P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- VII March  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
उदयपुर के समकालीन मूर्तिकारों की सृजनात्मकता
Creativity of Contemporary Sculptors of Udaipur
Paper Id :  17357   Submission Date :  15/03/2023   Acceptance Date :  22/03/2023   Publication Date :  25/03/2023
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सचिन दाधीच
अतिथि सहायक आचार्य (विद्या. संबल योजना)
चित्रकला विभाग
सेठ मुरलीधर मानसिंहका राजकीय कन्या महाविद्यालय
भीलवाड़ा,राजस्थान, भारत
सारांश मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है साथ ही जन्मजात किसी ना किसी प्रकार से कला में अपनी अभिव्यक्ति को प्रस्तुत कर रहा है कला के विकास के उचित अवसर आने पर कलाकार के मन में छुपे हुए अंतर्निहित शक्तियों को कला के माध्यमों का उपयोग कर कला की अभिव्यक्ति एवं सर्जन करता है। कला एवं कलाकार का हमेशा ऐसे ही एक ही सहज एवं सरल दृष्टिकोण लेकर कला का सर्जन किया है जिससे उसके द्वारा निर्मित मूर्ति सिर्फ आम आदमी तक को स्पष्ट रूप से समझने एवं उस कलाकृति के माध्यम में आनंद अनुमति प्राप्त कर लेता है चाहे वह ललित कला की दृश्य कला हो या चाहे मंच कला हो वर्तमान समय में कलाकार ने अपने माध्यमों को नवीन विषय एवं नवीन माध्यमों के साथ प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता को बढ़ाया है एवं साथ ही साथ विकास भी किया है कलाकार ने माध्यमों की गुणवत्ता एवं वातावरणीय फेरबदल को ध्यान में रखकर मूर्तिकला के माध्यमों का उपयुक्त चुनाव कर अपनी निज अभियुक्ति का सृजन कर रहा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Man is a social animal, as well as by birth, he is presenting his expression in art in one way or the other. When appropriate opportunities for the development of art come, the inherent powers hidden in the mind of the artist are expressed and created by using the mediums of art. Art and the artist have always created art by taking such a simple approach, so that the idol created by him can be clearly understood even by the common man and enjoys permission through that artwork, whether it is of fine art. Whether it is visual art or stage art, in the present time, the artist has increased the freedom to perform his mediums with new subjects and new mediums and has also developed along with the partner, keeping in mind the quality of the mediums and environmental alterations He is creating his own accusation by choosing the right mediums.
मुख्य शब्द जनजातीय कला, लोककला, शिल्पकला, सृजन, आधुनिक कला, पाषाण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Tribal Art, Folk Art, Craft, Creation, Modern Art, Stone Rulers of different sects have been dominant in various works of art in the Indian art world.
प्रस्तावना
ललित कला के क्षेत्र में मूर्तिकला माध्यम को एक व्यापक रूप में देखा जाता है। मूर्तिकला के प्राविधि को समझने के लिए आवश्यक हो जाता है, कि इस विद्या से जुड़े हुए संपूर्ण मध्य से आधुनिक कला की विचाराअभिव्यक्ति का प्रस्तुतीकरण कलाकार कर रहा है। प्राचीन काल से समसामयिक युग तक मानव अपने जीवन काल में निरन्तर नवीन प्रयोग करता आ रहा है। आदिमानव जहाॅ अपनी जरूरतों के अनुसार अपनी अभिव्यक्ति के नित नवीन माध्यमों को सम्मिलित करते थे। इसी प्रकार आज के मानव भी अपने जीवन के विचारों की अभिव्यक्ति को अभिव्यक्त करने के लिए कला के माध्यम से प्राचीन कला को ध्यान में रखकर नये एवं आधुनिक तकनीकी माध्यमों के द्वारा अपने विचारों एव आयामों को प्रदर्शित कर रहा है। जिससे समसामयिक कला में अपनी अभिव्यक्ति में नये-नये माध्यम मूर्तिकला में जुड़ते जा रहे हैं। मूर्तिकला में जहाॅ चूना पत्थर की दीवार, मिट्टी, हाथी दांत, हड्डी, सींग, चट्टाने आदि ही अभिव्यक्ति की साधन थी, वही आज की समसामयिक कला में पत्थर, सीमेन्ट, लकड़ी, कांस्य, फाईबर, टेराकोटा, स्क्रेप आदि में अनेक उदाहरण हमारे सम्मुख हैं। मूर्तिकला के माध्यमों द्वारा अभिव्यक्ति का आशय का अधिकार जो प्रत्येक मनुष्य का कला के प्रति जो नाता है, वही जाति राष्ट्रीयता मानवता एवं किसी सामाजिक समूह की कला अभिव्यक्ति हो सकती है, कला कलाकार की मानवीय गरिमा को एवं उपयोगी जीवन स्तर की उच्चतर अभिव्यक्ति को व्यक्त करती है। कला ना तो अर्जित की जा सकती है और ना ही किसी पर थोपी जा सकती है। कला परंपरागत, वंशानुगत एवं सहज अभिव्यक्ति द्वारा निर्मित की जा सकती है। कला विश्व के देशों की सुव्यवस्थित कला के रूप में अपने देश काल की परिस्थितियों के अनुरूप एवं संदर्भ के सार को ग्रहण कर एवं विसंगतियों को विभिन्न कालक्रमों में दूर कर आज शिक्षा, सामाजिक, संस्कृति, उपयोगी कला आदि के रूप में मुखरित हुई है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. भारतीय कला परम्परा के उद्भव व विकास में उदयपुर स्थित तत्कालीन भारतीय समकालीन शिल्पकला के अध्ययन करते हुए, उदयपुर के कलाकारो का कला के प्रति योगदान एवं अन्य कलाओं के प्रति उत्थान की पारदर्शिता व सजृनात्मक कार्यो का उपयुक्त पृष्ठभूमि प्रदान कर साथ ही भारतवर्ष की अन्य कलाओं को जीवन्त रूप प्रदान कर रहे है। 2. उदयपुर, राजस्थान के कलाकारों की तकनीकी एवं विषय संयोजन का अध्ययन करना। 3. मूर्ति शिल्प के निर्माण जैसे तक्षण कार्य का अवलोकन करना। 4. कलाकारों को मूर्ति शिल्प निर्माण के प्रति दृष्टिकोण एवं वर्तमान में मूर्तिकारों के कलाकर्मो को प्रस्तुत करना। 5. दृश्य कला में कार्य करने वाले छात्रों को उदयपुर में कार्यरत मूर्तिकार एवं कलाकारों के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाना।
साहित्यावलोकन

