P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VII , ISSUE- XI February  - 2023
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
बीकानेर जिले की नोखा व पूगल तहसीलों में पशुपालन: पशुधन संघटन एवं उत्पादों का विशिष्ट अध्ययन
Animal Husbandry in Nokha and Pugal Tehsils of Bikaner District: Specific Study of Livestock Composition and Products
Paper Id :  17182   Submission Date :  21/02/2023   Acceptance Date :  23/02/2023   Publication Date :  25/02/2023
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राम निवास बिश्नोई
सहायक आचार्य
भूगोल
राजकीय महाविद्यालय
हदां, कोलायत, बीकानेर,राजस्थान, भारत
विनोद सिंह
सह-आचार्य
भूगोल
राजकीय डूंगर महाविद्यालय
बीकानेर, राजस्थान, भारत
सारांश बीकानेर जिले के मरुस्थलीय अध्ययन क्षेत्र में वर्षा की लगातार कमी के कारण फसल कृषि का महत्व अध्ययन क्षेत्र में बहुत अधिक नहीं रहा है किंतु पशुपालन की दृष्टि से अध्ययन क्षेत्र शुरू से महत्वपूर्ण है और पशु यहां का अमूल्य धन है। पशुधन संघटन की तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन क्षेत्र के सिंचित-असिंचित भागों का अध्ययन दर्शाता है कि सिंचित भागों में गाय (28.7 प्रतिशत) का अनुपात असिंचित (21.3 प्रतिशत) से कुछ अधिक है। सिंचित भागों में विशेषकर बकरियों का अनुपात (61.6 प्रतिशत) दृष्टव्य है जबकि भेड़ों का हिस्सा नगण्य है। दूसरी ओर असिंचित भागों में भेड़ों का हिस्सा उच्चतर (29.4 प्रतिशत) तथा बकरियों का हिस्सा सिंचित भागों से निम्नतर (42.4 प्रतिशत) है। नोखा व पूगल के सिंचित क्षेत्रों की तुलना करने से ज्ञात होता है कि नोखा के प्रमख पशुधन गाय (41.3 प्रतिशत), बकरी (35.8 प्रतिशत) व भैंसे (19.1 प्रतिशत) है जबकि सिंचित पूगल में बकरी (72.7 प्रतिशत) तथा गाय (23.3 प्रतिशत) प्रमुख घटक हैं। सिंचित नोखा में दुग्ध पशुओं का उच्च अनुपात (60.4 प्रतिशत) डेयरी उद्योग के महत्व को प्रदर्शित करता है। यहां के मरुस्थली पर्यावरण में भैंसों का प्रवेश व उच्च अनुपात डेयरी उद्योग के विकास से जुड़ा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Due to continuous lack of rainfall in the desert study area of Bikaner district, the importance of crop agriculture has not been much in the study area, but from the point of view of animal husbandry, the study area is important from the beginning and animals are invaluable wealth here. The study of irrigated-non-irrigated parts of the study area shows that the proportion of cows (28.7 percent) in irrigated parts is slightly higher than in non-irrigated parts (21.3 percent). The proportion of goats (61.6 per cent) is particularly noticeable in irrigated areas while the share of sheep is negligible. On the other hand, the share of sheep in non-irrigated areas is higher (29.4 percent) and the share of goats is lower (42.4 percent) than in irrigated areas. Comparing the irrigated areas of Nokha and Pugal, it is known that the major livestock of Nokha are cow (41.3 percent), goat (35.8 percent) and buffalo (19.1 percent), whereas in irrigated Pugal, goat (72.7 percent) and cow (23.3 percent) ) are the major components. The high proportion (60.4 per cent) of milch animals in irrigated Nokha shows the importance of dairy industry. The entry and high proportion of buffaloes in the desert environment here is related to the development of dairy industry.
मुख्य शब्द मरुस्थल, बीकानेर जिला, नोखा तहसील, पूगल तहसील, पशुधन संघटन, पशु उत्पाद।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Desert, Bikaner District, Nokha Tehsil, Pugal Tehsil, Livestock Organization, Animal Products.
प्रस्तावना
अध्ययन क्षेत्र की नोखा (अर्द्धशुष्क) व पूगल (शुष्क) तहसीलों में सूखे के समय फसलें कम होने पर समस्यात्मक परिस्थिति में पशुपालन ही एकमात्र सहारा है जबकि प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से चारागाह क्षेत्र प्रायः दोनों तहसीलों में घट रहे हैं जिसका पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। राज्य पशु ऊंट व बैलों की संख्या में गिरावट वर्तमान पशुधन परिप्रेक्ष्य में विचारणीय विषय है। वर्तमान कार्य का उद्देश्य बीकानेर जिले की नोखा व पूगल तहसील में सिंचित/गैर-सिंचित गांवों में पशुपालन संघटन की स्थिति के साथ-साथ पशु उत्पादों के प्रतिरूपों का अध्ययन करना है (चित्र-1)।
अध्ययन का उद्देश्य 1. बीकानेर जिले की नोखा व पूगल तहसीलों के सिंचित व गैर-सिंचित क्षेत्रों में पशुधन संघटन की स्थिति का अध्ययन करना। 2. अध्ययन क्षेत्र में पशुधन उत्पादों के प्रतिरूपों का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

