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मेहन्दी (हीना) का उत्पादन (सोजत जिला-पाली राजस्थान के सन्दर्भ में) | |||||||
Production of Henna (With Reference to Sojat District-Pali Rajasthan) | |||||||
Paper Id :
17220 Submission Date :
2023-02-13 Acceptance Date :
2023-02-22 Publication Date :
2023-02-25
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सारांश |
सोजतसिटी, जिला पाली (राजस्थान) की एक तहसील है जहाँ पर पहले/पारम्परिक रूप से गेहूॅ, बाजरा की खेती होती थी परन्तु राजस्थान की फसल मानसून का ’’जुआँ’’ है। इसलिए अधिकतम वर्षो में सूखा व अकाल रहता है। इसको देखते हुए 1950 में दिल्ली के आसपास इलाकों से मेहन्दी के पौधों को सोजत में कृषि के रूप् में उगाने की कोशिश की गई, जिसमे पाली जिले की सोजत तहसील में प्राकृतिक कारक जैसे भूगर्भीय संरचना, उच्चावच तथा अपवाह तंत्र, जलवायु एवम् मृदा सभी मेहन्दी की फसल के लिए उपयुक्त पाये गये । जिससे वहाँ बहुत उच्च दर्जे की मेहन्दी का उत्पादन संभव हो सका। आज विश्वभर में सोजत की मेहन्दी विश्व प्रसिद्ध है। जिससे केंद्र सरकार ने दिल्ली में 26 सितम्बर 2021 को राजस्थान के सोजत की मेहन्दी को भौगोलिक संकेतक (जीआई) का दर्जा मिल गया है।
सोजत की 60 प्रतिशत आबादी मेहन्दी उद्योग व इससे सम्बन्धित लघु व घरेलू उद्योग में कार्यरत है। इसलिये सोजत के विकास में मेहन्दी उद्योग का योगदान होने के कारण इसे मेहन्दी का अर्थशास्त्र भी कहा जाता है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Sojat is a tehsil of district Pali (Rajasthan). Where earlier mainly wheat and millet were cultivated, but Rajasthan's crop is the "yoke" of the monsoon. That's why there is drought and famine in most of the years. In view of this, in 1950, an attempt was made to grow henna plants from the surrounding areas of Delhi in the form of agriculture in Sojat. The natural factors of Sojat in Pali like geological structure, relief and drainage system, climate and soil are all suitable for henna crop. Due to which production of very high quality henna was possible there. Today Sojat's Mehendi is world famous. Due to which Sojat Mehndi of Rajasthan has got Geographical Indicator (GI) status from the government on 26 September 2021. 60 percent of Sojat's population is employed in henna industry and its related small scale industries and domestic industries. Therefore, due to the contribution of henna industry in the development of Sojat, it is also known as henna economy. |
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मुख्य शब्द | मेहन्दी, हीना, भौगोलिक परिस्थितियां, मानसून, जीआई मिट्टी। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Mehndi, Heena, Geographical Conditions, Monsoon, GI Soil. | ||||||
प्रस्तावना |
मेहन्दी का वानस्पतिक नाम- मेहन्दी का वानस्पतिक नाम लाॅसोनिया इनेर्मिस लिन (Lawsonia inermis-L) है, जो लिथ्रेसिई (Lythraceas) फैमिली का सदस्य है।
