ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- I April  - 2023
Anthology The Research
अलवर के बढ़ते पर्यटन में पैनोरमा का योगदान
Contribution of Panorama in the Growing Tourism of Alwar
Paper Id :  17539   Submission Date :  16/04/2023   Acceptance Date :  21/04/2023   Publication Date :  25/04/2023
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प्रदीप कुमार साहू
शोधछात्र
इतिहास विभाग
राजऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय
अलवर,राजस्थान, भारत
सारांश राजस्थान के गौरवशाली इतिहास और विरासत को जिंदा रखने के लिए “राजस्थान धरोहर संरक्षण और प्रोन्नति प्राधिकरण विभाग" द्वारा राजस्थान के सभी जिलों में राजस्थान के लोक देवताओं, महापुरूषों, नायकों, योद्धाओं, संतों, स्वंतत्रता संग्राम के नायकों के जीवन इतिहास पर पेनोरमा का निर्माण कराया गया है। राजस्थान धरोहर संरक्षण और प्रोन्नति प्राधिकरण विभाग द्वारा अलवर जिले वीर हसन खां मेवाती का पेनोरमा, राजा भर्तृहरि पेनोरमा और कृष्ण भक्त अलीबक्श पेनोरमा(मुण्डावर) का निर्माण करवाया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In order to keep alive the glorious history and heritage of Rajasthan, Rajasthan Heritage Conservation and Promotion Authority has created panoramas on the life history of folk deities, legends, heroes, warriors, saints, heroes of the freedom struggle in all the districts of Rajasthan. Alwar District Veer Hasan Khan Mewati Panorama, Raja Bhartrihari Panorama and Krishna devotee Alibaksh Panorama (Mundavar) were constructed by Rajasthan Heritage Conservation and Promotion Authority Department.
मुख्य शब्द पर्यटन, पेनोरमा, हसन खां, भर्तृहरि, कृष्णभक्त अलीबक्श, पर्यटक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Tourism, Panorama, Hasan Khan, Bhartrihari, Krishna devotee Alibaksh, Tourist.
प्रस्तावना
पेनोरमा का अर्थ - चित्रावली, परिदृश्य, दृश्यपटल, विशालदृश्य। अलवर जिले का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है, यहाँ की भूमि पर वीर महापुरूषों ने, देशभक्तों ने, जन्म लिया। यहाँ के प्राकृतिक दृश्य ने लोगों, साधु सन्यासी, राजा महाराजाओं को, पर्यटकों को यात्रा के लिए अपनी और आकर्षित किया। अलवर में पर्यटन की अपार सम्भावना है, यहाँ के प्रत्येक क्षेत्र में कोई ना कोई पर्यटन स्थल है चाहे वो ऐतिहासिक, प्राकृतिक, धार्मिक, कृत्रिम और वर्तमान समय में पैनोरमा विकसित किये जा रहे है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य अलवर में पर्यटन को बढ़ावा मिले और अलवर की सांस्कृतिक परंपराओं को अध्ययन द्वारा प्रकाश में लाना। 2. अलवर के सांस्कृतिक पर्यटन का राज्य के आर्थिक विकास मे योगदान को बढ़ावा मिले, इसलिये मेरे द्वारा अध्ययन के माध्यम से इस विषय का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया। 3. अलवर के सांस्कृतिक पर्यटन का और अधिक विकास करना और पर्यटकों को अलवर की आकर्षित करना।
साहित्यावलोकन

अध्ययन संबधी विषय पर करने पूर्व यह आवश्यक होता है कि दिए गये विषय पर पूर्व में कितने एवं क्या-क्या शोधकार्य किए उन शोधकार्यो की सीमाये क्या-क्या रही। चयनित विषय पर अभी तक कोई पृथक एवं विशिष्टीकृत अध्ययन नहीं किए गए है।

1. अलवर के पर्यटन पर अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आलेख मिलते हैं परन्तु पृथक से अलवर के पेनोरमा पर कोई उल्लेख इनमें नहीं मिलता है।

2. अनिल जोशी की पुस्तक अलवर दर्शनमें अलवर की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, संगीत, उत्सव, पर्यटन और विकास पर चर्चा की गई, यह पुस्तक बहुत पहले लिखी गई थी इसलिए में अलवर में पेनोरमा का जिक्र तक नहीं मिलता।

