P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- VIII April  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
मुगलशैली में चित्रित मैडोना एवं ईसा पर पाश्चात्य कला का प्रभाव
Influence of Western Art on Madonna and Christ Painted in Mughal Style
Paper Id :  17525   Submission Date :  06/04/2023   Acceptance Date :  19/04/2023   Publication Date :  24/04/2023
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शेरिल गुप्ता
शोध छात्रा
चित्रकला विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर,राजस्थान, भारत
सारांश यूरोपियन चित्रकला में 'मैडोना एवं ईसा' का अद्वितीय स्थान है। मुगल शैली पर जो पाश्चात्य प्रभाव पड़ा इससे भारतीय चित्रकला में नये प्रगतिशील तत्वों का समावेश हुआ तथा मुगल शैली अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची। इस शैली में चित्रित मैडोना एवं ईसा का अंकन विशेष उल्लेखनीय है। मुगल और जेसुइट पादरियों के मध्य प्रारम्भ हुए घनिष्ठ सम्बन्धों की निकटता ने कला और संस्कृति को अत्यधिक प्रमाणित किया जिसके फलस्वरूप अकबर और जहांगीर के काल में बनाये गए लघुचित्रों में भारतीय और फारसी तत्वों के साथ पश्चिमी संस्कृति भी दृष्टिगत होती है। 17वीं शताब्दी के मध्य मुगल चित्रकारों ने यूरोपियन चित्रकला की विषय वस्तु के साथ-साथ तकनीकी विद्या को भी अपनाया जिसमें विशेष रूप से छाया प्रकाश का प्रयोग करके परिप्रेक्ष्य को उभारने का प्रयास किया था। कला विचारकों के अनुसार भी मुगल चित्रकारों ने यूरोपीय चित्रकला का अनुसरण कर उसकी पुर्नव्याख्या की। इस प्रकार मुगल कालीन चित्रकला में उत्कृष्टता का प्रमुख कारण पाश्चात्य प्रभाव था।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद 'Madonna and Jesus' have a unique place in European painting. Due to the western influence on the Mughal style, new progressive elements were included in Indian painting and the Mughal style reached its climax. The marking of Madonna and Christ painted in this style is particularly noteworthy. The proximity of the close relations that started between the Mughal and Jesuit priests greatly proved the art and culture, as a result of which Western culture is visible along with Indian and Persian elements in the miniature paintings made during the period of Akbar and Jahangir. In the middle of the 17th century, the Mughal painters adopted the subject matter of European painting as well as the technique, in which an attempt was made to enhance perspective, especially by using shadow light. According to art thinkers, the Mughal painters reinterpreted the European painting by imitating it. Thus, the main reason for the excellence in Mughal painting was the western influence.
मुख्य शब्द पाश्चात्य कला, यूरोपीय शैली, मुगल शैली, ईसाई धर्म, मैडोना एवं ईसा।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Western Art, European Style, Mughal Style, Christianity, Madonna and Christ.
प्रस्तावना
पाश्चात्य की चित्रकला में मैडोना एवं ईसा के चित्रों का वृहद भण्डार है। इस युग की कला का आधार ईसाई धर्म ही था इसलिए इन चित्रों में ईसाई धर्म के विचारों की अभिव्यक्ति होती थी। 'मैडोना एवं ईसा' का विषय कला, इतिहास, संस्कृति तथा धार्मिकता में अपना विशिष्ट स्थान रखता है जिसका अनुसरण भारतीय मुगल चित्रकारों ने भी किया है। यह विषय ईसाई धर्म (बाइबिल) से प्रेरित है इसलिए इस विषय का व्यापक स्वरूप यूरोपियन प्रागैतिहासिक, बाइजेण्टाइन, मध्यकाल, पुनर्जागरण आदि अनेक शैलियों में विशेष रूप से दृष्टिगत हुआ है। इसके साथ ही मुगल शैली के लघुचित्रों में भी मैडोना एवं ईसा का विषय अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। यूरोप में ईसाई कला का विस्तार मध्य 15वीं शताब्दी तक चरम पर रहा था किन्तु इसके पश्चात् भी ईसाई विषयों का चित्रण अन्य कला शैलियों तथा देशों में भी हुआ। इस प्रकार मुगलशैली भी इन विषयों से अछूती नहीं रही और यहाँ के चित्रकारों ने इन विषयों को स्वदेशी तत्वों के साथ चित्रित किया था। मुगल शैली पूर्ण रूप से फारसी तथा भारतीय कला का मिश्रित रूप रही है और इसमें यूरोपीय शैली का समन्वय भी हुआ था इसलिए ईसाई धर्म के विषयों का मुगल शैली में बहुलता से अंकन किया गया था। भारतीय मुगल कालीन चित्रकारों ने कागज पर 'मुगल पाश्चात्यवाद' के विचारों को अत्यंत सौन्दर्य पूर्ण, माधुर्य तथा कलात्मक रूप से चित्रित किया है और इसका उदाहरण मुगलकालीन मैडोना एवं ईसा के लघुचित्रों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोध पत्र का उद्देश्य यूरोपीय तथा भारतीय मुगल कालीन चित्रकला में मैडोना एवं ईसा के चित्रों का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर उससे सम्बन्धित तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष को प्राप्त करना है।
साहित्यावलोकन

