P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VIII , ISSUE- IV July  - 2023
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
कृषि उत्पादों के विपणन में आने वाली समस्याओं का सूक्ष्म स्तरीय अध्ययन (कृषि उत्पादन मंडी समिति, सिकंदराबाद, जनपद बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में)
Micro-Level Study of Problems Faced In Marketing of Agricultural Products (With Special Reference To Krishi Utpadan Mandi Samiti, Sikandrabad, Bulandshahr, Uttar Pradesh)
Paper Id :  17878   Submission Date :  14/07/2023   Acceptance Date :  21/07/2023   Publication Date :  24/07/2023
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सुरभि पायल
शोध छात्रा
वाणिज्य विभाग
अग्रसेन पी. जी. कॉलेज
सिकंदराबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश वर्तमान समय में कृषि पदार्थों के उत्पादन के साथ-साथ उसकी बिक्री की व्यवस्था करना भी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होता है। आज भी कृषि उत्पादों के विपणन में किसानों को अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसके बाद भी उचित लाभ प्राप्त नहीं मिलता है। शोध पत्र में इस बिन्दु को आधार मानते हुए जनपद बुलंदशहर की कृषि उत्पादन मंडी समिति, सिकंदराबाद का सूक्ष्म अध्ययन किया गया है। सर्वेक्षण पद्धति पर आधारित इस शोध पत्र में सामान्य रूप से कृषि के प्रति निरुत्साह एवं निरंतर घटती चाह दिखाई पड़ती है। किसान खेत में तो अनेक समस्याओं का सामना करते हुए मेहनत करके फसल तैयार कर लेता है लेकिन इसके अतिरिक्त कृषि उत्पाद विपणन में भी बहुत-सी समस्याओं का भी सामना करता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present time, along with the production of agricultural commodities, it is also necessary and important to make arrangements for its sale. Even today, farmers have to face many problems in the marketing of agricultural products, even after that they do not get proper profit. Taking this point as the basis in the research paper, a micro study of the Agricultural Produce Market Committee, Sikandrabad of Bulandshahr district has been done. In this research paper based on the survey method, general disinterest and decreasing desire towards agriculture is seen. The farmer prepares the crop by working hard while facing many problems in the field, but in addition to this, he also faces many problems in the marketing of agricultural products.
मुख्य शब्द कृषि पदार्थ, कृषि विपणन सम्बन्धी समस्या।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Agricultural Products, Problems related to Agricultural Marketing.
प्रस्तावना
हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है। वर्तमान में भारत की जनसंख्या लगभग १३७ करोड़ है। देश के अधिकांश लोग (लगभग ६७%) कृषि करते हैं और कृषि पर ही निर्भर है और १३७ करोड़ जनसंख्या को खदान्न सामाग्री उपलब्ध कराती है तथा उधोगों के लिए कच्चा माल भी प्रदान करती है। खदान्न सामग्री एवं कच्चा माल प्रदान कराने के लिए कृषि आगतों की भी अवश्यकता होती है। कृषि में प्रयोग होने वाले साधन जैसे- भूमि, कृषि यंत्र, सिचाई, श्रम, उर्वरक, बीज, जुताई, कीटनाशक दवाई एवं परिवहन आदि की जरूरत पड़ती है। इन्हें प्राप्त करने के लिए किसानों को धन की आवश्यकता होती है, जिसके लिए किसान अपनी कृषि उपज को मंडी समितियों में बेचते हैं। कृषि विपणन से तात्पर्य उन सभी क्रियाओं से लगाया जाता है, जिनका संबंध कृषि उत्पादन को खेत से अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाने में किया जाता है। शोध अध्ययन का क्षेत्र कृषि उत्पादन मंडी समिति, सिकंदराबाद है। किसान कृषि छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं क्योंकि कृषि लागत इतनी अधिक आने लगी है कि किसानों को बचत नहीं हो पाती है और जैसे-तैसे करके किसान कृषि करता भी है तो मंडी समितियों में भी अनेकों समस्याओं का सामना करता है। इसके पश्चात भी अपने परिवार का भरण-पोषण भी सही से नहीं कर पा रहे हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में भी समर्थ नहीं है।
अध्ययन का उद्देश्य कृषि विपणन कार्य करते हुए किसानों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे- मंडी में स्टाफ की कमी, कृषि विपणन सम्बन्धी सूचनाओं का अभाव, मंडी में किसानों से कपटपूर्ण व्यवहार आदि। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस शोध पत्र में निम्नलिखित उद्देश्यों पर कार्य करना निश्चित किया गया है- 1. मंडी समिति में किसानों को आने वाली समस्याओं का अध्ययन करना है। 2. मंडी समिति एवं कृषि विपणन व्यवस्था में सुधार हेतु आवश्यक सुझाव देना है।
साहित्यावलोकन

