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राजस्थान की समसामयिक कला धारा में अमूर्तवाद | |||||||
Abstractionism in The Contemporary Art Stream of Rajasthan | |||||||
Paper Id :
17538 Submission Date :
2023-04-10 Acceptance Date :
2023-04-19 Publication Date :
2023-04-25
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सारांश |
राजस्थानी मांडना, मेंहन्दी, गोदना आदि लोक अंलकरण की अनेक शैलियां राजस्थान में आज पूर्णतः जीवित हैं और यहां की कला परम्परा को समृद्ध बना रही हैं। कला मानव की कहानी है, दर्पण है, अनुभवो का मूर्त रूप है तथा भावों का प्रदर्शन है। जब हम राजस्थान में अमूर्त अंकन की उपलब्धियों तथा सम्भावनाओं के विषयों पर चर्चा करते हैं तो राज्य के बहुत से कलाकारों के नाम इस श्रृंखला में वर्णित होते है। आधुनिक कला के साहसिक शुरूआत के दिनों में इनके योगदान को अवश्य सराहा जाना चाहिए। जो राजस्थान के अमूर्त अंकन की उपलब्धि रही है। अमूर्त कला में प्राकृतिक तथा यर्थाथवादी आकारों को पूर्णत: त्याग दिया जाता हैं। और यह आकार हमारे परिचित आकारों से मिलते जुलते नहीं हैं। भारत में अमूर्त आकारों को बनाने की प्रथा अत्यंत प्राचीन हैं। भारतीय लोक कलाओं में अमूर्त रूपों को सहर्ष स्वीकारा हैं। अमूर्त कलाकार जानबूझकर अपना ध्यान चित्रों के मूलभूत तत्वों पर केन्द्रित करते हैं। 19वीं 20वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों में भी अमूर्त कला प्रचलित रही है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Rajasthani Mandana, henna, tattoo etc. many styles of folk adornment are fully alive in Rajasthan today. And the arts here are enriching the tradition. Art is the story of human, mirror is the embodiment of experiences and expression of feelings. When we discuss the achievements and possibilities of abstract painting in Rajasthan, the names of many artists of the state are mentioned in this series. His contribution to the adventurous beginning of modern art must be appreciated. Which has been the achievement of abstract marking of Rajasthan. | ||||||
मुख्य शब्द | समसामयिक कला धारा, राजस्थानी मांडना, मेंहन्दी, गोदना। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Contemporary Art Stream, Rajasthani Mandna, Mehendi, Tattoo. | ||||||
प्रस्तावना |
राजस्थान की कला परम्परा प्रारम्भ से ही समृ़द्ध रही है। यहां के लघु चित्रों की परम्परा विश्व परम्परा बेजोड़ रही है। यहाँ के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में लोक कला के विविध रूपों एवं रंगों को उजागर होता हुआ देखा जा सकता है। राजस्थानी मांडना मेंहन्दी, गोदना आदि लोक अंलकरण की अनेक शैलियां राजस्थान में आज पूर्णतः जीवित हैं और यहां की कला परम्परा में समृद्ध रही है। विगत पांच दशकों में राजस्थान की कला का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ आधुनिक प्रयोगवादी कला के अंर्तगत अमूर्त शैली पर विविध चित्र बनाये गये।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य राजस्थान की समसामयिक कला धारा में अमूर्तवाद का अध्ययन करना है। |
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साहित्यावलोकन |
