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व्यक्तित्व - प्रकृति, प्रकार एवं सिद्धांत | |||||||
Personality - Nature, Types and Theories | |||||||
Paper Id :
17563 Submission Date :
2023-05-03 Acceptance Date :
2023-05-16 Publication Date :
2023-05-25
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सारांश |
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हैं, जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होती है। व्यक्ति के इन गुणों का समुचय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है। व्यक्तिव एक स्थिर अवस्था न होकर एक गत्यात्मक, समष्टि है। जिस पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है, और इसी कारण उसमें बदलाव आ सकता है। व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार, क्रियाओ और गतिविधियों में व्यक्ति का व्यक्तित्व, झलकता है। व्यक्ति का समस्त व्यवहार उसके वातावरण या परिवेश में समायोजन करने के लिए होता है।
व्यक्तित्व को प्रभावित करने में कुछ विशेष तत्वो हाथ रहता है उन्हें हम ‘व्यक्ति के निर्धारक’ कहते हैं।
ये ही तत्व मिलकर व्यक्तित्व को पूर्ण बनाने में सहयोग देते हैं। इन्ही तत्वों के अनुरूप व्यक्तित्व को विकास होता है। व्यक्तित्व में कुछ गुण आनुवांशिक होते हैं। शरीर का रंग, रूप, शरीर की बनावट गुणो मुक्त हो सकते हैं। व्यक्तित्व विकास असर पड़ता है। व्यक्तित्व के निर्धारण में अंतःस्रावीग्रंथियो का प्रभाव भी पड़ता है अतः यह कहा जा सकता है कि व्यवहारकुशल कालियो का व्यक्तित्व अव्यवहारीक मनुष्यों की बजाय अव्वल व उच्च दर्जे का होता हैं।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Every person has some special qualities or characteristics, which are not there in the other person. The set of these qualities of a person is called the personality of a person. Individual is not a static state but a dynamic, collective. Which is affected by the environment. And that's why it can change. A person's personality is reflected in his conduct, behavior, actions and activities. All the behavior of a person is for adjustment in his environment. Some special elements have a hand in influencing the personality, we call them 'determinants of the individual'. Together these elements help in making the personality complete. Personality develops according to these elements. Some personality traits are genetic. The color of the body, form, texture of the body can be character free. Personality development is affected. Endocrine glands also have an effect in the determination of personality, so it can be said that the personality of well-mannered people is better and higher than that of impractical people. |
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मुख्य शब्द | प्रारूप उपागम, सात्विक, राजसिक, तामसिक, अर्न्तशक्ति, बहिर्मुखी, शेल्डन के व्यक्तित्व के प्रकार। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | 'Format Approach', Satvik, Rajasic, Tamasic, Introvert, Extrovert, Sheldon's Personality Types | ||||||
प्रस्तावना |
शिक्षा जगत में ’व्यक्तित्व‘ शब्द अपना एक विशेष स्थान रखता है। शिक्षा अपने सम्पूर्ण रूप में बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास से अपना प्रयोजन रखती है। अतः भावी अध्यापको को ’व्यक्तित्व‘ के अर्थ, प्रकृति एवं उसकी अवधारणा से परिचित होना अत्यंत आवश्यक है।
व्यक्तित्व का अर्थ- मनोवैज्ञानिक भाषा में व्यक्ति अपने आप से जो कुछ भी है वही उसका कुछ व्यक्तित्व है। अपने प्रति और दूसरो के प्रति किए जाने वाले व्यवहार का यह एक समग्र चित्र है। इसमें व्यक्ति के पास शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी होता है वह सभी सम्मिलित होता है। थोड़े शब्दो में व्यक्तित्व वह सब कुछ है जो एक व्यक्ति के पास होता है।
