनुसमर्थन मिले इसलिए सुधार के लिए सदस्य देशों के बीच सहयोग आवश्यक है।[15]

सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता प्रदान करने के लिए कुछ निश्चित् सर्वसम्मत और वस्तुपरक आधार होने चाहिए। जैसे-[16]

1. शक्ति-इसकसौटी के तहत यह देखना आवश्यक है कि कौन-कौनसी शक्तियाँ ह्यस की ओर जा रही है और कौनसी वृद्धिशील है।

2. राष्ट्रो की शक्ति निर्धारित करते समय निम्न तत्वों पर ध्यान दिया जा सकता है (अ) आर्थिक (ब) प्राकृतिक संसाधन (स) जनसंख्या (द) औद्योगिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास

3. आकार अथवा जनसंख्या

4. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, जैसे यूरोप, अमेरिका, लातीन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया आदि

5. विकसित और विकासशील

6. विश्व में सुरक्षा और शांति कायम रखने के प्रयासों में योगदान अर्थात शांति स्थापित करने वाले शांति सैनिकों की तैनाती आदि।

7. पुनर्गठन ऐसा हो जो आने वाले दशकों तक विश्व की सही स्थिति को प्रतिबिम्बित करें।

उपर्युक्त मानदण्डों में से किसी एक या अनेक मानदण्डों के समूह को क्यों न अपनाया जाए, भारत हर दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनने के लिए योग्य है। इसके निम्न कारण है।

1. भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य रहा है और उसकी संस्कृति, सभ्यता एवं विदेश नीति भी ’’वसुधैव कुटुम्बकम्’’ एवं ’’पंचशील’’ जैस सिद्धांतो पर आधारित है। जो संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से सर्वथा मेल खाते है। विश्व में इसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति को देखते हुए लम्बे समय से उसे सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता देने की मांग होती रही है।

2. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य एवं कार्यप्रणाली के प्रतिपूर्ण समर्पण का भाव रखने वाला यह देश तमाम मापदण्डों पर खरा उतरता रहा है वह चाहे संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक योगदान का मसला हो या संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भागीदारी का, संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अभिकरणों में सौपी गई जिम्मेदारी का मसला हो या फिर अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शांति स्थापना के प्रति महत्त्वपूर्ण भूमिका, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार उल्लंघन, गरीबी तथा भुखमरी जैसे मोर्चो पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों में बढ़-चढ़कर की जा रही भागीदारी भारत को सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का स्वाभाविक दावेदार बनाते है।

3. भारत संयुक्त राष्ट्र को कितना महत्त्व देता है यह पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के एक कथन से ही स्पष्ट हो जाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि ’’संयुक्त राष्ट्र हमारे जीवन में इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका है कि उसके बिना हम विश्व की कल्पना नहीं कर सकते।’’[17]

4. अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शांति, अहिंसा और गांधीवादी नीतियों के अनुसरण का पर्याय बन चुका भारत यदि स्थायी सदस्य बनता है तो इससे विश्व के अन्य पिछड़े कमजोर राज्यों को सशक्त नेतृत्व प्राप्त हो जाएगा।

5. पूर्व में भारतीय सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के तहत कांगो, सिएरालियोन, सोमालिया, अगोल, रवांडा आदि देशों में शांति स्थापना में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है इसके साथ ही स्थानीय समुदाय हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क निर्माण आदि में सहायता देकर अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया है।

6. भारत के स्थायी सदस्यता के दावे को न्यायोचित ठहराते हुए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व इन्द्रकुमार गुजराल ने भी कहा था कि ’’भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है हमारी हजारों साल लम्बी सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास है जो सार्वभौमिक परम्परा एवं मूल्यों से ओतप्रोत है सरकार में आम आदमी की भागीदारी है इसके अलावा हम अपने अनुभवों के आइने में विश्व राजनीति में सकारात्मक भूमिका निभाने को इच्छुक है इससे परिषद् का भला ही होगा।’’

7. भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थक संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान महासचिव एंटोनियों गुटेरेस ने भी किया है अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था कि ’’भारत की उम्मीदवारी के तर्क से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। 130 करोड़ की आबादी वाला भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की तरफ तो अग्रसर है ही उसने संयुक्त राष्ट्र के अभियानों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।’’[18]

8. इसकी अर्थव्यवस्था लगभग 3 ट्रिलियन डाॅलर है और यह विश्व की 5 वी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत की स्थाई सदस्यता से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् अधिक प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक होगा।

9. भारत परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार के लिए और व्यापक विनाश के हथियारों के पूर्ण उन्नमूलन की वकालत करता है। भारत ने ’’नो फस्र्टयूज’’ आधारित एक न्यूनतम विश्वसनीय परमाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित की है और यह विश्व की तीसरी सबसे बड़े सेना वाला देश है।

