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भारतीय वाणिज्यक बैंको का पर्यावरण संरक्षण में योगदान | |||||||
Contribution of Indian Commercial Banks in Environment Protection | |||||||
Paper Id :
17474 Submission Date :
2023-04-15 Acceptance Date :
2023-04-22 Publication Date :
2023-04-25
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सारांश |
पर्यावरण संरक्षण का इतिहास मानव सभ्यता से शुरू होता है। भारत में प्राचीन काल से ही पर्यावरण की रक्षा के लिये अनेक उपाय किए जा रहे है। ऊर्जा के श्रोत सूर्य को देवता तथा जीवनदायिनी नदियों को देवी माना गया है। भारतीय संस्कृति में पेड़ पौधे व पशुओं की पूजा की जाती है। ये सभी सम्मिलित क्रिया कलाप पर्यावरण संरक्षण को बल देते है। आर्थिक विकास की गति ने यद्यपि पर्यावरण को हानि पहुँचाई। मुद्रा का अविष्कार हुआ। धीरे-धीरे बैंको का विकास हुआ। बैंको के स्वरूप में परिवर्तन हुआ। सार्वजनिक बैंको के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में निजी बैंक भी कार्य करने लगी। वाणिज्य बैंक जमा स्वीकार करती है और ऋण प्रदान करती है। जब वाणिज्य बैंक हरित परियोजनाओं के संरक्षण वाली योजनाओं को मुद्रा प्रदान करती है तो यह माना जाता है कि वाणिज्य बैंके भी पर्यावरण संरक्षण के पवित्र कार्य को सम्पादित कर रही है। पर्यावरण संरक्षण में वाणिज्यक बैंको की भूमिका वर्तमान समय में बढ़ गयी है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The history of environmental protection begins with human civilization. Many measures are being taken to protect the environment in India since ancient times. Sun, the source of energy, was considered a deity and life-giving rivers were considered goddesses. Trees, plants and animals are worshiped in Indian culture. All these combined activities emphasize environmental protection. The pace of economic development, however, harmed the environment. Currency was invented. Banks developed gradually. There was a change in the form of banks. Along with public banks, private banks also started working in the economy. Commercial banks accept deposits and provide loans. When commercial banks provide money to schemes that protect green projects, it is believed that commercial banks are also doing the sacred work of environmental protection. The role of commercial banks in environmental protection has increased in the present times. | ||||||
मुख्य शब्द | वाणिज्य बैंक, पर्यावरण संरक्षण, हरित परियोजनाएं, ग्रीन बैंकिंग। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Commercial Bank, Environment Protection, Green Projects, Green Banking. | ||||||
प्रस्तावना |
भारत में वाणिज्य बैंको का अभिप्राय उन बैंको से लगाया जाता है जो साधारण बैकिंग का कार्य करते है और जिनका नियमन व नियन्त्रण भारत के बैकिंग कानून के अनुसार होता है। भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय बैंक है जो सभी वाणिज्यक बैंको का नियमन करता है और नियन्त्रण भी रखता है। वाणिज्यक बैंक दो वर्गो में विभाजित है एक अनुसूचित बैंक व दूसरा गैर अनुसूचित बैंक। स्वामित्व के आधार पर चार प्रकार के अनुसूचित बैंक होते है। पहला भारतीय स्टेट बैंक व उसकी सहायक बैंकें तथा राष्ट्रीयकृत बैंक, दूसरा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, तीसरा निजी क्षेत्र के बैंक, चौथा विदेशी बैंक।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य भारतीय वाणिज्यक बैंको का पर्यावरण संरक्षण में योगदान का अध्ययन करना है। |
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साहित्यावलोकन |
