ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- I April  - 2023
Anthology The Research
शेखावाटी में आधुनिक शिक्षा - एक अध्ययन (सेठ साहूकारो के विशेष सन्दर्भ में)
Modern Education in Shekhawati - A Study (With Special Reference to Seth Sahukars)
Paper Id :  17529   Submission Date :  2023-04-16   Acceptance Date :  2023-04-22   Publication Date :  2023-04-25
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बाबू लाल
शोधार्थी
इतिहास विभाग
राजऋषि भृर्तहरि मत्स्य विश्वविद्यालय
,अलवर, राजस्थान, भारत
सारांश
आज शेखावाटी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी है। राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में शेखावाटी का अपना स्थान है। ब्रिटिश काल में ही यहाँ के सेठ साहुकारों ने शिक्षा के महत्व को समझा व विभिन्न शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर शिक्षा का अलख जगाया। बंबई आर्य समाज की स्थापना के साथ ही शेखावाटी क्षेत्र में भी आर्य समाज की विभिन्न शाखाएं खोली गई जिनमें रामगढ़ शेखावाटी, फतेहपुर, टमकोर, चिड़ावा, पिलानी, मंडावा, बगड़, सीकर, झुंझुनू आदि आर्य समाज की शाखाओं ने शिक्षा के प्रचार - प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रसिद्ध आर्य समाजी घीसाराम वर्मा, देवीवक्स सर्राफ, पं. क्षेमराज शर्मा, चौधरी जीवणराम, विद्याधर कुल्हरी, नेतरामसिंह गोरिर, महात्मा कालुराम, ताड़केश्वर शर्मा आदि लोगो ने शिक्षा की अलख समाज के माध्यम से जगाई। शेखावाटी के विद्यानुरागी सेठों में घनश्याम दास बिड़ला, रामनारायण रूईया, आनन्दी लाल पौद्दार, महादेव जी सोमानी, जमना लाल बजाज, भागीरथ मल कानोडिया, इन्द्रचन्द्र, मोतीलाल झुन्झुनू वाला आदि लोगों ने अपने व्यापार - वाणिज्य के साथ - साथ शेखावाटी में विभिन्न शिक्षण संस्थानों की स्थापना कर शिक्षा रूपी यज्ञ में अपनी आहुतियां दी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Today Shekhawati is leading in the field of education. Shekhawati has its own place in the field of education in Rajasthan. In the British period itself, the Seth Sahukars of this place understood the importance of education and by establishing various educational institutions, raised the flame of education. With the establishment of Bombay Arya Samaj, various branches of Arya Samaj were also opened in Shekhawati region, in which branches of Arya Samaj, Ramgarh, Shekhawati, Fatehpur, Tamkor, Chidawa, Pilani, Mandawa, Bagad, Sikar, Jhunjhunu etc. have contributed in the promotion of education. Famous Arya Samaji Ghisaram Verma, Devivax Saraf, Pt. Kshemraj Sharma, Chaudhary Jeevan Ram, Vidyadhar Kulhari, Netramsingh Gorir, Mahatma Kaluram, Tadkeshwar Sharma etc. awakened the light of education through society.
Ghanshyam Das Birla, Ramnarayan Ruia, Anandi Lal Pauddar, Mahadev Ji Somani, Jamna Lal Bajaj, Bhagirath Mal Kanodia, Indrachandra, Motilal Jhunjhunu Wala, etc. have established various educational institutions in Shekhawati along with their business and commerce. After establishment, he sacrificed himself for upliftment of education.
मुख्य शब्द आर्य, सेठ साहुकारो, शेखावाटी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Arya, Seth Sahukaro, Shekhawati.
प्रस्तावना
शेखावाटी क्षेत्र जिसमें राजस्थान के सीकर, झुंझुनू के जिले आते है। जयपुर राज्य के उत्तर में 27°20' से 28°34' उत्तरी अक्षांश व 74°41' से 76°06' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। शेखावाटी का कुल क्षेत्रफल 13784 वर्ग किमी था । जो जयपुर रियासत का लगभग एक चौथाई हिस्सा था। इसमें सीकर, नवलगढ़, झुंझुनू, पिलानी, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़ रामगढ़ आदि मुख्य कस्बे थे। जयपुर राज्य के अन्य भागों की तुलना में शेखावाटी का अधिकांश भाग अनुपजाऊ था व बालू के टीलों से आच्छादित था। वर्षा की अनिश्चितता निरन्तर रूप से बनी रहती थी। रेतीला और अर्द्ध रेगिस्तानी प्रदेश होने के बावजूद यहॉ मूल्यवान खनिजों के प्रचुर भण्डार भरे हुए थे। पुरातत्वविदों कि मान्यता है कि सिन्धु सभ्यता में उपयोग में लाया जाने वाला तांबा शेखावाटी के क्षेत्र से ही प्राप्त होता था।
अध्ययन का उद्देश्य
सेठ साहुकारों द्वारा आधुनिक शिक्षा की शुरूआत से पूर्व शेखावाटी में परम्परागत और मुस्लिम शिक्षा पद्धति प्रचलित थी। शिक्षा चटशाला, पाठशाला, मकतबो, पोसाल, मंदिरों आदि में दी जाती थी। यहाँ के सेठ साहुकारों ने इसे आधुनिक रूप देने के लिए अनेक भव्य शिक्षण संस्थाओ का विकास किया जो यहां की तत्कालीन सामन्ती व्यवस्था में बहुत ही कठिन कार्य था। शोध कार्य का उद्देश्य उन महान आत्माओं ने अज्ञान रूपी अंधकार की घनघोर घटाओं से जूझते हुए ज्ञानरूपी प्रकाश की जो किरणे फैलायी और उनकी उत्तराधिकारी पीढ़िया भी फैला रही है, उनको याद करना व उनके किए गए कार्य ने शेखावाटी में शिक्षा की जो लहर फैलायी और जो लौ जलाई वो आज भी दिप्तीमान है, उनको सच्ची श्रंद्धाजलि होगी। उस जमाने में एक किसान बालक के लिए तो यह मान्यता थी कि उसे तो हल जोतना, ऊंट लादना सीखना चाहिए। पढ़कर क्या करेगा ? कोई पटवारी या मुनीम थोडे ही बनना है। ऐसी धारणा के बीच शिक्षा का क्या महत्व था और उस समय के अनेकों विद्यार्थियों ने अनेक उच्च पदों को सुशोभित किया, इन विद्यानुरागी सेठो की दूरगामी नीति का ही परिणाम था। प्रस्तुत शोध कार्य में उसकी इसी नीति को दिखाने का प्रयास किया गया है।
साहित्यावलोकन

