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भारत में महिला सशक्तिकरण: एक मिथक या यथार्थ | |||||||
Women Empowerment in India: Myth or Reality | |||||||
Paper Id :
17516 Submission Date :
2023-04-12 Acceptance Date :
2023-04-21 Publication Date :
2023-04-25
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सारांश |
आज के दौर में हम महिला सशक्तिकरण पर बढ़-चढ़कर चर्चा कर रहे है। महिलाओं द्वारा स्वयं के अधिकारों की रक्षा के लिए ‘नारीवादी आंदोलन’ चलाए जा रहे है। सरकार द्वारा महिला उत्थान के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। कहा जा रहा है कि समाज का सम्पूर्ण विकास तभी होगा, जब हम महिलाओं का विकास करेंगे। पर क्या वास्तव में महिलाओं को सशक्त होने की आवश्यकता है? प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान तक महिला हमेशा से सशक्त ही रही है। कुछ समय व परिस्थितियाँ ऐसी आई जिनमें महिलाओं की स्थितियाँ बदलती रही परन्तु महिला हमेशा से अबला नारी ही रही हो, ऐसा कभी नहीं हुआ।
भारतीय समाज एक पितृसत्तात्मक समाज है जिसमें पुरूषों को महिलाओं से श्रेष्ठ समझा जाता है, जहां संसाधनों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया और विचारधारा पर पुरूषों का नियंत्रण होता है। महिला को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है। पितृसत्तात्मक ढांचों और विचारधाराओं के कारण अधिकतर महिलाएं तकलीफें उठाती है, उन्हें लैगिंक पक्षपात तथा असमानताओं का सामना करना पड़ता है।
प्रस्तुत शोध पत्र में यह सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है कि महिलाएं कभी भी पुरूषों से कमजोर नही रही है बल्कि ‘उसकी उभरती हुई शक्ति का दमन करने का प्रयास हमेशा से पितृसत्तात्मक समाज ने किया है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In today's era, we are discussing extensively on women empowerment. Feminist movements are being run by women to protect their rights. Many schemes are being run by the government for the upliftment of women. It is being said that the overall development of the society will happen only when we develop women. But do women really need to be empowered? From ancient times to the present, women have always been strong. Some times and situations came in such a way that the status of women kept changing, but women have always been able-bodied women, this has never happened. Indian society is a patriarchal society in which men are considered superior to women, where men control the decision-making process and ideology over resources. Women are considered second class citizens. Due to patriarchal structures and ideologies, most of the women suffer, they have to face gender bias and inequalities. In the presented research paper, an attempt is being made to prove that women have never been weaker than men, but the patriarchal society has always tried to suppress their emerging power. |
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मुख्य शब्द | महिला सशक्तिकरण, नारीवादी आंदोलन, विचारधारा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Women Empowerment, Feminist Movement, Ideology. | ||||||
प्रस्तावना |
