ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- I April  - 2023
Anthology The Research
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का आध्यात्मिक राष्ट्रवादी चिंतन
Spiritual Nationalist Thoughts of Pt. Shriram Sharma Acharya
Paper Id :  17560   Submission Date :  13/04/2023   Acceptance Date :  19/04/2023   Publication Date :  25/04/2023
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रजनीश जी शर्मा
शोध पर्यवेक्षक
उच्च शिक्षा विभाग
संगम विश्वविद्यालय
भीलवाड़ा,राजस्थान, भारत
पूजा उपाध्याय
शोधार्थी
उच्च शिक्षा विभाग
संगम विश्वविद्यालय
भीलवाड़ा, राजस्थान, भारत
सारांश पं. श्रीराम शर्मा आचार्य आध्यात्मिक राष्ट्रवाद को आदर्श राज्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं और यही आदर्श राज्य ‘स्वराज्य’ का रूप लेता है। आचार्य जी कहते हैं मनुष्य जाति का संयुक्त विकास व्यक्ति-व्यक्ति के बीच, व्यक्ति और समाज के बीच, व्यक्ति और समुदाय के बीच, समुदाय और समुदाय के बीच, छोटे जन समाज और समूची मनुष्य जाति के बीच, मनुष्य जाति के समान्य जीवन और उसकी चेतना के बीच तथा उसके स्वतंत्र रूप में विकसित होते हुए, सामाजिक एवं व्यक्तिगत अंगों के बीच आदान प्रदान एवं आत्मसातकरण के सामान्य सिद्धान्त द्वारा सिद्ध किया जायेगा। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एक प्रखर राष्ट्रवादी थे। उन्होंने अपने विचारों में राष्ट्र का विकास मानव एकता के आदर्श की और उन्मुख होना चाहिए इस विचार को भी स्वीकार किया। प्रकृति की सामान्य योजना असीम विविधता पर आधारित होती है। इसलिए आदर्श समाज में वैयक्तिक, राष्ट्रीय, धार्मिक, सामाजिक और नैतिक सब प्रकार की स्वाधीनता आवश्यक है। स्वाधीनता का अर्थ स्पष्ट करते हुए गुरूदेव लिखते हैं, ‘‘स्वाधीनता से अभिप्राय है अपनी सत्ता के नियमों के अनुसार चलना अपनी स्वाभाविक आत्म परिपूर्णता तक विकसित होना और अपने वातावरण के साथ स्वाभाविक और स्वतंत्र रूप में समरसता प्राप्त करना।’’ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार धर्म ही भारतीय लोकतंत्र का मूल है, जिसे पूरे भारत को एकता के सूत्र में बांधने के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Pt. Shriram Sharma Acharya presents spiritual nationalism as an ideal state and this ideal state takes the form of 'Swarajya'. Acharya ji says that the joint development of mankind, between individual and individual, between individual and society, between individual and community, between community and community, between small mass society and the whole human race, the common life of mankind and its will be proved by the general principle of exchange and assimilation between consciousness and its independent development, between social and individual parts. Pt. Shriram Sharma Acharya was a strong nationalist. In his thoughts, he also accepted the idea that the development of the nation should be oriented towards the ideal of human unity.
The general plan of nature is based on infinite variety. That's why individual, national, religious, social and moral freedom is necessary in an ideal society. Explaining the meaning of independence, Gurudev writes, "Independence means to walk according to the laws of one's being, to grow up to one's natural self-fulfillment and to achieve natural and free harmony with one's environment."
According to Pt. Shriram Sharma Acharya, religion is the root of Indian democracy, which can be achieved only after tying the whole of India in the thread of unity.
मुख्य शब्द आध्यात्मिक, राष्ट्रवाद, चिंतन, आत्मसातकरण, सिद्धान्त, संयुक्त विकास।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Spiritual, Nationalism, Contemplation, Assimilation, Principle, Joint Development.
प्रस्तावना
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एक समाज सुधारक, दार्शनिक स्वतंत्रता सेनानी और अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक थे। पं. मदन मोहन मालवीय ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर गायत्री मंत्र की दीक्षा दी। 15 साल की उम्र से 24 साल की उम्र तक हर साल 24 लाख बार गायत्री मंत्र का जप किया। चार बार हिमालय गये। स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। तीन बार जेल गये। 1971 में हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। राष्ट्र के परावलम्बी होने की पीड़ा भी उन्हें उतनी ही सताती थी जितनी की गुरूवत्ता के आदेशानुसार तपकर सिद्धियों के उपार्जन की ललक उनके मन में थी। उनके इस असमंजस को गुरू सत्ता ने तोड़कर परावाणी से उनका मार्गदर्शन किया कि युग की महत्ता व समय की पुकार देख सुनकर तुम्हें अन्य आवश्यक कार्यों को छोड़कर अग्निकाण्ड में पानी लेकर दौड़ पड़ने की तरह आवश्यक कार्य भी करने पड़ सकते हैं। इसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाते संघर्ष करने का भी संकेत था। 1927 से 1933 तक का समय उनका एक सक्रिय स्वयं सेवक स्वतंत्रा सेनानी के रूप में बीता, जिसमें घरवालों के विरोध के बावजूद पैदल लम्बा रास्ता तय कर वे आगरा के उस शिविर में पहुँचे, जहां शिक्षण दिया जा रहा था, अनेक मित्रों, सरवाओं, मार्गदर्शकों के साथ भूमिगत हो कार्य करते रहे तथा समय आने पर जेल भी गये। छह माह की उन्हें कई बार जेल हुई। जेल में भी वे जेल के निरक्षर साथियों को शिक्षण देकर व स्वयं अंग्रेजी सीखकर लोटे। आसन सोल जेल में वे श्री जवाहर लाल नेहरू की माता श्रीमती स्वरूपरानी नेहरू श्री रफी अहमद, किदवई, महामना मालवीय जी, देवदास गांधी, जैसी हस्तियों के साथ रहे व वहां से एक मूलमंत्र सीखा जो मालवीय जी ने दिया था जन-जन की साझेदारी बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति के अंशदान से मुट्ठी फण्ड से रचनात्मक प्रवृत्तियाँ चलाना। यही मंत्र आगे चलकर एक घण्टा समयदान बीस पैसा नित्य या एक दिन की आय एक माह में तथा एक मुट्ठी अन्न रोज डालने के माध्यम से धर्म घट की स्थापना का ध्वज लेकर लाखों करोड़ों की भागीदारी वाला गायत्री परिवार बनाता चला गया, जिसका आधार था प्रत्येक व्यक्ति की यज्ञीय भावना का उसमें समावेश। स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान कुछ-कुछ उग्र दौर भी आये, जिनमें शहीद भगत सिंह को फाँसी दिये जाने पर फैले जन आक्रोश के समय श्री अरविन्द के किशोर काल की क्रांतिकारी स्थिति की तरह उनमें भी वे कर्य किये, जिनसे आक्रान्ता शासकों के प्रति असहयोग जाहिर होता था। नमक आन्दोलन के दौरान वे शासकों के समक्ष झुके नहीं, वे मारते रहे परन्तु, समाधि स्थिति को प्राप्त राष्ट्र देवता के पुजारी को बेहोश होना स्वीकृत था पर आन्दोलन से पीठ दिखाकर भागना नहीं। जरारा आन्दोलन के दौरान उन्होंने झण्डा छोड़ा नहीं जबकि फिरंगी उन्हें पीटते रहे, झण्डा छीनने का प्रयास करते रहे। उन्होंने मुँह से झण्डा पकड़ लिया, गिर पड़े, बेहोश हो गये पर झण्डे का टुकड़ा चिकित्सकों द्वारा दाँत्तों में भीचे गये टुकड़े के रूप में जब निकाला गया, तब सब उनकी सहन शक्ति देखकर आश्चर्य चकित रह गये।
अध्ययन का उद्देश्य 1. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के राष्ट्रवादी विचारों का अध्ययन करना। 2. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के आध्यात्मिक विचारों का अध्ययन करना। 3. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के राष्ट्रवादी और आध्यात्मिक विचारों की वर्तमान में प्रासंगिकता और महत्व का अध्ययन।
साहित्यावलोकन