डॉ. मीनाक्षी काशीवाल, भारती मूर्ति शिल्प एवं स्थापत्य कला राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, 2021 में दृश्य कला की मूर्तिकला एवं स्थापत्य कला की शाखाओं से जुड़े हुए कला के विभिन्न काल, जन्म, रूप एवं आधुनिक कलाकारों की विवेचना एवं उनकी तकनीक विधान को एवं स्थापत्य कला से जुड़े राजस्थान के मंदिर, महल और गढ़ आदि के कलात्मक महत्व के शिल्पो को पुस्तक बद्ध किया है।

मेवाड़़ गौरव स्मारिका, 2014 मेवाड़ के कलाविद् वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति, उदयपुर, राजस्थान, 2014 प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने मेवाड़ में जन्मे एवं मेवाड़ में बस कर कला के क्षेत्र में अपनी कला एवं संस्कृति के पक्ष को ऊँचाइयों पर पहुंचाने वाले कलाकार एवं टख्मण-28 कला संस्थान के अध्यक्ष एवं कलाविद् सुरेश शर्मा की दृश्य कला के क्षेत्रों में किए गए प्रयासों एवं मेवाड़ अंचल में व्याप्त पाषाण खंडों की खदानों एवं उससे प्राप्त होने वाले विभिन्न संगमरमर से निर्मित शिल्प कलाकृतियों पर चर्चा की गई है।

