ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- XII March  - 2023
Anthology The Research
संवेगात्मक बुद्धि उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए महत्व
Importance of Emotional Intelligence For Senior Secondary Students
Paper Id :  17392   Submission Date :  09/03/2023   Acceptance Date :  20/03/2023   Publication Date :  23/03/2023
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विनिता नामा
शोधार्थी
शिक्षा विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर,राजस्थान, भारत
रविबाला सौलंकी
(प्रोफेसर)
रिसर्च सुपरवाइजर
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर, राजस्थान, भारत
सारांश मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है परन्तु उसका अधिकतर व्यवहार केवल बुद्धि से चालित नहीं होता है। बल्कि काफी हद तक बुद्धि द्वारा प्रतिबिन्बित व्यवहार संवेगो द्वारा परिष्कृत होकर व्यवहार के रूप में दिखाई देते है। संवेग व्यक्ति के केवल बाह्य व्यवहार को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि उसकी मानसिक स्थिति व कार्यक्षमता को भी प्रभावित करते है। किसी भी व्यक्ति में संवेग जन्म से ही विद्यमान होते है। उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति में संवेगो के नियंत्रण व प्रकटीकरण की कला का विकास होता जाता है। किशोरावस्था में मनुष्य मे संवेगो का अतिरेक होता है। इस समय बालक की बौद्धिक क्षमता उसके संवेगो द्वारा ही परिचालित होती है। संवेगात्मक रूप से स्थिर अथवा मजबूत बालक अपनी बौद्धिक क्षमता का पूर्ण उपयोग कर पाता है जिसके परिणाम स्वरूप उसकी शैक्षिक उपलब्धि भी उत्तम होगी। प्रस्तुत लेख मे हम संवेगात्मक बुद्धि के अर्थ एवं उ. मा. स्तर के विद्यार्थियों के लिए इसके महत्व पर चर्चा करेंगे।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Man is an intellectual animal. But most of his behavior is not driven by intellect alone. Rather, to a large extent, the behavior reflected by the intellect is refined by the emotions and appears in the form of behavior. Emotions not only affect the external behavior of a person but also affect his mental state and efficiency.
Emotions are present in any person since birth. With increasing age, the art of control and expression of emotions develops in a person. In adolescence, there is an excess of emotions in humans. At this time the intellectual capacity of the child is governed by his emotions only. An emotionally stable or strong child is able to make full use of his intellectual potential. As a result of which his academic achievement will also be good. In the present article, we will discuss the meaning of emotional intelligence and its importance for the students of advanced level.
मुख्य शब्द स्तर संवेगात्मक बुद्धि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद High Level Emotional Intelligence.
प्रस्तावना
संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति की वह योग्यता व कुशलता है जिसके द्वारा वह अपने संवेगो का सन्तुलन करता है और उनका उपयोग प्रतिदिन के कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने मे करता है। सर्वप्रथम संवेगात्मक बुद्धि शब्द का प्रयोग वायेन पायने ने अपनी थिसिस में किया था जिसका नाम था - "A Study of Emotion Developing Emotional Intelligence"
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य संवेगात्मक बुद्धि उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए महत्व का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन

संवेगात्मक बुद्धि का सम्प्रत्यय

अमेरिकन विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसर डॉ. जॉन मेयर व डॉ. पीयर सावले ने 1990 में दिया। इसके बाद डेनियल गोलमेन ने 1995 मे इस संप्रत्यय का विस्तार से अध्ययन किया व अन्य क्षेत्रों में इसके महत्व को उजागर किया। इसलिए गोलमेन को संवेगात्मक बुद्धि का जन्मदाता कहा जाता है।

गोलमेन के अनुसार संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह अपनी स्वयं की भावनाओं एवं उसके सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों की भावनाओं को समझकर ऐसा व्यवहार करता है जिससे उसके व्यक्तित्व मे अधिक निखार अथवा आर्कषण पैदा हो।

मुख्य पाठ

मेयर के अनुसार
यह स्वयं तथा अन्यों की भावना व संवेगो को पहचानकर उन्हें समन्वित करने की योग्यता है तथा इसके द्वारा किसी भी कार्य को करने व सोचने के लिए निर्देशित किया जा सकता है। उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति की संवेगात्मक बुद्धि उसे सफलता के सोपान पर पंहुचाने की योग्यता है। इसके लिए व्यक्ति को सतत् जागरूक रहकर उनका व्यवस्थापन करना होता है।
व्यक्ति जिस कुशलता से अपने संवेगो की पहचान करता है व उनमें सन्तुलन स्थापित करता है। अपने विचारों के साथ इन्हे एकीकृत करता है। एवं परिस्थिति के अनुसार इनका प्रबन्धन करता है। यह योग्यता ही उनकी संवेगात्मक बुद्धि कहलाती है।
संवेगात्मक बुद्धि (प्रमुख परिभाषा)
एरिक और सर्बट (1988) इन्होने सामान्य छात्रों के संवेगात्मक विकास और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े बालक-बालिकाओं की सफलता और असफलता की परिकल्पनाओं का अध्ययन कर पाया की सफलता और असफलता आन्तरिक व बाह्य कारणों द्वारा निर्धारित होती है। तथा दूसरा कारण सफलता असफलता क्षमता और प्रयत्नों पर निर्धारित होती है। 
संवेगात्मक बुद्धि के आयाम
                    
