P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- VII March  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
जलवायु परिवर्तन: इसका प्रभाव
Climate Change: Its Impact
Paper Id :  15912   Submission Date :  10/03/2022   Acceptance Date :  20/03/2022   Publication Date :  25/03/2022
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तारा चन्द्र
शोध छात्र
राजनीति विज्ञान विभाग
एम0बी0जी0पी0जी0 कॉलेज, हल्द्वानी
नैनीताल,उत्तराखण्ड, भारत
हेमन्त कुमार
शोध छात्र
समाजशास्त्र विभाग
जी0पी0जी0 कॉलेज, मनिला
अल्मोड़ा, उत्तराखंड, भारत
सारांश वर्तमान परिप्रेश्य में जलवायु परिवर्तन किसी एक राष्ट्र विशेष या स्थान विशेष की समस्या नही है वरन् यह सम्पूर्ण वैश्विक जगत के लिए प्रमुख समस्या बनी हुयी है। यह एक ऐसी नासूर समस्या बनकर उभर गयी है जिसका निदान दिन प्रतिदिन जटिल होता जा रहा है। पिघलता हिमालयए बढता समुद्री जल स्तरए अनियंत्रित दावानलए वनो को अत्यधिक क्षतिए सूखते जल स्त्रोत एवं नदियांए दरकते पहाडए वन्य जीव जन्तुओं की प्रजातियों का विलुप्त होनाए ओजोन परत में हास होनाए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होनाए ग्रीन हाउस गैंसों का बढना आदि समस्याओं का कारण मनुष्य ही है। अपने स्वार्थ-सिध्दि के लिए मनुष्य ने प्रकृति के उन अमूल्य पहलुओं में भी अतिक्रमण कर दिया है जो मानव जीवन को सुरक्षित बनाऐ रखने के लिए आवश्यक थेए यही नही आधुनिकता एवं नित नई खोेजों व विज्ञान के नाम पर भी मनुष्य ने कदम-कदम पर प्रकृति एवं पर्यावरण के सिने को छलनी किया है जिसका एक छोटा सा परिणाम 21 वीं शताब्दी की सबसे बड़ी भयावह महामारी कोविड-19 था जिसने पलभर में ही करोडो मनुष्यों की जान ही नही ली बल्कि मृत्युमण्डल में मानव जीवन पर विराम भी लगा दिया था। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पर्यावरण के साथ - साथ वैश्विक आर्थिक जगत पर भी पडा है। मानवीय गतिविधियों के बढते हस्तक्षेप से जलए थलए नभ तीनों ही बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं। वैश्वीकरण के दौर में जहाँ महंगाई और बेरोजगारी ने आम आदमी के जीवन को कष्टमय बना दिया है वहीं जलवायु परिवर्तन किसी पूर्व अभिसाप की तरह समय-समय पर प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से दर्द दे रहा है जो मनुष्य के द्वारा किये गये कुकृत्यों का ही परिणाम है। यदि मनुष्य समय रहते अपने कुकृत्यों पर लगाम नही लगायेगा तो निःसन्देह निश्चित ही उसके ये कृत्य स्वयं के समूल विनाश के कारण होंगे।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present scenario, climate change is not a problem of any particular nation or place, but it remains a major problem for the whole world. It has emerged as such a canker problem whose solution is getting complicated day by day. Humans are the cause of problems like melting Himalayas, rising sea water level, uncontrolled forest cover, excessive damage to forests, drying up water sources and rivers, eroding mountains, extinction of wildlife species, depletion of ozone layer, exploitation of natural resources, increase of greenhouse gasses etc. For his selfishness, man has also encroached on those priceless aspects of nature which were necessary to keep human life safe, not only this, in the name of modernity and new discoveries and science, man has also taken nature step by step. And have sieved the environment, a small consequence of which was the biggest dreadful pandemic of the 21st century, COVID-19, which not only took the lives of millions of humans in a moment, but also put an end to human life in the death circle. Climate change has had an impact on the environment as well as on the global economic world. Due to the increasing interference of human activities, all three have been badly affected. In the era of globalization, where inflation and unemployment have made the life of the common man miserable, climate change is giving pain like a previous curse from time to time through natural events, which is the result of human misdeeds. If a person does not control his misdeeds in time, then undoubtedly his actions will surely be due to his own complete destruction.