सिंह अर्चना और रोहल (1998) ने मुजफ्फरनगर जिले में गुड़ और खांडसारी के विपणन प्रक्रिया व कीमत विभाजन का अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि गुड़ का 76 प्रतिशत नियमित मंडियों में बेचा गया, शेष माल उपभोक्ताओं को सीधे बेचा गया। उत्पादकों को उपभोक्ता मूल्य का 75 प्रतिशत मूल्य मिला। निष्कर्ष निकाला गया कि मंडियों में बेचने पर उत्पादकों को मूल्य अधिक प्राप्त हुआ लेकिन मंडियों में सुविधाओं कि कमी की वजह से पूरा माल न बेचा जा सका। सुझाव दिया गया कि मंडियों में सुविधाओं बढ़ायी जायें जिससे किसान उत्पादक अपना माल अधिक से अधिक मंडियों में लाकर बेचें।

जैन भागचंद (2002) ने मध्यप्रदेश की दमोह की नियमित मंडी में विपणन प्रक्रिया एवं कार्यरत कर्मचारियों के क्रियाकलापों का अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि दमोह मंडी में विपणन हेतु मूलभूत सुविधाओं की कमी तथा कर्मचरियों की उदासीनता की वजह से किसानों को अपना माल मंडी में लाने में परेशानी होती है और अपने उत्पाद को अधिकतर मंडी के बाहर ही भेज देते हैं। सुझाव दिया गया कि मंडी में गोदामों की सुविधा एवं परिवहन की सुविधा होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त नीलामी प्रक्रिया का सही से पालन होना चाहिए।

रंगी और सिंधु (2004) ने पंजाब के कृषि विपणन बाज़ारों के कार्यरत आढ़तियों के क्रियाकलापों का अध्ययन किया। उन्होंने  मंडियों में से 135 आढ़तियों / कमीशन एजेन्टों का एक सैंपल लेकर अध्ययन किया। उन मंडियों में अधिकतर धान और गेहूं की आवक होती है। अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2002-03 के दौरान गेहूं और धान कि आवक से आढ़तियों की आय 338 करोड़ रुपए हुई। आढ़तियों द्वारा दिये गए ऋण का अध्ययन किया गया ज्ञात हुआ कि इस दौरान किसानों को आढ़तियों ने 7415 करोड़ रुपए का कर्ज दिया जो उनको द्वारा बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं से लिए गए ऋण से अधिक था। चयनित किसानों में से 19 प्रतिशत किसानों ने कर्ज चुकाने के लिए अपनी जमीन आढ़तियों को बेची। निष्कर्ष निकाला गया कि यह समस्या और गंभीर होती जा रही है जिसके दुष्परिणाम पंजाब की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अंत: बिचौलियों की भूमिका पर अंकुश लगाया जाना चाहिए और अग्रिम की सुविधा का विस्तार किया जाना चाहिए।