आइजैक के अनुसार:- व्यक्तित्व व्यक्ति के चरित्र स्वभाव, बुद्धि और शारीरिक बनावट का थोड़ा बहुत ऐसा स्थाई और स्थिर संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अपूर्व समायोजन को निर्धारित करता है।
व्यक्तित्व शहर अंग्रेजी के ’पर्सनेलिटी‘ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। ’पर्सनेलिटी‘ शब्द लेटिन भाषा के ’पसौना‘ शब्द से बना है जिसका अर्थ है मुखौटा /वाह्य आवरण/ नकली चेहरा /नकाब/मास्क आदि।
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अध्ययन का उद्देश्य | व्यक्तित्व अध्ययन का उद्देश्य वर्तमान को समझता, उन भूतकालीन घटनाओ को पहचानना जिनके कारण वर्तमान स्थिति पैदा हुई तथा उन कारको को जानना जो भविष्य में परिवर्तन लाने हेतु आवश्यक हैं। व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार का पूर्वकथन भी किया जा सकता है। |
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साहित्यावलोकन | हम आम बातचीत में
व्यक्तित्व संप्रत्यय का उपयोग करते हैं। व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ लैटिन शब्द ’परसोना‘ से लिया गया है। परसोना उस ’मुखौटे‘ को कहते है जिसका नाटको में उपयोग
किया जाता है। सामान्यतः यह समझा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति सुन्दर दिखाई देता है
तो उसका व्यक्तित्व अच्छा है। ऐसे में व्यक्तित्व को किसी व्यक्ति के शारीरिक या
बाह्य रूप के आधार पर निर्धारित कर लिया जाता है जो कि पूर्णतः सही नहीं है।
व्यक्ति में शारीरिक गुणो के साथ उसके मनोवैज्ञानिक गुणो को भी शामिल किया जाता
है। |
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मुख्य पाठ |
मनोवैज्ञानिक गुणो के उदाहरणो में किसी व्यक्ति का शांत स्वभाव का होना, गंभीर होना, शर्मीला होना, खुशमिजान होना, स्फूर्त
होना, बुद्धिमान होना, सहयोगी होना आदि
गुण भी शामिल किये जाते हैं। इसे प्रकार व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के शारीरिक एवं
मनोवैज्ञानिक गुणों का एक समुच्चय है। व्यक्तित्व के प्रकार:- व्यक्तित्व विभिन्न गुणो का ऐसा समायोजन है जिसके कई पक्ष होते हैं। इस हेतु
हम प्रारूप उपागम का अध्ययन करते हैं। ’प्रारूप
उपागम‘:- एक जैसी विशेषताएँ रखने वाले व्यक्तियों को प्रारूप के रूप में वर्गीकृत
करते हैं। त्रिगुण-सत्व, रज, तम के
आधार पर व्यक्तियों के तीन प्रकार बताए गए हैं। (अ)
सात्विक - ऐसे व्यक्तियों में सत्व गुण की प्रधानता के कारण इनमें स्वच्छता, सत्यवाहिता, कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन
आदि गुण होते हैं। (ब)
राजसिक - ऐसे व्यक्तियों में रज गुण की प्रधानता के कारण इनमें तीव्र क्रिया,
इन्द्रिय तुष्टि की इच्छा, भौतिकतावादी,
दूसरो के प्रति ईर्ष्या आदि की अधिकता होती है। (स)
तामसिक - ऐसे व्यक्तियों में तम गुण की प्रधानता के कारण इनमें क्रोध, घमण्ड, अवसाद, आलस्य, असहायता की भावना की अधिकता होती है। शेल्डन के व्यक्तित्व के प्रकार - इन्होनें व्यक्तित्व
के तीन प्रकार बताएँ है। (1) गोलाकृतिक ऐसे व्यक्ति मोटे, गोल, मृदुल, शिथिल, सामाजिक एवं मिलनसार होते हैं। इन्हें अंग्रेजी में ’एण्डोमोर्दिक‘ शब्द से जाना जाता है। (2) आयता कृतिक ऐसे व्यक्ति मजबूत, पेशीय शरीर वाले, सुगठित शरीर, उर्जावान व साहसी होते है। इन्हें अंग्रेजी में ’मेसोमोर्सिक’
शब्द से जाना जाता है। (3) लंबाकृतिक ऐसे व्यक्ति पतले, लंबे, सकुमार, कुशाग्रबुद्धि,
कलात्मक एवं अर्न्तमुखी होते हैं। इन्हें अंग्रेजी में ’एक्टोमोर्फिक‘ शब्द से जाना जाता है। युंग के व्यक्तित्व के प्रकार - युंग ने व्यक्तित्व
के दो प्रकार बताएँ है। (अ)
अर्न्तमुखी इन्हें अंग्रेजी में इंन्ट्रोवर्ट‘ कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति शर्मिले होते है।
अपना समय अकेले व्यतीत करना पसंद करते है। दूसरे व्यक्तियों से बातचीत करने,
उनसे अर्न्तक्रिया करने में असहज महसूस करते हैं! (ब)
बहिर्मुखी - इन्हें अंग्रेजी में ’एक्स्ट्रोवर्ट’
कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति सामाजिक व बहिर्गामी होते है। लोगो से
बातचीत करने, उनसे अर्न्तक्रिया करने में सहजता व आनंद महसूस
करते हैं। हिप्पोक्रेटस का वर्गीकरण:- इन्होने शारीरिक द्रव्यों के आधार पर व्यक्तित्व को चार भागो में विभाजित
