ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- XII March  - 2023
Anthology The Research
थार मरुस्थल के बीकानेर जिले में नोखा तथा पूगल तहसीलों के सिंचित व गैर-सिंचित क्षेत्रों में कृषि फसलों का तुलनात्मक अध्ययन
Comparative Study of Agricultural Crops in Irrigated and Non-Irrigated Areas of Nokha and Pugal Tehsils in Bikaner District of Thar Desert
Paper Id :  17356   Submission Date :  11/03/2023   Acceptance Date :  17/03/2023   Publication Date :  18/03/2023
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राम निवास बिश्नोई
सहायक आचार्य
भूगोल विभाग
राजकीय महाविद्यालय हदां
कोलायत,बीकानेर, भारत
सारांश अध्ययन क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पूर्णतः कृषि पर आधारित है। यहां 90 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न हैं। कृषि की आदर्श दशाएं उपलब्ध ना होने तथा प्रतिकूल एवं विविधतायुक्त जलवायविक परिस्थितियां में भी अध्ययन क्षेत्र में पर्याप्त विकास हो रहा है। पूगल की अपेक्षा नोखा के भू-भागों में स्थिति अच्छी है तथा अनेक क्षेत्र कृषि उत्पादन में अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। यहां की प्रमुख समस्या जलवायु का क्षेत्रानुकूल न होना तथा मानसून का निश्चित समय पर न आना है। मानसून की इस विविधता का प्रभाव भूमि उपयोग, कृषि उपजों के स्वरूप एवं उत्पादकता पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ रहा है। इसी प्रकार दूसरा प्राकृतिक तत्व मरुस्थलीय व ऊबड़-खाबड़ धरातल है, जो फसलों के उत्पादन को नियंत्रित कर रहा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The economy of the study area is completely based on agriculture. Here 90 percent of the population is engaged in agriculture. Adequate development is taking place in the study area even in the absence of ideal conditions for agriculture and adverse and diverse climatic conditions. Compared to Pugal, the condition in the land of Nokha is good and many areas are playing a good role in agricultural production. The main problem here is that the climate is not regional and the monsoon does not come on time. This diversity of monsoon is directly affecting the land use, nature and productivity of agricultural produce. Similarly, the second natural element is the desert and rough surface, which is controlling the production of crops.
मुख्य शब्द थार मरुस्थल, बीकानेर जिला, नोखा तहसील, पूगल तहसील, कृषि फसलें, सिंचित, गैर-सिंचित।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Thar Desert, Bikaner District, Nokha Tehsil, Pugal Tehsil, Agriculture Crops, Irrigated, Non-irrigated.
प्रस्तावना
सिंचित भागों में रबी की फसल के अंतर्गत 63.71 प्रतिशत कृषित भूमि नोखा में बुवाई की जाती है जबकि पूगल में इसका स्तर 54.76 प्रतिशत रहा। संपूर्ण अध्ययन क्षेत्र में रबी की बुवाई 27.59 प्रतिशत रही। असिंचित भागों में रबी की फसल का अभाव रहता है। अध्ययन क्षेत्र के 72.40 प्रतिशत कृषित भाग पर खरीफ की फसलें पैदा की जाती है। सिंचित क्षेत्र में इसका स्तर 39.61 प्रतिशत है। वहीं दूसरी तरफ असिंचित भागों में शत् प्रतिशत कृषित भूमि खरीफ (बाजरा, ग्वार, मोठ) के अंतर्गत रहती है। मोठ-मूंग की नोखा मण्डी विश्व प्रसिद्ध है। पूगल के शुष्क भागों में न्यूनतम उत्पादन किया जाता है क्योंकि भौगोलिक दशाएं इन फसलों के अनुकूल नहीं है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. बीकानेर जिले के ग्रामीण थार मरुस्थल में कृषि फसलों की स्थिति और बदलाव का अध्ययन करना। 2. अध्ययन क्षेत्र में कृषि फसल प्रतिरूप का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