शेखावाटी क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा के विकास में सेठ साहुकारों का योगदान था। विभिन्न ग्रंथों में हमें थोड़ा बहुत इसका उल्लेख मिलता है। शेखावाटी के स्वंतत्रता आंदोलन के इतिहास व आर्य समाज ने जो योगदान दिया, वह शेखावाटी में शिक्षा के विकास में विस्तृत एवं विश्लेषणात्मक शोध कार्य भी सीमित दिखाई देता है। शेखावाटी में शिक्षा के विकास के संदर्भ में राजेन्द्र कस्वा और रिछपाल जानु के ग्रंथ -मरूधरा के शिक्षा अनुरागी सेठमहावीर प्रसाद शर्मा के ग्रंथ- झुंझुनू जिले के आदर्श शिक्षक’, मोहन सिंह के ग्रंथ - औधड़दानी सेठ सोहन लाल दुग्गड्उपयुक्त ग्रन्थों में मूल तथ्यों के अध्ययन के माध्यम से शेखावाटी क्षेत्र में शिक्षा के विकास तथा विभिन्न वर्गो एवं क्षेत्रों पर उसके व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के साथ-साथ इस कार्य की समीक्षा का भी प्रयास किया गया कि शिक्षा के विकास ने शेखावाटी की राजनैतिक स्वंतत्रता प्राप्ति के पश्चात् उसके एकीकरण में तथा आधुनिक शेखावाटी के निमार्ण में किस सीमा तक भूमिका बनाई

मुख्य पाठ

चौहानो के वंशज राणा कर्म चन्द ने फिरोजशाह तुगलक के समय इस्लाम धर्म अपनाकर अपना नाम क्याम खॉ रखा। इसी क्याम खां के वंशज क्याम खानी कहलाए। क्याम खां के वंशज मुहम्मद खां ने 1450 ई में झुंझुनू एवं फतेह खां ने 1451 ई में फतेहपुर में नवाबी राज्य की स्थापना की। शेखावाटी में यह नवाबी राज्य 1450 ई से 1730 ई के मध्य शासन किया। आमेर के कच्छवाह वंशी शेखा जी ने अमरसुर पर अधिकार कर अपनी राजधानी बनाई। इसी शेखा के वीर वंशज शार्दल सिंह की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य उसके पांच पुत्रो में बांटा गया। अब यह प्रदेश पंचपाना कहलाने लगा। शार्दल सिंह के वंशज शेखावाटी क्षेत्र में पंचपाने के रूप 1742 से आजादी तक शासन किया।

