P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- VII March  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
पोषणीय कृृषि विकास की संकल्पना रायसिंहनगर तहसील के सन्दर्भ में एक भौगोलिक अध्ययन
Concept of Sustainable Agriculture Development A Geographical Study in the Context of Raisinghnagar Tehsil
Paper Id :  17350   Submission Date :  04/03/2023   Acceptance Date :  17/03/2023   Publication Date :  25/03/2023
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गिरधारी लाल शर्मा
सहायक प्रोफेसर (वीएसवाई)
भूगोल विभाग
पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय
सीकर,राजस्थान, भारत
सारांश कृषि एक वृहद पारिस्थितिकी तंत्र हैं जिसमें कृषि सम्बन्धी अनेक प्रकार की प्रक्रियाएं सम्पन्न की जाती है। खेती का मानव जीवन के साथ अटूट सम्बन्ध रहा है। खेती के लम्बे इतिहास में अनेक परिवर्तन आए हैं। इसमें ससार में जनसंख्या की उदर पूर्ति के साथ में, रोजगार, स्वास्थ्य, मनोरंजन, शिक्षा व सांस्कृतिक त्यौहार रीति रिवाज आदि की आवश्यकताएं पूर्ण होती है। 20 वीं सदी में संसार शान्ति व्यवस्था, लोककल्याणकारी सुविधाओं से स्वास्थ्य व जीवन की गुणवत्ता बढ़ने से मृत्युदर में तीव्र गिरावट आई जिसके फलस्वरूप जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई। इससे खाद्य, वस्त्र, उद्योग मनोरंजन, व स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में कृषि संसाधनों की मांग भी गुणात्मक रूप से बढ़ने लगी। इसकी आपूर्ति विज्ञान व तकनीकी विकास के द्वारा रासायनिक कृषि करके की गई। इससे कृषि में उत्पादन 4 गुणा बढ़ने से इस क्षेत्र में हरितक्रान्ति आ गई। मानव ने पाश्चात्य संस्कृति के शोषण चकाचौंध कर देने वाली वैज्ञानिक पद्धतियों से कृषि के व्यावसायिक उपयोग की ओर आकर्षित हुआ। इससे कृषिगत आय में बढ़ोत्तरी हुई, लेकिन 1970 के बाद में फिर कृषि क्षेत्र में स्थायित्व दिखाई देने लगा। हाईब्रिड बीजों, रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का अपरिहार्य उपयोग करने से भूमि की पोषण क्षमता में गिरावट आने लग गई।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture is a large ecosystem in which many types of agricultural processes are carried out. Agriculture has an unbreakable relation with human life. There have been many changes in the long history of farming. In this, the needs of employment, health, entertainment, education and cultural festivals, customs etc. In the 20th century, due to the increase in health and quality of life due to world peace system, public welfare facilities, there was a rapid decline in the death rate, as a result of which the population increased explosively. With this, the demand for agricultural resources in the field of food, clothing, industry, entertainment, and health also started increasing qualitatively. It was supplied by chemical agriculture through the development of science and technology. Due to this, the production in agriculture increased by 4 times and green revolution came in this area. Man has attracted towards the commercial use of agriculture from the dazzling scientific methods of exploitation of western culture. Due to this, agricultural income increased, but after 1970, the stability in the agriculture sector again started appearing. Due to the inevitable use of hybrid seeds, chemical fertilizers and pesticides, the nutritional capacity of the land started declining.