मलिक राजीव (2010) ने त्रिपुरा राज्य के नियमित कृषि विपणन बाज़ारों के विकास केए अध्ययन किया। उन्होंने राज्य की २१ नियमित मंडियों में से 8 मंडियों का अध्ययन के लिए चुना। उन्होंने पाया की नियमित मंडियों से किसान उत्पादकों को लाभ हुआ है। अंत: राज्य में अधिक से अधिक कृषि उत्पाद मंडियों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए इन्होंने वित्तीय संस्थाओं की भूमिका पर विशेष ज़ोर दिया है।

निधि एवं सहयोगी लेखक (2017) ने अपने शोध में कृषि बाजार से संबन्धित समस्याओं पर प्रकाश डाला है। शोध के अनुसार कृषि को व्यापारिक रूप देने में गाँव कि जनसंख्या, मंडी समितियां, व्यापारिक संस्थाओं का बहुत महत्व है इसके बावजूद भी कृषि उत्पाद के लिए आवागमन लागत, अपर्याप्त व्यापारिक आधारभूत व्यवस्था, कृषि व्यापार संबंधी जानकारियों का अभाव, भंडारण की उचित व्यवस्था न होना, मूल्यों में अस्थिरता आदि मुख्य समस्याएँ हैं।

केशवप्रसाद 'सरस' (2021) के अनुसार, हमारे देश में कृषि आर्थिक जगत की आधारशिला है। बिना कृषि के जीवनयापन कठिन है। कृषि के द्वारा ही अन्य व्यवसायों को आश्रय एवं आलम्बन प्राप्त होता है। भारतवासियों के रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं फिर भी यह अत्यंत पिछड़ी है। इसका कारण यह है कि भारतीय कृषि पर प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है जिनसे प्रति व्यक्ति उत्पादन प्रभावित होता है। भारतीय कृषक गरीबी एवं निर्धनता का जीवन व्यतीत करते हैं। भारतीय कृषि की मुख्य समस्या यह है कि भारत में कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद GDP का केवल 0.3 प्रतिशत ही कृषि शोध पर व्यय किया जाता है जबकि अमेरिका में 4 प्रतिशत व्यय किया जाता है। "राष्ट्रीय किसान आयोग" ने इन कृषि शोधों हेतु 5 प्रतिशत व्यय करने का सुझाव दिया है।

मुख्य पाठ

अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व

अध्ययन के द्वारा किसानों को कृषि विपणन में आने वाली समस्याओं का पता लगाया गया है और साथ ही समस्याओं के निवारण हेतु सुझाव दिये गए हैं। यह अध्ययन सरकार को  किसानों की समस्याओं से अवगत करा सकता है जिससे सरकार को कृषि सम्बन्धी नीति बनाने में सहायता मिल सकती है।

अध्ययन का क्षेत्र

जिला बुलंदशहर में सात तहसील हैं, जिसमें 16 विकासखण्ड हैं। जिले में 1246 गाँव हैं एवं सभी गाँव में कृषि की जाती है। जिला बुलंदशहर की तहसील सिकंदराबाद में 142 गाँव हैं। सिकंदराबाद एक औद्योगिक क्षेत्र है। सिकंदराबाद तहसील की आबादी लगभग 4 लाख है। जिसमें से 24 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में और 76 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। शोध क्षेत्र सिकंदराबाद में एक कृषि उत्पादन मंडी समिति है जो वर्ग के अंतर्गत आती है। जिसमें 25 कर्मचारी आबंटित किए गए हैं जबकि कार्यरत केवल 7 हैं। यह सिकंदराबाद के केंद्र में हैं, इस मंडी समिति को नवीन मंडी समिति नहीं बनाया गया है।

प्रयुक्त उपकरण यह शोध पत्र प्राथमिक समंकों पर आधारित है। प्राथमिक समंकों को एकत्रित करने के लिए प्रश्नावली तैयार करके किसानों से प्रश्न पूछकर प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
विश्लेषण