सचिन दाधीच (शोधार्थी), कलाविद् प्रोफेसर सुरेश शर्मा (शोध निर्देशक), शिल्प कला के उन्नयन में पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र का योगदान (शिल्पग्राम उदयपुर के संदर्भ में अध्ययन), दृश्य कला विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थान, 2018, अप्रकाशित शोध ग्रन्थ में डॉ. सचिन दाधीच ने मूर्तिकला माध्यम पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा शिल्पकला से जुड़े हुए कलाकार, माध्यम एवं संस्थान द्वारा आयोजित होने वाले शिविरों के माध्यम से हो रहे कला के आदान-प्रदान एवं तकनीकी विषयों के बारे में जानकारी एवं शिल्पकला निर्माण एवं प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग के निर्माण का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया है।

राजस्थान पत्रिका, उदयपुर, राजस्थान में समय-समय पर कला एवं कलाकारों के प्रति प्रकाशित होने वाले लेखों में मूर्तिकला के लिए विशेष रूप से मेवाड़ के कलाकार पर प्रकाशित की जाने वाली सामग्रियों से शोधार्थी एवं युवा कलाकारों के प्रति होने वाली अभिव्यक्ति को प्रस्तुत एवं अवगत कराता रहा है, जिसकी जानकारी पत्रिका समूह, उदयपुर, राजस्थान द्वारा समय-समय पर दी जाती है।

मुख्य पाठ

भारतीय कला जगत के विभिन्न कलाकर्मों में भिन्न-भिन्न मतों के शासकों का प्राध्याय रहा    है। इनके धार्मिक पक्षों के साथ ही इस भूमि के कलाकारों ने लौकिक, धार्मिक, सामाजिक एवं प्रकृति जगत के पक्षों को अपनी कला सृजनता के माध्यमों में उत्कीर्ण किया है।

कलाकारों ने अपनी कला अभिव्यक्तियों को भित्तीयों, पाषाण, मिट्टी, काष्ट, फाइबर, सीमेंट-कंकरीट माध्यम में विराट स्वरूप प्रदान किया है। पूर्व में मूर्तिशिल्प व्यक्तिवादी न थे, वही आज वर्तमान में कलाकारों ने अपनी निज अभिव्यक्ति को प्रस्तुत कर अपनी कला को नई पहचान दी है।

मूर्तिकला, चित्रकला एवं परंपरागत कलाओं के सृजन कार्य के रूप में राजस्थान, उदयपुर के कलाकारों के कला जगत में कई रचनात्मक कार्य अनमोल एवं अविश्वसनीय है। जिसमें मूर्तिकला के क्षेत्र में ज्ञान सिंह, चंद्र प्रकाश चौधरी, दिनेश उपाध्याय, भूपेश कावड़िया, हेमंत जोशी, संदीप पालीवाल, रोकेश कुमार सिंह, गगन बिहारी, डॉ.सचिन दाधीच, मर्यादा सेठिया, ललन सिंह, बिंदु जोशी, अमित सिंह, पुष्पकांत त्रिवेदी आदि मूर्तिकारों का कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।

कला के आधुनिक युग का जन्म शताब्दी के प्रारंभ को माना जाता है, जो कि हमारे विचारों के परिवर्तनों का परिणाम ही आधुनिक काल की नव कला के लिए जन्म का मूल रही है। इन वैचारिक परिवर्तनों के फलस्वरुप कला साहित्य, संगीत आदि ललित कलाओं के क्षेत्र में नई चेतना का उदयीमान प्रारंभ हुआ।

आधुनिक कला की शुरुआत मुख्यतया यूरोप से मानी जाती रही है, यहीं से कला का आधुनिक रूप् परिवर्तनों के साथ भारतीय कला में प्रवेश हुआ। आधुनिक भारत में सांस्कृतिक, राजनैतिक, सामाजिक, जनजागृति लाने में मुख्य योगदान कला का ही रहा है तथा जिसके प्रति कला में नवीनता और खुली हुई उन्मुक्त विचारधारा की सोच का प्रयोग कर कला सृजन कर रहे है।

कलाकारों ने अपने अनुपम तपोवन की नई खोजों के माध्यम से अपनी अमूर्त भावनाओं को अपनी प्रस्तुतीकरण के रूप में प्रमुख स्थान दिया है, मूर्तिकार ने अगत्यात्मकता को तोड़कर आम आदमी की सोच के अनुरूप अपने मूर्तिशिल्पो के निर्माण में क्रियाशील गतिविधियों के सृजन से एक नया आयाम नई पीढ़ी को दिया है।

