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पलायन एक वैश्विक अवधारणाः गढ़वाल हिमालय के विशेष संदर्भ में | |||||||
Migration a Global Concept: With Special Reference to the Garhwal Himalayas | |||||||
Paper Id :
17214 Submission Date :
2023-02-03 Acceptance Date :
2023-02-19 Publication Date :
2023-02-23
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सारांश |
पलायन मानव इतिहास की वह वैश्विक घटना है जो उसकी उत्पत्ति के साथ संन्निहित है, मानव इतिहास की प्रत्येक परिघटना को पलायन के संदर्भ में समझा जा सकता है उत्तराखण्ड के इतिहासकार मनी राम बहुगुणा के अनुसार उत्तराखण्ड विभिन्न काल खण्डों में निर्मित विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण है जिनका आगमन प्राचीन कालीन इतिहास, मध्य कालीन इतिहास तथा आधुनिक काल तक निरंतर जारी रहा, परन्तु पलायन को किसी तिथियों के अन्दर समाहित करना सम्भव नही है साहित्यों, प्रश्नावली, साक्षात्कार तथा फिल्ड सर्वे के माध्यम से प्रयास किया गया है कि पलायन द्वारा निर्मित उत्तराखण्ड की विविध संस्कृति के काल खण्डों के अनुसार प्रस्तुत किया जा सकें।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Migration is that global phenomenon of human history which is contiguous with its origin, every phenomenon of human history can be understood in the context of migration. Whose arrival continued till ancient history, medieval history and modern times, but it is not possible to contain the migration within any dates, through literatures, questionnaires, interviews and field surveys, efforts have been made that Uttarakhand created by migration can be presented according to the periods of different culture of India. | ||||||
मुख्य शब्द | पलायन, संस्कृति, मनोवैज्ञानिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, उत्पादन अधिशेष, आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण, प्रव्रजन, प्रज्ञमानव, कॉंकेसायड, मंगोलॉयड, आस्ट्रेलॉयड, भोज्य संग्राहक, आखेटक, भोज्य संग्राहक, यायावरी भ्रमणशीलता। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Migration, Culture, Psychological, Geographic, Historical, Production Surplus, Economic Development, Industrialization, Migration, Nomadic, Concasoid, Mongoloid, Australoid, Food Gatherer, Hunter-Gatherer, Nomadic Mobility | ||||||
प्रस्तावना |
पलायन मेधावी मानव की उसी प्रकार से एक विशेषता है जैसे कि उनके द्वारा उपकरण बनाया जाना और संस्कृति निर्माण किया जाना है। पृथ्वी के धरातल पर मनुष्य सर्वाधिक विस्तारवादी सामाजिक प्राणी है। आज से लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व, लिखित इतिहास तथा कृषि के विकास से बहुत पहले, अफ्रीका में उनके उद्भव से लेकर मानव समूह केवल अण्टार्कटिक महाद्वीप को छोड़कर, पृथ्वी के अधिकांश भाग पर अधिपत्य कर सका है। इस प्रकार पलायन एक मनोवैज्ञानिक, भौगोलिक, तथा ऐतिहासिक तथ्यों से युक्त विषय है जो प्रत्येक युग में मानवीय आवश्यकता रहा है क्योंकि मानव की यह प्रवृति रही है कि जिस स्थान पर जीवन कठिन बन जाता है, उस स्थान को छोड़ कर वह ऐसे स्थान पर पलायन करता है, जहाँ जीवन तुलनात्मक दृष्टि से सुगम होता है।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य पलायन की वैश्विक अवधारणा का गढ़वाल हिमालय के विशेष संदर्भ में अध्ययन करना है। |
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साहित्यावलोकन | शोधार्थी द्वारा वैश्विक संदर्भ में पलायन को समझने हेतु जे0ऐ0 जेक्सन की पुस्तक का अध्ययन किया गया जिसमें पलायन के कारण पर चर्चा की गई है, माजिद हुसैन ने अपनी पुस्तक में मानव सभ्यता के भौगोलिक वितरण, डी0आर0 खुल्लर ने भारतीय संदर्भ में पलायन को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है, आर0एस0 शर्मा की पुस्तक से आर्य सभ्यता का भारत में पलायन जबकि अतुल सकलनी के साहित्य में उत्तराखण्ड में पलायन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
मानव सभ्यता के इतिहास में सदैव जीवन जीने के संघर्ष
के परिणाम स्वरूप सामाजिक परिवर्तन, प्रारम्भिक