अध्ययन में प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण

कृषि उत्पादन मंडी सिकंदराबाद में आये 40 किसानों का सर्वेक्षण किया गया जिसमें मंडी समिति विपणन व्यवस्था से संतुष्ट किसान और असंतुष्ट  किसानों का आकलन किया गया और असंतुष्ट किसानों से विपणन व्यवस्था संबन्धित समस्याओं की जानकारी प्राप्त की गयी है। विपणन व्यवस्था से संतुष्ट एवं असंतुष्ट किसानों को पाईचार्ट द्वारा दर्शाया गया है-



स्त्रोत सर्वेक्षण के आधार पर।

उपर्युक्त पाईचार्ट से स्पष्ट होता है कि मंडी समिति में विपणन क्रिया सम्पन्न करने वाले किसानों में से केवल ५ प्रतिशत किसान ही विपणन प्रक्रिया से संतुष्ट है जबकि ९५ प्रतिशत किसान असंतुष्ट हैं। असंतुष्ट किसानों से ही मंडी समिति में फसल बेचने में आने वाली समस्याओं की जानकारी प्राप्त की गयी है। 

कृषि उत्पादन मंडी समिति में आने वाली समस्याएँ एवं उनके सुझाव

हमारी यही कोशिश रही कि इस अध्ययन में हम अधिक से अधिक समस्याओं को सम्मिलित कर सकें। किसानों की अधिकांश समस्याएँ एक जैसी थी वही उनकी कुछ विशिष्ट समस्याएँ भी थी, इसलिए विभिन्न समस्याओं एवं उपायों को वर्गीकृत कर निम्न शीर्षकों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है:-

समर्थन मूल्य संबंधी समस्याएँ:- सर्वेक्षित क्षेत्र में किसानों की समस्या है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित होते हुए भी किसानों को कम दामों में ही अपनी उपज बेचनी पड़ती है। किसानों के पास भंडारण का अभाव रहता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मंडी समितियों द्वारा तो खरीदा ही नहीं जाता इसके अतिरिक्त क्रय केंद्र पर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य का पालन नहीं किया जाता है। किसानों को मंडी समिति में दो सौ से तीन सौ तक की हानि वहन करनी पड़ती है। इसमे मंडी समिति के अधिकारी भी कुछ नहीं करते हैं जिस कारण किसानों की कोई सुनवाई नहीं होती।

इस समस्या के निवारण हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

सरकार को इस ओर ध्यान देने की अवश्यकता है कम से कम किसान को उसकी फसल का अधिक मूल्य नहीं मिले तो न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मिल सके। सरकार को सरकारी क्रय केंद्र के साथ मंडी समितियों में भी समर्थन मूल्य लागू करना चाहिए।

मंडी में स्टाफ की कमी:- सर्वेक्षण से ये पता चलता है कि सिकंदराबाद मंडी में पूर्व निर्धारित कर्मचारी संख्या से अत्यंत कम कर्मचारी कार्यरत हैं। जिससे एक कर्मचारी पर अधिक कार्यभार आ जाता है और वह सही से कार्यों का  संचालन नहीं कर पाते है।

इस समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते है

मंडी में जाने पर यह जानकारी हुई कि सालों से कोई नयी नियुक्ति नहीं हुई है सिर्फ मृतक आश्रित नियुक्तियाँ ही की जाती है। कर्मचारियों की कमी के चलते एक ही कर्मचारी पर कई कर्मचारियों का भार रहता है। इस समस्या निवारण हेतु सरकार को कम से कम इतनी नियुक्ति करनी चाहिए जो पूर्वनिर्धारित हैं। एक व्यक्ति पर मानक अनुसार कार्यभार होने से कार्य सही से किया जाएगा।

