P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VIII , ISSUE- IV July  - 2023
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
महिलाएं एवं वैधानिक प्रावधान
Women and Legal Provisions
Paper Id :  17932   Submission Date :  11/07/2023   Acceptance Date :  19/07/2023   Publication Date :  23/07/2023
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दीपक कुमार
पोस्ट डॉक्टरेट
राजनीति विज्ञान विभाग
के.एम.जी.जी.पी.जी. कॉलेज
गौतमबुद्ध नगर,उत्तर-प्रदेश, भारत
सारांश प्राचीन भारत में एक समय ऐसा था जब स्त्री को देवी के रूप मे पूजा जाता था, परंतु वर्तमान समय मे स्थिति यह है कि उसकी मान मर्यादा को सरेआम निम्नतर स्थिति पर ले जाया जा रहा है और विगत कुछ वर्षो से पूरे देश मे महिलाओं के प्रति अपराधों में अत्यधिक इजाफा हुआ है हालांकि भारतीय संविधान में महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए अनेक प्रावधान किये गये है और इन प्रावधानों से जुड़े अनेक कानून भी महिलाओं के हित में बनाये गये है परन्तु भारतीय समाज में पुरूष मानसिकता में परिवर्तन हेतु कानून अपनी उचित भूमिका नही निभा सकते इसके लिए जागरूकता बेहद आवश्यक है भारतीय महिलाओं के हित में संविधान मे और अन्य कानूनों के विषय में प्रस्तुत शोधपत्र मे विचार किया गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद There was a time in ancient India when a woman was worshiped as a goddess, but in the present day the situation is such that her respect is being openly taken to a lower position and for the last few years, women are being treated in the whole country. Although there is a place in the interest of women in the Indian constitution, but there are many schemes in the interest of women in the Indian constitution, they cannot play a role, there is a great need of awareness, for this there is a great need of awareness. has been considered.
मुख्य शब्द मान-मर्यादा, स्त्री, महिलाओं की वास्तविक स्थिति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Dignity, Women, Real Status of Women.
प्रस्तावना
यद्यपि भारतीय संविधान सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता की गारण्टी प्रदान करता है तथापि सदियों से महिलाएँ निम्न स्थिति का शिकार होती आई हैं जिसके कारण वे अपने संवैधानिक अधिकारों को वास्तविक रूप से प्राप्त नही कर पाई हैं। महिलाओं की वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, संविधान महिलाओं के प्रति सकारात्मक रूप से भिन्नता का समर्थन करता है। भारत सरकार ने समानता, सामाजिक न्याय एवं लिंग, जाति, संप्रदाय, भाषा या धर्म के आधार पर गैर भेदभावपूर्ण नीति की संवैधानिक मान्यता को चरितार्थ करने के लिए इस दिशा में कार्य करने की ओर अपनी वचनबद्धता की पुन: पुष्टि की है इस नीति को संविधान की आत्मा का प्रारंभिक बिन्दू माना गया है। वैश्विक विकास के परिदृश्य में, महिलाओं की निम्न स्थिति, पितृसत्तात्मक समाज, सामंती प्रथाओं एवं मूल्यों, जातिगत रेखाओं के साथ-साथ सामाजिक ध्रुवीकरण, उच्च निरक्षरता दर एवं व्यापक निर्धनता का भारत लगभग समानान्तर रहा है कुछ हद तक भारत के इस चित्रांकन में जनसंचार माध्यमों एवं चलचित्रों का हाथ हो सकता है। कड़वा सच तो यह है कि भारतीय समाज में लड़कियों एवं स्त्रियों को एक अनअपेक्षित बोझ माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हम महिलाओं के इतिहास की सबसे विशाल क्रांति के मध्य काल में हैं। इसके प्रमाण हर जगह हैं। संसद, न्यायालयों तथा गलियों में निरंतर महिलाओं की आवाज़े सुनाई दे रहीं हैं। जहाँ पश्चिम की महिलाओं को अपने मौलिक अधिकरों की लड़ाई (जैसे कि वोट का अधिकार) लड़ने में एक सदी से भी अधिक समय लगा, वहीं भारतीय संविधान ने प्रारंभ से ही महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्रदान किए हैं। दुर्भाग्यवश, इस देश की महिलाएँ निरक्षरता एवं दमनकारी परम्पराओं के कारण अपने अधिकांश अधिकारों से अनभिज्ञ हैं। भारत में जन्मी कल्पना चावला जिन्होंने नासा (NASA) तक पहुँचने का रास्ता स्वयं ढूंढ़ा तथा वे अंतरिक्ष में पहुँचने वाली प्रथम महिला थी तथा भारत की लौह महिला कही जाने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी राष्ट्र की प्रधानमंत्री बनीं तथा इसी तरह ऐश्वर्या राय एवं एवं सुश्मिता सेन जैसी सुंदरियाँ तथा मदर टेरेसा जैसे नाम भारतीय महिलाओं की स्थिति के प्रतिनिध्यात्मक स्वरूप नहीं हैं। प्राचीन समय से ही नारी को अबला का दर्जा दिया गया है, सभ्य समाज में उसे हमेशा से दबाकर रखने की कोशिश की गई प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप में उसे दोयम स्थान पर ही पहचान दी गई उसे समाज में बोलने का हक नहीं था, हमेशा उसे दबा दिया जाता रहा है पिछले कई काफी समय से महिलाओं का शोषण रोकने व उनको उनके अधिकार दिलाने के लिए बहुत से कानून अस्तित्व मे आये हैं अगर इतने कानूनों का पालन किया जाता तो भारत में महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव काफी हद तक खत्म हो जाता परन्तु पुरुष मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो पाया, लेकिन भारतवर्ष में महिलाओं की रक्षा हेतु कानूनों की कोई कमी नहीं है और भारतीय संविधान के कई प्रावधान तो विशेषकर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं।
अध्ययन का उद्देश्य 1. महिलाओं की वास्तविक स्थिति का अध्ययन। 2. महिलाओं की सुरक्षा हेतु भारत में उनको दिये गये संवैधानिक अधिकारों का अध्ययन। 3. विभिन्न समयों में प्रचलित कुरीतियों एवं कुप्रथाओं को मुक्त कराने हेतु महिलाओं के लिए पारित किये गये विभिन्न अधिनियमों का अध्ययन। 4. भारतीय दंड संहिता मे महिलाओ के बचाव हेतु बनाये गये कानूनों का अध्ययन। 5. महिलाओं के यौन अपराध एवं बलात्कार से बचाव हेतु सम्बन्धित कानूनों का अध्ययन।
साहित्यावलोकन

1. शर्मा रमा, महिलाओं के मौलिक अधिकार, अर्जुन पब्लिशिंग
प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति के विषय मे चर्चा की है और महिलाओं को कौन कौन से मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गयी है इस विषय पर गहनता से प्रकाश डाला है।
2. पाण्डेय, डॉ. जयनारायण, भारत का संविधान, सेन्ट्रल लॉ एजेन्सी दिल्ली,
प्रस्तुत पुस्तक मे भारतीय संविधान के बारे मे गहनता से अध्ययन किया गया है भारत का संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है। जो सरकारी संस्थानों के मौलिक राजनीतिक कोड, संरचना, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों का सीमांकन करता है और मौलिक अधिकारों, निर्देशक सिद्धांतों और नागरिकों के कर्तव्यों को निर्धारित करता है।
3. जोशी आर0पी0, मानव अधिकार एवं कर्तव्य, नवजीवन पब्लिशिंग हाउस, 2006
प्रस्तुत पुस्तक मे लेखक ने मानवीय अधिकार की विस्तार से समीक्षा की है साथ ही मानवीय अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों पर भी प्रकाश डाला है।
4. डा0 आर्य राकेश कुमार "महिला सशक्तिकरण और भारत" डायमंड पाकेट बुक्स, 2020
प्रस्तुत पुस्तक 22 अध्यायों मे विभक्त है इसमे वैदिक काल से वर्तमान तक महिलाओं की स्थिति का अध्ययन और समीक्षा की गयी है।

मुख्य पाठ

भारत में महिलाओं के संवैधानिक अधिकार-

अनुच्छेद 14 : में कहा गया है कि सरकार किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या विधि के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगी। भारतीय संविधान लिंग की समानता की गारण्टी देता है और वह वास्तव में महिलाओं के लिए विशेष रियायतें भी प्रदान करता है। समान संरक्षण के सिद्धांत का यह अर्थ नहीं कि सभी लोग जो अन्य लोगों की तरह एक जैसी प्रगति, परिस्थिति या कौशल (ज्ञान, शक्ति या धन) रखते हैं, उनके साथ एक सा कानूनी व्यवहार किया जाए। भिन्न भिन्न वर्गो के लोगों की भिन्न भिन्न आवश्यकताओं के अनुसार उनके साथ अलग अलग व्यवहार किया जा सकता है। इस संबंध में बनाए गए कानून को कानूनी संरक्षण के विरुद्ध नहीं माना जा सकता। संविधान, हालांकि, पूर्ण समानता का समर्थन नहीं करता। कानून बनाते समय राज्य लोगों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित कर सकता है परन्तु यदि भेदभाव किया गया है, तो उसका कोई उचित या तर्कसंगत आधार होना चाहिए। अत: कानून के समक्ष समता का तात्पर्य यह है कि एक जैसे लोगों के साथ एक सा व्यवहार किया जाए। अत: समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गो के लिए विशेष प्रकार के कानून बनाए जा सकते हैं।

अनुच्छेद 15: में कहा गया है कि सरकार लिंग के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगी। अनुच्छेद 15 दो बातें स्पष्ट करता है प्रथम, राज्य केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग व जन्मस्थान या इनमें से किसी एक आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा दूसरे, इनमें से किसी भी आधार पर कोई नागरिक दुकानों, भोजनालयों, मनोरंजन की जगहों, तालाबों और कुओं का इस्तेमाल करने से वंचित नहीं किया जा सकेगा। अनुच्छेद 15(3) में एक विशेष प्रावधान किया गया है जो राज्य को महिलाओं के हित के लिए विशेष सुविधाएँ जुटाने की शक्ति प्रदान करता है इसके अतिरिक्त, सरकार महिलाओं के हित में विशेष कानून बना सकती है। 93वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के अंतर्गत, यह धारा राज्य को किसी भी सामाजिक या शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग अथवा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोगों के महिला व पुरूशों के उत्थान के लिए समान रूप से कानून द्वारा विशेष प्रावधान बनाने की शक्ति प्रदान करती है। इसमें अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर शेष किसी भी निजी शिक्षण संस्थान में, चाहे वह राज्य से सहायता प्राप्त हो या गैर सहायता शिक्षण संस्थान हो, उसमें राज्य इन लोगों के दाखिले से संबंधित विशेष प्रावधान कर सकता है।

अनुच्छेद 16 : इस बात की गारण्टी देता है कि कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्मस्थान, लिंग या निवास स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। राज्य के अंतर्गत रोजगार अथवा सरकारी नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को बराबर के मौके मिलेंगे अर्थात महिलाओं को भी बराबरी का मौका मिलेगा।

अनुच्छेद 19 में महिलाओं को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है, ताकि वह स्वतंत्र रूप से भारत के क्षेत्र मंय आवागमन, निवास एवं व्यवसाय कर सकती है स्त्रीलिंग होने के कारण किसी भी कार्य से उनको वंचित करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना गया है तथा अवैधानिक स्थिति में उनको कानून की सहायता प्राप्त कर हो सकेगी।

अनुच्छेद 21 में, संविधान व्यक्ति को जीवन का संरक्षण एवं निजी स्वतंत्रता प्रदान करता है। संविधान गारण्टी देता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी तरीके से किसी व्यक्ति को जीवन या निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। 86वें0 संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा, भारतीय नागरिकों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया था इस उद्धेश्य से भाग-III में एक नया अनुच्छेद शामिल किया गया व भाग-IV में दो अनुच्छेद संशोधित किए गए थे। नवीन संशोधन से शामिल किए गए अनुच्छेद 21A में कहा गया है कि राज्य द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार छरू से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को राज्य नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा इसमे किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा कि वो महिला है या पुरूष। सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर दिये गये है।

अनुच्छेद 22 : बंदीकरण और नजरबंदी के संबंध में बचाव - इस अनुच्छेद में तीन अधिकारों का उल्लेख मिलता है: पहला, जिसे बंदी बनाया गया है उसे शीघ्र से शीघ्र बंदी बनाए जाने का कारण बताया जाएगा। दूसरा, बंदी बनाए गए व्यक्ति को अपनी पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा। तीसरा, बंदी बनाए गए व्यक्ति को चौबीस घंटों के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा। मजिस्ट्रेट की आज्ञा के बिना किसी को भी 24 घंटो से अधिक समय के लिए बंदी नहीं रखा जा सकेगा, ये मौलिक अधिकार महिलाओं के मानवाधिकारों की दृष्टि से विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं चूँकि मौलिक अधिकार न्यायपूर्ण हैं, इसलिए कोई भी पीड़ित व्यक्ति रिट या लेख याचिका के द्वारा क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता है।

अनुच्छेद 23-24 द्वारा महिलाओं के विरूद्ध होने वाले शोषण को नारी गरिमा के लिए उचित नहीं मानते हुए महिलाओं की खरीद-ब्रिकी वेश्यावृत्ति के लिए जबरदस्ती करना, भीख मंगवाना आदि को दंडनीय माना गया है, इसके लिए सन 1956 में सेप्रश्न ऑफ इमोरस ट्राफिक इन विमेन इन विमेन एंड गर्ल्स एक्ट‘‘ भी भारतीय संसद द्वारा पास किया गया ताकि महिलाओं को सभी प्रकार के शोषण से बचाया जा सके।

आर्थिक न्याय प्रदान करने हेतु अनुच्छेद 39(क) में स्त्री को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार एवं अनुच्छेद 39(द) में समान कार्य के लिए समान वेतन का उपबंध है।

अनुच्छेद 42 : राज्य को काम करने की उचित एंव मानवीय परिस्थितियों तथा महिलाओं को प्रसूति सहायता के संबंध में प्रावधान करने का निर्देशन देता है।

अनुच्छेद-51(क) (ड) मे भारत मे सभी लोग ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।

अनुच्छेद-332(क) मे प्रस्तावित 84वे संशोधन के ज़रिए राज्यो की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।

अनुच्छेद 243(द) (3) में प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गये स्थानों की कुल संख्या के 1/3 स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेगें और चक्रानुक्रम से पंचायत के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में आबंटित किये जाएगें ।

अनुच्छेद 325 के अनुसार निर्वाचन नामावली में चाहे पुरुष हो या महिला दोनों को ही समान रूप से सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान किया गया है, अनुच्छेद 325 के द्वारा संविधान निर्माताओं ने यह बताने की कोशिश की, कि भारत में महिला हो या पुरुष सभी को मत देने का अधिकार दिया गया हैं। विभिन्न संस्थाओ मे कार्यरत महिलाओ के स्वास्थ्य लाभ के लिए अवकाश की विशेष व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद-42 के अनुकूल करने के लिए 1961 मे प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित किया गया। वर्तमान में महिलाओं को 180 दिन का प्रसूति अवकाश मिलने लगा है। और यह अस्थायी महिला कर्मचारी को भी देय है।

महिलाओं के लिए पारित किये गये विभिन्न अधिनियम

हमारे देश मे विभिन्न समयों में प्रचलित कुरीतियों एवं कुप्रथाओं को मुक्त कराने हेतु बहुत से अधिनियम पारित किये गये है तथा महिलाओं को सुरक्षा एवं अधिकार देने हेतु भी अधिनियम पारित किये गये है, जो निम्न हैः-

(1) राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948

(2) दि प्लांटेशनस लेबर अधिनियम 1951

(3) परिवार न्यायालय अधिनियम, 1954

(4) विशेष विवाह अधिनियम, 1954

(5) हिन्दू विवाह अधिनियम 1955

(6) हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005)

(7) अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956

(8) प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961 (संशोधित 1995)

(9) दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961

(10) गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971

(11) ठेका श्रमिक (रेग्युलेशन एण्ड एबोलिशन) अधिनियम 1976

(12) दि इक्वल रियुनरेशन अधिनियम 1976

(13) बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006(14) आपराधिक विधि (संशोधन) अधिनियम 1983

(15) कारखाना (संशोधन) अधिनियम 1986

(16) इन्डिकेंट रिप्रेसेन्टेशन ऑफ वुमेन एक्ट 1986

(17) कमीशन ऑफ सती (प्रिवेन्शन) एक्ट, 1987

(18) घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005

भारतीय दंड संहिता मे महिलाओ के लिए कानून :

दहेज हत्या से जुड़े कानूनी प्रावधान- दहेज हत्या को लेकर भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) मे स्पष्ट प्रावधान है। इसके अंतर्गत धारा-304(बी),302,306 एवं 498-ए आती है। दहेज हत्या का अर्थ है, औरत की जलने या किसी शारिरिक चोट के कारण हुई मौत या शादी के 7 साल के अंदर किन्ही सन्देहजनक कारण से हुई मृत्यु। इसके सम्बन्ध में धारा-304(बी) मे सजा दी जाती है, जो कि सात साल कैद है। इस जुर्म के अभियुक्त को जमानत नहीं मिलती।

आई.पी.सी की धारा- 302 मे दहेज हत्या के मामले मे सजा का प्रावधान है। इसके तहत किसी औरत की दहेज हत्या के अभियुक्त का अदालत मे अपराध सिद्ध होने पर उसे उम्र कैद या फांसी हो सकती है। अगर ससुराल वाले किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक या भावनात्मक रूप से हिंसा का शिकार बनाते हैजिसके जिसके चलते वह औरत आत्महत्या कर लेती है, तो धारा-306 लागू होगी, जिसके तहत दोष साबित होने पर जुर्माना और 10 साल तक की सजा हो सकती है। पति या रिश्तेदार द्वारा दहेज के लालच मे महिला के साथ क्रूरता और हिंसा का व्यवहार करने पर आई.पी.सी की धारा-498(ए) के तहत कठोर दंड का प्रावधान है। मुस्लिम महिलाओं को शोषण से बचाव के लिए केन्द्र सरकार ने हाल ही में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक लोकसभा में पारित किया गया है जिससे मुस्लिम महिलाओं को गलत तरीके से दिये गये तलाक से मुक्ति मिलेगी।

इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी अधिकार है जिनके बारे मे महिलाएं स्वयं अनजान है-

1. हिन्दू मेरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 14 के तहत एक शादीशुदा जोड़ा अपनी शादी के एक साल पूरा होने तक तलाक के लिए अर्जी नहीं दे सकता है। फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि अर्जी देने वाला अनेकों समस्याओं से घिरा है तो वह तलाक फाइल कर सकता है।

2. इंडियन सराइस एक्ट 1867 के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी समय किसी भी होटल में अपने या अपने पालूत जानवर के लिए पानी का प्रयोग कर सकता है। कोई भी महिला या पुरुष होटल का वॉशरूम भी प्रयोग कर सकता है। इसके लिए उसे कोई चार्ज नही देना होगा।

3. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि किसी भी महिला को सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद हिरासत में नही लिया जा सकता है। यदि पुलिस को कोई सबूत के तौर पर कोई लिखित दस्तावेज मिलता है जिसमें कारण पूछा जाए कि आप इस महिला को क्यों हिरासत में लेना चाहते हैं तो यह फैसला बदल सकता है।

4. 2013 में दिल्ली मे पुलिस ने यह घोषणा की थी कि कोई भी पीड़ित महिला किसी भी पुलिस स्टेशन में किसी भी समय एफ0आई0आर दर्ज करा सकती है और पुलिस को उसकी रिपोर्ट वैसे ही दर्ज करनी होगी जिस प्रकार महिला चाहती है। और इसमे यह कहा गया कि महिला द्वारा दिए गये बयान के आधार पर ही जांच की जाएगी।

5. दंड प्रक्रिया संहिता के सेक्शन 51 के तहत एक महिला को सिर्फ एक महिला ऑफीसर ही हिरासत में ले सकती है। महिला ऑफीसर को ही आरोपी महिला की तलाशी लेने और उसकी जांच करने का अधिकार है।

6. दिल्ली पुलिस के अनुसार यदि कोई पीडित महिला पुलिस स्टेशन जाने में सक्षम नही है तो वो अपनी शिकायत ऑनलाइन माध्यम से ईमेल के जरिये या डाक के जरिए भी कर सकती है। और पीड़ित महिला ने जो शिकायत भेजेगी उसी को एफ0आई0आर0 में दर्ज किया जाएगा।

7. होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया जो पूरे भारत में 280 से अधिक होटल संचालित करती हैए ने घोषणा की है कि भारतीय कानून में ऐसा कोई भी नियम नही हैं जिसमे किसी अविवाहित जोड़ों को होटल में प्रवेश करने से रोका जाए।

8. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2011 में घोषणा की थी कि कोई भी पुरुष जो अकेला रहता है किसी लड़की या बच्ची को गोद नही ले सकता है। इसके अनुसार महिलाओं की बढ़ती उम्र के बाद होने वाली घटनाओं के बाद इस निर्णय और कानून का पालन किया गया है।

9. मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत किसी भी महिला को गर्भवती होने के दौरान या गर्भवती होने के कारण नौकरी से नही निकाला जा सकता है। फिर चाहें वे पूरें नौ महिनें छुट्टी पर ही क्यों ना रहे हालांकि नियमानुसार महिलाएं अपने बच्चें के पैदा होने के तीन महिने पहले और बच्चे के पैदा होने के तीन महिने बाद तक छुट्टी पर रह सकती है और इस दौरान उसकी सैलरी में से भी किसी भी प्रकार की कोई कटौती नही होगी।

10. हिन्दू एडाप्टेशन एंड मेंटीनेन्स एक्ट 1956 के तहत कोई भी विवाहित जोड़ा एक साथ एक ही लिंग के दो बच्चों को गोद नही ले सकता है यानि वे चाहकर भी दो लड़के या दो लड़कियों को गोद नही ले सकते है।

यौन अपराध एवं बलात्कार सम्बन्धित कानून- 

देश मे बलात्कार के लगभग 80% मामलो मे सबूतो के अभाव, धीमी पुलिस जांच मे अभियुक्तो को सजा नही मिल पाती थी, लेकिन नए कानून के अनुसार बलात्कार के मामलो मे चिकित्सा सबूत अपर्याप्त होने के बाद भी महिला का बयान ही काफी समझा जाना चाहिए। अधिकतर औरते ऐसी घटनाओ की रिपोर्ट कराने से भी डरती है, क्योंकि इससे उनका और उनके परिवार का सम्मान जुड़ा होता है ।

बलात्कार की शिकार महिला को महिला वकील देने का प्रावधान किया जा रहा है, क्योंकि सिर्फ महिला ही एक महिला को सही तरह समझ सकती है। अगर कोई पीड़ित महिला चाहे तो अपनी पसंद से वकील चुन सकती है।

आई.पी.सी की धारा- 375 के  तहत जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग करता है, तो उसे बलात्कार कहते है। बलात्कार तब माना जाता है;

यदि कोई पुरुष स्त्री के साथ-

-उसकी इच्छा के विरुद्ध।

-उसकी सहमति के बिना।

-उसकी सहमति डरा धमका कर ली गई हो।

-उसकी सहमति नकली पति बना कर ली गई हो, जबकि वह उसका पति नही हो।

-उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमजोर या पागल हो।

-उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश मे नही हो।

-यदि वह 16 वर्ष से कम उम्र की है, चाहे उसकी सहमति से हो या बिना सहमति के।

-15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ।

धारा-376 भारतीय दंड संहिता या आई.पी.सी मे बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान है, जिसके अंतर्गत बलात्कार के आरोपी को कम से कम सात वर्ष का कारावास या फिर आजीवन के लिए यानी दस वर्ष की अवधि का हो सकता है किन्तु यदि वह स्त्री जिसके साथ बलात्कार हुआ हो, वह अपराधी की पत्नी हो और 12 वर्ष से कम आयु की नही है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकती है। अप्रैल 2018 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप करने पर न्यूनतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर 20 साल किया गया है। दोषी को उम्रकैद भी दी जा सकती है. इतना ही नहीं, इस अध्यादेश में यह भी प्रावधान किया गया है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की से रेप के दोषी को न्यूनतम 20 साल की जेल या उम्रकैद की सजा दी जाएगी।

अन्य यौन अपराध से संबंधित कानून :

धारा-354 आई.पी.सी मे कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की मर्यादा को भंग करने के लिए उस पर हमला या जबरदस्ती करता है तो उसे दो वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

छेड़खानी पर कानून- धारा-509,294 आई.पी.सी के अनुसार कोई भी शब्द, इशारा या मुद्रा जिससे महिला की मर्यादा का अपमान हो ।

यदि कोई पुरूष किसी महिला को अपमानित करने की नीयत से किसी शब्द का उच्चारण करता है, या कोई आवाज निकालता है, या कोई गलत इशारा करता है, तो उसे एक साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा होगी।

निष्कर्ष महिलाओं को प्रदत्त अधिकारों एवं उनके लिए बनाये गये अधिनियमों के बाद भी महिलाओं की स्थिति शोचनीय है। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए पर्याप्त अधिनियम है, परन्तु फिर भी महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है । स्वतंत्रता के पश्चात से वर्तमान तक विभिन्न अधिनियम जैसेः- हिन्दु विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम, विवाह-विच्छेद व तलाक अधिनियम वेश्यावृत्ति उन्मूलन अधिनियम, गर्भपात की चिकित्सा द्वारा मान्यता जैसे प्रमुख सुधारों से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में पर्याप्त अंतर आया है, फिर भी बहुत सी कमियाँ है, जिनकी वजह से इन कानूनों का लाभ महिलाएँ नहीं उठा पाती - 1. यह आवश्यक है कि पूरे देश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का विश्लेषण किया जाए यह तो स्पष्ट है कि अधिकांश मामलों में रिपोर्ट ही दर्ज नहीं करवायी जाती । चाहे पारिवारिक दबाव हो या सामाजिक दबाव जिसके चलते बहुत सी घटनाएँ परिवार की चारदीवारी में ही सिमट कर रह जाती है। 2. हमारे देश में महिलाओं की उन्नति व उनके सरंक्षण के लिए बहुत से कानून एवं अधिनियम है, किन्तु महिलाओं को इन कानूनों एवं अधिकारों का पर्याप्त ज्ञान ही नहीं है, अतः ऐसे मे इन कानूनों का पर्याप्त प्रचार-प्रसार किया जाए और इस संबंध मे जानकारी समय-समय पर महिलाओं को प्रदान की जानी चाहिए। 3. घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में महिलाएँ आगे नहीं आती, यदि पीड़ित महिलाएँ ऐसे घटनाओं के विरूद्ध आवाज उठाना भी चाहे तो समाज में इसे उचित नहीं माना जाता। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून व सरकार के साथ समाज को भी अपनी उचित भूमिका निर्वहन करना चाहिए । 4. भारत में कुल मतदाताओं में आधी संख्या महिलाओं की है, मगर इसके बावजूद भी लोकसभा तथा राज्य विधानमंडलों में उनका प्रतिनिधित्व घोर निराशा उत्पन्न करता है। इसलिए राजनीति में भी महिलाओं को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए । 5. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 ए के अंतर्गत विवाहित महिला पर सभी अत्याचार अपराध है, किन्तु इसे व्यवहार में दहेज प्रताड़ना से जोड़ दिया जाता है, जो कि सही नहीं है क्योंकि महिलाएँ मान सम्मान की वजह से मुकदमें के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाती और साथ ही उनको घर से बाहर निकाले जाने का भी डर रहता है। 6. लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाएँ प्रतिनिधित्व नहीं कर पाती है । विकसित देशों की लोकतांत्रिक संस्थाओं में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व उनकी संख्या के अनुपात में नहीं है। 7. महिलाओं में साक्षरता के दर भी काफी कम है, आंकड़ों से पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में बहुत कम महिलाएँ ही शिक्षित है। शिक्षा का इतना कम प्रतिशत भी महिलाओं के प्रति अत्याचार का कारण है इसलिए महिलाओं को शिक्षित करना आवश्यक हैं। 8. महिलाओं की स्थिति सुधारने में गैर-सरकारी संगठन अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकते है, साथ ही उत्पीड़ित महिलाओं को सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए तथा महिलाओं के लिए स्वरोजगार योजनाओं आदि को भी पर्याप्त महत्व दिया जाए। महिलाओं के लिए असली मुद्दा आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा का है। अगर पति उन्हें बाहर निकाल दे तो वह सड़क पर आ जाएंगी, इस चिंता से वे जुल्म बर्दाश्त कर लेती हैं इसलिए अगला कदम स्त्रियों को शिक्षित कर उन्हें रोजगार के लायक बनाना होना चाहिए। आर्थिक स्वावलम्बन गजब का आत्मविश्वास देता है। साथ ही सामाजिक सुधार के बिना कानूनी सुधार अपर्याप्त होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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