Purohit et al (2023) के अनुसार राजस्थान में गाय दूध उत्पादन के 37.5% हेतु जिम्मेदार है। गायों के दूध उत्पादन में से 71.6% देशी नस्लों से प्राप्त होता है। अन्य देशी नस्लों के समान हाल ही में दर्ज की गयी सांचोरी नस्ल में भी अवैज्ञानिक जनन के कारण उत्पादकता में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है।

Bierkamp et al. (2021) ने मध्यवर्ती विएतनामी उच्चभूमि से जुड़े अपने अध्ययन में पाया कि परिसंपत्तियों की दृष्टि से निर्धन (Asset-poor) परिवारों के प्रवासी सदस्यों द्वारा भेजे गए धन के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपेक्षाकृत कम होता है। इसके विपरीत परिसंपत्तियों की दृष्टि से संपन्न (Asset-rich) परिवारों के प्रवासी व्यक्तियों द्वारा भेजे गए धन के कारण अपेक्षाकृत अधिक प्राकृतिक संसाधन दोहन होता है। उसका कारण यह पाया गया कि परिसंपत्तियों की दृष्टि से निर्धन परिवार अपेक्षाकृत श्रम-सघन दोहन की विधियों पर आधारित रहते हैं, जबकि इन परिवारों के सदस्यों के प्रवसन के कारण श्रम की उपलब्धता कम हो जाती है। Zhou et al.  (2020) ने चीन के ग्रामीण भागों में निर्धनता के वितरण के अध्ययन में इकोनोमिट्रिक मॉडल के साथ-साथ क्षेत्रिय विश्लेषण तकनीकों का प्रयोग किया। उन्होंने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता का वितरण नाजुक पारिस्थितिकी, भूगर्भिक आपदाओं, विपन्न भौगोलिक पर्यावरण तथा बढ़ती हुई जनसंख्या की आयु से संबंधित था।

Anwar et al.  (2018) ने ग्रामीण मिस्र में ठोस कचरा प्रबंधन का अध्ययन किया तथा यह निष्कर्ष निकाला कि कचरे का पुनर्चक्रण एवं प्रसंस्करण कचरे के लैंडफिलिंग की अपेक्षा अधिक लाभप्रद हैं। उन्होंने यह भी निष्कर्ष प्राप्त किया कि इस मायने में विकेंद्रीकृत तथा क्लस्टर्ड तंत्रों की अपेक्षा केंद्रीयकृत तंत्र अधिक लाभप्रद सिद्ध होते हैं।

Israel & Wynberg (2018) ने ग्रामीण दक्षिण अफ्रीका में निर्वाहमूलक कृषि एवं मिश्रित आजीविका में संलग्न समुदाय, तथा व्यापारिक वानिकी में संलग्न दूसरे समुदाय के मध्य अंतरसंबंधों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इस प्रकार के भू-उपयोग के लिए आवश्यक संसाधनों को लेकर द्वंद्व तथा सहअस्तित्व पाया जाता है। इस संदर्भ में उन्होंने विभिन्न सुझाव भी प्रस्तुत किए।

Summer (2005) आर्थिक वैश्वीकरण तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते प्रभाव को ग्रामीण समुदायों पर प्रभाव का विश्लेषण किया है। इसके प्रभाव में उन्होंने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, लिंग संबंधित तथा सांस्कृतिक प्रभावों को लेते हुए इसके नकारात्मक पहलुओं को उजागर किया।