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का राष्ट्रवादी और आध्यात्मिक विचारों का समावेश कई पुस्तकों में देखने को मिलता है। इन पुस्तकों में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य आचार्य का राष्ट्र के प्रति समर्पणस्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी व देश-प्रेम की भावना से ओतप्रोत है। आचार्य जी पं. श्रीराम शर्मा आचार्य महामनीषी है और अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक संरक्षक व एक स्वतंत्रता सेनानी भी है। आजादी की लड़ाई में उनके योगदान के बदले भारत सरकार ने अपना प्रतिनिधि भेजकर उन्हें स्वतंत्रता सेनानी वाली सुविधा व पेंशन देने की पेशकश की तो उन्होंने यह सब लेने से स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि पेंशन की धनराशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दी जाये।

1. शिक्षा ही नहीं विद्या भी।

2. भाव संवेदनाओं की गंगोत्री।

3. संजीवनी विद्या का विस्तार।

4. इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण।

5. युग की माँग प्रतिभा परिष्कार।

आदि पुस्तकों में इनके राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक विचारों की झलक देखने को मिलती है।

मुख्य पाठ

आजादी के मतवाले श्रीराम शर्मा आचार्य

‘‘आजादी’’ इस शब्द को सोचा ही जाए तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि इस विषय पर सोचते ही याद आते है वह हजारों बलिदान जो हमारे देश की मां, बहन, बेटियों और पत्नियों ने किए है, अपने पुत्र, भाई, पिता, पति को खोकर। हजारों शहीद और हजारों क्रांतिकारी जिन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया, हमारी आजादी के लिए। ऐसे ही एक स्वतंत्रता, सेनानी जिन्हें आजादी के मतवाले नाम दिया गया पं. श्रीराम शर्मा आचार्य थे। गायत्री महाविद्या के महामनीषी औश्र अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक-संरक्षक है।