Productivity per hectare started decreasing due to decrease in biological capacity of the land. The quality of the crops produced in agriculture started failing on the test of usefulness. After this, emphasis was started on traditional agriculture and organic farming processes by the intellectuals. According to the Human Development Report of the United Nations, about 1 billion people in the world have the means of feeding only once a day. Even more frightening is the situation in the countries of the continent of Africa, where many types of movements have taken place due to lack of food supply in the population. The entire human civilization came to a standstill due to the Covid-19 pandemic. In which 50 million people were killed in the world due to the spread of a virus and the health of billions of people was affected and life remained imprisoned in their homes. After this, the usefulness of organic agriculture started to be experienced. Today, the whole world is looking forward to the concept of sustainable agriculture development for the continuous development of agriculture for the needs and demand supply in the future, in which the future of human beings is being targeted cleanly, healthy and safe.
मुख्य शब्द पोषणीय - निरन्तर/स्थायी/धारणीय विकास, पारिस्थितिकी- प्राकृतिक, सास्कृतिक, जैविक घटकों का अन्तर्सम्बन्ध, कोविड-19 -एक वायरस जनित महामारी, जैविक कृषि -परम्परागत कृषि जिसमें जैविक खाद व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता हे, उदरआपूर्ति -पेट भरने के लिए, अपरिहार्य -आवश्यक। हरितक्रान्ति - कृषि क्षेत्र में विकास।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Sustainable Development, Ecology, Interrelationship of Natural, Cultural, Biological Components, Covid-19 - A Virus-Borne Pandemic, Organic Agriculture - traditional agriculture in which organic fertilizers and pesticides are used, subsistence - to feed For, indispensable - necessary. Green Revolution - Development in agriculture sector.
प्रस्तावना
भूमि की जैविक क्षमता घटने से प्रति हैक्टेयर उत्पादकता घटने लगी। कृषि में उत्पादित फसलों की गुणवत्ता उपयोगिता की कसौटी पर फेल होने लगी। इसके बाद बुद्धिजीवियों के द्वारा परम्परागत कृषि तथा जैविक कृषि प्रक्रियाओं पर बल दिया जाने लगा। संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 1 अरब लोगों के पास उदरपूर्ति के साधन दिन में केवल एक बार ही उपलब्ध रह पाते हैं। इसमें भी अधिक भयावह स्थिति अफ्रीका महाद्वीप के देशों की है जहां जनसंख्या में उदरआपूर्ति के अभाव में अनेक प्रकार के आंदोलन हुए हैं। कोविड-19 महामारी से सम्पूर्ण मानव सभ्यता थम सी गई। जिसमें एक वायरस के फैलने से संसार में 5 करोड़ लोग मारे गए तथा अरबों लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होने से जीवन घरों में कैद होकर रह गया। इसके बाद जैविक कृषि की उपयोगिता का अनुभव होने लगा। आज समस्त विश्व भविष्य में कृषि की आवश्यकताओं व मांग आपूर्ति के लिए कृषि के निरन्तर विकास के लिए संपोषणीय कृषि विकास संकल्पना की ओर आशाभरी नजरों से देख रहा है जिसमें मानव का भविष्य साफ स्वस्थ व सुरक्षित लक्षित हो रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य अनुसंधान एक क्रमबद्ध विज्ञान है जिसमें प्रयोगों के द्वारा प्राकृतिक व सांस्कृतिक घटकों के मध्य अंर्तसम्बन्धों का अध्ययन किसी ठोस व उपयुक्त लक्ष्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। इन लक्ष्यों के लिए शोधकर्ता के निम्न उद्देश्य रहे हैं:- 1. शोध एक क्षेत्र एक समांग व विलग कृषि प्रदेश है जहां पर भौतिक व सांस्कृतिक घटकों में समानता पाई जाती है। 2. प्रस्तुत शोध क्षेत्र के लोग लम्बे समय से खेती पर निर्भर रहते आए हैं। अपनी आर्थिक व सामाजिक आवश्यकताओं की आपूति कृषिगत संसाधनों से ही करते है। 3. रायसिंहनगर क्षेत्र में सिंचाई का स्रोत नहरी सिंचाई है लेकिन पूर्व में ये लोग कुओं पर भी निर्भर थे। नहरों से सिंचिंत क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है। 4. प्रस्तुत क्षेत्र में परम्परागत कृषि, रासायनिक कृषि में तब्दील हुई जिसके कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में गिरावट आ रही है। 5. प्रस्तुत शोध प्रदेश में रायसिंहनगर मण्डी सबसे बड़ी है जहां अधिकांश कृषि उपजों का विपणन कार्य होता है।
साहित्यावलोकन