मूर्तिकला, दृश्य कला की त्रिआयामी कला जो कि श्रम साध्य कलाओं में से एक है। मूर्तिकला की सृजन अभिव्यक्ति के माध्यमों के रूप में पत्थर, धातु, मिट्टी, काष्ठ का उपयोग किया जाता है, किंतु वर्तमान में इसके माध्यमों में आधुनिकता की होड़ से सामग्रियों के रूप में आजादी प्रमुख रही है।


पाषाण खंडों में मूर्तिकला अन्य विनाशकारी सामग्रियों में कला के कार्यों की तुलना में कहीं बेहतर है, जो प्राचीन संस्कृतियों  के जीवंत साक्ष्य के रूप में अमूल्यता का द्योतक प्रस्तुत करती है। जिसे पाषाण खंडों के अनावश्यक पक्ष को हटाने से किसी ना किसी कथित अकथित आकारों में गढ़कर पाषाण को रूपगत किया जाता है।

इन पाषाण खंडों में कलाकारों का सृजन करने वाले कलाकारों की  सूची में ज्ञान सिंह, उदयपुर के वरिष्ठ मूर्तिकार ज्ञान सिंह जी को 1996 में ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया, उन्होंने कई मूर्तिकला प्रदर्शनी में अपनी भागीदारी प्रस्तुत की, ज्ञान सिंह जी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से परास्नातक पूर्ण करने के उपरांत वाराणसी से राजस्थान की झीलों की नगरी जो की पहाड़ी एवं चट्टानी क्षेत्र गिरवा, उदयपुर में आकर बस गए। कला संस्थान टख्मण-28 में मूर्तिकला के माध्यम पाषाण खंडों की उपलब्धि की दृष्टि से ज्ञान सिंह जी ने मूर्तिकला सृजन कार्य प्रारंभ किया।

मूर्ति सृजन में अपनी अभियक्ति को सुचारू रखने के लिए उन्होंने कई नौकरियों का प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर अपना स्वतंत्र मूर्तिकार के रूप में कलाकर्म करने के लिए अपने निजी कला स्टूडियो की स्थापना उदयपुर की पहाड़ी वादियों से घिरे नई गांव के निकट ज्ञानगढ़ पैलेस के नाम से की जो आज आपका कला कर्म का केंद्र है।

 

ज्ञान सिंह अपने हस्ताक्षर कार्य में बर्फ का पिघलना जिसे आपने पिघंलते पत्थरों के रूप में रूपान्तरित किया है। वही कमल की पंखुडियों के आकार, गणेश, खोपड़ी, पगड़ियाॅ, पत्तों की रचना, मशरूम, शिव, लंबे सिर वाले मुख मंडल, आदि कला कृतिया शामिल है।

ज्ञान सिंह ने कला का प्रारंभ काष्ट में फिर धीरे-धीरे संगमरमर में किया, आपने अनुभव किया कि लकड़ी का समय के साथ संगमरमर की तुलना में क्षतिग्रस्त होने की अधिक संभावना एवं आशंका है। ज्ञान सिंह अपने मूर्तिशिल्पो को अपने बच्चों की तरह निहारते-निहारते 66 वर्ष की आयु में आपने कलाकर्म को विराम कर दिया, लेकिन इनकी इच्छा है कि जीवन के अंतिम समय तक मूर्तिकला कर्म करते रहें।

सी.पी. चौधरी: चंद्रप्रकाश चौधरी मूलत श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा में जन्मे किंतु पाषाण खंडों में मूर्तिकला के कार्य करने की जिज्ञासाटख्मण-28 कला केंद्र में कलाविद् सुरेश शर्मा का सानिध्य प्राप्त कर, आपने टख्मण-28 में ही मूर्तिकला माध्यम में अपने कार्य की शुरुआत    की।

प्रारंभ में होने वाले कला शिविरो में आपने अपनी महत्वकांक्षी प्रवृत्ति से भारत वर्ष एवं विदेशो से आमंत्रित मूर्तिकारों के मूर्तिशिल्प निर्माण की बारिकीयों को देख आपने अपनी कला के प्रति जो उत्साह था, वही पाषाण खंडों में अभिव्यक्त किया।

