ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- III June  - 2023
Anthology The Research

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक विचारों की प्रासंगिकता

Relevance of social Thoughts of Dr. Bhimrao Ambedkar
Paper Id :  17742   Submission Date :  2023-06-16   Acceptance Date :  2023-06-21   Publication Date :  2023-06-25
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विकास कुमार
शोध-छात्र
राजनीति विज्ञान विभाग
स्नातकोत्तर महाविद्यालय
गाजीपुर,उ0प्र0, भारत
सारांश

बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी एक महान समाज सुधारक थे। डॉ.बी.आर. अम्बेडकर एक ऐसे समाज का विकास करना चाहते थे, जिसमें समानता, स्वतन्त्रता और बन्धुत्व का समावेश हो। डॉ. अम्बेडकर जी लोगों में सामाजिक चेतना पैदा करना चाहते थे लेकिन सामाजिक विकास एवं सामाजिक समस्याओं के सुधार के लिए वे सामाजिक चेतना को अति महत्वपूर्ण मानते थे। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जी के अनुसार सामाजिक चेतना ही व्यक्ति के अधिकारों का रक्षक है। डा0 अम्बेडकर द्वारा किये गये सामाजिक संघर्ष का उद्देश्य उपेक्षित वर्ग पर होने वाले अत्याचारों को खत्म करना था, लेकिन डॉ. अम्बेडकर चाहते थे कि समाज के सभी वर्गों का सभी क्षेत्रों में समान स्थान होना चाहिए और सभी वर्ग के लोगों को जीवन में ऊपर उठने के समान अवसर दिए जायें। इन सभी कार्यों के लिए डा0 बी0आर0 अम्बेडकर जी ने कड़ी मेहनत और लगन से कार्य किया। प्रस्तुत शोध-पत्र में यही वर्णन किया गया है कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने जिस तरह से समाज में छुआछूत, जातीय भेदभाव को सहन करके किस प्रकार से इस समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत रहे। प्रस्तुत शोध पत्र में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के सामाजिक क्षेत्र में किये गये महत्वपूर्ण परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Baba Saheb Dr. Bhimrao Ambedkar ji was a great social reformer. Dr. B.R. Ambedkar wanted to develop a society which included equality, liberty and fraternity. Dr. Ambedkar wanted to create social consciousness among the people but he considered social consciousness to be very important for social development and improvement of social problems. According to Dr. BR Ambedkar, social consciousness is the protector of individual rights. The objective of the social struggle carried out by Dr. Ambedkar was to end the atrocities on the neglected class, but Dr. Ambedkar wanted that all sections of the society should have equal status in all fields and people of all sections should have equal opportunity to rise in life. Opportunities should be given. Dr. B.R. Ambedkar worked hard and diligently for all these works. In the presented research paper, it has been described how Dr. B.R. Ambedkar tried to solve this problem by tolerating untouchability and caste discrimination in the society. In the presented research paper, the important changes made in the social field by Dr. B.R. Ambedkar have been analyzed.
मुख्य शब्द सामाजिक विचार, सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक समाज, स्वतन्त्रता, समानता, अस्पृश्यता, सामाजिक चेतना, मानवीय गरिमा, लोकतांत्रिक मूल्य।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Social thought, social justice, democratic society, freedom, equality, untouchability, social consciousness, human dignity, democratic values.
प्रस्तावना

