ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- III June  - 2023
Anthology The Research
विनयपिटक में शिक्षापदों का महत्वपूर्ण स्थान
Paper Id :  17750   Submission Date :  15/06/2023   Acceptance Date :  22/06/2023   Publication Date :  25/06/2023
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सुनीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
संस्कृत विभाग
यूथ गर्ल्स डिग्री कॉलेज
बाराबंकी,लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश प्रत्येक धर्म का आधार कोई न कोई संविधान होता है। उसी तरह बौद्ध दर्शन में विनय पिटक बौद्ध संघ का संविधान एवं एकमात्र आधार है। बौद्ध संघ की व्यवस्था भिक्षु और भिक्षुणियों के नित्य-नैमित्तिक कृत्य, उपसम्पदा-नियम, देसना-नियम, वर्षावास के नियम, भोजन, वस्त्र, पथ्य औषधदि सम्बन्धी नियम, संघ के नियम व भेद होने पर संघ की एकता सम्पादित करने के नियम आदि विनय पिटक में विवृत किये गये हैं।[1]
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The basis of every religion is some or the other constitution. Similarly, in Buddhist philosophy, Vinaya Pitaka is the constitution and sole basis of the Buddhist Sangha. Arrangements of the Buddhist Sangha, routine activities of monks and nuns, Upasampada-rules, Desna-rules, rules related to rain, food, clothing, diet, medicines etc. have been described in the Pitaka. 1
मुख्य शब्द विनय का अर्थ आत्म-संयम है अर्थात काया का संयम, वाणी का संयम, मन का संयम।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Modesty means self-restraint i.e. restraint of body, restraint of speech, restraint of mind.
प्रस्तावना

विनय पिटक में शिक्षापदों का महत्वपूर्ण स्थान है और इनकी संख्या 227 बताई गई है।

1. पाराजिका - 4

2. संधादिसेसा - 13

3. अनियता धम्मा - 2

4. निस्सग्गिया पचित्तिया धम्मा - 30

5. पाचित्यिा धम्मा - 11

6. पटिदेसनिया धम्मा - 4

7. सेरिवया धम्मा - 74

8. अधिकरण समथा धम्मा - 7 कुल - 227

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य बौद्ध साहित्य में उपलब्ध बौद्ध संघ के संविधान बौद्ध संघ की व्यवस्था शिक्षापदों का सम्पूर्ण संसार में पुनः प्रगति के पथ पर अग्रसर करना।

साहित्यावलोकन

विनय पिटक शैद्ध संघ का संविधान है। और इसी संविधान के आधार पर बौद्ध संघ नियम बनाये गये है। जिसमे हर भिक्षु व भिक्षुणियो को इसी नियमों का पालन करते हुए आभा, काया वाणी, मन इत्यादि का संयम रखते हुए जीवन व्यतीत करते है

मुख्य पाठ

पारजिक-

वे वस्तुए जो भिक्षु को पराजय दिलाती हैं अर्थात जिस उद्देश्य  के लिये भिक्षु अपने घर से बेघर होकर प्रवज्या लेते है और उसमें सफल नही होते है, उसे पारजिक कहते है। ये चार होती है। स्त्री मैथुन, चोरी, आत्म हत्या, लोभ।

मेथुनादिन्नादानं च, मनुस्सविग्गहुत्तरि।

पाराजिककानि चत्तारि, छेज्जवत्थू असंस्त्रयति।।[2]

संघादिसेस-

संघादिसेस का अर्थ है संघ से निष्कासन संघ ही इसके बारे में निर्णय कर दण्ड दे सकता है दण्ड स्वरूप अपराधी भिक्षु को कुछ दिन परिवास करना पड़ता है और प्रायश्चित स्वरूप वह अकेला रहकर तपस्या करता है और बाद में शुद्ध होकर संघ में प्रवेश करता है। संघादिसेस में तेरह अपराध होते है। वे इस प्रकार से हैं। वीर्य नाश करना, काम वासना, स्त्री को बुरे उद्देश्य से अपनी ओर आकर्षित करना, विवाह या प्रेमियों का संगम करवाना, क्रोध विहार बनवाना, बिना संघ की आज्ञा से बड़ा विहार बनाने लग जाना।

पराजिक अपराध, संघ में फूट डलवाना, फूट डालने वालों की सहायता करना, किसी के घर जाना, संघ का आदेश न मानना आदि।[3]

