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आधुनिक चकाचौध में दम तोड़ती नारी सुरक्षा की खोखली व्यवस्था एक अध्ययन | |||||||
Hollow System Of Womens Security Dying In Modern Glare: A Study | |||||||
Paper Id :
16606 Submission Date :
2022-11-02 Acceptance Date :
2022-11-22 Publication Date :
2022-11-25
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सारांश |
नारी गरिमा का किसी भी स्तर पर हन्न अमानवीय कृत्य की श्रेणी में आता है। इस सन्दर्भ में अनेक कानून बनाये गये है। लेकिन कितने भी कानून बने हो‚ घटनाओं की पुनरावृत्ति स्पष्ट संकेत है कि अब तक कोई भी कानून इतनी कड़ाई से क्रियान्वित नही हो पाता है कि नारी समाज में निर्भीकता से गरिमामय जीवन जी पाये। उन्नाव‚ कठुआ‚तेलंगाना‚ शिमला‚हाथरस आदि अनेक कांड‚ सुरक्षातंत्र की नाकामी दर्शाते है। घटनाये बढ़ने का सीधा सा अर्थ हे कि समाज में वास्तविक साक्षरक्षा‚ जनचेतना व नैतिक मूल्यो का सर्वधा अभाव है। साथ ही पुलिस व्यवस्था व न्याय प्रणाली भी त्रुटिपूर्ण है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Any level of violation of women's dignity comes in the category of inhuman act. Many laws have been made in this regard. But no matter how many laws have been made, the repetition of incidents is a clear indication that till now no law has been implemented so strictly that women can live a life with dignity in society. Many cases like Unnao, Kathua, Telangana, Shimla, Hathras etc. show the failure of the security system. | ||||||
मुख्य शब्द | दुर्व्यहार‚ पीड़िता‚ संवेदनशीलता‚ गरिमा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Abuse, Victim, Sensitivity, Dignity. | ||||||
प्रस्तावना |
पिछले कुछ वर्षो में महिला सुरक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है इसके पीछे कारण यह है कि समाज मे अपराधों का इजाफा। मध्यकालीन युग से लेकर 21वीं सदी तक महिलाओं की प्रतिष्ठा में लगातार गिरावट देखी गयी है। महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर अधिकार है वे देश की आधा जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है तथा विकास में भी आधी भागीदार है। इसका तर्क तो कतई नही नकारा जा सकता कि आज के आधुनिक युग में महिला पुरूषों के साथ ही नही बल्कि उससे दो कदम आगे निकल युकी है वे राष्ट्रीय पति के दफ्तर से लेकर जिलास्तर की योजनाओं का आधार बन चुकी है। महिलाओं के बिना दिनचर्या की कल्पना भी नही की जा सकती भारतीय संविधान में महिलाओं का पुरूषों के समान स्वतंत्र गरिमामई जीवन जीतने का अधिकार प्रदान किया है। नागरिक सुरक्षा एक गम्भीर मुद्दा है विषम परिस्थिति में देश की आधी आबादी की गरिमा से सम्बद्ध हो तो मामला और भी विचारणीय हो जाता है आजादी के 75वे वर्ष में देश पदापर्ण कर चुका है पर समस्यायें व व्यवस्थायें नारी समस्या व सम्मान को लेकर कितनी संजीदा है इसका सहज अनुमान मीडिया में अकसर सुर्खिया बनकर उभरने वाले दुष्कर्मो के द्वारा लगाया जा सकता है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. देश के प्रत्येक नागरिक को संवेदनशील व जागरूक बनाना।
2. देश में सख्त कानूनों का परिपालन सुनिश्चित करवाना व पुलिस स्टेशनों में महिला पुलिस प्रकोष्ठ और पृथक रूप से आवश्यकतानुसार महिला पुलिस स्टेशनों की स्थापना नागरकि व ग्रामीण क्षेत्रों में कराये जाने हेत।