डॉ. भीमराव अम्बेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख विधिवेत्ता एवं उच्च कोटि के समाज सुधारक थे। संविधान निर्माता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर भारत की 20वीं सदी के एक विशिष्ट विभूति थे। अस्पृश्यों तथा दलितों के मसीहा, समाज सुधारक डॉ. अम्बेडकर एक राष्ट्रीय नेता भी थे। बाबा साहब ने भारत में फैली विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना पूरा जीवन समाज के उत्थान में लगा दिया। उन्होंने सदियों से पद-दलित वर्ग को सम्मानपूर्वक जीने के लिए एक सुस्पष्ट मार्ग दिया। उन्हें अपने विरूद्ध होने वाले अत्याचारों, शोषण, अन्याय तथा अपमान से संघर्ष करने की शक्ति प्रदान किया। उन्होंने आजीवन समाज सेवा का कार्य कड़ी लगन और मेहनत से किया। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर द्वारा किया गया प्रथम आन्दोलन समाज सुधार से संबंधित था। वर्ष 1920 में उन्होंने एक सामाजिक संगठन बनाने के लिए सभा का आयोजन किया। जिसकी अध्यक्षता स्वयं डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जी ने किया। इन्होंने हजारो अछूतों की उपस्थिति में अत्यंज्य संघनामक सामाजिक संगठन की स्थापना की। इस संगठन को चन्दा इकट्ठा करके बनाया गया था, जो कि असहाय बच्चों की सहायता करता था।डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, ‘‘समाज सेवा राजनीति से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाज सेवा से व्यक्ति का चरित्र बनता है।’’ डॉ. अम्बेडकर ने समाजवाद के विषय में कहा था कि, ‘‘मानव समाज में व्याप्त दुःख है जिसे दूर किया जाना चाहिए ताकि लोग सुख से रह सकें। समाज और समाजवाद के संबंध में बातचीत करने से पहले लोगों को अज्ञान तथा निर्धनता के प्रति सद्भाव अपने मन-मस्तिष्क में पैदा करना चाहिए, गरीबी एक सामाजिक बुराई है। समाजवादी प्रक्रिया केवल उसी समय सम्भव है, जब प्रशासक उसकी सफलता के लिए कार्य करें। राजनीतिक शक्ति ऐसे लोगों के हाथों में नहीं होनी चाहिए जो समाजवादी आदर्शों के खिलाफ हो। डॉ. अम्बेडकर जी ऐसे समाज के पक्षधर थे जिसमें अधिक से अधिक उत्पादन हो और धन पूंजीपतियों के हाथ में न जाकर धन का समान वितरण हो अर्थात पूंजीपति वर्ग ऐसे समाज के पक्ष में नहीं है, इस तरह का अम्बेडकर जी अच्छे समाज के पक्षधर थे। पं0 नेहरू के शब्दों में डॉ. अम्बेडकर, हिन्दू समाज की दमनकारी प्रवृत्तियों के विरूद्ध किये गए विद्रोह का प्रतीक थे। डॉ. अम्बेडकर ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जो देश में उपस्थित समस्याओं को समझ कर उचित समाधान करना चाहते थे।

अध्ययन का उद्देश्य

1. डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक विचारों का अध्ययन करना।

2. डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के सामाजिक विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता का अध्ययन करना।

साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध पत्र के संबंध में उपलब्ध साहित्य का अवलोकन एवं समीक्षा भी की गई है जिसमें अनेक पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन किया गया है। इसमें विशेष रूप से ओम प्रकाश गावा की पुस्तक ’’भारतीय राजनीति विचारक‘‘, मयूर पेपरबैक्स इन्दिरापुरम्, नई दिल्ली-2016 से डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के सामाजिक विचारों का विश्लेषण किया गया है। अम्बेडकर बी.आर. की पुस्तक ’’ व्हाट द कांग्रेस एण्ड गांधी हैव इन टू डू’’ (1945) में गांधी जी द्वारा चलाए गये दलित सुधार आंदोलन के समकक्ष लिखकर लोगों का ध्यान खींचा था। इसमें अम्बेडकर ने गांधी जी द्वारा चलाए गये आंदोलन का विरोध किया क्योंकि गांधी जी कोई ठोस कदम उठाए बगैर ही दलितों में सुधार लाना चाहते थे जबकि अम्बेडकर दलितों के हितों तथा उनके अधिकारों के विरूद्ध आवाज उठाकर आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। इसमें उन्होंने कांग्रेस तथा गांधी जी के दलित सुधार आन्दोलन में किये गये कार्यों की नाकामी को बताया तथा कांग्रेस की दलितों को दबाने की नीति पर भी सवाल उठाया। कीर धनंजय की पुस्तक, ‘‘डॉ. अम्बेडकर लाईफ एण्ड मिशन’’ (1962) में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के जीवन व कार्यों का वर्णन किया गया है। मेहता चेतन की पुस्तक, ‘‘युग द्रष्टा डॉ. भीमराव अम्बेकर’’, 1991 में लेखक ने अम्बेडकर जी के जन्म, शिक्षा, दलितों के मसीहा, विधि शास्त्री, संविधान निर्माता, उनका धर्म परिवर्तन, उनकी अन्तिम यात्रा व भारत रत्न प्राप्ति का वर्णन किया गया है। रतु नानक चन्द्र (2005) ने अपनी पुस्तक ‘‘बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर संस्मरण और स्मृतिया’’ में अम्बेडकर जी के बचपन, शिक्षा, उनके संदेशों, आन्दोलनों के साथ अपने अनुभव एवं स्मृतियों का वर्णन किया गया है। बौद्ध शीलप्रिय (2008) ने अपनी पुस्तक, ‘‘पूना पैक्ट क्यों, क्या और किसके लिए’’ में डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलितों की मांग, पूना पैक्ट, गांधी जी द्वारा आमरण अनशन व उसके बाद की स्थिति का बड़ा ही सुन्दर विवरण किया गया है। सागर एस.एल. (2000) ने अपनी पुस्तक, ‘‘डॉ. अम्बेडकर संक्षिप्त जीवन परिचय,’’ में अम्बेडकर जी के जीवन, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विचारों का विश्लेषण किया गया है।

