ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- III June  - 2023
Anthology The Research
मृदुला गर्ग की कहानियों में चित्रित नारी जीवन से संबंधित समस्याएं
Problems Related To Life of Women Depicted In The Stories of Mridula Garg
Paper Id :  17764   Submission Date :  2023-06-10   Acceptance Date :  2023-06-22   Publication Date :  2023-06-25
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मीना कुमारी
सहायक प्रोफेसर
हिन्दी विभाग
राजकीय महाविद्यालय
नारनौल,हरियाणा, भारत
सारांश

‘चित्रकोबरा‘ तथा ‘कठगुलाब‘ उपन्यास से चर्चित मृदुला गर्ग का प्रकाशित कहानी संग्रह है - ‘मीरा नाची‘ इस कहानी संग्रह में छोटी बच्ची से लेकर साठ-सत्तर बरस की औरत को पात्र बनाकर नारी-मन की थाह लेने की कोशिश की है। कहानी संग्रह के पात्र किसी एक वर्ग या पीढ़ी से न आकर कई वर्गो और पीढ़ियों से एक साथ आये है। जिससे वे समाज की पारम्परिक, वर्तमान और भावी तस्वीर को उकेरने का काम कर पाये है। मृदुला गर्ग के इस कहानी संग्रह में स्त्री के जन्म, किशोरावस्था, गृहस्थ जीवन व वृद्धावस्था के क्रमिक चरणों में नारी-मन की प्रतिक्रियाओं व अनुभवों की पड़ताल है। इस कहानी संग्रह में लगभग 18 कहानियां है। लगभग सभी कहानी नारी की समस्याओं पर आधारित है। स्त्रीवादी विमर्श में अग्रणी स्थान रखने वाली मृदुला गर्ग ने नई कहानी के दौर के बाद हिन्दी साहित्य में भी विशिष्ट पहचान बनाई है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद 'Meera Nachi' is a published story collection of Mridula Garg, famous for her novels 'Chitracobra' and 'Kathgulab'. The characters of the story collection do not come from any one class or generation but have come together from many classes and generations. Due to which they have been able to engrave the traditional, present and future picture of the society. This story collection by Mridula Garg explores the reactions and experiences of the female mind in the successive stages of birth, adolescence, home life and old age. There are about 18 stories in this story collection. Almost all the stories are based on the problems of women. Mridula Garg, who holds a leading position in feminist discourse, has made a special identity in Hindi literature after the era of Nai Kahani.
मुख्य शब्द चित्रकोबरा, कठगुलाब, मृदुला गर्ग, मीरा नाची।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Chitracobra, Kathgulab, Mridula Garg, Meera Nachi.
प्रस्तावना

कन्या जन्म की समस्या तीन किलों की छोरीकहानी में हम देखते है कि कहानी की प्रमुख पात्र शारदा बेन ग्राम सेविका के रूप में काम करती है तथा लड़की लड़के का भेदभाव नहीं मानती। शारदाबेन प्रसव कराने का काम करती है।नेकदिल है जो दूसरों के सुख-दुःख का अपना सुख-दुःख समझती है। कहानी में बेटी के जन्म पर किया गया कथन, ‘‘मरने दे हरामजादी को,....... हरामखोर, हमें पता था तीसरी भी छोरी जनेगी कमजात। डाल परे कमबख्त को। मरे तो अपने भाग से, जिए तो अपने भाग से।‘‘[1] शारदाबेन के सामने समस्या यह है कि उस कन्या के माँ - बाप बच्ची के पालन पोषण के अधिकार को लेकर केवल संवेदित है अपितु सचेष्ट भी है। जहां एक तरफ हम नारी शिक्षा, महिलाओं द्वारा किए गए अनेक साहसिक कार्य तथा हर क्षेत्र में बढ़ती नारी की भागीदारी की सराहना करते है। वही दूसरी तरफ अब भी बहुत से देहाती एवं पिछडे़ इलाकों में कन्या के जन्म पर मातम छा जाता है। इतना ही नहीं सास-ससुर पति कन्या जन्म के लिए स्त्री को जिम्मेदार ठहराकर उस पर अनेक अत्याचार करते है। लल्लीबेन की सास मनुबेन के माध्यम से मृदुला जी यह चित्रण समाज को उकरेती है कि कन्या को जन्म देने वाली माताओं को अनेक यातनाएं सहन करनी पड़ती है। तीन किलों की छोरीमें अशिक्षित शारदाबेन को सशक्त स्त्री की छवि देकर मृदुला जी ने इस मिथ को तोड़ा है कि शिक्षा और सशक्तिकरण का कोई संबंध नही होता है। यह कहानी शोषित और दलित नारी की व्यथा कथाएं है। प्रस्तुत कहानी संग्रह नारी के बहुरंगी रूप को सामने लाते हुए नारी दमन, संघर्ष, विद्रोह एवं स्वतंत्रता को छटपटाहट पूरे द्वन्द के साथ प्रस्तुत करता है। लल्लीबेन की सास ही नही उसका पति भी उसे गालियां देते हुए कहता है, ‘‘चुप चुडैल, छोड़ नौटंकी, उठऔ। काम पर लग दुध पहुंचाने कौन जायेगा तेरा बाप।‘‘

