ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- XII March  - 2023
Anthology The Research
भारत में जल संसाधनों का उपयोग, बढ़ता जल प्रदूषण व बचाव के उपाय
Use of Water Resources in India, Increasing Water Pollution and Preventive Measures
Paper Id :  17216   Submission Date :  05/03/2023   Acceptance Date :  22/03/2023   Publication Date :  25/03/2023
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मंजू अवस्थी
एसोसिएट प्रोफेसर
अर्थशास्त्र विभाग
डी0बी0एस0 कॉलेज
,कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश यदि जल संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग एवं दोहन होता रहा तो भविष्य में पीने के पानी की उपलब्धता एक गम्भीर विश्व संकट के रूप में दृष्टिगोचर होगी। सिंचाई के लिए जल, बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अतिरिक्त, विद्युत तथा औद्योगिक उत्पादन की आवश्यकता के साथ-साथ अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के लिये अतिरिक्त प्रवाह की आवश्यकता होगी। परिणामतः नदियों एवं अन्य जलस्रोतों पर कूड़ा-करकट, मल-मूत्र आदि अपशिष्ट पदार्थों का भार बढ़ता जायेगा, जो जल प्रदूषण की भयंकर समस्या उत्पन्न कर देगा।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद If the water resources are utilized and exploited irrationally, the future generations will witness a crisis of pure drinking water. Besides drinking water, additional supply will be ensured for irrigation, electricity, industrial production and waste disposal. Disposal of waste in rivers and other water sources will create severe water pollution problems.
मुख्य शब्द जल संसाधन, जल प्रदूषण, जनसंख्या।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Water Resources, Water Pollution, Population.
प्रस्तावना
एक ओर इजराइल जैसे 25 सेमी0 औसत वार्षिक वर्षा वाले देश में जल का कोई अभाव नहीं है तो दूसरी ओर 114 सेमी औसत वार्षिक वर्षा वाले हमारे देश में प्रतिवर्ष किसी भाग में सूखा अवश्य पड़ता है। देश में जल की उपलब्धता और उसके स्वरूप के अनुसार समुचित जल प्रबंधन न होने के कारण ही वर्षा का जल नदी नालों में तेजी से बहकर समुद्र में चला जाता है जिसे वर्षा के बाद के लगभग नौ महीने देश के लिए पानी की कमी के होते हैं। ये ही मूल कारण हैं देश में जलीय अभाव के, जिसे हम उचित प्रबन्धन के द्वारा ही नियंत्रित कर सकते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य 1. जल संसाधानों की उपलब्धता की कमी को आम नागरिक तक पहुँचाना। 2. भारत में प्रतिवर्ष पानी के कारण होने वाली बीमारियों की वजह से नष्ट हो रहे जीवन को बचाना। 3. दुनिया में हर एक व्यक्ति तक स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना जहाँ पर पानी की उपलब्धता बहुत कम है। 4. बढ़ते हुए भौतिकवाद में जल प्रदूषण को निम्न करना तथा पानी में जाने वाले कचड़े को रोकना। 5. जल प्रदूषण नियन्त्रण कानून को समय समय पर संशोधित करना व उसका कड़ाई से पालन करना। 6. वर्तमान जनसंख्या को पानी के प्रति कमी को जानने के लिए प्रेरित करना व जल संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करना।
साहित्यावलोकन

1. वैज्ञानिक श्री सी0एस0 आउथविक ने लिखा है- कि मानवीय क्रियाकलापों तथा प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन ही जल प्रदूषण है।

2. बापू के बोल - पानी प्रकृति की ओर से मिला मानव मात्र के लिए ही नहीं वरन् पशु-पक्षी तथा वनस्पति के लिए भी अमूल्य उपहार है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाना है, सोंच-समझकर जरूरत के अनुसार ही काम में लो जल, संयम से बरतो। जब भोजन, वाणी-व्यवहार आदि में संयम का महत्वपूर्ण स्थान हे तो पानी के उपयोग में भी संयम बरतना जाना चाहिए।

