ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- III June  - 2023
Anthology The Research

वैदिक कालीन समाज में विदुषी महिलाओं का मूल्यांकन

Evaluation of Learned Women in Vedic Period Society
Paper Id :  17744   Submission Date :  06/06/2023   Acceptance Date :  22/06/2023   Publication Date :  25/06/2023
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मणि गुप्ता
पूर्व शोध छात्रा एवं सामाजिक विचारक
इतिहास विभाग
हिमालय विश्वविद्यालय
ईटानगर,हिमाचल प्रदेश, भारत
सारांश

वैदिक समाज में स्त्री-पुरुषों और बालक-बालिकाओं को सभी प्रकार की शिक्षा तथा धार्मिक व्यवहार के क्षेत्र में समान अवसर प्रदान किये जाते थे। लड़कों की तरह लड़कियों का भी उपनयन होता था और उन्हें गायत्री मंत्र तथा ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जाती थी। संसार के और किसी धर्मग्रन्थ में स्त्रियों के लिए इतने अधिक और पुरुष के समकक्ष अधिकारों का विधान नहीं हैं, जितना कि वेदों में। वैदिक कालीन विद्वान महिलाओं ने अपने ज्ञान से समाज में विशिष्ट स्थान बनाया। देवमाता अदिति, शची, सन्ध्या, घोषा, अरून्धती, अपाला तथा रोमशा ऐसी ही विद्वान महिलाएं थीं।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the Vedic society, men, women and boys and girls were provided equal opportunities in the field of all types of education and religious practice. Like boys, girls also had Upanayana and were taught Gayatri mantra and celibacy. In no other religious text in the world are there provisions for women with as many rights as for men, as in the Vedas. The learned women of the Vedic period created a special place in the society with their knowledge. Devmata Aditi, Shachi, Sandhya, Ghosha, Arundhati, Apala and Romasha were such learned women.
मुख्य शब्द अदिति, शची, अपाला, मैत्रेयी, लोपामुद्रा।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Aditi, Sachi, Apala, Maitreyi, Lopamudra.
प्रस्तावना

वैदिक कालीन समाज में स्त्री शिक्षा की व्यवस्था के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वैदिक काल से लेकर उत्तर वैदिक काल तक स्त्रियों को वैदिक साहित्य का अध्ययन तथा यज्ञों में भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। बालकों के समान बालिकाओं का भी उपनयन किया जाता था। देवमाता अदिति चारों वेदों की प्रकांड विदुषी थी। ये दक्ष प्रजापति की कन्या एवं महर्षि कश्यप की पत्नी थीं। इन्होंने अपने पुत्र इंद्र को वेदों एवं शास्त्रों की इतनी अच्छी शिक्षा दी कि उस ज्ञान की तुलना किसी से संभव नहीं थी, यही कारण है कि इंद्र अपने ज्ञान के बल पर तीनों लोकों का अधिपति बना। इंद्र का माता के नाम पर एक नाम आदितेय पड़ा। अदिति को अजर-अमर माना जाता है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. वैदिक समाज का अध्ययन करना।
2. वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था का परिचय प्राप्त करना।
3. वैदिक समाज में स्त्री शिक्षा की परम्परा का अध्ययन करना।
4. वैदिक कालीन प्रमुख महिला विदुषियों के कृतित्व का अध्ययन करना।
5. वैदिक काल की महिलाओं का धर्म तथा समाज को योगदान का अध्ययन करना।

साहित्यावलोकन

1. अल्तेकर, 0एस0, 2016, दि पोजीशन ऑफ वीमैन इन हिन्दू सिविलीजेशन, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली। अल्तेकर ने इस पुस्तक में प्राचीन भारत में स्त्रियों की स्थिति पर विस्तृत लेखन किया है जिसमें शिक्षा, विवाह, विधवा स्थिति, उत्तराधिकार तथा धर्म सम्मिलित है। 

2. वंशी, बलदेव, 2017, भारतीय नारी सन्त परम्परा, वाणी प्रकाशन, दिल्ली। लेखक ने इस पुस्तक में 38 महिला सन्तों पर लेखन कार्य किया है।

3. मालती, के0एम0, 2017, स्त्री विमर्श: भारतीय परिप्रेक्ष्य, वाणी प्रकाशन, दिल्ली। इस पुस्तक में लेखिका ने वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक महिलाओं की स्थिति तथा उनके उत्थान के प्रयासों पर शोध कार्य किया गया है।

