ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IX December  - 2022
Anthology The Research
भारतीय अर्थव्यवस्था मे कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव
Impact of Globalization on Agriculture in Indian Economy
Paper Id :  17419   Submission Date :  13/12/2022   Acceptance Date :  23/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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विमलेश कुमारी
असिस्टेंट प्रोफेसर, विद्या संबल योजना (गेस्ट फैकल्टी)
ई.ए.एफ.एम. विभाग
श्री रतनलाल कँवरलाल पाटनी गवर्नमेंट पी.जी. कॉलेज, किशनगढ़,
अजमेर,राजस्थान, भारत
सारांश भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था है पिछले दो दशको से अधिक अवधि में औद्योगिकरण के संगठित प्रयास के बावजूद कृषि का गौरवपूर्ण स्थान बना हुआ है। विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय अर्थव्यवरथा का छठा स्थान है। देश की अधिकांश आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का आधारभूत स्तंभ है। यह क्षेत्र न केवल भारत की जीडीपी में लगभग 15% का योगदान करता है, बल्कि भारत की लगभग आधी जनसंख्या रोजगार के लिए कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है । कृषि की हीन दशा व कृषकों का रूढ़िवादी दृष्टिकोण, भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछडेपन का प्रमुख कारण है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Indian economy is in the sixth place of words largest economy. Majority of the country's population is dependent on agriculture for their livelihood. The agriculture sector is the mainstay of the Indian economy. Not only does this sector contribute about 15% to India's GDP, but almost half of India's population is dependent on the agriculture sector for employment. The inferior condition of agriculture and the conservative outlook of the farmers is the main reason for the backwardness of the Indian economy.
मुख्य शब्द भारतीय अर्थव्यवस्था, कृषि-प्रधान, कृषि, राष्ट्रीय आय।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Indian Economy, Agrarian, Agriculture, National Income.
प्रस्तावना
डा0 क्लाउडण्टन के अनुसार :- भारत में हमारी पिछड़ी जातियाँ तो है ही, पिछडे उद्योग भी है और दुर्भाग्य से इन उद्योगो में कृषि भी एक है। पंडित नेहरू ने कहा था – “Everything may wait but agriculture Cannot. There is nothing more important in India to-day than better agriculture”.
अध्ययन का उद्देश्य 1. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की प्रस्तावना की समीक्षा करना, 2. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका व महत्व का अध्ययन करना, 3. भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव का अध्ययन।
साहित्यावलोकन

वशिष्ठ वी. के. (2013-14):- ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मे कृषि का महत्व पूर्ण स्थान है। कृषि देश के लोगो के लिए जीविकोपार्जन का साधन ही नहीं हैबल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत में तीव्र औद्योगिक विकास होने के बावजूद भी कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है।

गुप्ताबी.पी एण्ड स्वामीएच आर (2009-10): ने बताया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि पर "वैश्वीकरण का प्रभाव" देखने को मिलता है। वैश्वीकरण के कृषि पर सकारात्मक व नाकारात्मक प्रभाव दोनो प्रभाव हुए है। भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की पद्धत्ति का भी उल्लेख किया है।

ओझाबी. सहल. (2015-16) : ने भारतीय कृषि की नवीन व्यूहरचना व हरित क्रान्ति का उल्लेख किया है और बताया है कि देश में अपनाने से कृषि पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है। हरित क्रान्ति अपनाने से कृषि के क्षेत्र में  बहुत परिवर्तन हुए है।

मुख्य पाठ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में भी कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में मुख्य कृषि वस्तुऐं जैसे: चाय, पटसन व सूती वस्त्र का निर्यात आय में हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक रहा तथा अन्य कृषि वस्तुओं जैसे काफी, तम्बाकू, काजू, वनस्पति तेल, चीनी इत्यादि को भी शामिल कर लिया जाए तो यह 70 से 75 प्रतिशत तक पहुँच जाता है। कृषि वस्तुओं पर अत्याधिक निर्भरता व्यापार असन्तुलन का मुख्य कारण रहा है। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के पश्चात् कृषि आयात में अवश्य वृद्धि हुई और खाद्य - तेलों का आयात भी बहुत बढ़ रहा है।

आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र का कार्यभाग

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व के और भी अनेक कारण है। भारत की परिवहन, रेलवे व सड़क मार्ग का अधिकांश व्यापार कृषि-वस्तुओं को लाने-ले-जाने में होता है। अंतर्देशीय व्यापार की वस्तुएँ भी मुख्यतः कृषि वस्तुएँ ही है। इसके अतिरिक्त, अच्छी फसल के कारण किसानो की क्रय शक्ति बढ़ जाती है जिससे उद्योग- निर्मित वस्तुओं की मांग और कीमतें बढ़ जाती है। परिणामतः उद्योगो की प्रगति होने लगती है। अतः यह स्पष्ट होता है कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, और कृषि की सम्पन्नता पर भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्धि निर्भर करती है। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप हाथ उत्पादकता से बहुत अधिक वृद्धि हुई है। इस सम्बंध में पंजाब व हरियाणा का मुख्य, उदाहरण है जहाँ कृषि आज भी शुद्ध राज्यीय घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत उपलब्ध कराती है। इस कारण राज्य के समग्र विकास को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है।

कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव

प्रत्येक देश के द्वारा देशो के साथ वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक सम्पदा का बिना किसी प्रतिबन्ध के आदान-प्रदान ही वैश्वीकरण कहलाता है। अन्य शब्दों में, किसी देश की अर्थव्यवस्था को अन्य देश की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने एवं उनके समक्ष प्रतिस्पर्धा क्षमता का विकास करने से है। वैश्वीकरण के कारण वित्त और बैंकिंग, व्यापार व राजकोषीय सम्बन्धो व मानवीय जीवन के तौर तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए है। इन परिवर्तनो ने भारतीय कृषि क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक व संस्थात्मक शक्तियों का निर्माण किया है। इन परिवर्तनों का भारतीय कृषि पर बहुत अधिक प्रभाव देखने को मिलता है तथा ये ग्रामीण क्षेत्र व जनजीवन व कृषि अपने भौगोलिक व सामाजिक सीमा को लांघकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से जुड चुकी है। अतः यह कहा जा सकता है कि कृषि से सम्बंधित आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, शैक्षिक, मनोरंजन, मनोवैज्ञानिक आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर विश्व को सम्बद्ध संस्थाओं व तकनीको से जोड़ दिया है लेकिन वर्तमान में वैश्वीकरण ने कृषि व व्यापार में विकसित व विकासशील देशों के बीच खाई बना दी है, जिसे मिटाना आवश्यक है वैश्वीकरण ने कृषि उत्पादन को अतीत की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ने की अनुमति दी है। कुछ दशको पहले तेजी से विकास प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत से अधिक था। अब, यह 4 से 6 प्रतिशत है। अर्थात् विकास की इस उच्च दरों में इसकी संरचना में काफी बदलाव शामिल है। वैश्वीकरण के कारण भारत के गरीब किसानो की समस्या का औद्योगीकृत देश में किसानों को ही जाने वाली सब्सिडी से सीधा सम्बंध है। वैश्वीकरण एक प्रक्रिया के रूप में भारतीय कृषि व्यवस्था को अनेक प्रकार से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। भारत आज भी किसानों का देश है। जिसकी कुल कार्यकारणी जनसंख्या का लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या किसान वर्ग की है। भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के कुछ सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव देखने को मिले है जो इस प्रकार है :

कृषि पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव

सकल राष्ट्रीय उत्पाद व कृषि विकास की दर में वृद्धि

भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला कृषि है देश की दो तिहाई जनसंख्या कृषि व कृषि  से सम्बंधित क्षेत्रों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। देश का आर्थिक विकास बिना कृषि विकास के सम्भव नहीं है। भारत में कृषि क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय बाजार मिलने से किसानों के उत्पादन में अधिक वृद्धि हुई है। नई तकनीक, बीज, कृषि पद्धतियों आदि में सुधार हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद में निरन्तर वृद्धि हुई है।

खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि

HYV प्रौद्योगिकी को अपनाने के कारण देश में खाद्यान्नों के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई   है। वर्ष 1965-66 में 8.8 मिलियन टन से बढ़कर 1991-92 में 184 मिलियन टन हो गया है। अन्य खाद्यान्नों की उत्पादकता में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई है। हरितक्रांति को अपनाने से गेहूं व चावल में तेजी से वृद्धि हुई लेकिन मोटे अनाज, दाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है परिणामस्वरूप भारत में खाद्यान का विशाल भंडार एकत्र हो गया। भारत वर्तमान में खाद्यान्न आयातक की बजाय निर्यातक देश हो गया है।

