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मादक पदार्थों की तस्करी का भारत की सुरक्षा पर प्रभाव | |||||||
Impact of Drug Trafficking on Security of India | |||||||
Paper Id :
17832 Submission Date :
2023-07-16 Acceptance Date :
2023-07-22 Publication Date :
2023-07-25
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सारांश |
मादक द्रव्य व्यसन किसी पदार्थ के सेवन की बुरी आदत है जो अत्यधिक सेवन की स्थिति में व्यक्ति एवं समाज दोनों के विघटन का उद्गम स्रोत है। नशीले पदार्थ आज किसी भी राष्ट्र की एकता, अखण्डता एवं सम्प्रभुता के समक्ष एक प्रमुख समस्या के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। नशीले पदार्थों का कुप्रभाव किसी भी राष्ट्र की सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक स्थिति एवं उसकी सुरक्षा व्यवस्थाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मादक द्रव्यों के अन्तर्गत चरस, गांजा, अफीम, हेरोईन, मारफीन, हशीश, कोका, केन्नोबीस, सिंथेटिक उत्पादन आदि आते हैं। दक्षिण एशिया में ‘स्वर्ण त्रिभुज’ (Golden Triangle) से उत्पादित एक किलो हेरोईन का मूल्य एक लाख रूपये है, वहीं पर अमेरिका में इसका मूल्य करीब एक करोड़ रूपये तक होता है।
मादक द्रव्यों से प्राप्त धन की लान्डरिंग विदेशी बैंकों, भूमि व्यवसाय, होटल, यातायात और मनोरंजन व्यवस्था के माध्यम से होती है। लाखों भारतीय, पाकिस्तानी, फिलीस्तीनी और अन्य एशिया के जो बाहर के देशों में कार्य करते हैं, अपने घर धन को पहुँचाने के लिए हवाला (Hawala) का प्रयोग करते हैं। नशीले पदार्थों की तस्करी से प्राप्त धन द्वारा आतंकवादियों को सहायता दी जा रही है। आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता होती है। यह बहुत बड़ी विडम्बना है कि भौगोलिक व ऐतिहासिक रूप से स्वर्ण त्रिभुज- लाओस, थाईलैण्ड, म्यांमार तथा स्वर्ण अर्द्ध-चन्द्राकार- पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान जो मादक द्रव्यों के उत्पादन के प्रमुख स्रोत हैं, एशिया में ही स्थित हैं तथा भारत इनके मध्य में है। मादक द्रव्य की तस्करी ने राज्य की भौतिक सुरक्षा के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया है। नारको टेरोरिजम के बढ़ते प्रभाव ने राज्यों की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Drug addiction is a bad habit of consuming any substance, which in case of excessive consumption is the source of disintegration of both the individual and the society. Drugs are playing their role as a major problem in front of the unity, integrity and sovereignty of any nation today. The bad effect of drugs can be clearly seen on the social system, economic condition and its security arrangements of any nation. Charas, ganja, opium, heroin, morphine, hashish, coca, cannabis, synthetic products etc. come under intoxicants. In South Asia, the price of one kilo of heroin produced from the 'Golden Triangle' is one lakh rupees, while in America it is worth about one crore rupees. Money collected from drug is laundered through foreign banks, land businesses, hotel, transport and entertainment systems. Millions of Indians, Pakistanis, Palestinians and other Asians who work abroad use hawala to send money home. Terrorists are being funded by money obtained from drug trafficking. They need money to conduct terrorist activities. It is a great irony that geographically and historically the Golden Triangle - Laos, Thailand, Myanmar and the Golden Crescent - Pakistan, Afghanistan, Iran which are the main sources of drug production are located in Asia and India is in the middle of them. Drug trafficking has posed a threat to the physical security of the state. The growing influence of narco-terrorism has put a question mark on the security of the states. |
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मुख्य शब्द | मादक पदार्थों की तस्करी, भारत की सुरक्षा, चरस, गांजा, अफीम, हेरोईन, मारफीन। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Drug Trafficking, Security of India, Charas, Ganja, Opium, Heroin, Morphine. | ||||||
प्रस्तावना | वर्तमान सुरक्षा
परिदृश्य में राष्ट्रों के समक्ष ‘मादक
द्रव्य’ ऐसी चुनौती है, जो
तस्करी के माध्यम से एक संगठित अपराध के रूप में प्रारम्भ हुआ था आज वह
राष्ट्र-राज्य के लिए एक चुनौती बनकर उभरा है। इसने राज्यों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है। ‘‘मादक द्रव्य व्यसन तीन शब्दों का संयुक्त रूप है। इसमें मादक शब्द का
अभिप्राय है - नशा उत्पन्न करने वाले पदार्थ, द्रव्य का
अभिप्राय है एक ऐसा रासायनिक पदार्थ जो शरीर के कार्य, मनःस्थिति,
प्रत्यक्षीकरण व चेतना को प्रभावित करता है, तथा व्यसन शब्द का अर्थ है बुरी आदत या लत। इस प्रकार कहा जा सकता है
कि मादक द्रव्य व्यसन किसी पदार्थ के सेवन की बुरी आदत है जो अत्यधिक सेवन की
स्थिति में व्यक्ति एवं समाज दोनों के विघटन का उद्गम स्त्रोत है।"[1]
‘‘नशीले पदार्थ आज किसी भी राष्ट्र की एकता, अखण्डता एवं सम्प्रभुता के समक्ष एक प्रमुख समस्या के रूप में अपनी
भूमिका निभा रहे हैं। नशीले पदार्थों का दुष्प्रभाव किसी भी राष्ट्र की सामाजिक
व्यवस्था, आर्थिक स्थिति एवं उसकी सुरक्षा व्यवस्था पर
स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। नशीले पदार्थों के व्यापार से प्राप्त अथाह धन का
इस्तेमाल आतंकवाद, कट्टरवाद एवं अलगाववाद बढ़ाने में किया
जा रहा है। इस तरह नशीले पदार्थों के व्यापार, वितरण एवं
उपभोग से सिर्फ स्वास्थ्य, समाज एवं अर्थव्यवस्था को
नुकसान हो रहा है बल्कि नशीले पदार्थों के व्यापार से प्राप्त काला धन विश्व
शान्ति एवं सौहार्द के लिए भी खतरा उत्पन्न करने का कारण बनते जा रहे हैं।"[2]
‘‘मादक द्रव्यों के अन्तर्गत चरस, गांजा,
अफीम, हेरोईन, मारफीन,
हशीश, कोका, केन्नोबीस,
सिंथेटिक उत्पादन आदि आते हैं। नशीले पदार्थ आज अपने परिवर्तित
रूप में एफिटामाइंस, डेक्सट्रोफिटामाइंस, मेटोफिटामाइंस और इनके जैसे पदार्थों को एफिटामाइंस के नाम से जाना
जाता है। नशेड़ियों के बीच में टफिटामाइंस सर्वाधिक प्रचलित है।"[3] ये मादक पदार्थ रंगीन गोलियों या सफेद पाउडर जेसे होते हैं जो पानी में
आसानी से घुल जाते हैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य | आज विश्व में मादक
पदार्थों की तस्करी सबसे ज्वलंत समस्या है। जिससे विश्व के अनेक देशों के निर्दोष
नागरिक मारे जा रहे है। इस प्रकार मादक पदार्थों की तस्करी ने सम्पूर्ण मानव जाति
की प्रगति को गहरी चोट पहुँचाई है। इसलिए शोध का विषय मानव जाति के कल्याण एवं उसकी
वर्तमान समस्या के समाधान से जुड़ा होना चाहिए यही सोचकर मैंने यह शोध विषय चुना। |
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साहित्यावलोकन | 1. “काउण्टर टैरोरिज्म” लेखक एस. के. शिवा,
2003, औथर्स प्रेस, लक्ष्मीनगर, दिल्ली। लेखक ने इस पुस्तक में आतंकवाद विरोधी विचारों का एक वैज्ञानिक विश्लेषण
प्रस्तुत किया है। इस्लामिक आतंकवाद, आतंकवाद के वित्तीय साधनों पर भी विस्तृत
प्रकाश डाला गया है। 2. ”आतंकवाद व आपदा प्रबंधन,” डॉ.
सुरेन्द्र कुमार मिश्रा, 2010, राधा पब्लिकेशन्स, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 इस पुस्तक मे लेखक ने आतंकवाद की अवधारणा, आतंकवाद के कारण, आतंकवाद
के प्रकार, 21 वीं शताब्दी की आतंकी आपदायें, वैश्विक स्तर पर आतंकवाद, आत्मघाती-हमले, मादक पदार्थों की तस्करी, राष्ट्रीय सुरक्षा को
चुनौती, सामयिक समीक्षा एवं सुझाव आदि पहलुओं का उल्लेख किया
है। |
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मुख्य पाठ |
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में वर्तमान समय में मादक द्रव्य की तस्करी ने
राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर दी है। पूर्वोत्तर क्षेत्र ‘स्वर्ण
त्रिभुज’ (Golden Triangle) क्षेत्र से जुड़ा हुआ
है, अतः मादक पदार्थों के तस्करों को यह क्षेत्र सुलभ मार्ग
उपलब्ध कराता है। नेपाल, भूटान, चीन,
बांग्लादेश, म्यांमार आदि क्षेत्रों में
प्रवेश हेतु पूर्वोत्तर क्षेत्र की सीमा का उपयोग किया जा रहा है। पूर्वोत्तर
क्षेत्र के नृजातीय समूह अपने संघर्ष को जारी रखने हेतु आवश्यक धन हेतु तस्करी के
मार्ग का चयन कर इसे और अधिक घातक बना रहे हैं। बाहरी शक्तियाँ इसका लाभ उठाकर
मादक पदार्थों की तस्करी में इनका उपयोग कर रही हैं। संसार में नशीले पदार्थ (Poppy) के तीन ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं, जहाँ इनका उत्पादन
व्यापक मात्रा में होता है। 1. South-East Asia (Golden Triangle (स्वर्ण त्रिभुज)- इस क्षेत्र के अन्तर्गत बर्मा (म्यांमार), लाओस तथा
थाईलैण्ड आते हैं। 2. South-West Asia (Golden Crescent स्वर्ण अर्द्ध-चन्द्राकार)- इसके अन्तर्गत ईरान, अफगानिस्तान
तथा पाकिस्तान आते हैं। 3. Part of Latin America- इसमें
कोलम्बिया, मैक्सिको तथा ब्राजील इत्यादि आते हैं। ‘‘पाकिस्तानी विद्वान इकराम-उल-हक ने मादक द्रव्यों के
व्यापार/तस्करी के विभिन्न चरणों (उत्पादन से लेकर अमेरिकी बाजारों में बिक्री तक)
का ब्यौरा दिया, जो निम्न प्रकार से है।’’[4] 1. एक एकड़ में उत्पन्न अफीम के फूलों से लगभग 7 किलोग्राम कच्ची अफीम प्राप्त होती है। जिसे किसान 12,000 से 15,000 रूपये में बेचता है। 2. दूसरा चरण अफीम के परिशोधन (Processing of
Opium) का है जिससे कच्ची अफीम को परिशोधित कर विभिन्न स्थानीय
फैक्ट्रियों में हेरोईन तथा हशीश का निर्माण किया जाता है। इस स्तर पर हेराईन 50,000
से 70,000 रूपये प्रति किलोग्राम में बेची
जाती है। 3. तीसरे चरण में हेरोईन की राज्य (Country) के बाहर कोरियर तथा अन्य माध्यमों से तस्करी की जाती है। डीलर नेटवर्क में
इसकी कीमत 13,50,000 रूपये के करीब होती है। 4. अन्ततः इन हेरोईन को छोटे-छोटे पैकटों में भरकर अमेरिकी
बाजार में बेचा जाता है। इसमें 47,00,000 रूपये प्राप्त होते
हैं। ‘‘दक्षिण एशिया में ‘स्वर्ण
त्रिभुज’ (Golden Triangle) से उत्पादित एक
किलो हेरोईन का मूल्य एक लाख रूपये है, वहीं पर अमेरिका में
इसका मूल्य करीब एक करोड़ रूपये तक होता है।’’[5] यह आँकड़े स्थान, माँग और आपूर्ति पर निर्भर करते
हैं साथ ही कानून व्यवस्था पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। ‘‘मादक पदार्थों से प्राप्त धन की लान्डरिंग विदेशी
बैंकों, भूमि व्यवसाय, होटल, यातायात और मनोरंजन व्यवस्था के माध्यम से होती है। बैंकों से अधिक
व्यक्तिगत वित्तीय कम्पनियों में ड्रग माफियाओं को अपने धन को व्यवस्थित करने में
सहायता मिलती है। स्विट्जरलैण्ड, हांगकांग, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान
और थाईलैण्ड आदि ऐसे कुछ महत्त्वपूर्ण देश हैं जो व्यवस्थित रूप से यह प्रक्रिया
चला रहे हैं। इन्हें सिंडिकेट (Drug Syndicate) कहा
जाता है। मादक द्रव्यों से प्राप्त धन की लान्डरिंग निम्न तरीकों से होती है।’’[6] बैंक में धन जमा करना तथा ऋण लेना, द्वैध मूल्य सूची (Double
Invoicing), विदेशी व्यापारों में पूँजी निवेश, भूमि व्यवसाय में पूँजी निवेश, यात्रा और मुद्रा
विनिमय संस्थाये, हवाला (Hawala) द्वारा लेन-देन, धन की तस्करी, धन का विनिमय वस्तुओं द्वारा, मनोरंजन व्यवसाय,
टैक्स से मुक्त प्रक्रियाओं इत्यादि इस प्रकार यह पूरी प्रक्रिया
मनी लान्डरिंग कहलाती है। ‘‘लाखों भारतीय, पाकिस्तानी, फिलीस्तीनी और अन्य एशिया के जो बाहर के देशों में कार्य करते हैं,
अपने घर धन को पहुँचाने के लिए हवाला (Hawala) का प्रयोग करते हैं। यह तीव्र है, इस पर कोई कर नहीं
लगता तथा बैंकिंग प्रक्रिया से भी गुजरना नहीं पड़ता। अन्तर्राज्य हवाला में धन
बिना अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पार किए एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाता है। इस
प्रक्रिया में विदेशों में स्थित भारतीय जो अपने परिजनों को पैसा भेजना चाहता है
उस पैसे को जो डॉलर में होता है, हवालादार को दे देता है। उस
हवालादार को भारत में स्थित ऐजेन्ट उतना ही पैसा भारतीय रूपये में उस विदेश में
रहने वाले व्यक्ति के परिजनों को दे देता है, तथा अपना कमीशन
काट लेता है। ये तीव्र, सस्ता, बैंकों
की प्रक्रिया से बचाता है, साथ ही टैक्सों से भी बचाता है।
हवाला के माध्यम से लेन-देन भारत और दक्षिण एशिया में काफी दिनों से चल रहा है,
परन्तु आतंकवादियों द्वारा हवाला के माध्यम से पैसा उपलब्ध कराने के
कारण यह प्रकाश में आया। कश्मीर में आतंकवादी गुटों (हुर्रियत) तथा भारत में I.S.I. की गतिविधियों में लगे लोगों को हवाला के माध्यम से ही धन उपलब्ध कराया
जाता है। इस कार्यवाही से यह प्रकाश में आया है।’’[7] तस्करी और आतंकवाद:- ‘‘नशीले पदार्थ की तस्करी से प्राप्त
धन द्वारा आतंकवादियों को सहायता दी जा रही है। आतंकवादी गतिविधियों को संचालित
करने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता होती है। यह धन उन्हें वैध तरीके से नशीले
पदार्थ के उत्पादन, व्यापार या तस्करी से आसानी से प्राप्त
हो जाता है। आतंकवादी संगठनों और नशीले पदार्थों के तस्करों के पारस्परिक गठजोड़
निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित हैं।’’[8] 1. मादक द्रव्यों के उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था पूर्णतया या
आंशिक रूप से इन नशीले पदार्थों की तस्करी पर ही निर्भर है। यदि इन देशों में अन्य
आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा नहीं दिया गया तो कानून की सख्ती भी इसके व्यापार को
रोक नहीं पायेगी और पूरी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी। 2. बिना किसी कागजी कार्यवाही के नशीले पदार्थों से बड़ी मात्रा
में नकद धन प्राप्त होता है। इसमें लेन-देन नकद में होता है, किसी भी कागजी कार्यवाही की आवश्यकता नहीं होती है। 3. नशीले धन से प्राप्त काले धन को विभिन्न माध्यमों, उदाहरण के लिए छद्म व्यापारिक संघों के माध्यम से, बैंकों
के माध्यम से लान्डरिंग की जाती है साथ ही हवाला के माध्यम से धन को एक जगह से
दूसरी जगह स्थानान्तरित भी किया जाता है। 4. आतंकवाद को प्रायोजित करने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता
होती है, वो भी नकद। जो उसे नशीले पदार्थों के व्यापार से
आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसमें वे अण्डरवर्ल्ड का भी सहयोग प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार आतंकवादी संगठनों तथा अण्डरवर्ल्ड का गठजोड़ उभरकर सामने आता है। 5. आतंकवाद को समर्थन देने में राजनेताओं का महत्त्वपूर्ण हाथ
होता है। जिस कारण से अण्डरवर्ल्ड के लोग आतंकवादियों को सहयोग देकर अप्रत्यक्ष
रूप से राजनीतिक परिदृश्य में अपनी पहुँच बनाते हैं। ये तीनों मिलकर नशीले
पदार्थों के व्यापार में लगे हैं। राजनीति के अपराधीकरण का एक प्रमुख कारण भी यह
गठजोड़ ही है। एशियाई क्षेत्र में मादक पदार्थों का प्रभाव:- यह
बहुत बड़ी विडम्बना है कि भौगोलिक व ऐतिहासिक रूप से स्वर्ण
त्रिभुज-लाओस, थाईलैण्ड, म्यांमार
तथा स्वर्ण अर्द्ध-चन्द्राकार-पाकिस्तान, अफगानिस्तान,
ईरान जो मादक द्रव्यों के उत्पादन के प्रमुख स्रोत हैं, एशिया में ही स्थिति हैं तथा भारत इनके मध्य में है। एशियाई क्षेत्रों में
नशीले पदार्थों, छोटे शस्त्रों और स्वर्ण तस्करों के मध्य एक
सुव्यवस्थित संबंध स्थापित हो चुका है। इस क्षेत्र में बढ़ती हुई माँग शस्त्रों के
परिवहन में गतिशीलता और खुली सीमायें मादक पदार्थों के उत्पादन, व्यापार और तस्करी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अफगानिस्तान:- अफगानिस्तान विश्व का सबसे बड़ा (2004
में 4200 मिट्रिक टन) अफीम उत्पादक राष्ट्र
था। इसके नोगाहार और हेमलैण्ड प्रान्त में पूरे देश का 75 प्रतिशत
अफीम उत्पादित किया जाता है। अफगानिस्तान की अस्थिर परिस्थितियाँ, केन्द्र में किसी शक्तिशाली सरकार का न होना, (कबाइली
सरदारों पर नियंत्रण का अभाव, आर्थिक रूप से पिछड़ापन) अफीम
के उत्पादन के लिए सहायक सिद्ध हो रही है। अफगानिस्तान में किसी भी प्रकार की
राजनीति और आर्थिक स्थिरता तब तक नहीं आ सकती है जब तक अफीम आय का मुख्य स्रोत रहेगा। म्यांमार:- विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अवैध अफीम
उत्पादक राष्ट्र है। म्यांमार अकेले विश्व का 50 प्रतिशत
अफीम उत्पादित करता है। सरकार के कठोर प्रतिरोध, माँग में
कमी, विकास और सिंथेटिक दवाईयों की और उपभोक्ता के बढ़ने के
कारण इसके उत्पादन में कमी आई है। ‘‘म्यांमार स्वर्ण
त्रिभुज का सबसे बड़ा परिशोधन केन्द्र है। म्यांमार A.T.S.
(Amphetamine Type Stimulations) की क्षेत्रीय तस्करी बड़े
पैमाने पर करता है। म्यांमार-चीन और म्यांमार-थाईलैण्ड सीमा पर स्थित ड्रग गैंग
वार्षिक रूप से लाखों मेथाफेटामाइन की टेबलेट का निर्माण कर रहे हैं।’’[9] लाओस:- लाओस एक स्थलबद्ध राष्ट्र है जिसका 80
प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ी है जो नशीले पदार्थों के उत्पादन और तस्करी
के लिए अच्छा वातावरण सुलभ कराता है। सरकार के कड़े प्रयास से लाओस में मादक
द्रव्यों के उत्पादन में कमी आई है। परन्तु अब भी यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा अफीम
उत्पादक राष्ट्र है। थाईलैण्ड:- थाईलैण्ड स्वर्ण त्रिभुज का एक राष्ट्र है, यह हेरोईन
का प्रमुख स्रोत राष्ट्र है। थाईलैण्ड उत्पादित A.T.S. सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोगकर्त्ता राष्ट्र है। इस A.T.S. को टेबलेट्स के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इसे स्थानीय लोग याबा
कहते हैं। थाईलैण्ड को हेरोईन का स्रोत राष्ट्र माना जाता है परन्तु यहाँ पर कुछ
वर्षों में अफीम की खेती में गिरावट आई है। बांग्लादेश:- बांग्लादेश नशीले पदार्थ का उत्पादन तो नहीं करता परन्तु
उभरता हुआ उपभोक्ता राष्ट्र है। स्वर्ण त्रिभुज से नशीले पदार्थों की तस्करी
बांग्लादेश के माध्यम से भारत तथा श्रीलंका को होती है। श्रीलंका:- संयुक्त राष्ट्र द्रव्य नियंत्रण बोर्ड के अनुसार यूरोप में
अधिकांश तस्करी हेरोईन की भारत से लाकर श्रीलंका के माध्यम से होती है। भारत के
गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु और गोवा में
उत्पादित मेथाक्वालोन को दक्षिण अफ्रीका में तस्करी कर तमिल टाइगर्स द्वारा
पहुँचाया जा रहा है तथा श्रीलंका का प्रयोग पारागमन राष्ट्र के रूप में किया जा
रहा है। श्रीलंका वर्तमान में मादक द्रव्यों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया है।
श्रीलंका में तेजी से बढ़ रहे नशीले पदार्थ और बढ़ते उपभोग से यह सम्भावना व्यक्त की
जा रही है कि श्रीलंका मनी लांडरिंग का केन्द्र बन सकता है। ‘‘श्रीलंका के तस्करों
ने भारत व पाकिस्तान के तस्करों से निकट संबंध स्थापित कर लिये हैं और इनकी सहायता
से मादक द्रव्यों को श्रीलंका से यूरोप तथा दक्षिण अफ्रीका में पहुँचाया जाता है।
श्रीलंका में अलगाववादी गतिविधियाँ चला रहे L.T.T.E. के सदस्यों का इसमें प्रमुख योगदान है। चूँकि L.T.T.E. के स्रोत विश्व भर में फैले हैं अतः इसी नेटवर्क का प्रयोग शस्त्रों और
मादक द्रव्यों की तस्करी के लिए होता है।’’[10] नेपाल:- नेपाल के साथ भारत की खुली सीमा तथा
पाकिस्तान व म्यांमार से सन्निकटता इसको एक आकर्षक नशीले पदार्थों की तस्करी का
वैकल्पिक पारागमन मार्ग बना देता है। अमेरिकी सरकार द्वारा पकड़े गये कुछ नेपाली
तथा अन्य तस्करों ने यह उद्घाटित किया है कि नेपाल में भारत, पाकिस्तान, म्यांमार और थाईलैण्ड से अफीम लाई जाती
है, जहाँ से यह यूरोप व अमेरिका को भेजी जाती है। भारत व नेपाल के बीच 1751 किलोमीटर लम्बी सीमा है जिस पर निगरानी की कोई प्रभावी
व्यवस्था नहीं है। जिसका प्रयोग तस्कर अपने प्रयोग के लिए करते हैं। पाकिस्तान,
म्यांमार से नेपाल लाई गई अफीम उत्तर प्रदेश से दिल्ली, बम्बई, तमिलनाडु के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय
बाजारों तक पहुँचाई जाती है। नेपाल अपराधियों के लिए स्वर्ग स्थल के समान है,
इसके बैंक तथा संचार व्यवस्था भारत, हांगकांग,
सिंगापुर के तस्करों और मनी लान्डरों को अपनी सुविधा उपलब्ध कराते
हैं। यहाँ पर मनी लान्डरिंग पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है और ना ही सरकार इसको रोकने
का प्रयास करती है। पाकिस्तान:- पाकिस्तान नशीले पदार्थों के उत्पादन,
तस्करी तथा उपयोग में विश्व में अग्रणी राष्ट्रों में अपना नाम रखता
है। पाकिस्तान में संगठित अपराधियों और नशीले पदार्थों के उत्पादकों का गठजोड़ बहुत
ही प्रभावशाली रहा है। I.S.I. नशीले पदार्थों और
तस्करी को बढ़ावा दे रहा है जिसमें भारत और अफगानिस्तान के आतंकवादियों को धन
आपूर्ति की जा सके। इस कार्य में सेना भी शामिल रही है, जो
पाकिस्तान की राजनीति को नियंत्रित करती है। पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी I.S.I. पूर्वोत्तर क्षेत्रों में नशीले पदार्थों का एक शक्तिशाली नेटवर्क स्थापित
कर सीधे तौर पर भारत की सामाजिक, आर्थिक व सुरक्षा व्यवस्था
पर व्यापक प्रभाव डाल रही है। भारत:- भारत दो मुख्य मादक द्रव्य उत्पादक क्षेत्रों पश्चिम में
स्वर्ण अर्द्ध-चन्द्राकार (Golden Crescent) और पूर्व में स्वर्ण त्रिभुज (Golden
Triangle) के मध्य में स्थित है। अतः इन दोनों समूहों के लिये
यह एक पारागमन राष्ट्र के रूप में कार्य करता है। यहाँ से मादक द्रव्य विश्व बाजार
में तस्करी कर ले जाये जाते हैं। ‘‘भारत की सीमायें जो
पाकिस्तान के साथ 3147 किलोमीटर, नेपाल
के साथ 1751 किलोमीटर, बांग्लादेश के
साथ 5351 किलोमीटर, म्यांमार के साथ 1643
किलोमीटर लगी सीमायें बहुत ही दुर्गम हैं।’’[11] जिससे इन पर पूर्ण निगरानी सम्भव नहीं है, जिससे
तस्करी करना आसान है। भारत में पाकिस्तान से राजस्थान, गुजरात,
पंजाब के रास्ते मादक द्रव्य मुम्बई और तमिलनाडु पहुँचाये जाते हैं। इस प्रकार भारत नशीले पदार्थों की तस्करी के केन्द्र में स्थित है। जहाँ
पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी I.S.I. तथा श्रीलंका का अलगाववादी संगठन L.T.T.E. गठजोड़ बनाकर तस्करी में एक दूसरे की सहायता करते हें। श्रीलंका के तमिल
टाइगर्स तमिलनाडु में स्थित श्रीलंका के तमिल शरणार्थियों के सहयोग से बड़े पैमाने
पर भारत से श्रीलंका मादक द्रव्यों की तस्करी कराते हैं। भारत के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र जैसे- उत्तर प्रदेश (बाराबंकी, गाजीपुर,
बनारस, बरेली, रामपुर,
शाहजहाँपुर और देहरादून), मध्य प्रदेश,
राजस्थान तस्करों का स्वर्ग, जयपुर बिक्री का
सबसे बड़ा केन्द्र, हिमाचल प्रदेश कुल्लू मनाली घाटी गांजे की
खेती यहाँ पर उत्पादित मलाना क्रीम विश्व प्रसिद्ध है। केरल इड्डुकी जिला विश्व
में केन्नीबीस के उत्पादन के लिये जाना जाता है तथा तमिलनाडु आदि क्षेत्र नशीले
पदार्थ के उत्पादन या तस्करी में संलग्न है। दिल्ली मादक द्रव्यों की बिक्री का
बड़ा केन्द्र है। मादक पदार्थों का भारतीय सुरक्षा पर प्रभाव:- मादक
द्रव्य की तस्करी ने राज्य की भौतिक सुरक्षा के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया है।
नारको टेरोरिज्म के बढ़ते प्रभाव ने राज्यों की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया
है। आतंकवादी मादक पदार्थों के उत्पादन तथा तस्करी से प्राप्त धन का प्रयोग आतंक
को प्रायोजित करने में कर रहे हैं। मादक द्रव्यों के तस्करों, छोटे हथियारों के तस्करों तथा आतंकवादी गुटों के बीच गठजोड़ बन गया है,
जो किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा को चुनौती दे सकता है। मादक द्रव्य
के व्यापार से प्राप्त अथाह धन किसी भी गुट को राज्य के खिलाफ हिंसा उत्पन्न करने
में सक्षम बना देता है। 24 फरवरी 2013, रविवार को नशीली दवाओं की तस्करी के एक बड़े
मामले का भंडाफोड़ करते हुए मणिपुर पुलिस ने रविवार सुबह कर्नल रैंक के रक्षा विभाग
के जनसम्पर्क अधिकारी समेत 6 लोगों को गिरफ्तार किया है।
पुलिस ने चाण्डेल जिले के पालेल इलाके में इनके तीन वाहनों से 15 करोड़ रूपये से ज्यादा मूल्य की प्रतिबन्धित दवायें बरामद की हैं।
प्रतिबन्धित दवाओं की इस खेप को म्यांमार भेजने की योजना थी, जहाँ इनकी बेहद माँग है।’’[12] मादक द्रव्यों के उत्पादन से पर्यावरणीय सुरक्षा को खतरा है। हेक्ट्ररो मेरोन
के अनुसार मादक पदार्थ के व्यापार को केवल पर्यावरणीय सुरक्षा के आधार पर अनुचित
ठहराया जा सकता है। खेती योग्य भूमि का प्रयोग अफीम तथा अन्य मादक द्रव्यों के
उत्पादन में हो रहा है। इसमें बड़ी मात्रा में उर्वरक का प्रयोग होता है। साथ ही
इसके परिशोधन में रसायनों का प्रयोग होता है जो बाद में भूमि में समा जाते हैं।
साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ों के ढालों पर मादक द्रव्यों की खेती के लिये पेड़-पौधों
को काट दिया जाता है, जिससे वर्षा के समय भूस्खलन तथा उपजाऊ भूमि का क्षरण हो रहा
है। कोका पत्तियों तथा अफीम को रसायनों द्वारा शोधित कर कोकीन तथा हेरोईन का
निर्माण होता है। बाद में ये रसायन नदियों में छोड़ दिये जाते हैं, जिससे जल प्रदूषित हो जाता है। अत्याधुनिक संचार साधनों, हथियारों एवं विस्फोटों ने आतंकवादियों की कार्यवाहियों को
घातक व आसान बना दिया है। इसने आतंकवादियों की मारक क्षमता को बढ़ाया है और नशीले
पदार्थों से प्राप्त शीघ्र और आसान धन उनकी इन कार्यवाहियों के लिए एक आर्थिक स्रोत का कार्य करता है। इसके साथ ही अण्डरवर्ल्ड भी मादक द्रव्यों की तस्करी,
छोटे हथियारों की तस्करी व मनी लान्डरिंग का ताना-बाना बना रखा है
जो किसी राष्ट्र की सुरक्षा को प्रभावित करता है। अतः राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने
वाले प्रभावों को निम्न सन्दर्भों में देखा जा सकता है। मादक द्रव्यों का उत्पादन तथा तस्करी राज्यों के लिये एक गम्भीर खतरा बन कर
उभरी है। मादक द्रव्य की तस्करी ने राज्यों में अपने व्यापार को चलाने के लिये
विभिन्न स्तर पर संगठन का निर्माण कर लिया है जिसमें स्थानीय स्तर पर व्यक्तिगत
रूप से इसमें लोग लगे हैं। द्वितीय स्तर कबाइली गुटों का है जो अपनी शक्ति में
वृद्धि के लिए तत्पर रहता है। इसमें वह मादक द्रव्यों के धन का प्रयोग करते हें।
तृतीय स्तर पर वैश्विक स्तर पर तस्करी करते हैं तथा अपने व्यापार के सुचारू संचालन
के लिए राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। मादक द्रव्यों की तस्करी ने
राष्ट्र की आर्थिक सुरक्षा तथा आर्थिक हितों को प्रभावित किया है। काले धन तथा
डर्टी मनी को विभिन्न अवैध तरीकों से लान्डरिंग करके राष्ट्र की उत्पादकता
प्रभावित करते हैं। बड़ी मात्रा में धन इसकी रोकथाम, रोगियों की चिकित्सा तथा पुर्नवास पर खर्च
होता है। साथ ही मादक द्रव्यों की रोक के लिए सरकार को ज्यादा पैसा सुरक्षा पर
खर्च करना पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मादक द्रव्य का उत्पादन तथा तस्करी किस प्रकार
व्यक्ति, समाज, राज्य तथा पर्यावरण के लिए खतरा
उत्पन्न कर रहा है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो इस समस्या से राष्ट्रीय और
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दूरगामी परिणाम होंगे। यद्यपि मादक द्रव्यों पर नियंत्रण
के प्रयास 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही राष्ट्रों के
मध्य सन्धियों, अभिसमयों तथा मादक द्रव्य नियंत्रण
कार्यक्रमों द्वारा शुरू हो चुके हैं परन्तु अभी तक कोई सकारात्मक सफलता नहीं मिल
पाई है। अतः मादक द्रव्यों के बढ़ते कुप्रभावों को नियंत्रित करने के लिए निम्न
सुझाव प्रस्तुत हैं:- 1. मादक द्रव्यों पर नियंत्रण के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति
विकसित करनी होगी। 2. मादक द्रव्यों के उत्पादन में लगे हुए लोगों के लिए जीवनयापन हेतु वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करनी होगी। 3. अवैध रूप से हो रहे मादक द्रव्यों के उत्पादन तथा इसकी
तस्करी पर प्रतिबन्ध लगाना होगा, साथ ही इस तरह के अवैध
कारोबार से प्राप्त धन को जब्त करना होगा। 4. अत्याधुनिक तकनीकी से युक्त एक मजबूत सूचना तंत्र विकसित
करना होगा जो इन मादक द्रव्यों की आपूर्ति, माँग एवं आयात के
रास्तों पर निगरानी रखकर सूचनायें प्राप्त कर सके। 5. मादक द्रव्यों के परिशोधन में प्रयोग होने वाले रसायनों पर
नियंत्रण की निगरानी रखनी होगी। 6. राष्ट्रों को अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक
दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के बजाए समस्या का हल खोजना होगा जिसके लिये
प्रत्यर्पण, द्विपक्षीय कानूनी मदद और तस्करी से सम्बन्धित
सूचनाओं का आदान-प्रदान करना होगा। 7. वैश्वीकरण के इस खुले बाजार की नीति में व्यावसायिक माध्यमों
को सतर्क करना होगा जिससे इनकी सुविधा का प्रयोग अवैध व्यापार के लिये न हो पाये। 8. राज्यों को कानून एवं व्यवस्था का दृढ़ता से पालन करना होगा,
साथ ही स्थानीय माफियाओं पर प्रतिबन्ध लगाना होगा।
9. देशों को अपनी-अपनी भौगोलिक सीमाओं के प्रबन्धन पर विशेष ध्यान
देना होगा जिसके लिये आपसी सहयोग तथा सूचना एवं तकनीकी का सहयोग लेना सहायक सिद्ध
होगा। |
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निष्कर्ष |
उपरोक्त सुझाव मादक
द्रव्यों के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने एवं भारतीय सुरक्षा के मार्ग को
सुनिश्चित करने में अपना योगदान दे सकते हैं। चूँकि पूर्वोत्तर
क्षेत्रों में असम की स्थिति विशेष है। वहाँ के नृजातीय समूह तो नशीले पदार्थों के
व्यापार में पूर्ण रूप से संलग्न है ही, साथ
ही साथ इन स्थानों पर बोडो एवं दीमा-हालोम दाओघ संगठन भी पूरी तरह इस कार्य में
सक्रिय हैं, जिसका व्यापक प्रभाव सुरक्षा पर पड़ रहा है।
आवश्यकता इस पर कठोर प्रतिबन्ध लगाने की है, साथ ही साथ
यह भी ध्यान रखना होगा कि इससे मुकाबला केवल सामूहिक रूप से ही हो सकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. आऊट लुक, 23 फरवरी 2001, पृष्ठ संख्या 24 |