3. पावलेट की पुस्तक अलवर का पाउलेटइस पुस्तक हिन्दी अनुवाद अनिल जोशी ने किया इसमें अलवर की पृष्ठभूमि, विकास, ओद्यौगिकरण, अलवर पर्यटन पर चर्चा की गई साथ ही इस पुस्तक 1878 में लिखा गया अतः इसमें अलवर के पेनोमरा का उल्लेख नही मिलता।

मुख्य पाठ

वीर हसन खां मेवाती पेनोरमा

वीर हसन खां मेवाती का पेनोरमा हसन खां मेवात अलवर स्थित है। इसका लोकार्पण 27 सितम्बर 2018[1] को किया गया। इसकी कुल लागत 1 करोड़ 36 लाख।[2] इस का उद्घाटन 21 जनवरी 2021[3] को किया गया। सामान्य जनता को नाममात्र के शुल्क में प्रवेश दिया जाता है। इसके निर्माण की घोषणा 2016-17 के बजट पेज संख्या 59.0.0 में की गई।[4] वर्तमान में इसकी व्यवस्था उपखण्ड़ स्तरीय पर्यटन समिति को सौंपी गई। वीर हसन खां मेवाती के पेनोरमा की खास विशेषता यह है कि यहाँ पर चित्रावली के माध्यम से वीर हसन खां मेवाती के पूर्वज, जन्म, युवावस्था, कार्य, वीरगाथा, हसन खां मेवाती का खानवा के युद्ध में योगदान, बाबरनामा और अकबरनामा में उल्लेख हसन खां की कथा, राजतिलक और वीरगति को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया।

पेनोरमा के प्रवेश द्वार पर घोडे पर सवार हसन खां मेवाती की प्रतिमा लगी हुई है। पेनोरमा के अन्दर दो तल बने हुए है। प्रथम तल में एक मात्र मूर्ति भाला लिए हसन खां मेवाती की प्रतिमा लगी है। इसके पास एक लेख लिखा जिस पर शाह-ए-मेवात हसन खां मेवातीअंकित है। यह प्रतिमा एक बड़े हॉल में रखी गई है। इस हॉल के बायें हाथ पर पेनोरमा का दूसरा तल प्रारम्भ होता है।

दूसरें तल का प्रारम्भ हसन खां मेवाती के पूर्वजों की वशांवली से होता हैं। जो बहादुर नाहर खां से प्रारम्भ होकर हसन खां मेवाती पर समाप्त होती है। इनके पिता अलावल खां[5] वि.स. 1549[6] (1492 ई.) मे मेवात के शासक बने। हसन खां मेवाती का जन्म अफरानी के गर्भ से हुआ। इब्राहिम लोदी ओर हसन खां मेवाती मौसेर भाई[7] थे। हसन खां मेवाती शाह-ए-मेवाती के नाम से प्रसिद्ध हुये। हसन खां ने अलवर के किले (बाला किला) का पुर्न निर्माण करवाया तथा चारों तरफ पक्की दीवार बनवाई, इस किले की विशाल दीवार 18 फुट ऊँची बनी हुई है। इस दीवार पर 3359 कंगूरे, 6718 छिद्रे 15 बड़ी बुर्जे तथा 52 छोटी बुर्जे है।[8]

पानीपत के प्रथम  युद्ध 1526 मे हसन खां मेवाती ने इब्राहिम लोदी की सहायता के लिए अपने पुत्र नाहर खां[9] को भेजा इस युद्ध में इब्राहिम लोदी की मृत्यु हुई और नाहर खां को बाबर ने बंदी बना लिया। बाबर ने खानव के युद्ध से कुछ समय पहले नाहर खां को इस उम्मीद पर रिहा किया[10] कि शायद हसन खां मेवाती खानवा के युद्ध में बाबर की ओर शामिल हो जाए और बाबर की और से मैत्री का हाथ बढ़ाया गया जिसे हसन खां ने देश भक्ति और मातृभूमि की खातिर ठुकरा दिया। बाबर ने अपने प्रतिनिधि मुल्ल तुर्क अली और नजफबेग[11] को सुलह के लिए भेजा लेकिन सफलता नहीं मिली। राणा सांगा का हसन का मेवाती को निमंत्रण मिला[12] हसन खां मेवाती को अन्तिम युद्ध से पूर्व उसके गुरू सैयद साहब जमाल अहमद बहादुरपुरी[13] ने बाबर से लड़ने से मना किया था। हसन खां ने अलवर से विदा लेते हुए कहा था कि या तो वह मेवात के लिए स्वतंत्रता ही लायेगा या उसकी लाश ही शहर में लौटेगी।[14] युद्ध में मस्तक पर तीर लगने से हसन खां मेवाती शहीद हुए।[15]

