ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- I April  - 2023
Anthology The Research
प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष और गोरखपुर जनपद
First Freedom Struggle and Gorakhpur District
Paper Id :  17553   Submission Date :  05/04/2023   Acceptance Date :  20/04/2023   Publication Date :  25/04/2023
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सीमा श्रीवास्तव
असिस्टेंट प्रोफेसर
प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग
भवानी प्रसाद पाण्डेय पी.जी. कॉलेज
गोरखपुर,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश (First Freedom Struggle and Gorakhpur District) 1857 की क्रांति में गोरखपुर की धरती ने सदैव देश को दिशा दी है। यहाँ के लोगों ने 1857 की क्रांति से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक में देश की आजादी के लिए कुर्बानी दी है। महान क्रांतिकारी पं० रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत इसी गोरखपुर में हुई थी। मंगल पाण्डेय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद थे। गोरखपुर जनपद में मुख्य केन्द्र नरहरपुर स्टेट था। यहाँ के राजा हरिप्रसाद मल्ल ने सिर कटाना पसंद किया किन्तु अंग्रेजों की दासता को स्वीकार नहीं किया। यद्यपि उन जैसे अनेक शहीदों के महान त्याग व बलिदान पर राष्ट्रीय इतिहासकारों ने चुप्पी साध रखी है लेकिन क्षेत्रीय लेखकों ने अपने कृतियों में इन्हें अमरता प्रदान किया है वर्तमान में भी स्थानीय लोग ऐसे महानायकों के त्याग की कथा सुनाकर भावी पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं। प्रस्तुत शोध में 1857 की क्रांति में गोरखपुर जनपद के अवदानों का उल्लेख किया गया है। विवेच्य शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य है गोरखपुर के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालना और उसके इतिहास को स्मरण रखना इस भू-भाग में उत्पन्न हुए वीर नायकों जिनका अल्प उल्लेख किया गया है उन महानायकों शहीदों के अस्तित्व को उजागर करना है जिससे विद्यार्थियों को भी यह तथ्य संज्ञान में आये कि उक्त क्षेत्र ने भी प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष 1857 में अपना अमूल्य योगदान दिया जिनका कतिपय उल्लेख क्षेत्रीय पुस्तकों में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष में राजा हरिप्रसाद मल्ल आन्दोलन के केंद्र बिंदु रूप में प्रतिष्ठित थे। इन्होंने गोरी हुकूमत के खिलाफ शंखनाद किया और गोरखपुर से जा रहे अंग्रेजों के राशन को भी लुटवाया था वर्तमान में राजा का ध्वस्त किला उपेक्षित जीर्ण-शीर्ण होकर टीला मात्र रह गया है। प्रस्तुत प्रमाणिक शोध पत्र समस्त पाठकों विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद होगी। क्योंकि यहाँ के रजवाड़े सतासी नरहरपुर बढयापुर रियासतों के (1857 के विद्रोह में) संघर्ष एवं गौरव गाथा को विस्मृत नहीं किया जा सकता। गोरखपुर के गौरवशाली इतिहास में फिरंगियों के जुल्म एवं शोषण से तंग जनता ने भी विद्रोह में अपनी सहभागिता दी। अतः 1857 से ही गोरखपुर अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है जिसको उद्घाटित करना प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद (First Freedom Struggle and Gorakhpur district) In the revolution of 1857, the land of Gorakhpur has always given direction to the country. The people of this place have given sacrifices for the freedom of the country from the revolution of 1857 till the Quit India Movement of 1942. The martyrdom of great revolutionary Pandit Ramprasad Bismil took place in Gorakhpur. Mangal Pandey was the first martyr of the first freedom struggle. The main center in Gorakhpur district was Narharpur estate. Here King Hariprasad Malla preferred to behead but did not accept the slavery of the British. Although the national historians have kept silence on the great sacrifice of many martyrs like him, but the regional writers have immortalized them in their works. Even at present, the local people teach the lesson of patriotism to the future generation by telling the story of the sacrifice of such great heroes.