जसबीर सिंह 1974 ई में भारत में कृषि प्रदेशों का वर्गीकरण किया। कृषि में परिवहन, भूमिउपयोग, हरितक्रान्ति की उपादेयता, खेती के पर्यावरणीय सम्बन्धों पर अनेक शोधपत्रों का प्रकाशन करवाया।

1. आर. सी. तिवारी व बी. एन. सिंह ने 1जनवरी 2016 को कृषि भूगोल पर एक पुस्तक प्रवालिका प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित करवाई, जिसमें कृषि पद्धतियों व कृषि पर मानव तकनीकी के प्रभावों का वर्णन किया।

2. हरेन्द्र कुमार सिंह ने 2020 ई. में कृषि भूगोल के मूल तत्वों पर एक पुस्तक का प्रकाशन राजेश प्रकाशन से करवाया जिसमें प्राकृतिक घटकों के साथ मानवीय घटकों के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या कृषि के सन्दर्भ में की खेती के निरन्तर विकास में पर्यावरणीय घटकों के प्रभाव को समझाया।

3. डाॅ. जी. एल. शर्मा 2020 ई. में खण्डेला क्षेत्र में घटते भूजलस्तर का कृषि प्रारूपों पर प्रभावों का एक भौगोलिक अध्ययन पर शोध किया तथा भूजल एवं कृषि संसाधन पुस्तक लिखी। इसमें मानव की अनुक्रियाओं के फलस्वरूप कृषि क्षेत्रों में डाॅर्क जाॅन में वृद्धि को परिलक्षित किया। अपनी पुस्तक में जैविक कृषि पर बल देते हुए भविष्य में खाद्यान्न आपूर्ति की निरन्तरता का आधार बताया।

4. शर्मा भारद्वाज ने 2021 में कृषि भूगोल पर नवीन संस्करण का प्रकाशन, रस्तोगी प्रकाशन जयपुर से करवाया इनके अनुसार रासायनिक कृषि ने कृषि की गुणवत्ता को समाप्त कर दिया है अतः कृषि की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए परम्परागत कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित करना आवश्यक हो गया है।

5. डाॅ. रश्मि एवं डाॅ. अनिल कुमार ने 2019 में बिहार का कृषि भूगोल पर शोध करते हुए यहां के कृषि प्रतिरूपों पर नगरीयकरण व औद्योगीकरण के प्रभावों की विस्तृत व्याख्या करते हुए रासायनिक कृषि का बिहार की कृषि पर प्रभावों को स्पष्ट किया।

मुख्य पाठ

रायसिंह नगर तहसील गंगा नगर के पश्चिम भाग में अवस्थित है। यह प्रदेश सिन्धु नदी के अपवाह तंत्र का ही भाग है। प्राचीन समय में यहाँ दृष्द्वती, सरस्वती नदी प्रवाहित होती थी। यह सिन्धु नदी की ही सहायक नदी थी। कालान्तर में सरस्वती नदी का अपहरण हो जाने से अग्र भाग सूख गया। यह तहसील भी थार के महान मरू प्रदेश में परिवर्तित हो गई। सन् 1927 ई. में महाराजा गंगासिंह के द्वारा गंगनहर के आ जाने के बाद यहां कृषि विकास को गति मिली। इसके बाद से यह कृषि प्रधान प्रदेश के रूप में अवस्थित है। जो सिन्धु नदी के महान मैदानी भाग का ही क्षेत्र है। आज गंगनहर की बीकानेर शाखा के पानी से रायसिंह नगर तहसील की भूमि सिंचिंत होती है।

रायसिंह नगर तहसील की आकृति विषम कोणीय चतुर्भुज के समान है। यह इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान देश की सीमा से सटी हुई है। पाकिस्तान में पंजाब के बहावलपुर जिले की सीमा स्पर्श करती है। इसके उत्तर में करनपुर, त्तर व उत्तर-पूर्व में पदमपुर, पूर्व में सूरतगढ़, दक्षिण-पूर्व व दक्षिण में विजयनगर, दक्षिण में अनुपगढ़ तहसील सीमा बनाती हैं।

