ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- XI February  - 2023
Anthology The Research
पलायन एक वैश्विक अवधारणाः गढ़वाल हिमालय के विशेष संदर्भ में
Migration a Global Concept: With Special Reference to the Garhwal Himalayas
Paper Id :  17214   Submission Date :  03/02/2023   Acceptance Date :  19/02/2023   Publication Date :  23/02/2023
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दिनेश कुमार जैसाली
सह आचार्य
इतिहास विभाग
एम.पी.जी. कॉलेज, मसूरी
देहरादून,उत्तराखण्ड, भारत
दक्षिणा उनियाल
शोधार्थी
इतिहास
डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज
देहरादून, उत्तराखण्ड, भारत
सारांश पलायन मानव इतिहास की वह वैश्विक घटना है जो उसकी उत्पत्ति के साथ संन्निहित है, मानव इतिहास की प्रत्येक परिघटना को पलायन के संदर्भ में समझा जा सकता है उत्तराखण्ड के इतिहासकार मनी राम बहुगुणा के अनुसार उत्तराखण्ड विभिन्न काल खण्डों में निर्मित विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण है जिनका आगमन प्राचीन कालीन इतिहास, मध्य कालीन इतिहास तथा आधुनिक काल तक निरंतर जारी रहा, परन्तु पलायन को किसी तिथियों के अन्दर समाहित करना सम्भव नही है साहित्यों, प्रश्नावली, साक्षात्कार तथा फिल्ड सर्वे के माध्यम से प्रयास किया गया है कि पलायन द्वारा निर्मित उत्तराखण्ड की विविध संस्कृति के काल खण्डों के अनुसार प्रस्तुत किया जा सकें।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Migration is that global phenomenon of human history which is contiguous with its origin, every phenomenon of human history can be understood in the context of migration. Whose arrival continued till ancient history, medieval history and modern times, but it is not possible to contain the migration within any dates, through literatures, questionnaires, interviews and field surveys, efforts have been made that Uttarakhand created by migration can be presented according to the periods of different culture of India.
मुख्य शब्द पलायन, संस्कृति, मनोवैज्ञानिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, उत्पादन अधिशेष, आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण, प्रव्रजन, प्रज्ञमानव, कॉंकेसायड, मंगोलॉयड, आस्ट्रेलॉयड, भोज्य संग्राहक, आखेटक, भोज्य संग्राहक, यायावरी भ्रमणशीलता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Migration, Culture, Psychological, Geographic, Historical, Production Surplus, Economic Development, Industrialization, Migration, Nomadic, Concasoid, Mongoloid, Australoid, Food Gatherer, Hunter-Gatherer, Nomadic Mobility
प्रस्तावना