महिला सशक्तिकरण महिला/स्त्री अस्तित्व के लिए एक संघर्ष व आंदोलन है तथा अन्याय के खिलाफ एक आवाज़ है। देश की आधी आबादी महिलाओं की है। देश व समाज में इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय तक महिलाओं ने अपनी योग्यता का लोहा हर जगह मनवाया है। वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी सम्मानजनक थी। महिला को देवी के रूप में भी पूजा जाता था। स्त्रियाँ वेद शिक्षित तथा युद्धकला में भी निपुण हुआ करती थी। मध्यकालीन भारत में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई। इस दौरान मुस्लिम शासनकाल रहा। स्त्रियों की शादी की उम्र कम कर दी गई और इसका प्रभाव उनकी शिक्षा प्राप्ति पर हुआ। औपनिवेशिक भारत में कुछ महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के पश्चात् महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त हो गया, परन्तु अब तक उसकी स्थिति में आई गिरावट से उबारने का प्रयास निरंतर जारी है।
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अध्ययन का उद्देश्य | महिला समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। परिवार व समाज में महिला बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है परन्तु उसकी भूमिका को अभी भी स्वीकार नहीं किया गया है। वे अभी भी असमानता, वित्तीय निर्भरता, अशिक्षा, उत्पीड़न और विशिष्ट सामाजिक बुराइयों की मार झेल रही है। महिला सशक्तिकरण महिलाओं को मजबूत बनाने का एक जरिया है। नारीवादी आंदोलनों, अन्य महिला संगठनों व सरकार के द्वारा अनेक योजनाएं चलाकर महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है। महिला सशक्तिकरण की क्या वास्तव में आवश्यकता है? यह आंदोलन महिलाओं को कितना मजबूत बना पाया है? समाज के प्रत्येक स्तर पर पहुँच पाया है या नहीं? उपर्युक्त सवालों के जवाब जानना ही इस अध्ययन का उद्देश्य है। |
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साहित्यावलोकन | ग्रामीण विकास समीक्षा, महिला सशक्तिकरण विशेषांक, जनवरी-जून 2016,
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान, हैदराबाद, भारत द्वारा प्रकाशित
पत्रिका पूरी तरह से महिला सशक्तिकरण को समर्पित है। इसमें महिलाओं से जुड़े हुए
लगभग 27 लेखों का समावेश है।
जिनमें महिला सशक्तिकरण से जुड़े कार्यक्रमों की विवेचना, कृषिरत महिला,
गाँधी जी के विचारों में महिला,
पंचायती राज में महिलाओं का योगदान जैसे लेखों का समावेश है। योजना, सितंबर 2016, मासिक पत्रिका में नारी सशक्तिकरण से जुड़े विभिन्न लेखों का
समावेश है जिसमें महिला सशक्तिकरण पर सरकार का दृष्टिकोण, भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की भूमिका, भारत में महिला शिक्षा,
सामाजिक न्याय की धारणा और महिला विधेयक,
नारी के विरूद्ध अपराध, महिलाओं के विधिक-सामाजिक
अधिकार जैसे लेखों का समावेश है।
द्विवेदी रमेश प्रसाद, भारत में जेण्डर बजट महिला
सशक्तिकरण का एक सशक्त माध्यम, भारतीय राजनीति विज्ञान शोध
पत्रिका, वर्ष-पंचम, अंक-द्वितीय,
अगस्त-सितम्बर 2013 में प्रकाशित लेख में यह दर्शाने
का प्रयास किया गया है कि, जेंडर बजटिंग, महिलाओं को विकास की मुख्यधारा में लाने का एक सशक्त माध्यम
है। नीति निर्माण और संसाधनों के आवंटन में महिला-पुरूष को समान अधिकार मिल सके। |
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मुख्य पाठ |
भारत में महिला सशक्तिकरण के प्रयासों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझा जा