यह मेवाती वह मेवाड़ी मिल गए दोनो सेनाणी।

हिन्दु- मुस्लमी भाव छोड़ मिल बैठ दो हिन्दुस्तानी।।

हसन खां मेवाती ने खानवा के युद्ध में 12000[16] घोडें से सांगा की सहायता की।

एक हसन खां मेवाती, दूजो सांगा हो मेवाड़।

एक हुए दो हिन्दुस्तानी, करी बाबर सू राड़ा।।

हसन खां मेवाती के पेनोरमा में आप को हसन खां मेवाती की कथा देखने को मिलेगी। इस कथा को नरसिंह मेव ने लिखा, इस कथा को खानवा के युद्ध के 50 वर्ष बाद लिखी। नरसिंह मेव सूरदास के समकालीन महशूर मेवाती कवि थे। यह कथा टोडारायसिंह के दिगम्बर जैन मंदिर में उपलब्ध गुटके से उद्धृत है।

अथ हसन खां की कथा प्रारभ्यतै

नारायणस्यो वीनती करो। हाथ जोड़ मनि आखिर मैरा।1

बड पीर ख्वाजे अजमेरि। जिन तुरकाणा की माँ फैरि।

सैह गौह खाते दुखार। ख्वाजे बैठा भान कुफार।2

सौरौ शारद महामाइ। मूल्यों अखिरु देहिजम करयो जोडि।

विनाइग अखिरू दे होहि। गहों कान सिर नाऊ तोहि।3

कथा कहत मन लावहि खोडि। अखिरू देहि जम करयो जोडि।

नगर कझौता उतिम थाना नरसिगु मेव कयै तह ग्यान।4

तो बैकुठंम करो लही। जैसी कीनी नैन करी।।

घुर वैनाख अगामी अडे। इब्राहिम अरू गबरू लडै़।5

सीर मेव की मथुरा पार। बावरू मेलि न सकई कार।

.....................................................................................................

अलवर मेऊ हसन खाना दिल्ली को सेहना परधाना।62

दिल्ली मेव की बांधी लीक। टका लाख घोड़े पर लीक।

राजा भर्तृहरि पेनोरमा-

राजा भर्तृहरि पेनोरमा राजस्थान स्टेटस मेगा हाईवा[17], धोलिदूब, अलवर में स्थित है। इस बात को कौन नहीं जानता की राजा भर्तृहरि उज्जैन के शासक थे फिर इसे अलवर में क्यू बनाया गया ? क्योंकि भर्तृहरि ने राजा पाट त्याग कर अलवर के सरिस्का के बीयाबान जंगल में समाधि लगाई, और तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया। जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। इस पेनोरमा में राजा भर्तृहरि की जीवन यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी चित्रों और मूतियों के माध्यम से दी गई। राजा भर्तृहरि पेनोरमा का लोकर्पण 27 सितम्बर 2018[18] को किया गया तथा जनसामान्य के भ्रमण के लिए खोला गया। इस पेनोरमा की लागत मूल्य 4 करोड़ 75 लाख रूपये रही। 21 जनवरी 2020 को इसे उपखण्ड़ पर्यटन समिति को सौंपा गया। राजा भर्तृहरि ने क्यू वैराग्य धारण किया, जब भर्तृहरि का साक्षात्कार वास्तविकता से हुआ। गुरू गोरखनाथ के शिष्य भर्तृहरि के रूप में तपस्या करने और फिर जनता के मन में बसने की दिलचस्प कहानी। इस पेनोरमा को देखने पर समझ आती है और जींवत हो जाती है। यह पेनोरमा आपके लिए एक आकर्षक संस्थान है।[19] यह पेनोरमा दो मंजिला बनाया गया है। ग्राउण्ड फ्लोर में भर्तृहरि के जीवन पर आधारित चित्र व मूर्तियाँ है। दूसरी मंजिल पर तीन हॉल है जो अभी खाली है।[20] राजऋषि अभय समाज के कलाकरों ने महाराजा भर्तृृहरि के वैराग्य धारण करने के प्रसंग के दृश्य को जीवंत किया। अनिल वशिष्ट जी के बताया कि राजऋषि अभय समाज  पारसी रंगमच शैली में भर्तृहरि नाटक का आयोजन कर रहा है।