पलायन मेधावी मानव की उसी प्रकार से एक विशेषता है जैसे कि उनके द्वारा उपकरण बनाया जाना और संस्कृति निर्माण किया जाना है। पृथ्वी के धरातल पर मनुष्य सर्वाधिक विस्तारवादी सामाजिक प्राणी है। आज से लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व, लिखित इतिहास तथा कृषि के विकास से बहुत पहले, अफ्रीका में उनके उद्भव से लेकर मानव समूह केवल अण्टार्कटिक महाद्वीप को छोड़कर, पृथ्वी के अधिकांश भाग पर अधिपत्य कर सका है। इस प्रकार पलायन एक मनोवैज्ञानिक, भौगोलिक, तथा ऐतिहासिक तथ्यों से युक्त विषय है जो प्रत्येक युग में मानवीय आवश्यकता रहा है क्योंकि मानव की यह प्रवृति रही है कि जिस स्थान पर जीवन कठिन बन जाता है, उस स्थान को छोड़ कर वह ऐसे स्थान पर पलायन करता है, जहाँ जीवन तुलनात्मक दृष्टि से सुगम होता है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य पलायन की वैश्विक अवधारणा का गढ़वाल हिमालय के विशेष संदर्भ में अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन

शोधार्थी द्वारा वैश्विक संदर्भ में पलायन को समझने हेतु जे00 जेक्सन की पुस्तक का अध्ययन किया गया जिसमें पलायन के कारण पर चर्चा की गई हैमाजिद हुसैन ने अपनी पुस्तक में मानव सभ्यता के भौगोलिक वितरणडी0आर0 खुल्लर ने भारतीय संदर्भ में पलायन को परिभाषित करने का प्रयास किया गया हैआर0एस0 शर्मा की पुस्तक से आर्य सभ्यता का भारत में पलायन जबकि अतुल सकलनी के साहित्य में उत्तराखण्ड में पलायन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

मुख्य पाठ

मानव सभ्यता के इतिहास में सदैव जीवन जीने के संघर्ष के परिणाम स्वरूप सामाजिक परिवर्तनप्रारम्भिक राजनैतिक संगठनउत्पादन अधिशेषआर्थिक विकास औद्योगिकीकरण से उत्पन्न श्रमिक बाजारों की बढ़ती मांगनगरीकरण की संवृद्धि और विकास के कारण मानव समूह अपनी मूल-भूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जब अपने मूल स्थान का परित्याग कर किसी अन्य स्थान पर प्रवास प्रारम्भ करता हैमानव इतिहास की इस परिघटना को प्रव्रजन अथवा पलायन कहते है सीनोजोइक युग के बाद मानव विकास के क्रम में प्रज्ञ मानव के विभिन्न प्रजातियों का विकास विशेष भौगोलिक परिदृश्य वाले स्थान विशेष में हुआ जो अधोलिखित है। सामान्य रूप से कॉंकेसायड प्रज्ञमानव का उद्विकास यूरोप मेंप्रज्ञमानव की मंगोलॉयड प्रजाति का उद्विकास एशिया में, ‘जबकि प्रज्ञमानव नीग्रोइड जाति का उद्विकास प्रारम्भिक काल में अफ्रीका तक सीमित था परन्तु कालान्तर में बढ़ती जरूरतों तथा घुमंतु प्रकृति के कारण मनुष्य ने अपने मूल स्थानों का परित्याग किया। मानव सभ्यता के इतिहास में सदैव जीवन जीने के संघर्ष के परिणाम स्वरुप सामाजिक परिवर्तनप्रारम्भिक राजनैतिक संगठनउत्पादन अधिशेषआर्थिक विकास औद्योगिकीकरण से उत्पन्न श्रमिक बाजारों की बढ़ती मांगनगरीकरण की संवृद्धि और विकास के कारण मानव समूह अपनी मूल-भूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जब अपने मूल स्थान का परित्याग कर किसी अन्य स्थान पर प्रवास प्रारम्भ करता हैमानव इतिहास की इस परिघटना को प्रव्रजन अथवा पलायन कहते हैं। आज कॉकेसायड प्रजाति न केवल यूरोप में अपितु अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रोंसहारा मरूस्थल के सीमित क्षेत्रोंएशिया माइनरईरानबलुचिस्तानतथा भारत के उत्तरी क्षेत्रों में निवास करती है। मंगोलॉयड प्रजाति एशियाअमेरिका के पश्चिमी भाग (रेड इण्डियन) कनाडाग्रीनलैण्डमें एस्किमोंसाइबेरिया में याकूत प्रजाति नाम से निवास करती है। मंगोलॉयड प्रजाति की अधिकांश सघनता प्रशान्त तथा आकर्टिक क्षेत्रों में भी पायी जाती हैजबकि नीग्रोइड जाति का मुख्य एकत्रीकरण सहारा मरूस्थल के दक्षिण में स्थित अफ्रीका महाद्वीपीय क्षेत्र में पाया जाता हैइसके अतिरिक्त इण्डोनेेशिया पापूआ गिनीमलेशियाजावा आदि जगहों में पाये जाते है।