रायसिंह नगर गंगानगर में नगरपालिका व तालु का मुख्यालय है। इसकी औसत उँचाई सागर तल से 252 मीटर (830 फीट) पर स्थित है। नगर के दक्षिण-पश्चिम भाग में मैदानी बालु मृदा का भाग है। उत्तरी-पूर्वी भाग में गंगनहर के द्वारा सिंचाई करके सघन कृषि की जाती है। रायसिंह नगर तहसील में कुल 47 ग्रामपंचायतों में 408 गांव हैं। नगरपालिका की जनसंख्या 2011 के अनुसार 28380 है। जबकि तहसील की जनसंख्या 196,455 है। अर्थात अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है।

रायसिंह नगर तहसील में प्राचीन समय में पवांर समुदाय का बहुमत था। इसके कारण ही इस प्रदेश को पंवार सर के नाम से संबोधित किया जाता था। इसी कारण यहां से गुजरने वाली गंगनहर की शाखा को पी एस नाम दिया गया। बाद में यह प्रदेश राजा रायसिंह के नाम पर रायसिंह नगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

रायसिंह नगर तहसील तक पहुँचने के लिए उत्तर-पश्चिम रेलमार्ग गंगा नगर बीकानेर मार्ग पर 81 किमी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। राजस्थान के सबसे बड़े मार्ग NH 911 पर गंगानगर से 70.3 किमी की दूरी पर स्थित है। यह अध्ययन क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से एक विलग प्रदेश है। जहां प्राकृतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक विविधताएं पाई जाती हैं। अतः भौगोलिक सर्वेक्षण के लिए अनुकूल दशाएं पाई जाती हैं।

सामग्री और क्रियाविधि
शोध कार्य करने के समय में शोधकर्ता के दिमाग में एक विशिष्ट आंकडा़े का स्वरूप होता हे। जिसमें शोधकर्ता द्वारा क्षेत्र भ्रमण करके क्षेत्र का अवलोकन किया गया। इसमें लोगों के यादृच्छिक चयन के द्वारा साक्षात्कार, प्रश्नावली, अनुसूची आदि के द्वारा प्राथमिक आंकड़ों का संग्रहण किया गया। इसके अलावा मृदा किट, वायुफोटो चित्रो के द्वारा क्षेत्र का सम्पूर्ण अवलोकन करके आंकड़ों का संकलन किया गया है। द्वितीयक आंकड़ों के रूप में रायसिंहनगर क्षेत्र पर लिखित पुस्तकों, लेखों, पत्र, पत्रिकाओं की सहायता से आंकड़ों का संकलन किया गया है। पटवारी, ग्राम सेवकों द्वारा वार्षिक रिपोर्ट आदि का सहारा लिया जाता है। इन्टरनेट तथा संचार के अन्य साधनों से भी आंकड़ो का संग्रहण किया जाता है।
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी

इस प्रकार प्राथमिक व द्वितीयक आंकड़ों का संकलन करके विश्लेषण व संश्लेषण क्रिया के द्वारा क्षेत्र में आरेख व मानचित्रो सहित क्षेत्र के विषय को पूर्ण स्पष्ट किया गया है।


विश्लेषण

रायसिंह नगर तहसील में घग्गरव दृश्द्वती नदियों का प्रदेश होने से जलोढ़ मृदा की अधिकता होने से लम्बे समय से कृषि से घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। कार्बोनिफेरस युग के बाद में घटित आन्तरिक व प्लेट विवर्तनिक शक्तियों के फलस्वरूप यह प्रदेश टेथिस महासागर से उन्मज्जन से निर्मित है। यह प्रदेश धीरे-धीरे ऊपर उठने से शुष्क जलवायु दशाओं में परिवर्तित होकर वायुढ प्रक्रम से रेत के महान समुद्र में तब्दील हो गया। गंगनहर के आ जाने से यहां सिंचाइ्रसु विधाएं मिली जिससे यह प्रदेश पुनः अन्नागार पद स्थिति को प्राप्त कर सका है।