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य मृदुला गर्ग की कहानियों में चित्रित नारी जीवन से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करना है।

साहित्यावलोकन

दहेज की समस्या

प्राचीन काल से ही हमारे समाज में लड़की के विवाह के समय दहेज देेने की प्रथा बहुत पुरानी है, लेकिन प्राचीन काल में दहेज देते थे माता-पिता लेकिन उसमें परिवारजन अपनी खुशी और इच्छा से देते थे। लेकिन आज माता-पिता पर लड़का पक्ष की तरफ से दहेज की मांग की गई है। आज लड़के का पिता लड़की वालों से अपने लड़के का मूल्य मांगता है। समाज में चल रही कुप्रथा के कारण आज हर लड़की अपने स्वाभिमान पर एक प्रश्न चिन्ह पाती है। हर लड़की विवाह से पूर्व एक तरह की कुण्ठा अपने भीतर लेकर ही ससुराल जाती है।

शीलप्रभा वर्मा के अनुसार- ‘‘दहेज प्रथा सती प्रथा और कर्जे की किस्त में निकल जाते है।‘‘ नन्नीबेन का बच्चा दो दिन से भूखा है, लेकिन घर में भैस हाोते हुए भी उसे दूध नहीं मिला। तब नन्नीबेन चीख पड़ती है, ‘‘चार हजार का कर्ज हुआ खरीदने पर। हर महीने किस्त चुकानी होती है। चारे की तलाश में डोलते दिन बीत जाता है। खली खिलाने की औकात नहीं। दुध उतरेगा कैसे? बहुत हुआ तो दो किल्लो, वह भी चार रूपये किल्लो की चिकनाई वाला। क्या करें गरीब आदमी?‘‘[2] और इस प्रकार हम कहानी में देखते है कि आर्थिक अभाव के कारण नन्नीबेन को अपना नवजात शिशु खोना पड़ता है।

मुख्य पाठ

आर्थिक विपन्नता की समस्या

वह मैं ही थीनायिका उमा शादी से पहले कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाया करती थी। लेकिन शादी के बाद वह पूरी तरह से अपने पति पर आश्रित हो जाती है। उमा पटना जाकर दस-पन्द्रह दिन किसी होटल में रहकर दर्द शुरू होने पर अस्पताल में भर्ती होना चाहती है। लेकिन पैसे के अभाव के चलते वह ऐसा कर नहीं पाती। मृदुला जी कहती है-

"पैसा कहां था, उसके पास? जो कमाया साथ साथ खर्च करती रही, जो बचाया अपनी शादी में लगा दिया, थोड़ा बहुत फिर भी बचा रहा, शादी के बाद मौज-मजे में होम कर दिया। अब वह पूरी तरह मनीष पर निर्भर थी।"[3]