मुख्य पाठ

डॉ.भीमराव अम्बेडकर मूलतः एक समाज सुधारक अथवा सामाजिक चिंतक थे। वह हिन्दू समाज द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था से काफी असंतुष्ट थे और किसी भी कीमत पर इस भेदभाव को समाज से मिटाना चाहते थे। उन्होंने दलित वर्ग के लोगों की स्थिति में सुधार हेतु जाति व्यवस्था पर भी तीव्र प्रहार किया। उन्होंने अछूत समझे जाने वाले लोगों को संगठित किया तथा उन्हें समानता का अधिकार दिलाने हेतु आन्दोलनों का नेतृत्व किया। सामाजिक क्षेत्र में डॉ.अम्बेडकर के मतों तथा उनके कृत्यों का अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकताहै। 

अस्पृश्यता का उन्मूलन:

डॉ. अम्बेडकर ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अस्पृश्यता निवारण आन्दोलनों के क्षेत्र में कूद पड़े, जो उनके जीवन का एकमात्र ध्येय था। डॉ. अम्बेडकर, महाराष्ट्र के बी.जी. तिलक, रानाडे, भंडारकर आदि के परम्परा के विद्वान थे। अस्पृश्य समाज में उनका नाम सर्वोच्च था। उस समय के समाज सुधारकों में डॉ. अम्बेडकर का नाम शीर्ष के गिने-चुने व्यक्तियों में था। अस्पृश्यता निवारण आंदोलन हिन्दू समाज में महान क्रांतिकारी आंदोलन था। इस विचार को सर्वप्रथम महान समाज सुधारक ज्योतिबा फूले ने समझा और इसकी प्रगति के लिए उन्होंने यथाशक्ति कार्य किया। डॉ. अम्बेडकर, ज्योतिबा फूले  की परम्परा के क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। उनका अछूतोंद्वार आन्दोलन में आगमन समाज की क्रांति का प्रतीक था।                