प्रस्तुत प्रदेश में भारत के स्वतंत्रता के बाद में पंचवर्षीय योजनाओं का संचालन करके यहां गहन कृषि विकास कार्यक्रम की शुरूआत की गई इसमें कृषि क्षेत्र में हाईब्रिड बीजों का प्रयोग किया गया। सन् 1966-67 में एम. एस. स्वामीनाथन के प्रयासों से मैक्सिकों में उन्नत बीजों के समान भारत में भी बीजों का उत्पादन करने के लिए गंगानगर के सूरतगढ़ में एशिया का सबसे बड़ा कृषि फार्म स्थापित किया गया। इसमें रूस भारत के वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयासों से कृषि के लिए उन्नत बीजों का उत्पादन किया गया। इनका वितरण सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को न्यूनतम दर पर उपलब्ध करवाए गए।

प्रस्तुत शोध में प्रदेश में सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ाया गया, इसके लिए दिल्ली के पास गुड़गांव में देश का सबसे बड़ा इफको रासायनिक खाद का उद्योग लगाया गया उसके बाद में भी रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती मांग को देखते हुए कोटा के गड़ेपान में श्रीराम फर्टीलाईजर्स लिमिटेड उद्योग स्थापित किया गया। इससे कृषिगत जरूरतों को पूरा किया जाता है।

शोध क्षेत्र में कृषि में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि हुई है। पंचवर्षीय योजनाओं व जनजागरूकता के कारण खेती में डीएपी, यूरिया, अमोनिया व नत्रजन खादों के उपयोग में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे भूमि की जैविक क्षमता घटने से प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में निरन्तर गिरावट आ रही है। यूरिया उर्वरक का सर्वप्रथम उपयोग यूएसए के द्वारा किया गया तथा इसके द्वारा ही सबसे पहले पूर्णतया प्रतिबन्ध लगा दिया है क्योंकि इससे एक दो बार तो उत्पादन में वृद्धि होगी लेकिन आगे से प्रति हैक्टेयर उत्पादकता  में निरन्तर कमी आने लगी।

प्रस्तुत शोध प्रदेश में पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण भागीदारी से नहरों व उपनहरों, सहायक नहरों के निर्माण, मोगा, पटड़ा, कच्ची-पक्की नालियों के निर्माण कार्य किये गये। केन्द्र व राज्य के 75:25 के अनुपात में आपसी सहयोग राशि जुटा का मनरेगा कार्यक्रम के तहत निर्माण कार्य सम्पन्न करवाये गये। इससे कृषि क्षेत्र में बेरोजगारों को काम मिलने से उनकी प्रतिव्यक्ति आय व जीवनस्तर में बढ़ोत्तरी हुई है।

नहरों में टूट-फूट होने चूहो, सांप व चीटियों के बिल बनाने से आस-पास की निम्न भूमि में जलरिसाव हो जाता है। इससे दलदल व सेम की समस्या उत्पन्न हो रही है। बहुत से भागों में जल के भराव से मृदा में अम्लीयता बढ जाती है। इससे पीएच मान गिरने से भूमि बंजर हो जाती है। ऐसा बारिश के समय में बारिश के पानी के साथ में उर्वरक व कीटनाशक भी बहकर आ जाते हैं जिसके कारण से जल की अम्लीयता भी बढ़ जाती है। इससे भूमि का निम्नीकरण बढ रहा है। नहर के आस-पास रास्तों में जल भराव की समस्या के कारण आवागमन के साधन भी अवरूद्ध हो जाते हैं। 

प्रस्तुत शोध प्रदेश में खेतों का आनुवंशिक बंटवार होने से खेतों में जोत का आकार छोटा होता जा रहा हैं इससे यहां 0.1 हैक्टेयर के खेतों की संख्या बढ रही थी सरकार ने इस समस्या का निराकरण करने के लिए चकबन्दी योजना शुरू की गई जिसमें गांव की जमीन को एक जगह करके बिखरे हुए खेतों को जोड़ा गया। नहरों के पास के खेतों में किसान आवश्यकता न होने पर भी खेतों को पानी से भरते रहते हैं। इससे यह पानी भूमि के नीचे की परतों में जाकर नमक घोलकर केशिकाक्रिया द्वारा ऊपरी परतों में जमा हो जाते हैं। इससे भूमि में लवणों की मात्रा बढ़ने से भूमि बंजर हो रही है।