सकता है। प्राचीन भारत मे महिलाओं की स्थिति:- ऋग्वैदिक युग में महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक थी। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने
का अधिकार था। क्षत्रिय समाज में स्वयंवर,
प्रथा का चलन था, वधु को अपना जीवनसाथी चुनने
की विशेष स्वतंत्रता थी। इस युग में दहेज प्रथा का प्रचलन नही था। समाज
पितृसत्तात्मक था। इस कारण वंश चलाने के लिए पुत्र प्राप्ति को भी आवश्यक माना गया
था। कुछ परिस्थितियों में विधवा विवाह को स्वीकार किया जाता था। महाकाव्य काल में समाज और परिवार दोनों में महिलाओं की स्थिति में गिरावट देखी
गई। महाभारत का उदाहरण हम सबके सामने है। जिसमें द्रोपदी को जुएं के खेल में दांव
पर लगाया गया था। इसके विपरीत रामायण में हम सीता के स्वयंवर के रूप में महिला के
वर चुनने की स्वतंत्रता को देखते है। उपर्युक्त उदाहरणों के माध्यम से हम केवल उच्च वर्ग की महिलाओं की सामाजिक
स्थिति से अवगत होते है। समाज की आम महिलाओं की स्थिति क्या रही होगी, यह जानकारी हमें प्राप्त नहीं हो पाती। मध्यकालीन भारत में महिलाओं की स्थिति:- भारत वर्ष में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आगमन के पश्चात महिलाओं की स्थिति में
अंतर आया। कुछ उदाहरण इस काल में भी देखने को मिलते है जो महिला सशक्तिकरण के
प्रतीक है। इस काल में महिलाओं की स्थिति राजनैतिक व सामाजिक स्तर पर मजबूत प्रतीत
होती है। सल्तनत काल में पहली महिला शासिका ‘रजिया सुल्तान’ हुई। जो महिला शक्ति व वीरता की प्रतीक रही, परन्तु पुरूष प्रभुत्व यहां भी इसे स्वीकार नहीं कर पाया।
वह केवल कुछ समय ही शासन कर पाई। शिक्षित महिला का उदाहरण गुलबदन बेगम के रूप में
देख सकते है जो, हुमायुँ की बहन थी, इन्होंने हुमायुँ-नामा लिखा। जहाँआराँ, नूरजहाँ, मुमताज, चांदबीबी, ताराबाई, अहल्याबाई होल्कर,
जीजाबाई, जेबुन्निसा आदि विदुषी
महिलाएं इस काल में हुई। इस काल में समाज की आम महिलाओं की स्थिति में गिरावट देखी गई। पर्दा प्रथा, शादी की उम्र कम होना,
शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाना, यह सभी महिलाओं की स्थिति
में गिरावट का कारण बनी। औपनिवेशिक भारत में महिलाएं:- भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद के शासनकाल को ‘औपनिवेशिक काल’
कहा जाता है। इस काल में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलनों में भाग लेती थी। गांधी जी के साथ
स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने वाली महिलाओं में सरोजिनी नायडू, प्रभावती देवी,
कस्तूरबा गांधी, कमला नेहरू, लतिका घोष, नलिनी, सेनगुप्ता, कप्तान लक्ष्मी संहगल और
अरूणा आसफ अली की भूमिका महत्वपूर्ण है। ब्रिटिश काल में महिलाओं की स्थिति सर्वकालिक निम्न स्तर पर थी। पर्दा प्रथा, देवदासी प्रथा,
सती प्रथा जैसी सामाजिक कुप्रथाऐं प्रचलन में थी। ब्रिटिश सत्ता व भारतीय समाज
सुधारको यथा-राजाराम मोहन राय, इष्वर चन्द्र विद्या सागर व
ज्योतिबा राव फुले ने इन बुराइयों को रोकने का प्रयास भी किया। पंडिता रमाबाई, ताराबाई शिंदे जैसी महिला समाज सुधारकों ने भी इन सामाजिक
समस्याओं को दूर करने की कोशिश की तथा उनके लिए अनुकूल माहौल बनाकर सशक्त करने की
दिशा में महत्वपूर्ण काम किया। वर्तमान भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति:- भारतीय संविधान लागू होने के साथ ही महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त हो
गया। इन्हें राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक स्तर पर