शेखावाटी क्षेत्र राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा था। जनजागरण शिक्षण संस्थाओं का भारी योगदान रहा है और इसका श्रेय यहां के धन कुबेरों को दिया जाता है। बिड़ला, पोद्दार, चमड़िया, कानोडिया, रूईया, सोमानी, माखरिया, डालमिया, परिवारों द्वारा शेखावाटी के शिक्षा यज्ञ में डाली गई आहुतियां ने जो ज्ञानदीप प्रज्वलित किया वह स्तुत्य है। इसके पीछे मूल भाव यही था कि इन धन कुबेरों को अपनी माटी के प्रति लगाव था।

शेखावाटी क्षेत्र में आजादी मिलने से पहले ही इस अंचल के सेठों ने गांवो में स्कूल खोलकर एक क्रांतिकारी कदम उठाया। शेखावाटी में सेठ - साहूकारो द्वारा शिक्षा प्रारम्भ करने से पूर्व परम्परागत व मुस्लिम शिक्षा प्रणाली थोड़ी बहुत प्रचलित थी। परम्परागत शिक्षा गांवो व कस्बो में चटशाला, पाठशाला, पोसाल, जेन उपासको, मन्दिरो व मकतबो में दी जाती थी। परम्परागत शिक्षा के अन्तर्गत हिन्दी पाठशालाएं जिन्हें चटशालाएं कहते थे। इन शालाओं के पाठ्यक्रम का मुख्य विषय प्राथमिक अंक गणित होता था। जो पट्टी और बोर्ड पर लिखना, पढ़ना सिखाया जाता था। इन पाठशालाओं में प्रवेश के कोई निश्चित नियम नहीं थे और न ही किसी प्रकार की परीक्षा प्रणाली थी। न कोई निश्चित शुल्क और न कोई गणवेश होती थी। शिक्षा की इस परम्परागत पद्धति में गुरू पूर्णिमा को विद्यार्थी रूपया, अठन्नी, चवन्नी, नारियल तथा पुष्पमाला अपने गुरू को भेंट करके उसकी पूजा करते थे।

मुस्लिम शिक्षा पद्धति के तहत शिक्षा मकतबो में दी जाती थी, जो एक शिक्षक पाठशालाएं होती थी। मकतबो में फारसी व्याकरण तथा प्रारम्भिक स्तर की शिक्षा दी जाती थी। शिक्षकों के वेतन का उत्तरदायित्व गांव व कस्बो के स्थानीय लोगो पर था। शिक्षक को समय - समय पर संपन्न लोगों से मिलने वाले उपहार भी पारिश्रमिक के रूप में प्राप्त होते थे।

1813 के चार्टर एक्ट में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार शिक्षा के प्रति राजकीय उत्तरदायित्व को वहन करते हुए, भारतीय क्षेत्रो में साहित्य विज्ञान व विद्वानों के प्रोत्साहन के लिए प्रतिवर्ष एक लाख रूपये खर्च करने की व्यवस्था की। लार्ड विलियम बेटिक ने मैकाले के विचारो का अनुमोदन करते हुए 7 मार्च 1835 को प्रस्ताव जारी कर अंग्रेजी शिक्षा पद्वति को अपनाया व 1835 में ही ब्रिटिश सरकार ने अंग्रेजी को राजकीय भाषा घोषित कर दिया, जिसके फलस्वरूप शेखावाटी में आधुनिक शिक्षा का तेजी से विकास हुआ।

शेखावाटी में 20 वीं शताब्दी में सेठ- साहुकारों द्वारा उस मुश्किल दौर में अभावों को झेलते हुए अधिक शिक्षित नहीं होते हुए भी विपरित परिस्थितियों को सहन करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य किए अविस्मरणीय है। यहां का समाज विशेषकर ग्रामीण समाज तो अक्षर ज्ञान से भी वंचित था प्रवासी सेठो ने अपने गांवो कस्बो की दुर्दशा को समझा, यह कार्य इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि तात्कालिक सामन्त नहीं चाहते थे कि आम आदमी पढे़ स्वयं आमजन में पढ़ने की कोई लगन नहीं थी।