पलायन के प्रभावों से मानव की दो भिन्न प्रजातियों के संगम से नवीन प्रजातियों की भी उत्पति हुईजिनमें आस्ट्रेलिया महाद्वीप में पाये जाने वाली आस्ट्रेलॉयड प्रजाति प्रमुख है। जिसकी उत्पति दक्षिण भारत की द्रविड- मानव प्रजाति तथा अफ्रीका की नीग्रो प्रजाति के मिश्रण से माना जाता है अर्थात इस पृष्ठभूमि में पलायन की विचारधारा एक सृजनकर्ता के रूप में सामने आती है। मनुष्य सदैव सकारात्मक सोच का प्रतिबिम्ब रहा है जीवन के प्रति उसके उसके दृष्टिकोण ने लाखों सालों से उसके अस्तित्व को बचा कर रखा हैजहाँ डायनासोर जैसा विशालकाय जीव अपने अस्तित्व को बचाने में असफल रहे वहीं मनुष्य ने अपनी सूझ-बूझ तथा बुद्धिमत्ता से प्रकृति से सामंजस्य स्थापित कर समयानुसार उसका उपयोग पलायनवादी आखेटक से भोज्य संग्राहक के रूप में परिवर्तित करता रहा। प्राचीन इतिहास के इस काल में मनुष्य का जीवन अपनी प्राथमिक आवश्कताओं तक सीमित रहाइतिहास के मध्यकालीन दौर में पशुचारण सभ्यताओं के संघर्षउत्तराखण्ड के संदर्भ में धाड़ा ने आदि मानव की सामाजिक क्रिया एक नवीन आयाम प्रस्तुत किया। नये राजवंशों के उदय तथा साम्राज्यवादी नीतियों ने मनुष्य को शक्तिशाली एवं सुरक्षित भ्रमणशील जीवन के लिये प्रोत्साहित किया। आधुनिक इतिहास में पुनर्जागरण के बाद आयी औद्योगिक क्रांति ने मनुष्य के प्रव्रजन को नया स्वरुप प्रदान किया तत्पश्चात उत्पादन अधिशेषपूँजीवादसाम्राज्यवादउपनिवेशवाद ने मनुष्य की यायावरी भ्रमणशीलता को उसके सर्वोच्च स्तर तक पहुँचा दिया। 20वीं शताब्दी में विश्व सभ्यताओं की उदारवादी नीति वैश्वीकरण तथा 'वसुधैव कुटुम्बकमकी नीति ने भ्रमणशीलता के उच्च स्तर को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे मनुष्य प्रव्रजन के सर्वोच्च स्तर को प्राप्त कर चुका       है।             
पलायन (Migration) मानव सभ्यता के विश्व व्यापक होने का एक महत्वपूर्ण कारक हैअफ्रीका से होमो इरेक्टस के रूप में प्रव्रजन अथवा पलायन करने वाले मानव के आदिम स्वरूप का सम्पूर्ण विश्व में विस्तार हुआविश्व की प्रत्येक सभ्यता के अस्तित्व का कारक पलायन हैभारत के आदिम मानव से लेकर सिन्धु तथा वैदिक सभ्यता के निर्माण में पलायन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
उत्तराखण्ड का हिमालयी क्षेत्र प्रारम्भ में जन शून्य था वही प्रव्रजन के कारण आज विविध सभ्यतासंस्कृति का केन्द्र है वर्तमान पूँजीवादी युग में अर्थ के अर्जन एवं सुविधा पूर्ण जीवन यापन करने हेतु बहुत बड़ी मात्रा में गढ़वाल हिमालय के पहाड़ों से लोगों का प्रव्रजन हो रहा हैपहाड़ जन शून्य तथा गांव भूतहा होते जा रहे गढ़वाल की जनसंख्या का 50 प्रतिशत हिस्सा प्रव्रजन की भेंट चढ़ चुका हैजिस कारण यहाँ की सामाजिकराजनैतिकआर्थिकधार्मिकसांस्कृतिक दशाओं पर व्यापक प्रभाव दिखाई देता है।
