P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- IX May  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
सिरोही जिले में शस्य संयोजन का एक भौगोलिक अध्ययन
A Geographical Study of Cropping Pattern in Sirohi District
Paper Id :  17122   Submission Date :  03/03/2023   Acceptance Date :  21/03/2023   Publication Date :  19/05/2023
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अंकित जैन
गेस्ट फैकल्टी, सहायक आचार्य
भूगोल विभाग
राजकीय कन्या महाविद्यालय
निवाई, टोंक ,राजस्थान, भारत
सारांश किसी इकाई क्षेत्र में उत्पन्न की जाने वाली प्रमुख फसलों के समूह को शस्य संयोजन कहते हैं। फसलें कदाचित् ही पूर्णतया एकाकी रूप में बोयी जाती हैं। किसी प्रदेश या क्षेत्र में कई प्रकार की फसलें बोयी जाती हैं। जिसका क्षेत्रीय विस्तार तथा कोटि गुणांक अलग-अलग होता है। शस्य स्वरूप न केवल उस प्रदेश के भौगोलिक कारकों के प्रभाव को प्रतिबिम्बित करता है वरन् कृषि भूमि उपयोग की दिशा तथा विभिन्न फसलों के क्षेत्रीय विस्तार और उसके गुणों को भी इंगित करता है। शस्य संयोजन फसलों के संयोजन का तुलनात्मक और मापने योग्य एक विधि है। यह कृषि भूमि उपयोग के भौगोलिक प्रतिरूप को प्रकट करता है, जिसकी सहायता से कृषि प्रदेशों के निर्धारण में सहायता मिलती है। शस्य संयोजन कृषि के महत्वपूर्ण आकारिकी स्वरूप को पहचानने में भी अत्यधिक सहायक होते हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The group of major crops grown in a unit area is called a crop combination. Crops are rarely sown completely in isolation. Many types of crops are sown in a region or region. Whose regional extension and order coefficient are different. The crop pattern not only reflects the influence of the geographical factors of that region, but also indicates the direction of agricultural land use and the regional extent of different crops and their properties. Crop combination is a comparative and measurable method of combining crops. It reveals the geographical pattern of agricultural land use, with the help of which it helps in the determination of agricultural regions. Crop combinations are also very helpful in identifying important morphological features of agriculture.
Prof.P.E. According to James and C.F. Jones, the regional characteristics of agriculture cannot be understood properly in the absence of study related to crop-combination. At the same time, without regional concept, there cannot be a satisfactory synthesis in the direction of agriculture-region-division.
मुख्य शब्द संयोजन, फसल क्रमता, कोटि गुणांक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Combination, Crop Rotation, Rank Coefficient.
प्रस्तावना
प्रो.पी.ई. जेम्स एवं सी.एफ जोन्स के अनुसार शस्य-संयोजन से सम्बन्धित अध्ययन के अभाव में कृषि की क्षेत्रीय विशेषताओं को ठीक से समझा नहीं जा सकता है। साथ ही साथ क्षेत्रीय संकल्पना के बिना कृषि-प्रदेश-विभाजन की दिशा में भी संतोषजनक संश्लेषण नहीं हो सकता है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. सिरोही जिले में प्रमख फसलों और फसलहों की वरीयता क्रम क आधार पर अध्ययन करने के लिए किया गया। 2. सिरोही जिले में शस्य संयोजन के क्षेत्रों के निर्धारण के लिए अध्ययन किया गया । 3. शस्य संयोजन के माध्यम से कृषक अधिक उत्पादन के लिए फसलों का उपयुक्त चयन कर सके।
साहित्यावलोकन

शस्य संयोजन प्रदेशो के निर्धारण में कृषि भूगोलवेत्ताओ ने सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया। इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग वीवर (1954) ने पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य पश्चिमी क्षेत्र का शस्य संयोजन ज्ञात करने के लिये किया। इसके बाद दोई़ रफी उल्लाह, सिद्धिकी ने भी शस्य संयोजन विधि का प्रयोग किया।
Husain (2021) in his book title "Systematic Agricultural Geography" described the Agricultural Efficiency and Productivity in details. To measure the agricultural efficiency, he used the methods proposed by S.S. Bhatia (1967). Parihar (2018) also applied a new technique for analysis of crop combination and crop diversification in north-west India. The study of agricultural productivity, intensity, crop regional distribution has been attempted by Chakraborty (2012) and developed a crop combination regions for Murshidabad district of West Bengal.