जी.के. अग्रवाल द्वारा बताया गया है कि यूरोप के पुनरुत्थान काल के कलाकारों का सबसे प्रिय विषय मैडोना एवं ईसा के जीवन के दृष्यों से सम्बन्धित था। ममता चतुर्वेदी ने अवगत कराया कि मैडोना शिशु के चित्रण में अलौकिकता के साथ मानवीय भावना प्रमुख थी तथा अनेक चित्रों में मैडोना पृथ्वीवासी होकर स्वर्ग की देवी प्रतीत होती थी। इसके साथ ही श्याम बिहारी अग्रवाल और ज्योति अग्रवाल ने बताया कि भारतीय भूमि पर जन्म लेने वाली मुगल चित्रकला ईरानी परम्परा से उत्पन्न हुई लेकिन यूरोपीय शैली के समन्वय से मुगल शैली ने अपनी उत्कृष्ट विशेषताओं के कारण भारतीय चित्रकला में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई।

मुख्य पाठ

मैडोना एवं ईसा का परिचयः

पश्चिमी यूरोपीय चित्रकला के इतिहास में मैडोना एवं ईसा की छवि धार्मिकता, प्रेम एवं नवीनता का प्रतिनिधित्व करती है। मैडोना एवं ईसा का चित्रण ईसाई धर्मशास्त्र में विशेष प्रचलित है तथा मैडोना को एकाकी स्वरूप या पुत्र ईसा के साथ चित्रित किया गया था। मैडोना के विषय से सम्बन्धित सभी चित्र उसके एवं ईसा के जीवन दृश्यों से परिचित कराते हैं तथा ईसाई धर्म का प्रचार करते हैं। मैडोना को अन्य नाम से भी जाना जाता है जैसे मरियम, मेरी, वर्जिन तथा आवर लेडी आदि। मरियम गैलीलिया शहर के नाजेरथ गांव में रहती थी और उनकी सगाई यूसुफ से हुई थी। ईसा मसीह का जन्म मरियम के गर्भ से उनके विवाह से पूर्व ही ईश्वरीय प्रभाव से हुआ था इसके पश्चात् उनका विवाह यूसुफ से हो गया तथा वह बेथलहेम नामक नगरी में रहने लगे जो यहूदियों फिलिस्तानी देश में हैं। बेथलहेंम में लगभग 4 .पू. में ईसा मसीह का जन्म हुआ था कला की दृष्टि से मैडोना एवं ईसा का चित्रण प्रेम तथा मातृत्व का प्रतीक है।