10. संयुक्त राष्ट्र में वित्तीय योगदान के संदर्भ में भारत 23.25 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के साथ योगदानकर्ताओं की सूची में 21 वें स्थान पर है। साथ ही भारत ने कहा है कि वित्तीय योगदान को पूर्ण रूप में नही बल्कि सापेक्ष रूप में देखा जाना चाहिए।

11. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन करते हुए ’’संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के लिए एक अग्रणी योगदानकर्ता के रूप में भारत के लम्बे इतिहास’’ का हवाला दिया था।

12. भारत सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता हेतु किसी भी मानदण्ड जैसे जनसाख्यिकी, क्षेत्रीय आकार, जीडीपी, आर्थिक क्षमता, सभ्यता की विरासत, सांस्कृतिक विविधता, राजनीतिक प्रणाली और संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों के अतीत और वर्तमान में योगदान पर खरा उतरता है।

13. इसके अतिरिक्त भारत, विकासशील देशों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है साथ ही भारत के पास स्थायी सदस्य की जिम्मेदारियों को निभाने की इच्छाशक्ति और क्षमता दोनों है।

14. महासभा में यह व्यापक रूप से मान्यता है कि भारत एकमात्र देश है जिसे पाकिस्तान जैसे कुछ देशों को छोड़कर संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की एक बड़ी संख्या का समर्थन प्राप्त      है।[19]

चुनौतियाँ एवं बाधाएँ:- सुरक्षा परिषद् के विस्तार में निम्न बाधाऐं है-[20]

1. काॅफी क्लब द्वारा सुरक्षा परिषद् में जी-4 के देशों के प्रवेश का हमेशा विरोध किया गया है, पाकिस्तान भी तथाकथित ’’काॅफी क्लब’’ का सदस्य है जी-4 के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों जैसे इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको और मिश्र ने एक अन्य रूचि समूह का गठन भी किया था जिसे “Uniting for Consensus” कहा गया है। यह क्लब जी-4 देशों लिए वीटों शक्तियों के साथ स्थायी सदस्यता का विरोध करता है।

2. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट की प्राप्ति हेतु भारत के मिशन में चीनी समर्थन प्राप्त करना सम्भवतः भारतीय विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है। इसने वैश्विक व्यवस्था को अपने तरीके से चुनौती दी है।

3. सुरक्षा परिषद् में भारतीय आकांक्षाओं में कुछ अन्य अड़चने भी है जिनमें बहुपक्षीय कूटनीति के लिए अपर्याप्त भारतीय सरकारी संसाधन, सुरक्षा परिषद् के आदर्शात्मक पहुलुओं के मुद्दों पर अपर्याप्त ध्यान तथा संयुक्त राष्ट्र में हार्ड नोल्ड रियल पाॅलिटिकल सौदेबाजी पर अधिक भरोसा करने के बजाय, पात्रता पर अधिक निर्भरता आदि शामिल है।

4. जी-4 समूह का हिस्सा होने के कारण, भारत ने अपने लिए एक सीट पर बातचीत करने के अपने विकल्प को सीमित कर दिया है।

5. यथास्थिति बनाए रखने की पाँच स्थाई सदस्यों की नीति स्थायी सीटों की बढ़ोतरी में प्रमुख बाधा है।

6. सुरक्षा परिषद् में किसी भी सुधार के लिए, इसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के कम से कम दो तिहाई समर्थन की आवश्यकता होगी। सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की स्थिति उनके राष्ट्रीय हित के अनुसार अलग-अलग होती है।

7. स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के इच्छुक देशों की सूची लम्बी है इनमें भारत, ब्राजील, जापान, जर्मनी, इंडोनेशिया नाइजीरिया आदि शामिल है।

निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना के 77 वर्ष पूरे करने जा रहा है। इस दौरान न केवल संयुक्त राष्ट्र में अपितु विश्व में भी कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए है। सुरक्षा परिषद् में विस्तार की मांग लम्बे समय से की जा रही है और भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य रहा है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है यह देश तमाम मापदण्डों पर खरा उतरता है। न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76 वे सत्र में पीएम मोदी ने अपने संबोधन में विश्व को भारत की ताकत का एहसास कराया। उन्होंने कहा ’’दुनिया का हर छठा व्यक्ति भारतीय है जब भारत बढ़ता है तो दुनिया बढ़ती है जब भारत बदलता (रिफाॅर्म) है तब दुनिया का कायापलट (ट्रांसफाॅर्म) होता है।’’ संयुक्त राष्ट्र संघ पर उठ रहे प्रश्नों के संदर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि यू.एन.ओ. को यदि प्रासंगिक रहना है तो उसे प्रभावी रहना होगा तथा अपनी विश्वसनीयता बढ़ानी होगी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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