रासायनिक संरचना -मेहन्दी में निम्नलिखित घुलनशील तत्व पाये जाते हैं:- लासौन (Lawsone), 2-हाइड्रोक्सी (2-Hyddroxy), 1-4 नेप्थाक्विनोन (1-4 Napthaquinone), रेजीन (Resin), टेनिन (Tannin), गेलिक एसिड (Gallic acid), ग्लूकोज (Glucose), मेनीताल (Manital), वसा (Fat), म्यूसीलेज (Mucilage) तथा क्विनोन (Quinone)।
मेहन्दी के पर्याय:-हिन्दी में मेहन्दी केे कई पर्याय हैं। हिन्दी में नखरंजक, नखरंजनी, नवलेखा, नखबिन्दु (मेहन्दी या महावर लगाकर बनाया गया गोल या चन्द्राकार चिह्न) आदि आदि अधिक प्रचलन में हैं। अन्य भाषाओं में मेहन्दी के नाम इस प्रकार हैं - संस्कृत-मेन्धी; मदयन्तिका; बंगला-मेंदी; मेंउदी; मराठी एवं गुजराती-मेंदी; अरबी-हिन्ना; फारसी-हीना; अंग्रेजी-हेना; द हेना प्लांट। राजस्थान में यह मेहन्दी के नाम से अधिक जानी जाती है।
वानस्पतिक कुल एवं संरचना:-मेहन्दी की कांटेदार झाड़ी आठ-दस फुट ऊँची होती है। खेती के अलावा यह घरों, बगीचों एवं खेतों में बाड़ के रूप में भी लगाई जाती है। जंगल में, ताल-तलैयों के किनारे यह स्वतः उग आती है। इसके छोटे सफेद अथवा हल्के पीले रंग के सुगंधित पुष्प गुच्छों में निकलते हैं। इस पौधे की ताजी पत्तियाँ पीसकर या सुखाकार मेहन्दी रचाने के काम आती है। इसके फूलों को सुखाकर सुगंधित तेल भी निकाला जाता है। इस पौधे की पत्तियाँ, छाल, बीज तथा जड़ औषधीय उपयोग में ली जाती है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. मेहन्दी उत्पादन की अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाॅ |
2. मेहन्दी के उपयोग एवं रोजगार में भूमिका| |
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साहित्यावलोकन | उक्त शोध-पत्र शोधकर्ता का
प्राथमिक व व्यक्तिगत स्तर पर मेहन्दी के उत्पादन, विपणन, मार्केटिंग व आर्थिक दृष्टिकोण से किया गया
शोधकार्य का उक अंश/भाग है। |
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मुख्य पाठ |
मेहन्दी का उत्पादन:- विश्व में मेहन्दी का उत्पादन व विकास उष्ण
मरुस्थल प्रदेश के देशों में संभव है। जैसे एशिया, अफ्रीका व यूरोप महाद्वीप के देशों मेें इसका प्रमुख रूप से
उत्पादन होता है। ये देश हैं -मोरोक्को (Morocco), मिस्त्र, सुडान, येमेन (Yemen), ईरान (Iran), पाकिस्तान (Pakisthan) व इसके अतिरिक्त कुछ देश अपने घरेलू उपभोग के लिए मेहन्दी का उत्पादन करते
हैं जैसे:- सोमालिया (Somalia), चाड(Chad), नाइजिरिया (Nigeria), तुर्की (Turkey), पश्चिमी सहारा (Western
Sahara) व माली (Mali) इत्यादि। विश्व में भारत की मेहन्दी सबसे अच्छी होती है क्योंकि इनकी
पत्तियों में टेनिन की मात्रा अतिउत्तम, उत्तम, अच्छी व मध्यम पाई जाती है। भारत में:- भारत के उत्तर पश्चिम भाग में मेहन्दी
का मोटे रूप में व्यापारिक फसल के रूप में उत्पादन होता है। जहाँ वातावरण गर्म व
शुष्क होता है वहीं मेहन्दी उत्पादन के लिए उपयुक्त स्थान है। जैसे:- पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान । राजस्थान में:- राजस्थान में वर्षा भारत के अन्य
भागों के मुकाबले कम होती है और राजस्थान
का पश्चिमीभाग मरुस्थल रेगिस्तान है। राजस्थान में प्रतिवर्ष औसतन 400 मिलीमीटर वर्षा
होती है। अतः अधःपतन वर्षा वाले क्षेत्र में मेहन्दी उगती है जब मानसून कमजोर या
असफल हो तो 250 M.M. वर्षा प्रतिवर्ष वाले शुष्क क्षेत्र में
भी मेहन्दी का उत्पादन किया जाता है। पाली जिले की जलवायु मेहन्दी उत्पादन हेतु