समानता के अधिकार दिए गए इस कारण महिलाएं शिक्षा राजनीति, प्रशासनिक सेवाएँ,
कार्पोरेट, खेल सभी क्षेत्रों में अपनी
योग्यता व क्षमता का अच्छा प्रदर्शन कर रही है। लेकिन आज भी हमारे समाज में
स्त्रियाँ असुरक्षित महसूस करती है। हम सभी एक विकसित और शिक्षित समाज का हिस्सा
है परन्तु हमारी मानसिकता अभी भी महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण है। अलग-अलग वर्गो, जातियों, धर्मो, समुदायों से संबंधित होने के कारण महिलाओं के बारे में एक
राय बनाना कठिन कार्य है। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि ज्यादातर महिलाएं
पितृसत्तात्मक ढांचे की वजह से तकलीफों का सामना करती है। भारत के ज्यादातर हिस्सों में लड़कियां अभी भी डर, उपेक्षा और भेदभाव का बोझ उठाती है। महिलाएं आज भी समाज में
हिंसा का शिकार होती है। बलात्कार,
अपहरण, दहेज मृत्यु, यौन-उत्पीड़न इस तरह की घटनाओं में अभी तक कोई कमी नहीं आई
है। कामकाजी महिला होने के बावजूद वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वतंत्र नहीं
है। कोई भी निर्णय वह स्वयं नहीं ले सकती। प्रत्येक निर्णय में परिवार और समाज का
काफी दबाव होता है। महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ने से समाज में काफी बदलाव देखने को मिला है।
महिलाएँ घर से बाहर नौकरी व व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। परन्तु जब तक
निर्णय लेने के अधिकार और उत्पादन के साधनों पर उसका स्वामित्व नही होगा, तब तक उसका सशक्तिकरण अधूरा है। महिला जब स्वयं के बारे में
कोई निर्णय लेती है तो परिवार व समाज के बारे में उसे पहले सोचना पड़ता है। सरकार
द्वारा कानून बनाने के बावजूद अभी भी वो सम्पत्ति के अधिकार से वंचित है। महिला द्वारा किए जाने वाले घरेलु कार्य की अभी भी कोई गणना नहीं है। महिला का
समाज के प्रत्येक क्षेत्र में योगदान है। वो बच्चों को जन्म देने और घर-गृहस्थी
संभालने के साथ-साथ किसान, श्रमिक, कारीगर, व्यवसायी आदि कार्य भी करती
है, वे सदैव उत्पादन में लगी रहती है और जीडीपी में उनका योगदान
हमेशा रहता है। महिलाएं अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है। उनके काम के
बेहतर परिणाम प्राप्त हो इसके लिए उनकी भूमिका को मान्यता दी जानी चाहिए। महिला सशक्तिकरण एक मिथक या यथार्थ:- किसी भी समाज के सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक विकास में महिला-पुरूष दोनों की
समान भूमिका होती है। अतीतकाल से लेकर वर्तमान समय तक किसी भी युग में महिला कमजोर
नहीं रही है। बच्चे के जन्म से लेकर,
परिवार के पालन पोषण का कार्य जिस धैर्य और सहनशीलता के साथ एक महिला के
द्वारा किया जाता है पुरूष यह कार्य कभी नही कर सकता। विदुषी, योद्धा व वैज्ञानिक हर रूप में प्रत्येक स्तर पर महिला ने
अपने कुशल नेतृत्व को साबित किया है। महिलाएं शिक्षित हो रही है, उनमें क्षमता है, कुशलता है, ज्ञान है बस आवश्यकता है
उसके कार्य को साझा करने की व स्वीकार करने की। घरेलू कामकाज और बच्चों की देखभाल
का कार्य महिला-पुरूष साथ मिलकर करे तो वह अपने लिए समय निकाल पाएगी, देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे पाएगी। समाज की सोच में
बदलाव की भी आवश्यकता है जो महिलाओं को केवल एक मनोरंजन का साधन मानते है। महिलाओं
के सशक्तिकरण के साथ मानवीय मूल्यों का भी सशक्तिकरण होना चाहिए। महिला सशक्तिकरण और समाज पक्ष स्त्रियों के अस्तित्व का अधिकार और समाज द्वारा
उसकी स्वीकार्यता है। महात्मा गाँधी ने ‘‘यंग इंडिया‘‘ में लिखा है कि नारी को अबला कहना अधर्म है। नारी को किसी