किया। 1. अधिक रूधिर वाले - ऐसे व्यक्ति प्रत्येक स्थिति में सकारात्मक उर्जा व आशा के भाव से ओत-प्रोत
रहते है। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक कार्य को शीघ्रता से निपटाने का विचार रखते है
क्योकि ये अत्यधिक आशावादी व उर्जावान होते हैं। 2. पीले पित्त् वाले - इस प्रकार के व्यक्ति ज्यादा आशावादी नही होते है इनका खून जल्दी गर्म हो जाता
है जिससे ये जल्दी क्रुद्ध होते है। 3. काले पित्त् वाले - इस प्रकार के व्यक्ति हमेशा निराशाओं में घिरे रहते है। यदि इनके सामने
किसी समस्या का समाधान भी उपलब्ध हो तो अपनी निराशा व नकारात्मक प्रवृति के कारण
समाधान तक पहुँच नही पाते हैं। कफ की अधिकता वाले - ऐसे व्यक्ति अपने जीवन की समस्त परिस्थितियों में निर्बल व निरुत्साही बने
रहते हैं। इनके जीवन में प्रत्येक परिस्थिति में निराशा छाई रहती है। सिग्मंड फ्रायड का व्यक्तित्व सिद्धांत - इस सिद्धांत को व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत भी कहा जाता है।
फ्रायड ने व्यक्ति के जीवन में दो प्रकार की मूल प्रवृत्तियो का विशेष महत्व बताया
है। (अ)
जीवन मूल प्रवृति - यह व्यक्ति में सकारात्मक कार्याे की ओर उर्जा लगाने वाली
मूल प्रवृति है। यह व्यक्ति को उच्च लक्ष्यो की ओर ले जाने में सहायक है। (ख) मृत्यु मूल प्रवृति - यह नकारात्मक
प्रकार की एवं निराशावाद से युक्त मूल प्रवृति है। फ्रायड ने व्यक्तित्व के व्यवहार का प्रमुख चालक या प्रणोद ’लिबिडो’ अर्थात कामभावना को माना है। फ्रायड का मानना है कि व्यक्ति के व्यवहार से
संबंधित सारी घटनाएँ व्यक्ति के मन में घटित होती है। फ्रायड ने मन को तीन भागो में विभाजित किया है। 1. चेतन मन 2. अचेतन मन 3. अर्द्धचेतन मन फ्रायड ने व्यक्ति के मस्तिष्क की तुलना समुद्र में तैरते हुए बर्फ के टुकड़े
से की है जिसका 90% भाग पानी के भीतर होता है जो दिखाई नही देता है यह अचेतन मन है। 10
प्रतिशत भाग जो पानी के बाहर है, उसे चेतन मन
कहा गया है। कभी-कभी सतर्कता के अभाव में प्रश्न का उत्तर पता होते हुए भी उत्तर
गलत भरा जाता है उस समय अवचेतन मन अधिक सक्रिय रहता है। फ्रायड ने व्यक्ति के व्यवहार करने की प्रवृत्ति को तीन भागो में विभाजित किया
है। 1. इदम् (इड) - यह व्यक्ति की पशु प्रवृति मानी जाती है। 2. अहम् (इगो) - यह इड पर नियंत्रण करने का काम करता है। 3. परा अहम् (सुपरइगो) - यह आदर्शवाद व नैतिकता की स्थिति है।
इसको सार्वभौमिक नैतिकता की अवस्था कहा जाता है। |
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निष्कर्ष |
अधिकांश लोकगाथाओं में यह विचार प्रकट होता है कि शरीर गठन और व्यक्तित्व का धनिष्ठ संबंध होता है। मोटा और हंसोड़ फालस्टाफ और पतला ईर्ष्यालु केसियस होता है। शैलडन का मत है कि देहाकृतियों और चितप्रकृति प्रायः साथ-साथ विकसित होती है। जब हम व्यक्तित्व को एक सर्वांग समायोजन के रूप में देखते है तब उसके साथ बुद्धि का सहसम्बंध अल्प होता है। व्यक्तिव और सामाजिक व्यवहार के अनेक पक्ष है जिनका सम्बंधं विद्यालयी उपलब्धि के साथ उचित मात्रा में घनिष्ठ होता है।
मानव व्यवहार की प्रकृति तथा शिक्षा को ही व्यक्तित्व तथा शिक्षा को ही व्यक्तित्व के रूप में समझा जाता है। व्यवहारवाद के प्रणेताओ नें मानव को केवल दैहिक संरचना के रूप में प्रस्तुत करते हुए उसके व्यवहार परिवर्तन की संजटिल प्रक्रियाओ को एक यान्त्रिक सरलता प्रदान की जिसको व्यक्तित्व के माध्यम से समझा जाता है। वास्तव में एक प्रभावशाली विचारधारा का अध्ययन करने से ही व्यक्तित्व का निरुपण संभव है। अन्ततः यह कहना उचित होगा कि व्यक्तित्व का अध्ययन मनोविज्ञान की मनोविश्लेषण शाखा के अन्तर्गत ही किया जाना उचित व सटीक रहेगा। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. एस. के मंगल - शिक्षा मनोविज्ञान - पेज नं. 458 से 460 )( स्व-विवेक संकलन)
2. मा. शि. बो. राजस्थान- मनोविज्ञान-कक्षा-12 पेज नं. 14 से 16
3. डॉ. मुगल बिहारी पारारार - बाल्यावस्था एवं वृद्धि पेज नं. 113 से 116
4. डॉ. हँसराज गुर्जर विकास एवं वृद्धि पेज नं. 120 से 121
5. जे.एम. स्टीफन्स- शिक्षा मनोविज्ञान - पेज नं. 651 से 658
6. डॉ. इन्दु दवे - शिक्षा के मनोविज्ञानिक आधार - पेज नं. 130 से 135 |