प्रव्रजन एक वैश्विक समस्या है मनुष्य के प्रारम्भिक जीवन काल में भोेेजन की आवश्कता हेतु पलायन किया जाता था परन्तु विकास के क्रम में मनुष्य की आवश्कता की प्रकृति में भी परिवर्तन आया सुविधा भोगी समाज के सृजन से एक नये तरह के विकास प्रतिमान की स्थापना हुई जिस में सभी सुविधाओं का संक्रेन्द्रण शहरों में होना शुरू हुआ इस तरह से सुविधा भोगी समाज ने लोगों को अच्छे अवसरों की तलाश में शहरों की ओर उनमुख हुआ जिसे प्रव्रजन का पुश सि़द्धान्त कहा जाता है[7]। गढ़वाल हिमालय में सन् 1947 से पूर्व प्रारम्भ में प्राकृतिक आकर्षणआयुर्वेदआश्रम व्यवस्था यु़द्ध काल में सुरक्षित शरण स्थलीधार्मिक स्थल तथा औपनिवेशिक भारत में अंग्रेजों की आरामगाह के रूप में तथा लोगों की आश्रय स्थली के रूप में प्रसिद्ध था परन्तु आजादी के बाद औपनिवेशिक शासन के प्रभाव में सुविधा भोगी समाज ने जनसामान्य के मानस पटल पर प्रव्रजन के विचार को सृजित किया परिणाम स्वरूप अपने परम्परागत व्यवसायोंसंशाधनों का परित्याग कर एक बेहतर भविष्य की तलाश में यहाँ से व्यापक स्तर पर पलायन प्रारम्भ किया। आज दशायें यह है की यहाँ 2500 गांव जनशून्यता के कगार पर है।
टिहरी जिलें में सन् 1949 पंवार वंशीय राजसाही में शिक्षास्वाथ्य और रोजगार जैसे मूल-भूत आवश्यकता के बाद भी पलायन कोई विकट समस्या नहीं थी परन्तु आजादी के बाद यहाँ के जनसामान्य पर इन मूल-भूत आवश्कताओं के प्रति आकर्षण अधिक होने का कारण है कि आजादी के बाद सबसे अधिक पलायन करने वाले जिलों में टिहरी जनपद अग्रणीय स्थान रखता है तथा टिहरी बाँध के निर्माण ने पलायन की समस्या को और अधिक बड़ा दिया है टिहरी जिले के अधिकतर लोगों ने होेटल व्यवसाय में सम्भावनाओं को तलाशायात्रा पड़ावों में अपनी सेवाएं प्रदान कर अपनी आर्थिक तथा रोजगार की जरूरतों को कुछ सीमा तक दूर करने के लिए प्रव्रजन कियावर्तमान गढ़वाल हिमालय में अधिकतर होटल व्यवसायों में टिहरी के लोगों की सहभागिता का स्तर उच्च है।
आधुनिक यर्थाथवादी विचार पलायन की भावना को अपना विरोधी मानने लगे हैप्रव्रजन संघर्ष न करके भाग जाने की प्रवृति मानी जाती है जिससे नये संघर्ष का सू़त्रपात होता है। यह एक वैश्विक विचार है जो मानव इतिहास के प्रारब्ध से उसके साथ चला आ रहा हैमानव के पहले स्वरूप होमों इरेक्टस के अफ्रीका महाद्वीप से पलायन के कारण सम्पूर्ण विश्व में मानव सभ्यता का प्रसार हुआ अर्थात मानव ने प्रव्रजन न केवल संसाधनों के अभाव में किया अपितु यह समय मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिये आवश्यक थाइस बात में कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान परिदृश्य में पलायन को चाहे नकारात्मक भाव के रूप में प्रचारित किया जा रहा है परन्तु प्रारम्भिक मानव द्वारा पलायन के कारण ही मानव विकास की एक नवीन श्रृंखला का सूत्रपात किया परन्तु वह अपने दुष्प्रभावों से निर्मुक्त नही हैै। प्राचीन काल से मनुष्य अपनी भ्रमणशीलता के लिये प्रसिद्ध रहा