क्हानी 'वह मैं ही थी' कहानी के माध्यम से मृदुला जी ने आर्थिक समस्या को चित्रित किया। इसी प्रकार 'अनाडी' कहानी में सुवर्णा आठ वर्ष की आयु में ही घर की विपन्नता को देखकर स्कूल की पढ़ाई छोड़ देती है और दूसरों के घर में नौकरानी का काम करने लग जाती है। जब वह बारह वर्ष की हो जाती है तब भी उसका मन करता है स्कूल जाने को साथ की छोकरी-सहेली से खेलने को, झूला झूलने को और बिस्कुट-दूध खाने को, सुवर्णा जो कि दूसरों के घर में काम करके अपने माँ की मदद करना चाहती है और करती भी है वही दूसरी तरफ पारिवारिक आर्थिक विपन्नता के चलते सुवर्णा को बचपन का सुख नसीब नहीं होता।

कामकाजी महिलाओं की समस्या

अनाड़ीकहानी शहरी झुग्गी में रहने वाली सुवर्णा कामकाजी गरीब लड़की की कहानी है। पिता की नौकरी छूट जाने के कारण घर की आर्थिक हालत को देखकर अपनी माँ की मदद के लिए स्कूल की पढ़ाई छोड़कर एक अमीर स्त्री के घर झाडू-पोंछा अर्थात नौकरानी का काम करने लगती है। सुवर्णा धीरे-धीरे उस औरत को अपने काम के चलते उसके लिए अनिवार्य  बन जाती है। इससे सुवर्णा के भीतर आत्मविश्वास पैदा होता हे और वह उस बाई से कई तरह की छूट लेती है। सुवर्णा कई बार महसूस करती है कि औरों की तरह वह भी स्कूल जाए, लेकिन आर्थिक परिस्थिति के कारण उसे यह सब नसीब नहीं होता। सुवर्णा की आई कई घरों में काम करती थी। सुवर्णा के शब्दों में, "आई, तीन छोड़ पांच घर में झाडू-फटका करने लगी। साथ में सुवर्णा, भांडे़ मलने को। आठ बरस की थी तब। अब तो बारह की हो चली। किती तो जिदंगी बीत गयी। फिर भी मन करता है न, इस्कूल जाने को, साथ की छोकरी-सहेली से खेलने को, झूला झूलने को, बिस्कुट-दूध खाने को ................।"[4] इस प्रकार सुवर्णा को बचपन का सुख नसीब नहीं होता।

नारी के संदर्भ में लेखिका का स्वयं यह विश्वास है कि, "जब तक महिलाएं अपने आजाद होने की जरूरत को नहीं समझेंगी, अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ेगी, अपने लिए स्वतंत्रता के आयाम खुद नहीं तय करेंगी। तब तक दलित और कमतर शब्द के ओरे से बाहर आना सम्भव नहीं।"

असफल प्रेम की समस्या

तुककहानी भी विवाह और प्रेम को पूर्ण असंगत और व्यर्थ सिद्ध करती है। कहानी की नायिका मीरा स्वयं को न बेवकूफ औरतों में से एक मानती है उसके अनुसार "पति का होना उसके लिए एक तरह का व्यवसाय है, जिसके माध्यम से उन्हें पैसा और व्यस्तता दोनों मिलते है।"[5]  तुक कहानी पति परमेश्वर की लाख कोशिश करने पर भी असफल रहने वाली स्त्री की मनोव्यवस्था को चित्रित करती है।

'झूलती कुर्सी' कहानी की नायिका शेफाली एक युवक से प्रेम करती है और अपने घर की बाल्कनी में बैठकर उसके वहां से गुजरने का इन्तजार करती है। उसकी सभी सहेलियों की शादी हो चुकी है, लेकिन शेफाली ने अब तक शादी नहीं की, एक दिन वह अपने प्रेमी से मिलने रेस्तरे में जाती है लेकिन जब उसका प्रेमी मिलने नहीं आता तो वह वापिस घर आ जाती है वह सोचती है कि दुबारा उसका फोन आयेगा। फोन आता है शेफाली युवक को घर मिलने के लिए बुलाती है लेकिन वह अपने प्रेम को पाने में सफल नहीं होती। इस कहानी के द्वारा मृदुला जी प्रेम की असफलता को चित्रित करती है। 'अवकाश' कहानी की नायिका दो बच्चों की माँ होने पर भी अपने पति महेश को छोड़कर प्रेमी समीर की ओर आकर्षित हो जाती है।

घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की समस्या

'तीन किलों की छोरी' तीसरी कन्या के जन्म के बाद कन्या की मां के लिए कहा गया कथन, "मरने दे हरामजादी को हरामखोर, हमें पता था तीसरी भी छोरी जनेगी कमजात। डाल परे कमबख्त को। मरे तो अपने भाग  से, जिए तो अपने भाग से।" परिवार  जनों के द्वारा इस प्रकार का उपेक्षित व्यवहार और मानसिक  पीड़ा तीन बेटियों की माँ को दी जाती है। वह चाहते हुए भी अपनी बेटी का पालन पोषण नहीं करती और शारदाबेन को सौप देती है।

'बाहरी जन' कहानी में नंदिनी विवाह के सात वर्ष बाद भी माँ नहीं बनती तब नंदिनी के सास-ससुर के कटु वचन उसे मानसिक पीड़ा देते है और अप्राकृतिक प्रक्रिया का वह इस्तेमाल नहीं करना चाहती है। नंदिनी के कथन में, "नहीं चाहिए उसे बच्चा। नहीं जाऐगी वह डाक्टरों के पास। नहीं करेगी किसी अप्राकृतिक प्रक्रिया का इस्तेमाल। उसकी गोद है, भरे या न भरे निर्णय लेने का अधिकार उसका है। सिर्फ उसका।" तुक कहानी की मीरा का पति जब ब्रिज के खेल में हार जाता है तो वह सारा गुस्सा मीरा पर उतारता है और भूखे भेड़िये के समान उसके शरीर पर टूट पड़ता है। इस प्रकार हम देखते है कि मृदुला जी ने लगभग कहानियों में नारी की समस्याओं  से अवगत कराने का उनका प्रयास सफल रहा है।

शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की समस्या

आज आधुनिक और वर्तमानकालीन परिवेश में जहाँ एक ओर अशिक्षा के कारण नारी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो दूसरी तरफ शिक्षित होकर भी नारी अनेक समस्याओं का सामना करती है। जहाँ एक ओर मृदुला जी ने 'अनाड़ी' कहानी में अशिक्षित नारी समस्या को चित्रित किया है वही दूसरी तरफ 'वह मैं ही थी', 'ग्लेशियर से', आदि कहानियों के माध्यम से शिक्षित नारी की समस्या को प्रभावी रूप से चित्रित किया है। नारी के जीवन में मातृत्व को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। 'बाहरी जन' कहानी में नंदिनी सात वर्षो बाद भी संतानहीनता के अभाव से पीड़ित है नंदिनी के सास-ससुर अप्राकृतिक रूप से बच्चा पैदा चिकित्सा के जरिये कराना चाहती है लेकिन नंदिनी इसके लिए स्पष्ट शब्दों में मना करती है। इस प्रकार हम कहानी में देखते है कि संतान प्राप्ति न होने के कारण् न्ंदिनी को अपने सास-ससुर की कड़वी बातों को भी झेलना पड़ता है।

'तीन किलों की छोरी' कहानी में हम देखते है कि माता-पिता नवजात कन्या को अपनाने के लिए तैयार नही है बेटी के जन्म पर वह भी तीसरी परिवार में मातम छा जाता है। एक माँ कैसे अपनी नवजात कन्या को किसी दूसरे को दे सकती है लेकिन नारी के जीवन की विडम्बना देखिए कि जिस माँ ने तीसरी कन्या को जन्म दिया उसको ही परिवार के द्वारा दोषी माना जाता है और ऐसी परिस्थिति में शारदाबेन अशिक्षित होते हुए भी बच्ची के पालन-पोषण का भार अपने ऊपर लेती है।

अवैध यौन संबंधों की समस्या

अवैध यौन संबंध एक तरह समाज में एक बीमारी के रूप में फैल रहा है। या यू कहे कि दिशा भ्रमित मानव जाति अवैध यौन संबंधों को बढ़ावा दे रही है। विपरित लिंग आकर्षण तो प्राकृतिक है लेकिन एक पत्नी के होते हुए किसी पर स्त्री से सम्बन्ध बनाना सामाजिक नियमों के विरूद्ध है। मृदुला जी द्वारा रचित अदृश्यकहानी इसमें बिल्कुल सटीक बैठती है।