राजनैतिक संगठन, उत्पादन अधिशेष, आर्थिक विकास औद्योगिकीकरण से उत्पन्न श्रमिक बाजारों की बढ़ती मांग, नगरीकरण की संवृद्धि और विकास के कारण मानव समूह अपनी मूल-भूत आवश्यकताओं
की पूर्ति के लिए जब अपने मूल स्थान का परित्याग कर किसी अन्य स्थान पर प्रवास
प्रारम्भ करता है, मानव इतिहास की इस परिघटना को
प्रव्रजन अथवा पलायन कहते है सीनोजोइक युग के बाद मानव विकास के क्रम में प्रज्ञ
मानव के विभिन्न प्रजातियों का विकास विशेष भौगोलिक परिदृश्य वाले स्थान विशेष में
हुआ जो अधोलिखित है। सामान्य रूप से कॉंकेसायड प्रज्ञमानव का उद्विकास यूरोप में, प्रज्ञमानव की मंगोलॉयड प्रजाति का उद्विकास एशिया में, ‘जबकि प्रज्ञमानव नीग्रोइड जाति का उद्विकास प्रारम्भिक काल में अफ्रीका तक
सीमित था परन्तु कालान्तर में बढ़ती जरूरतों तथा घुमंतु प्रकृति के कारण मनुष्य ने
अपने मूल स्थानों का परित्याग किया। मानव सभ्यता के इतिहास में सदैव जीवन जीने के
संघर्ष के परिणाम स्वरुप सामाजिक परिवर्तन, प्रारम्भिक
राजनैतिक संगठन, उत्पादन अधिशेष, आर्थिक विकास औद्योगिकीकरण से उत्पन्न श्रमिक बाजारों की बढ़ती मांग, नगरीकरण की संवृद्धि और विकास के कारण मानव समूह अपनी मूल-भूत आवश्यकताओं
की पूर्ति के लिए जब अपने मूल स्थान का परित्याग कर किसी अन्य स्थान पर प्रवास
प्रारम्भ करता है, मानव इतिहास की इस परिघटना को
प्रव्रजन अथवा पलायन कहते हैं। आज कॉकेसायड प्रजाति न केवल यूरोप में अपितु
अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों, सहारा मरूस्थल के सीमित
क्षेत्रों, एशिया माइनर, ईरान, बलुचिस्तान, तथा भारत के उत्तरी क्षेत्रों में
निवास करती है। मंगोलॉयड प्रजाति एशिया, अमेरिका के
पश्चिमी भाग (रेड इण्डियन) कनाडा, ग्रीनलैण्ड, में एस्किमों, साइबेरिया में याकूत प्रजाति नाम
से निवास करती है। मंगोलॉयड प्रजाति की अधिकांश सघनता प्रशान्त तथा आकर्टिक
क्षेत्रों में भी पायी जाती है, जबकि नीग्रोइड जाति का
मुख्य एकत्रीकरण सहारा मरूस्थल के दक्षिण में स्थित अफ्रीका महाद्वीपीय क्षेत्र
में पाया जाता है, इसके अतिरिक्त इण्डोनेेशिया पापूआ
गिनी, मलेशिया, जावा आदि
जगहों में पाये जाते है। |
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निष्कर्ष |
मानव सभ्यता के प्रसार में पलायन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, यही प्रकृति मनुष्य को उत्पादक, विस्तार, संघर्ष, तथा जीवन को जीने के लिए उपयोगी चीजों के अनुसंधान हेतु प्रेरित करती है कालान्तर में मानव महत्वकांक्षा ने इसी प्रकृति के कारण साम्राज्यवाद, उपनिवेश की भावना को दृढ़ता से स्थापित करती है, वर्तमान में विकसित स्थलों के आकर्षण ने ब्रेन ड्रेन, डायस्फोरा, इमीग्रेशन, एमीग्रेशन, माइग्रेशन को उसके चरम पर पहुॅचा दिया गया है, पलायन एक सीमित मात्रा तक अच्छा होता है परन्तु यह जब अपनी सीमा को पार करता है तो सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यावरणीय संदर्भो को भी प्रभावित करता है जो वर्तमान उत्तराखण्ड को इसी तरह प्रभावित कर रहा है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. जेक्सन, जे0ए0, माइग्रेशन, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस ईस्टन रोड़ लंदन पृष्ठ सं0 1-9।
2. हुसैन, माजिद, मानव भूगोल, रावत पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, 2014, पृष्ठ सं. 48-51।
3. खुल्लर, डी.आर.,जनसंख्या एवं बस्ती भूगोल, टाटा मैग्रा हिल्स प्रकाशन, नई दिल्ली 2011 पृष्ठ सं.8.-8.70।
4. शर्मा,आर0एस0, प्राचीन भारत का इतिहास, ओरिएन्टल ब्लैकस्वान पब्लिकेशन, 2004 पृष्ठ सं. 51-62 ।
5. सकलानी, अतुल, उत्तराखण्ड का इतिहास, संस्कृति तथा पुरातत्वः नई खोजें और सर्वेक्षण, उत्तराखण्ड इतिहास तथा संस्कृति परिषद, पृष्ठ सं. 77।
6. शर्मा, रामशरण प्रारंभिक भारत का परिचय ओरिएन्ट ब्लैकस्वॉन प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद 2009 पेज न0 47-56।
7. ली, एवरेट, 1965, हिन्दी अनुवाद, माजिद हुसैन,मानव भूगोल, रावत पब्लिकेशन्स नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 182।
8. समाचार पत्र , हिन्दुस्तान , उत्तराखण्ड संस्करण पृष्ठ 7।
9. जैक्सन जे0ए0,डेफिनिसन ऑफ माइग्रेशन कैम्ब्रिज एट द यूनिवर्सिटी प्रेस, पृष्ठ सं0 285।
10. भारत सरकार जनगणना रिर्पोट 2001। |