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अनुसूचित जाति की महिलाओं में सामाजिक गतिशीलता का अभाव: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Lack of Social Mobility Among Scheduled Caste Women: A Sociological Study | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
17432 Submission Date :
11/03/2023 Acceptance Date :
20/03/2023 Publication Date :
25/03/2023
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सारांश | वर्तमान समय में समाज तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है। जिसके कारणों में आधुनिकता, शिक्षा, बढ़ता औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं महिलाओं को संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों के कारण महिलाओं की स्थिति में गतिशीलता देखी जा रही है। परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली दलित परिवार में सामाजिक खुलापन एवं गतिशीलता एक समस्या के रूप में देखी जा रही है वही दलित परिवारों में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को महिलाओं के अतिरिक्त दलित परिवार की महिला होने के कारण परंपरागत सामाजिक मानदंडों की दोहरी मार झेलनी पड़ती है। ग्रामीण परिवार में अनुसूचित जाति परिवारों द्वारा जातिगत मान्यताओं के अनुरूप ही पारिवारिक सामाजीकरण किया जाता है, जो महिलाओं की गतिशीलता को प्रभावित करता है। अतः प्रस्तुत शोध आलेख मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले की तहसील बटियागढ़ के चैनपुरा(पोस्ट बकायन) गांव में निवास करने वाली अनुसूचित जाति की महिलाओं पर केंद्रित है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | At present, the society is changing at a rapid pace. Due to which modernity, education, increasing industrialization, urbanization and due to the rights given to women by the constitution, dynamism is being seen in the condition of women. But social openness and mobility is being seen as a problem in Dalit families living in rural areas, in the same Dalit families also women are facing double whammy of traditional social norms due to being women of Dalit families in addition to women as compared to men. Have to bear In rural households, family socialization is done according to caste beliefs by Scheduled Caste families, which affects the mobility of women. Therefore, the present research article focuses on scheduled caste women living in village Chainpura (post Bakayan), tehsil Batiagarh, Damoh district of Madhya Pradesh state. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | अनुसूचित जाति, सामाजिक गतिशीलता, सामाजीकरण, महिलाओं की शैक्षणिक स्थिति। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Scheduled Castes, Social Mobility, Socialization, Educational Status of Women. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
प्राचीन काल से वर्तमान काल तक भारतीय नारी की सामाजिक स्थिति पर दृष्टिपात करें तो हमें ज्ञात होता है, कि भारतीय नारी ने बड़े उतार-चढ़ाव देखें उसे कई सामाजिक बंधनों, बर्बर अत्याचारों, धर्मशास्त्र एवं धर्म आचार्यों द्वारा खड़े किए गए अवरोध झेलते हुए संकट पूर्णं मार्गों से गुजरना पड़ा है। यही नहीं धर्मशास्त्रों की बदौलत 21वीं सदी की ओर बढ़ते समय में भारतीय नारी गुलामी की बेड़ियों से अभी भी मुक्त नहीं हो पाई है।
भारतीय संविधान निर्माता डॉ बी आर अंबेडकर ने भारतीय नारी को पतन के गर्त से उभारा है, उन्होंने महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव शोषण एवं अत्याचार के कारणों को जाना और उन्हें दूर करने के प्रयास किए।[1]