इन्हीं पाषाण खंडों में आपने राष्ट्रीय ललित कला अकादमी, नई दिल्ली और राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर से पुरस्कार प्राप्त किया। आपने देश में कई कलाशिविरो में कलाकर्म से उत्साहित होकर कार्य किया। भारत वर्ष में होने वाली कला प्रदर्शनियों में भाग लिया तथा निज कला अभिव्यक्ति के शिल्पों को प्रदर्शनी द्वारा कला को प्रोत्साहित किया। आपके बनाए हुए शिल्पो में मछली, स्त्री, मां और बच्चा, ट्री-हेड, गणेश, मानवीय मुख की अभिव्यक्ति को संगमरमर के पाषाण खंडों में उत्कीर्ण किए।

सी.पी. चौधरी जी के कला संयोजन में कहीं-कहीं प्रकृति के सहज कारीगरी को अपने कलाकर्म में यथावत बनाए रखते हैं, जो आपकी कलाकृति के संयोजन के सौदंर्य के गुण को उजागर करती हैं।

भूपेश कावड़िया- शिल्पकला के क्षेत्र से जुड़े शिल्पकार भूपेश जी कावड़िया का जन्म उदयपुर, राजस्थान में हुआ। आप एक आत्म दीक्षित सहजसिद्, स्वतंत्रउन्मुक्त कला सृजनशील व्यक्तित्व वाले एक मूर्तिकार के रूप में आपने अपने शिल्पो के माध्यम से देश-विदेश में अपनी निज कला यात्रा का प्रारंभ टख्मण-28 कला केंद्र से किया तथा राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय कला शिविरों में पाषाण खंडों एवं स्टेनलेस स्टील के माध्यम से उत्कृष्ट मूर्तिशिल्प तैयार कर सार्वजनिक क्षेत्र में चार चांद लगाए खड़े हैं।

राज्य एवं राष्ट्री ललित कला अकादमी द्वारा सम्मानित भूपेश जी की कला जिज्ञासा का भाव भारतीय पुरखा कालीन कला एलोरा, अजंता, एलिफेंटा के मंदिरों की स्थापत्य कला को देख कर इनको प्रेरणा प्राप्त हुई।


पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आयोजित कार्यशाला शिविरों में अपनी प्रतिभा को पहचाना और कहा कि जब तक कि इंसान प्रस्तर खंडों से एक कलाकार का आपसी संवाद नहीं बन जाता तब तक वह एक पत्थर के समान ही है, जब संवाद आपका और आपके माध्यम से होगा तभी उत्कृष्ट मूर्तिशिल्प का निर्माण होगा जो उस बेजान पत्थर में जान फूंक देता हैं। आपने हृदय की असीम गहराइयों से उत्कृष्ट मूर्तिशिल्प की रचनात्मकता, निष्ठा, कार्यकुशलता के द्वारा आकारो में नूतनता एवं रचनात्मकता का प्रयोग दर्शकों को प्रभावित करता है, जो उनकी प्रतिभा का द्योतक हैं।

दिनेश उपाध्याय: उदयपुर के मूर्तिकार दिनेश उपाध्याय राजस्थान की जनजाति कला एवं संस्कृति से प्रभावित कलाकार हैं, जो माणिक्यलाल आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर, राजस्थान में कलाकार के पद पर कार्यरत रहते हुए, आपके मूर्तिकला के सृजित विषयों में जनजाति कला का पुट दिखाई देता है ,जो उनको अन्य कलाकारों की कृतियों से अलग जान पड़ता हैं। इनके कलाकर्म उक्त जनजाति कला के क्षणों को अभिव्यक्त करता दिखाई देता है, इससे यह जान पड़ता हैं की एक कलाकार विलुप्त होती कलाओं को समसामयिक कला सृष्टि के विषयों में जोड़ कर एक सृजनशीलता के द्वारा प्रतिपादित कर अपने मूर्तिशिल्पो द्वारा उपयुक्त कला को नव मंच पर प्रसिद्धि प्राप्त करवाता हैं। आपका भी उद्देश्य देश-विदेश में विलुप्त होती कलाओं को मूर्तिकला माध्यम में अभिव्यक्त करना तथा जनजातिय आंचल में व्यापत कला को सार्वभौमिक रूप से प्रदीप्तमान करना है।