शेखावाटी के विद्यानुरागी सेठ-

1. पिलानी का बिड़ला परिवार-  शेखावाटी में शिक्षा की अलख जगाने वालो में बीसवी शताब्दी की महान विभूति घनश्याम दास बिड़ला थे। पिलानी में सन् 1901 में बिड़ला परिवार ने एक छोटी सी पाठशाला का प्रारम्भ किया था। इस पाठशाला ने एक विशाल शिक्षा संकुल का रूप धारण किया। पिलानी में स्थापित सैन्ट्रल इलेक्ट्रोनिक तथा इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीटयूट बिड़ला जी के सदप्रयासों का फल है। बी.आई.टी सी नामक विश्वविद्यालय आज पूरे देश में ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय है। शिक्षा के क्षेत्र में बिड़ला ने यहां मदनमोहन मालवीय जी के अखबार लीडर को आर्थिक सहायता दी। सी.वी. रमन को शोध कार्य के लिए 20 हजार रूपये की सहायता, सुप्रसिद्ध साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी को सहायता उनका शिक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है। बिडला एजुकेशन ग्रुप की ट्रस्ट की ओर से सैकडो स्कूल खोले गये तथा इन स्कूलो के माध्यम से शिक्षा के प्रति लोगो की जागरूक किया गया। स्व. शुक्र देव पाण्डे ने अपनी पुस्तक ‘मेरे पिलानी के संस्मरण‘ में इन स्कूलो के बारे में लिखा है। कि ‘बिडला जी इच्छा थी कि पिलानी के 50 किलोमीटर के दायरे में ऐसा कोई गाँव न हो जहाँ 3 मील से अधिक दूरी पर स्कूल हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने स्कूलो का शुभारम्भ किया। स्कूलो के समय-समय पर निरीक्षण के लिए 7 योग्य निरीक्षक नियुक्त किये।

शुक्रदेव पाण्डे जो काशी हिन्दु विश्वविद्यालय से पिलानी आए थे इसके निर्देशन में एवं नियत्रंण में बिडला एजुकेशन ट्रस्ट के अधीन 'ग्राम शिक्षा विभाग' की स्थापना की गई, जिसके अन्तर्गत सारे शेखावाटी भू-भाग को पांच केन्द्रों में विभक्त करके वहां पांच कार्यालय चिड़ावा, खेतड़ी, मुकुन्दगढ़, सीकर और रिगंस में खोला गया प्रधान कार्यालय पिलानी में रखा गया। हर एक केन्द्र कार्यालय में एक-एक निरीक्षक की नियुक्ति की गई। पिलानी में कार्यालय के प्रोफेसर एच. आर. भाटिया को समस्त ग्राम पाठशाला की देख-रेख का भार सौंपा गया। इन स्कूलो में लगभग बीस हजार बालक बालिकाएं पढ़ते थे।

2. नवलगढ़ का पोद्दार परिवार-  शेखावाटी की स्वर्ण नगरी के नाम से प्रसिद्ध नवलगढ़ में शिक्षा की अलख जगाने वाले पोद्दार परिवार अग्रणी है। बंशीधर पोद्दार के घर जन्मे आनन्दी लाल का नाम महत्वपूर्ण है। आनन्दी लाल की प्रारम्भिक शिक्षा नवलगढ के तात्कालीन शिक्षक श्री सुथांराम जोशी की चटशाला में हुई। यहां पढ़ते समय उसने महाजनी का ज्ञान प्राप्त किया। पिता श्री बंशीधर की जल्दी मृत्यु हो जाने से गृहस्थी का सारा भार आनन्दी के कन्धों पर आ गया। शुरूआती समय कष्टदायक रहा लेकिन बंबई जाने के पश्चात् इनको प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अपनी व्यवस्था में काफी फायदा हुआ और राजनीतिक क्षेत्र में भी इनकी प्रतिष्ठा बढ़ गई। 1922 में श्री आनन्दीलाल पोद्दार एजुकेशन सोसायटी की स्थापना तिलक स्वराज कोश से हुई। उन्होंने गांधी जी के फंड में 2 लाख 1 हजार रूपये का योगदान दिया। महात्मा गांधी के आशीर्वाद से नवलगढ़ में ब्रह्मचर्य आश्रम के रूप में एक शैक्षिक संस्था का गठन किया गया इसके वार्षिक समारोह में सन् 1922 में आनन्दीलाल ने एक लाख रूपये का सहयोग किया। सेठ आनन्दीलाल के दादा ज्ञानीराम एवं पिता बंशीधर के नामों को सम्मिलित करते हुए सन् 1928 में संस्था का नाम सेठ जी.बी. पोद्दार हाईस्कूल रखा गया, बाद में कॉलेज, डिग्री, कॉलेज और अन्ततः पी.जी. कॉलेज के रूप में शिक्षा का वटवृक्ष फैलता गया। पोद्दार कॉलेज, आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था।

3. शेखावाटी का रूइया परिवार- जब अट्ठारहवीं शताब्दी में रामगढ़ नामक शहर बसाया गया तब परिवार के पूर्वज सेठ मगनीराम फतेहपुर से उठकर रामगढ़ जाकर बस गये। उन दिनों रूई का व्यापार विशेष रूप से करने के कारण आपका खानदान रूइया नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी रूईया परिवार के रामनारायण रूईया ने मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय को एक लाख रूपये दान देकर शिक्षा के प्रति अपने अनुराग को दर्शाया, इसके बाद बंबई में स्थापित मारवाड़ी विश्वविद्यालय में भी आपने 95 हजार रूपये दान दिए।