In the presented research, the contribution of Gorakhpur district in the revolution of 1857 has been mentioned. The main purpose of the research paper is to throw light on the glorious history of Gorakhpur and to remember its history, to highlight the existence of the heroic heroes who were born in this land, who have been mentioned little, so that the students can also understand this fact. It may be noted that the said region also made its invaluable contribution in the first freedom struggle in 1857, some of which are mentioned on the basis of evidence available in the regional books. For example, in the first freedom struggle, Raja Hariprasad Malla was revered as the focal point of the movement. He shouted conch shell against the white rule and had also looted the ration of the British going from Gorakhpur. At present, the destroyed fort of the king has become neglected, dilapidated and has remained just a mound. Presented authentic research paper will be beneficial for all readers and students. Because the struggle and glory saga of the princely states of Satasi, Narharpur, Badhyapur (in the rebellion of 1857) cannot be forgotten. In the glorious history of Gorakhpur, the people fed up with the oppression and exploitation of the Firangis also participated in the rebellion. Therefore, since 1857, Gorakhpur has been a witness to many historical events, which is the purpose of the presented research paper.
मुख्य शब्द प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष, ऐतिहासिक घटना, आंदोलन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद First Freedom Struggle, Historical Event, Movement.
प्रस्तावना
प्राचीन सदानीरा आधुनिक नारायणी और सरयू की अन्तर्वेदी तक विस्तृत क्षेत्र गोरखपुर जनपद का निर्माण करता था। भारतीय इतिहास में सर्वविदित है कि सूर्य वंश एवं चन्द्र वंश की अपनी प्रतिष्ठा रही है। मुख्यतः इन्हीं वंशजों के प्रसार, प्रत्यावर्तन संघर्ष और समन्वय का इतिहास भारतवर्ष इतिहास रहा है। गोरखपुर क्षेत्र का संबंध प्राचीन काल से ही अयोध्या से रही है। रामायण, महाभारत इस संदर्भ के साक्ष्य रहे हैं कि गोरखपुर जनपद सभी प्रकार से समृद्ध और सम्पन्न था बुद्धकाल में इस क्षेत्र में गणराज्य पद्धति शासित थी विदेशी आक्रमणकारियों के काल में भी यह स्वतंत्र क्षेत्र रहा। ज्ञात है कि सर्वप्रथम अकबर के शासन काल में जनपदवासियों में स्वतंत्रता की आग सुलगती रही और अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्षके लिये अवसर ढूँढे जाते रहे। स्वतंत्रता संघर्ष के विवरण अधिकांशतः विदेशी के आधारों पर ही आधारित है। दुःखद स्थिति रही थी कि हिन्दी में प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष पर कोई अधिकृत पुस्तक उपलब्ध नहीं है वीर सावरकर की फ्रीडम स्ट्रगल 1857 को हिन्दी अनुवाद अवश्य उपलब्ध रहा है किन्तु जनपदीय एवं प्रदेशीय योगदानों के विवरण में संबंधित कोई भी पुस्तक हिन्दी में उपलब्ध नहीं है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एक संक्षिप्त सर्वेक्षण यहाँ रेखांकित है जिससे यह ज्ञात होता है कि इस जनपद का भी योगदान स्वतंत्रता के प्रारम्भिक चरण से रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य गोरखपुर जनपद के गौरवशाली अविस्मरणीय इतिहास को प्रकाशित करना है। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में शहीद वीरो, जननायकों के अस्तित्व को उजागर करना और उनके अमूल्य योगदान एवं गौरव गाथा को स्मरणीय बनाए रखना क्योंकि 1857 से ही गोरखपुर अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। प्रस्तुत शोध पत्र में उक्त ऐतिहासिक घटनाओं का उद्घाटन किया गया है।
साहित्यावलोकन