Naorem et al. (2023) के अनुसार जलवायु के अधिकाधिक शुष्क होते जाने से भविष्य में शुष्क मृदाओं का विस्तार बढ़ेगा। शुष्क क्षेत्रों में पाए जाने वाले कृषि संबंधी अवरोध मुख्यतः जलाभाव से जुड़े होते हैं। जैसे शुष्क मृदा में वनस्पति विरल, कार्बन की मात्रा न्यून, मृदा की संरचना घटिया, मिट्टी में जैवविविधता घटी हुई, पवनों के कारण मृदा अपरदन की दर उच्च एवं पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है। उपर्युक्त लेख में मृदा की समस्याओं को दूर करने तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपलब्ध विभिन्न तकनीकों का अन्वेषण किया गया है। Carausu et al. (2017) ने रोमानिया की इयासी काउंटी के ग्रामीण वृद्ध पुरुषों के स्वास्थ्य का विश्लेषण करते हुए तीन प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को उजागर किया। इनमें हृदय से संबंधित, पाचन से संबंधित तथा डायबिटीज शामिल थे। महिलाओं में हृदय से संबंधित समस्याओं के बाद डायबिटीज तथा अस्थि-शिरा समस्याएं प्रमुख थीं। Rai (2019) ने पर्यावरण चिंतन के संबंध में अपना शोध कार्य किया। उन्होंने विशेष तौर पर यह जानने का प्रयास किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में वनोन्मूलन के लिए ग्रामीण निर्धन लोगों को कारक मानने वाली नैरेटिव क्यों इतने प्रचलित रहे हैं। Dorward (2018) ने राजस्थान राज्य में कृषि की प्रमुख समस्या, जल की कमी, के संदर्भ में किये अनुसंधान में यह देखने का प्रयास किया कि किस प्रकार व्यक्तिगत तथा सामूहिक यादें, तथा भूतकाल की चरम घटनाओं का अनुभव जलवायु के खतरों के वर्तमान अर्थ एवं भविष्य की आशाओं को निर्धारित करते हैं। सामाजिक असुरक्षा  (Vulnerability) की भावना को समझने में उन्होंने जल की कमी सम्बन्धी स्थानीय अवबोधों (एवं परिवारों के अंदर तथा परिवारों के बीच उनकी परिवर्तनशीलता) की भूमिका के महत्व को भी प्रतिपादित किया।

Convery et al.(2012) के संपादित कार्य में बतलाया कि ग्रामीण स्थल तथा भूमि के मध्य मूलभूत लंबा संबंध पाया जाता है जबकि नगरीय क्षेत्रों में भूमि से प्रत्यक्ष जुड़ाव नहीं होता है। ग्रामीण लोग भूमि पर रहते, कार्य करते, उसका पालन पोषण करते एवं भूमि को भली प्रकार समझते हैं।

Sutton & Anderson (2010) ने सांस्कृतिक पारिस्थितिक  (Cultural ecology) के अपने अध्ययन में इस विषय को मानव पारिस्थितिकी एक शाखा के रूप मानते हुए इस रूप में परिभाषित किया है कि पृथ्वी के विभिन्न पर्यावरणों में मानव किस प्रकार रह रहा है उन्होंने विश्व के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की प्रकृति आधारित अर्थव्यवस्थाओं का विस्तृत वर्णन भी अपने अध्ययन में प्रस्तुत किया है। Thompson (2010) ने 21वीं सदी में अमेरिकी कृषि के दो संगठनात्मक संरचनाओं की ओर विकास की प्रवृति को उजागर किया है। एक सिरे पर औद्योगिक कृषि है जिसमें मुख्य कृषि रसायन एवं उपकरण निर्माण कंपनियों, खाद्यान्न प्रसंस्करण कंपनियों, मुख्य क्रियाना एवं रेस्त्रां की शृंखलाएं तथा विशालतम फार्म उत्पादक शामिल हैं। दूसरे सिरे पर वैकल्पिक/टिकाऊ कृषि है जिसमें कार्बनिक व प्रादेशिक उत्पादों का जाल, NGO एवं सामान्य खाद उपभोक्ता आते हैं। Burke & Pomeranz (2009) की संकलित रचना में औपनिवेशिक काल में भारत में भूदृश्य तथा पारिस्थितिकी के इतिहास का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। Adelson et al.(2008) ने पर्यावरणीय अध्ययन की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए यह प्रश्न किया कि हम पृथ्वी का किस प्रकार उपयोग करे ताकि उसका उचित दोहन भविष्य में भी जारी रहे। उनके अनुसार इसका जवाब पर्यावरणीय साक्षरता में है क्योंकि पर्यावरणीय शिक्षा प्रत्येक बच्चे की जाग्रति के स्तर को एक निश्चित रूप दे सकती है तथा प्रत्येक प्रौढ़ के कार्यों को निर्दिष्ट कर सकती है। उन्होंने पर्यावरणीय के विभिन्न तत्वों की वर्तमान स्थिति का भी विवेचन किया है। जनसंख्या वृद्धि के साथ आधिकाधिक सीमांत मृदाएं कृषित हो रही है जिससे ऐसी मृदाएं अवकृषण तथा अपरदन संभावित हो जाती है। Bhattacharya & Innes (2008) ने दक्षिणी, मध्यवर्ती तथा पश्चिमी भारत में जिलास्तरीय आंकड़ों का प्रयोग करके जनसंख्या वृद्धि एवं पर्यावरणीय परिवर्तन का अध्ययन, उपग्रह आधारित वनस्पति सूचकांक के उपयोग के माध्यम से किया है उनका निष्कर्ष है कि पर्यावरणीय अवकर्षण के कारण ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि होती है तथा गांवों की ओर प्रवास होता है दूसरी ओर पर्यावरणीय सुधार से नगरीय जनसंख्या वृद्धि तथा नगरों की ओर अप्रवास होता है।