अनुसूचित जाति का तात्पर्य शेड्यूल्ड कास्ट शब्द का हिंदी रूपांतरण हैं। अनुसूचित जाति एक संवैधानिक शब्द है, क्योंकि संविधान में इसे पूर्ण वैधानिकता प्रदान की गई है। संविधान के अनुच्छेद 341 एक में कहा गया है कि राष्ट्रपति किसी राज्य संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में और जहां वह राज्य है, वहां उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात लोक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूल वन से हैं, जो जनजातियों के भागों या उनमें को निर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जाति समझा जाएगा। अनुसूचित जातियां हिंदू समाज व्यवस्था की अस्पष्ट जातीय है, निर्धारित चतुर्वर्ण व्यवस्था से पृथक ऐसे लोगों का समुदाय है, जो रंग के काले तथा घृणित पेशे से संबंध थे, अस्पृश्य कहे जाते थे। प्राचीन धर्म ग्रंथों मंर इन्हें चांडाल, शूद्र, अछूत आदि अनेक नामों से संबोधित किया गया है। इन जातियों को सबसे निम्न स्तर का व्यवसाय प्रदान किया गया है एवं समाज में इनकी निम्नतम प्रस्थिति थी, चारों वर्णों से प्रथक होने के कारण इन्हें पंचम वर्ण नाम से भी संबोधित किया गया है।[2]
दलित महिलाओं की स्थिति एक चिंताजनक विषय है, कि हमारे देश में स्त्री जाति का संबंध समाज के एक ऐसे वर्ग या समुदाय से है जिसकी दशा उनकी सामाजिक कुरीतियों एवं अपराधों के कारण अत्यधिक दयनीय बन चुकी है। आज महिलाओं को पुरुषों के द्वारा किए जाने वाले अपराधों का शिकार होना पड़ता है। अनुसूचित जाति के रूप में अनुसूचित जाति की महिलाओं को अपने समुदाय के विरुद्ध अत्याचारों को भी सहन करना पड़ता है। वर्तमान समय में अनुसूचित जाति की महिलाओं के विरुद्ध किए गए अपराधों की संख्या में वृद्धि की सामान्य प्रवृत्ति देखी गई है, जो ऊंची जातियों के क्रोध एवं प्रबल रोष का लक्ष्य बन जाती हैं। अनुसूचित जातियों पर होने वाले अपराध मुख्यत: महिलाओं के विरुद्ध होने वाले यौन अपराध की ओर तीव्र गति से बढ़ते जा रहे हैं। वहीं अनुसूचित जाति की महिलाओं को स्वयं के परिवार द्वारा आरोपित प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ रहा है। यह व्यवहार समाज में दलित महिलाओं के प्रति दयनीय स्थिति को इंगित करता है।[3] |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1 अनुसूचित जाति की महिलाओं में सामाजिक गतिशीलता का अभाव के कारणों का पता लगाना। 2. अनुसूचित जाति की महिलाओं की शैक्षणिक समस्याओं का पता लगाना। 3. अनुसूचित जाति की महिलाओं में स्वयं का व्यवसाय करने में उत्पन्न समस्याओं का अध्ययन करना। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
साहित्यावलोकन |
सुखदेव थोराट 2011 भारत में दलित सामान्य लक्ष्य की खोज
पुस्तक में अनुसूचित जाति के प्रति भेदभाव एवं अत्याचार की घटनाओं की व्याख्या के
लिए भारत में अपराध प्रतिवेदन उसे प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है। जिसमें
अनुसूचित जाति की महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव शोषण एवं अन्याय को दर्शाया
गया है प्रस्तुत पुस्तक में लेखक द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है, कि ग्रामीण पृष्ठभूमि में अनुसूचित जाति की महिलाओं को अपने सशक्तिकरण हेतु
किन-किन तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध प्रपत्र मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले के चैनपुरा(पोस्ट बकायन) गांव में निवास करने वाली अनुसूचित जाति की महिलाओं पर केंद्रित है । प्रस्तुत अध्ययन हेतु वर्णनात्मक शोध प्रविधि का उपयोग करते हुए अनुसूचित जाति परिवार की 40 सूचनादाताओं का चयन उद्देश्य पूर्ण निदर्शन पद्धति के आधार पर किया गया है, तथा सूचनाओं के संकलन हेतु प्राथमिक तत्व के रूप में साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया। |
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विश्लेषण | तथ्यों का संकलन एवं विश्लेषण तालिका क्रमांक 1