कृषि विपणन सम्बन्धी सूचनाओं का अभाव:- मंडी समिति का एक मुख्य दोष कृषि विपणन सम्बन्धी सूचनाओं का अभाव है। मंडी में कृषि उपज का कल क्या भाव था यह जानकारी आज आने वाले किसानों को प्राप्त नहीं हो पाती। किसानों को भाव कि जानकारी के अभाव में ही अपनी फसल को बेचना पड़ता है और उचित मूल्य प्राप्त नहीं कर पाता।

इस समस्या के निवारण हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते है-

इसके लिए वर्तमान विपणन व्यवस्था में सुधार हेतु मंडियों का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए। बाजार भावों कि सूचनाओं का प्रसार, नाप-तौल का वैज्ञानिकीकरण, श्रेणी एवं मानक निर्धारण वैज्ञानिक आधार पर होने से किसान की मोलभाव करने की शक्ति बढ़ जायेगी। एक अच्छी एवं उचित सूचना पद्धति का प्रभाव कृषि विपणन योग्य आधिक्य को बढ़ाने में कारगर भूमिका निर्वाह करेगी।

मंडियों में किसानों से कपटपूर्ण व्यवहार:- सामान्यत: यह देखने में आता है कि कृषि विपणन मंडियों में सौदेबाजी का तरीका किसानों के हितों के विपरीत होता है। व्यापारी तौल में बेईमानी, अनाधिकृत कटौतिया जैसे- ढुलाई, धर्मदा आदि के रूप में भी किसानों से पैसा वसूलते हैं जिसे किसी भी प्रकार से न्याय-संगत नहीं कह सकते हैं।

इस समस्या के निवारण हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकता है-

सरकार द्वारा मंडी समितियों से आढ़तियों को हटा देना चाहिए और प्रत्येक मंडी समिति में एक व्यक्ति नियुक्त करना चाहिए जो मंडी में आयी सभी फसलों का कीमत निर्धारण करे।

भंडारण सुविधाओं का अभाव:- सर्वेक्षित क्षेत्र में यह देखने में आया है कि अधिकांश लघु एवं सीमांत किसानों के पास रहने के लिए कच्चे घर हैं। किसान अपनी उपज को कच्चे घरों में रखते हैं। जहाँ चूहों, कीड़े-मकोड़े एवं कीट-पतंगो द्वारा उपज नष्ट किया जाता है इसके अतिरिक्त बरसात के समय में उपज में नमी आ जाती है तथा बीज के लिए उपयुक्त नहीं रहता है और उपज की कीमत में गिरावट आ जाती है। दोषपूर्ण भंडारण व्यवस्था के चलते किसानों को प्रत्येक स्तर पर हानि वहन करनी पड़ती है। किसानों के पास स्वयं के भंडार नहीं हैं तथा संस्थागत भंडारगृह अपर्याप्त हैं। इसलिए किसानों की जब उपज उत्पादित होती है तो वह अपनी फसल को कम दामों पर बेचने के लिए मजबूर रहते हैं। अत: सरकार को भंडार गृहों की ओर ध्यान देना चाहिए।

इस समस्या के निवारण हेतु यह सुझाव दिये जा सकते है-

वर्तमान में निर्मित गोदामों की नीलमी सही समय पर की जानी चाहिए। बढ़ते उत्पाद को देखते हुए गोदामों का निर्माण भी बढ़ना चाहिए जिससे किसान अपना माल बिना किसी क्षति के सुरक्षित रख सके। उचित मूल्य मिलने पर ही बेचें और अधिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। सरकार द्वारा उचित मूल्य पर गोदाम की सुविधाएं उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

मंडी शुल्क का अपवंचन/चोरी:- सर्वेक्षित क्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान यह देखने में आया है कि कुछ कारणों के चलते कुछ किसान विक्रेता मंडी विपणन प्रक्रिया से गुजरने के स्थान पर सीधे ही अपना माल व्यापारियों को बेच देते हैं और व्यापारी ऐसे माल पर लगे मंडी शुल्क का अपवंचन कर लेते हैं। 