दैनिक जागरण (मुद्दा) 20 मार्च, 2023:

22 मार्च विश्व जल दिवस

3. पिछले कुछ दशक से वैश्विक स्तर पर पानी की बढ़ती खपत और इस कारण से आसन्न संकट भी विमर्श का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों ने यहां तक चेताया है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी की कमी के कारण ही होगा। इसके बावजूद जल संरक्षण की दिशा में लोगों में गंभीरता का अभाव दिखता है। इस पर बातें तो खूब होती हैं कि क्या किया जाना चाहिए, लेकिन कोई अपने स्तर पर जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं दिखता है।

मुख्य पाठ

जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार प्रति व्यक्ति 17000 घनमीटर से कम उपलब्धता को पानी के अभाव का संकेत माना जाता है। एक आँकलन के अनुसार सन् 2025 तक भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1500 घनमीटर रहने की संभावना है। 2040 तक यदि हमारा देश विकसित राष्ट्रों की सूची में आना चाहता है, तो हमें ऊर्जा एवं अन्य संसाधनों के साथ-साथ प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता भी बढ़ाने के लिए प्रयास अभी से करने चाहिए।

पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग समुद्र से आच्छादित है। समुद्र के पानी का घनत्व साधारण पानी के घनत्व से अधिक होता है। इसका कारण यह है कि समुद्र के पानी में अनेक रासायनिक लवण मिले होते हैं। इसीलिए इसका पानी खारा होता है। स्वच्छ जल का घनत्व एक होता है और वह रंगहीन तथा स्वादहीन भी होता है। अनुमान है कि हर वर्ष के लगभग 150 अरब मन वस्तुएं नदियों के पानी में बहकर समुद्र में जा समाती हैं। इन वस्तुओं में केवल नमक ही नहीं वरन् तरह-तरह के खनिज पदार्थ भी होते हैं। समुद्र के एक वर्गमील पानी में ही एक अरब मन नमक मिल सकता है।

एक आँकलन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष पानी के कारण होने वाली बीमारियों की वजह से 7 करोड़ 30 लाख जीवन नष्ट हो रहे हैं। दूषित जल से होने वाली बीमारियों के इलाज का खर्च एवं उनसे होने वाली हानि का अंदाजा लगभग 600 करोड़ रूपये वार्षिक आँका गया है।

समुद्र के जल में कोबाल्ट, यूरेनियम, सोना, चाँदी, लोहा, निकिल, तांबा, जस्ता, मैग्नीज़ तथा मैग्नीशियम आदि धातु पाई जाती है। इसीलिए समुद्र को रत्नाकर कहा है। पृथ्वी का 97.3 प्रतिशत पानी महासागरों और अन्तर्देशीय सागरों में है। शेष 2.7 प्रतिशत हिमनदों, मीठे जल की झीलों, नदियों और भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है।

यह सत्य है कि पृथ्वी का दो तिहाई भाग जल होते हुए भी इसमें से मानव उपभोग योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। पानी की अपनी प्राकृतिक व्यवस्था है। पृथ्वी पर पानी की मात्रा लगभग सदा एक ही रहती है। एक जल चक्र है जो चलता रहता है। समुद्र से और धरती से पानी का वाष्पीकरण होता है। बादलों का रूप धारण करता है वर्षा या बर्फ के रूप में वापस पृथ्वी पर गिरता है और धरती पर नदी-नालों से बहकर वापस समुद्र में पहुँच जाता है, फिर वाष्प बनकर उड़ता है और पुनः धरती पर लौट आता है। सच पूछा जाए तो पानी ऐसी निधि है जिसे हम चाहकर भी नष्ट नहीं कर सकते। हम उसे दूषित कर सकते हैं। कालान्तर में प्रकृति फिर शुद्ध कर लेती है। जो मीठा पानी पृथ्वी पर उपलब्ध है उसमें भी केवल 7 प्रतिशत ही तरल रूप में है बाकी बर्फ के रूप में जमा है जो ध्रुवों पर और ऊँचे पर्वतों पर स्थित है। 0.7 प्रतिशत पीने के योग्य पानी में 0.6 प्रतिशत हमें भू-जल के रूप में उपलब्ध है और बाकी 0.1 प्रतिशत नदियों-झीलों में और वाष्प के रूप में हवा में।