सारणी क्रमांक 1 उपरोक्त तालिका क्रमांक एक में परिवार के मुखिया के व्यवसाय की स्थिति को दर्शाया गया है जिसमें यह पाया गया है। कि दलित परिवार के 50% परिवार की मुखिया द्वारा मजदूरी की जाती है वही 25% द्वारा कृषि द्वारा अपनी आजीविका चलाई जाती है। 15% परिवार ऐसे मिले जिनकी मुखिया द्वारा परंपरागत कामों को किया जाता है। वहीं 10% दलित परिवार के मुखिया द्वारा छोटी-मोटी दुकानों में काम किया जाता है। अतः इस प्रकार हम देखते हैं कि दलित परिवार में प्राय: निम्न स्तर के कार्यों को किया जाता है, जिनसे उन्हें कम आमदनी होती है। तालिका क्रमांक 2
उपरोक्त तालिका क्रमांक 2 से स्पष्ट होता है कि दलित परिवारों द्वारा अपने जीवन यापन हेतु जो रोजगार किया जाता है । उन्हें जो आमदनी प्राप्त होती है, वह अत्यंत कम है। अत: ऐसे परिवार देखे गए हैं जिनकी मासिक आय 3000 से 5000 के बीच में रही ऐसे परिवार की संख्या 62.5% पाए गए। वही 17.5% ऐसे रहे जिनकी मासिक आय 5000 से 8000 के बीच देखी गई। जिनकी मासिक आय 8000 से 11000 के बीच देखी गई ऐसे परिवार की संख्या 12.5% पाए गए । जिनकी मासिक आय 11000 से 14000 के बीच देखी गई ऐसे परिवार की संख्या 7.5% पाए गए अतः इतनी कम आमदनी ही इनके पिछड़ेपन एवं गतिशीलता के मार्ग में बाधक बनती दिखाई देती है। तालिका क्रमांक 3
उपरोक्त तालिका में महिलाओं की शैक्षणिक स्थिति को दर्शाया गया है, अध्ययन क्षेत्र में महिलाओं की गतिशीलता का अनुमान तालिका से प्राप्त तथ्यों के आधार पर लगाया जा सकता है:- जिसमें पाया गया कि अध्ययन क्षेत्र में सर्वाधिक 27.5% महिलाएं माध्यमिक स्तर तक अध्ययन करने वाली पाई गई। वही 22.5%महिलाएं प्राथमिक स्तर एवं हायर सेकेंडरी तक अध्ययनरत रही। 20% महिलाएं हाई स्कूल स्तर की। जबकि स्नातक स्तर पर अध्ययन करने वाली महिलाएं अत्यंत ही कम 7.5% दिखाई दी, जो इस क्षेत्र में महिलाओं की गतिशीलता में कमी की स्थिति को प्रदर्शित करती है। तथ्यों का विश्लेषण- उपरोक्त तालिकाओं के आधार पर जो तथ्य प्राप्त हुए, हैं जिससे स्पष्ट होता है कि अनुसूचित जाति परिवार जो ग्रामीण क्षेत्र में निवास करता है, जिसकी मासिक आय अत्यधिक न्यून देखी गई है, तथा जो उसके व्यवसाय के अनुरूप है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार एक बड़ी समस्या है, जिसके परिणाम स्वरूप अधिकांश परिवार मजदूरी पर आश्रित है। यह स्थिति उनमें निम्न स्तर के जीवन स्तर गुजारने एवं सम्मान पूर्वक आवश्यकताओं को पूरा करने में बाधाएं उत्पन्न करती हैं ,जिसके परिणाम स्वरूप परिवार की महिला सदस्यों को अपने सशक्तिकरण में बाधा का सामना करना पड़ता है। |
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निष्कर्ष | उपरोक्त अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट होता है, कि ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले अनुसूचित जाति महिलाओं का जीवन स्तर अत्यंत निम्न होने के कारण महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों पर ही निर्भर रहती है यही मुख्य कारण है कि महिलाओं को महिलाओं की गतिशीलता की संभावना भी समाप्त हो जाया करती हैं । अनुसूचित जाति की शिक्षा एवं अपने सशक्तिकरण हेतु पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते, अतः अनुसूचित जाति परिवार द्वारा अपनी आय के स्तर को बढ़ाने हेतु अन्य तरह के रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए, जिससे उनकी मासिक आमदनी में वृद्धि हो सके । जिसके साथ उनके परिवार के सदस्यों में गतिशीलता की संभावना में वृद्धि हो सके । | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. मेघवाल, कुसुम (2010), भारतीय नारी के उद्धारक बाबा साहब डॉक्टर बी आर अंबेडकर, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली पृष्ठ 13 क्रमांक
2. पूरणमल, (2007), अस्पष्टता एवं दलित चेतना प्वाइंटर पब्लिशर्स जयपुर, राजस्थान पृष्ठ क्रमांक 11
3. रावत हरीकृष्ण, (2008), उच्चतर समाजशास्त्रीय विश्व कोष रावत पब्लिकेशन, जयपुर. पृष्ठ क्रमांक 102
4. थोरात सुखदेव, (2011), भारत में दलित सामान्य लक्ष्य की खोज पॉइंटर पब्लिशर्स जयपुर. राजस्थान |