भारत के स्वतंत्रता में गोरखपुर की भूमिका स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। प्राचीन गोरखपुर में बस्ती ,देवरिया,आजमगढ़  और नेपाल तराई के कुछ हिस्सों के जिले सम्मिलित थे।1857 की क्रांति से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक देश की आजादी में स्थानीय वीरों ने कुर्बानी दी है। जहां 1857 की क्रांति से जुड़े तरकुलहा देवी मंदिर में शहीद बंधू सिंह की वीरता के किस्सों से गूंजते हैं, वही चौरीचोरा शहीद स्थल ने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा ही बदल दी ।यदि प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष की बात की जाए तो नरहरपुर स्टेट के राजा हरिप्रसाद मल्ल ने सिर कटाना पसंद किया लेकिन अंग्रेजों की दासता को स्वीकार नहीं किया। उनका ध्वस्त किला देशभक्ति का इतिहास बन गया। ऐसे असंख्य वीर सपूतों के महान त्याग और बलिदान पर राष्ट्रीय इतिहासकारों ने खामोशी की चादर ओढ़ ली लेकिन क्षेत्रीय लेखकों ने अपनी कृतियों में इन्हें अमरता प्रदान किया है।

प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष के केंद्र बिंदु राजा हरिप्रसाद मल्ल ने देवरिया के पैना के बाबू कुंवर सिंह के विद्रोह को सही ठहराते हुए गोरी हुकूमत के खिलाफ शंखनाद किया। इसी क्रम में गोरखपुर के हिंदी बाजार में स्थित घंटाघर भी स्वतंत्रता आंदोलन की वीर बलिदानियो  के शहादत की गौरव गाथा को अपने भीतर समेटे हुए हैं। वर्तमान में स्थित घंटाघर में 1857 में एक विशाल पाकड़ का पेड़ हुआ करता था, जिस पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अली हसन के साथ दर्जनों स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी। यही वह स्थल है जहां कालांतर में महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शव यात्रा रुकी थी ,यही उनकी माताजी ने एक प्रेरणापरक भाषण दिया था।1930 में उक्त ऐतिहासिक स्थल घंटाघर का निर्माण रायगंज के सेठ राम खेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद द्वारा किया गया था। उन्होंने अपने पिता सेठ जीगान   साहू की याद में इसी स्थान पर मीनार की तरह ऊंची इमारत का निर्माण कराया, जो देश के शहीदों को समर्पित थी ।इमारत पर घंटे वाली घड़ी लगाई गई जिसके कारण चिगान टावर घंटाघर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

गोरखपुर जिसने गुलामी और अंग्रेजों का दमन देखा है, आजादी की कीमत उससे ज्यादा और कौन जान सकता है। आजादी के संघर्ष का गवाह गोरखपुर को जब आजादी मिली तो अनेक ऐतिहासिक गौरवशाली अतीत को स्वयं में समेट लिया, जिसने इसे इतिहास के पटल पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कर दिया। प्रस्तुत शोध पत्र में इसी गौरवशाली इतिहास को उद्घाटित किया गया है।

मुख्य पाठ

अंग्रेजी राज्य के शोषण के विरुद्ध सुलगती आग में प्रथमतः योगदान कलकत्ते के बैरकपुर की सेनानायक मंगल पाण्डेय का रहा जो गोरखपुर के निकटवर्ती बलिया जिले के थे। स्वतंत्रता के संघर्ष में सम्मिलित सरदार, सैनिक, सामन्त, किसान, कारीगर तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिन्दू ही थे। स्वतंत्रता की उठती ज्वारों में यहाँ के वासियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी।

इस क्रान्तिकाल में गोरखपुर के कलक्टर मिस्टर पर्टेलन, ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट बर्ड, जज विनयार्ड और सेना के कप्तान स्टील थे जो आजमगढ़ में रहते थे। इन्हीं अधिकारियों को स्वतंत्रता संघर्ष का सामना करना पड़ा। सर्वप्रथम बरहज बाजार (प्राचीन गोरखपुर) के निकट पैना गाँव के क्षत्रियों ने स्वतंत्रता की घोषणा करके सरयू नदी द्वारा होने वाले आवागमन पर अधिकार कर लिया और अंग्रेजों के सहायता के लिये आयी सामानों से भरी हुई नाव को लूट लिया। बडहलगंज के पास आजमगढ़ को जोडने वाली नावों के कतारों को तितर बितर कर दिया। उस समय अंग्रेजी सेना की प्रमुख छावनी आजमगढ़ था।

