ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- VI September  (Part-1) - 2021
Anthology The Research
बून्दी जिले में कृषि आधारित उद्योगों का विश्लेषण
Analysis of Agro-based Industries in Bundi District
Paper Id :  17857   Submission Date :  02/09/2021   Acceptance Date :  19/09/2021   Publication Date :  25/09/2021
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/anthology.php#8
सुरेन्द्र कुमार चन्देल
सहायक आचार्य
भूगोल विभाग
राजकीय महाविद्यालय
टोंक,राजस्थान, भारत
सारांश

बून्दी राजस्थान के छोटे जिलों में एक है। किसी भी राज्य या जिले के आर्थिक विकास में उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बून्दी हाड़ौती के साथ ही राज्य के औद्योगिक वातावरण का विकास, स्थानीय संसाधनों के अधिकतम उपयोग, परम्परागत दस्तकारों के कौशल, नवीन तकनीकों, उत्पादकता में सुधार, बुनियादी ढाँचे के लिए समुचित प्रावधान, उद्यमियों को निवेश हेतु आकर्षित करने के लिए दीर्घकालीन राजकोष एवं निवेश प्रोत्साहन नीति के साथ-साथ उद्योगों को वित्तीय सहायता पर निर्भर है। राजस्थान में बून्दी जिले का औद्योगिक विकास, विशेषकर कृषि आधारित उद्योगों के विकास में कृषि प्रधान क्षेत्र के साथ, फसल उत्पादन का महत्वपूर्ण योगदान है। सन् 2015-16 में चावल उत्पादन (22.56) की दृष्टि से राज्य में प्रथम स्थान है। तिलहन में सोयाबीन का उत्पादन (10.82) में तृतीय स्थान है। इसी प्रकार सरसों उत्पादन (0.84) में तृतीय स्थान है। मसाला उद्योग में धनिया का उत्पादन (0.66) प्रतिशत है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Bundi is one of the smaller districts of Rajasthan. Industries play an important role in the economic development of any state or district. Bundi Hadoti as well as the development of the industrial environment of the state is dependent on optimum utilization of local resources, skill of traditional artisans, innovative techniques, improvement in productivity, proper provision for infrastructure, long term fiscal and investment promotion policy to attract entrepreneurs to invest as well as financial assistance to industries.
Industrial development of Bundi district in Rajasthan, especially in the development of agro-based industries, with agricultural sector, crop production is a significant contributor. In the year 2015-16, in terms of rice production (22.56), it is at the first place in the state. Soybean production (10.82) ranks third in oilseeds. Similarly, mustard production (0.84) ranks third. The production of coriander is (0.66) percent in the spice industry.
मुख्य शब्द स्थानिक लविण, पदार्थ सूचकांक, श्रम लागत सूचकांक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Spatial Salinity, Material Index, Labor Cost Index.
प्रस्तावना

ब्रिटिश काल के बाद राज्य के बून्दी जिले में औद्योगिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था के एक मजबूत अंग के रूप में उभरा है। वर्तमान में बून्दी जिले में कृषि आधारित उद्योग रोजगार सृजन एवं निर्यात में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। बून्दी जिले के कृषि उद्योगों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में शिक्षित, श्रमिक, वैज्ञानिक विधियाँ एवं प्रबंधन में मधुर समन्वय महत्वपूर्ण कारक रहे हैं और यही उद्योगों के लिए आवश्यक है। बून्दी जिले में चावल, सोयाबीन, सरसों, धनिया फसल के क्षेत्र एवं उत्पादन से चावल, खाद्य तेल एवं धनिया उद्योगों का अधिक विकास हुआ है। समस्त उद्योगों में से बून्दी जिले में 40 प्रतिशत उद्योग कृषि आधारित है जो अन्य उद्योगों की दृष्टि से अधिक है। इन उद्योगों में 41.07 प्रतिशत जमा पूंजी एवं 31 प्रतिशत कार्यशील पूंजी लगी हुई है, जो अन्य उद्योगों से अधिक है। साथ ही राज्य की 50.13 प्रतिशत एवं बून्दी की लगभग एक चौथाई जनसंख्या को कृषि उद्योगों ने रोजगार के साथ-साथ कृषकों को आधुनिक वैज्ञानिक कृषि के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहन किया है। इन उद्योगों ने प्रदेश के जनसंख्या घनत्व, जीवन स्तर में सुधार, अधिक क्रय शक्ति, परिवहन का विकास, बाजारों का विकास, विदेशी व्यापार एवं आत्म निर्भरता आदि कई विशेषताओं को जन्म दिया है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. बून्दी जिले में कृषि आधारित चावल, खाद्य तेल एवं धनिया उद्योगों का भौगोलिक अध्ययन करना है।

2. प्रदेश में कृषि उद्योगों के प्रारूप एवं भृदृश्य का अध्ययन करना।

3. संभावित नवीन कृषि आधारित उद्योगों को स्थापित करने हेतु सुझाव देना।

साहित्यावलोकन

कृषि आधारित उद्योगो पर जिन भूगोलवेताओं ने शोध प्रस्तुत कर महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उनमें लोकनाथन (1932) ने भारत में सूती वस्त्र, चीनी, जूट, कागज एवं सीमेन्ट आदि उद्योगों के स्थानीकरण तत्वों का अध्ययन प्रस्तुत किया है। नरोत्नमल चौर्या (1956-57) ने व्यापार में सूती वस्त्र उद्योग का आर्थिक सर्वेक्षण किया है। दुर्रानी (1956) ने राजस्थान के विकास में उद्योगों के उत्तरदायी स्थानिक तत्वों का अध्ययन किया। लालचंद हीरानन्द (1971) ने मेवाड़ सूती वस्त्र उद्योग में श्रमिकों की स्थिति का आर्थिक सर्वेक्षण किया। शर्मा (1981) ने गंगा-जमुना दोआब में कृषि उद्योगों की अवस्थिति एवं उनका इस प्रदेश के आर्थिक विकास में योगदान पर अध्ययन किया। सत्यदेव (1988) ने श्री गंगानगर शुगर मिल्स लिमिटेड का औद्योगिक भौगोलिक विश्लेषण किया है। आर.एन.बैरवा (1991) ने राजस्थान के चीनी उद्योग का एक भौगोलिक विश्लेषण किया। एस.सी. मीणा (1992) ने सूती वस्त्र उद्योग अवस्थितिकरण वृद्धि और प्रादेशिक आर्थिक विकास का अध्ययन किया है।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र
बून्दी जिला राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी भाग में 240511 श्से 250531 उत्तरी अक्षांश तथा 750191 श्से 760191 पूर्वी देशान्तरों के मध्य स्थित है। जिले की पूर्व से पश्चिम लम्बाई 111 किमी एवं उत्तर से दक्षिण की ओर चौड़ाई 104.6 किमी है तथा जिले का क्षेत्रफल 5550 किमी है। क्षेत्रफल की दृष्टि से बून्दी जिला राज्य का एक छोटा जिला है जो राज्य के क्षेत्रफल का 1.70 प्रतिशत है।
क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से बून्दी जिले के अन्तर्गत बून्दी, इन्द्रगढ़, नैनवां, हिण्डोली, केषोराय पाटन एवं तालेड़ा तहसीलों को सम्मिलित करते हैं। प्रशासनिक दृष्टि से बून्दी जिले बून्दी जिला मालवा के पठार का ही एक भाग है, जिसके पूर्वी भाग में राज्य की सदावाही चम्बल नदी प्रवाहित होती है तथा मेज, मांगली, घोड़ा पछाड़ एवं तालेड़ा आदि नदियाँ जिले में अपवाह तन्त्र बनाती है। प्रदेश में अति आर्द्ध जलवायु पायी जाती है तथा वार्षिक वर्षा का औसत 80 से 120 सेमी रहता है।
यह पठारी भू-भाग अरावली एवं विंध्य कगार भूमि के मध्य सक्रान्ति प्रदेश है। यहाँ का धरातल मैदानी, पठारी, पहाड़िया एवं ऊपर माल के रूप में विभक्त है। मिट्टियों में छिछली काली, मध्यम काली, गहरी काली, मिश्रित लाल काली एवं कांपीय दोमट मिट्टी पाई जाती है। वनस्पति मिश्रित प्रकार की पाई जाती है। उक्त सभी प्राकृतिक कारक कृषि का आधार है, जिसका मानव अपनी क्षमता तथा आवश्यकतानुसार विकासोन्मुख दिशा की ओर संशोधन करता है। मानव की विकासोंन्मुख दशा को प्राकृतिक कारक निर्धारित करते हैं। यही कारक कृषि आधारित उद्योगों के कच्चे माल के रूप में फसल उत्पादन में सहयोग प्रदान करते हैं।
C:Usersagwan 3Desktop
akshakk.JPG
आंकड़ों के स्रोत एवं अध्ययन विधि तन्त्र
प्रस्तुत शोध पत्र में प्राथमिकएवं द्वितीयक आंकड़ों की सहायता ली गई है। प्राथमिक आंकड़े प्रतिदर्श सर्वेक्षण एवं द्वितीयक आंकड़े सरकारी प्रकाशनों, वार्षिक प्रतिवेदनों, जिला आर्थिक एवं सांख्यिकी रूपरेखा, कारखाना एवं वॉयलर कार्यालय, पन्त कृषि भवन जयपुर आदि से लिए गए हैं। स्थानिक लब्धि, पदार्थ सूचकांक, श्रम लागत सूचकांक की गणना निम्न सूत्रों से की गई है।

परिणाम

कृषि आधारित उद्योग वह उद्योग होते हैं, जिनको संपूर्ण कच्चा माल कृषि जनित फसलों से प्राप्त होता है।

प्रस्तुत शोध पत्र में चावल, खाद्य तेल एवं धनिया उद्योगों का अध्ययन एवं विवेचन स्थानीयकरण कारकों के आधार पर किया गया है।

1. कच्चा माल

उद्योग की स्थापना, विकास एवं संचालन में महत्व रखने वाले कारकों में कच्चा माल महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कच्चा माल या ऐसे पदार्थ जो किसी स्थान या क्षेत्र विशेष में ही मिलते है सभी जगह नहीं, स्थानीय पदार्थ कहलाते हैं। ऐसे पदार्थ उद्योग को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। ऐसा पदार्थ ही उद्योग की स्थापना को अपनी ओर आकर्षित करता है।

बून्दी जिले में कृषि आधारित चावल, खाद्य तेल एवं धनिया उद्योगों को कच्चे माल की उपलब्धता स्थानीय क्षेत्र से ही होती है। संबंधित उद्योगों के कच्चे माल की फसलों के क्षेत्र विशिष्टीकरण एवं स्थानीयकरण के अध्ययन विश्लेषण हेतु चावल, सोयाबीन, सरसों एवं धनिया का स्थानिक लब्धि विधि से जिले की फसल संकेन्द्रियता तहसीलानुसार परिकलित की गई है।

इस विधि के मान को निम्न वर्गों में प्रदर्शित किया गया है। तालिका 1 से स्पष्ट है कि चावल के क्षेत्र में सर्वाधिक संकेन्द्रियता बून्दी, तालेड़ा तहसीलों में है। मध्यम केशोराय तहसील में एवं न्यून संकेन्द्रियता नैनवां एवं इन्द्रगढ़ तहसील में है।

सोयाबीन में सर्वाधिक संकेन्द्रियता तालेड़ा एवं केशोराय पाटन तहसीलों में है। मध्यम बून्दी में एवं न्यून इन्द्रगढ़, नैनवां एवं हिण्डोली तहसीलों में है। सरसों में सर्वाधिक संकेन्द्रियता, नैनवां एवं इन्द्रगढ़ तहसीलों में है। मध्यम हिण्डोली में एवं न्यून तालेड़ा, बून्दी एवं केशोराय पाटन तहसीलों में है। इसी प्रकार धनिया में सर्वाधिक संकेन्द्रियता इन्द्रगढ़ एवं केशोराय पाटन तहसीलों में है। मध्यम बून्दी में एवं न्यून हिण्डोली, नैनवां एवं तालेड़ा तहसीलों में है।

बून्दी जिले में चावल का सर्वाधिक उत्पादन बून्दी, तालेड़ा तहसीलों में मध्यम उत्पादन केशोराय पाटन एवं हिण्डोली तहसीलों में तथा न्यून उत्पादन इन्द्रगढ़ एवं नैनवां तहसीलों में हुआ। सोयाबीन में सर्वाधिक उत्पादन केशोराय पाटन एवं नैनवां तहसीलों में मध्यम बून्दी एवं तालेड़ा में एवं न्यून उत्पादन हिण्डोली एवं इन्द्रगढ़ तहसीलों में रहा। सरसों में सर्वाधिक उत्पादन इन्द्रगढ़ एवं नैनवां में, मध्यम हिण्डोली एवं केशोराय पाटन में एवं न्यून उत्पादन बून्दी एवं तालेड़ा तहसीलों में रहा तथा धनिया में सर्वाधिक उत्पादन इन्द्रगढ़ एवं केशोराय पाटन, बून्दी तहसीलों में, मध्यम तालेड़ा एवं न्यून उत्पादन हिण्डोली एवं नैनवां तहसीलों में रहा।

उत्पादन में कभी एवं वृद्धि का प्रमुख कारण वर्षा की अनियमितता, सिंचाई का कम होना रहा है। सम्पूर्ण बून्दी जिले में कृषि आधारित चावल, खाद्य तेल उद्योगों को पर्याप्त कच्चा माल उपलब्ध करता है अर्थात कच्चे माल के रूप में इन उद्योगों को आधार प्रदान किया है। फसल उत्पादन में सिंचाई, उर्वर भूमि एवं मिट्टी की अनुकुलता, उन्नत बीज रासायनिक उर्वरक आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। फलस्वरूप जिले में कृषि उद्योगों की स्थापना हुई एवं औद्योगिक भूदृश्य विकसित हुआ है।

बून्दी जिले में चावल उद्योग का अधिक संकेक्षण हुआ है। वर्तमान में यहां 21 चावल उद्योग मिले एवं 2 खाद्य तेल मिले है एवं कुछ धनिया उद्योग की प्रोसेसिंग इकाईयां कार्यशील है। अतः बून्दी जिले में कृषि उद्योगों के अधिक विकसित होने में कच्चे माल की आपूर्ति, परिवहन सुविधा, मानवीय श्रम, बाजार एवं पूंजी आदि स्थानीयकरण कारकों की महत्ती भूमिका रही है।

बून्दी जिले के कृषि उद्योगों में कच्चे माल के आकर्षण का स्तर ज्ञात करने एवं कच्चे माल की भूमिका का अध्ययन करने के लिए पदार्थ सूचकांक का परिकलन किया गया है।

उक्त तालिका 3 से ज्ञात होता है कि चावल उद्योग का कच्चा माल धान अशुद्ध कच्चा माल है जिसका सत्र 2016-18 के मध्य बून्दी के चावल उद्योगों का पदार्थ सूचकांक 1.08 से 1.73 के मध्य रहा है जो इस तथ्य का द्योतक है कि धान अशुद्ध कच्चा पदार्थ होने के कारण चावल उद्योग की स्थापना कच्चे माल के स्थान पर ही उपयुक्त रहती है, क्योंकि अशुद्ध पदार्थ में परिवहन लागत अधिक लगती है।

तालिका 4 से स्पष्ट होता है कि बून्दी जिले में स्थित खाद्य तेल उद्योगों का पदार्थ सूचकांक सत्र 2016-18 के दौरान 1.19 से 1.62 के मध्य रहा जो कि एक से अधिक है। यह इस तथ्य को इंगित करता है कि खाद्य तेल उद्योगों का कच्चा माल अशुद्ध पदार्थ है। अतः इन उद्योगों की स्थापना कच्चे माल स्रोत पर ही स्थापित होने से परिवहन लागत कम आती है और उद्योगों को अधिक लाभ होता है।

2. श्रम कारक

उद्योगों के स्थानीकरण में श्रम का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि श्रम पूर्ति स्वाभाविक रूप से समस्त उद्योगों के लिए एक आधारभूत आवश्यकता है किन्तु अलग अलग उद्योगों के स्थिति निर्धारण में श्रम का प्रभाव एक सा नहीं रहता है। कृषि आधारित उद्योगों में श्रम की आवश्यकता कच्चे माल के उत्पादन से लेकर, कारखानों में उतारने, निर्मित माल तैयार करने, तैयार माल को गोदाम में रखने तथा बाजार तक अर्थात वितरण केन्द्रों तक पहुंचाने तक होती है।

इसी प्रकार बून्दी जिले के चावल उद्योग का श्रम लागत सूचकांक सन् 2016-18 में 0.31 से 0.36 के मध्य रहा है जो इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि यहां श्रम लागत को श्रम गतिशीलता प्रभावित कर रही है और जहां श्रम गतिशील होता है, वहां लागत कम आती है।

इसी प्रकार बून्दी के खाद्य तेल उद्योग का श्रम लागत सूचकांक सत्र 2016-18 में 0.53 से 0.55 के मध्य रहा है।

3. यातायात:

यातायात औद्योगिक स्वरूप का मापक है। वाणिज्यक, व्यवसायिक एवं क्षैत्रीय विशिष्टीकरण हेतु सुविकसित यातायात व्यवस्था आवश्यक होती है। कृषि एवं औद्योगिक विकास के लाभ तभी प्राप्त किये जा सकते हैं, जबकि यातायात के साधनों का समुचित विकास हुआ हो और यातायात के क्षेत्रों में विपुल पूंजी का विनियोजन हुआ हो। बून्दी में सड़कों के साथ साथ इन उद्योगों के विकास में राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 52 से एवं जिले में रेलमार्ग की सुविधा ने अभिगण्यता एवं परिवहन के साधनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिससे बून्दी जिले में कृषि उद्योगों का भूदृश्य विकसित हुआ है।

4. बाजार

राज्य के बून्दी जिले में जिले, नगरों एवं उपनगरों आदि ने सुविकसित बाजारों का विकास हुआ है। अधिकतर कृषि उद्योग खाद्य पदार्थ होते हैं जो उस क्षेत्र की विशाल जनसंख्या उपभोक्ता के रूप में उपलब्ध है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने भी बाजारों को विकसित किया है।

5. पूंजी

उद्योग की स्थिति, प्रकार, मूल्य और विभिन्न स्थितियों में उत्पादन को पूंजी प्रभावित करती है। राज्य के बून्दी जिले के कृषि उद्योगों में पूंजी का उपयोग, उत्पादन लागत, परिवहन लागत के साथ-साथ श्रमिकों, मशीनरी खर्च, विद्युत, खर्च, कच्चा माल क्रय में व्यापार आदि में पूंजी का विनियोजन हुआ है।

6. जल एवं विद्युत

बून्दी जिले के कृषि आधारित चावल, खाद्य तेल आदि उद्योगों को जलीय स्रोतों की एवं उर्जा स्रोतों की उपलब्धता के कारण कठिनाई नहीं है, इसलिए भी कृषि उद्योगों का स्थानीकरण बून्दी जिले में अधिक हुआ है।

निष्कर्ष

निष्कर्षत कहा जा सकता है कि बून्दी जिला राजस्थान का समुद्र कृषि उत्पादन के क्षेत्र में उभर रहा है। जिसमें खाद्यान, तिलहनी एवं मसाला आधारित क्रमशः चावल, खाद्य तेल एवं धनिया उद्योगों का निरन्तर विकास हो रहा है जिसके फलस्वरूप प्रदेश में पूंजी निवेश, आय में वृद्धि के साथ आर्थिक विकास बढ़ रहा है। इसमें हाड़ौती क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, विद्युत विकास, कृषि आधुनिकीकरण के तहत टेªक्टर, थ्रेसर, पम्पसेट, उन्नत बीज, उर्वर भूमि, रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, मानवीय श्रम परिवहन, यातायात अभिगम्यता आदि का प्रमुख योगदान रहा है। कच्चा माल मानवीय श्रम, यातायात अभिगम्यता, बाजार, जल की सुविधा, उर्जा आदि स्थानीयकरण के कारकों का अध्ययन कर स्थानिक लब्धि संक्रेन्दियता, पदार्थ सूचकांक एवं श्रम लागत सूचकांक का विश्लेषण कर उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित किया गया है। बून्दी में कृषि आधारित उद्योगों की अवस्थिति ने औद्योगिक भूदृश्य के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, अधिक, कृषि उत्पादन की जिज्ञासा रोजगार के अवसरों में वृद्धि, क्षेत्र में आत्म निर्भर एवं आपसी समन्वय आदि विशेषताओं को विकसित किया है। संभावित नवीन कृषि उद्योगों के लिए सुझाव फसल क्षेत्र संक्रेन्दियता फसल उत्पादन परिवहन, मानव संसाधन की दृष्टि बून्दी जिले में नवीन कृषि उद्योगों का विकास संभव है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. राजस्थान एग्रीकल्चर स्टेटिस्टिक्स 2015-16 आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय जयपुर पृ.. 66,89,91,109
2. लोढ़ा, राजमल, (2000) औद्योगिक भूगोल, राज. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृ. 24,44,48,100
3. लोकनाथन (1932) भारत में सूती वस्त्र, चीनी उद्योग, लोह-इस्पात, जूट, कागज, सीमेन्ट उद्योगों के स्थानीकरण तत्वों का अध्ययन, अप्रकाशित शोध ग्रंथ
4. चन्द्रा एम.एस. (1988), श्री गंगानगर चीनी उद्योग का आर्थिक सर्वेक्षण, अप्रकाशित शोध ग्रंथ
5. बैरवा, आर.एन. (1991) राजस्थान के चीनी उद्योग का एक भौगोलिक विश्लेषण, अप्रकाशित शोध ग्रंथ मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
6. मीणा एल.सी. (1997) सूती वस्त्र उद्योग, अवस्थितिकरण वृद्धि और प्रादेशिक आर्थिक विकास, अप्रकाशित शोध ग्रंथ, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर (राज.)
7. शर्मा जे.पी. (2002) राजस्थान में कृषि आधारित उद्योग: एक भौगोलिक अध्ययन, अप्रकाशित शोध ग्रंथ, राज.विश्वविद्यालय जयपुर।
8. Garnier J Beaujeu & Chabata (1967) urben geography landon P 331
9. Kalwar S.C. (1999) Resources, Hazards, Rural development Policies Pointer publishers, Jaipur