वैज्ञानिक कृषि को बढ़ावा

कीटनाशकों व उर्वरकों में आधुनिक कृषि तकनीकों की उपलब्धता के साथ-साथ खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए उच्च उपज वाली फसलों की नई नस्लों को नियोजित किया गया था। भारतीय बीज कार्यक्रम मुख्य रूप से बीज विविधता के लिए सीमित उत्पादन प्रणाली का अनुपालन कर रहा है। यह प्रणाली निम्नांकित तीन प्रकार के बीजो के उत्पादन की पहचान करती है : प्रजनक, मूल व प्रमाणीकृत बीज। 1966-67- में 19 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उन्नत किस्म के बीज बोए गये। यह क्षेत्र 1990-91 में 650 लाख हैक्टेयर हो गया है। पर्याप्त सिंचाई, कीटनाशको और उर्वरकों की उपस्थिति में HYVs ने पारंपरिक किस्मों से काफी बेहतर प्रदर्शन किया। और अब कृषि जीवनयापन का साधन न होकर व्यवसाय हो गया है।

कृषि शिक्षा एवं अनुसन्धान

नयी कृषि व्यूह रचना के अनुसार सरकार कृषि शिक्षा व अनुसन्धान कार्यों को भी बढ़ावा दे रही है। आज देश में कृषि विश्वविद्यालयों का विस्तार किया जा रहा है। कृषि अनुसंधान के लिए भारतीय अनुसन्धान परिषद है जो अपने अनुसन्धान केंद्रों व प्रयोगशालाओं के माध्यम से कृषि की नवीन किस्म विकसित करती रहती है। कृषि उत्पादकता में सुधार लाने, अनुसन्धान कार्यो के लागों को किसानों तक पहुँचाने व आधुनिक तकनीकी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए टीवी, रेडियो, इंटरनेट आदि का भी उपयोग किया जा रहा है।

व्यापार में हिस्सेदारी में वृद्धि

विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के कारण सभी देशों को समान अवसर प्राप्त होते है, इसलिए कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होती है। विश्व बैंक द्वारा प्रदान किए गए आंकडों के अनुसार, निर्यात में भारत का हिस्सा 1990 में 0.54% से बढ़कर वैश्वीकरण के पांच साल के भीतर 1999 तक 0.67% हो गया। इसी अवधि के दौरान भारतीय निर्यात में 103% की वृद्धि हुई।

कृषि निर्यात में वृद्धि

भारतीय बाजारों की तुलना मे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कार्य वस्तुओं की कीमतें अधिक है। यदि विकसित देशो ने अनुदान कर दिया, तो उन्हें कीमतों में वृद्धि करनी होगी। तो, भारतीय बाज़ार में निर्यात में वृद्धि होगी व कीमतें बढ़ेगी तो लाभ होगा। वर्ष 2006-07 में भारत ने 7.05 अरब डॉलर मूल्य की कृषि वस्तुओ का निर्यात किया जो देश के कुल निर्यात का 9.9 प्रतिशत था।

निर्धनता में कमी

यह भी सच है कि विकासशील देशों में वैश्वीकरण को आमतौर पर अमीर व गरीब के बीच की खाई को बढ़ाने के रूप में जाना जाता है। भारत की चिंता गरीबी को दूर करना है, जो मृत्यु से भी बदतर है, और यदि भारत प्रयास करता है, तो वैश्वीकरण इससे छुटकारा पाने की कुंजी हो सकता है। भारत में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों का प्रतिशत, निरन्तर घट रहा है। 1993-94 में 36 प्रतिशत से 2011-12 में 21.9 प्रतिशत हो गया है।

कृषि पर वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव

ग्रामीण किसानो की आय कम

यह विकासशील देशों में उन किसानों की आय को कम करता है जिन्हें सब्सिडी नहीं मिलती   है। और चूंकि विकासशील देशों में 70 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं, इसका मतलब है कि विकासशील देशों की आय कम है। लेकिन किसी भी मानक के अनुसार, आज की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था विकासशील देशों के लिए अनुचित है। (विश्व बैंक गरीबी का माप) के अनुसार औसत यूरोपीय गाय को प्रति दिन डॉलर 2 की सब्सिडी मिलती हैं। विकासशील देशो मे आधे से अधिक लोग इससे कम पर गुजारा करते हैं। इससे पता चलता है की एक विकासशील देश में एक गरीब व्यक्ति होने की तुलना में यूरोप में एक गाय होना बेहतर हैं।