परिकल्पना 1. शस्य संयोजन परिवर्तनशील है।
2. शस्य संयोजन के शुद्ध सूचकांक कृषकों द्वारा अपनाये गये वर्तमान शस्य क्रमों तथा संयोजनों को समझने के लिए उचित आधार प्रदान करते हैं।
विश्लेषण

अध्ययन क्षेत्र

सिरोही जिला राजस्थान के 24°20‘ से 25°17‘ उत्तरी अंक्षाश और 72°16‘ से 73°10‘ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इसकी उत्तर से दक्षिण तक कुल लम्बाई 172 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक चैड़ाई 90 किलोमीटर है। सिरोही जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 5179.47 वर्ग कि.मी. है। यह प्रदेश राजस्थान के कुल 1.5 प्रतिशत क्षेत्र को समेटे हुए है। इस जिले के उत्तर में पाली, पश्चिम में जालौर, पूर्व में उदयपुर एवं दक्षिण में गुजरात के बनासकांठा जिले की सीमा लगती है। जिले का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है। अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी गुरूशिखर भी इसी जिले में स्थित है।

जिले में तीन उपखण्ड (सिरोही, रेवदर व माउण्ट आबू), 5 तहसीलें (सिरोही, शिवगंज, रेवदर, आबूरोड़ व पिण्डवाड़ा), 5 नगर (सिरोही, आबूरोड, पिण्डवाडा, माउण्टआबू व शिवगंज), 151 ग्राम पंचायतें तथा 462 ग्राम हैं।


जे.सी. वीवर (1954) ने सर्वप्रथम शस्य संयोजन पर विचार किया। उन्होंने न्यूनतम विचलन विधि के आधार पर शस्य संयोजन की गणना की। उन्होने शस्य संयोजन प्रदेश निश्चित करने का एक गणितीय माॅडल बनाया जिसका प्रयोग पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य पश्चिमी क्षेत्र का शस्य-संयोजन करने में किया। इस माॅडल का सैद्धान्तिक आधार यह है कि फसलों के अन्तर्गत बोया गया क्षेत्र समान रूप से वितरित है। उदाहरण के लिए अगर किसी क्षेत्र में एक फसल है तो शत-प्रतिशत भूमि एक ही फसल के अन्तर्गत होनी चाहिए। इसी तरह अगर दो फसलें है तो प्रत्येक का हिस्सा 50 प्रतिशततीन फसलें होने पर प्रत्येक के अन्तर्गत 33.33 प्रतिशत और इसी प्रकार 10 फसलें होने पर प्रत्येक के अन्तर्गत 10 प्रतिशत कृषिगत भूमि होनी चाहिए। इस सैद्धान्तिक  स्थिति की तुलना वास्तविक स्थिति से करके प्रामाणिक विचलन विधि से न्यूनतम विचलन वाला शस्य-संयोजन निर्धारित किये गये। 

वीवर का उद्देश्य विचलन की वास्तविक मात्रा ज्ञात करना नहीं है बल्कि विचलन का सापेक्षिक क्रम जानना था। इसी कारण उन्होंने प्रामाणिक विचलन के सूत्र = Q के स्थान प्रसरण का सूत्र = d का प्रयोग किया। यहाँ क का तात्पर्य फसलों के सैद्धान्तिक एवं वास्तविक प्रतिशत क्षेत्रों के अन्तर से है। और n का तात्पर्य सम्बन्धित संयोजन में फसलों की संख्या से है। जिस संयोजन में सैद्धान्तिक एवं वास्तविक प्रतिशतों में न्यूनतम प्रसरण होता हैवहीं उस इकाई क्षेत्र का शस्य संयोजन माना जाता है। इस विधि द्वारा गणना का चरण निम्नानुसार है -

1. प्रत्येक फसल के क्षेत्रफल का कुल फसलों के क्षेत्रफल से प्रतिशत ज्ञात कर उन्हे घटते क्रम में रखा जाता है।

2. इन फसलों को प्रथम फसल से प्रारम्भ करके एक फसलप्रथम दो फसलप्रथम तीन फसल आदि का समूह बना लेते हैं। ये समूह संख्या में उतने ही होंगे जितना की विचारणीय फसलों की संख्या होगी। इन समूहों को संयोजन कहते हैं।

3. प्रत्येक शस्य संयोजन के सैद्धान्तिक एवं वास्तविक प्रतिशतों का अन्तर (d) ज्ञात करते हैं। इसमें संयोजन में फसलों की संख्या बढ़ने के साथ ही सैद्धान्तिक प्रतिशत घटते जाते हैं।

4. सैद्धान्तिक एवं वास्तविक प्रतिशतों  के अन्तर का वर्ग d2 किया जाता है।

5. इस तरह संयोजन को सभी फसलों के अन्तर के वर्ग का योग d2 किया जाता है।

6. इस अन्तर के वर्ग के योग को संयोजन में सम्मिलित फसलों की संख्या से भाग देकर d2 प्रसरण ज्ञात किया जाता है।