 

संदीप पालीवाल:  मूर्तिकार संदीप पालीवाल का जन्म उदयपुर, राजस्थान में ही हुआ है। यहीं से आपने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर चित्रकला में डिग्री पूर्ण करने के उपरांत टख्मण-28 की शिल्पकला कार्यशाला में स्वतंत्र मूर्तिकार के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया, आपके स्वभाव के समरूप ही आपके शिल्पो में कोमलता ,आकर्षण एवं मनमोहक हाव-भाव की अभिव्यक्ति तथा पाषाण खंडों के संयोजन व सामंजस्य के तक्षण कार्य हतप्रद कर देता है।

 

मूर्तिकला के पाषाण खंडों के माध्यम में कला का सर्जन करना इन्हें उत्साहित और रोमांचित करता है, और इसीलिए आपके स्वभाव के सरल होते हुए भी कठोर माध्यम में अपनी स्वाभाविक अभिव्यक्ति का सृजन अनवरत करते आ रहे हैं। संदीप पालीवाल ने बेणेश्वर धाम, डूंगरपुर के बादल महल, गैप सागर झील एवं वही स्थित शहीद स्मारक उद्यान डूंगरपुर को अपनी सृजनात्मक अभियक्ति द्वारा सौंदर्यीकरण की एक नई दिशा में अग्रणी कार्य कर चुके हैं।

गगन बिहारी दाधीच: उदयपुर में जन्मे ख्याति प्राप्त शिल्पकार श्रीनाथजी की नगरी की पावन धरा के समीप स्थित मोलेला ग्राम में आपने सृजनात्मक अभिव्यक्ति को माटी से निर्मित शिल्पो में अभिव्यक्त कर रहे हैं। अपनी कला क्षमता से माटी से जुड़े हुए कलाकारों की प्रतिभा को आगे बढ़ा कर एक मंच पर स्थापित किया है। वर्तमान में विश्व भर के कलाकार मोलेला गांव में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय मृणशिल्प कार्यशाला में गगन बिहारी द्वारा अभियक्ति देने कलाकार लगातार सुदूर विदेशों से आते रहे हैं और आपसी कार्यशैली का आदान-प्रदान उनकी तकनीक का एक स्त्रोत गगन बिहारी द्वारा देश-विदेश में दिया जा रहा है। गगन जी वर्तमान को ध्यान में रखते हुए अपनी मृणशिल्प का स्टूडियो को अन्यत्र स्थापित कर वही माटी से शिल्पो का निर्माण कर रहे    है।


हेमंत जोशी: आप भी उदयपुर के प्रसिद्ध मूर्तिकार के रूप में टख्मण-28 में पाषाण खंडों में कला सृजन कार्य आरंभ किया और उदयपुर में स्थित आर.के. सर्कल, रेती स्टैंड चैराहा, उदयपुर, पाली, राजसमंद, बांसवाड़ा एवं उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप हवाई अड्डे का सौंदर्यीकरण इनके पाषाण शिल्पो से सुशोभित हैं। अथक कार्य कुशलता से सैकड़ों मूर्तिशिल्प का निर्माण कर चुके हेमंत जोशी जी जो जोश के साथ कठोर से कठोर पाषाण खंडों में मूर्तिशिल्प का निर्माण करने के लिए तत्पर से दिखाई देते हैं। आप देश-विदेश में आयोजित होने वाले कला शिविरों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के साथ कला को उच्च शिखर पर पहुँचाने के लिये निरंतर प्रयासरत दिखाएं देते हैं। आप पेशे से एक शिक्षक हैं साथ ही एक कलाकार होने से आपके आस-पास का वातावरण भी अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के द्वारा सुन्दर बनाने के लिये उद्घृत है। जिस विद्यालय में आज जोशी जी से अध्यापन कार्य करवा रहे हैं, वही विद्यालय के परिसर को वहां के भामाशाह के द्वारा सौदर्यात्मक रूप प्रदत कर रहे हैं।


