P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- VII March  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
गांव में वाल्मीकि समाज: एक अवलोकन
Valmiki Samaj in the Village: An Overview
Paper Id :  17452   Submission Date :  01/03/2023   Acceptance Date :  18/03/2023   Publication Date :  25/03/2023
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निरूपमा सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय महाविद्यालय
जहाँगीराबाद, बुलन्दशहर,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश यह शोध लेख जिला बुलन्दशहर के गाँव ‘वीर गाँव टिटौटा’ के वाल्मीकि समाज क परिस्थितियों के विषय में एक अवलोकनात्मक अध्ययन है। इस अवलोकन से हमें यह ज्ञात हुआ कि वाल्मीकि समाज की महिलाएँ अभी भी उच्च जातियों के घरों में साफ-सफाई का काम कर खाना लेने जाती हैं तथा इस समाज के लोग गाँव से बाहर जाकर अन्य शहरों में भी सफाई कर्मी के रूप में ही नौकरी करते हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद This research article is an observational study about the conditions of Valmiki Samaj of village 'Veer Gaon Titauta' of district Bulandshahr. From this observation, we came to know that the women of Valmiki society still go to the houses of upper castes to get food after cleaning and the people of this society go out of the village and work as sweepers in other cities as well
मुख्य शब्द वाल्मीकि, टिटौटा, सफाई कर्मी, गाँव।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Valmiki, Titouta, Sweeper, Village.
प्रस्तावना
’’भारतीय संस्कृति के अनुसार भारतीय हिन्दू समाज को चार भागों में विभाजित किया गया है।’’[1] जिसे वर्ण व्यवस्था कहते है, ये चार वर्ण है-1. ब्राह्मण 2. क्षत्रिय 3. वैश्य 4. शूद्र। वेदों में वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी, परन्तु समयान्तराल में यह जन्म आधारित बन गयी और अब यह पद सोपानीय भी है, जिसमें बदलाव नहीं किया जाता है। इसमें ब्राह्मण सर्वोच्च व प्रथम सोपान पर है, जिसका कार्य शिक्षण-प्रशिक्षण व धार्मिक कृत्य करना होता है, जिसे भारतीय समाज में अति सम्मानीय कार्य तथा वर्ण माना गया है, द्वितीय सोपान पर क्षत्रिय वर्ण है जो सुरक्षा सम्बन्धित कार्य करता है तथा साहस व वीरता का प्रतीक माना जाता है, यह वर्ण तथा इनका कार्य भी समाज में सम्मानजनक माना जाता है। तृतीय वर्ण वैश्य है जो उत्पादन, भण्डारन, बैंकिग, व्यापार सम्बन्धित कार्य करते है, इन्हे भी भारतीय समाज में सम्मानीय स्थान प्राप्त है। चतुर्थ तथा अन्तिम सोपान पर शुद्र वर्ण है जो उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा सम्बन्धित कार्य करते है। अन्य वर्णाें के कार्याें के समान ही शुद्र वर्ण का कार्य भी समाज के लिये अति आवश्यक है, परन्तु सम्मानजनक दृष्टि से नहीं देखा जाता है। इसके अतिरिक्त वर्ण व्यवस्था से बाहर अछूत समुदाय भी है, जिसे पंचम वर्ण भी कहा गया है, जोकि अस्पर्श है तथा वर्ण व्यवस्था व भारतीय समाज द्वारा निष्कासित है। ’’इनके स्पर्श करने मात्र से व्यक्ति ’’अपवित्र’’ हो जाता है’’, ऐसा माना जाता है।[2] इसी अछूत समुदाय से वाल्मीकि लोगों का समुदाय भी एक है, जो अस्पृश्यों में भी अस्पृश्य माना जाता है, जिसे समाज ने अन्य लोगों द्वारा की गई गन्दगी की सफाई करने का काम दिया गया है। इस समुदाय को भारतीय समाज में अनेक नामों से जाना जाता है, ये है-’’भंगी, मेहतर, जमादार, हरिजन, स्वच्छकार, सफाई कर्मचारी, हेला, आदिजम्बवा, लाल बेंगी आदि।’’[3]
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य जिला बुलन्दशहर के एक गांव में वाल्मीकि समाज की परिस्थितियों के विषय में एक अवलोकनात्मक अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन

संजीव खुदशाह कृत सफाई कामगार समुदाय, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 2005, ओम प्रकाश वाल्मीकि कृत सफाई-देवता, राधा कृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008 तथा भाषा सिंह कृत अदृश्य भारत मैला ढोने के बजबजाते यथार्थ से मुठभेड, पेंगुइन प्रकाशन की पुस्तकों का संज्ञान शोध पत्र लिखने हेतु लिया गया है। प्रथम दोनों ही रचनाऐं वाल्मीकि समाज की उत्पत्ति, इतिहास और नाम व काम सम्बन्धित बातों को बहुत ही विस्तार से बताती है। इसके अतिरिक्त एम0एस0 गौतम और अनिल कुमार द्वारा संपादित पुस्तक वाल्मीकि जाति: उद्भव, विकास और वर्तमान समस्याएँ, गौतम बुक सेन्टर, दिल्ली, 2012 से भी वाल्मीकि समाज के विषय में जानकारियाँ मिलती हैं। इसके साथ ही इंटरनेट पर अनेक लेख सफाई कर्मचारियों की स्थितियों पर है जो कि प्रत्यक्ष रूप से वाल्मीकि समाज से सम्बन्धित हैं। शोध से सम्बन्धित नवीनतम पुस्तक बी0आर0 चरण की ‘‘षड्यंत्र की शिकार भंगी जातियाँ (एक शोधपूर्ण विश्लेषण), सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, 2022 का भी संदर्भ लिया गया है।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र

टिटौटा उर्फ वीरगांव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समृद्ध गांवों में से एक है। यहां सड़कें चौड़ी व सीमेंट की है। गांव में साफ-सफाई भी देखने को मिली है, विशेषकर वाल्मीकि मौहल्ले में। सम्पूर्ण गांव एक जगह नहंी बसा है, बल्कि 4 जगहों पर विस्तारित है। सबसे ज्यादा आबादी गांव के पुराने भाग में है। जहाँ पर सभी जातियों व समुदाय के लोग रहते है। ये है- ठाकुर, जाटव, ब्राह्मण, वाल्मीकि, मुसलमान। गांव में ठाकुर समाज की आबादी सबसे ज्यादा है। इसी पुराने भाग में वाल्मीकि लोगों का मौहल्ला है।

’’गांव की कुल आबादी 3578 है, जिसमें 1903 पुरूष तथा 1675 महिलाऐं है। कुल साक्षर आबादी 2145 है, जिसमें 1347 पुरूष व 798 महिलाऐं है। अशिक्षित आबादी 1433 है, जिसमें 556 पुरूष व 877 महिलाऐं है।’’[4] ’’अनुसूचित जाति की आबादी 29.8% है जोकि 1065 है। गांव में कुल घरों की संख्या 599 है।’’[5] गांव में एक प्राथमिक विद्यालय तथा एक उच्च माध्यमिक विद्यालय है। दो आंगनबाड़ी भी गांव में स्थित है।

भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में वाल्मीकि समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में स्थान दिया गया है। सामाजिक व ऐतिहासिक तौर पर इन्हें अछूत माना जाता था जो कि आजादी के बाद भी व्यावहारिक रूप से जारी है। संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अपृश्यता का निषेध किया गया है, जोकि एक मौलिक अधिकार है। इसके बावजूद यह समस्या बनी हुई है।

यह समुदाय केवल हिन्दू समाज में ही नहीं है बल्कि मुस्लिम समाज में भी है जिन्हें ’’लाल बेंगी’’ कहा जाता है।[6] वाल्मीकि समुदाय के लोगों की स्थिति पर क्रान्तिकारी सरदार भगत सिंह जी ने अपने लेख अछूत समस्या में लिखा था- ’’हमारे देश जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए....... एक अहम सवाल अछूत समस्या है। समस्या यह है कि 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो 6 करोड़ लोग अछूत कहलाते है, उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा।’’[7]  वाल्मीकि लोग आज पढ़े-लिखे होने के बावजूद सफाई के काम को करने हेतु मजबूर है। इन्हें अन्य रोजगार के अवसरों की उपलब्धता की अति कमी है।

शोध क्षेत्र टिटौटा उर्फ वीरगांव के वाल्मीकि लोग पूर्व में अन्य वर्गों व जातियों के व्यक्तियों के घर नालियों, गलियों को साफ करने व कूढ़ा-करकट उठाकर फेंकने का काम करते थे साथ ही औरतों की जचकी अर्थात बच्चा पैदा करवाने में सहायता से लेकर जच्चा-बच्चा की सवा महीने तक सम्पूर्ण देखभाल, गन्दे कपड़े धोना आदि तथा उत्सव, शादी-विवाह या अन्य समारोह में सफाई आदि का कार्य करते थे, उपरोक्त सभी कार्य महिलाऐं ही करती थी।