4 जुलाई 1914 में एच.पी. मिडिल स्कूल परिवार ने खोली। सीकर के राव राजा कल्याण सिंह ने एक बड़ा भू-खण्ड सस्ते मूल्य पर प्रदान किया सन् 1952 तक स्कूल भवन 1954 में दो संकायो कला एवं वाणिज्य के साथ सेठ रामनारायण रूईया इन्टर कॉलेज बना दिया। रामगढ़ में हरनन्दराय संस्कृत कॉलेज व एक पाठशाला शुरू की गई रामनारायण के स्वर्गवास होने के समय बीस लाख रूपये का एक ट्रस्ट बनाकर बजाज एवं उसके विश्वासपात्र मुनीम पालीराम को बनाया गया।

4. बगड़ का महेष्वरी व महरिया परिवार- झुझुंनू के प्राचीनतम् हाई स्कूलों में बी.एल. हाई स्कूल की स्थापना 1928-29 में हुई। 1931 में जयपुर रियासत के शिक्षा विभाग के अंग्रेज डाइरेक्टर विलियम ओवेश स्कूल पधारे, तो विद्यार्थियों के समूह ने उनके आगमन पर वंदे मातरम् का सामूहिक गान किया। ये गीत उस समय भारत के क्रांतिकारियों का गीत और प्रसिद्ध नारा था। विलियम ओवेश ने स्कूल के हैडमास्टर रामसिंह जी को बर्खास्तगी के आदे और जयपुर पहुँचते ही स्कूल को सीधे विभाग के अधीन करने के आदे दिए। वार्ड में जमनालाल बजाज के मार्फत सी.एफ. एण्डयूज की सलाह ली। तब ये स्कूल 1931 तक 1944 तक उस वक्त जयपुर के दीवान सर मिर्जा इस्माइल ने इसे वापिस स्थापित किया, इसके बाद महेश्वरी, पीरामल व महरिया परिवार द्वारा शिव भगवान पटवारी महाविद्यालय, महेश्वरी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, चारो वीरो बालिका स्कूल, स्नातकोतर महाविद्यालय, पीरामल स्कूल कॉलेज आदि सैंकडो संस्थाएं आास-पास के क्षेत्रो में आज की शिक्षा के उजियारों को फैलाए हुए है।

5. चिड़ावा का सोमानी डालमिया परिवार-  प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला की सलाह पर उनके श्वसुर श्री महादेव जी सोमानी ने 14 अगस्त 1913 को चिड़ावा में एक चटशाला की स्थापना प्रमुखतः अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई थी। संस्था का नाम अपने व परिवार के नाम पर न रखकर गांव के नाम पर रखी तथा गांव के विकास को सर्वोपरी माना। चिड़ावा स्कूल क्रमोन्नत हो गया जो उस समय के जयपुर रियासत के प्रमुख तीन हाई स्कूलों में से एक था। 1950 में इंटरमीडिएट कॉलेज व 1950 में डिग्री कॉलेज में विकसित हो गया। शिक्षा को समर्पित उनके अनवरत प्रयासों का ही फल है कि चिड़ावा कॉलेज अपना स्वर्ण जंयती मना चुका है।

चिड़ावा में शिक्षा के क्षेत्र में दूसरा परिवार डालमिया है। पराधीनता के उस युग में डालमिया जी के नोहरे में सन् 1925 में एक चटशाला के रूप में डालमिया शिक्षण संस्था का शुभारम्भ    हुआ। इस कार्य को ठोस रूप देने हेतु डालमिया शिक्षण समिति की स्थापना की। आप के द्वारा डालमिया इग्लिंश माध्यम स्कूल श्री रामकृष्ण डालमिया स्पोर्टस कॉम्पलैक्स चिडावा के ग्रामीण क्षेत्रो में औपचारिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना व ‘स्कूल चलो जागृति‘ अभियान संचालित किए जिसमें क्षेत्र के 38 ग्रामों को लाभान्वित किया गया। शेखावाटी के बाहर की डालमिया ट्रस्ट द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्य किए जा रहे है। जिनमें हरि विद्या मंदिर वाराणसी, डालमिया विद्या मंदिर, राजगंगपुर (उडीसा) बनारस में ही काशी लाभ मुक्ति भवर मथुरा है।