अस्पृश्यता सम्पूर्ण हिन्दू समाज की दासता का संकेत है। डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि जाति के आधार पर सार्थक सृजित नहीं हो सकता। इसलिए एक जातिविहीन समाज का सृजन किया जाना चाहिए। अन्तर्जातीय विवाह जाति को प्रभावी तरीके से नष्ट कर सकते है लेकिन समस्या यह है कि जब तक लोगों ने विचारों पर जातिवाद का दबदबा रहेगा तब तक लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करने को तैयार नहीं होगें, वह छुआछूत को हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के लिए कलंक मानते थे। अम्बेडकर ने ऐसे उपायों को खत्म करने के कुछ उपाय बताये। इसलिए तीव्र परिवर्तन के लिए जरूरी है कि लोगों को धर्मग्रन्थों की पकड़ और परम्पराओं से मुक्त कराया जाए। प्रत्येक हिन्दु शास्त्रों और वेदों का दास है। जाति का उन्मूलन इन धर्मग्रन्थों की महिमा समाप्त किये जाने पर आधारित है। जब तक धर्मग्रंथ हिन्दुओं पर प्रभुत्वशाली रहेगें तब तक वे अपनी अंर्तआत्मा के अनुसार कार्य करने को स्वतंत्र नहीं होगें। वंशानुगत पदसोपान में अन्यायपूर्ण सिद्धान्तों के स्थान पर हमें समानता, स्वतंत्रता और मातृत्व के सिद्धान्तों को अपनाना चाहिए। ये किसी भी धर्म की आधारशिला हो सकते हैं।

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने 21 मार्च 1920 0 को कोल्हापुर राज्य के मानगांव में अछूतों के एक सम्मेलन की अध्यक्षता किया, सम्मेलन में उपस्थित कोल्हापुर के साहू जी महाराज ने अछूतों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘अब तुम्हारा नेतृत्व डॉ. अम्बेडकर कर रहे हैं, जो तुम्हारे ही समाज से है।’’ मई 1920 के अखिल भारतीय अछूत सम्मेलन में डॉ. अम्बेडकर ने जोरदार शब्दों में कहा था, ‘‘मैं मानता हूँ कि सवर्ण हिन्दू अछूतों की भलाई के लिए कार्य कर रहे है परन्तु उनकी व्यथा-कथा को वे नहीं जानते, उनका दुख-दर्द एक अछूत ही समझ सकता है, जो स्वयं उनके बीच जन्मा हो।  

जुलाई 1924 में बाबा साहब ने एक सामाजिक संगठन बहिष्कृत हितकारिणी सभाबनाई। इस सभा का उद्देश्य अछूत भाईयों को यह संदेश देना था कि उन्हें उद्वार के लिए पैरों पर स्वयं खड़ा होना चाहिए। वर्ष 1925 में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने रत्नगिरी जिले के मालाबार गाँव में बम्बई अस्पृश्यता परिषदकी स्थापना की। इस परिषद का उद्देश्य अछूतों में शिक्षा प्रसार, छात्रावास, वाचनालय खोलना, औद्योगिक एवं कृषि विद्यालय, सामाजिक सुरक्षा और अस्पृश्यता उन्मूलन आन्दोलन को तेज करना था। अदूतों के उद्धार के लिए डॉ. अम्बेडकर ने बहिष्कृत भारतनामक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया। 

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने सन् 1927 में महाड़ सत्याग्रह के दौरान अछूत स्त्री-पुरूष को अपने अधिकारों की पूर्ति के लिए चौबदार तालाब के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया और इस प्रकार अपने विचारों को व्यवहारिक रूप दिया। स्वयं सत्याग्रही बनकर सर्वप्रथम तालाब से जल ग्रहण किया जहाँ सदियों से अछूतों पर प्रतिबन्ध लगा था। इसी तरह 1930 में उन्होंने नासिक में मन्दिर प्रवेश अभियान छेड़कर कालाराम मन्दिर में पूजा करने के अधिकार को प्राप्त किया। इस अछूतोद्वार अभियान ने उस समय गम्भीर रूप धारण किया, जब असमानता, दमन और अन्याय के विचारों पर आधारित मनुस्मृति को 25 दिसम्बर 1927 के दिन डॉ. अम्बेडकर ने जलाकर नये विधन की मांग की ताकि बहुसंख्यक लोगों का जीवन अनुसूचित किया जा सके। डॉ. अम्बेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में भी उपेक्षित वर्ग के उद्वार का पक्ष मजबूती पूर्वक रखा और उनकी मांगों के लिए डँटे रहे। आखिर में पूना समझौताके बाद अछूतों की समस्या को प्रमुखता मिल गई। अस्पृश्यता निवारण के लिए कांग्रेस का आन्दोलन व्यापक रूप लेने लगा। इसी बीच गाँधी जी ने सितम्बर 1992 में अखिल भारतीय छुआछूत निवारण संघकी स्थापना किया। डॉ. अम्बेडकर ने सुझाव दिया कि इस संघ की समितियों में अछूतों का बहुमत होना चाहिए जिनका उद्देश्य परिगणित जातियों के ही सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक उत्थान तक सीमित रहे। 