भर्तृहरि पेनोरमा में चित्रों और मूर्तियों के माध्यम से भर्तृहरि के सम्पूर्ण जीवन की जानकारी दी गई है। जन्म, विद्यार्जन, मिलन, शिवोपसना, अमर फल की यात्रा, वैराग्य धारण, पिंगला से माता कहकर भिक्षा मांगना इत्यादि के दृश्य।[21]

श्राजा भर्तृहरि पेनोरमा के निर्माण का प्रमुख प्रशासनिक मुखिया[22] टीकम बहोरा (RAS मुख्य कार्यकारी अधिकारी) तकनीकी पर्यवेक्षण[23] सुरेश कुमार स्वामी (अधिशासी अभियंता)[24] तकनीकी प्रभारी[24] लोकेश गुप्ता (सहायक अभियंता) तथा प्रदर्शन सामग्री निर्माता- (1) मै. तनवंगी मूर्ति क्रिएशन्स. जयपुर फाईबर मूर्ति[25] (2) मै. मातुराम आर्ट सेन्टर्स प्रा. लि. गुडगाँव-गनमेटल मूर्ति[26] (3) मै. राजमुकुट मूर्ति क्रिएशन्स जयपुर-6 लेक मार्बल मूर्ति[27]

राजा भर्तृहरि न केवल महान राजा थे बल्कि एक महान कवि भी थे। राजा भर्तृहरि ने शतकत्रय लिखा- नीति शतक, श्रृंगार शतक, वैराग्य शतक कुछ विद्वानों के अनुसार राजा भर्तृहरि ने 9 कृतियाँ लिखी-

(1) महाभाष्यटीका (2) वाक्यदीप(3) वाक्यदीप के प्रथम दो कांडो पर स्वाप्रज्ञावृति

(4) शतकत्रय (5) मीमांसा सूत्रवृत्ति (6) वेदांतसूत्रवृति       

(7) शब्दन्धातु समीसा (8) भागवृति (9) भर्तृहात्य

राजा भर्तृहरि का नीतिशतक की कुछ पक्तियाँ

दिक्कालाद्यनवच्छित्रानन्त चिन्मात्र मूर्तये।।[28]

स्वानुभुत्येकमानाय नमः शान्ताय तेज से।1

अर्थ- जो ईश्वर दशों दिशा, तीनों काल एंव आकाशादि में व्याप्त है और अपने अनुभव से जानने योग्य है ऐसे शान्त एंव प्रकाश स्वरूप परमात्मा को नमस्कार है।[28]

चां चिन्तयामि सतंत यथि सा विरक्ता

साप्यन्यमिच्छति जन स जनोडन्पसक्तः

अस्मत्कृते च परितुष्यति का चिदन्या

धिंक्ता च तं च मढने च इमा च मांच।2।[29]

अर्थ- जिस रानी से मै प्रेम रखता हूँ वह अन्य पुरूष को चाहती है और वह पुरूष किसी और स्त्री से प्रेम करता है और वह स्त्री हम से प्रसन्न है, इसलिए रानी को उस अन्य पुरूष एवं कामदेव को तथा इस वेश्या और मुझे धिक्कार है।2

लभते सिकातासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्

पिबेच्चमृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासर्दियः

कदाचिदसिच पर्यटण क्षरा विषाण मासादयेत

नतु प्रतिनिबिष्ट मूर्खजन चित्तमाराधयेत।3।[30]

अर्थ-कदाचित यत्न द्वारा बालू से भी तेल निकल सकता है, प्यासा मनुष्य मृगतृष्णा से भी अपनी प्यास बुझा सकता है और खोजने से खरगोश का सींग भी मिल सकता है यह सब बातें असम्भव होने पर भी सम्भव हो सकती है, परन्तु मूर्ख मनुष्य के मन को सुधारना नितान्त असम्भव है।