कहानी में वीना के पति देवेन से अपर्णा अवैध सम्बन्ध रखती है इस कारण देवेन वीना की तरफ ध्यान न देकर वह अपर्णा की और अधिक आकर्षित होता है। मृदुला गर्ग जी कहानी में कहती है, "आँखों पर पड़ा नकाब एक झटके के साथ दूर उड़ गया था और अपर्णा उसके सामने थी। उसे देखा था और महसूस किया था, 'दिलोदिमाग से न सही, देह की तमाम इन्द्रियों से देखा था,' उसे सुना था, छुआ था और स्वाद लिया था उसका"[6] देवेन और अपर्णा की नजदीकियां इतनी बढ़ जाती है कि अपर्णा देवेन के बच्चे की माँ बनने वाली है, इसी कारण वह देवेन को शादी करने को कहती है तथा वीना को तलाक देने के लिए, जब देवेन वीना को तलाक देने से मना कर देता है और शादी करने से इन्कार कर देता है तो अपर्णा वीना पर हमला करवाती है। जिससे वीना की मृत्यु हो जाती है। देवेन वीना को अपने क्लीनिक में ले आता है लेकिन इस बात का आभास नहीं हो पाता कि जिस घायल स्त्री को वह क्लीनिक में लाया है वह कोई ओर नही उसी की पत्नी है। ये सब अवैध यौन संबंधो के चलते रिश्तों में आई दूरियों को दर्शाता है।

यौन शोषण की समस्या

मृदुला गर्ग द्वारा रचित तुककहानी में यौन शोषण की समस्या का बखूबी चित्रण किया है। कहानी की नायिका मीरा अपने पति से बहुत प्रेम करती है। लेकिन मीरा के पति को ताश के खेल की बुरी लत लगी हुई है। मीरा को भी वह ब्रिज का खेल सिखाना चाहता है लेकिन वह सीख नहीं पाती। जब भी नरेश खेल में हार जाता है तो उसका सारा गुस्सा घर आकर उतरता है विशेषकर मीरा की देह पर। मीरा के शब्दों में, "यह कहकर वह भूखे भेडिये की तरह मुझ पर टूट पड़ा। बिस्तर पर मेरी देह वैसी ही नग्न पड़ी थी, जैसी वह छोड़कर गया था। अपनी हार का तमाम गुस्सा उसने उस पर उतारा।" इस प्रकार हम देखते है कि आज नारी को यौन शोषण की समस्या का अधिक सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या को मृदुला जी ने अपनी कहानियों और कठगुलाब जैसे चर्चित उपन्यास में भी स्थान दिया है।

आजादी के पचास वर्षो के बाद भी नारी स्थिति और उसके प्रति पुरूष के दृष्टिकोण में अधिक अन्तर नहीं आया है। आज भी नारी शोषण के दृश्य आम जिन्दगी में देखे जा सकते है। यह शोषण, आर्थिक, दैहिक और मानसिक स्वरूप का है।

घुटन और एकाकीपन की समस्या

मृदुला गर्ग जी की पांच कहानियां 'हरी बिन्दी', 'चक्करघिन्नी,' 'तुक,' 'ग्लेशियर से,' 'यह मैं हूँ' विवाहित स्त्री की कथा कहती है। इन कहानियों में रूढिबद्ध जीवन शैली से स्वतंत्र होने की इच्छा है, जैसे 'हरी बिन्दी' 'ग्लेशियर से' और चक्करघिन्नी में आजादी से उत्पन्न आशंका, जो जोखिम उठाने से कतराकर सुरक्षित मुकाम तलाशने की तरफ प्रेरित करती है।

'हरी बिन्दी' की नारी परम्परा और दांपत्य की घुटन से मुक्त होकर वह 'स्व' व्यक्तित्व को पाना चाहती है। वह और उसकी हरी बिन्दीनारी की बदलती मानसिकता का सशक्त प्रतीत है। कहानी की स्त्री पात्र का पति दूसरे शहर गया है वह वियोग के बदले राहत महसूस करती है और आज के दिन का उपयोग अपनी मर्जी से करना चाहती है।। उसकी चाहत व्यक्तित्व की खोज है।