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने 15 अगस्त 1946 को प्रथम विधि मंत्री पद की शपथ ली। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ, कांग्रेस ने डॉ. अम्बेडकर जी के गुणों का सम्मान किया। 29 अगस्त 1947 को संविधान के प्रारूप समिति का गठन किया गया और इसका अध्यक्ष डॉ0 अम्बेडकर को नियुक्त किया गया। अब अछूतों को समानता का पूरा हक दिलाने का अधिकार मानो कांग्रेस ने उन्हें सौपा। जिस समानता के लिए अम्बेडकर जी लड़ाई लड़ रहे थे उस कार्य को पूरा करने व अन्याय ओर समानता को दूर करने का अवसर उन्हें मिला।

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने 6 सितम्बर 1954 को ‘‘अस्पृश्यता विषयक अपराध’’ विधेयक पर राज्यसभा में बोलते हुए कहा कि, ‘‘अस्पृश्यता के प्रति अपराध करने वालों को सजा दिए बिना उन्मूलन नहीं होगा। सामाजिक बहिष्कार करने वालों को सजा देनी चाहिए क्योंकि वे अपनी अच्छी स्थिति के कारण देहातों में अस्पृश्यों का बहिष्कार करते है और अस्पृश्यों को संविधान से प्राप्त अधिकारों के उपयोग में द्वेष भावना कर सकते है।  इसी कारण संविधान निर्माताओं ने 29 अप्रैल 1947 को छुआछूत अपराध घोषित किया। संविधान समिति ने सारे विश्व को बताया कि अस्पृश्यता की रूढ़ि बंद हो गई  है। अस्पृश्यता के कारण व्यक्ति पर दुर्बलता लादी गई तो वह गुनाह माना जाएगा। 

जाति प्रथा एवं वर्ण व्यवस्था का विरोध:

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर अस्पृश्यता और छुआछूत जैसी बुरी, कुरीतियों की तरह ही जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था के भी घोर विरोधी थे। डॉ. अम्बेडकर हिन्दू धर्म में व्याप्त चार्तुवर्ण में अछूतों की स्थिति सबसे नीचे होने के कारण काफी दुखी थे। गांधी जी अछूतों के लिए कार्य करते हुए उनकी दयनीय स्थिति में कोई सुधार ना ला सके। इसका मुख्य दोष यही था कि वे हिन्दू धर्म में प्रचलित वर्ण व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते थे। इसका सबसे बड़ा सबूत गांधी जी ने अछूतों को हिन्दू समाज का अभिन्न अंग मानकर इनको हरिजननाम दिया। 

डॉ. अम्बेडकर ने गीता व वैदिक वर्णव्यवस्था को भी गुण कर्म के अनुसार माना है। गांधी जी के विचारानुसार ‘‘बेटा बाप का ही धन्धा करे’’ के विरूद्ध अम्बेडकर जी ने कहा कि यह पैतृक व्यवस्था अनिश्चित रूप से जाति भेद का ही समर्थन करती है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल के द्वारा भी सभी हिन्दुओं को एक ही कानून से शासित होने व अर्न्तजातीय विवाह व भोज की वकालत की थी, ताकि भेदभाव को पूर्णतः समाप्त करने में एक नए समृद्ध समाज का निर्माण किया जा सके। डॉ. अम्बेडकर ने इसी भावना से वर्ष 1948 में एक ब्राह्मण महिला सरिता कबीरसे शादी कर सामाजिक शिक्षा का प्रसार किया था। लेकिन वे जीवन के अन्त तक जाति-पाति के भेदभाव को पूर्णतः समाप्त करने में सफलता हासिल न कर सके। आज भी यह नासूर विकास की गति पर कलंक बनकर देश की एकता और अखण्डता की जड़ोको खोखला कर रहा है।  

