P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VIII , ISSUE- IV July  - 2023
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
मेरठ जनपद के खेल उद्योग में महिला श्रमिकों की समस्यायें एवं निवारण
Problems and Redressal of Women Workers in Sports Industry of Meerut District
Paper Id :  17877   Submission Date :  12/07/2023   Acceptance Date :  21/07/2023   Publication Date :  25/07/2023
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आरती
शोधार्थिनी
अर्थशास्त्र विभाग
मुलतानीमल मोदी कॉलेज
मोदीनगर,उत्तर प्रदेश, भारत
मयंक मोहन
विभागाध्यक्ष
अर्थशास्त्र विभाग
मुलतानीमल मोदी कॉलेज
मोदीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

उत्तर प्रदेश राज्य में जनपद मेरठ का प्रमुख स्थान है क्योंकि यह जनपद अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमी के लिये विख्यात है अपितु यह देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। यदि हम मेरठ शहर की बात करे तो यह राजधानी नई दिल्ली के 70 किलोमीटर पूर्वोत्तर और राज्य राजधानी लखनऊ के उत्तर पश्चिम में 453 किलोमीटर है! मेरठ को भारत का खेल नगर भी कहते हैं। खेल सामग्री के निर्माण में मेरठ खेल उद्योगह में खेल उद्योग का प्रारंभ हुआ प्रारम्भ में यह उद्योग पूर्ण असंगठित रूप में था खेल उद्योगपति सियालकोट (जो कि अब पाकिस्तान में है) से आए थे। उन दिनों दो रिफ्यूजी कॉलोनी बनाई थी, एक विक्टोरिया पार्क में और दूसरी सूरजकुंड रोड पर। मेरठ जनपद खेल उद्योग में क्रिकेट के बल्ले, हॉकी, फुटबॉल, टेबल टेनिस, नेट आदि बनते हैं खेल संबंधी उपकरणों को भारी संख्या में विदेशों में भी निर्यात किया जाता है! यह उद्योग मेरठ में रोजगार के अवसर प्रदान करता हैं। न केवल यह उद्योग युवकों को रोजगार प्रदान करता है अपितु इस उद्योग में एक बहुत बडी संख्या में महिलायें भी श्रमिकों एवं उद्यमियों के रूप में कार्यरत् हैं। जो महिलायें श्रमिकों के रूप में इन उद्योगों में कार्यरत् हैं वें अपने परिवार की आर्थिक दशा को सुद्ढ करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं। लेकिन देखने में आया है कि जो महिलायें इन उद्योगों में कार्यरत् हैं उन्हें अनेक प्रकार की पारिवारिक एवं कार्य स्थल पर उत्पन्न होने वाली समस्याओं का आये दिन सामना करना पडता है जिसका असर उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थय पर तो पडता है साथ ही उनकी कार्यक्षमता भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है। इस लेख का प्रमुख उद्देश्य यही है कि जनपद मेरठ के खेल उद्योग में कार्यरत् महिला श्रमिकों की समस्याओं को उजागर किया जाये तो उनके समाधान के लिये सुझाव भी प्रस्तुत किये जायें।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद District Meerut is a major place in the state of Uttar Pradesh because this district is famous for its historical background, but it also plays an important role in smoothening the economy of the country. If we talk about the city of Meerut, it is 70 km northeast of the capital New Delhi and 453 km northwest of the state capital Lucknow. Meerut is also known as the sports city of India. Sports industry started in Meerut sports industry in the manufacture of sports goods. Initially this industry was completely unorganized. Sports industrialists came from Sialkot (which is now in Pakistan). In those days, two refugee colonies were formed, one in Victoria Park and the other on Surajkund Road. Cricket bats, hockey, football, table tennis, net etc. are made in the sports industry of Meerut district. A large number of sports related equipments are also exported to foreign countries. This industry provides employment opportunities in Meerut. Not only this industry provides employment to the youth, but a large number of women are also working in this industry as laborers and entrepreneurs. The women who are employed in these industries as laborers play an important role in improving the economic condition of their families. But it has been seen that the women who are working in these industries have to face many types of family and workplace problems, which not only affect their physical and mental health, but also adversely affect their efficiency. The main objective of this article is to highlight the problems of women workers working in the sports industry of Meerut district, and also to present suggestions for their solution.
मुख्य शब्द खेल उद्योग एवं महिला श्रमिक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Sports Industry and Women Workers.
प्रस्तावना

राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी का उपरोक्त कथन - समाज और राष्ट्र निर्माण में श्रमिक और श्रम दोनों के महत्व को रेखांकित करता है। किसी भी देश के विकास में जितनी बड़ी भूमिका प्राकृतिक संस्थानों की है उतनी ही भूमिका कार्य बल की होती है किसी राष्ट्र का सामाजिक आर्थिक विकास मुख्य रूप से उसको मानव, भौतिक और वित्तीय संसाधनों पर आधारित होता है। मानवीय संसाधनों पर प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग निर्भर करता है यदि मानवीय कारको पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाए तो प्राकृतिक संसाधनों, बुनियादी ढांचे और पूंजी का भी स्पष्ट रूप से दुरुपयोग हो सकता है। हम स्पष्ट सत्य को नहीं नकार सकते हैं कि महिला न केवल मानवीय दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा है बल्कि महिलाएं हर प्रकार से बेहतर समाज और बेहतर अर्थव्यवस्था की रीढ भी हैं। भारत जैसे देश में महिलाएं कार्यबल की भागीदारी को अर्थव्यवस्था के विकास का इंजन कहां जाए तो गलत नहीं होगा महिला शक्ति किसी भी देश की वृद्धि एवं विकास को परिभाषित करने की क्षमता होती है! यह देश में नीति निर्माताओं के सामने अच्छा कामकाजी वातावरण तैयार करने तथा समृद्धि सुनिश्चित करने के मामले में बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती हैं! एक से अधिक भूमिका निभाने में महिला एक बेहतर उदाहरण है जो पारिवारिक कार्य निष्पादन व्यवस्था का अभिन्न अंग हैं। महिलाएं ग्रहस्थ जीवन की सीमाओं से बाहर निकल कर संगठित और असंगठित क्षेत्रों में भी भागीदारी दे रही हैं। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक उत्थान में महिलाएं कार्यबल की भागीदारी को नकारा नहीं जा सकता। गैर संगठित क्षेत्र में लगभग 42 करोड श्रमिक बल काम करते हैं जिसके अंतर्गत महिला श्रम की भागीदारी लगभग एक तिहाई से ज्यादा है परिवार और समुदाय में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपनी और दूसरों की जिंदगी में अधिक परिवर्तन लाती है। महिलायें परिवार की बुनियादी जरूरत जैसे बच्चों का पालन-पोषण, देखरेख, परिवार संबंधित कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा महिलायें खेल उद्योग में रचनात्मक, कौशल, और उद्यमिता को भी प्रमुखता से देखा जाता है! इन उद्योग में महिला अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने और उद्योग के विकास में योगदान करने का माध्यम प्रदान करती है! खेल उद्योग में महिला निर्णायक प्रतिक्रियाओं और प्रबंधन पदों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके परिणाम स्वरूप अन्य महिला भी खेल उद्योग की ओर आकर्षित हुई है।

अध्ययन का उद्देश्य इस लेख का प्रमुख उद्देश्य तो यही है कि खेल उद्योग में कार्यरत महिला श्रमिकों की उन समस्याओं का भी विश्लेषण किया जायेगा कि जो कि इन उद्योगों में कार्य करते समय महिला श्रमिकों के समक्ष उत्पन्न होती हैं तथा साथ ही उन समस्याओं के निवारण हेतु सुझाव भी प्रस्तुत किये जायेगें जिनके आधार पर महिला श्रमिकों की समस्याओं का काफी हद तक निवारण हो सके। उपरोक्त के अतिरिक्त खेल उद्योग में कार्यरत् महिला श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं को भी विश्लेषित किया जायेगा। अध्ययन की परिकल्पनायें- इस लेख की परिकल्पनाएं निम्नलिखित प्रकार हैं- 1. जनपद मेरठ के खेल उद्योग में कार्यरत् महिला श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है। 2. महिला श्रमिकों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। 3. सरकार के द्वारा इन महिला श्रमिकों के लिये चलायी जा रहीं योजनाओं का पूर्ण लाभ इन्हें नहीं मिल पाता। 4. जनपद मेरठ के खेल उद्योगों ने महिला उद्यमियों को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया है।
साहित्यावलोकन

जनपद मेरठ का खेल उद्योग भले ही बहुत प्रसिद्व और प्रगतिशील रहा हो किन्तु इसके विषय में बहुत कुछ नहीं लिखा गया है किन्तु खेल उद्योग में कार्यरत् महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है उन महिलाओं की कार्यक्षमता के कारण ही राष्ट्रीय आर्थिक विकास में  जनपद मेरठ का खेल उद्योग अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। उद्योगों में महिलाओं की भूमिका को विश्लेषित करने के लिये समय-समय पर विद्धजनों ने अपने विचार अवश्य प्रकट किये हैं जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं-

डॉ0 मधुश्री सिन्हा[1] ने विकास में महिलाओें की भूमिका के सम्बन्ध में अपने लेख में कहा है, ‘‘भारतवर्ष में सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ स्त्रियों की कार्य-भूमिका भी तेजी से बदल रही है। खासकर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्त्री तथा पुरुष की मानसिकता में बहुत परिवर्तन आया है। स्त्रियों में समानता का जुनून बढ़ रहा है, वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं और अपनी स्वतन्त्र पहचान के प्रति उनमें ललक पैदा हुई है। देश की लगभग सभी पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीणों के सर्वांगीण विकास को प्रमुख स्थान दिया गया है परन्तु इस दिशा में अपेक्षाकृत कम ही लाभदायक परिणाम सामने आए हैं क्योंकि इसमें महिलाओं की आधी दुनिया को इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया।’’

डॉ0 हरेन्द्र राज एवं सीमा गौतम[2] ने महिलाओं की शिक्षा पर बल देते हुए कहा है, ‘‘हमारे देश में भी आरम्भ से ही महिलाओं की प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन स्वाधीनता प्राप्ति के 70 वर्ष के बाद भी वर्तमान में लगभग 43 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं और नारी शक्ति में छुपी अपार क्षमताओं का उपयोग हम राष्ट्र-निर्माण में पूरी तरह से नहीं कर पा रहे हैं।

शिक्षा के साथ नौकरियों में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है। संगठित क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार में पुरुषों की भागीदारी महिलाओं की अपेक्षा छह गुणा अधिक है। संगठित क्षेत्र में कार्यरत् महिलाओं में 56 प्रतिशत महिलाएं सामुदायिक, सामाजिक और निजी सेवाओें में कार्यरत् हैं।

आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में आम जनता और गैर-सरकारी संस्थाओं की सक्रिय भूमिका हो। इसके अतिरिक्त सरकार को बालिकाओं के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं शुरु करनी चाहिए। नारी शक्ति के सही विकास से ही देश के विकास और समृद्धि में सहायता मिलेगी और इस असीम शक्ति का उपयोग मानवता के विकास में किया जा सकेगा। शायद यही समाज में नारी शक्ति का सच्चा सम्मान भी होगा। अन्तरिक्ष में जाने वाली पहली व एकमात्र महिला कल्पना चावला की तरह आसमान की ऊँचाइयां ही इनकी मंजिल है।’’

Mr. Rakesh Bhalla[3] told about the hisotry of sports goods in Meerut saying, "The history of Sports Goods Industry in India after independence is one which has faced lot of ups and down pressurising the entrepreneurs. In the initial stage, business was of so small in quantum that gives poor image of the Industry. At that time it is not only India but other countries were also facing the same problem.

It is history which will survive, guide and boost the moral of our future. Generation will further add to the findings of our past and present. Till the existence of civilisation this chain will be continued. Our history of Sports Industry is not so old to be called a legend but it has its own significations and importance in today's world. Roots of this industry has been implanted by the migrants from Sialkot which we can not forget.

Similalry, Sports Hoseiry and anklets, Knee caps, Foot ball Hoses were introduced by Sardar Lal Singh ji and Shree Ram Chadha ji later on in late fiftys & sixtys this industry grew rapidly and few units in Meerut, Calcutta and Ludhiana were also established.

'Cricket Bat of Meerut have reached to big heights and world class top players prefer to have Cricket Bat being manufactured in Meerut. A big publicity of Cricket Bats from Meerut is seen commonly in ODI's and Test Matches. These heights cannot be achieved in a year or two and for this efforts are made for a very long period. This history will show the path to our coming generations.

In the context of women workers working in the sports industry of Meerut district, no research work has been done after 2013-14, so no review has been given in the presented article.

मुख्य पाठ

खेल उद्योग में महिला श्रमिकों की समस्यायें

जनपद मेरठ के खेल उद्योग का उद्योग जगत में अपना एक विशिष्ट स्थान है। यहाँ के खेल उद्योग में निर्मित खेल के सामान की माँग अपने देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी निरन्तर बनी रहती है। जनपद मेरठ में निवास करने वाले श्रमिक वर्ग का एक बहुत बड़ा भाग अपनी आजीविका के लिये इस उद्योग पर निर्भर है। अब से लगभग डेढ़ दशक पूर्व तक यहाँ के खेल सामान के उद्यमियों ने अपने-अपने कारखाने बना रखे थे जिनमें वे अपने निरीक्षण में श्रमिकों द्वारा खेल उत्पाद तैयार कराया करते थे। उस समय खेल उद्योग में पुरुष श्रमिकों की तुलना में महिला श्रमिक बहुत कम थी क्योकि महिलाओं को अपने घर से दूर कारखानों में जाकर काम करने में अधिक समय एवं आवागमन की कठिनाईयों के साथ-साथ अन्य पारिवारिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं का भी सामना करना पड़ता था। किन्तु खेल उद्योग के वर्तमान परिदृश्य में एक नया परिवर्तन दृष्टिगोचर हुआ है। अब अधिकांश खेल सामान के उद्यमियों ने अपने लिये खेल के सामान का उत्पादन ठेका पद्धति द्वारा कराना आरम्भ कर दिया है। इसके अन्तर्गत खेल उद्यमी किसी ठेकेदार को कच्चा माल देकर उससे तैयार माल ले लेते है। यहाँ ठेकेदार उस कच्चे माल को विभिन्न श्रमिक बस्तियों में ले जाकर श्रमिकों के द्वारा खेल उत्पादन तैयार कराते, हैं।

जब से श्रमिक बस्तियों में घर बैठे ही ठेकेदार द्वारा उत्पादन कार्य कराया जाने लगा है तब से इस उद्योग में महिला श्रमिकों की भागीदारी में वृद्धि हुयी है। इस उद्योग में कार्यरत् महिला श्रमिकों की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाये तो स्पष्ट होता है कि इनकी आर्थिक स्थिति को किसी एक निश्चित आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता अपितु ऐसे अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं व्यवहारिक तत्व है जो कि महिला श्रमिकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद की उक्ति- परिवार ही नहीं बल्कि राष्ट्र और विश्व को भी नेतृत्व प्रदान करने की महिलाओं की क्षमता की सुंदरता से व्याख्या करती है, ’’जब तक महिलाओं की स्थिति नहीं सुधरती है! तब तक विश्व के कल्याण की कोई संभावना नहीं है। पक्षी के लिए एक ही पंख से उड़ना संभव नहीं है।’’

किसी भी देश को पूर्व तब तक नहीं कहा जाएगा जब तक उस देश की महिला का पूर्ण विकास नहीं होता। महिला और विकास में घनिष्ठ संबंध है। महिला केवल विकास से प्रभावित नहीं होती है बल्कि विकास को भी प्रभावित करती हैं महिलाओं की संख्या दुनिया की जनसंख्या की कुल आबादी में आधी हैं विश्व के संपूर्ण व्यवसायिक कार्यक्षेत्र में लगभग 2 तिहाई महिलाएं काम करती हैं! विश्व की आय का 10वां भाग महिला श्रम से प्राप्त होता है। महिलाओं की पुरुषों की तुलना में सीमांत उत्पादकता कम होती है और साथ ही मातृत्व और परिवार के अन्य कार्यों में मुख्य भूमिका होने के कारण उनका व्यवसायिक कार्यक्षेत्र प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। खेल उद्योग में शामिल महिला श्रमिक को अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है! वह स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक से संबंधित होती है।

महिला श्रमिकों की समस्याओं को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं सामाजिक तत्वों का अध्ययन इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है-

महिला श्रमिकों की प्रधान समस्या पुरुषों की तुलना में महिला श्रमिकों को कम वेतन मिलना जो उनकी आर्थिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है! प्रत्येक दिन प्रतिकूल वातावरण में कार्य करने के कारण शारीरिक एवं मानसिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है उदाहरण के लिये- खेल उद्योग में अधिकांश उपकरणों का निर्माण हाथों के द्वारा किया जाता है जिससे हाथों में छाले, कटाई, जलन, और चोट लग जाती है। इसके साथ ध्वनि प्रदूषण, धूल, धूप, लकड़ी का कचरा महिलाओं की कार्य क्षमता पर असर डालता है जिससे महिला श्रमिक का  स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।

महिला श्रमिक के अशिक्षित होने के कारण महिला श्रमिक अपने कानून द्वारा प्राप्त अधिकारों को प्राप्त करने में असमर्थ होती हैं। महिलाओं को मातृत्व लाभ, पुरुष समान वेतन, न्याय पूर्ण अवकाश कार्य घंटे आदि की जानकारी का अभाव होता है! जिससे महिला श्रमिकों का शोषण होता है।

महिला श्रमिकों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण और समानता की कमी भी समस्या का कारण बन सकती है। महिलाओं के साथ अनुचित व्यवहार, भेदभाव जो उनकी आजादी और आत्मविश्वास को कम करता है!

न्यायपूर्ण व्यवस्था का अभाव भी महिला श्रमिक के लिए समस्या उत्पन्न करता है, जैसे - अनुचित अवकाश, नियोक्ता द्वारा अधिक कार्य की मांग, जिसके कारण महिला श्रमशक्ति स्वयं  पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती हैं! परिणाम स्वरूप इन्हें शारीरिक समस्या का सामना करना पड़ता है जैसे - कुपोषण, अकाल मृत्यु, विकलांगता  आदि।

परिवारिक दबाव और सामाजिक संरचना महिला श्रमिक के लिए दयनीय स्थिति का उत्थान करते हैं। स्त्री या पुरुष में भेदभाव महिलाओं की पहचान एवं गरिमा के आकार को सीमित कर देता है।

महिला श्रमिकों का अशिक्षित, अज्ञानता, अप्रशिक्षणता, उनकी कौशल क्षमता को प्रभावित करता है! उनमें नवीनतम तकनीकों, कला और डिजाइन के बारे में जानकारी का अभाव पाया जा सकता है! जिससे उनकी विकास की संभावना सीमित हो जाती है! प्स्व् की रिपोर्ट 2022 में जारी आंकड़ों के अनुसार लगभग प्रतिवर्ष 1640 करोड़ घंटे महिलाएं बिना वेतन के काम करती है।

महिला श्रमिकों के कल्याण हेतु सरकारी प्रयास     

प्राचीन काल से ही महिलाएँ किसी न किसी रूप में अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग रही हैं किन्तु औद्योगिक संस्थानों में महिलाओं ने औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् ही कार्य करना प्रारम्भ किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में महिलाओं को आगे बढ़ने के लिये समान अवसर प्राप्त हुए। विगत छः दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में महिला श्रमिकों का योगदान परम्परागत एवं गैर-परम्परागत क्षेत्रों में समान रूप से रहा है। इसका मुख्य कारण महिला श्रमिकों का सस्ता एवं सुलभ होना है। महिलाओं की शारीरिक संरचना के आधार पर इन्हें औद्योगिक संस्थानों में अपेक्षाकृत कम श्रम-साध्य एवं गैर-तकनीकी स्तर के सरल कार्यो पर ही लगाया जाता है। वर्तमान भारतीय समाज में भी उच्च वर्ग की महिलाओं द्वारा औद्योगिक संस्थानों में कार्य करने को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है, अतः विभिन्न भारतीय औद्योगिक संस्थानों, जैसे-खनन उद्योग, कपड़ा उद्योग, तेल, तम्बाकू , खेल, बीड़ी इत्यादि उद्योगों में समाज के मध्यम वर्ग की महिलाएॅ कर्मचारी तथा निम्न वर्ग की महिलायें श्रमिक के रूप में कार्य करती देखी जा सकती हैं।

शोध कार्य से सम्बन्धित उपलब्ध साहित्य के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय महिला श्रमिकों के सामाजिक व्यवहार, व्यावसायिक प्रतिमानों और उनके विकास को प्रभावित करने वाले सामाजिक एवं आर्थिक पक्षों से सम्बन्धित आंकड़ों का अभाव है। फिर भी, एक अनुमान के अनुसार भारत में 94 प्रतिशत महिला श्रमिक असंगठित क्षेत्र में तथा शेष 6 प्रतिशत संगठित क्षेत्र में कार्यरत् हैं।

भारत सरकार द्वारा महिलाओं के कल्याण और विकास कार्यक्रमांे के निर्माण और प्रशासन के लिये त्रि-स्तरीय संरचना का प्रावधान है जो कि केन्दªीय अभिकरण, राज्य अभिकरण तथा स्थानीय अभिकरण के रूप में दिखायी देते हैं। महिला कल्याण एवं विकास के अन्तर्गत आने वाले कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने का मुख्य उत्तरदायित्व भारत सरकार के विभिन्न विभागों और अन्य अभिकरणों का है। केन्दª में आयोजन और क्रियान्वयन के मुख्य अभिकरण योजना आयोग एवं शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय है। समाज कल्याण मंत्रालय में भी दो विशेष अभिकरण केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड़ तथा राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् महिलाओं के हित संरक्षण के दायित्व का निर्वहन करते हैं। राज्य स्तर पर महिलाओं के कल्याण और विकास सम्बन्धी विभिन्न कार्यक्रमों की योजना एवं क्रियान्वयन पृथक-पृथक विभागों द्वारा किया जाता है।


भारत सरकार द्वारा महिलाओं के आर्थिक उन्नयन हेतु किये गये प्रयास

सामाजिक न्याय एवं तीव्र विकास की महत्वाकांक्षी अभिलाषा के साथ देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही विकास और कल्याण की अनेकानेक योजनाओं और कार्यक्रमों को संचालित किया जाता रहा है। प्रारम्भ में इन योजनाओं और कार्यक्रमों की संख्या काफी कम रही, जिनमें समय-समय पर उत्तरोत्तर वृद्धि की जाती रही है। पिछले दो दशक में सरकार द्वारा महिलाओं के कल्याण एवं विकास के लिये विभिन्न अवसरों पर नई-नई योजनाओं की घोषणा करके उनकी संख्या में काफी बढोत्तरी की गई है। प्रधानमंत्री द्वारा सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना तथा महिला उद्यमियों हेतु ऋण योजना संचालित करने की घोषणा की गई।

इसी प्रकार कमजोर और पिछड़े वर्ग कीे महिलाओं को विशेष सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने एवं उनके सशक्तिकरण के उद्देश्यों को लेकर कुछ कार्यक्रमों और योजनाओं को संचालित किया गया, जिनमें राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (1995), राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (1995), बालिका समृद्ध योजना (1997), शहरी क्षेत्रों हेतु महिलाओं और बच्चों का विकास कार्यक्रम (1997), महिला स्वशक्ति योजना (1998) आदि उल्लेखनीय है।    

उत्तर प्रदेश महिला कल्याण निगम, लखनऊ

उत्तर प्रदेश महिला कल्याण निगम की स्थापना महिला एवं बाल विकास विभाग, उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत मार्च, 1988 में निर्धन तथा निर्बल वर्ग की महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक एवं सर्वांगीण विकास को दृष्टिगत करते हुए निम्न उद्देश्यों से की गयी-

1. निराश्रित निर्धन तथा कमजोर वर्ग की महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक एवं सर्वांगीण विकास के लिए बिना हानि-लाभ के आधार पर कार्य करना।

2. महिलाओं को विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत कौशल सुधार एवं व्यावसायिक दक्षता हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना।

3. महिलाओं में औद्योगिक जोखिम उठाने की दक्षता एवं उद्यमिता का विकास करना।

4. महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उद्योग या व्यवसाय स्थापित करने हेतु व्यक्तिगत या सहकारी समिति के माध्यम से मार्जिन मनी उपलब्ध कराना।

5. विपणन व्यवस्था का सुदृढीकरण करना एवं महिला उद्यमियों के उत्पादों के उचित विपणन हेतु विपणन संस्थाओं एवं बाजारों तक पहुँच स्थापित कराने में सहयोग करना।

6. सामाजिक कुरीतियों से पीड़ित महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए उन्हें व्यवसाय हेतु वित्तीय सहायता प्राप्त करने में सहयोग करना।

वर्तमान शोध कार्य के लिए किए गए सर्वेक्षण के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि जनपद मेरठ के खेल उद्योग में कार्यरत् श्रमिक महिलाओं की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसी विशिष्ट योजना का संचालन नहीं किया जा रहा है। वर्तमान समय में महिला श्रमिकों को संरक्षण प्रदान करने के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं के लाभों से भी मेरठ खेल उद्योग का महिला श्रमिक वर्ग वंचित रह जाता है क्योंकि अधिकांश महिला श्रमिक मेरठ खेल उद्योग में अस्थायी कर्मचारी के रूप में कार्यरत् हैैं।

महिला श्रमिकों की समस्याओं के निवारण हेतु सुझाव

1. महिला श्रमिकों के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने चाहिए और उनकी समस्याओं को साझा करने के लिए महिलाओं को सामूहिक संगठित करने में सहायता करनी चाहिए।

2. महिला श्रमिकों के कौशल और प्रशिक्षण के माध्यम से महिला श्रमिकों की कौशल क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।

3. समाज को महिलाओं के साथ सहयोग प्रदान करना चाहिए और उन्हें सामाजिक, आर्थिक, मानसिक रूप से सशक्त बनाना चाहिए।

4. महिला श्रमिकों को कार्य में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष बोनस देना चाहिए!

5. सरकार द्वारा महिला कामगारों के लिए हेल्पलाइन नंबर शुरू करना उनके लिए न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नियोक्ता द्वारा महिलाओं कामगारों को वेतन न दिए जाने या उनके साथ किसी भी तरह भेदभाव, यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाई जा सके! असंगठित क्षेत्र में महिला श्रमिकों का न्यूनतम वेतन निर्धारित कर देना चाहिए!

निष्कर्ष भारत जैसे विकासशील देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की शिक्षा के प्रति ज्यादा जागरूकता नहीं दिखाई जाती है। इस पुरुष प्रधान देश में लड़कियों को पराया धन समझकर उन पर किसी प्रकार का निवेश जैसे - शिक्षा, प्रशिक्षण, आदि नहीं किया जाता है, परिणामस्वरूपकुशलता के अभाव एवं शिक्षा के अभाव में बड़ी होकर बाल महिला अकुशल श्रमिक महिला के रूप में दिखाई देती है। अशिक्षित महिला श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा अन्य योजनाएं चलाई जाती है जिससे यह श्रमिक महिला वंचित रह जाती हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार, संगठित एवं असंगठित श्रम संघों द्वारा महिला श्रमिकों के उत्थान के लिये प्रयास ना किये गये हों किन्तु जागरूकता, प्रसार एवं दृढ इच्छाशक्ति के अभाव में अधिकांश प्रयास अपना पूर्ण प्रतिफल नहीं दे पाये। किन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो कहा जा सकता है कि शिक्षा एवं जनजागरूकता के प्रसार के कारण परिस्थितियां महिला श्रमिकों के अनुकूल हो रही हैं बस आवश्यकता इस बात की है जिस सोच को लेकर योजनाएं एवं प्रयास किये जायें उनमें ईमानदारी हो।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. https://labour.gov.in>womenlabour 2. https://emanjari.com 3. https://www.dristhias.com 4. https://betteridea.in>Mahilao-ke-liye 5. https://hindicurrentaffiars.adda247.com 6. श्रीवास्तव, रश्मि- 'उच्च शिक्षा में महिलाएं- एक विश्लेषण' भारतीय आधुनिक शिक्षा, वर्ष 25 संयुक्त 1.2 जुलाई, अक्टूबर- 2006. 7. माथुर, दीपा (2006)- वूमेन, फैमिली एंड वर्क, रावत पब्लिकेशन जयपुर 8. शर्मा, प्रेमनारायण (2008)- महिला सशक्तिकरण एवं समग्र विकास, भारत बुक सेंटर, लखनऊ.
अंत टिप्पणी
1. सिन्हा मधुश्री ; सर्वांगीण ग्रामीण विकास में महिलाओं की भूमिका ; कुरुक्षेत्र, मार्च 2012
2. राज, हरेन्द्र एवं गौतम, सीमा ; नई सदी में महिलाओं की शिक्षा: एक मुख्य चुनौती; कुरुक्षेत्र, अगस्त 2014
3. Bhalla, Rakesh; Sports Goods Fedseration, 2007; Meerut.