चिड़ावा के ही एक और परिवार सूर्यमल शिवप्रसाद ने 105 प्राथमिक शालाएं खुलवाई मण्डावा के पास गांव वाहिदपुरा में भी सेठ शिवप्रसाद की एक पाठशाला थी जिसमें आरम्भिक शिक्षा सुप्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ. घीसाराम वर्मा ने प्राप्त की थी। डॉ. वर्मा का कहना था कि यदि यह पाठशाला नहीं होती तो वे अनपढ़ रह जाते। सामाजिक एवं शैक्षिक सेवाओं के लिए सेठ शिवप्रसाद को अंग्रेज सरकार ने राय बहादुर की उपाधि से विभूषित किया था।

6. मुकन्दगढ़ का कानोडिया परिवार- इनका परिवार मूलतः हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले के कानोड गांव से चलकर 400 साल पहले नवलगढ़ आकर बस गया। बाद में कलकत्ता में इनका व्यवसाय जम जाने से वहीं पर रहना शुरू कर दिया परन्तु अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भूले। भागीरथ मल कानोडिया मुकन्दगढ़ के शिक्षा प्रेमी सेठो में से एक थे। भागीरथ जी खुद ज्यादा नहीं पढ़ सके शेखावाटी में बीड़ला बन्धुओं के साथ आपने भी कई गांवों में पाठशालाएं खोली जिनकी संस्था लगभग 70-80 तक थी। मुकुन्दगढ़ में आपने 1920 में स्कूल खोला। वनस्थली विद्यापीठ के तो ये सरंक्षक थे ही साथ ही वनस्थली में हिरालाल शास्त्री को आर्थिक सहायता देते थे।

कानोडिया स्कूल, कानोडिया कॉलेज, मुकन्दगढ़, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, कानोडिया पी.जी. महिला महाविद्यालय जयपुर आज भी शिक्षा की लौ को लगातार दीप्तिमान किए हुए    है।

रविन्द्रनाथ टैगोर की शांति निकेतन में हिन्दी पीठ की स्थापना, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का वेतन, हिन्दी भवन व अतिथि भवन की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। गांधीजी ने इनको हिन्दी प्रचारिणी सभा का सदस्य बनाया। ’बहता पानी निर्मल’ उनकी कहानियों का संग्रह है जो बहुत खास व चर्चित है।

7. अलसीसर के सेठ इन्द्रचन्द- अलसीसर मे इन्द्रचन्द जी ने 1909 में अपने पिता जानकीदास केजडीवाल के नाम से चटशाला प्रारम्भ की थी। यह पाठशाला उनके द्वारा बनाए गए मन्दिर में चलती थी। प्रारम्भ में इस चटशाला में अलसीसर के आस-पास के गांवो के मात्र 20 लड़के ही पढ़ने आते थे। 1909-1927 तक चटशाला में दो अध्यापक कार्यरत रहे एक पण्डित हरिराम दूसरे नागरमल कुमावत। 1928 में विद्यालय क्रमोन्त हुआ।

सन् 1932 में सेठ इन्द्रचन्द ने वर्तमान जे. के. स्कूल भवन का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया। यह दो मंजिला विशाल भवन 1936 में बनकर तैयार हुआ 1938 में दो मंजिला छात्रावास व शिक्षकों के स्टाफॅ के लिए 8 क्वाटर परिसर में बनवाए। उस समय शिक्षकगण सभी यू.पी. के थे। प्रधानाध्यापक मानसिंह के अतिरिक्त तीन अन्य अध्यापक गुलाब सिंह, रामकुमार पांडे एवं किसना राम चौधरी थे। 1946 में हाई स्कूल की मान्यता मिल गई कला व वाणिज्य संकाय के विषय पढ़ाए जाने लगे। कृपालसिंह शेखावत जैसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व इसी स्कूल से पढ़े थे।

8. राजपूताना शिक्षा मण्डल का योगदान- शेखावाटी क्षेत्र के कई उदारमना सेठो ने राजपूताना शिक्षा मण्डल की स्थापना 21 दिसम्बर 1926 में की। श्री जमनालाल बजाज रामेश्वरदास बिड़ला, केवदेव नेवडिया जैसे विशिष्ट व्यक्तियों ने राजपूताना शिक्षा मण्डल मुबई का रजिस्ट्रेशन करवाया जिसके उद्देश्य निम्न थे।

1. बच्चों की शिक्षा के लिए पाठशाला एवं खेलना, पुस्तकालय,वाचनालय रात्रि पाठशाला का आयोजन करना।
2. विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें, पोषाक व आवश्यक साधनो को उपलब्ध करवाना।
3. शिक्षाप्रद सामाजिक, आध्यात्मिक, नैतिक सम्मेलनों का आयोजन करना।
1927 में 96 पाठशालाओं, 50 संस्कृत पाठशाला का संचालन व 17 कन्या पाठशाला का संचालन मण्डल द्वारा होता था। वर्तमान जी.वी. मोदी स्कूल रोड़ न. 1 पर इनका कार्यालय था। स्वतंत्रता के समय लगभग 200 शिक्षण संस्थाएँ, राजपूताना शिक्षा मण्डल की देख-रेख में चलती थी।