सामाजिक स्थिति

आधुनिकीकरण तथा वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण गांव में अनेकानेक परिवर्तन हो रहे है, जिनमें से कुछ बदलाव बहुत अच्छे है जैसे गांववासी अपने घरों की बालिकाओं को भी पढ़ाने के लिये विद्यालय भेजने लगे है। कुछ परिवर्तन बुरे भी है यथा-गांव में किसी भी समुदाय के शादी-ब्याह या अन्य छोटे-छोटे कार्यक्रम में अति तड़क-भड़क, शोर-शराबा किया जाता है, जो कि कान फोड़ू होता है, तथा पैसे की बेहिसाब बर्बादी लोग बड़े ही आराम से करते देखे जाते है। जबकि बच्चों की शिक्षा के लिये अच्छी किताबों के लिये न तो समय है न ही पैसा खर्च करते है।

वाल्मीकि लोगों के सभी घर पक्के है। गांव में लगभग 25 परिवार इस समुदाय के है जिनमें से अधिकतर परिवार दिल्ली, नौएडा जैसे शहर में रहने लगे है। ये लोग पारिवारिक समारोह, शादी-ब्याह करने तथा तीज त्योहारों पर ही गांव वापस आते है। इनमें से भी अधिकतर लोग शहरों में सफाई का काम ही करते है, ये सरकारी व प्राईवेट दोनों की प्रकार की संस्थाओं में   है। एक परिवार के दो सदस्य सेना में सेवादार थे जो अब सेवानिवृत्त हो चुके है और अब अपने घर की बकरियों को सुबह व शाम चराने का कार्य करते है। एक परिवार की महिला प्रधानमंत्री कार्यालय में सफाई कर्मी के पद पर कार्यरत है।

वाल्मीकि परिवारों ने अब अन्य वर्गों के लोगों के घरों की साफ-सफाई करने काम छोड़ दिया है, परन्तु अभी भी चार परिवारों की महिलाऐं सफाई का काम अन्य घरों में करती है। काम करने के बाद ये उन घरों से खाना लेने जाती हैं, जिसमें दो रोटियाँ और सब्जी मिलती है। यह खाना ताजा भी मिल जाता है और कभी-कभी बासा भी। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक महिला जो सफाई का कार्य अन्य घरों में कर रही है, उसका स्वयं का घर बहुत ही साफ-सुथरा था जिसमें एक बड़ा कमरा, ऊपर जाने के लिये सीढ़िया व उसके नीचे रसोई बनी थी जोकि खुली थी। वहाँ गैस-चूल्हा व सिलेण्डर था, वही आंगन में मिट्टी की चूल्हा भी था, उन्होंने बताया कि वे चाय बनाने का काम तथा अन्य जल्दी वाले काम गैस पर करती है तथा बाकी पूरा खाना मिट्टी वाले चूल्हे पर ही बनाती है। घर में पक्का फर्श था, बिजली व पंखा की व्यवस्था है। ये बकरियां भी पालती है, घर के आंगन में नल भी लगा है। इनके पति की जल्दी ही मृत्यु हुई है और वे भी दिल्ली में रहकर सफाई का काम करते थे।

उन्होंने बताया कि परिवार बड़ा है, इसलिये वे घर चलाने हेतु आज भी अन्य घरों में सफाई का काम कर रही है। इसी घर से लगा अन्य घर भी था वो भी एक कमरे व आंगन वाला था जिसमें केवल ईंटों का फर्श था, पर घर में सफाई नहीं थी, बाहर गेट पर ही बकरियों ने गन्दा कर रखा था। कुछ अन्य घर कई कमरों वाले और बड़े आंगन वाले थे। गांव की दो महिलाओं से जानकारी मिली कि सवर्ण जातियां इनके साथ अस्पृश्यता का व्यवहार करती है जैसे जब सवर्ण घर की सफाई का करते समय उन्हे प्यास लगती है तो उनके परिवार वाले नल को छूने नहीं देते है और खुद नल चलाते है, तभी वे पानी पी पाती है, जबकि अन्य घरों में उन्हें नल से पानी पीने के लिये नहीं रोका जाता है। हालांकि वे वहाँ काम नहीं करती हैं। छुआछात को लेकर वाल्मीकि समुदाय के एक वृद्ध व्यक्ति ने बताया कि-’’सभी कुछ ठीक है परन्तु एक कुत्ता भी उनकी (सवर्ण) चारपाई पर जाकर बैठ जाता है, पर हम आज भी खड़े रहते है। हमारा मुहल्ला हेय दृष्टि से देखा जाता है।’’   