पाश्चात्य कला में मैडोना एवं ईसा के चित्रों का अंकन

कला इतिहास में मैडोना एवं ईसा के विषयों पर चित्रण पाश्चात्य कला से प्रारम्भ हुआ था। इन चित्रों में अनेक दृश्यों का अंकन किया गया है जैसे मैरिज ऑफ वर्जिन, मैडोना एवं ईसा, ईसा की सूली आदि लेकिन इन सभी दृश्यों में कलाकारों का प्रिय विषय मैडोना एवं ईसा ही रहा है। मैडोना एवं ईसा के बाह्य सौन्दर्य, नैसर्गिक शोभा, कलात्मकता, रेखा, वर्ण, रूप, सामंजस्य, सन्तुलन आदि को विशेष रूप से दर्शाया गया है। सर्वप्रथम इसका ज्ञात दृश्य चित्र (चित्र संख्या-1) वर्जिन और बाल बालम पैगम्बर के साथ (Virgin and Child With Balaam the Propent) जो कि लगभग दूसरी से तीसरी शताब्दी में प्रिस्किल्ला के कैटाकॉम्ब (रोम, इटली) में पाया गया था। धीरे-धीरे इस विषयों से सम्बन्धित चित्रों का विस्तार हुआ तथा आगे चलकर बाइजेण्टान, रोमनस्क कला, गोथिक कला, पुनरूत्थान कला आदि में इस विषय का बहुलता से रूपाकंन हुआ। यूरोप के पुनरूत्थान कालीन कलाकारों का सबसे प्रिय विषय मैडोना एवं ईसा के जीवन के दृश्यों से ही सम्बन्धित था। इस प्रकार आरम्भिक पुनरूत्थान काल के साथ-साथ चरम पुनरूत्थान काल के कलाकारों ने भी इस विषय में विशेष रूचि दिखायी थी। पुनरूत्थान काल के प्रसिद्ध कलाकार लिओनादो दा विंसी ने मैडोना का सूक्ष्म अध्ययन कर उन पर अनेक चित्र श्रृंखलाऐं निर्मित की थी जैसे 'वर्जिन ऑफ रॉक्सजिसमें दो शिशुओं के साथ मैडोना को चित्रित किया गया है तथा 'मैडोना लिट्टाआदि भी प्रमुख है। इसके अलावा विन्सी ने 'कुमारी शिशु तथा सन्त ऐन'*(The Virgin and Child with St. Anne) के चित्र से उसने एक नवीन प्रकार की मैडोना के चित्रों का विकास किया जिसमें ठोसपन, संयोजन, सामंजस्य, संतुलन, लयबद्धता तथा कलात्मकता के गुणों से सम्पन्न आकृतियाँ है। इसी प्रकार चरमपुनरूत्थान के दूसरे प्रमुख कलाकार माइकेल एंजिलो थे उन्होंने इस विषय से सम्बन्धित अनेक कलाकृतियों का निर्माण किया था। इनकी प्रमुख कृति 'पवित्र परिवार' है इस चित्र में जोसेफ, मैडोना और ईसा का अंकन किया गया है। इसके अलावा उन्होंने वर्जिन मेरी और ईसा की प्रसिद्व मूर्ति 'पिएटा' की प्रतिमा गढ़ी। पुनजार्गरण कला की प्रसिद्ध पिएटा मूर्ति में यीशू को सूली पर चढ़ाये जाने के बाद उनके शरीर को माँ मेरी की गोद में दर्शाया गया है। यह उनका एक महत्वपूर्ण कार्य था क्योंकि इसमें प्रकृतिवाद के साथ-साथ शास्त्रीय सौन्दर्य के पुनजार्गरण आदेशों को भी सन्तुलित किया गया था। इसके साथ ही पुनरूत्थान काल के तीसरे प्रमुख कलाकार राफेल थे जिनकी सर्वाधिक ख्याति भी उनके मैडोना चित्रों से ही हुई थी। इनके चित्रों में ममता, मिठास, बालकों सा सरल विश्वास और सौन्दर्यपूर्ण रेखाएँ आदि थी। 'सिस्टाइन मैडोना' रैफेल की प्रमुख कृति थी जिसमें उन्होंने मैडोना को दिव्य रूप में प्रकृट किया है। मैडोना एवं ईसा का विषय केवल पुनजार्गरणकाल तक ही समिति नहीं रहा बल्कि इसके बाद भी इन चित्रों का अंकन होता था तथा इस विषय को धीरे-धीरे नवीन स्वरूप मिलता रहा। इस प्रकार चित्रकारों ने अनेक वर्षों में मैडोना के सैकड़ों चित्र बनाए थे क्योंकि शायद माँ और शिशु को अंकित करने की उनकी एक चितरंजन इच्छा थी। उस समय के कलाकारों में से कोई भी ऐसा नहीं था जिसने मैडोना एवं ईसा का अंकन किया हो तथा यूरोप के गिरजाघरों की भित्तियों मूर्तियों पर भी अधिकतर मात्रा में मैडोना एवं ईसा का रूपाकंन ही हुआ है।