3. देश के प्रत्येक नागरिक के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना व महिलाओं के प्रति सम्मान जनक दृष्टिकोण व सोच उत्पन्न करना।
4. महिलाओं की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपराध व अन्य घटनाओं मे कमी लाने हेतु महिला हेल्पलाइन नम्बर को बड़े–बड़े अंको में सार्वजनिक स्थानों‚ रेलगाड़ी‚ हवाई जहाज‚ छोटे वाहनों व सामाजिक स्थलो‚ अस्पतालों‚ स्कूल व कॉलेजो के परिसर में व अन्य उपयुक्त स्थानों पर उल्लिखित/प्रदर्शित किया जाना चाहिए। |
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साहित्यावलोकन | पी०डी० शर्मा ने 2017 में अपनी पुस्तक में कहा कि आज समाज में दुराचार की प्रवलता में नारी प्रवलता में नारी शक्तिकरण की सोच मानो दिवास्पप्न है महिलाये हमारे देश की आधी आबादी व जनमानस का प्रतिनिधित्व करती है‚ उनके गौरव को सुरक्षित बनाना समाज‚ प्रशासन व सरकार का संयुक्त दायित्व हैं लेकिन अफसोस कि 21वी सदी में डिजिटल इंडिया की बात करने वाला देश अभी भी महिलाओं को पूर्णतः सुरक्षित करने व उनको सशक्त बनाकर गौरव गरिमामय स्वरूप प्रदान करने में नकाम सिद्ध हुआ है। लेखिका तस्लीमा नसरीन ने वर्ष 2018 में अपनी पुस्तक में यह बात स्परष्ट की है कि महिलाओं की सुरक्षा आपने आप में ही बहुत विस्तृत व समग्र विषय है पिछले कुछ सालों में महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचारों को हम यह तो बिल्कुल नही कह सकती कि महिलाये हमारे समाज में पूर्ण रूप से सुरक्षित है‚ महिलाये अगर अपने आपको असुरक्षित महसूस करती है‚ तो खास तौर पर अगर उन्हें अकेले बाहर हो तो सुरक्षा का भय बना रहता है यह वाकई हमारे समाज के लिये सर्वनाक है हमारे समाज में महिलाओं को भययुक्त होकर जीना पड़ रहा है। नारी वाद के रूप में एक परिचय निशा जबी में वर्ष 2018 में उल्लिखित अपनी पुस्तक में स्पष्ट किया है कि यह बात 100 प्रतिशत सच है कि भारतीय समाज में महिलाओं की देवी लक्ष्मी के समान पूजा जाता है पर महिलाओं के प्रति नकारात्मक पहलू को ही नजरअन्दाज नही किया जा सकता भारत में गुजरत एक–एक पल में महिला का हर स्वरूप शोषित हो रहा है फिर चाहे वह मां‚ बेटी‚ बहन‚ पत्नी ही क्यो न हो‚ हर जगह महिला शोषण का शिकार 5-7 वर्ष की छोटी व कच्ची उम्र की छोरियां ही क्यों न हो‚ उन्हे भी शोषण के इस दंश काे झेलना पड़ता हैै। नारी बाद पर योगेंद्र शर्मा ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि कही ऐसा तो नही कि आधुनिक पालन पोषण के भ्रमजाल में हम बच्चों को वे संस्कार नही दे रहे है जो उन्हे नारी के प्रत्येक रूप को यशोचित मान–सम्मान देना सिखा पाये। बौद्धिक क्षमता तथा तकनीकि कौशल के संयोजन में कही हमारा वर्तमान शैक्षिणक पाठ्यक्रम देश के भावी भविष्य को नैतिक ज्ञान उपलब्ध कराने में पिछड़ तो नही रहा है। आर्श्चय है कि तकनीकि विकास का दम भरते हमारी व्यवस्थाये सक्षम न बन पाये इसलिए फलते फूलते अपाधिकरण तथा भ्रष्टाचार में संलिप्त प्रशासन का शुद्धिकरण नही हो पाया है‚ लम्बित मामलों में न्याय को अपेक्षित गति न मिल पाना निश्चय ही चिन्ता जनक है किन्तु दुष्कर्मो के विरोध में राष्ट्र व्यापी स्तर पर पसरता मौन अत्याधिक दुग्भायपूर्ण हो रहा है।
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मुख्य पाठ |
अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व |
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परिकल्पना | 1. माननीय दृष्टिकोण में परिवर्तन लाकर लैगिंक असमानता को कम करना। 2. गम्भीर चिन्तन, मनन, विचार विमर्श करके समाज में महिलाओं के प्रति निर्भीक वातावरण उत्पन्न करना। 3. महिलाओं के ऊपर पुरुषों द्वारा किये जा रहे अत्याचारो को सख्त कानूनी प्राविधानों द्वारा दृढ़तापूर्वक रोकना । 4- देश की प्रत्येक महिलाओं के स्वाभिमान व सम्मान की रक्षा करने हेतु उनके आत्मबल व आत्म विश्वास को दृढ़ता प्रदान करना। |