दुनियां भर में साल भर में कुल 10 से 12 हजार एम0एच0एम0 पानी बरसता है। एक एम0एच0एम0 का अर्थ है-एक मिलियन (दस लाख) हेक्टेयर भूमि पर एक मीटर गहराई जितना पानी। इसमें से भी 400 एम0एच0एम0 भारत में बरसता है और 230 एम0एच0एम0 वाष्प बन जाता है। 110 एम0एच0एम0 सीधे नदियों में बह जाता है। 60 एम0एच0एम0 सतह पर बह जाता है। यह पानी ही भूजल के स्तर को बढ़ाता है। यह पानी ही मानव के काम आता है। भारत में प्रति व्यक्ति 50 लीटर पानी का उपयोग प्रतिदिन करता है। इस हिसाब से लगभग डेढ़ एम0एच0एम0 पानी पर्याप्त है जबकि प्रकृति हमें 60 एम0एच0एम0 पानी देती है। अतः समस्या पानी की नहीं वरन् पानी के समुचित संचयन और वितरण की है। यदि पारंपरिक शैली में बारिश का पानी अधिकतम संग्रह कर लेने के व्यापक प्रयास हों तो दो चार वर्ष के कमजोर मानसून से पेयजल संकट तो खड़ा ही नहीं होगा, साथ ही भूजल की भरपाई का भी प्रबन्ध हो जायेगा। जल संरक्षण की जो व्यवस्था हमें परम्परा से प्राप्त थी, उसे हमने छिन्न-भिन्न कर दिया है। कैसे? तालाबों व झीलों के किनारों पर आवासीय बस्तियां बस रही हैं। पानी प्रदूषित होता जा रहा है। आसपास के पेड़ नष्ट हो रहे हैं ट्यूबवेलों के अमर्यादित उपयोग के कारण भूजल स्तर में गिरावट का एक सिलसिला शुरू हो गया है।

हमारा देश विश्व का सातवाँ बड़ा देश है जहाँ 32,87,782 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र में 125 करोड़ से ज्यादा मनुष्य तथा दुनिया में सर्वाधिक पशु निवास करते हैं। इसमें 28 प्रतिशत लोग शहरों और 72 प्रतिशत लोग अब भी 5,55,137 गाँवों में ही निवास करते हैं।

आज हमारे देश के 2,31,000 गाँव जल समस्याओं से ग्रस्त हैं। इन गाँवों के चारों ओर लगभग 1.6 कि0मी0 तक सतही जल उपलब्ध नहीं है और यदि कहीं है भी तो वह उपयोग के लायक ही नहीं रह गया है। भारत में एक ओर जहाँ चेरापूँजी में 118.70 सेमी0 वर्षा होती है वहीं राजस्थान के कुछ हिस्सों में मात्र 10 मिली0 या इससे भी कम वर्षा होती है। वर्षा के इस आसमान वितरण से ही देश का 16 प्रतिशत हिस्सा नियमित रूप से सूखे की चपेट में रहता है वहीं असम, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के कई भाग बाढ़ की चपेट में रहते हैं। भारत में नियमित सूखे के लिए जहाँ कम वर्षा जिम्मेदार है वहीं बाढ़ के लिए अधिक वर्षा उत्तरदायी है।