अनियत-

इसका अर्थ है अनिश्चित। जिन अपराधो का स्वरूप अनिश्चित हो और साक्ष्य प्राप्त होने पर ही जिन्हे एक विशेष श्रेणी के अपराधों में रखा जाये ही अनियत कहते है। ये दो प्रकार के होते है।

1. कोई भिक्षु एकान्त स्थान पर स्त्री से बाते करता है और कोई उपासिका उसे दोषी ठहराती है।

2. कोई भिक्षु खुली जगह में बैठकर स्त्री से बाते करता है और उसके शब्द अनौचित्य है तो दण्ड का भागी है।[4]

निस्सग्गिय पाचित्तिया धम्मा-

निस्सग्गिय पाचित्तिया वे अपराध है जिनके लिये स्वीकरण के साथ प्रायश्चित करना पड़ता है और जिस वस्तु के लिये अपराध करता है वह वस्तु भी भिक्षु से छीन ली जाती है और उसे प्रायश्चित करना पड़ता है। जैसे-सोना-चाँदी, घी, तेल, मधु, खाड, चीवरो से रहित इत्यादि निस्सग्गिय पाचित्तिय तीस होते हैं।[5]

पाचित्तिया-

यदि कोई जान-बूझकर झूठ बोलना, धार्मिक बातों को अस्वीकार करना, क्षोम पैदा करने वाले शिक्षा पद के विरूद्ध कथन करना, शराब पीना, हिंसा करना आदि पाचित्तिया कहलाते है। पाचित्तिया बानवे अपराधो की एक ऐसी सूची है जिन्हें करने पर प्रायश्चित करने के बाद भिक्षु अपराध मुक्त हो जाता है।[6]

पाटिदेसनिय-

वे वस्तुए जिनके लिए क्षमा याचना आवश्यक होती है उसे पाटिदेसनिय कहते है। उदाहरण तौर पर किसी अज्ञात व्यक्ति से भोजन प्राप्त करना, भोजन के समय किसी भिुक्षणी को भिक्षुओ के प्रति आदेश देती हुए देखकर भी उसे न रोकना, बिना निमंत्रण के किसी के हाथ का भोजन ग्रहण करना आदि।[7]

सेखिय-

जिस शिक्षा को भिक्षु नियम के अन्तर्गत सीखते है वह सेखिय कहलाते है। जैसे भिक्षु को किस तरह वस्त्र पहना, कहा जाना, कैसे बैठना, हंसना आदि सेखिय के अन्तर्गत आते हैं।[8]

अधिकरण-समथ-

झगड़ों के शमन को अधिकरण समथ कहते हैं इसमें सात नियम हैं। समुख-विनय, स्मृति-विनय, अमूढ़-विनय, प्रतिज्ञात करण, यद्भूयसिक, तत्पापीयसिक, तिणवत्थारक आदि।[9]

निष्कर्ष

उपयुक्त तथ्यों के आधार से निनय पिटक के शिक्षा पदों का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। यह शिक्षा पद विनय पिटक पर अवलम्बित है। बौद्ध संघ का विनय पिटक एक संविधान है जिसे सभी भिक्षुओं को उसका पालन करना होता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. पालि साहित्य का इतिहास-भरत सिंह उपाध्याय पेज 413
2. पालि साहित्य का इतिहास, पेज 313, पाराजिक-सम्पादन भिक्षु जगदीश काश्यप बिहार राजकीय पालि प्रकाशन सन् 1958 पृष्ठ 149
3. पराजिक-भिक्षु जगदीश काश्यप पेज 277 पा00..... पेज 313
4. पालि साहित्य का इतिहास पेज 314
5. पालि साहित्य का इतिहास पेज 314, 315
6. पालि साहित्य का इतिहास पेज 313
7. पाचित्तिय भिक्षु जगदीश काश्यप बिहार राजकीय पालि प्रकाशन पेज 236
8. पालि साहित्य का इतिहास पेज 316
9. पालि साहित्य का इतिहास चुल्लवग्ग-भिक्षु जगदीश काश्यप पेज 316, 317
10. चुल्लवग्ग सम्पादक-भिक्षु जगदीश काश्यप पृष्ठ 140 से 164 बिहार राजकीय पालि प्रकाशन मण्डल-1956