कला मानव की कहानी है, दर्पण है, अनुभवों का मूर्त रूप है तथा जीवन वाहिनी है, भावों का प्रर्दशन है। जो हमें शिव व सुन्दरम् से साक्षात्कार करवाता हैं। कला कर्म में मूर्त अमूर्त का सामंजस्य है एवं द्वंद चलता आ रहा है। अमूर्त विचारों एवं कल्पनाओं को एवं भावों को रखने का अनेक प्रयास कलाकारों द्वारा किया गया। 20वीं सदी आते-आते कलाकार प्रकृति एवं मानव देह को कला सृजन का आदर्श मानने की प्रवृत्ति का विरोध कर एक ऐसे कला संसार में प्रवेश करता है जो इससे पूर्व मात्र अभिप्रायों एवं संकेतों के माध्यम से कला संसार में प्रमुख स्थान बनाये रखे। 20वीं सदी का यह नवीन कला संसार कलाकार वैयक्तिक अभिव्यक्ति, मुक्त सृजन एवं पारम्परिक बंधनों का खुला विद्रोह था।
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मुख्य पाठ |
जब हम राजस्थान में अमुर्ताकंन की शुरूआत उसकी उपलब्धियों तथा संभावनाओं के विषय पर केन्द्रित रहकर चर्चा करते हैं, तो केवल चंद कलाकारों के नाम हमारे समक्ष रह जाते हैं। राज्य के बहुत से चर्चित-अचर्चित कलाकारों के नाम इस श्रृंखला में वर्णित होने से भी रह जाएगें। साथ ही विषय की सीमाओं में रहते हुए राजस्थान में अमूर्तांकन की शुरूआत में हिस्सा लेकर जो कलाकार अपना कलाकर्म जारी नहीं रख सके, उनकी चर्चा भी हम नहीं कर पाएंगें। राजस्थान मे अमूर्तांकन की वास्तविक शुरूआत चित्रकार ओ.डी.उपाध्याय, ज्योतिस्वरूप, पी. मंसाराम, पी.एन. चोयल, प्रेमचंद गोस्वामी, आर.बी. गौतम, रमेश गर्ग, रंजन गौतम और द्वारकाप्रसाद शर्मा की अमूर्त कृतियों से मानी जानी याहिए। इसी कला श्रृंखला में श्री सुरेश शर्मा, लक्ष्मीलाल वर्मा, भवानीशंकर शर्मा आदि का भी पर्याप्त योगदान रहा है। इसके उपरान्त मोहन शर्मा, वि़द्यासागर उपाध्याय और शब्बीर हसन काजी जैसे सशक्त चित्रकार भी उभरे, जिनके चित्रों में मूर्त तत्व विशेष रूप से मुखर थे। अपनी-अपनी शैलीगत विशेषताओं के कारण तीनों ही चित्रकारों ने अमूर्त कला के नए आयाम खोले। अमूर्त चित्रांकन के चौथे चक्र में जिन कलाकारों ने उल्लेखनीय कार्य किया उनमें सुभाष केकरे, वीरबाला, भावसार, सुभाष मेहता, अब्दुल करीम, हेमन्त शेष, डाँ. मनोज, ए.एल. दमामी, मीनाक्षी काजी और दिलीप सिंह चौहान के नाम विशेष रूप से गिनाए जा सकते हैं। धीरे-धीरे कुछ और नाम भी इस श्रृंखला में जुड़े जिनकी चर्चा अमूर्तकला के कलाकारों में की जाती है। |
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निष्कर्ष |
राजस्थान में अमूर्ताकंन की साहसिक शुरूआत करने वाले चित्रकारों में ज्योतिस्वरूप अग्रणी कलाकार हैं। इनकी वैविध्यपूर्ण अमूर्त चित्रकृतियों ने राज्य में अमूर्तांकन की नींव डाली। रंग प्रयोग, संयोजन, भाव , प्रतीक, बिम्ब और स्पेस की दृष्टि से इनकी कृतियाँ सम्पूर्ण आधुनिकता लिए होती थीं। सन् 1961 ई. से 1981 ई. तक अनेक बार राज्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित होकर ज्यातिस्वरूप ने यहाँ अमूर्तंकन की जड़े गहराई तक जमा दीं। इनकी ‘इनर जंगल’, ‘शिवशक्ति’ और ‘ज्योतिस्वरूप’ शीर्षकों से बनी चित्र श्रृंखलाएँ विशेष रूप से चर्चित और प्रशंसित हुई। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. अमूर्त विशेषांक - आकृति जुलाई-सितम्बर 1995{ए.एल.दमामी}, पृ.स. 53, 54, 55, राज. ल.क.उ अकादमी, जयपुर
2. कला में यथार्थ और अमूर्तन {शैफाली भटनागर} कलादीर्घा अक्टूम्बर 2000 पृ.स. 31, 32
3. आधुनिक चित्रकला:- {लेखक-रामचंद्र शुल्क} साहित्यसंगम इलाहाबाद, पृ.स.-25, 26, 28, 29, 117, 151
4. भारत की चित्रकला के संक्षिप्त इतिहास {लोकेश चंद्र शर्मा} {गोयल पब्लिशिंग हाउस मेरठ} पृ.स. 152, 153
5. राजस्थान में आधुनिक कला के पांच दशक - हेमन्त शेष पृ.सं.-10
6. राजस्थान की आधुनिक कला एवं कलाविद - ए. एल.दमामी पृ. सं.- 13,14,15 |