स्वतन्त्रता के बाद भारत के वाणिज्यक बैंको का निरन्तर विस्तार हो चुका है। 16 मार्च 1949 को बैंकिंग कम्पनी एक्ट लागू किया गया। भारतीय बैकिंग व्यवस्था की अवांछनीय प्रवृत्तियों तथा बैकिंग साधनों का गलत दिशा में प्रयोग रोकने के उद्देश्य से यह अनुभव किया गया कि भारत के वाणिज्यक बैंक देश के सर्वाधिक हित में कार्य तभी कर सकते है जब बैंको पर राष्ट्र का स्वामित्व हो, इस कारण से 1968 में बैंको पर सामाजिक नियन्त्रण की योजना लागू की गई ताकि बैंके सरकार के दिशा स्थापना का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। कुछ वर्षो बाद पुनः यह अनुभव किया जाने लगा कि देश के वर्तमान वाणिज्यक बैंक सरकार के उद्देश्यों व लक्ष्यों के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे है। इस कारण समाज से मांग उठने लगी कि राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिये। |
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मुख्य पाठ |
बैंक किसी
देश या समाज के वित्तीय संस्थानों के संरक्षक होते है क्योंकि राष्ट्रीय बचत का
अधिकांश भाग जमा के रूप में उनके पास इकठ्ठा होता है। समाज के वित्तीय साधनों का
विशालतम भाग बैंको के नियन्त्रण में रहने के कारण अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र
अपनी वित्त सम्बन्धी जरूरतों पर बैंको पर ही आश्रित हो जाते है। बैंको के पर्याप्त
मात्रा में जमा मिल जाती है और बैंक यदि इस जमा का प्रयोग अर्थव्यवस्था के हित में
करना चाहे तो विकास दर में महत्वपूर्ण वृद्धि भी हो सकती है। एक विकासशील देश में
बैंको का कार्य बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस कारण स्वतन्त्रता के बाद से ही
समय-समय पर धन का निजी क्षेत्रों में केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति पर आपत्ति उठायी
जाती रही है। राष्ट्रीयकरण उसी का परिणाम था। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश के
माध्यम से 50 करोड़ रूपये से अधिक जमा राशि वाले अनुसूचित बैंक जिनकी संख्या 14 थी
सरकार ने अपने स्वामित्व में लेने की घोषणा कर दी। 25 जुलाई 1969 को लोकसभा में
विधेयक रखा गया। 4 अगस्त 1969 को विधेयक पास हुआ तथा 8 अगस्त को राज्य सभा में पास
हुआ उसके बाद 9 अगस्त को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से कानून अवैध घोषित कर दिया
किन्तु पिछली तिथि यानी 14 जुलाई 1969 से लागू करने वाला अध्यादेश 14 फरवरी 1970
को राष्ट्रपति ने जारी किया। इस अध्यादेश को पुनः सर्वोच्च न्यायालय में चैलेन्ज
किया गया सुप्रीम कोर्ट ने कुछ आपत्तियॉ उठायी आपत्तियों को ध्यान में रखते हुये
संसद ने 27 फरवरी 1970 को संशोधित विधेयक पास कर दिया। 31 मार्च 1970 को
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन गया। एक दशक का अनुभव रहा कि राष्ट्रीयकरण
से भारतीय वाणिज्यिक बैकिंग व्यवस्था में अमूल चूल परिवर्तन होने लगे है। 85
प्रतिशत बैकिंग व्यवस्था पर जब सरकार का एकाधिकार हो गया तो सामाजिक क्षेत्रों और
आर्थिक क्षेत्रों में बैंको की भूमिका में महत्वपूर्ण वृद्धि होने लगी। इस कारण
देश में बैंको के राष्ट्रीयकरण का दूसरा और 15 अप्रैल 1980 को शुरू हुआ जब 6 बड़े
बैंको का जिनकी पूंजी 200 करोड़ से अधिक थी, का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
राष्ट्रीयकरण के कारण बैंको ने साख जमा वृद्धि के ग्रामीण क्षेत्रों में नई शाखाओं
का प्रसार किया। |
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निष्कर्ष |
निष्कर्षतः यह स्पष्ट है कि पर्यावरण संरक्षण में वाणिज्यक बैंको की महत्वपूर्ण भूमिका है। बैंक किसी भी देश के सतत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। ग्रीन बैकिंग आज मुहावरा बन गया है। वित्तीय, आर्थिक व पर्यावर्णीय परिवर्तनों के कारण वित्तीय सेवा बाजार भी परिवर्तन हो रहा है। ग्रीन बैकिंग के विचार ने बैंको को पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और देश में कार्बन उत्सर्जन करने वाली परियोजनाओं को हतोत्साहित करता है। अर्थव्यवस्था के समावेशी विकास के लिये एक मजबूत व स्वस्थ बैंकिंग प्रथा की जरूरत होती है। भारतीय रिजर्व बैंक पर्यावरण नीतियों को सुविधाजनक बनाने में प्रमख योगदानकर्ता है। भारत जैसे विकासशील देशों में बैकिंग के सामाजिक व पर्यावर्णीय आयाम पर बल देने की आवश्यकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Sala, Enric (2020), “The Nature of nature : Why we need the wind” National Geographic, USA
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