परन्तु कुछ मामलों में छुआछात वाली मानसिकता देखने को नहीं मिलती है, जैसे गांव की महिलाऐं आपस में बड़े व छोटे रिश्ते को ध्यान में रख कर अभिवादन के लिये ’’पांव लगने’’ की बात कहती है। यह ’’पांव लगना’’ सम्मानजनक होता है वास्तविकता में तो केवल अपने घर परिवार व स्वयं के समाज की महिलाऐं एक-दूसरे के पैर छू कर सम्मान करती है, जिसे पांव लगना कहते है। परन्तु गांव की सभी महिलाऐं आपस में बड़े व छोटे रिश्ते, उम्र का ध्यान रख कर ’’मौखिक रूप से पांव लगूं’’ कह कर सम्मान भी जताती है, चाहे वह महिला सफाई का काम करने वाली है क्यों न हो।

साधारणतः वाल्मीकि समुदाय के सदस्यों को अन्य गांव वाले अपने घरों के शादी-ब्याह के अवसर पर नहंीं बुलाते है परन्तु एक सवर्ण परिवार के विषय में जानकारी मिली कि वे सभी गांव वालों को अपने घर के शादी-ब्याह के अवसरों पर बुलावा (निमन्त्रण) भेजते थे। गांव के सभी वासियों का पहनावा एक समान है, धोती-कुर्ता बहुत ही बुजुर्ग एक-या दो व्यक्ति है, वे ही पहनते है। पुरूष पैंट-शर्ट, कुर्ता-पैजमा, जीन्स-टी शर्ट आदि, महिलाऐं साड़ी, कुर्ती सलवार, लड़कियां, सभी आधुनिक कपड़े पहनती है। वाल्मीकि समुदाय की महिलाऐं पहले गांव की अन्य महिलाओं की प्रसूति भी करवाती थी, (जिन्हे गांववासी ’’भंगन’’ कहते थे) परन्तु अब यह काम पूर्णत बन्द हो चुका है और नई पीढ़ी को इस विषय में कोई जानकारी भी नहीं है। आधुनीकीकरण व भूमण्डलीकरण के प्रभावों के कारण गाँव में सभी का खान-पान, रहन-सहन, त्यौहार, शादी-ब्याह, समारोह मनाने के तरीके एक जैसे हो गये है, परन्तु वाल्मीकि परिवारों में शादी-ब्याह के अवसर पर आज भी सुअर के गोश्त को अनिवार्यतः परोसा जाता है, जो कि बहुत ही सम्मानीय होता है।

ये सफाई करने वाली महिलाऐं अपने बंधे हुये घरों के शादी आदि समारोह में सफाई करने, बच्चे पैदा होने पर मंगल गाने, नेग लेने अवश्य ही जाती थी, प्रसूति भी करवाती थी, परन्तु वर्तमान में यह प्रक्रिया समाप्त हो चली है। इसके पीछे प्रमुख कारण है-

1. वाल्मीकि समुदाय के अधिकतर सदस्यों का बाहर जाकर नौकरी करना।

2. नौकरी करने वाला सदस्य पूरे परिवार के साथ रोजगार स्थान पर ही रहते है, अतः गांव में न रहने से इनकी जनसंख्या भी कम हुई है। ये लोग तीज-त्यौहारों व शादी-ब्याह के अवसर पर ही गांव वापस लौटते हैं।

3. जो महिलाऐं यह सारे काम करती थी वे काफी वृद्ध हो चुकी हैं और काम करने की स्थिति में नहीं है, कुछ की मृत्यु भी हो गई है।

4. नौकरी पेशा सदस्यों की वजह से आर्थिक स्थिति भी अच्छी हुई है।

5. शिक्षा का विस्तार हुआ है, लड़कियां और बहुऐं पढ़ी-लिखी है, अतः वे ये पुराने ढ़र्रे के काम को नहीं करना चाहती है।