सर्वश्रेष्ठ है, जहाँ जलवायु अर्द्धशुष्क, मानसून अनियमित एवं अपर्याप्त होता है और तापमान 350C से 480C व कभी कभी इससे भी अधिक हो जाता है। अन्य कृषि फसलों की खेती हेतु अनुपयुक्त
सिद्ध होता है जबकि यह जलवायु मेहन्दी उत्पादन करने में सहायक होती है। राजस्थान में मेहन्दी का उत्पादन व्यावसायिक
खेती के रूप में मात्र पाली जिले में ही होता है इसके अतिरिक्त जोधपुर, भीलवाड़ा, नागौर, भरतपुर, कोटा व भवानी मण्डी में राजस्थान के कुल उत्पादन का 5 से 6 प्रतिशत घरेलू उपयोग हेतु उत्पादन किया जाता है। पाली जिले के लोग इसका उत्पादन पीढ़ी दर पीढ़ी, बड़े आदर व इस वांछनीय फसल को अपनी पैतृक सम्पत्ति मानकर इसकी खेती करते है जिससे इसका इतना विकास सम्भव हो पाया है। मोटे रूप में देखा जाए तो पाली जिले की सोजत सिटी व मारवाड़ जंक्शन तहसील की सम्पूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ मेहन्दी के उत्पादन व प्रसंस्करण पर निर्भर करती है। इसलिए इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मेहन्दी अर्थव्यवस्था कहें तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पाली जिले में मेहन्दी उत्पादन की उपयुक्त
प्राकृतिक दशाएं भौगोलिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-पाली जिला राजस्थान के पश्चिमी भाग में स्थित है इसका अक्षांशीय विस्तार 24045’ से 26075’ उत्तरी अक्षांशों तथा 72048’ से 74020’ पूर्वी देशान्तरों के बीच स्थित है। पाली जिले का क्षेत्रफल12387 वर्ग किलोमीटर है। उत्तर से दक्षिण में इसकी अधिकतम लम्बाई 192 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम में इसकी अधिकतम चौड़ाई 160 किलोमीटर है। पाली जिले का प्राचीन नाम पल्लिका था, जो कालान्तर में लघु होकर पाली कहलाने लगा। पाली
जिले में प्रागैतिहासिक काल, रामायण एवं महाभारत काल के अवशेष मौजूद हैं। स्वतंत्रता
प्राप्ति से पूर्व यह क्षेत्र जोधपुर रियासत का भाग था जो एकीकरण की प्रक्रिया
होने के साथ ही पाली जिले के रूप में अस्तित्व में आया। प्रशासनिक संरचना की दृष्टि से पाली छः उपखण्ड
(जैतारण, सोजत, पाली, बाली, सुमेरपुर, एवं देसूरी) तथा नौ तहसीलें (जैतारण, रायपुर, मारवाड़ जंक्शन, पाली, रोहट, बाली, सुमेरपुर, देसूरी, व सोजत) में वितरित है। एक नगर परिषद (पाली) तथा आठ नगर
पालिकाएँ - जैतारण, बाली, सुमेरपुर, रानी, फालना स्टेशन, सादड़ी, तख्तगढ व सोजत सिटी हैं। मेहन्दी के लिए उपयुक्त प्राकृतिक दशाएँ:- पाली
जिले के प्राकृतिक कारक जैसे भूगर्भीय संरचना, उच्चावच तथा अपवाह तंत्र, जलवायु एवम् मृदा सभी मेहन्दी की फसल के लिए उपयुक्त है। अपवाह तंत्र:-जिले में वर्षभर
बहने वाली एक भी नदी नहीं पाई जाती है। यह जिला लुणी नदी क्षेत्र का हिस्सा है।
बांड़ी, सुकड़ी, जवाई, खारी, गुड़ियानाला तथा सोमेसर जिले की प्रमुख नदियाँ हैं जो अरावली पर्वतमाला से
उद्गमित होकर पश्चिम दिशा में बहती हुई मुख्य नदी लूणी में मिल जाती है। जलवायु:-पाली जिले की जलवायु
शुष्क से अर्द्ध शुष्क है। सामान्यतया सर्दी का मौसम मध्य नवम्बर से प्रारम्भ होकर
फरवरी तक चलता है। इसके बाद गर्मी का मौसम मार्च से जून तक तथा वर्षा का मौसम मध्य
जून से सितम्बर तक रहता है। तापमान मार्च से जून तक बढता है और नवम्बर से जनवरी तक
घटता चला जाता है। जिले का औसत तापमान 25.50 सेल्सियस रहता है। ग्रीष्म ऋतु में तापमान 40से 47सेल्सियस एवं
सर्दियों में 10 से 25 सेल्सियस रहता है। जिले में सर्वाधिक तापमान सन् 1994 में 48.50 सेल्सियस रिकार्ड