भी परिस्थिति में डरना नहीं चाहिए। उसके पास विशाल शक्ति है वह किसी से कम नहीं। पंचायती क्षेत्र में महिलाओं के आरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए है।
महिलाएं निर्वाचित होकर सरपंच भी बन रही है। पर निर्णय सरपंच पति के द्वारा लिए
जाते है। जिससे महिलाओं को संवैधानिक अधिकार प्राप्त होने के पश्चात् भी अभी
स्थिति कई बार काष्ठ पुत्तिलिका मात्र रह जाती है। निर्णय लेने की आज़ादी आज भी
महिलाओं के पास नहीं है। अतः उन्हें निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान की जानी
चाहिए। महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य है सामाजिक पक्षपात से मुक्ति। उसे उसके प्रति
निरंकुशता, क्रूरता व अमानवीय व्यवहार
से मुक्ति मिले। लिंग-भेद से मुक्ति मिले। और वह निर्भयता के साथ इस पुरूष-प्रधान
समाज में अपना जीवन-यापन कर सके। |
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निष्कर्ष |
भारतीय समाज में महिला का जीवन बलिदान का प्रतीक है। महिला अपना पूरा जीवन बलिदान करके व्यतीत करती है। किशोरावस्था में वह अपने भाई-बहिन और माता-पिता के लिए समर्पित रहती है। विवाह के पश्चात् पति व बच्चों के लिए अपना जीवन समर्पित करती है। हमारे समाज में महिलाओं को देवी के रूप में माना जाता है और सबसे अधिक शोषण का शिकार भी उसे ही होना पड़ता है। महिलाएँ आज भी मानसिक रूप से गुलाम है महिला शिक्षा को बढ़ावा देने से समाज में परिवर्तन आ रहा है। परन्तु गाँवों व दूर-दराज के आदिवासी इलाकों रहने वाली महिलाएँ अभी भी शिक्षा से वंचित है। उन्हें महिला सशक्तिकरण का अर्थ तक नहीं मालूम है।
महिलाओं के सशक्तिकरण को मजबूती प्रदान करने के लिए आवश्यक है उनके लिए आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास प्रदान करने वाला सामाजिक वातावरण तैयार करना राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना जो महिलाएँ शिक्षा से वंचित है, उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, उनके निर्णयों को स्वीकार करना, उनमें आत्म मूल्य की भावना पैदा करना, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक प्रत्येक क्षेत्र में समान भागीदारी प्रदान करना, उन्हें सुरक्षा प्रदान करना।
सरकार के द्वारा महिलाओं की सुरक्षा व उन्हें आगे बढ़ाने के लिए अनेक कानूनों का निर्माण किया गया है, पर वह कानून तभी सफल होंगे जब नारी स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगी।
महिला को मजबूत बनाने की शुरूआत अपने परिवार व समाज से करनी होगी। एक महिला को दूसरी महिला का साथ देना होगा। चाहे वह माँ, बहन, पत्नी, बेटी किसी भी रूप में हो। महिला स्वयं जागरूक शिक्षित और समझदार होगी तभी वह आगे बढ़ पायेगी और सशक्त बन सकेगी। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. कुरूक्षेत्र (1964) पंचायती राज और महिला विकास, पाइंटर पब्लिशर्स, जयपुर
2. चमड़िया अनिल, महिला सशक्तिकरण और खेतिहार महिलाये, कुरूक्षेत्र, नवंबर 2001
3. ग्रामीण विकास समीक्षा, महिला सशक्तिकरण विशेषांक, जनवरी- जून 2016
4. योजना, भारतीय संदर्भ में ‘नारी सशक्तिकरण, कमला भसीन, सितंबर 2016
5. योजना महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण, इला आर भट्टा, सितंबर 2016
6. द्विवेदी रमेश प्रसाद, भारत में जेण्डर बजट महिला सशक्तिकरण का एक सशक्त माध्यम भारतीय राजनीति विज्ञान शोध पत्रिका, वर्ष- पंचम, अंक-द्वितीय, अगस्त-सितम्बर, 2013 |