गोरखपुर जनपद में विद्रोह का प्रथम केन्द्र नरहरपुर थाना जो गोरखपुर-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग के सटे घाघरा पुल के पास बड़हलगंज के निकट स्थित है। नरहरपुर के खण्डहर स्वतंत्रता संघर्ष के स्मृति अवशेष के रूप में बिखरे पड़े हैं। स्थानीय राजा हरप्रसाद सिंह के नेतृत्व में किसानों, मजदूरों एवं सरदारों ने अंग्रेजों के सैनिक केन्द्र बडहलगंज पर आक्रमण कर अंग्रेजी सेना को मारकर भगा दिया इस प्रकार बड़हलगंज गोरखपुर-बनारस- आजमगढ़ का संबंध काट दिया गया।

ज्ञात है कि काल में अंग्रेजों द्वारा उत्तर-दक्षिण को मिलाने वालके राजमार्ग की सुरक्षा हेतु बडहलगंज में सुदृढ पुलिस व्यवस्था कर अपना शिविर बनाया था। इसीलिए नगर (बस्ती) सतासी (देवरिया) और नरहरपुर (गोरखपुर) के क्षत्रिय राजवंशों के स्वामियों ने परस्पर मिलकर गोरखपुर को मुक्त कराने की रणनीति की योजना बनायी जिसने अंग्रेजों को बेचैन कर दिया। इस प्रकार 1857 के प्रथम संघर्ष में यहाँ के राजा और परिजन सहित इस संघर्ष में सम्मिलित हुए थे। 

इस परिक्षेत्र के अनेक राज्यों और राजाओं ने स्वतंत्रता संघर्ष में अपना योगदान दिया। पाण्डेपार और गगहा के मध्य गोरखपुर-वाराणसी राजमार्ग के उत्तर निवास करने वाले क्षत्रिय सरदारों ने अपने जनरल के साथ पाण्डेपार, गगहा में एकत्रित होकर अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष में अपना योगदान दिया।

गोरखपुर – आजमगढ़ - इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोरखपुर से 39 कि०मी० पर बाँसगाँव तहसील में स्थित गगहा के क्षत्रिय सरदारों और ग्रामीणों ने स्व० श्री बली सिंह के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। ज्ञात है कि जिस समय अंग्रेज अधिकारी गोरखा सैनिकों के संरक्षण में गोरखपुर त्यागकर आजमगढ़ ब्रिटिश खजाने सहित प्रस्थान कर रहे थे उसी समय पाण्डेपार के स्वतंत्रता सेनानायक स्व० गोविन्द बली सिंह ने यह सूचना भेजी थी कि अंग्रेजों को गगहा - बडहलगंज गाँव के मध्य रोककर खजाने को लूट लिया जाय। यद्यपि गोरखपुर मण्डल के स्वतंत्रता संघर्ष के महासेनानायक स्व० मुहम्मद हसन की सेना में आने में बिलम्ब हुआ परन्तु गगहा के वीरों ने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों गोरखों की सम्मिलित सेना से निहत्थे मोर्चा लिया। 

ध्यातव्य है कि गोरखपुर परिक्षेत्र का चिलवा- गोपालपुर स्थल जो गोरखपुर- गोला-बड़हलगंज राजमार्ग पर स्थित है, के राजा कृष्णकिशोर चन्द ने यद्यपि बर्ड साहब का साथ दिया था किन्तु उनके दामाद हाटा, चिलवा और बढ़यापार के कौशिक क्षत्रियों ने स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण भाग लिया। कालोत्तर में जमींदारी छिन जाने के कारण इन्होंने नेपाल के बहादुरगंज में शरण ले लिया जिनके वंशधर श्री लोकेन्द्र बहादुर चन्द नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री रहे थे।

गोरखपुर क्षेत्र का भौवापार स्थल भी स्वतंत्रता संघर्ष का साक्षी है। जो गोरखपुर से 10 कि०मी० पर राप्ती नदी के दाहिने तट पर स्थित है। ज्ञात है कि जिस समय अंग्रेज भौवापार घाट से रास्ता बदलकर राप्ती नदी पर नावों का पुल बनाकर गोरखपुर से आजमगढ़ की ओर खजाने के साथ भाग रहे थे उस समय सूचना पाकर भौवापार और निकटवर्ती गाँवों की जनता ने अंग्रेजों और गोरखा सेना का रास्ता रोककर खजाना लूटने का प्रयास किया था। इस संघर्ष में अनेक वीरों ने प्राणों की आहुति दी थी। यदि बर्ड साहब ने नये नाव का पुल न बनवाया होता तो अंग्रेजी सेना राप्ती नदी के भौवापार घाट पर डुबो दी जाती। इसीलिए आज भी राप्ती के नये घाट को बर्डघाट के नाम से जाना जाता है और उसके नाम पर परिवहन निगम की बस बर्डघाट डिपो स्वतंत्र भारत में भी चलती है।