Summer (2005) आर्थिक वैश्वीकरण तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते प्रभाव को ग्रामीण समुदायों पर प्रभाव का विश्लेषण किया है। इसके प्रभाव में उन्होंने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, लिंग संबंधित तथा सांस्कृतिक प्रभावों को लेते हुए इसके नकारात्मक पहलुओं को उजागर किया।  Belshaw (2001) ने इस बार पर गौर किया है कि पर्यावरण एवं पर्यावरणीय मुद्दे किसे कहा जाए तथा पर्यावरणवादी कौन होता है। उन्होंने पर्यावरणीय समस्याओं के कारकों तथा गहरी पारिस्थितिकी (Deep Ecology) की अवधारणा को भी स्पष्ट किया। Deep Ecology को मानने वाला संसार को बदलने का उद्देश्य रखता है। EEU (1999) ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक में प्राकृतिक संसाधन पर्यावरण अर्थात् वन आवरण, चारागाह, भू-उपयोग, मृदाक्षरण जलग्रहण क्षेत्र विकास, पशु संसाधन एवं मत्स्यन, खनिज, औद्योगिक प्रदूषण व नगरीय पर्यावरण की दशाओं का आंकलन प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार सरकारी निष्क्रियता के कारण प्राकृतिक संसाधनों तथा स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर जन-आंदोलन उत्पन्न हुए। Natsoulas (1989) ने अवबोधन के पारिस्थितिकीय उपागम में अवबोधित तथ्यों की विषयवस्तु के स्थान का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उनका उद्देश्य अवबोधित सामग्री के स्वरूप के साथ-साथ अवबोधन संबंधी पारिस्थितिकीय उपागम दोनों का विकास करना था। Zube (1986)  ने पर्यावरणीय परिवर्तन के अवबोध तथा उसके प्रति प्रतिक्रिया के संबंध में अनुसंधान साहित्य का विवरण किया है। इसमें नगरीय तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में परिवर्तन का अध्ययन प्राकृतिक एवं मनोरंजन से जुड़े पर्यावरण, कृषि, ग्रामीण विकास तथा ऊर्जा उत्पादन से जुड़ा था। Hill & Bray (1978) के संपादित कार्य में हॉग-कॉग में कृषि एवं नगर विकास के प्रभाव, ग्रामीण पर्यावरण पर विकास के प्रभावों, पर्यावरणीय शिक्षा में कृषि भूगोल की भूमिका जैसे कई मुद्दों पर अलग-अलग लोगों के लेखों का संग्रह प्रस्तुत किया है।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र की भौगोलिक अवस्थिति:

भारतीय उपमहाद्वीप के मरूस्थल को थार रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है जो कि भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। इसी मरूस्थल के अन्तर्गत राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में बीकानेर जिला विस्तृत है। जिसका विस्तार 27011’ से 29003’ उत्तरी अक्षांश व 71051’ से 74012’ पूर्वी देशान्तर तक है।


चित्र-1: अध्ययन क्षेत्र की अवस्थिति

बीकानेर की स्थापना 1488 ई. में राव बीकाजी ने की थी। बीकानेर जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 27,244 वर्ग किमी. तथा जनसंख्या 23,63,937 (2011) है। पूगल तहसील का क्षेत्रफल 3,276.64 वर्ग किमी. एवं जनसंख्या 67,123 तथा नोखा तहसील का क्षेत्रफल 3,802.97 वर्ग किमी. एवं जनसंख्या 4,36,876 सम्पूर्ण जिले के क्षेत्रफल का 99.45% भाग ग्रामीण क्षेत्र तथा 0.55% भाग नगरीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

परिकल्पना 1. अध्ययन क्षेत्र के सिंचित एवं बारानी गांवों में फसल संयोजन का प्रारूप भिन्न-भिन्न है।
2. अध्ययन क्षेत्र में कृषि फसलों का तुलनात्मक अध्ययन।
सामग्री और क्रियाविधि
अध्ययन विधि एवं सूचना स्रोत: इसके अंतर्गत अध्ययन क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि फसलों के कारकों के प्रतिरूपों की जानकारी जुटाई गई। कृषि की रबी व खरीफ फसलों की स्थिति को जानने के लिए खासतौर पर प्राथमिक आंकड़ों एवं सूचनाओं का प्रयोग करते हुए अर्द्धशुष्क नोखा तहसील तथा शुष्क पूगल तहसील के चार-चार यादृच्छिक रूप से चयनित कुल आठ गांवों में अनुसूची आधारित प्राथमिक क्षेत्र का अध्ययन किया। इन आठ ग्रामों में से चार गांव सिंचित तथा चार ग्राम वर्षा आधारित थे। यह आनुभविक अध्ययन वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक एवं तुलनात्मक प्रकार का है।
परिणाम

उत्पादन क्षेत्र की दृष्टि से सकल सर्वेक्षित ग्रामों की रबी की मुख्य फसलों में गेहूं के उत्पादन क्षेत्र का अनुपात 35.41 प्रतिशत, चने का 36.62 प्रतिशत तथा सरसों 27.95 प्रतिशत पाया गया। पूगल के सिंचित भागों में उत्पादन क्षेत्र के अनुसार मुख्य फसलें क्रमशः गेहूं (37.30 प्रतिशत), चना (35.60 प्रतिशत) तथा सरसों (27.10 प्रतिशत) हैं। दूसरी ओेर नोखा के सिंचित भाग में चना (37.1 प्रतिशत), गेहूं (34.5 प्रतिशत) व सरसों से अधिक महत्त्वपूर्ण है (सारणी 1 व आरेख 1)

अध्ययन क्षेत्र में खरीफ की मुख्य फसलों में ग्वार का उत्पादन क्षेत्र 38.86 प्रतिशत, बाजरे का 28.22 पतिशत, 25.59 प्रतिशत मोठ तथा 7.31 प्रतिशत के साथ सबसे कम मूूंगफली का उत्पादन क्षेत्र पाया गया। जो केवल सिंचाई युक्त भूमि में ही होती है। असिंचित भागों की उत्पादन क्षेत्र अनुसार मुख्य फसलें ग्वार (39 प्रतिशत), बाजरा (32 प्रतिशत), व मोठ (28.9 प्रतिशत) हैं। जबकि सिंचित भागों में ग्वार (38.5 प्रतिशत) के बाद दूसरा स्थान मूंगफली (24.4 प्रतिशत) ले लेती है। इसी अनुपात में यहां बाजरे (19.4 प्रतिशत) व मोठ (17.8 प्रतिशत) की भूमिका घट जाती है। नोखा के असिंचित ग्रामों में बाजरे व मोठ का उत्पादन क्षेत्र करीब 80 प्रतिशत होता है तथा शेष क्षेत्र ग्वार का रहता है। पूगल के बारानी गांवों में ग्वार का उत्पादन क्षेत्र आधे से अधिक (53.8 प्रतिशत) रहता है, जबकि शेष भूमिका मोठ व बाजरे की है। नोखा के सिंचित भागो में फसलों के उत्पादन क्षेत्र का प्रारूप विविधतामूलक है (बाजरा, मोठ, ग्वार व मूंगफली युक्त)। नहर सिंचित पूगल में दो ही मुख्य मुद्रादायी फसलें (ग्वार 70 प्रतिशत व मूंगफली 30 प्रतिशत) उत्पादित की जाती है (सारणी 2 व आरेख 2)


निष्कर्ष अध्ययन क्षेत्र में आधे से अधिक छोटे (25 बीघा तक) कृषक हैं। गैर-सिंचित भागों में कृषि भू-स्वामित्व प्रायः सिंचित भागों से अधिक है। रबी फसलों के अंतर्गत कुल कृषित भूमि का 27.5 प्रतिशत ही रहता है। गैर-सिंचित क्षेत्रों में रबी फसल नहीं होती है। सिंचित क्षेत्रों में रबी फसलों का तीन-चौथाई आर्थिक मूल्य चना तथा सरसों फसलें प्रदान करती हैं, जबकि खरीफ फसल का आधा मूल्य मूंगफली से तथा करीब एक-तिहाई ग्वार से प्राप्त होता है। इस दृष्टि से बारानी क्षेत्रों में खरीफ फसलों के अंतर्गत मूंगफली का स्थान ग्वार, तथा ग्वार का स्थान मोठ फसल ले लेती हैं। नोखा के असिंचित ग्रामों में बाजरे व मोठ का उत्पादन क्षेत्र करीब 80 प्रतिशत होता है तथा शेष क्षेत्र ग्वार का रहता है। पूगल के बारानी गांवों में ग्वार का उत्पादन क्षेत्र आधे से अधिक (53.8 प्रतिशत) रहता है, जबकि शेष भूमि मोठ व बाजरे की है। नोखा के सिंचित भागोें में फसलों के उत्पादन क्षेत्र का प्रारूप विविधतामूलक है (बाजरा, मोठ, ग्वार व मूंगफली युक्त)। नहर सिंचित पूगल में दो ही मुख्य मुद्रादायी फसलें (ग्वार 70 प्रतिशत व मूंगफली 30 प्रतिशत) उत्पादित की जाती है।
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