1. वर्जिन और बाल बालम पैगम्बर के साथ

चित्र संख्या-1

मुगल शैली में चित्रित मैडोना एवं ईसा पर पाश्चात्य प्रभाव 

भारतीय कला के इतिहास में 16वीं शताब्दी के मध्य गोवा में पुर्तगाली तथा ईसाई पादरियों के आगमन के साथ कुछ कलाकृतियाँ भी भारत में आई इसी कारण धीरे-धीरे इन लोगों ने भारत में ईसाई धर्म का प्रचार किया। सर्वप्रथम अकबर ने इन कलाकृतियों के प्रति अपनी रूचि प्रदर्शित की थी। सन् 1580 में बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी में पादरियों का स्वागत किया। अकबर से मिलकर पादरी अभिभूत हो गए तथा उन्होंने फतेहपुर सीकरी में अपने अनुभव के बारे में लिखा- (ऐसा जादुई शहर पूरे यूरोप में कहीं भी नहीं हैं)। यूरोपीय शैली के प्रभाव से मुगल काल में एक नवीन परिवर्तन आया जिससे मुगल चित्रकला में हिन्दू, ईरानी और यूरोपीय शैली का समन्वय परिलक्षित हुआ। इस प्रकार विविध संस्कृतियों के मध्य संश्लेषण और भी मजबूत हुए तथा समृद्ध रूप से कलात्मक विचारों का आदान-प्रदान हुआ। अकबर ने ईसाई पादरियों को फतेहपुर सीकरी में गिरजाघर बनाने की अनुमति दी थी। ईसाई पादरियों ने उस गिरजाघर में अनेक ईसाई चित्र भी अंकित करवाए थे, जिसको देखकर अकबर ने बहुत प्रशंसा की और अपने दरबारी चित्रकार दसवन्त को उन चित्रों की अनुकृति बनाने का कार्य सौंपा। बादशाह अकबर स्वयं एक चित्रकार थे उन्हीं के शासन काल में मुगल लघुचित्रकला का सर्वाधिक विकास हुआ था तथा भारत में सर्वप्रथम मुगल शैली के चित्रों पर पाश्चात्य प्रभाव भी दिखायी देने लगा था। यूरोपीय शैली में यथार्थ की धार्मिक भावनाएँ होने के कारण अकबर को इस शैली से अत्यंत लगाव हुआ। इस प्रकार मुगल चित्रकारी में पाश्चात्य कला का प्रभाव अकबर के समय से शुरू हो गया था लेकिन जहांगीर के काल में इस विषय का विस्तार हुआ था। जहांगीर भी यूरोपीय कला विषयों के प्रति आकर्षित हुए तथा उन्होंने भी अपने दरबारी चित्रकारों जैसे अबुल हसन और मंसूर अली आदि को इन विषयों पर चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया था। इन चित्रों के प्रमुख विषय वर्जिन मेरी, जीसस क्राइस्ट, मैडोना एवं शिशु ईसा आदि थे। इन सभी चित्रों में ईसाई धर्म के साथ-साथ स्वदेशी संस्कृति का कलात्मक स्वरूप भी स्पष्ट दिखायी देता है। जहांगीर काल में विशेष रूप से आकृतियों के सिर के पीछे प्रभामण्डल तथा ऊपर की ओर पंख वाले देवदूत का अंकन भी पाश्चात्य चित्रकला के प्रभाव का प्रतिफलन है। इस प्रकार यही कारण था कि मुगल लघुचित्र कला में धीरे-धीरे मैडोना एवं शिशु ईसा के चित्रों को विशेष ख्याति प्राप्त हुई क्योंकि मुगलशैली पर हिन्दू कला का भी प्रभाव था इसलिए मुगल कलाकारों ने मैडोना एवं शिशु ईसा के इन चित्रों में भारतीय तत्व के साथ कहीं-कहीं भगवान कृष्ण और माँ यशोदा का स्वरूप भी दर्शाया है। इन चित्रों के द्वारा नैसर्गिंक सौन्दर्य, भावनात्मक अभिव्यक्ति, मातृत्व प्रेम, करूणा आदि दिखाया गया है। मुगल चित्रकारी ने यूरोपीय चित्रकला की विषय वस्तु को अपनाकर अनेक नए प्रयोग किए। इस शैली में मैडोना एवं ईसा के चित्रों में त्रिआयामी पद्वति को भी विशेष महत्व दिया गया था तथा यूरोपीय चित्रकला के छाया और प्रकाश को अपने चित्रों में अंकित करने का प्रयास किया था। इन चित्रों के संयोजन में मुगल चित्रकारों ने मुखाकृति की ओर ध्यानाकृष्ट करने का कार्य बड़ी कुशलता के साथ किया तथा वैज्ञानिक वर्ण योजनाओं के द्वारा संयोजन में यथार्थ तत्वों को समायोजित किया। इन चित्र संयोजन में आकृतियों का प्रभुत्व है जिनके शारीरिक गठन, मुद्राओं एवं भाव भंगिमाओं के स्वाभाविकता के साथ गति प्रेम का समावेश हुआ है इससे स्पष्ट होता है कि पाश्चात्य प्रभाव होने के बाद भी चित्रों में मौलिक गुण विद्यमान रहे थे।