ऐसा अनुमान लगाया गया है कि विश्व के लगभग 80 प्रतिशत जलस्रोतों का पानी पीने लायक नहीं है। संयुक्त राष्ट संघ के आँकड़ों ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि विश्व की 6 अरब की आबादी में हर आठवां व्यक्ति सुरक्षित पेयजल के बिना जीवनयापन कर रहा है। चिन्ता का विषय है कि पानी से फैलने वाले रोगों के कारण विश्व में हर आठवें सेकेण्ड में एक बच्चा मौत का शिकार हो जाता है। विश्व जल विकास रिपोर्ट में भी जल प्रदूषण की भयावहता की ओर संकेत करते हुए कहा गया है कि इक्कीसवीं शताब्दी ऐसी शताब्दी है जिसमें सबसे प्रमुख समस्या जल किस्म और प्रबन्धन की है।

प्रदूषित जल के सेवन से होने वाली बीमारियों के इलाज में 500 करोड़ से भी अधिक रूपये खर्च हो रहे हैं। विश्वभर में भी अशुद्ध जल का सेवन करने वाले लगभग 18 प्रतिशत अर्थात् एक अरब 10 करोड़ लोग हैं। इसी कारण विश्वभर में लग्भग 62 प्रतिशत मौतें प्रदूषित जल के सेवन से हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वच्छ जल उपलब्ध होने पर 50 प्रतिशत अतिसार एवं 90 प्रतिशत तक हैजा में कमी लायी जा सकती है।

जल प्रदूषण को परिभाषित करते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री सी0एस0 आउथविक ने लिखा है कि, ‘‘मानवीय क्रियाकलापों तथा प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन ही जल प्रदूषण है।’’ जल प्रदूषण में मानव ने सर्वाधिक दुरूपयोग नदियों व समुद्रों का किया है। मानव ने सोल्यूशन टू पोल्यूशन इज डाइल्यूशन उक्ति के आधार पर निदियों व समुद्रों को कचरा-घर बना दिया है। उद्योगों के द्वारा अवशिष्ट जल, कचरा आदि जल में प्रवाहित होता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले 142 नगरों में से मात्र 8 ऐसे नगर हैं जिनमें सीवेज को ठिकाने लगाने की पूर्ण व्यवस्था है। 62 ऐसे नगर हैं जहाँ अल्प व्यवस्था है एवं 72 ऐसे नगर हैं, जहाँ इसकी कोई व्यवस्था नहीं है।

भारत जैसे विशाल देश में असमान वर्षा वितरण एवं विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र के कारण एक तरफ तो बाढ़ की स्थिति बनी रहती है तो दूसरी तरफ सूखा पड़ने से लोग पानी की एक-एक बूँद को तरसते रहते हैं। अतः बाढ़ एवं सूखा दोनों स्थितियों से एक साथ निपटने में 37 बड़ी नदियों को जोड़ने वाली अति महत्वाकांक्षी महायोजना कारगर साबित होगी। केन्द्र सरकार ने इस योजना पर लगभग 5 लाख 60 हजार करोड़ रूपये खर्च होने का पूर्वानुमान लगाया, लेकिन राजनीतिक उठा पटक के कारण यह योजना साकार रूप नहीं ले सकी।

पूरे देश में 14 नहर मालिकाओं के साथ-साथ तीन विशाल जलग्रिडों से सालभर पूरे देश में पानी की आपूर्ति बनी रहेगी। इसी प्रकार अन्य देशों को भी नदियों में बाढ़ के जल का प्रबन्धन एवं वर्षा जल के संरक्षण से जल संकट का मुकाबला करना चाहिए। ध्यान रहे बीसवीं सदी में जितने महत्वपूर्ण पेट्रोल उत्पाद रहे, उससे भी कहीं मूल्यवान इक्कीसवीं सदी में स्वच्छ जल की रहने की सम्भावना है। अतः जल का संरक्षण हर स्तर पर आज से ही करना शुरू करें।