किया गया तथा सन् 2000 में न्यूनतम तापमान -3.10 सेल्सियस रिकार्ड किया गया है। वर्षा:- पाली जिले में
वर्षा अपर्याप्त और अनियमित होती है। वाष्पीकरण वर्षा की मात्रा से अधिक हो जाता हैं। अतः वर्षा का प्रभाव भी अक्षुण्ण रूप से नहीं बना रहता और सदैव क्षेत्र में
पानी की कमी बनी रहती है। पानी की पूर्ति हेतु जिले में जवाई नहर का सहारा लिया
जाता है। वर्षा पूर्व से पश्चिम व दक्षिण से उतर की ओर कम होती जाती है। आर्द्रता:-पाली जिले में
आर्द्रता की कमी पाई जाती है। जुलाई के अन्त एवं अगस्त माह में 50 से 70 प्रतिशत आर्द्रता पाई जाती है। इन्हीं महीनों में 8 से 10 दिनों तक मेघाच्छन्नता प्रायः 80 प्रतिशत तक पाई जाती है। अन्यथा आकाश साफ दिखाई
देता है। ग्रीष्म ऋतु में सापेक्षिक आर्द्रता 20 प्रतिशत कम पाई जाती हैं। पश्चिमी शुष्क हवाओं का आधिक्य:- पाली जिले में
पश्चिम से शुष्क हवाऐं साल के अधिकांश दिनों में चलती हैं, जिनमें वर्षा न होकर शुष्कता व्याप्त रहती हैं।
गर्मी में इन हवाओं को ‘लू’ कहते हैं। इन्हीं हवाओं से फसल का पकना, मरुस्थल के पदचापों का बढ़ना एवं वाष्पीकरण प्रक्रिया की
अभिवृद्धि होती है। सामान्य रूप से यह शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क जलवायु इस क्षेत्र
के विकास में बाधक बनी हुई है। मृदा (मिट्टी):-जिले के पश्चिमी भाग
में बालू मिट्टी की प्रधानता है तथा दक्षिणी-पूर्वी भाग में पहाड़ी मिट्टी पाई जाती
है। पाली के आसपास के क्षेत्र में लाल-भूरी मिट्टी की प्रचुरता व्याप्त है। मारवाड़
जंक्शन, देसुरी, बाली, सुमेरपुर, तहसीलों के कुछ भागों में मध्यम काली मिट्टी दृष्टिगोचर होती है। रायपुर व
जैतारण उपखण्डों में कांपीय मिट्टी विद्यमान है परन्तु रोहट खण्ड में मरुस्थलीय
बालू मिट्टी का प्रसार पाया जाता है। पाली जिले की जनसंख्या कार्यशील जनसंख्या, साक्षरता दर, घनत्व प्रतिवर्ग किलोमीटर एवम् क्षेत्रफल (वर्ग किलोमीटर)
से संबंधित है। पाली जिले की कुल जनसंख्या 18.19 लाख है जिसमें से सोजत तहसील की कुल कार्यशील जनसंख्या 65 हजारहै। जिले की कुल जनसंख्या का यह 34.39 प्रतिशत हिस्सा
है।जैतारण ही एक ऐेसी तहसील है जिसकी कार्यशील जनसंख्या सोजत तहसील से अधिक है। सोजत में मेहन्दी की व्यावसायिक खेती भूमि:-मेहन्दी की खेती के
लिए सभी प्रकार की भूमि एवं मिट्टी उपयुक्त होती है। फिर भी बलुई, दोमट, गहरी मिट्टी वाले क्षेत्र अधिक उपयुक्त है। जहाँ कंकरीली, पथरीली, हल्की-भारी मिट्टी पर कृषि सम्भव नहीं हो वहाँ इसकी खेती हो
सकती है परन्तु अत्यधिक जल भराव वाली क्षारीय व लवणीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं
है। किस्में एवं बीज उत्पादन:- हीना (सुगंधित) व रजनी
(गहरे रंग वाली), अच्छी किस्म व अधिक पैदावार देने वाली एस-8, एस-22, खेडब्रम व धन्धुका किस्मों का चयन करने से अच्छी टेनिन युक्त मेहन्दी उत्पन्न
होती है।स्वस्थ चैड़ी पत्ती वाले व अधिक पैदावार देने वाले एक समान पौधों से बीज
एकत्रित कर बीज पकने पर डोडे तोड़कर धूप में सुखाये जाते है बाद में कूटकरबीज निकाल
लें छलनी से मौटे बीज अलग कर प्लास्टिक की थेलियों में भंडारण करते है। बिजाई या नर्सरी तैयार करने की विधि:- मेहन्दी की बिजाई प्रायः बीजों द्वारा की जाती है। मेहन्दी का बीज काफी बारीक
होता है। बोने से पहले सन की बोरी में बीजों को 10-15 दिन तक भिगोकर रखते है। इस दौरान बोरी को लगातार पानी से