स्वतंत्रता संघर्ष में सम्मिलित गोरखपुर से 36 कि०मी० पर स्थित बढ़यापार के कौशिक वंशीय क्षत्रियों के राजा तेज प्रताप चन्द की जमींदारी छीनकर अण्डमान में निर्वासित करने को विवश किया गया। गोरखपुर से ही 34 कि०मी० पर स्थित क्षेत्र का स्थल बासगॉव का उल्लेख सोहगौरा ताम्रपत्र में प्राप्त होता है। यहाँ के श्रीनेत वंशी क्षत्रियों ने तथा शाहपुर (उरुवा के दक्षिण), तिघरा (गोरखपुर-सोनौली राजमार्ग पर पीपीगंज के निकट) मुहम्मद हसन के साथ अंग्रेजों का सामना किया था जिससे बर्ड साहब के वासियों को जान बचाकर बेतिया भागना पड़ा था। इतना ही नहीं गोरखपुर से 15 कि०मी० पर स्थित सरदारनगर के समीप स्थित डुमरी के बाबुओं ने बन्धुसिंह के नेतृत्व में न सिर्फ अंग्रेजों की छावनियों अपितु उनके आपूर्ति वाहनों को भी नष्ट भ्रष्ट कर दिया तथा हुतवा थाने को जला दिया था। स्वतंत्रता के इस संघर्ष में सम्मिलित बन्धूसिंह के विरुद्ध अंग्रेजों द्वारा कठोर कार्यवाही करते हुए उनकी जमीन डुमरी कोर्ट परगना हवेली के 34 गाँवों का सम्पूर्ण हिस्सा गवर्नमेन्ट नं0 5283, 17 दिसम्बर 1858 को सुरेन्द्र सिंह मजीठिया के परदादा पंजाबी सूरत। सिंह को दे दिया गया और बन्धू सिंह को उर्दू बाजार के निकट हाल्सीगंज में पतसी के पेड़ पर फाँसी पर लटका दिया गया।

गोरखपुर के अनेक क्षेत्रों के राज्यों को हड़प लिया गया क्योंकि वहाँ के राजाओं ने स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लिया था। उदाहरण- लक्ष्मीपुर, पाली, निचलौल जो सम्प्रति महराजगंज में सम्मिलित है प्राचीन गोरखपुर के अन्तर्गत आते थे। राजा रत्नसेन ने यहाँ नेतृत्व किया था। उपर्युक्त सभी स्थलों से अंग्रेजों को कठोर संघर्ष एवं विद्रोह का सामना करना पड़ा। यद्यपि इस संघर्ष में अंग्रेजों का साथ नेपाल की गोरखा सेना और पंजाब की सिख सेना ने दिया किन्तु क्षेत्र के सतासी नरेश के विद्रोह के ही कारण अंग्रेजों को गोरखपुर से भागना पड़ा ऐसा ज्ञात हुआ है कि गोरखपुर छोड़ने का सलाह मिस्टर टकर नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने दिया था और गोरखपुर के कलक्टर विनियार्ड ने जनपद के सभी यूरोपियों को एकत्रित कर पलायन कर दिया।

तत्पश्चात् क्रान्तिकारियों ने मुहम्मद हसन को गोरखपुर का शासक घोषित किया। बर्ड को भागकर बेतिया जाना पड़ा। मुहम्मद हसन के नेतृत्व में शासन चलने पर नियमपूर्वक मालगुजारी वसूल होने लगी। न्यायव्यवस्था संचालित होने लगी। इस क्रान्ति में सम्मिलित लोगों को पुरस्कृत किया गया।