9. खेतड़ी के राजाओं का  योगदान-  राजा फतेहसिंह ने खेतड़ी में शिक्षा प्रारम्भ करते समय खेतड़ी में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, अंग्रजी- स्कूल प्रारम्भ की तात्कालीन राजाओं में एकमात्र अंग्रेजी पढे़ तथा अपनी आत्मकथा लिखने वाले फतेहसिंह ही थे। फतेहसिंह के पुत्र अजीत सिंह के और स्वामी विवेकानन्द जी के रिश्ते जगजाहिर है। अजीत सिंह ने शिक्षा विभाग की स्थापना की। 1885 में एक हाई स्कूल व संस्कृत पाठशाला खोली, लड़कियों के लिए पढने की पृथक से अपने महलो में व्यवस्था की जिसमें रानी लड़कियों के साथ अध्यनरत रही थी।

अंग्रेज लेडी मिसेज पैनल पढाने आती थी। अजीतसिंह  ने अपने पुत्र जयसिंह को मेयो कॉलेज, अजमेर 1904 में अध्ययन कराने भेजा। अजीत सिंह, आगरा का ताजमहल देखने गए तब ऊपर की दीवार की मीनार से गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। उसके बाद अमर सिंह ने हाई स्कूल के विशाल भवन का निर्माण करवाया, इसकी नींव एक मंजिल गहरी थी। 1905 में हाईस्कूल का नामकरण राजकीय जयसिंह हाई स्कूल का नाम दिया। 1923 में जब हाई स्कूल में नए भवन में स्थानान्तरण किया तब तत्कालीन रेजिडेट एस.वी. पेटर्सन से उद्घाटन करवाया गया। पेटर्सन ने अमरसिंह की शिक्षा व्यवस्था की प्रंसा करते हुए स्कूल के हैडमास्टर अहमद अली को एक मैडल और एक गाउन भेंट किया था।

हाई स्कूल के 10वीं कक्षा के विद्यार्थी परीक्षा देने के लिए जयपुर ठिकाने की व्यवस्था पर पूर्ण सुरक्षा के साथ जाते थे। उनका खेतड़ी हाउस में ठहराया जाता था। परीक्षा केन्द्र तक लॉरी से लाया व भेजा जाता था। यह पहले कलकत्ता, इलाहाबाद व बाद में आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहा था। खेतड़ी की संस्कृत कॉलेज की प्रसिद्ध आस-पास थी पण्डित गणे शंकर को राजा अजीत सिंह बनारस से अध्यापन के लिए लाए थे। पण्डित नारायण दास व्याकरणाचार्य ने स्वामी विवेकानन्द को अष्टाध्यायी की शिक्षा दी थी, आचार्य पद पर यहां कार्य किया था।

10. सेठ मोतीलाल झुझुनूवाला- सेठ मोतीलाल मलसीसर के चिमनाराम जी के पुत्र थे। 1925 में ये मुम्बई आ गये और वहां चिमनालाल- मोतीलाल फर्म स्थापित की। मुंबई में इनका व्यापार खूब फैला। उन दिनों गांवो में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी तो उन्होनें मलसीसर और आस-पास के गांवो में 20 स्कूल खोली, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास निर्माण हेतु आर्थिक सहयोग दिया। 43 एकड़ जमीन ठिकानेदार से क्रय कर 1937 में झुझुंनु में मोतीलाल मिडिल स्कूल की स्थापना की जो आगे चलकर स्नात्त्कोत्तर महाविद्यालय बना जहां वर्तमान में 5000 के लगभग विद्यार्थी विभिन्न संकायों में अध्ययन कर रहे है।