4. मिश्र, जयशंकर, 2013, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी पटना। लेखक ने पुस्तक में प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन तथा उससे जुड़े स्त्री विषयक सन्दर्भो पर प्रमाणिक लेखन कार्य किया है।

5. शर्मा, मालती, 1990, वैदिक संहिताओं में नारी, शोध प्रबन्ध, सम्पूर्णानन्द संस्कृत वि.वि. वाराणसी। इस शोधार्थी ने वैदिक साहित्य में महिलाओं से जुड़ी विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की है। वेद-उपनिषद तथा स्मृतिकाल में स्त्रियों के धार्मिक अधिकारों के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के यज्ञों के सम्पादन तथा वैदिक साहित्य के वाचन इत्यादि पर लेखन कार्य किया गया है।

मुख्य पाठ

देवसम्राज्ञी शची  

देवसम्राज्ञी शची इंद्र की पत्नी थीं, वे वेदों की प्रकांड विद्वान थी। ऋग्वेद के कई सूक्तों पर शची ने अनुसंधान किया। शचीदेवी पतिव्रता स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। शची को इंद्राणी भी कहा जाता है। ये विदुषी के साथ-साथ महान नीतिवान भी थी। इन्होंने अपने पति द्वारा खोया गया सम्राज्य एवं पद प्रतिष्ठा ज्ञान के बल पर ही दोबारा प्राप्त की थी।

सती शतरूपा: 

सती शतरूपा स्वयंभू मनु की पत्नी थीं। वे चारों वेदों की प्रकांड विदुषी थी। जल प्रलय के बाद मनु और शतरूपा से ही दोबारा सृष्टि का आरंभ हुआ। ये योगशास्त्र की भी प्रकांड विद्वान और साधक थी।

शाकल्य देवी: 

शाकल्य देवी महाराज अश्वपति की पत्नी थी। एक बार अश्वपति महाराज ने ऋषियों से कहा कि मैं राष्ट्र में कन्याओं का भी निर्वाचन चाहता हूं। देश में ऐसी कौन महान वेदों की विदुषी है जो देवकन्याओं को वेदों की शिक्षा प्रदान करे। ऋषियों ने बताया कि आपकी पत्नी से बढ़कर वेदों की विदुषी और कोई नहीं है। तो राजा ने अपनी पत्नी शाकल्य देवी को वनवास दे दिया, ताकि वे वनों में रहकर कन्याओं के गुरुकुल स्थापित करें, आश्रम बनाएं और उसमें देश की कन्याएं शिक्षा पाएं। उन्होंने ऐसा ही किया। शाकल्य देवी ऐसी पहली विदुषी हैं, जिन्होंने कन्याओं के लिए शिक्षणालय स्थापित किए थे।

सन्ध्या: 

सन्ध्या वेदों की प्रकांड विद्वान थी। इन्होंने महर्षि मेधातिथि को शास्त्रार्थ में पराजित किया। वे यज्ञ को संपन्न कराने वाली पहली महिला पुरोहित थी। उन्हीं के नाम पर प्रातः सन्ध्या और सायं सन्ध्या का नामकरण हुआ।

विदुषी अरून्धती: 

विदुषी अरून्धती ब्रहर्षि वशिष्ठ जी की धर्मपत्नी थी। ये भी वेदों की प्रकांड विद्वान थी। अपने ज्ञान के बल पर ही ये एकमात्र ऐसी विदुषी हैं, जिन्होंने सप्तर्षि मंडल में ऋषि पत्नी के रूप में गौरवशाली स्थान पाया। महर्षि मेधातिथि के यज्ञ में ये बचपन से ही भाग लेती थीं और यज्ञ के बाद वेदों की बातों पर तर्क-वितर्क किया करती थी।

ब्रह्मवादिनी घोषा: 

घोषा कक्षीवान् की कन्या थी। इनको कोढ़ रोग हो गया था, लेकिन उसकी चिकित्सा के लिए इन्होंने वेद और आयुर्वेद का गहन अध्ययन किया और ये कोढ़ी होते हुए भी विदुषी और ब्रह्मवादिनी बन गई। अश्विनकुमारों ने इनकी चिकित्सा की और ये अपने काल की विश्वसुंदरी भी बनी।