प्रकृति का बहुमूल्य उपहार पानी-बापू की जबानी एक आँकलन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष पानी के कारण होने वाली बीमारियों की वजह से 7 करोड़ 30 लाख जीवन नष्ट हो रहे हैं। दूषित जल से होने वाली बीमारियों के इलाज का खर्च एवं उनसे होने वाली हानि का अंदाजा लगभग 5000 करोड़ रूपये वार्षिक आँका गया है।

बापू के बोल-पानी प्रकृति की ओर से मिला मानव मात्र के लिए ही नहीं वरन् पशु-पक्षी तथा वनस्पति के लिए भी अमूल्य उपहार है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाना है, सोंच-समझकर जरूरत के अनुसार ही काम में लो जल संयम से बरतो। जब भोजन, वाणी-व्यवहार आदि में संयम का महत्वपूर्ण स्थान है तो पानी के उपयोग में भी संयम बरतना चाहिए।


जल का उपयोग:

भारत में औसत रूप से 1900 करोड़ घन मीटर जल उपयोग के लिए उपलब्ध है। इस उपलब्ध जल का लगभग 86 प्रतिशत सतही नदियों, झीलों, सरोवरों एवं तालाबों का है। भूमिगत जल का भी पर्याप्त भाग सिंचाई एवं पीने के लिए उपयोग किया जाता है। पीने के साथ-साथ घरेलू कार्यों में भी जल का पर्याप्त उपयोग किया जाता है। भारत में घरेलू उपयोग में लाए जाने वाले जल का विवरण तालिका-1 तथा विभिन्न नगरों में प्रति व्यक्ति/प्रतिदिन जल उपयोग की मात्रा तालिका-2 में दर्शायी गयी है।

जल प्रदूषण:

मानव के विभिन्न क्रियाकलापों से जब जल के रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में हृास आ जाता है तो जल प्रदूषित हो जाता है। जल प्रदूषण चार प्रकार का होता है-

1. भौतिक जल प्रदूषण- भौतिक जल प्रदूषण से जल की गंध, स्वाद, उष्मीय गुणों में परिवर्तन हो जाता है।

2. रासायनिक जल प्रदूषण- रासायनिक जल प्रदूषण जल में विभिन्न उद्योगों एवं अन्य स्रोतों से मिलने वाले रासायनिक पदार्थों के कारण होता है।

3. शरीर क्रियात्मक जल प्रदूषण: जब जल के गुणों में इस तरह का परिवर्तन हो जाए कि उस जल के उपयोग से मानव की क्रियाविधि हानिकारक रूप से प्रभावित होती है तो उसे शरीर क्रियात्मक जल प्रदूषण कहा जाता है।

4. जैविक जल प्रदूषण- जल में विभिन्न रोगजनक जीवों के प्रवेश के कारण प्रदूषित जल को जैविक जल प्रदूषण कहा जाता है।

जल प्रदूषण नियंत्रण कानून:

जल प्रदूषण के नियंत्रण हेतु समय-समय पर सरकार द्वारा जल प्रदूषण नियंत्रण कानून बनाये गये हैं, जो निम्नाकिंत है:-

1. जल (प्रदूषण निरोधक एवं नियंत्रण अधिनियम), 1974- यह अधिनियम 23 मार्च 1974 को लागू किया गया। इसके अन्तर्गत एक केन्दीय जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गठित किया गया है और भारत के सभी राज्यों में इस तरह के बोर्ड गठित किये जा चुके हैं। जल प्रदूषण मण्डलों द्वारा निम्नांकित दिशाओं में कार्य किया जा रहा हैः-
2. नदी एवं अन्य जलाशयों के प्रदूषण का सर्वेक्षण।
3. औद्योगिक बहिस्राव विसर्जन की निगरानी।
4. प्रदूषित जल की उपचार की सस्ती विधियों का विकास।
5. स्थानीय संस्थानों एवं उद्योगो को जल प्रदूषण नियंत्रण के बारे में परामर्श देना।
6. पर्यावरण सम्बन्धी अनुसंधान।
7. प्रदूषण के प्रति सार्वजनिक चेतना जागृत करना।