गीला रखते है। अतः मार्च-अप्रेल के महीने में जब अधिकतम तापमान 250C से 300C के मध्य हो तो
छायादार जगह पर उठी हुई क्यारियां बनाकर मेहन्दी के बीज को महीन बालूमिटटी में
मिला दिया जाता है। एक हेक्टेयरमें 6 से 8 किलो बीज की नर्सरी तैयार की जाती है। क्यारियों में बीज
छिड़ककर हल्की सिंचाई की जाती है जिसमें 15 से 20 दिन तक क्यारियाँ ऊपर से सूखने न पायें। जून व जुलाई में 1 से 2 बार गो-मूत्र का छिड़काव लाभकारी रहता है। मेहन्दी के लगभग
सारे बीज 15 से 25 दिन में उग आते है। खरपतवार उगने पर इन्हें अवश्य निकाल देते है। अन्यथा
मेहन्दी के पौधे नर्सरी में ही नष्ट हो सकते है। आवश्यकता पड़ने पर नीम की खली के
घोल कामेहन्दी के पौध पर छिड़काव किया जाता है। इससे मेहन्दी की पौध स्वस्थ व कीट
रहित बनी रहती है। खेती की तैयारी:- मेहन्दी एक बार उगने के बाद कई
वर्षों तक चलती रहती है इसलिए इसको उगाते समय गर्मी में 15-20 से.मी. गहराई तक
जुताई की जाती है। मेहन्दी के लिए सामान्य मिट्टी का क्षारांक (pH) 7.5-8.5 उपयुक्त है। यदि
pH 8.5 या अधिक है तो 2.5 टन जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाता है। आवश्यकता होने पर
साथ ही 175 क्विटल गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद व नीम की खली 40 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिला दी
जाती है। जिससे हानिकारककीट नष्ट हो जाते हैं व दीमक नहीं लगती। पहली वर्षा के साथ
खेत में 45-60 से.मी. की दूरी पर 30 से.मी. चैड़ा व 15-20 से.मी. गहरा कुंड बनाते है व खेत की चारों तरफ मेढ़ बनानेे व कूंडों में वर्षा
का पानी संग्रहित होने दिया जाता है। कूंडों में नमी लम्बे समय बनी रहती है तो
मेहन्दी के लिए उपयुक्त है। खेत में रोपाई:- अंकुरण के तीन माह
बाद या जुलाई अगस्त में मानसून की अच्छी बरसात में पौधशाला से पौध को जड़ों से उखाड़
कर, खेत में रोपाई या पौधारोपण हल या पंच द्वारा बनाये गये कुंड में दो पौधे एक
साथ लगाकर मिट्टी में अच्छी तरह दबा दी जाती है। ताकि जड़ के पास खोखला स्थान न
रहे। तेज धूप व गर्मी के समय रोपाई का कार्य नहीं करते है। रोपाई के समय से पूर्व
एण्डोसल्फान चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दिया जाता है। ताकि दीमक के
प्रकोप से पौधों का बचाया जा सके। खाद एवं उर्वरक:- इसकी जड़ें गहरी होती है अतः खाद की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी पौधों की रोपाई से पहले अंतिम जुताई के समय 5 टन गोबर का खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल दिया जाता है। तथा उचित विकास के लिए 40 किलो ग्राम नत्रजन साल में एक बार दे दिया जाता है। फसल रोपाई के एक माह बाद खेत में निराई करना आवश्यक होता है ताकि खेत को खरपतवार से मुक्त रखा जा सके। सिंचाई:- मेहन्दी की जड़ काफी गहरी जाती है इसलिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती। अधिक सिंचाई करने पर मेंहदी के पत्तों में रंजक तत्वों की कमी आ जाती है तथा गुणवत्ता क्षीण हो जाती है। सामान्यतः यह फसल वर्षा पर आधारित फसल के रूप में ली जाती है। किन्तु जहाँ पानी की सुविधा हो, वहाँ एक-दो बार सिंचाई आवश्यकतानुसार की जा सकती है।
कटाई:-बुआई के पश्चात् आगामी मार्च-अप्रैल में इसकी प्रथम कटाई जमीन से 15-20 से.मी. ऊपर से की जाती है। पहली कटाई से विशेष