2. मैडोना लिट्टाः

पाश्चात्य कला में 'मैडोना लिट्टा' 15वीं सदी के उत्तरार्ध का प्रमुख चित्र है। जिसका निर्माण का श्रेय लियोनार्डो दा विन्सी को दिया गया है इस चित्र में वर्जिन मैरी को क्राइस्ट चाइल्ड को स्तनपान कराते हुए दिखाया गया है। प्रस्तुत चित्र (चित्र संख्या-2) के आन्तरिक भाग में दो मेहराबनुमा झरोखें दर्शाये गए है जिसमें हवाई परिप्रेक्ष्य में पहाड़ी परिदृश्य दृष्टिगत होता है। चित्र में मैडोना लिट्टा के हाथों में शिशु ईसा का सुन्दर अंकन दिखाया गया है। शिशु ईसा ने अपने बाएँ हाथ में एक सुनहरी मछली पकड़ रखी है जो उनके भविष्य के जुनून का प्रतीक है।

चित्र संख्या 2

3. मैडोना और शिशु सफेद बिल्ली के साथ (Mother and Child with a white cat) (मुगल काल)

प्रस्तुत चित्र (चित्र संख्या-3) को अकबर के काल में बसावन या मनोहर चित्रकार ने सन् 1580 में बनाया था। चित्र में कुँवारी मेरी को प्रतिष्ठित तरीके से वस्त्रों में लपेटा गया  है यहाँ माता एवं बच्चे के मध्य प्रदर्शित जुड़ाव यूरोपीय पुनर्जागरण कला के मानवतावादी व्याख्या से प्रेरित है। यह बसावन की अति उत्तम कृति है जो कि भारतीय दृश्यकला के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस चित्र में ईसा का प्रतीकात्मक संदर्भ प्रस्तुत किया गया है तथा मैडोना की गोद में यीशु के साथ अंकन 'ज्ञान का सिंहासन' के रूप में जाना जाता था। इस चित्र में नीचे की तरफ सफेद बिल्ली है और दूर पर ऊपर बकरी चित्रित की गई है। यह चित्र कागज पर जल रंग से बनाया गया था।

चित्र संख्या 3

4. मैडोना और शिशु का घरेलु परिदृश्य

प्रस्तुत चित्र (चित्र संख्या-4) अकबर के शासन काल में चित्रकार मनोहर द्वारा निर्मित हुआ था। मुगल शैली के इस चित्र में यूरोपीय मैडोना एवं ईसा के स्वरूप में भारतीय माता-पुत्र की घरेलू छवि को दर्शाया गया है। इसमें शिशु को जमीन पर बिछे बिस्तर पर लेटे हुए तथा पास में मैडोना को बैठे हुए दर्शाया गया है। इसके साथ पास में एक बिल्ली को भी अंकित किया गया है।