2. जल कर (प्रदूषण नियंत्रण एवं निरोधन अधिनियम, 1979)- इस अधिसनियम का मुख्य उद्देश्य जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए निधि एकत्रित करना एवं जल संसाधनों का संरक्षण करना है।
3. पर्यावरण (रक्षण) अधिनियम, 1980- इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित है:-
i. जल, वायु एवं भूमि प्रदूषण नियंत्रण।
ii. संकटकारी अपशिष्ट पदार्थों की व्यवस्था।
iii. प्रदूषणकारी विधियों की सुरक्षा।

जल प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 के अन्तर्गत कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं जिनके तहत नगरपालिकाओं को जल प्रदूषण रोकने के अधिकार दिये गये हैं। ये अनुच्छेद हैं- अनुच्छेद 192(1) शहर की नाली, नदी का अन्य जलराशि में कूड़ा-करकट, गंदगी फेंकना निषिद्ध है। अनुच्छेद 200-निर्धारित घाटों को छोड़कर धोबियों द्वारा अन्य स्थानों पर कपड़ा धोना निषिद्ध है।

अनुच्छेद-201 नदी, पोखर, तालाब आदि को स्नान से गंदा करना तथा उसमें गंदी वस्तुएं डालना निषिद्ध हैं। किन्तु ये अधिनियम तब तक कारगर नहीं होंगे, जब तक इनका सख्ती से पालन न किया जाये और आम नागरिक एवं उद्योगों के मालिक, जिन्हें इन कानूनों का पालन करना है, में जल प्रदूषण दूर करने के प्रति चेतना न आ जाये। अतः आवश्यकता इस बात की है कि इन कानूनों का पालन करने हेतु सख्ती से निपटा जाये और पालन न करने वालों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही की जाये।

वर्तमान समय में हमारी जनसंख्या एक अरब से पच्चीस करोड़ के आस पास पहुँच गयी है। इसमें से लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या समुद्रतट से 100 किलोमीटर क्षेत्र के अंदर निवास करती है। इस आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में महानगरों की घरेलू गंदगी प्रतिदिन/प्रति व्यक्ति 120 लीटर होती है। समुद्रतटीय भागों की जनसंख्या द्वारा भी प्रतिदिन लगभग 60 लीटर प्रति व्यक्ति की दर से घरेलू गंदगी का स्राव होता है। इस तरह अपने देश में प्रतिवर्ष लगभग 4.1 कि0मी0 घरेलू गन्दगी निकलती है। भारत के पूर्वी तट पर लगभग 25 करोड़ गैलन गंदा बेकार जल प्रतिदिन छोड़ा जाता है। गंगा तट पर स्थित नगरों से प्रतिदिन 5 लाख टन गंदा जल गंगा नदी में मिलाया जाता है।

तालिका नं0 1

उद्देश्य

जल उपयोग प्रतिदिन/ली0/प्रति व्यक्ति

पानी पीने में

2-3 लीटर

खाना बनाने में

4-5 लीटर

धार्मिक कार्य

18-5 लीटर

रसोई घर के बर्तनों की सफाई के लिए

13-6 लीटर

कपड़ों की धुलाई के लिए

13-6 लीटर

शौचालय के लिए

27-3 लीटर

स्नान के लिए

27-3 लीटर

स्रोत-इण्डियन स्टैण्डर्ड इंस्टीट्यूट इनफारमेशन।

तालिका नं0 2

नगर

जल उपयोग प्रतिदिन/ली0/प्रति व्यक्ति

मुम्बई

320

पुणे

275

हैदराबाद

205

कानपुर

205

कोलकाता

190

चेन्नई

160

इलाहाबाद

125

मथुरा

120

आगरा

115

पटना

115

वाराणसी

100

भोपाल

90

ग्वालियर

90

लखनऊ

90

बंगलौर

 