Behera & Reddy (2002) के अनुसार यद्यपि कृषि संबंधित पर्यावरणीय समस्याओं जैसे मृदा अवकर्षण वायु व जल अपरदन पर काफी अध्ययन है तथापि औद्योगिक प्रदूषण से कृषि क्षेत्र में उत्पन्न पर्यावरणीय समस्याओं पर कम ही अध्ययन हुए हैं इस पत्र में ग्रामीण समुदायों पर कृषि उत्पादन, मानव स्वास्थ्य एवं पशुधन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है।

EEU (1999) ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक में प्राकृतिक संसाधन पर्यावरण अर्थात् वन आवरण, चारागाह, भू-उपयोग, मृदाक्षरण जलग्रहण क्षेत्र विकास, पशु संसाधन एवं मत्स्ययन, खनिज, औद्योगिक प्रदूषण व नगरीय पर्यावरण की दशाओं का आंकलन प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार सरकारी निष्क्रियता के कारण प्राकृतिक संसाधनों तथा स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर जन-आंदोलन उत्पन्न हुए।

Ho (1995) ने 1980 के दशक में चीनी अर्थव्यवस्था में ग्रामीण गैर कृषि सेक्टर के उदय के ग्रामीण चीन में परिवर्तन का बड़ा कारक माना है इसके पीछे सामूहिक स्वामित्व वाले छोटे कस्बों व गांवों के उद्यमों की भूमिका है। यह उद्यम अधिकाधिक निर्यातोन्मुखी हो रहे हैं परंतु यह तीव्र ग्रामीण गैर-कृषिगत विकास पर्यावरण के भारी नुकसान तथा विकास व आय में प्रादेशिक असमानता को उत्पन्न कर रहा है।

Joshi et al. (2019) ने राजस्थान राज्य के थार मरुस्थली प्रदेश में वन्यजीवों के अस्तित्व हेतु कार्यरत्त विभिन्न खतरों का आकलन प्रस्तुत किया। विभिन्न उदाहरण देते हुए उन्होंने मानवीय गतिविधियों के कारण वन्य जीवों को उत्पन्न हो रहे खतरों को स्पष्ट किया।

Charan & Singh (2018) ने राजस्थान राज्य के थार मरुस्थल में स्थित बीकानेर प्रशासनिक डिवीजन की वनस्पति में परिवर्तन से संबंधित अध्ययन किया। यह अध्ययन आक्रामक बाह्य वानस्पतिक प्रजातियों पर केंद्रित था। इस संदर्भ में उन्होंने क्षेत्र की विभिन्न विदेशज प्रजातियों की पहचान की।

Unakitan & Oraman (2018) ने ऐसी नीतियों को अपनाने पर बल दिया जिनसे ग्रामीण जनसंख्या की आय में वृद्धि हो तथा साथ ही पर्यावरण-सम्मत टिकाऊ कृषि उत्पादन भी सुनिश्चित किया जा सके। ग्रामीण विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने जैविक कृषि अपनाने का भी सुझाव दिया।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र की भौगोलिक अवस्थिति:
भारतीय उपमहाद्वीप के मरूस्थल को थार रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है जो कि भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। इसी मरूस्थल के अन्तर्गत राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में बीकानेर जिला विस्तृत है। जिसका विस्तार 27011' से 29003' उत्तरी अक्षांश व 71051' से 74012' पूर्वी देशान्तर तक है।

चित्र-1: अध्ययन क्षेत्र की अवस्थिति

बीकानेर की स्थापना 1504 ई. में राव बीकाजी ने की थी। बीकानेर जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 27,244 वर्ग किमी. तथा जनसंख्या 23,63,937 (2011) है। पूगल तहसील का क्षेत्रफल 3,276.64 वर्ग किमी. एवं जनसंख्या 67,123 तथा नोखा तहसील का क्षेत्रफल 3,802.97 वर्ग किमी. एवं जनसंख्या 4,36,876 सम्पूर्ण जिले के क्षेत्रफल का 99.45% भाग ग्रामीण क्षेत्र तथा 0.55% भाग नगरीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

अध्ययन विधि एवं सूचना स्रोत:

इसके अंतर्गत अध्ययन क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन संघटन व पशु उत्पादों के प्रतिरूपों की जानकारी जुटाई गई। पशुपालन संघटन व पशु उत्पादों की स्थिति को जानने के लिए खासतौर पर प्राथमिक आंकड़ों एवं सूचनाओं का प्रयोग करते हुए पशुधन संघटन व पशु उत्पादों के संदर्भ में अर्द्धशुष्क नोखा तहसील तथा शुष्क पूगल तहसील के चार-चार यादृच्छिक रूप से चयनित कुल आठ गांवों में अनुसूची आधारित प्राथमिक क्षेत्र का अध्ययन किया। इन आठ ग्रामों में से चार गांव सिंचित (नोखाः जसरासर, हिम्मटसर; पूगलः शिवनगर, 2एडी/आडूरी) तथा चार ग्राम (नोखाः रोड़ा, बेरासर; पूगलः बांदरवाला, बरजू) वर्षा आधारित थे। यह आनुभविक अध्ययन वर्णनात्मक एवं तुलनात्मक प्रकार का है।

पशुधन संघटन की दृष्टि से अध्ययन क्षेत्र में बकरियां 49.5 प्रतिशत, गायें 24.2 प्रतिशत, भेड़ें 18.4 प्रतिशत, भैंसे 5.3 प्रतिशत, राज्य पशु ऊंट मात्र 1.7 प्रतिशत तथा 0.51 प्रतिशत बैल सबसे कम है। अध्ययन क्षेत्र में दूध मुख्यतः गायों से प्राप्त होता है (53.5 प्रतिशत)। बकरी इसका दूसरा स्रोत है (37.6 प्रतिशत) जबकि भैंस का इस दृष्टि से गौण महत्व है (8.87 प्रतिशत)। कुछ मात्रा में ऊन की प्राप्ति भी भेड़ों द्वारा अध्ययन क्षेत्र में होती है।

मरुस्थल के शुष्क प्रदेश फसल कृषि की अपेक्षा पशुपालन व पशुचारण के ही क्षेत्र रहे हैं। अध्ययन क्षेत्र के असिंचित भागों में सिंचित भागों की अपेक्षा प्रति परिवार गाय, भैंस, भेड़, बकरी व ऊंटों की उपलब्ध औसत संख्या अधिक है। इसी प्रकार अर्द्धशुष्क नोखा तहसील की अपेक्षा शुष्क पूगल तहसील में प्रति परिवार औसत गाय, भेड़, बकरी व ऊंटों की संख्या उच्चतर है। इसका अपवाद भैंस है। सकल पशुओं की औसत उपलब्धता पूगल में नोखा से दुगुनी है। नोखा के सिंचित भागों में भैंसों की औसत प्रति परिवार उपलब्धता सिंचित पूगल से अधिक है, अन्यथा अन्य पशुओं की उपलब्धता पूगल में ही अधिक पाई गई। उपर्युक्त प्रारूप बारानी क्षेत्रों पर भी लागू होता है, जहां भैंसों को छोड़कर अन्य पशुओं की उपलब्धता फिर से पूगल तहसील के क्षेत्रों में अधिक देखी गई (सारणी 2 व आरेख 2)



नोखा तहसील के गांवों में गायें (61.77 प्रतिशत) दूध का सबसे बड़ा स्रोत हैं, जिनके बाद भैंस 20.4 प्रतिशत एवं बकरी 17.8 प्रतिशत आती हैं। यहां ऊन आदि के लिए भेड़ पालन नहीं किया जाता है। पूगल के सिंचित गांवों में भैंसों का पूर्ण अभाव है। यहां कुल दूध उत्पादन का 72.9 प्रतिशत बकरी से तथा शेष गायों से प्राप्त किया जाता है। नोखा तहसील के गैर-सिंचित गांवों में गायों का महत्व सिंचित गांवों की तरह ही है (62.65 प्रतिशत)। जबकि दूध उत्पादन में भैंसों का योगदान यहां के सिंचित गांवों की तुलना में कम (14.5 प्रतिशत) हो जाता है। लगभग इसी अनुपात में बकरी के दूध उत्पादन की भूमिका बढ़ जाती है (22.9 प्रतिशत)। ऊन उत्पादन के लिए भेड़ पालन भी यहां महत्वपूर्ण है। पूगल तहसील के गैर-सिंचित गांवों में भेड़ तथा बकरी का महत्व काफी अधिक है। यहां कुल दूध उत्पादन का 38.4 प्रतिशत बकरियों से, 57.8 प्रतिशत गायों से तथा मात्र 3.8 प्रतिशत भैंसों से प्राप्त होता है। अध्ययन क्षेत्र के गैर-सिंचित गांवों का 71 प्रतिशत ऊन उत्पादन पूगल तहसील के बारानी गांवों से प्राप्त होता है, जबकि शेष करीब 29 प्रतिशत ही नोखा तहसील के गैर-सिंचित गांवों से मिलता है (सारणी संख्या 3)।