ये सभी चरण उतनी बार करने पड़ते है जितने कि फसलों के कुल संयोजन होते है। तभी यह ज्ञात करना सम्भव है कि न्यूनतम विचलन किस समूह का है। इन चरणों को जिले की फसलों को लेकर समझा जा सकता है। 

जिले का कुल कृषिगत क्षेत्र 191298 हैक्टेयर है। प्रथम चरण में फसलानुसार बोया गया क्षेत्रफल ज्ञात कर फसलों को घटते क्रम में रखा गया है। दूसरे चरण में फसलों का समूहन किया गया हैजैसे प्रथम संयोजन सर्वाधिक क्षेत्र में बोयी गई पहली फसल का बनाया गया। दूसरा संयोजन प्रथम दो फसलों का अर्थात् अरण्डी व गेहूँ तीसरा संयोजन प्रथम तीन फसलों अरण्डीगेहूँतथा तिल का होगा। अन्तिम संयोजन में सभी फसलें सम्मिलित की गई हैं। अध्ययन क्षेत्र में सबसे उपयुक्त फसल संयोजन कौनसा है। 

फसल के अनुसार बोये गये क्षेत्र का विवरण 2014-15

फसलों का नाम

अरण्डी

गेहूँ

तिल

मक्का

राई

बाजरा

क्रम

I

II

III

IV

V

VI

क्षेत्रफल (हैक्टेयर में)

36829

34031

23805

23103

21481

13759

कुल कृषिगत भूमि में फसल का प्रतिशत

19-25

17-78

12-44

12-07

11-22

7019

समुच्चयी प्रतिशत

19-25

37-03

49-47

61-54

72-76

79-95

स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र में न्यूनतम प्रसरण 27.68 है जो जिले की छः फसलों वाले शस्य संयोजन के लिए है। इस प्रकार जिले का शस्य-संयोजन छः अरण्डी, गेहूँ, तिल, मक्का, राई, एवं बाजरा है।

योजन में फसल संख्या  प्रत्येक फसले का अन्तर्गत बोया गया प्रसाराण  अन्तर  का वर्ग     वर्ग का योग प्रसारण

योजन में फसल संख्या

प्रत्येक फसले का अन्तर्गत बोया गया प्रसाराण

अन्तर  का वर्ग

वर्ग का योग

प्रसारण

T

A

TAd

(d2)

(d2)

d2/n

1

100

19-25

80-75-56

6520-56

6520-56

6520-56

2.

50

19-25

30-75

945-56

1938-12

991-84

 

50

17-78

32-22

1038-12

3.

33-33

19-25

14-08

198-24

876-43

292-14

 

33-33

17-78

15-55

241-80

 

33-33

12-44

20-89

436-39

4.

25-00

19-25

5-75

33-06

410-11

102-52

 

25-00

17-78

7-22

52-12

 

25-00

12-07

12-93

167-18

5.

20-00

19-25

0-75

0-5625

202-59

40-51

 

20-00

17-78

2-22

4-92

 

20-00

12-44

7-56

57-15

 

20-00

12-07

7-93

62-88

 

20-00

11-22

8-78

77-08

6.

16-66

19-25

&2-59

6-70

166-08

27-68

 

16-66

17-78

&1-12

1-254

 

16-66

12-44

4-22

17-80

 

16-66

12-07

4-59

21-06

 

16-66

11-22

5-44

29-59

 

16-66

7-19

9-47

89-68

निष्कर्ष शस्य-संयोजन के निर्धारण में प्रतिशत समूह सीमान्त सांख्यिकी परिणाम बताते है। वहाँ व्यक्तिनिष्ठ तत्व प्रवेश कर जाते हैं। इसी तरह कुछ फसलें जो क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं होती पर बहुत ऊँची कीमत वाली होने के कारण इस प्रकार की फसलों को भी शस्य-संयोजन में स्थान नहीं मिल पाया है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कुमार प्रमीला एवं, श्रीकमल: कृषि भूगोल, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, 2000, पृ. 167 2. सिंह, बी.बी.: ‘‘काॅन्सेप्ट ऑफ लैण्ड यूटीलाइजेशन’’ इण्डियन ज्योग्राफीकल रिव्यू’, वो. 2ए1977 पृ. 58 3. गौतम अल्का: कृषि भूगोल, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद 2015 4. नन्द किशोर: ‘‘सामाजिक-आर्थिक भूगोल’’ पोइण्टर पब्लिशर्स, जयपुर 2003 पृ. 33 5. हुसैन माजिद: कृषि भूगोल, रावत पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, पृ. - 194 6. Singh Jasbir, Dhillon, S. S.: Agricultural Geography1984, Tata M C Graw Hill Publishing Company Ltd. New Delhi 7. Husain Majid: Systematic Agricultural Geography 2021, Rawat Publication