येषां न विद्या न तपो न दांना।

ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्म।

ते मर्त्यलोक युविभारभूता-

मनुष्य रूपेण भृगाश्रर चिन्ता।4।[31]

अर्थ- जो मनुष्य न विद्धान न तपस्वी न दानी न ज्ञानवान न सुशील न गुणी और न धर्मात्मा है। वे संसार में पृथ्वी पर भार रूप हुए मनुष्य रूप में पशु के समान विचरते है।4

कृष्णभक्त अलीबक्ष पेनोरमा- मुण्डावर (अलवर)

कृष्णभक्त अलीबक्श पेनोरमा मुण्डावर, अलवर मे बना है, कृष्णभक्त अलीबक्श पेनोरमा सम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक है, यह पेनोरमा हिन्दु-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यहाँ सभी सम्प्रदाय के लोग आते है। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राजस्थान एवं हरियाणा की लोकनाट्य परम्परा-ख्याल एवं सांग को विकसित एवं सुदृढ़ आधार प्रदान की श्रृंखला में कृष्णभक्त अलीबक्श का नाम अग्रणी है। भगवान कृष्ण की लीला पर आधारित, प्रचलित एंव लोकप्रिय लोकनाटयों में अलीबक्श के लोकनाट्य सर्वोपरि है। कृष्ण भक्त अलीबक्श के जीवन, भक्ति एंव कला को दर्शित करता यह पेनोरमा अत्यन्त ही रमणीय पर्यटक स्थल है।[32] अलीबक्श का जन्म मुण्डावर[33] में हुआ। पूरा नाम उस्ताद अलीबक्श जगमहल खां (1850-1920) अलीबक्श जी मकबरा लखनऊ के केसर बाग में स्थित है। अलीबक्श को अलवर का रसखान[34] कहा जाता है। अलीबक्श की साहित्य में रूचि अत्यधिक थी, इस कारण उन्होनें कला को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया।

जब वे लगभग दस वर्ष के थे तब उन्होने नौटंकी का प्रदर्शन देखा। अपने को नवाबी कुल से सम्बन्धित समझें और वे नौटंकी के रगंमच पर बैठ गये। कुछ लोगों ने इस बात पर अपना आक्रोश प्रकट किया और कहा यह मंच ब्राह्मणों के लिए हैं, तुम्हारे लिए नहीं है, और यदि तुम्हें रगंमच पर बैठने का शौक है तो वे स्वयं अपना दल बनाकर आदर प्राप्त करे। इस बात से बालक अलीबक्श के हृदय को अत्यधिक गहरा आघात पहुँचा और वे अपने गुरू गरीबदास जी के पास उचित परार्मश लेने पहुँचें। गुरू की प्रेरणा और आर्शीवाद से उन्होने ख्याल लिखना प्रारम्भ किया।[35] साथ ही उन्होने अपने एक स्वतंत्र दल का संगठन किया। अलीबक्श जी को संगीत तथा नृत्य की विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी। वे अपनी मंडली को स्वयं अभ्यास कराते थे तथा अपने कलाकर साथियों के साथ बड़ा सद्व्यवहार किया करते थे। अलीबक्श के ख्याल प्रदर्शन इतने अच्छे होते थे कि लोग शाम को शुरू होने वाले प्रदर्शेनों के स्थानाभाव के भय से दोपहर से ही अपना स्थान गृहण कर लेते थे। अलीबक्श ख्यालों का प्रदर्शन व प्रचलन केवल अलवर क्षेत्र तक ही सीमित नहीं वरना दिल्ली, रेवाड़ी तथा आगरा तक भी इनके प्रदर्शनी की धूम थी।