ब्रह्मवादिनी विश्ववारा: 

ब्रह्मवादिनी विश्ववारा वेदों पर अनुसंधान करने वाली महान विदुषी थी। ऋग्वेद के पांचवें मंडल के द्वितीय अनुवाक के अटठाइसवें सूक्त षड्ऋकों का सरल रूपांतरण इन्होंने ही किया था। अत्रि महर्षि के वंश में पैदा होने वली इस विदुषी ने वेदज्ञान के बल पर ऋषि पद प्राप्त किया था।

ब्रह्मवादिनी अपाला: 

ब्रह्मवादिनी अपाला भी अत्रि मुनि के वंश में ही उत्पन्न हुई थी। अपाला को भी कुष्ठ रोग हो गया था, जिसके कारण इनके पति ने इन्हें घर से निकाल दिया था। ये पिता के घर चली गई और आयुर्वेद पर अनुसंधान करने लगी। सोमरस की खोज इन्होंने ही की थी। इंद्र देव ने सोमरस इनसे प्राप्त कर इनके ठीक होने में चिकित्सीय सहायता की। आयुर्वेद चिकित्सा से ये विश्वसुंदरी बन गई और वेदों के अनुसंधान में संलग्न हो गई। ऋग्वेद के अष्टम मंडल के 91वें सूक्त की 1 से 7 तक ऋचाएं इन्होंने संकलित की, एवं उन पर गहन अनुसंधान किया।

तपती: 

विदुषी तपती आदित्य की पुत्री और सावित्री की छोटी बहन थी। देव, दैत्य, गांधर्व और नागलोक में उन दिनों उनसे अधिक सुंदरी कोई और नहीं थी। वे वेदों की भी प्रकांड विद्वान थी। उनके रूप और गुणों से प्रभावित होकर ही अयोध्या के महाराजा संवरण ने उनसे विवाह किया था। तपती ने अपने पुत्र कुरु को स्वयं वेदों की शिक्षा दी, जिनके नाम पर कुरूकुल प्रतिष्ठित हुआ।

ब्रह्मवादिनी वाक्:

ब्रह्मवादिनी वाक् अभृण ऋषि की कन्या थी। ये प्रसिद्ध ब्रह्मज्ञानिनीं थीं। इन्होंने अन्न पर अनुसंधान किया और अपने युग में उन्नत खेती के लिए वेदों के आधार पर नए-नए बीजों को खेती के लिए किसानों को अनुसंधान से पैदा करके दिया।

ब्रह्मवादिनी रोमशा: 

ब्रह्मवादिनी रोमशा बृहस्पति की पुत्री और भावभव्य की धर्मपत्नी थी। इनके सारे शरीर में रोमावली थी, इससे इनके पति इन्हें नहीं चाहते थे। लेकिन इन्होंने ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया, ऐसी बातों का प्रचार किया, जिससे नारी शक्ति में बुद्धि का विकास होता हो, वेद और शास्त्रों की अनेक शाखाओं पर इन्होंने अनुसंधान किया।

ब्रह्मवादिनी गार्गी:

ब्रह्मवादिनी गार्गी के पिता का नाम वचक्नु था, जिसके कारण इन्हें वाचक्नवी भी कहते हैं। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें गार्गी कहा जाता है। ये वेद शास्त्रों की महान विद्वान थी। इन्होंने शास्त्रार्थ में अपने युग में महान विद्वान महर्षि याज्ञवल्क्य तक को हरा दिया था।

विदुषी मैत्रेयी:

विदुषी मैत्रेयी महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं। इन्होंने पति के श्रीचरणों में बैठकर वेदों का गहन अध्ययन किया है। पति परमेश्वर की उपाधि इन्हीं के कारण जग में प्रसिद्ध हुई, क्योंकि इन्होंने पति से ज्ञान प्राप्त किया था और फिर उस ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए कन्या गुरुकुल स्थापित किए।

विदुषी सुलभा:

विदुषी सुलभा महाराज जनक के राज्य की परम विदुषी थी। इन्होंने शास्त्रार्थ में राजा जनक को हराया एवं स्त्री शिक्षा के लिए शिक्षणालय की स्थापना की।

विदुषी लोपामुद्रा:

विदुषी लोपामुद्रा महर्षि अगस्त्य की धर्मपत्नी थीं। ये विदर्भ देश के राजा की बेटी थी। राजकुल में जन्म लेकर भी ये सादा जीवन उच्च विचार की समर्थक थी, तभी तो इनके पति ने इन्हें कहा था 'तुष्टोअहमस्मि कल्याणि तव वृत्तेन शोभने, यानी कल्याणी तुम्हारे सदाचार से मैं तुम पर बहुत संतुष्ट हूं। ये इतनी महान विदुषी थी कि एक बार इन्होंने अपने आश्रम में राम, सीता एवं लक्ष्मण को ज्ञान की बहुत सी बातों की शिक्षा दी थी।


विदुषी उशिज:

विदुषी उशिज, ममता के पुत्र दीर्घतमा ऋषि की धर्मपत्नी थी। महर्षि कक्षीवान इन्हीं के सुपुत्र थे। इनके दूसरे पुत्र दीर्घश्रवा महान ऋषि थे। वेदों की शिक्षा इन्होंने ही अपने पुत्रों को प्रदान की थी। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 116 से 121 तक के मंत्र पर अनुसंधान किया।

विदुषी प्रातिथेयी:

विदुषी प्रातिथेयी महर्षि दधिचि की धर्मपत्नी थी। ये विदर्भ देश के राजा की कन्या और लोपामुद्रा की बहिन थीं। इनका पुत्र पिप्पल्लाद बहुत बडा विद्वान हुआ है।

ममता: 
ममता दीर्घतमा ऋषि की माता थी। ये बहुत बडी विदुषी एवं ब्रह्मज्ञानसंपन्ना थीं।
विदुषी भामती: 
विदुषी भामती वाचस्पति मिश्र की पत्नी थी। ये वेदों की प्रकांड विद्वान थी और इनके पति भी। उत्तर वैदिक काल में भी स्त्रियों की शिक्षा का प्रचलन था। स्त्रियों के लिए दो प्रकार की शिक्षा-पद्धति की व्यवस्था थी और इनके अनुसार शिक्षित स्त्रियों के दो वर्ग हुआ करते थेसद्योद्वाहा-जो विवाह होने पर अपना शिक्षा कर्म समाप्त कर देती थीं, और ब्रह्मवादिनी-जो विवाह नहीं करती थीं और आजीवन शिक्षा लेती रहती थीं। ब्रह्मयज्ञ के युग में वैदिक गुरूओं का श्रद्धापूर्ण स्मरण किया जाता था। उनकी सूची में तीन आचार्याें के नाम भी शामिल थे-गार्गी वाचक्नवी, वडवा प्रातिथेयी और सुलभा मैत्रेयी। 

निष्कर्ष

वैदिक युग में वेदाध्ययन तथा अन्य उच्चतर शिक्षा पुरुषों की तरह स्त्रियों के लिए भी सुलभ थी। कई स्त्रियों ने वेदाध्ययन, शिक्षण, दर्शन तथा मीमांसा और शास्त्रार्थ के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त की। यही नहीं, वैदिक काल में यज्ञ सामान्यतः स्त्री-पुरुष मिलकर किया करते थे। पूर्व-वैदिक काल में बच्चों के शिक्षण का दायित्व सामान्यतः पिता पर होता था। ब्राह्मण-उपनिषदों के समय में लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा सामान्य रूप से घरों में पिता, भाइयों और अन्य पुरुष सम्बन्धियों द्वारा सम्पन्न होती थी। लेकिन कुछ लड़कियां परिवार के बाहर के लोगों को भी गुरु बनाती थीं और कुछ विद्यार्जन के लिए घर से बाहर छात्रशालाओंमें भी रहती थीं। इस युग में भी स्त्रियां विद्वानों की गोष्ठियों में जाकर शास्त्रार्थ करने की पूर्वकालीन परम्परा को आगे बढ़ाती रहीं।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. अल्तेकर, 0एस0-दि पोजीशन ऑफ वीमेन इन हिन्दू सिविलीजेशन, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1999
2. आश्वलायन गृह सूत्र 3-4-4
3. सालवेकर, वासंती, भारत की महिला संत, अतुल प्रकाशन, कानपुर, 2017
4. वंशी, बल्देव, भारतीय नारी सन्त, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2017
5. मालती, के0एन0, स्त्री विमर्श: भारतीय परिप्रेक्ष्य, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2017
6. राजकुमार, नारी के बदले आयाम, अर्जुन पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 2005