महिला उत्पीड़न और शोषण की समाप्ति का प्रयास:

भारतीय समाज में नारी, शिक्षा, समानता और स्वतन्त्रता के प्रयास काफी समय से हो रहे थे। विभिन्न समाज सुधारको द्वारा छेडे़ गये क्रांतिकारी आन्दोलनों को आगे बढ़ाने ओर उसे मूर्त रूप देने के लिए डॉ. अम्बेडकर ने सदियों से चले आ रहे महिला उत्पीड़न और शोषण को समाप्त करने तथा नारी को अन्धेरे में निकालकर प्रकाश की तरफ बढ़ाने का जो रास्ता दिखाया उसके लिए डॉ. अम्बेडकर प्रशंसा के पात्र है।  

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने 1942 में अखिल भारतीय दलित समाज का पहला अधिवेशन आयोजित करना तय किया। अधिवेशन में जनसभा को सम्बोधित करते हुए बताया कि उन्हें अछूतों के स्वतन्त्र दल को मान्यता दिलवाने के लिए गोलमेज सम्मेलन से लेकर लम्बे समय तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आयोजित अधिवेशन की तरफ से डॉ. अम्बेडकर को अभिनन्दन पत्र प्रदान किया गया। डॉ. अम्बेडकर जी ने इसी अधिवेशन में शिक्षित होइए’, आन्दोलन कीजिए और संगठित होइएका संदेश दिया। उसी मण्डल में दलित वर्गीय महिला परिषद भी आयोजित हुई। लगभग 80000 लोगों की भीड़ में 25000 महिलायें उपस्थित थी। डॉ0 अम्बेडकर ने महिलाओं को भी संदेश दिया कि मैं स्त्री समाज की उन्नति के आधार पर ही समाज की नापतोल करता हूँ। महिलाओं को भी संगठित होना चाहिए, बहनों साफ सुथरी रहिए, बुरी बातों से दूर रहिए, लड़कियों को शिक्षा दीजिए। उनके मन में महत्वाकांक्षा पैदा होनी चाहिए। विवाह जल्दी करने की कोशिश न करें। कानून मंत्री बनने पर डॉ. अम्बेडकर ने केवल दलित वर्ग के लिए नहीं बल्कि सभी वर्गों के उत्थान हेतु हिन्दू कोड बिलतैयार करवाया। हिन्दू कोड बिल के द्वारा पहली बार महिलाओं को पिताजी की सम्पत्ति में हिस्सा दिलाने की बात कही गई।

हिन्दू कोड बिल के प्रमुख बिन्दु निम्न है -

1. महिला का सम्पत्ति में पूर्ण अधिकार।
2. महिलाओं के लिए भी तलाक का प्रावधान।
3. पुत्री का भी सम्पत्ति में हिस्सा।
4. केवल जन्म न कि योग्यता के आधार पर मिले अधिकारों की समाप्ति।

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के परिश्रम के परिणामस्वरूप फरवरी 1994 में कोयला खदानों में कार्य करने वाली महिलाएं मजदूर जो पुरूष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करती है उन्हें पुरूष के समान वेतन पाने का अधिकार मिल गया। मजदूरों की कमी को देखते हुए और इस समस्या के समाधान के लिए महिला श्रमिकों को खदान में कार्य करने पर प्रतिबन्ध भी हट गया। डॉ. अम्बेडकर ने अपनी मेहनत और संविधान द्वारा शिक्षा के द्वार सभी भारतीयों के लिए खुलवाए। उन्हीं की मेहनत से भारतीय संविधान में सभी बच्चों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क शिक्षा देने का उपबन्ध किया गया। इसके साथ ही यह उपबन्ध भी किया गया कि राज्य निधि से पूर्णतः किसी भी शिक्षा संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी। 

धर्म परिवर्तन:

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर भारत में फैली हिन्दू धर्मान्धता से काफी पेरशान थे। वे हिन्दू धर्म को ही समाज में फैली सभी कुरीतियों की जड़ मानते थे। डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों ने ही जाति प्रथा, अशिक्षा, अस्पृश्यता और वर्णव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि जब इन धर्मग्रंथों में परिवर्तन हो जाएगा। तब समाज में फैले विभिन्न धार्मिक मूल्यों और नियमों में परिवर्तन होना सम्भव है अन्यथा सब उसी तरह बना रहेगा। डॉ. अम्बेडकर का विश्वास था कि हिन्दू नेता व जनता किसी भी प्रकार से अछूतों का उद्वार नहीं चाहते अतः ऐसी स्थिति में हिन्दू धर्म से चिपके रहना बेकार है। इसलिए सन् 1935 में डॉ. अम्बेडकर ने येवला सम्मेलन में हिन्दुओं के अमानवीय अत्याचारों के विरूद्ध हिन्दू धर्म छोड़ने की घोषणा कर दी।  

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के धर्म परिवर्तन की घोषणा के बाद कांग्रेस के सभी नेताओं और गांधी जी ने घोर विरोध किया। गांधी जी ने धर्म को व्यक्तित्व के लिए आवश्यक बताकर ऐसा न करने का प्रस्ताव रखा। डॉ. अम्बेडकर ने प्रस्ताव पढ़कर कहा कि हमने अभी यह तय नहीं किया है कि किस धर्म को ग्रहण करेगें। लेकिन हिन्दू धर्म हमारी उन्नति में सहायक नहीं बल्कि बाधक है। डॉ. अम्बेडकर के विचार से अचंभित होकर एक शिष्ट मण्डल बाबा साहब से मिलने गया। उन्होंने शिष्ट मण्डल से विचार-विमर्श का दृढ़ता पूर्वक कहा- अस्पृश्यों के लिए धर्म परिवर्तन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने साथ ही लोगों को यह भी विश्वास दिलाया कि धर्म परिवर्तन से देश को कोई नुकशान नहीं होगा। डॉ0 अम्बेडकर की धर्मपरिवर्तन का संकल्प एक प्रकार की भविष्यवाणी सिद्ध हुई क्योंकि अपने परिनिर्वाण से लगभग सात सप्ताह पहले 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने नागपुर में बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया। डॉ. अम्बेडकर जीवन में शुरू से ही हिन्दू धर्म के विमुख थे। उनकी धर्म परिवर्तन की कट्टरता को हम उन्हीं के शब्दों में महसूस कर सकते है। डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि, ‘‘मैं हिन्दू धर्म में पैदा हो गया हूँ, यह मेरे बस की बात नहीं थी, किन्तु मैं हिन्दू धर्म में रहकर नहीं मरूँगा, यह मेरे अपने वश की बात है। 

डॉ. अम्बेडकर द्वारा धर्मपरिवर्तन का कार्य भी सामाजिक परिवर्तन की दिशा में उठाया गया कदम है। डॉ. अम्बेडकर ने सोच-विचार कर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया जिससे उनको इस धर्म में समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व तथा सामाजिक न्याय मिलेगा। इसके साथ ही उन्होंने अपने लाखों बन्धुओं को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।डॉ. अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया हिन्दू कोड बिल संसद में पास नहीं हो सका, लेकिन उसके कई भाग बनाकर संसद द्वारा पास करवाया गया। इसमें हिन्दू विवाह विधेयक 1955 और हिन्दू दत्तक ग्रहण व निर्वाह विधेयक 1956 में पास हुए। डॉ. अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था की दुर्भावना को खत्म करने के लिए सहभोज को नहीं बल्कि अन्तर्जातीय विवाह को साधक बनाया है। 

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर एक महान विद्वान एवं समाजशास्त्री थे। उन्होंने देश को एक विस्तृत संविधान दिया तथा संविधान के माध्यम से ही देश के हर वर्ग, नारी, किसान, मजदूर आदि को सुरक्षा विधिवत रूप से प्रदान की। फिर भी समाज के कुछ लोगों द्वारा डॉ. अम्बेडकर को केवल दलितों का मसीहा कहकर उनकी महानता को सीमित कर दिया जाता है। भारतीय संविधान में स्वतंत्रता, समानता, बन्धुत्व और न्याय को विधिवत रूप से भारत में स्थापित करने वाले डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के कार्यों और प्रयत्नों से वर्तमान में भी भारतीय पूर्णतः परिचित नहीं है।