अलीबक्श के ख्याल भक्ति से ओत-प्रोत और नृत्य संगीत की सुरम्य भाव लहरियों से सराबोर होते थे। अभिनेता गण स्वंय भक्तिरस में सरोबार होकर नाचते थे।[36] अलीबक्श ख्याल का संगीत और भावपक्ष बहुत ही प्रबल तथा उच्चकोटि का है। पद संचालन पर अधिक जोर नहीं दिया जाता। केश-विन्यास आदि में भी बड़ी सरलता बरती जाती है। बताते है कि अलीबक्श स्वंय रगमंच पर नहीं उतरते थे।[37] परन्तु जब भी कभी प्रेरणावश ऐसा करते तो वे कमाल ही कर दिखलाते थे और जनता को अपनी भाव-भगिमाओं से रूलाकर छोड़ते थे। अलीबक्शजी के हस्तलिखित ख्याल आज भी अलवर के राजकीय सग्रंहलय में सुरक्षित है।[38] अलीबक्श जी ने कुल मिलाकर 9 ख्याल[39] का निर्माण किया जिनके नाम निम्न प्रकार है।

1. नलका बगदाब 2. नल का छडाव

3. पदमावत (हिन्दी) 4. निहालदे

5. फिसाना आजाइब(हिन्दी) 6. अलवर का सिफतनामा

7. चन्द्रावत  8. गुलाब का बली (उर्दू)

9. महाराजा शिवदानसिंह का बारहमासा।

संगीत अलीबक्श ख्यालों की जीवन शक्ति है। इसके आधार पर ही उन्होंने अपनी विजय-पताका फहराई है। रात्रिभर जनता अपने स्थान से हिलती तक नहीं थी। इनका संगीत राग-रागिनियों के आधार पर है। रागनियों की विशेषता को लोक जीवन में इस प्रकार सुना जाता है-

भैरू सुर बाको कहै कोलहू चलै अधाय

मालकोष तब जानिये पाहन पीघल जाया।

चलै हिन्डोला आप से सुनत राग हिन्डोला

बरसै जल घनघारे अति सुन मेहराग के बोल

श्री राग के सुर सुनै तो सूखो वृक्ष हराय

दीपक-दीपक जर उठै जो कोई जानै गाय।

अलीबक्शजी का संगीत दर्शक को इतना आत्मविभोर कर देता है कि वह अपनी सुध-बुध भूल जाता है। अलीबक्श का सोरठ राग अधिक प्रसिद्ध है-

कर पकरत चूरियाँ सारी करक गई, मोरी नरम कलइयाँ देखो दइ्या बल खय गई

कर मैं कर कंघा गह लीन्हो, तन, मन, धन, जोबन खस किन्है।।

अरी कौन छु़ड़ावै मोह सखी सब छोड़ सहेली सटक गई।

सांस के पास गई जब गोरी, पूछ उठी चूरियाँ तोरी

कर सांवत करवट मोह दबी चूरियाँ मुरक-मुरक सारी मुरक गई।

अपने शिष्यों के प्रति बहुत स्नेहभाव रखते थे पूरण और गोपाल इनके प्रमुख शिष्य थे। एक बार की घटना है इनके प्रिय शिष्य पूरण के यहाँ एक छोटा बच्चा गुजर गया था। उससे वह बहुत दुःखी था। अलीबक्श स्वयं तो सान्तवना देने के लिए पहुँच न सके लेकिन उसे किसी के हाथ पत्र लिखकर भेजा।

बन्दे गई चीज को क्योरोव,
रो रो प्राण तू क्यो खोवे
ये दुनिया स्वार्थ की सारी
भजन बिना दिन क्यों खोवे
संत साबन से मन को मांज ले
राम के तुखम को क्यो बोवे
मोह माया के फंस कन्द में
उब गफलत में क्यों सोवे
कहे अलीबक्श मन समक्षा पूरण
मेहर करे तो प्रभु फिर होवे।[40]
अलीबक्श हूं टीकावत मेरा अलीबक्श मेरा नाम।
नगर मुडावर सुबस बसो जो मेरा निज धाम

निष्कर्ष उपयुक्त लेख में अलवर में पर्यटन की व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। अलवर में पर्यटन की आधार सम्भावना है वर्तमान समय में अलवर में पेनोरमा आ निर्माण करवाया गया जो अलवर में पर्यटन पर चार चाँद लगाने का कार्य करेगा। पेनोरमा के माध्यम से इतिहास को पुर्न जीवंत करने का कार्य किया गया। हमारे महान व वीर पुरूष के जीवन माया को जानने का महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध होगा। अतः यह निश्चित रूप् से कहा जा सकता है कि पेनोरमा पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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