मुख्य शब्द जलवायु परिवर्तन, पिघलता हिमालय, जलवायु सुरक्षा, खाद्यान संकट, ओजोन छिद्र, एनपीसीसी, ऊर्जा दक्षताए
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Climate Change, Melting Himalayas, Climate Security, Food Crisis, Ozone Hole, NPCC, energy Efficiency.
प्रस्तावना
आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज) सहित अनेक वैश्विक संस्थाओं की रिर्पोटों ने जलवायु परिवर्तन की पुष्टि करते हुए चिंता व्यक्त की है कि पृथ्वी का औसत तापमान बढता जा रहा हैं। सन् 1961 तथा 1990 के बीच पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 14 डिग्री सेल्सियस अर्थात 14‐52 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था जलवायु परिवर्तन की समस्या को रोकने के लिये सम्पूर्ण वैश्विक समुदाय निरन्तर प्रयासरत है। अभी हाल ही में हुए वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन 2021 का आयोजन 22-23 अप्रैल, 2021 में कोविड-19 के कारण वर्चुअली तौर पर किया गया था जिसमें विश्व के लगभग 40 देशों ने भाग लिया था। ये देश वैश्विक स्तर पर भी बढी अर्थव्यस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा जलवायु शमन और अनुकूलन प्रकृति आधारित समाधानए जलवायु सुरक्षा के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा के लिए तकनीकी नवाचार इत्यादि मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित किया है। जलवायु परिवर्तन की समस्या के निदान के लिए वर्ष 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम में सभी राष्ट्र एक मंच पर आये थे यंही से जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित सम्मेलनों का दौर शुरू हुआ। भारत भी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से अछूता नही है इसे और भी ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड रहा है। अभी हाल ही में उत्तराखंड में 7 फरवरी, 2021 को चमोली के नीती घाटी में रैणी गांव के शीर्ष भाग में ऋषि गंगा के मुहाने पर ग्लेशियर का एक हिस्सा नदी में गिरने से भीषण बाढ आई थी जिसमें सेकड़ों लोगों की जानें गयी और राज्य को लगभग 4000 हजार करोड़ का नुकसान अपूर्ण क्षति हुयी थी। जनसंख्या में लगातार वृध्दि होने से कई प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो गयी हैं। खाद्यान संकटए जल संकटए जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव पडा है जिसका असर आम जनमानस पर पडा है। कृषि उत्पादन में कमी से खाद्य वस्तुओं के बाजार भाव आसमान छूं रहे है जिसका मुख्य कारण समय पर बारिश का नही होना है। जलवायु परिवर्तन से हो रहे ओजोन परत की क्षति के बारे में वैज्ञानिकों ने 1970 के दशक में ही चितां व्यक्त कर दी थी जिसकी पुष्टि 1985 के अंटार्कटिका के ऊपर ’ओजोन छिद्र’ की खोज से हो गई। इसके फलस्वरूप वैज्ञानिकोंए नीति निर्धारकोए स्वयंसेवी सस्थाओं और संयुक्त राष्ट्र में ओजोन परत को बचाने के प्रयास शुरू हुए। 16 सितम्बर, 1987 को इस बाबत मोट्रियल प्रोटोकाॅल पर कई देशों ने सहमति व्यक्त की जिसमें विशैली गैसें/पदार्थों तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी‐एफ‐ सी‐), हेलोनए कार्बन टेट्रा क्लोराइड (सीटीसी), मिथाइल क्लोरोफाॅर्मए मिथाइल ब्रोमाइड तथा हाइड्रोक्लोरो फ्लोरो कार्बन (एचसीएफसी) को निर्धारित अवधि में कम करने का उद्देश्य रखा गया क्योकि इनसे ही मुख्यतः ओजोन परत का क्षरण होता है। भारत ने भी 1992 में इसका अनुमोदन कर दिया था।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के कारणों एवं उसका मानवीय जीवन पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन
भारत के महाराष्ट्र राज्य में जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित समस्या और उसके समाधान की स्थिति के बारे में पर्यावरणए वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री भारत सरकार - श्री अश्विनी कुमार चौबे लोक सभा में दिनांक -23-07-2021 को श्री हेमन्त पाटिल के प्रश्न संख्या 818 का उत्तर देते हुए - विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार वर्ष 2015 - 2019 के दौरान औसत वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक (1850-1900) स्तर से अधिक 1-1 डिग्री सेल्सियस तक होने का अनुमान लगाया गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार विश्व भर में बढते तापमान के अनुरूप अखिल भारतीय औसत तापमान वर्ष 1901 से 2018 के दौरान लगभग 0‐7 डिग्री सेल्सियस तक बढ गया है। इसके अलावा, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) आंकडों के आधार पर वर्ष 1951-2015 की अवधि में रेखीय प्रवृत्तियों में मध्य प्रदेश क्षेत्र में वार्षिक के साथ साथ मौसमी ग्रीष्म वर्षा वृष्टि में कमी का पता चलता है। दीर्घकालिक (1901 - 2002) के विभिन्न आंकडो स्त्रोतोें और पद्वतियों से भी पता चलता है कि हाल के दशकों में सूखे की घटनाएं और अधिक प्रादेशिक होती जा रही है तथा मध्य महाराष्ट्र में घटनाओं की अवधिए कठोरता और स्थानिक विस्तार में वृद्धि देखी गई है। तथापि, भारत के संबंध में ऐसा कोई पुष्ट अध्ययन नही है जिसमें अत्यंत गर्मी, वर्षा और सूखे की स्थिति का बढाने में जलवायु परिवर्तन के योगदान का पता चलता हो। यद्दपि सूखे की स्थिति गर्मी और बाढ जैसी आपदाओ की निगरानी के लिए अनेक अध्ययन किए जाते हैं तथापि, इन परिवर्तनों में विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के अभिनिर्धारण का विज्ञान बहुत अधिक जटिल है और वर्तमान में एक उभरता विषय है। इस प्रकार देखें गए उक्त परिवर्तनए जैवमंडल और भूमंडल में समान रूप से पायी जाने वाली जलवायु प्रणालियों में अंतंर्निहित परिवर्तन शीलता सहित अनेक कारणों से भी हो सकते हैं। अब तक किए गए सभी अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की गणितीय प्रतिरूपण के आधार पर किए गए हैं। लेकिन इन्हे अभी अनुभव सिद्ध किया जाना बाकी है। सरकार अपने विभिन्न कार्यक्रमों और स्कीमों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध है। इनमें राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) का कार्यान्वयन शामिल है जिसमें सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षताए जल, कृषि, हिमालयी पारि - प्रणालीए संधारणीय पर्यावास, हरित भारत और जलवायु परिवर्तन संबंधी रणनीतिक ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्रों में मिशन शामिल है। एनएपीसीसी में सभी जलवायु संबंधी कार्रवाइयों के लिए एक समावेशी कार्यढांचे की व्यवस्था की गई है। 33 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए एनएपीसीसी की तर्ज पर अपनी अपनी राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजनाएं तैयार कर ली है। सरकार, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों कें प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा किए जाने वाले अनुकूल संबंधी उपायों में सहायता प्रदान करने के लिए ’राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूल निधि’ स्कीम भी कार्यान्वित कर रही है। महाराष्ट्र राज्य ने जलवायु परिवर्तन पर महाराष्ट्र राज्य जलवायु परिवर्तन अनुकूल कार्य योजना तैयार की है जिसमें आठ महत्वपूर्ण क्षत्रों अर्थात कृषि, जल, स्वास्थ्य, वनए ग्रामीण विकास, शहरी विकास, आपदा प्रबंधन और ऊर्जा पर विशेष बल दिया गया है।