प्रस्तुत शोध प्रदेश में गहन कृषि विकास कार्यक्रम लागू करने के बाद नहरों के सहारे न केवल वृक्षारोपण करके ग्रीन नर्सरियां विकसित की गई है वरन् नहरों के समानान्तर सीधी सड़कों का निर्माण भी करवाया गया है। जिससे कम लागत पर कम समय में आसानी से परिवहन करके क्षेत्र में गतिशीलता बढ़ाई जा सकेगी। इस प्रदेश से सीमा सड़क संगठन के द्वारा रसद सामग्री पहुंचाने के लिए एन एच 15 बनाया गया जिससे इस प्रदेश में दिल्ली-मुम्बई के मध्य परिवहन गतिशीलता बढ़ने से क्षेत्र में रोजगार व कृषि संसाधनों के विकास को गति मिली है।

शोध क्षेत्र में कृषि आधुनिकीकरण से कृषि मे गहन कृषि विकास कार्यक्रम लागू किया गया इसके लिए बीजों में कीटनाशक मिलाकर बीजाई की जाती है। इससे प्रदेश में भूमि में दीमक कीड़े-मकोड़े व केंचुए, गुबरैले खत्म होने से भूमि की उपजाऊ क्षमता घट गई है। गहन कृषि से भूमि में फसलों की बार-बार बुवाई व एक ही फसल की बुवाई करने से भूमि की जैविक क्षमता घट गई है। उपजाऊ भूमि में कृषि क्रियाओं से भूमि के ढ़ीली होने पर हवाओं के द्वारा बालू के टीली बना दिए जाते है। उपजाऊ भूमि पर बालू मृदा के जमाव से भी भूमि का निम्नीकरण बढ़ रहा है।

भूमि में जैविक कृषि परम्परागत कृषि का ही आधुनिक रूप है। इसमें रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट खाद का उपयोग किया जाता है। इसमें एक छोटे गड्डे में आक नीम की पत्तियां गोबर डालकर सड़ाकर कम्पोस्ट खाद तैयार करते है। बायो ऊर्जा में बायो गैस बनाकर भी शेष गोबर को खाद के रूप में काम में लिया जा सकता है। बारिश से पूर्व खेत में ढैंचा या घास उगाकर हार्वेस्टर्स होय ऐरा से कटाई करके खेत में हरी खाद की आपूर्ति करके भूमि के उपजाऊपन को बरकरार रख सकते है। विषैले कीटनाशकों के स्थान पर नीम की पत्तियों आक व गोमूत्र का उपयोग किया जा सकता है। इससे प्रदेश के पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा प्रभाव नही पड़ेगा।

इससे प्रदेश में उत्पादन धीमी गति से होता है। लेकिन भूमि की उत्पादकता लम्बे समय तक बनी रहती है। फसलों में कीटनाशक व उर्वरकों से भूमि की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। इसकी जैविक गुणवत्ता बढ़ने से लम्बे समय तक संपोषणीय विकास की संकल्पना पूर्ण हो जाती है।

निष्कर्ष उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि क्षेत्र में कृषि में आधुनिकीकरण प्रक्रियाओं से मृदा का निम्नीकरण बढ रहा है इससे भूमि की क्षमता, प्रति हैक्टेयर उत्पादकता घट रही है। अतः संपोषणीय, धारणीय, स्थायी विकास की अवधारण के लिए जैविक कृषि को अपनाना ही श्रेयस्कर है।जैविक कृषि में भूमि की पोषण क्षमता बनी होने से दीर्घकाल तक बिना किसी नुकसान व बिमारियों के उपयोग किया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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