 
संवेगात्मक बुद्धि को प्रभावित करने वाले तत्वः.
1. वंशानुक्रम
2. स्वास्थ्य
3. थकान 
4. मानसिक योग्यता 
5. परिवार का वातावरण 
6. अभिभावकों का दृष्टिकोण 
7. सामाजिक व आर्थिक स्थिति 
8. सामाजिक स्वीकृति 
9. विद्यालय
उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए संवेगात्मक बुद्धि का महत्व
कोई भी व्यक्ति क्रोधित हो सकता है, यह सरल है। परन्तु सही व्यक्ति पर सही मात्रा में सही समय, सही उद्देश्य के लिए और उचित तरीके से क्रोधित होना कठिन कार्य है।
अरस्तु कुछ व्यक्तियों मे संवेगात्मक संवेदनशीलता और इच्छाशक्ति होती है तब आत्मविश्वास होता है। ये सब मिलकर व्यक्ति मे ऐसी उर्जा का निर्माण करते है जिससे व्यक्ति ऊँचे से ऊँचे लक्ष्य को पा लेते है।
संवेगात्मक बुद्धि का संम्बन्ध संवेग से होता है। जो शब्द से ही स्पष्ट है। मानव में संवेग परिवर्तनशील रहते है। किन्तु संवेगो को नियंत्रित करके उनका प्रबन्धन किया जा सकता है।
प्रस्तुत लेख मे हम उच्च माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत बालको मे संवेगात्मक बुद्धि के महत्व पर चर्चा करेगें।
यहाँ उच्च माध्यमिक स्तर से तात्पर्य ऐसे विद्यार्थियों से है जिन्होनें माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की है व विभिन्न संकायों मे कक्षा 11 12 के विद्यार्थी है व जिनकी आयु लगभग 15 से 19 वर्ष के मध्य है।
उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी किशोरावस्था में होते है। व संवेगों में विचलन भी सर्वाधिक होता हैं इस अवस्था मे बालक संवेगो का प्रबन्धन करना भी सीखता है। ये संवेग प्रबन्धन उसकी बौद्धिक क्षमता, समायोजन, शैक्षिक उपलब्धि आदि को प्रभावित करता है।
शिक्षा बालक के विचारों की अभिव्यक्ति को निर्धारित करती है। बालक के विचार सांवेगिक व बौद्धिक दोंनो प्रकार के हो सकते है। शिक्षा के द्वारा बालक अपने संवेगों का प्रबन्धन, सहानुभूति, स्वआत्मन, स्वप्रबन्धन, सामाजिक जागरूकता तनाव नियंत्रण आदि करना सीखता है। अतः शिक्षा द्वारा छात्रो को संवेगात्मक रूप से परिपक्व बनाकर उन्हे वातावरण मे उचित समायोजित बनाया जाता है।
जैसा कि हम जानते है कि उच्च माध्यमिक स्तर के बालक किशोरावस्था मे होते है। जहॉं बालक का संवेगात्मक प्रबन्धन अतिआवश्यक हैं क्योंकि शिक्षा का उच्च माध्यमिक स्तर व्यक्ति के जीवन की नींव होती है।
यदि इस समय बालक अपनी सम्पूर्ण बौद्धिक क्षमता का उपयोग अपनी पढा़ई व अन्य सकारात्मक कार्यो मे कर पाता है तो वह अपनी सर्वोच्च उपलब्धियों को प्राप्त  करता हैं, एवं यदि वह संवेगात्मक रूप से मजबूत नहीं है तो बौद्धिक क्षमता होते हुए भी वह कुष्ठोंए दुश्चिन्ता आदि का शिकार हो जाएगा। वे अपने विद्यार्थी जीवन मे असफल हो जाएगा। संवेगात्मक बुद्धि वाला बालक अपना सही तरीके से मुल्यांकन करता है व आत्मविश्वास के साथ अपनी क्षमताओं का सहीं प्रबन्धन करके आगे बढ़ता है। संवेगात्मक स्थिर बालक दूसरों के प्रति सहानुभूति रखता है वह दूसरों की भावनाओं को पहचानकर उसके अनुसार व्यवहार करता है, जिससे उसे अनावश्यक अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ता।
संवेगात्मक रूप से स्थिर बालक मे स्वनियंत्रण, आपसी विश्वास, विवेक, परिस्थिति के अनुसार बदलने की योग्यता आदि का महत्वपूर्ण स्थान होता है। ऐसे बालक रचनात्मक सोच वाले होते है व स्वप्रेरित रहते है। वे परिस्थितियों का उपयोग कर अपने अनुकूल बना लेते है।
संवेगात्मक स्थिर बालक अपनी सभी भावनाओं व योग्यताओं में समन्वय स्थापित कर कार्य करते है। व अपने विचारों को इकट्ठा करके अपने लक्ष्य की तरफ मोहता है व किसी भी परिस्थिति को अपने उपर हावी नही होने देता। व अन्त में अपने लक्ष्यो को प्राप्त करता है।
उच्च संवेगात्मक बुद्धि लब्धि वाले बालक का सम्पूर्ण दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। वह सभी के प्रति सकारात्मक सोच रखता है। संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता को प्रभावित करती है। एक नायक के रूप मे व्यक्ति अपने दल के व्यक्तियों के व्यवहार अभिवृन्ति, तनाव, दबाव आदि को समझकर दल के उद्देष्यों के प्रति उचित योजनाएं बनाता है।
पिछले 3 दशको से हम देखते है कि पढ़ाई के दबाव मे बालक आत्महत्या तक कर लेते है अथवा अनेक प्रकार के व्यसनो मे पड़ जाते है। ऐसे बालक संवेगात्मक रूप से कमजोर होते है ये अपनी परिस्थितियों मे समन्वय स्थापित नहीं कर पाते है और अपने लक्ष्य से भटक जाते है। ऐसे में वे कुष्ठा, दुष्चिन्ता, दबाव आदि समस्याओं से ग्रसित हो जाते है। ऐसे बालक अपने परिवार मित्रों अध्यापकों व सहपाठियों से अच्छा व्यवहार नहीं करते है, वे दूसरों पर हावी होने के लिए गलत हरकतों का सहारा लेते है।
बालक को इन परिस्थितियों से निकालना एवम् उनके उज्जवल भविष्य हेतु उनकी संवेगात्मक बुद्धि का उचित मार्गदर्शन आवश्यक है।
बालकों के संवेगो एवम् संवेगात्मक बुद्धि के परिष्करण हेतु अध्यापक सेमीनार लघुफिल्म (प्रेरक) वार्ता एवम् स्वयं के व्यवहार के द्वारा कार्य कर सकता है।
एक शिक्षक के प्रयासों द्वारा बालक की संवेगात्मक बुद्धि का विकास होता है और वह अपने जीवन में यथोचित सफलता प्राप्त करता है। 