निष्कर्ष जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर जन जीवन के लिए भविष्य की एक ऐसी विकराल समस्या बनने वाली है जिसके बारे में जितना अध्ययन किया जाये उतना कम है, क्योकि पृथ्वी पर मानव आबादी बहुत तेजी से बढ रही है और वही इन सब समस्याओ की उत्पति का जिम्मेदार है। मनुष्य के अतिरिक्त कोई अन्य जीव जन्तु प्रकृति से छेड छाड नही करता है। बढती आबादीए वनों की कटाई अनियंत्रित कल कारखानो से पृथ्वी का तापमान बढ रहा है जिसे समय रहते नियंत्रित नही किया गया तो भविष्य के परिणाम घातक हो सकते हैं।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव 1. कार्बन डाई-ऑक्साइड शोषक वृक्षों को बढावा देना चाहिए।
2. वैश्विक स्तर पर सभी राज्यो को अनियंत्रित मानव आबादी रोकने के प्रयास करने चाहिए।
3. पुराने डीजल इंजन की गाडियां पूर्णतः प्रतिबंध हो।
4. सरकारों को पर्यावरण के प्रति आम जनमानस में जागरूकता लाना और भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बारे में बताना।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1- जैन राहुल, सम्पादक, सक्सेस मिरर पत्रिकाए वर्षः 12, अंकः 131, मार्च, 2021, पृष्ठ, 44। 2- जैन राहुल, सम्पादक, सक्सेस मिरर पत्रिकाए वर्षः 12, अंकः 134, जून, 2021, पृष्ठ, 21। 3- शर्मा डाॅं0 सुभाश, पर्यावरणः पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की त्रैमासिक पत्रिकाए जलवायु परिवर्तन विशेषांक, वर्ष 21, अंक 64, जून 2010, पृष्ठ 27। 4- थापा पारूल लक्ष्मीए प्रकाशकः फोकस आन द ग्लोबल साउथ ,जलवायु परिवर्तन और कृषि संकटए कृषि- पारिस्थितिकी एक उपायए फोकस इंडिया प्रकाशन जुलाईए 2015, पृष्ठ 11। 5- वही। 6- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजनाए भारत सरकारए जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषदए पृष्ठ 15। 7- वही, पृष्ठ 16। 8- कुमार अजीत समैयार, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिग एक परिचयए पृष्ठ 13। 9- भारत जलवायु परिवर्तन और पेरिस करार, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालयए भारत सरकारए फरवरी 2016। 10-मेहरोत्रा राजेश्वरए जलवायु परिवर्तन - कारण एवं प्रभाव, जलविज्ञान एवं जल संसाधन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, 15-16 दिसम्बरए 1995, रुड़की। 11-जोशी शरद, जलवायु परिवर्तन और भारतए नवम्बर, 2009, पृष्ठ 9। 12 जैन राहुल, सम्पादक, जलवायु परिवर्तन का मौसम पर प्रभाव: प्रमुख सूचकांकों का विश्लेषण, प्रतियोगिता दर्पण हिन्दी मासिकए 43 वर्ष, सप्तम् अंकए फरवरी 2021, पृष्ठ 86। 13- अमर उजाला, नैनीताल, सोमवार, 8 फरवरी 2021, 21 संस्करणए वर्ष17ः अंकः 223, पृष्ठ 1। 14- यादव डाॅं0 ओम प्रकाश, निदेशक काजरी जोधपुरए शुष्क क्षेत्र में जलवायु सुमुत्थानशील कृषि तकनीकियाॅं, कृषि विज्ञान केन्द्र, भाकृअनुप- केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान - जोधपुर (राजस्थान)। 15- मिश्रा विमल, भट जे0आर0, भारत में जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनए पार्यावरणए वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, 2018।