उत्पादन नहीं मिलता परन्तु ये कटाई करना आवश्यक है। दो साल बाद वर्ष में दो बार
कटाई की जानी चाहिए। प्रथम मार्च-अप्रैल व दूसरी सितम्बर, अक्टूबर में। कटाई के बाद फसल को छोटी-छोटी
ढेरियां बनाकर तिरपाल या मढ़ाई क्षेत्र में छाया व हल्की धूप में सुखाया जाता है। सूख जाने पर इन ढेरियों को इकट्ठा कर लिया जाता है तथा एक बड़ी ढेरी बनाकर 4-5 दिन तक इसे और सूखने देते हैं। पत्तों का रंग न उड़ने पाये, इस बात का विशेष ध्यान
रखा जाता है। सूखी हुई शाखाओं को डण्डे से पीटकर पत्तियों को झाड़ कर अलग कर लेते है
ताकि मिट्टी व कंकड़ (छोटे-छोटे पत्थर) नहीं आ सके साफ पत्तों को जूट (बारदान) के
बने बोरो में भरकर बिक्री हेतु मण्डी में लाया जाता है। उपज व उत्पादनः- प्रतिदर्श एवं अनुसूची द्वारा प्राप्त जानकारी से ज्ञात
होता है कि किसान को 600-800 किलो ग्राम मेहन्दी का उत्पादन प्रतिहेक्टेयर में होता है परन्तु उन्नत
कृषि विधि द्वारा 1500-2000 किलो ग्राम प्रति हैक्टयेर की पैदावार की जा सकती है। |
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निष्कर्ष |
जिले की प्रमुख व्यावसायिक फसल तिलहन हैं जो पाली की एक विशिष्ट पहचान है। इसके बाद जिले में क्रमशः गेहूँ, मूँग, कपास, बाजरा, मोठ जैसी महत्वपूर्ण फसलों का उत्पादन होता है। उत्पादन के आधार पर जिले के दक्षिणी क्षेत्र में तिलहन, उत्तर-मध्य में कपास व गेहूँ की गणना प्रथम क्रम पर रहती है। परन्तु गिरते भूजल स्तर एवं अनियमित वर्षा के कारण सोजत व इसके आस-पास क्षेत्र में मेहन्दी का उत्पादन क्षेत्र बढ़ रहा हैं। पाली जिले में मुख्य रूप से बाजरा, ज्वार, गेहू, कपास एवं मेहन्दी इसमें दिन प्रति दिन मेहन्दी का उत्पादन बढ़ रहा है । वर्तमान में मेहन्दी का उत्पादन क्षेत्र 43 हजार हेक्टेयर है जिसमें 38600 मैट्रिक टन उत्पादन हो रहा है।
राजस्थान के उद्योगों का प्रादेशिक अथवा जिलेवार फैलाव में 9 जिलों में जयपुर, जोधपुर, पाली, भीलवाड़ा, अलवर, अजमेर, उदयपुर, श्रीगंगानगर व बीकानेर में कुल फैक्ट्रियों का अंश 79 प्रतिशत तथा इसमें कुल रोजगार का अंश 74 प्रतिशत है। वर्तमान में राजस्थान में कुल 3865 फैक्ट्रियों में 173828 कर्मचारी कार्यरत थे जबकि पाली जिले में 290 फैक्ट्रियों में 8257 कर्मचारी कार्यरत थे। पाली जिला राजस्थान के अग्रणी जिलो में अपना स्थान इन्हीं लघु व कुटीर उद्योगो के द्वारा ही बनाये रखने में सक्षम है।
वर्तमान में नई दिल्ली 26़ सितम्बर 2021 को राजस्थान की सोजत मेहन्दी को सरकार से भौगोलिक संकेतक (जीआई) का दर्जा मिला है। जीआई दर्जा उत्पाद के निर्माताओं को उच्च मूल्य प्राप्त करने में मदद करेगा और अन्य कोई निर्माता अपने उत्पाद के विपणन के लिये इस नाम का इस्तेमाल नही कर पायेगा जिससे सोजत के उद्यमियों को प्रोत्साहन मिलेगा और उद्योग अपनी नवीनतम उत्पादों के साथ आगे बढने में सफल होगा। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. डॉ.एस. एन भट्टा चार्य (1986), लघु व् घरेलू उद्योगों का विकास, मेट्रो पोलिटन बुक हाउस न्यू दिल्ली|
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5. खेम चंद और बी एल जांगिड (2004), अर्द्ध-शुष्क राजस्थान में हीना(महेंदी) का अर्थशास्त्र, शुष्क क्षेत्र का विश्लेषण.
6. व्यास एस पी (2001), हीना (महेंदी) -ए कैश क्रॉप फॉर एरिड गुजरात, देन -न्यूज़ काजरी जोधपुर | |