है वह संसाधनों की खोजमानव संघर्षयुद्धअत्याचारभेदभाव तथा महामारियों के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रव्रजन करता था। वास्तव में जनसंख्या के पलायन का इतिहास संभवतः उतना ही प्राचीन है जितना मनुष्य का इतिहास हैविश्व के इतिहास का अवलोकन करने पर यह दृष्टिगत होता है कि आर्यो ने मध्य एशिया से भारतीय उपमहाद्वीप में पलायन किया परन्तु आधुनिक अनुसंधानों ने इस विचार को भ्रामक मानते हुए चुनौतियाँ दी जा रही हैं।
प्रव्रजन शब्द की उत्पति पलायनवादी विचारधारा से उत्पन्न हुई है जिसका अर्थ वह सि़द्धान्त या मत है जिस में जीवन के यर्थातकठिनाईयोंसंघर्षो से दूर भागने की प्रवृति अथवा बेहतर कल की लालसा में मूल स्थान का परित्याग से हैयह संघर्ष न करके भाग जाने प्रवृति मानी जाती है जिससे नये संघर्ष का सू़त्रपात होता है। यह एक वैश्विक विचार है जो मानव इतिहास के प्रारब्ध से उसके साथ चला आ रहा है।
मानव के पहले स्वरूप होमों इरेक्टस को अफ्रीका महाद्वीप से प्रव्रजन के कारण सम्पूर्ण विश्व में मानव सभ्यता का प्रसार इस भौगोलिक प्रदेश में हुआ अर्थात यह कहने के संदर्भ  में कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान परिदृश्य में प्रव्रजन को चाहे नकारात्मक भाव के रूप में प्रचारित किया जाय परन्तु प्रारम्भिक मानव द्वारा प्रव्रजन के कारण ही मानव विकास की एक नवीन विचार श्रृंखला का सूत्रपात कियापरन्तु वह अपने दुष्प्रभावों से निर्मुक्त नहीं हैं। प्राचीन काल से मनुष्य अपनी भ्रमणशीलता के लिये प्रसिद्ध रहा है वह संसाधनों की खोजमानव संघर्षयुद्धअत्याचारभेदभाव तथा महामारियों के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रव्रजन करता था। वास्तव में जनसंख्या के पलायन का इतिहास संभवतः उतना ही प्राचीन है जितना मनुष्य का इतिहास हैविश्व के इतिहास का अवलोकन करने पर यह दृष्टिगत होता है कि आर्यो ने मध्य एशिया से भारतीय उपमहाद्वीप में पलायन कियामध्यकाल में इग्लैंड तथा फ्रांस द्वारा उपनिवेश एवं  साम्राज्यवादी नीति के कारण एशियाअफ्रीकाअमेरिका तथा आस्ट्रेलिया की ओर पलायन किया सम्पूर्ण विश्व का इतिहास इन्हीं घटनाओं से परिपूर्ण रहा  है।

निष्कर्ष मानव सभ्यता के प्रसार में पलायन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, यही प्रकृति मनुष्य को उत्पादक, विस्तार, संघर्ष, तथा जीवन को जीने के लिए उपयोगी चीजों के अनुसंधान हेतु प्रेरित करती है कालान्तर में मानव महत्वकांक्षा ने इसी प्रकृति के कारण साम्राज्यवाद, उपनिवेश की भावना को दृढ़ता से स्थापित करती है, वर्तमान में विकसित स्थलों के आकर्षण ने ब्रेन ड्रेन, डायस्फोरा, इमीग्रेशन, एमीग्रेशन, माइग्रेशन को उसके चरम पर पहुॅचा दिया गया है, पलायन एक सीमित मात्रा तक अच्छा होता है परन्तु यह जब अपनी सीमा को पार करता है तो सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यावरणीय संदर्भो को भी प्रभावित करता है जो वर्तमान उत्तराखण्ड को इसी तरह प्रभावित कर रहा है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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