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विश्लेषण | देश में साल 2020 व 21 के मुकाबले महिलाओं के खिलाफ अपराधो में 15.3 प्रतिशत की बढौत्तरी हुई है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एन०सी०आर०वी०) द्वारा जारी खलिया ऑकड़ो के मुताविक वर्ष 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज हुए थे तथा वर्ष 2021 में 4,28,278 मामले दर्ज हुए थे रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ उचितम दर 168.3 प्रतिशत दर्ज की गयी है । हलाकि बीते 3 वर्षो में यहां मामूली गिरावट भी देखने को मिली है। परन्तु फिर भी एन०सी०आर०वी० की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि प्रति एक लाख की आवादी पर महिलाओं के खिलाफ 2020 में 56.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021 में 64.5 प्रतिशत हो गया है।
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परिणाम |
भारत सरकार द्वारा महिलाओं
की रक्षा करने और विशेष रूप से उनके प्रति अपराध की घटनाओं को रोकने के लिये और
अधिक उपाय किये जाने के लिये जरूरी कदमो के सम्बन्ध में समय-समय पर राज्य सरकारो
को निर्देश / सलाह जारी किया जाता है जैसे महिला पुलिस कर्मियों को महिलाओं के
प्रति सुग्राही बनाना, महिलाओं के प्रति हिरासती हिंसा में दोषी पाये
गये सरकारी कर्मचारियों को तत्काल बर्खास्त करना, महिलाओं की हत्या, और बल्लातकार व उत्पीड़न की जांच पड़ताल में कम
समय लगाना और इसकी गुणवत्ता में सुधार करना जिन जिलों में महिलाओं
के प्रति अपराध अधिक है वहां महिला प्रकोष्ट की स्थापना करना तथा महिलाओं के
कल्याण और पुर्नवास के लिये विकसित योजनाओं की प्रभावकारिता में सुधार करना जिसमें
आय अर्जित करने पर विशेष जोर दिया जाना शामिल है ताकि महिलाओं को और अधिक स्वतंत्र
और आत्म निर्भर बनाया जा सकें। |
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निष्कर्ष |
महिला सुरक्षा एक सामाजिक एवं राष्ट्रीय मुदा है इसे अतिशीध्र सुलझाने की आवश्यकता है कड़े कानूनों के बनाये जाने के बावजूद भी महिला अपराध में कमी के बजाय लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है जिससे समाज में महिलाओं की सुरक्षा गिरती जा रही है महिलाये अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही है तथा समाज के विचलित दुष्कृत माहौल को बदलने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नही बल्कि समाज में रहने वाले प्रत्येक नागरिग की है। ताकि हर महिला गर्व से अपने जीवन को जी सके। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. सिंह बी०एन०सिंह जनमेजम (2011) नारीवाद‚ दिल्ली
2. सिंह सुशवंत (2007)‚ द कम्पनी ऑफ विमेन‚ डाॅयमण्ड बुक्स पब्लिकेशन
3. कुमार डा० नीश (2012) महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा विषयक चुनौतियां डायमण्ड बुक्स पब्लिकेशन
4. तोमर अल्का व भड़ाना अनुज कुमार (2010) महिला सुरक्षा मुद्दे व चुनौतियां शारदा पुस्तक भवन
5. महावर सुनील (2017) भारत में महिला सशक्तिकरण विधिक आयाम और चुनौतियां अग्रवाल पब्लिकेशन
6. सिंह डॉ० नीलिमा (2014) महिला सशक्तिकरण विचारणीय मुद्दे‚ शारदा पुस्तक भवन
7. मीना डॉ० मीनाक्षी‚ शर्मा डॉ० सोनिया (2018) महिला सशक्तिकरण एवं लैगिंक समानता‚ अग्रवाल पब्लिकेशन |