स्रोत-हुसैन,एस0के0 ‘‘क्वालिटी ऑफ वाटर सप्लाई एण्ड सैनिटरी इंजीनियरिंग’’ 1975, पृ0 99

वर्ष 1970 में विश्व में घरेलू उपभोग एवं औद्योगिक उपभोग से निःसृत बेकार पानी की मात्रा 91,45,000 दस लाख टन थी जो वर्ष 2990 तक 99,70,000 दस लाख टन हो जाने की संभावना है।

पृथ्वी का अमृत संकट में:

प्राचीन भारतीय आधार ग्रन्थों में गंगा जल का बहुत गुणगान हुआ है। आधुनिक काल के देशी-विदेशी अनेक वैज्ञानिकों ने भी गंगा जल को अपनी जाँच में विलक्षण गुणों से युक्त पाया है। गोमुख के बर्फीली इलाके से निकलकर मैदानों की ओर आने के पूर्व इस देव नदी में हिमालय में पाई जाने वाली अनेक रोग निवारक वनस्पतियों ओर खनिज तत्वों का समावेश होता है। वैज्ञानिक प्रयोगों से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि गंगा के गतिशील जल में अशुद्धियों को निष्क्रिय करने की अद्भुत क्षमता है।

1922 में इंग्लैण्ड के सम्राट एडवर्ड सप्तम ने राजतिलक समारोह में जाते समय जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह (द्वितीय) अपने साथ हरिद्वार से संग्रहित गंगाजल को चाँदी के दो कलशों में भरकर ले गये थे। चालीस साल के बाद जब 1962 में इसे खोला गया तो यह गंगाजल बिल्कुल स्वच्छ मिला। 1983 में यूनेस्को के एक वैज्ञानिक दल ने हरिद्वार में गंगाजल के परीक्षण में पाया कि गंगा में शव और अन्य प्रदूषक तत्वों से मात्र कुछ ही फिट नीचे का जल पूरी तरह शुद्ध था। एक अन्य परीक्षण के दौरान अच्छी तरह छाने गये गंगा जल में मिलाये गये 5500 जीवाणु मात्र तीन घण्टे में ही खत्म हो गये वहीं कुएं के पानी में मिलाये गये 8500 जीवाणु 49 घण्टे में बढ़कर 15000 हो गये। आप जानना तो चाहेंगे कि ऐसा क्यों हुआ क्योंकि गंगा के जल में बैक्टीरियोफाज (वायरस) पाया जाता है। यह गंगाजल में आने वाले विषाणुओं को नष्ट कर देता है। यही कारण है कि लम्बे समय तक संग्रहित रखने के बाद भी गंगाजल प्रदूषित नहीं होता और उसमें कीड़े नहीं पड़ते। गंगाजल की यह विशेषता उसमें पाये जाने वाले बैथ्क्टरियोफाज के कारण ही होती है। गंगा जल में बैक्टिरियोफाज की उत्पत्ति गोमुख हरिद्वार के बीच पाई जाने वाली गुणकारी वनस्पतियों और खनिज तत्वों के कारण ही है।

निष्कर्ष कल-कल करता गोमुख से निकला यह दैवी जल जब हिमालय की विशिष्ट गुणकारी खनिज संपदाओं से युक्त पाषाणखण्डों से टकराकर उन गुणकारी संपदाओं को अपने अंक में समाहित कर लेता है तब इसकी गुणवत्ता में चमत्कारिक परिवर्तन आ जाता है जिससे गंगा का जल अन्य नदियों और सामान्य जतल की तुलना में विशेष गुणों वाला औषधितुल्य हो जाता है। गंगा के जल की इन्हीं विशेषताओं के कारण ही भारतीय समाज में इसे देवनदी का दर्जा प्राप्त हुआ है। गंगाजल की ये विशेषतायें यह प्रमाणित करती हैं कि यदि जल पृथ्वीवासियों का जीवन है तो गंगाजल साक्षात् अमृत है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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