राकेश कुमार सिंह: मूर्तिकार राकेश कुमार सिंह मूलतः टख्मण-28 के कलाकारों के सानिध्य में अपना मूर्तिशिल्प कार्य का प्रारंभ किया। भावाभिव्यक्ति को मूर्तिकला के विभिन्न माध्यमों में उत्कीर्ण कर प्रदर्शित किया हैं। आप पाषाण खंडों में छुपी हुई अमूर्त रूपकारों का सृजन बड़ी कुशलता से निरंतर करते हैं। आप देश में स्थापित विभिन्न कला केंद्रों व संगठनों में अपनी  कला की अमिट छाप अपनी कार्यशैली में गढ़े गए मूर्तिशिल्पो के माध्यम से छोड़ी। आपने कुछ ही समय में ललित कला अकादमी, जयपुर, राजस्थान द्वारा सम्मानित और विभिन्न सम्मान प्राप्त कर चुके राकेश कुमार सिंह ने हाल ही में जहांगीर आर्ट गैलरी, मुम्बई मैं अपने वन मैन शो विद वन स्कल्पचर की प्रदर्शनी को प्रतिपादित किया है, जो काफी सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।

 

डॉ. सचिन दाधीच:  मेरी कला एवं चित्रकला के प्रति बचपन से ही रुचि रही है। चित्रकला एवं मूर्तिकला में रुचि को देखकर डॉ. छगन पटेल ने कला की बारीकियों को समझाया एवं टख्मण-28 में प्रवेश दिलाकर मूर्तिकार सी.पी. चौधरी के निर्देशन में पाषाण खंडों में कार्य सृजन करने के लिए प्रेरित किया। स्नातक अध्ययन के दौरान राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर, राजस्थान राज्य कला पुरस्कार प्राप्त किया, मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर, नई दिल्ली भारत सरकार द्वारा फेलोशिप पुरस्कार मूर्तिकला में प्राप्त किया एवं राष्ट्रीय ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा मूर्तिकला में फैलोशिप प्राप्त की।


मेरे मूर्ति शिल्पो में अमूर्त मानव की विचारगत अभिव्यक्ति को प्रस्तुत किया साथ ही प्रकृति के स्वरूप में मानवीय कृतियों का उत्कीर्ण करता रहा हूं। सत्र 2019 में मोहनलाल सुखड़िया विश्वविद्यालय से दृश्य कला से प्रो. सुरेश शर्मा के निर्देशन में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की    है।

निष्कर्ष मूर्तिकारो के इसी क्रम में नसीम अहमद, पुष्पकांत त्रिवेदी, अमित सिंह, ललन सिंह, बिंदु जोशी, मर्यादा सेठिया आदि उदयपुर के प्रतिनिधि मूर्तिकारो के उल्लेख व उनकी कलाकृतियों की लंबी श्रृंखला अनवरत बनती आई हैं। मूर्तिकला के क्षेत्र में मेहनत एवं लगन से जो कला सृजन हुआ है, उसकी प्रेरणा भविष्य में आने वाली पीढ़ी इससे अभिभूत और लाभान्वित होगी और नव युवा पीढ़ी के लिए उत्तेजना का कार्य करेगी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. मीनाक्षी कासलीवाल “भारती” भारतीय मूर्तिशिल्प एवं स्थापत्य कला, राजस्थान, हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर - 2021 2. मेवाड़ गौरव स्मारिका -2014, मेवाड़ के कलाविद्, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति, उदयपुर, राजस्थान - 2014 3. सचिन दाधीच (शोधार्थी) कलाविद् सुरेश शर्मा (शोध निर्देशक) शिल्प कला के उन्नयन में पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र का योगदान (शिल्पग्राम, उदयपुर के संदर्भ में अध्ययन) दृश्य कला विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थान - 2018 4. मूर्तिकारों का साक्षात्कार, उदयपुर - 2022, 5. आर.बी. गौतम, राजस्थान की समसामयिक कला, राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर, 1989 6. गगन बिहारी दाधीच, मेवाड़ की मूर्तिकला व चित्रकला की शैलियों के साम्य पर एक दृष्टि (19वीं शताब्दी तक) (अप्रकाशित शोध प्रबन्ध), मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, 1991