चित्र संख्या4

5. वर्जिन मेरी एण्ड शिशु, ईसाई पुजारी तथा सेविका के साथ (Virgin Mary and Child with Christian Priest and Attendant)

प्रस्तुत चित्र (चित्र संख्या-5) में वर्जिन मेरी और शिशु को ईसाई पुजारी तथा सेविका के साथ दर्शाया गया है। यह चित्र जहांगीर काल में सन् 1610 में बना है जो बिट्रिश म्यूजियम लन्दन में रखा है। इस चित्र में ईसाई धर्म के साथ मुगल प्रभाव भी दर्शनीय है।

चित्र संख्या-5

सामग्री और क्रियाविधि
यह शोध पत्र वर्णनात्मक शोध विधि पर आधारित है। यह पूर्ण रूप से सैद्धान्तिक है इसमें ऐतिहासिक अनुसंधान पद्वति की सहायता से शोध के निष्कर्षो को प्राप्त किया गया है। परिकल्पनाः इस शोध पत्र में तथ्यों के आपसी सम्बन्धों के आधार पर परिकल्पना का निर्माण किया गया है। यूरोप के पुनरूत्थान काल में चित्रित मैडोना एवं ईसा के चित्रों का अंकन सौन्दर्य पूर्ण एंव कलात्मक रूप से हुआ है जिसका प्रभाव भारतीय कला में मुगलशैली की मैडोना एवं ईसा के चित्रों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
निष्कर्ष पाश्चात्य चित्रकला में 'मैडोना एवं ईसा’ का एक विशेष स्थान है जिसमें धर्म, कला, प्रेम, नवीनता, तथा मातृत्व का समन्वय दर्शाया गया है। यह विषय एक मात्र ईसाई धर्म से प्रेरित था इसलिए पश्चिमी कलाकारों ने इसको अपना पसंदीदा विषय बनाया था। इसी तरह पश्चिम कला के साथ-साथ भारतीय मुगल कला में भी मैडोना एवं शिशु (ईसा) का विषय प्रतीकात्मक चिन्ह् के रूप में दिखायी देता है। मुगल शैली के चित्रकारों ने मैडोना एवं ईसा के चित्रों के माध्यम से यूरोपीय ईसाई धर्म में भारतीयता को दर्शाने का प्रयास किया है। मैडोना एवं ईसा से सम्बन्धित विषयों में कलाकार ने शास्त्रीय प्रभाव को सूक्ष्म रूप से परिवर्तित कर दिया है तथा सौन्दर्य और धर्म का समन्वय कर दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। मुगल चित्रकारों ने भारतीय कला के तत्वों के आधार पर मैडोना एवं ईसा के चित्रों को बहुत ही सुन्दर ढंग से संयोजित किया इसलिए इन चित्रों में कहीं-कहीं शिशु क्राइस्ट को कृष्ण की एक आकृति के रूप में दर्शाया गया है तथा मैडोना को माँ यशोदा के समान भारतीय आभूषणों से सजी हुई अंकित की गयी है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि मैडोना एवं ईसा का चित्रण पश्चिमी कलाकारों द्वारा किया गया और उन्हीं से प्रेरित होकर भारतीय मुगल शैली के चित्रकारों ने भी इस विषय में विशेष रूचि ली व अनेक चित्रों का सृजन किया था। इस प्रकार मुगल चित्रों में मैडोना एवं ईसा का स्वरूप ईरानी, हिन्दू तथा पाश्चात्य दृश्य सौन्दर्य एवं संस्कृति का परिष्कृत मिश्रण है इसलिए वर्तमान में भी यह चित्र देश-विदेश में अपनी एक अनूठी पहचान बनाए हुए है।
आभार लेखिका इस शोध कार्य के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा अवार्ड जूनियर रिसर्च फैलोशिप हेतु अपना आभार व्यक्त करती है।
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