सामग्री और क्रियाविधि

प्रस्तुत शोध-पत्र अध्ययन में ऐतिहासिक, वर्णनात्मक तथा विश्लेषणात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। यह अध्ययन मूल रूप से द्वितीयक स्रोतों से संकलित सामग्री पर आधारित है। विषय से सम्बन्धित विभिन्न पुस्तकों, विद्वानों के लेखों, समाचार पत्रों, पाक्षिक, मासिक, अर्द्धवार्षिक पत्रिकाओं, जर्नलों आदि में उपलब्ध सूचनाओं एवं समीक्षाओं को संकलित किया गया है।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर एक ऐसे समाज सुधारक, न्यायबिद, संविधान निर्माता और दलित नेता थे, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीय समाज में व्याप्त भेदभाव एवं अस्पृश्यता को समाप्त करने में लगा दिया था। वे हिन्दू धर्म से नहीं बल्कि हिन्दू धर्म की रूढ़िवादी विचारधारा से घृणा करते थे। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर समतावादी विचारधारा के थे तथा समाज के प्रत्येक सदस्य, को समान अधिकार दिलाना चाहते थे। वे आजीवन दलितों के उत्थान के लिए लड़ते रहे। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में दलितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की तथा समाज से अछूत शब्द को मिटाने के लिए छुआछूत को असंवैधानिक घोषित किया। अनुसूचित जाति को देश के सामाजिक ढाँचे में स्थान दिलाने के लिए अम्बेडकर जी ने रैम्जे मैकडोनाल्ड सरकार के अधीन आयोजित तीसरे गोलमेज सम्मेलन 1931 में पृथक चुनाव प्रणाली के मुद्दे को उठाया, परन्तु गांधी जी के जीवन को बचाने के लिए उन्हें पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने पड़े एवं संयुक्त चुनाव प्रणाली को मजबूरी में स्वीकार करना पड़ा। वह महसूस करते थे कि वर्णव्यवस्था ही दलितों की दयनीय स्थिति का मूल कारण है। अम्बेडकर ने इसे दूर करने का अथक प्रयास किया। उन्होंने अछूत वर्गों का नेतृत्व भी किया तथा समस्या के कारणों का गहन विश्लेषण किया। अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था को स्पष्ट करने की कोशिश की। उनके अनुसार पहले कोई जाति व्यवस्था नहीं थी बल्कि मनुके बाद ही यह व्यवस्था अस्तित्व में आई उन्होंने जाति व्यवस्था को श्रेणियों की असमानता कहा है। इस तरह हम यह कह सकते हैं कि डॉ. अम्बेडकर का भारतीय समाज के लिए बड़ा योगदान रहा, उन्होंने शोषित, दलित वर्ग को जागृत किया, संगठित किया, उन्हें वाणी दी तथा संघर्ष के लिए तैयार किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि, ‘‘खोए हुए अधिकारों की प्राप्ति याचना से नहीं हो सकती, उनके लिए संघर्ष करना पड़ेगा।’’ बलि बकरियों की चढ़ाई जाती है शेर की नहीं। उन्होंने बकरियों को शेर बनाने का सफल प्रयत्न किया। वर्तमान में कानूनी रूप से दलित, अछूत व श्रमिक वर्ग तथा स्त्रियां अन्य सभी लोगों के साथ बराबरी से खड़े हैं। टी.के. टोप्पे के अनुसार, ‘‘अम्बेडकर तथा ज्ञान निस्संदेह उच्च था। संभव है कि आने वाली पीढ़ियां अम्बेडकर की राजनीतिक उपलब्धियों को याद न रखें पर ज्ञान के क्षेत्र में उनकी श्रेष्ठ उपलब्धियां कभी विस्तृत नहीं होंगी, राजनेता, सामाजिक, क्रांतिकारी और बौद्ध धर्म के आधुनिक व्याख्याकार के रूप में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को भुलाया जा सकता है, पर एक विद्वान के रूप में अमर रहेंगे।’’

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