इस समस्या के समाधान हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते है-

यह विशुद्ध रूप से प्रशासनिक समस्या है, जिसका मुख्य कारण मंडी समिति की प्रशासकीय शिथिलता, उदासीनता, अक्षमता और कर्मचारियों का भ्रष्टाचारी होना है। यदि इन बातों पर कड़ी निगरानी रखी जाए तो कोई भी उपज बिना अधिशेष विक्रय के नहीं बिके तो कोई ऐसा कारण नहीं है कि यह प्रवत्ति समाप्त न हो। इसे समाप्त करने के लिए मंडी अधिकारी एवं कर्मचारियों को स्वयं ही कर्मठ और ईमानदार बनना चाहिए।

तौल पर नियंत्रण का अभाव:- कृषि उत्पादन मंडी समिति में किसानों के लिए एक समस्या यह भी है कि तौल काँटों पर मंडी का उचित नियंत्रण नहीं रखे जाने की है। भोले-भाले किसानों से व्यापारियों और हम्माल मिली-भगत करके तौल में घानी काट लेते हैं और किसान कुछ समझ नहीं पाता है। 

इस समस्या के समाधान हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते है-

नाप-तौल सम्बन्धी अनियमिताओं को दूर करने के लिए मण्डल स्तरीय एवं जिला स्तरीय मंडी अधिकारियों को ठोस प्रयास करना चाहिए और तौल काटों पर अनुभवी एवं योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए जिससे वे उचित नियंत्रण रख सकें।

भुगतान समय से नहीं मिलने की समस्या:- किसानों द्वारा बिक्रीत उपज के मूल्य का व्यापारी समय से भुगतान नहीं करते किसानों के अनुसार उपज कम कीमत पर खरीद लेते हैं और भुगतान करने में आनाकानी करते हैं। किसानों को अपने ही रुपए के लिए व्यापारियों और आढ़तियों के पास बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। तब जाकर उनका भुगतान किया जाता है।

उपर्युक्त समस्या के निदान हेतु सुझाव दिये जा सकते है-

प्रदेश में किसानों की समस्या है कि उन्हें बेची गयी उपज का समय पर भुगतान प्राप्त नहीं होता है। नियमित मंडी नियमानुसार उन्हें उनकी कृषि उपज का मूल्य उसी दिन मिलना चाहिए जिस दिन वे उसको बेचते हैं।

मंडी परिसर में सफाई की उचित व्यवस्था का अभाव:- मंडी समिति की ये समस्या है कि मंडी परिसर में शौचालय एवं पेशाबघर भी बने हुए हैं लेकिन उनकी साफ सफाई की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। किसानों द्वारा बताया गया है कि मंडी परिसर में जल निकासी हेतु नालियों का सही रूप से निर्माण नहीं किया गया है इसलिए बरसात के दिनों में मंडी परिसरों में जल भराव हो जाता है।

उपर्युक्त समस्या का समाधान हेतु यह सुझाव दिया जा सकता है-

मंडी परिसर में सफाई की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। आवारा पशुओं का प्रवेश बंद कर देना चाहिए और पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मंडी सचिव द्वारा शौचालयों की सफाई की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

परिवहन सुविधाओं का अभाव:- सर्वेक्षित क्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान यह ज्ञात हुआ कि देश में शहर को शहर से जोड़ने वाली सड़कों पर ही ध्यान दिया जा रहा है। गाँव को शहरों से जोड़ने पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यही समस्या किसानों से बातचीत में सामने आयी है। खेतों से घर तक और घर से मंडी तक पहुँचने के लिए पर्याप्त सड़कों का अभाव है। यदि सड़क हैं भी तो वो गड्ढों युक्त हैं जिनकी समय से मरम्मत नहीं करायी जाती हैं। बरसात के समय में सड़कों पर पानी भराव हो जाता है। इन्हीं कारणों से किसान अपनी उपज को गाँव में ही व्यापारियों को बेच देते हैं। सभी किसानों के पास स्वयं के वाहन नहीं होते हैं और किराए के वाहन करने पड़ते हैं। हमारे देश में अधिकांश किसान गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं और उन्हें बैलगाड़ी प्राप्त करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