11. फतेहपुर का चमड़िया परिवार-  फतेहपुर शेखावाटी में उच्च शिक्षा प्रदान करने के अपने विचार का क्रियान्वयन करते हुए बनारस के उद्भट्ट विद्वान पण्डित देवकीनन्दन शास्त्री के निर्दे व मार्गदर्शन में रामप्रताप जी चमड़िया ने 13 नवम्बर 1922 के दिन शेखावाटी संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की। इसका आर्थिक भार जी. आर. ट्रस्ट ने वहन किया, यह महाविद्यालय बनारस से सम्बद्ध संस्कृत परिक्षाओं का केन्द्र था। अत: राजपूताना के विभिन्न अंचलो से हजारों छात्र फतेहपुर परीक्षा देने आते थे परीक्षा काल में उनके ठहरने व भोजन की व्यवस्था जी.आर. चमडिया ट्रस्ट द्वारा की जाती थी। स्थापना के एक वर्ष बाद 1923 ई. में इस संस्था का निरीक्षण हुआ, विद्वत निरीक्षण दल में हिन्दी के मूर्धन्य कवि रामनरे त्रिपाठी, शेखावाटी शिक्षा मंडल के सहायक मंत्री श्री नारायण सिह तथा रामचन्द्र नेवटिया ने संस्था के अध्ययन कार्य की प्रशंसा की तथा सलाह दी की शिक्षण संस्था में हिन्दी विषय का अध्ययन भी करवाया जाए।

16 जुलाई 1927 को रायबहादुर रामप्रताप चमडिया एग्लोवर्नाक्यूल मिडिल स्कूल फतेहपुर की स्थापना की गई इसमें प्रथम वर्ष छात्र संख्या 100 थी। ये 1928 में इंग्लिश मिडिल स्कूल शुरू कर दी गई। अंग्रेजी स्कूल के प्रथम प्राचार्य श्री ज्ञान प्रका श्रीवास्तव नियुक्त हुए। चिड़ावा के गांधी के नाम से प्रसिद्ध प्यारेलाल गुप्ता जी के प्रयासो से ये विद्यालय 1938 - 39 में हाई स्कूल में क्रमोन्नत हो गया। 1941 में प्योरलाल जी को प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया। 1947 में ये इण्टर कॉलेज हो गया। उस समय इसमें कुल 400 विद्यार्थी थे। 1952 में कॉलेज का रजत जयन्ती समारोह मनाया गया जिसमें टीकाराम पालीवाला बतौर मुख्य अतिथि थे। 1960 में ये डिग्री स्तर पर क्रमोन्नत हुआ। वर्तमान में यह स्नातकोत्तर पर विज्ञान, कला, वाणिज्य संकाय में संचालित है।

झुंझुनू शहर में 1942 में झुंथालाल मोदी ने प्रथम बालिका विद्यालय प्रारम्भ करने का संकल्प लिया। कमरे की कमी को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी के गहने बेचकर चिरजीलाल टीवडा ने धन जुटाया। 1951 तक स्कूल को चलाया गया आजादी के बाद सरकार को सौप कर आज जे.के. मोदी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के रूप में चल रहा है।

झुझुंनू में बालिकाओ के लिए अलग कॉलेज को साकार करने के लिए मदन लाल शाह जो झुझुंनू में वकालत करते थे, ने मण्डावा रोड पर जमीन लकेर झूमाराम बंसतलाल शाह के नाम पर एक भव्य बालिका महाविद्यालय का भवन बनवा कर तैयार किया।

महर्षि दयानन्द बालिका विज्ञान महाविद्यालय निमार्ण में सेठ रामनारायण केडिया गुलझारी लाल केडिया, एवं बनवारी लाल केडिया ने उत्साहपूर्वक योगदान दिया जो मात्र 38 छात्रो के साथ शुरू हुआ आज 1500 से अधिक छात्राएं अध्ययनरत है।

निष्कर्ष
झुंझुनू में जब राजकीय कन्या महाविद्यालय की स्वीकृती मिली तो कॉलेज भवन व भूखण्ड की समस्या सामने आई। इस अवसर पर संत चंचलनाथ के टीले पर आश्रम के मंहत ओमनाथ जी ने कॉलेज भवन के लिए भूखण्ड दान दिया सेठ नेतराम मछराज ट्रस्ट ने लड़कियों की शिक्षा के लिए नया भवन बनाकर सरकार को सुपुर्द किया। इसी कड़ी में जब झुझुंनु में सरकारी कॉलेज स्वीकृति हुई तो आर.आर. मोरारका ट्रस्ट ने लड़को के कॉलेज के लिए आलीशान भवन बनाकर सरकार को सौप दिया जो वर्तमान में राधेश्याम आर. मोरारका राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के रूप में संचालित है। शेखावाटी में करोड़पति फकीर के नाम से मशहूर प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ. घीसाराम वर्मा का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय है। जिन्होने करोड़ो रूपये शिक्षा के लिए दान कर दिए। जिन सेठ साहुकारो ने शेखावाटी में विद्यालय, महाविद्यालय खड़े किए, जिसके कारण निर्धन बच्चो ने शिक्षा प्राप्त की और अपना विशेष मुकाम हासिल किया, उन सेठो का स्थान शेखावाटी अभिभूत करता रहा है और युगो-युगो तक करता रहेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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