ग्रामीण बेरोजगारी

वैश्वीकरण के द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी को बढ़ाया है। यन्त्रीकरण, विद्युतीकरण, परिवहन संसाधनों व छोटी जोतो ने बेरोजगारी को निरन्तर बढ़ाया है। वैज्ञानिक खेती से अदृश्य बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। श्रम व पशु प्रधान खेती के स्थान पर पूँजीवादी व मशीनीकृत खेती को बल मिला है।


अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करना

भारत में 60% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि पर यह दबाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सीमांत भूमि जोतने के कारण भारतीय किसानों की उत्पादन लागत अधिक होती है साथ ही कृषि उपज की गुणवत्ता और मानकीकरण की बहुत उपेक्षा की जाती है। इसके साथ ही सब्सिडी और अनुदान में कटौती ने कृषि क्षेत्र को कमजोर कर दिया   है। इसके विपरीत विश्व व्यापार संगठन द्वारा अनुदान में कटौती से पहले विकसित देशों ने बड़े पैमाने पर अनुदान वितरित किया था। उन्होंने 1988-1994 के दौरान कृषि में बड़े पैमाने पर अनुदान की राशि बढ़ाई थी। इसलिए अनुदान में कमी होने पर उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है। इस पृष्ठभूमि पर किसान अंतरराष्ट्रीय बाजार का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं।

कृषि आदनों व  लागत में वृद्धि

वैश्वीकरण के बाद देश में कृषि आदानो - बीज, उर्वरक, कीटनाशक दवाओं, सिंचाई आदि की लागत में काफी वृद्धि हुई है जबकि कृषि उत्पादों की कीमत में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है। आदानो एवं कृषि लागत में यह वृद्धि सिंचित क्षेत्रों में अधिक हुई है। अपनी उपज का उपयुक्त मूल्य प्राप्त नहीं होने तथा कर्ज के बोझ से डूबते जा रहे किसानों द्वारा समय-समय पर किसी न किसी राज्य में आत्महत्याएँ करने के समाचार आते रहते है, चाहे वह राज्य आंध्रप्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र हो।

क्षेत्रीय असमानता

वैश्वीकरण खाद्यान्न उत्पादन में क्षेत्रीय असमानता बढ़ी है। पिछले 40 वर्षो में हरियाणा, पंजाब, उत्तर-प्रदेश का खाद्यान्नों में हिस्सा 25 प्रतिशत 40 प्रतिशत हुआ है, वहीं दक्षिण क्षेत्र में आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक तमिलनाडु तथा पूर्व व पश्चिम मध्य का भाग 50  प्रतिशत से अंशदान घटकर लगभग 40 प्रतिशत रह गया है। उत्सा पटनायक के सर्वेक्षण के अनुसार प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन में भी उत्तरी क्षेत्र को छोडकर गिरावट दर्ज हुई है।

निष्कर्ष भारतीय कृषि क्षेत्र का एक अवलोकन इंगित करता है कि वैश्वीकरण ने भारत में वांछित परिणाम नहीं दिए। इसने गरीबी को कम करने और सामाजिक असमानताओं को दूर करने में बहुत कम योगदान दिया है। इस प्रक्रिया के वांछित उद्देश्यों को भारत में प्राप्त नहीं किया गया है। जहां तक कृषि क्षेत्र का संबंध है, अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि कर्मचारी भारतीय जनसंख्या का 60% है, फिर भी यह योगदान सकल घरेलू उत्पाद के केवल 15 से 20% तक भिन्न होता है। 1991 में वैश्वीकरण को अपनाने के बाद भारतीय कृषि विकास दर में वृद्धि हुई लेकिन वर्तमान में किसानों की अर्थव्यवस्था की स्थिति संतोषजनक नहीं है क्योंकि आदनों लागत अधिक है और उत्पादन लागत कम है। सब्सिडी में कटौती कृषि क्षेत्र के विकास में बाधक है। तीव्र औद्योगिक विकास के बावजूद भी भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का विशेष स्थान बना हुआ है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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