6. जागरूकता का स्तर बढ़ा है, सभी अपने अधिकारों के प्रति सचेत जरूर हुये है।

7. गांव में अन्य समुदायों के लोग भी न तो इनसे काम कराने के इच्छुक है और न ही वेतन आदि के रूप में जो अनाज दिया जाता था, उसे देने के इच्छुक है, क्योंकि आवश्यकताऐं समय के साथ बदली है, और उनकी पूर्ति भी सरकारों द्वारा समय के साथ की गई है, जैसे कि संस्थागत प्रसूति।

शिक्षा: गांव में सभी समुदायों में शिक्षा का स्तर उन्नत हुआ है, शिक्षा प्राप्त करने के लिये जागरूकता बढ़ी है। वाल्मीकि परिवारों के सभी बच्चे वर्तमान समय में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे है। परन्तु वाल्मीकि समाज के लोग माध्यमिक व उच्च शिक्षा में बहुत ही कम है। स्नातक की शिक्षा पत्राचार माध्यम से प्राप्त करने वाला एक छात्र भी मिला। बालिकाओं में शिक्षा का प्रतिशत बालकों की अपेक्षा कम है। परन्तु यह पूर्णतः कहा जा सकता है कि शिक्षा की ओर समाज के कदम लगातार बढ़ रहे है।

आर्थिक स्थिति: वाल्मीकि समुदाय के जो लोग शहरों में जाकर रोजगार करने लगे और वही रह रहे है उनके परिवारों की स्थिति अच्छी है। वर्तमान में केवल एक परिवार के पास खेती की जमीन है। गांव में अन्य जाति के बुजुर्ग व्यक्तियों के माध्यम से यह ज्ञात हुआ है कि पहले सभी के पास खेती की जमीन थी जो बेच दी गई थी। पशुपालन में बकरियां सभी पालते है, कुछ लोग घरों में एक या दो मुर्गियाँ भी पालते है। गाय व भैंस कोई भी नहीं पालता है। सुअर पालन भी गांव में नहीं किया जाता है परन्तु एक परिवार ने सुअर फार्म का व्यवसाय कर रखा है।

गांव में वाल्मीकि पुरूष मजदूरी, बेलदारी आदि का काम करते है। जो लोग सेना से सेवानिवृत्त है, उनकी पेंशन भी आती है।

गांव में वाल्मीकि लोग अच्छी तरह से जीवन यापन कर रहे है, परन्तु अन्य समुदायों की अपेक्षा उनकी आर्थिक स्थिति कमतर ही है।

राजनीतिक स्थिति: वर्तमान में गांव के प्रधान के पद पर वाल्मीकि समुदाय की महिला निर्वाचित हुई है। इससे पूर्व भी सामान्य वर्ग से महिला प्रधान थी। दोनों ही मामलों में यह बात सामान्य है कि महिला प्रधान स्वयं कार्य क्षेत्र में नहीं घूमती है बल्कि प्रधान पति के रूप में उनके पति ही प्रधान का कार्य करते है।

गांव में महिला प्रधान के बावजूद महिलाओं और वाल्मीकि समुदाय की महिलाओं को भी भारत की राजनैतिक व्यवस्था के विषय में जानकारी अत्यन्त सीमित या न के बराबर है। वाल्मीकि महिलाओं से सांसद, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री कौन होते है? यह प्रश्न पूछने पर उत्तर दिया कि वे इनके विषय में नहीं जानती है। पुरूषों से सकारात्मक उत्तर प्राप्त हुआ।

इस शोध पत्र के माध्यम से ग्राम टिटौटा के वाल्मीकि समाज के सम्बन्ध में निम्नलिखित जानकारियां प्राप्त हुई है-

1. वाल्मीकि समाज में से अभी भी कुछ परिवारों की महिलाऐं सवर्ण समाज के घरों में सफाई का काम कर रही है।

2. वाल्मीकि समुदाय के जो सदस्य गांव से बाहर जाकर नौकरी कर रहे है, वे भी सरकारी, प्राईवेट संस्थाओं में सफाई का ही काम कर रहे है। वे वर्गीय कार्य ही कर पा रहे है, अन्य अवसरों की अति सीमितता है या न के बराबर है।

3. शिक्षा का स्तर प्राथमिक स्तर पर अच्छा है, परन्तु माध्यमिक व उच्च शिक्षा के स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाले सदस्य बहुत ही कम है। महिला शिक्षा का स्तर बहुत ही निम्न है।

4. गांव की वाल्मीकि समुदाय की महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता की अति कमी है, परन्तु इसी समुदाय से महिला प्रधान निर्वाचित हुई है।