'चक्करघिनी' कहानी की अन्तर्वस्तु न केवल विशिष्ट है अपितु लेखिका ने उसके जटिल रचाव को भी साधा है। कथा नायिका विनीता के माध्यम से पारम्परिक व आधुनिक स्त्री छवि का द्वन्द्ध उजागर किया गया है। कहानी के पठान और उसके पौरूष का तपन में मोम-सी पिघलने वाली मिसेज दत्ता का चरित्र अत्यन्त सुंदर ढंग से चित्रित हुआ है। 'तुक' कहानी लाख कोशिश करने पर भी असफल रहने वाली स्त्री की मनोव्यवस्था को चित्रित करती है।

वर्ग - भेद की समस्या

'किस्सा आज का' कहानी में वकील और उसकी मालिशवाली अंगूरी दोनों स्त्रियां है। फिर भी आर्थिक वर्ग की भिन्नता से उनकी प्राथमिकताएं अलग-अलग है। इस कहानी में स्त्री विमर्श भी है और वर्ग भेद भी। यहां कहानी में मृदुला जी की सहानुभूति अंगूरी के साथ है, जो अनेक कष्ट सहने के बावजूद अपने ही वर्ग की रामकली का पता पुलिस को नहीं बताती।

'पोंगल पोली' में लेखिका ने इस बात का खड़न किया है कि गरीब को कला का ज्ञान नहीं होता। वास्तव में कलात्मक रूचि का संबंध धन और शिक्षा से नहीं होता। यह दृष्टि जन्मजात प्राप्त होती है। 'मीरा नाची' किशोरावस्था की कहानी है। मीरा के पिता ने दूसरी औरत के लिए उसकी माँ को घर से निकाल दिया था। मीरा की विशेषता यह है कि वह कोई भी काम 'अपनी चाहत' के लिए ही करना चाहती है। क्योंकि अपनी चाहत में ही स्वाधीनता का भाव है। इसके बिना व्यक्ति का विकास सम्भव नहीं है।

निष्कर्ष

इन कहानियों के माध्यम से लेखिका ने स्त्री-विमर्श को रेखांकित किया है। मृदुला गर्ग ने संग्रह की भूमिका में लिखा है कि स्त्री मन के माध्यम से स्त्री-विमर्श तक पहुंचा जाना उचित है कि स्त्री विमर्श की सैद्धांतिकी के माध्यम से स्त्री मन को गढ़ना। लेखिका की पद्धति सही है उनका स्त्री-विमर्श संतुलित स्वास्थय है। लेखिका ने समागमकहानी माँ-बेटी के जुझारू व्यक्तित्व की कहानी है। अमला की माँ आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाली अध्यापिका है। वह अपनी बेटी को आम गृहस्थ बनाकर जुझारू बनाती है। जो दुनिया को बदलने के सपने देखती है। यह कहानी मातृत्व के अनेक आयामों को खोलती है। एक तरफ वह बेटी की तरह संकेत करती है तो दूसरी तरफ उस तीक्ष्ण भावसंवेग को दर्शाती है। जो भीषण दुख की संभावना के बावजूद, माँ को बेटी की मुक्ति की राह में बाधा नहीं बनने देता। मृदुला गर्ग एक कथाकार का यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट है, कि जिस गहराई से उन्होने स्त्री के अन्तसंबंधो को और उसकी पीड़ा को वाणी दी है। यह कार्य कोई महिला कथाकार ही कर सकती है। मृदुला गर्ग ने नारी की नयी जीवन दृष्टि को अभिव्यक्ति दी है। भारतीय परिवेश और संस्कारों में रचा बसा स्त्रियों का चरित्र विपरित परिस्थितियों में भी सहजता से अपना विकास करता है और नारीवाद के नारे का सहारा लिए बिना नारी को सशक्त तरीके से आगे बढ़ने की प्ररेणा देता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. ‘मीरा नाची‘, लेखिका मृदुला गर्ग, प्र वाग्देवी प्रकाशन बीकानेर - 334003 (राजस्थान)

अंत टिप्पणी
1. तीन किलो की छोरी -
2. शहर के नाम -
3. ‘वह मैं ही थी‘
4. अनाड़ी
5. तुक
6. अदृश्य