उपर्युक्त समस्या के निदान हेतु निम्नांकित सुझाव दिये जा सकते है-

सड़कों को व्यवस्थित रूप देने हेतु नदी, नहरों, नालों पर पूल एवं पुलिया बनाई जाए जिससे यातायात वर्ष भर चालू रह सके। सीमांत किसान भी मंडियों एवं सहकारी क्रय केंद्र में उपज बेचकर अपनी उपज का अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकें। इसके लिए आवश्यक है कि उन्हें सस्ती एवं अच्छी यातायात सुविधाएं प्राप्त हो सके जिससे वे अपनी कृषि उपज को मंडी में बेच सके।

मिट्टी जांच केंद्र का अभाव:- सर्वेक्षित क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बातचीत करने पर मिट्टी जांच केंद्र के अभाव की एक प्रमुख समस्या सामने आयी है। किसान चाहते हैं की सभी मंडी समितियों में मिट्टी जांच केंद्र की सुविधा होनी चाहिए क्योंकि अभी-भी जिले स्तर पर एक जांच केंद्र भी मुश्किल से मिलता है। वह भी किसानों को बहुत दूर पड़ता है जिससे किसान मिट्टी की जांच नहीं करा पाते और सरकार द्वारा भी समय-समय पर मिट्टी की जांच हेतु कभी कैम्प नहीं लगवाए जाते हैं।

उपर्युक्त समस्या के समाधान हेतु यह सुझाव है-

मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए मिट्टी की जाँच होनी आवश्यक होती है इसके लिए सरकार को सभी मंडी समितियों में मिट्टी जांच केंद्र बनवाने चाहिए।

शेडों का अभाव:- मंडी में विपणन कार्य-कलाप खुले प्रांगण में ही सम्पन्न किया जाता है। हालांकि मंडियों के पास कवर्ड फार्म भी है परन्तु वह सीमित मात्रा में हैं, उसका उपयोग भी कम होता है। किसानों को गैर-सीजनल, मावठा एवं वर्षाकाल में माल खराब होने का डर बना रहता है उस समय तो स्थिति बड़ी खराब हो जाती है, जब किसान माल लेकर मंडी में उपस्थित होता है और पानी आ जाने के कारण हुए नुकसान को किसान को ही भुगतना पड़ता है।

इस समस्या के सुधार हेतु यह सुझाव है-

शासन से ऋण लेकर या अन्य उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं से ऋण लेकर शेडों को निर्माण किया जाना चाहिए। साथ ही गोदामों की कमी को भी दूर किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष उपर्युक्त समस्याओं से स्पष्ट है कि कृषि विपणन प्रणाली विभिन्न समस्याओं से ग्रसित है, जिसके दुष्परिणाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही भुगतने पड़ते है। स्पष्ट है कि किसानों के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए समग्र दर्शन तथा गंभीर प्रयास की आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार, स्थानीय व्यक्ति विभिन्न संस्थाएं एवं किसान वर्ग समान रूप से सहभागी होना चाहिए। तभी इस वर्ग के विकास की आशाएँ की जा सकती है। सामान्यत: किसान कृषि को व्यवसाय न मानकर मात्र एक जीवन निर्वाह का साधन मानते हैं, जो कि कृषि विकास में महत्वपूर्ण बाधा है। अत: किसानों कि इस मान्यता को बदला जाए। जिससे वे कृषि को एक व्यवसाय के रूप में देखने का प्रयत्न करेंगे, जिसकी वजह से वे उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित होंगे फलस्वरूप विपणन योग्य आधिक्य भी बढ़ेगा और किसान उन्नति की ओर अग्रसर भी होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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