पशु उत्पाद मूल्य की दृष्टि से नोखा तहसील के गैर-सिंचित गांवों के समान सिंचित गांवों में भीगाय के दूध का महत्व सर्वाधिक (57.1 प्रतिशत) है। भैंस के दूध का योगदान एक-चौथाई से अधिक 26.4 प्रतिशत (जबकि गैर-सिंचित गांवों में केवल 19.1 प्रतिशत) एवं बकरी के दूध का योगदान 16.5 प्रतिशत है। पूगल तहसील के सिंचित गांवों में तस्वीर काफी अलग है। यहां बकरी के दूध का योगदान अत्यधिक (72.9 प्रतिशत) एवं गाय के दूध का योगदान 27.1 प्रतिशत ही है (भैंस का योगदान शून्य)।

नोखा तहसील के गैर-सिंचित गांवों में भी गाय के दूध का महत्व पशु उत्पादों के आर्थिक मूल्य में उच्च (करीब 59 प्रतिशत) है, जिसके बाद बकरी का स्थान आता है (21.6 प्रतिशत) एवं भैंस के दूध की भूमिका और कम हो जाती है। पूगल के गैर-सिंचित गांवों में पशु उत्पाद मूल्य का प्रायः 57 प्रतिशत गाय के दूध के रूप में प्राप्त होता है। एक बड़ा अनुपात (लगभग 38 प्रतिशत) बकरी के दूध से हासिल होता है। भैंस के दूध की भूमिका काफी कम, करीब 5 प्रतिशत, ही रह जाती है (सारणी संख्या 4)।


पशुओं के सकल उत्पादों में यहां स्थिति कुछ ठीक है। सर्वाधिक 94.72 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन वहीं 5.27 प्रतिशत ऊन उत्पादन में प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं। अकाल तथा कम पानी के संकट से उभरने के लिए ग्रामीण पशुपालन को कृषि का प्रमुख विकल्प मानते हैं। यह रोजगार का प्रमुख साधन बनकर उभर रहा है। गांवों में आठ-दस घरों में एक-दो दुग्ध डेयरी सुचारू रूप से संचालित होती देखी गई। सर्वेक्षित क्षेत्र डेयरी व ऊन उत्पादन में अग्रणी है।

निष्कर्ष अध्ययन क्षेत्र में बीकानेर जिले की नोखा व पूगल तहसीलों के सिंचित व गैर-सिंचित क्षेत्रों में पशुधन संघटन के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि सूखे की समस्यात्मक परिस्थिति में पशुधन ही एकमात्र जीविकोपार्जन का साधन है जो दो-तिहाई परिवारों ने अपना रखा है। बीकानेर जिले में सरस डेयरी होने से तथा पशुपालन की उपयुक्त परिस्थितियों के कारण पशुओं की संख्याओं में, राज्य पशु ऊंट व बैल को छोड़कर बढ़ोतरी हुई है। सकल पशुओं की औसत उपलब्धता पूगल में नोखा से दुगुनी है। गैर-सिंचित नोखा में भी डेयरी का बढ़ता महत्व भैंसों के उच्चतर अनुपात में दर्शित है। गैर-सिंचित पूगल में शुष्कता के कारण भैंस तो क्या गाय का पालन भी कठिन हो जाता है। इसलिए यहां दुग्ध पशुओं की भूमिका अपेक्षाकृत कम है (सारणी 1, आरेख 1)। सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र में दुग्ध मुख्यतः गायों (53.5 प्रतिशत) प्राप्त होता है। बकरी का स्रोत दूसरा है (37.6 प्रतिशत) जबकि भैंस इस दृष्टि से गौण (8.87 प्रतिशत) है। पूगल के सिंचित गांवों में भैंसो का पूर्ण अभाव है जिसको पशुधन कार्यक्रमों से बढ़ाया जा सकता है। अध्ययन क्षेत्र में पशुधन रोजगार के अवसर बढ़ाने हेतु कृषि व पशुपालन आधारित लघु स्तरीय विनिर्माण को बढ़ाया जाना नितांत आवश्यक है। पशुपालन तथा डेयरी उद्योग को विकसित कर, घटती उत्पादकता के दृष्टिगत पशुओं की स्थानीय नस्लों का संरक्षण किया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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