निष्कर्ष प्रस्तुत आलेख के द्वारा शोधार्थी का प्रयास है कि वह उच्च माध्यमिक स्तर के बालकों में संवेगात्मक बुद्धि के विकास द्वारा उनके भावी जीवन को सफल बना सके। संवेगात्मक बुद्धि के द्वारा ही बालक अपने एवं दूसरों के संवेगो को समझ सकता है व उनका अपने जीवन के निर्माण मे यथोचित उपयोग कर सकता है। इस प्रकार उच्च माध्यमिक स्तर पर बालक की संवेगात्मक बुद्धि के विकास के प्रयत्न करने चाहिए जिससे एक सफल पीढ़ी का निर्माण हो।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. पाठक पी.डी.(2009)- 'शिक्षा मनोविज्ञान' विनोद पुस्तक मंदिर आगरा 2. शर्मा आर ए.(2008)- 'शिक्षा अनुसंधान' आर लाल बुक डिपों',मेरठ 3. उपाध्याय, भागर्व एवं त्यागी (2007)- 'अधिगम का मनोसामाजिक आधार एवं शिक्षण' अरिहन्त शिक्षा प्रकाशन, जयपुर 4. भार्गव महेश (2006)- 'आधुनिक मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं मापन' एच.पी. भार्गव बुक हाउस, कचहरी घाट आगरा 5. सिंह अरूण कुमार (2005)- 'मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा शिक्षा के शोध विधियाँ' मोती लाल बनारसीदास प्रकाशन, पटना 6. अरोड़ा रीटा एवं मारवाह सुदेश, शिक्षा मनोविज्ञान एवं सांख्यिकी: शिक्षा प्रकाशन 7. ऑक्सफोर्ड एडवांस, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, प्रेस न्यूयॉर्क संस्करण 8. https://www-scotbvzz-org2021/22-