गोरखपुर जनपद में मुहम्मद हसन के नेतृत्व में नरहरपुर, सतासी, बाँसी, बढयापार, पाण्डेपार, डुमरी, पाली आदि के क्षत्रिय सरदारों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लिया जो हिन्दू-मुस्लिम एकता का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। तत्कालीन एकता को दृष्टि में रखते हुए ही लार्ड मिन्टो ने विचार प्रस्तुत किया था कि भारत में जब तक हिन्दू-मुस्लिम एकता विद्यमान रहेगी तब तक ब्रिटिश सत्ता को खतरा बना रहेगा। इसीलिए प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष के तत्काल बाद अंग्रेजों ने मुस्लिम पृथकतावादी रणनीति का सहारा लिया।

इस स्वतंत्रता संघर्ष की बलिवेदी पर सतासी (प्राचीन गोरखपुर) के राजा उदितनारायण सिंह और बढ़यापार के राजा तेज प्रताप चन्द आदि को काला पानी भेज दिया गया। चिलवापार, शाहपुर, धुरियापार, तिघरा के बाबुओं की जमींदारियाँ छीन ली गयीं। डुमरी के बाबू बन्धु सिंह को गोरखपुर नगर में फाँसी दे दी गयी और उनकी जमींदारी सरदार सूरत सिंह मजीठिया को दे दिया गया जो अंग्रेजों का खैरख्वाह था उन्होंने नई छावनी सरदारनगर का निर्माण किया गोरखपुर के मियाँ साहब नाजिर को पाण्डेयपार के बाबूओं की जागीरदारी मिली क्योंकि उन्होंने धार्मिक इमामबाड़े में अंग्रेजों को छिपा रखा था। हर सहाय नाजिर को विश्वासघात के कारण पुरस्कृत किया गया। लक्ष्मी पाली के राजाओं की सम्पत्ति जब्त कर ली गयी। निचलौल के राजा की सम्पत्ति कुर्क कर दी गयी । बाँसगाँव के नेतृत्वकर्ता दमन सिंह और उनके साथियों को अंग्रेजों की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

गगहा, हाटा, वासूडीहा, निचलौल के राजाओं पर भी गाज गिरी, इनको गिरफ्तार कर लिया गया। मुहम्मद हसन तो भाग गया परन्तु नायब नाजिम मुसर्रफ खाँ पकड़े गये और उनको गोरखपुर के अलीनगर स्थित बरगद के पेड़ पर फाँसी दे दी गयी। अंग्रेजी सत्ता ने दमन बदला और अपने भक्तों को सराहना सहित पुरस्कृत किया। अति तब होती थी जब जनता में भय व्याप्त करने के उद्देश्य से निरपराध लोगों को संदेह के आधार पर फाँसी दे दी जाती थी किन्तु इस अत्याचार के बाद अन्ततः इन क्रान्तिकारियों का बलिदान दौर संघर्ष खाली नहीं गया। इसी का प्रतिफल स्वतंत्रता या आजादी के रूप में कालान्तर में हमें प्राप्त हुई। अतः आजादी के इस काल में प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष का स्मरण हमारे मानस पटल पर आना कोई आश्चर्यजनक तथ्य नहीं है।  

निष्कर्ष स्पष्ट है कि गोरखपुर जनपद का इतिहास गौरवशाली रहा है देशहित में सीने में आग और धड़कता दिल यहाँ के लोगों की पहचान रही है। 1857 विद्रोह के पहले बागी मंगल पाण्डेय भी इसी क्षेत्र से संदर्भित थे। बस्ती, आजमगढ़, मऊ,महराजगंज, देवरिया, संतकबीरनगर भी अविभाजित प्राचीन काल से ऐतिहासिक और धार्मिक अहमियत वाले जनपद गोरखपुर के ही हिस्से हुआ करते थे। गोरखपुर में 1857 के गदर ने ही तैयार की थी चौरी-चौरा की पृष्ठभूमि। चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव द्वारा इन्हीं शहीदों को श्रृद्धांजली अर्पित किया जा रहा है। इससे लोगों में राष्ट्रभक्ति, देशप्रेम की भावना भी जागृत करने में भी सहायता प्राप्त हुई। आज देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर चारों ओर उल्लास है इसके पीछे उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अमर बलिदान है, जिन्हें याद कर आज भी हमें गर्व की अनुभूति होती है।
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