5. उच्च जातियों के द्वारा भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है, परन्तु अनुसूचित जति की अन्य जातियों द्वारा भेदभावपूर्ण व्यवहार वाल्मीकि समुदाय के लोगों के साथ नहीं किया जाता है।

6. वाल्मीकि समुदाय की आर्थिक स्थिति ठीक कही जा सकती है, परन्तु अन्य समुदायों से तुलनात्मक रूप से कमतर है।

7. महिलाऐं अब दाई का काम नहीं करती है।

8. सुअर पालन नहीं किया जाता है, गाय व भैस भी नहीं पाली जाती है, बकरियों व मुर्गी का पालन किया जाता है।

9. कृषि कार्य वाल्मीकि सदस्य नहीं करते है और न ही खेती की जमीन है, केवल एक परिवार के पास जमीन है।

10. शारीरिक या प्रत्यक्ष भेदभाव में कमी आयी है।

11. आधुनिकीकरण व भौगोलीकरण का प्रभाव वाल्मीकि समाज सहित सम्पूर्ण गांव पर पड़ा है।

सामग्री और क्रियाविधि
यह शोध पत्र वाल्मीकि समाज जो जिला बुलन्दशहर, तहसील अनूपशहर, ब्लाक जहांगीराबाद के गांव टिटौटा उर्फ वीरगांव के निवासी है, के विषय में एक अवलोकनात्मक अध्ययन है। जिला बुलन्दशहर से गांव लगभग 36 किमी0 की दूरी पर है जो कि पक्की सड़क से जुड़ा है। गांव में प्रवेश के कई मार्ग हैं, इन्हें दो मुख्य भागों में बाट सकते हैं-1. नवीनगर गांव की ओर से 2. जहाँगीराबाद ब्लॉक की ओर से। अब गांव में ई-रिक्शा के माध्यम से आना-जाना आसानी से हो जाता है अन्यथा पूर्व में अपने वाहन की सुविधा न हो तो परेशानी बहुत ज्यादा होती थी। पहले लोग भैंसा-गाड़ी (बुग्गी) या ट्रेक्टर के माध्यम से या पैदल ही ब्लॉक जहाँगीराबाद तक जाते थे। वहीं से ही अन्य स्थानों के लिए प्राइवेट बस द्वारा सम्पर्क होता था। सरकारी बसों की आवाजाही बहुत ही कम है। यह अवलोकन 2018 से 2022 तक का है। चूंकि यह वाल्कीकि मौहल्ला हमारे रोज प्रयोग किया जाने वाले रास्ते के बीच में आता है तो दिन में दो बार तो सामान्यतः यहाँ से गुजरना होता था। अतः वाल्मीकि समुदाय के घर, मौहल्ले के बीच से रोज आते-जाते समय उनके कार्य व व्यवहार को देखा गया, उनसे बातचीत भी की गई, तथा अनेक अनौपचारिक प्रश्न भी पूछ कर जानकारियां ली गई, साथ ही इस समुदाय के लोगों के विषय में गांव में रह रहे अन्य समुदाय के लोगों से भी अनौपचारिक वार्तालाप अनेक बार किया तथा उनके विचार भी इस समुदाय के विषय में जाने। इस शोध लेख में वाल्मीकि समुदाय की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा राजनीतिक स्थितियों पर चर्चा की गई है।
निष्कर्ष निष्कर्षतः हम इस अध्ययन के माध्यम से यह कह सकते हैं कि 21वीं सदी के भारत में जहाँ गणतंत्रात्मक लोकतंत्र है और आजीविका इच्छानुसार उपार्जन करने का मौलिक अधिकार है। परन्तु वाल्मीकि समाज के नागरिक अपनी इच्छानुसार अपनी आजीविका का चुनाव नहीं कर पाते हैं। उनके लिए उनकी जाति के कारण ये अवसर उपलब्ध होकर भी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. गुप्ता मोती लाल ’’भारत में समाज’’ राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी (2013), पेज नं0-59 2. अम्बेडकर, डा0 भीमराव, अनुवादक भदत्त आनन्द कौशल्यायन, अछूत कौन और कैसे?, गौतम बुक डिपो, दिल्ली, पृ0सं0-05 3. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग वार्षिक रिपोर्ट 2010-11 4. https://villageingo.in>....villages (17-8-2022) 6. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग वार्षिक रिपोर्ट 2010-11 7. सिंह भगत, ’’अछूत समस्या’’ https://parisar.fils.wordpress.com>.....PDF