आचार्य जी का एक और कार्य जो हमेशा याद रखा जाता है, वह यह है कि आजादी की लड़ाई में उनके योगदान के बदले भारत सरकार ने अपना प्रतिनिधि भेजकर उन्हें स्वतंत्रता सेनानी वाली सुविधा व पेंशन देने की पेशकश की तो उन्होंने यह सब लेने से स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि पेंशन की धनराशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दी जाए। हरिजन फण्ड में जमा कर दी जाए। आचार्य जी को ताम्रपत्र देकर शांतिकुंज में सम्मानित किया। वैरागी जीवन का सच्चे राष्ट्र संत होने का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है और उन्हें तब से ही आजादी के मतवाले उन्मत्त श्रीराम मत नाम मिला। अभी भी आगरा में उनके साथ रहे या उनसे कुछ सीख लिए अगणित व्यक्ति उन्हें मत जी के नाम से ही जानते हैं।

निष्कर्ष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार राष्ट्रवाद आध्यात्मिकता पर आधारित है। आचार्य जी कहते है मानव एकता के आदर्श को यह स्वीकार करना चाहिए कि आध्यात्मवाद ही इकलौता सुरक्षा कवच है तथा राजनैतिक रूप से महान बनने और उन्मुक्ति प्राप्त करने हेतु महान् और उन्मुक्त होना चाहिये। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य कहते है राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक बल है जो सदैव विद्यमान रहती है और इसमें किसी भी प्रकार का क्षरण नहीं होता। आचार्य जी राष्ट्रवाद को सच्च धर्म मानते थे और राजनैतिक स्वतन्त्रतों को ईश्वरीय कार्य की संज्ञा देते हैं। राष्ट्रवाद महज एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि राष्ट्रवाद एक धर्म है, जिसका स्रोत ईश्वर है। आचार्य जी आध्यात्मिक राष्ट्रवाद को आदर्श राज्य के रूप में प्रस्तुत करते है और यही आदर्श राज्य स्वराज का रूप लेता है। गुरूदेव कहते हैं कि एक पूर्ण समाज अपूर्ण व्यक्तियों द्वारा नहीं बन सकता और बिना अध्यात्म के व्यक्ति की पूर्णता संभव नहीं है। यही कारण है कि आचार्य जी ने ‘‘धर्म को ही भारतीय लोकतंत्र का मूल बताया जिसे पूरे भारत को एकता के सूत्र में बाँधने के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य जी ने जिस राष्ट्रवाद की बात कि उसमें किसी प्रकार का द्वेष खिन्नता, कड़वाहट या आक्रामकता नहीं है। आध्यात्मिकता पर आधारित ‘‘मानव एकता के आदर्श’’ को यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि ‘‘आध्यात्मवाद’’ ही इकलौता सुरक्षा कवच है तथा राजनीतिक रूप से महान बनने और उन्मुक्ति प्राप्त करने के लिए दिल से महान और उन्मुक्त होना आवश्यक है। गुरूदेव स्वराज हेतु सेवा और आत्मबलिदान की आवश्यकता को अनिवार्य मानते हैं। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के क्रांतिधर्मी साहित्य:- 1. शिक्षा ही नहीं विद्या भी 2. भाव संवेदनाओं की गंगोत्री 3. संजीवनी विद्या का विस्तार 4. आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना 5. जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र 6. नवयुग का मत्स्यावतार 7. इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण 8. महिला जागृति अभियान 9. युग की मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-1 10. युग की मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-2 11. सतयुग की वापसी 12. परिवर्तन के महान क्षण 13.प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया 14. मनःस्थिति बदलों तो परिस्थिति बदले 15. जीवन देवता की साधना आराधना 16. समयदान ही युग धर्म।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, हमारी वसीयत और विरासत सिंह, 1986, युग निर्माण योजना, गायत्री तपोभूमि, मथुरा पृष्ठ-9। 2. अध्याय-2 पृष्ठ-2-6, युगदृष्य का जीवन दर्शन, सं. ब्रह्मवचर्स, युग निर्माण योजना, गायत्री तपोभूमि, मथुरा। 3. युगदृष्य का जीवन दर्शन, संत्र ब्रह्मावचर्स अखंड ज्योति संस्थान, मथुरा। 4. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य लोकमानस का परिष्कृत मार्गदर्शन, युग निर्माण योजना, गायत्री तपोभूमि, मथुरा, 1989। 5. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय, हमारी संस्कृति: इतिहास के कीर्ति स्तम्भ, ब्रह्मवर्चस अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा। 6. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय-63, हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण, ब्रह्मवर्चस, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा। 7. पं. श्रीराम शर्मा आचाय, शिक्षा ही नहीं विद्या भी, ब्रह्मवर्चस अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा।